राजनीति नरेंद्र मोदी मतलब नैति नैति

नरेंद्र मोदी मतलब नैति नैति

डॉ घनश्याम बादल  नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के रूप में इंदिरा गांधी के कार्यकाल को पीछे छोड़कर नेहरू के बाद सबसे ज्यादा समय तक लगातार प्रधानमंत्री पद रहने…

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राजनीति नरेंद्र मोदी : विकास के “भगीरथ”, आधुनिक भारत के  “शिल्पकार”

नरेंद्र मोदी : विकास के “भगीरथ”, आधुनिक भारत के  “शिल्पकार”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन 17 सितंबर प्रदीप कुमार वर्मा एक लोकप्रिय राजनेता। एक कुशल रणनीतिकार। जनता का प्रधान सेवक। सादगी और सेवा की प्रतिमूर्ति।…

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लेख उपेक्षा और संवेदना के बीच बुजुर्गों की स्थिति

उपेक्षा और संवेदना के बीच बुजुर्गों की स्थिति

भारतीय समाज की रीति-नीति और सांस्कृतिक परंपराओं में बुजुर्गों का स्थान हमेशा से उच्च माना गया है। “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता” की भाँति…

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मनोरंजन श्वेता तिवारी के लुक्‍स पर फिदा हैं फैंस

श्वेता तिवारी के लुक्‍स पर फिदा हैं फैंस

सुभाष शिरढोनकर टीवी की सबसे हॉट, सबसे ज्‍यादा भुगतान पाने वाली मशहूर एक्ट्रेस श्वेता तिवारी 12 सितंबर को दर्शकों के लिए अमेजन प्राइम वीडियो पर उपलब्ध करण…

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लेख नरेंद्र मोदी होना आसान नहीं है

नरेंद्र मोदी होना आसान नहीं है

जन्मदिन 17 सितंबर राजेश कुमार पासी नरेन्द्र दामोदरदास मोदी का नाम आज पूरी दुनिया में गूंज रहा है, भारत में बच्चे-बच्चे  के मुंह पर मोदी का नाम चढ़ गया है । कितने ही देशों में जनता की मांग होती है कि उन्हें भी मोदी जैसा नेता चाहिए । हमारा पड़ोसी वैसे तो मोदी से बहुत नफरत करता है लेकिन पाकिस्तानी जनता भी चाहती है कि उनके पास भी मोदी जैसा कोई नेता हो । 17 सितंबर, 1950 को मोदी का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ । एक गरीब परिवार से निकलकर देश की सर्वोच्च सत्ता पर पहुंचना आसान नहीं रहा होगा । 17 वर्ष की आयु में उनका विवाह जशोदाबेन से किया गया लेकिन विवाह के पश्चात वो अपने परिवार और घर को छोड़ कर देशसेवा के लिए निकल गए । उन्होंने संघ प्रचारक रहते हुए 1983 में गुजरात विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल की । बचपन में चाय बेचने वाले बच्चे ने संघ प्रचारक के रूप में पूरे देश का भ्रमण किया । यही कारण है कि उन्हें पूरे देश की जनता की नब्ज का पता है ।  उन्हें देश की समस्याओं को समझने के लिए किसी अधिकारी और विशेषज्ञ की जरूरत नहीं पड़ती । उनकी योजनाएं लीक से हटकर होती हैं । मोदी को गरीबी  समझने के लिए किताबी ज्ञान की जरूरत नहीं है, उन्होंने गरीबी को जीया है । यही कारण है कि उनकी योजनाओं से गरीबों की जिन्दगी में जो बदलाव आया है, वो बदलाव पिछले 70 साल की सरकारें भी नहीं कर पाई । देश का प्रधानमंत्री स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले से राष्ट्र के नाम संबोधन में पूरे देश में शौचालय बनाने की घोषणा करता है । ये देखने में बड़ा अजीब लग सकता है और इसका मजाक भी बनाया गया लेकिन गरीब महिलाओं के लिए शौचालय का क्या मतलब होता है, ये वही जान सकता है, जिसने उनके जीवन को करीब से देखा है । मोदी सरकार की योजनाओं का सबसे ज्यादा फायदा महिलाओं को हुआ है । मोदी सरकार की ज्यादातर योजनाएं महिलाओं को ही ध्यान में रखकर बनाई गई हैं । यही कारण है कि महिलाओं में मोदी का एक बड़ा समर्थक वर्ग खड़ा हो गया है ।                    मोदी ने संघ के प्रचारक से राजनीति में प्रवेश किया लेकिन उन्होंने राजनीति को सत्ता प्राप्ति नहीं बल्कि सेवा का माध्यम माना । यही कारण है कि वो खुद को देश का शासक नहीं बल्कि प्रधान सेवक मानते हैं । स्वयंसेवक से प्रधान सेवक का सफर आसान नहीं रहा होगा, मोदी जैसा व्यक्तित्व ही ऐसा सफर पूरा कर सकता है ।  संघ से उन्हें निस्वार्थता, सामाजिक दायित्व बोध, समर्पण, सेवा, त्याग और देशभक्ति के विचारों को आत्मसात करने का अवसर मिला । 1974 में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन में उन्होंने हिस्सा लिया और 1975 में आपातकाल के दौरान भी अपना योगदान दिया । संघ के निर्देश पर 1987 में उन्होंने भाजपा में प्रवेश करके राजनीति की मुख्यधारा में कदम रखा । एक साल बाद पार्टी ने उनकी योग्यता को देखते हुए गुजरात की राज्य इकाई का प्रदेश महामंत्री बना दिया । उनकी मेहनत  और रणनीति के कारण 1995 में भाजपा को गुजरात विधानसभा में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का मौका मिला ।  2001 में गुजरात के भूकंप के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल के खिलाफ पार्टी में असंतोष भड़क गया । इस असंतोष को देखते हुए भाजपा हाईकमान ने गुजरात की कमान मोदी जी को सौंपने का निर्णय लिया । 7 अक्तूबर 2001 को मोदी जी ने गुजरात के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली । मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने गुजरात के भूकंप  पीड़ितों के लिए बड़े कार्यक्रम चलाए और उनके पुनर्वास की व्यवस्था की ।  2002 में गुजरात में गोधरा कांड हो गया, जिसमें 59 कारसेवकों को रेल  के डिब्बे में बंद  करके जलाकर मार दिया गया । इसकी प्रतिक्रिया में गुजरात में दंगे हो गए, जिसमें 1200 लोग मारे गए । इसके बाद हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में मोदी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई । इसके बाद 2007 और 2012 में मोदी के नेतृत्व में गुजरात में भाजपा की सरकार बनी । गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में काम करते हुए उनके गुजरात मॉडल की पूरे देश में चर्चा होने लगी । गुजरात के विकास को देखते हुए उन्हें विकासपुरूष कहा जाने लगा । उनकी योजनाओं की पूरे देश में चर्चा होने लगी । ज्योतिग्राम योजना के जरिये उन्होंने गांव-गांव तक बिजली पहुंचा दी । गुजरात में गांव-गांव तक पानी पहुंचाने की व्यवस्था की । गुजरात की कानून-व्यवस्था की चर्चा भी देश में होने लगी । उनकी लोकप्रियता को देखते हुए ही भाजपा ने उन्हें 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया ।                  2014 में उनकी लोकप्रियता का ये आलम था कि मनमोहन सिंह  के रहते हुए ही उन्हें प्रधानमंत्री मान लिया गया था । मोदी की सबसे बड़ी विशेषता है कि वो हमेशा बड़े लक्ष्य रखते हैं और फिर  उन्हें हासिल करने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं । उन्होंने 2014 में भाजपा  के लिए 272 सीटें हासिल करके पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का लक्ष्य रखा था । राजनीतिक विश्लेषक, विपक्षी दल और भाजपा के नेताओं को भी यह विश्वास नहीं था कि भाजपा 272 सीटें जीत सकती है लेकिन मोदी ने 282 सीटें जीतकर सबको अचंभित  कर दिया । इसके बाद 2019 में उन्होंने 303 सीटें जीतकर पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया । 2024 में मोदी के नेतृत्व में भाजपा  को 240 सीटें मिली लेकिन मोदी तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बन गए ।  मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले ही कुछ राजनीतिक विश्लेषकों और विपक्षी नेताओं का कहना था कि मोदी अगर प्रधानमंत्री बन गए तो उनको इस पद से हटाना बहुत मुश्किल होगा। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बाद मोदी देश पर लगातार सबसे ज्यादा शासन करने वाले नेता बन गए हैं। नेहरू जी के सामने विपक्ष नाममात्र का था लेकिन मोदी एक शक्तिशाली विपक्ष के रहते यह कारनामा करने में सफल हुए हैं। कोई नहीं कह सकता कि मोदी कब तक देश के प्रधानमंत्री बने रहेंगे क्योंकि उनकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आ रही है । 75 साल की उम्र होने पर भी वो पूरी तरह से स्वस्थ हैं और पूरी ताकत से काम कर रहे हैं। मोदी सत्ता को जनता द्वारा दी गई जिम्मेदारी मानते हैं, इसलिए कहते हैं कि वो जनता के कल्याण के लिए परिश्रम की पराकाष्ठा करेंगे और वो कर भी रहे हैं । 13 साल मुख्यमंत्री और 11 साल प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए उन्होंने एक भी छुट्टी नहीं  ली है । रोज 20 घंटे तक काम करना उनकी आदत है । जनता को वो अपना भगवान मानते हैं और उसकी सेवा को अपना धर्म मानते हैं । यही कारण है कि वो जनता से हमेशा जुड़े रहते हैं और उन्हें ऐसा करने के लिए मीडिया की जरूरत नहीं है । जनता से जुड़ने के लिए पूरे देश का भ्रमण और सोशल मीडिया को वो इस्तेमाल करते हैं । जहां वो गरीबों की समस्याओं को समझते हैं, वही वो उद्योगपतियों की समस्याओं की भी खबर रखते हैं । गरीबों से प्यार करते  हैं लेकिन अमीरों से नफरत नहीं करते ।                   देश के इतिहास, भूगोल, संस्कृति और धर्म की उन्हें गहरी समझ है, इसलिए उन्हें उनके समर्थक हिन्दू हृदय सम्राट कहते हैं । जहां जनता वीआईपी कल्चर से परेशान हैं, वहीं मोदी जी ने मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री बनने के बाद परिवार से दूरी बनाए रखी है । उनके भाई-बहन और अन्य परिजन निम्न मध्यवर्गीय जीवन बिता रहे हैं । उन्होंने अपने पद का इस्तेमाल अपने परिजनों के लिए कभी नहीं किया है । जनता पर मोदी इतना ज्यादा विश्वास करते हैं कि नोटबंदी और जीएसटी लागू करने जैसा मुश्किल फैसला किया । जनता ने उनके विश्वास को कायम रखा है क्योंकि वो मानती है कि मोदी की नीतियां गलत हो सकती हैं लेकिन उनकी नीयत कभी गलत नहीं हो सकती । 2014 से पहले पाकिस्तान के आतंकवादी हमलों के बावजूद उसके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई लेकिन मोदी ने सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक और फिर ऑपरेशन सिंदूर करके पाकिस्तान को संदेश दे दिया कि आतंकवादी हमले की उसे बड़ी कीमत चुकानी होगी । जिस चीन से डर कर हम सीमा पर सड़क भी नहीं बना रहे थे, मोदी ने उस सीमा पर सेना के लिए पूरा बुनियादी ढांचा तैयार कर दिया है । जो देश हथियारों का सबसे बड़ा आयातक था, आज उनके नेतृत्व में भारत हजारों करोड़ के हथियार निर्यात कर रहा है । आईटी सुपरपॉवर बना देश अब मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की तैयारी कर रहा है ।  अपनी कल्याणकारी योजनाओं के कारण ही मोदी ने पूरे देश में भाजपा के लिए एक बड़ा वोट बैंक तैयार कर लिया है ।  आज हम अशांत पड़ोसियों से घिरे हुए देश हैं. जहां श्रीलंका, म्यांमार और पाकिस्तान राजनीतिक अस्थिरता से गुजर रहे हैं, वहीं बांग्लादेश और नेपाल में हिंसक क्रांति के बाद सत्ता परिवर्तन हो चुका है ।  प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना हुआ है । मोदी ने भारत को 2047 तक विकसित देश बनाने का लक्ष्य तय किया है और उसी ओर देश को ले जा रहे हैं।   ये भारत की जनता और  ग्लोबल मीडिया के लिए आश्चर्य का विषय था कि जो व्यक्ति 13 साल से गुजरात का सीएम था, वो प्रधानमंत्री बनने के बाद जब अपनी मां से मिलने जाता है तो एक छोटे से सरकारी मकान के छोटे कमरे में उसकी मां रहती है । जिस देश में कोई विधायक बन जाए तो पूरा परिवार पैसों में खेलने लगता है  । मोदी जैसा नेता कभी-कभी आता है क्योंकि सत्ता के शीर्ष पर पहुंच कर जनता का सेवक बने रहना आसान नहीं है। मोदी होना इसलिए भी आसान नहीं है क्योंकि शासक बन जाने के बाद सत्ता  सिर पर चढ़ कर बोलती है। लगातार 24 साल तक सत्ता में रहने के बाद भी बेदाग बने रहना आसान नहीं है।  राजेश कुमार पासी

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राजनीति बोडोलैंड की स्थायी शांति के लिए मिलना चाहिए नोबेल प्राइज

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पंकज जायसवाल अभी हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मणिपुर के दौरे के बाद असम में अपने सम्बोधन के दौरान भावुक हो गये थे. प्रधानमंत्री…

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लेख वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 में हुए सुप्रीम संशोधन के मायने

वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 में हुए सुप्रीम संशोधन के मायने

कमलेश पांडेय सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर तो रोक नहीं लगाई लेकिन उसके कुछेक प्रावधानों में विधिसम्मत और तर्कसंगत संशोधन किया है या फिर पूरी तरह से उन पर रोक लगा दी है। इसलिए वक्फ संशोधन अधिनियम में हुए सुप्रीम संशोधन के मायने समझना बहुत जरूरी है। लोगों को उम्मीद है कि कोर्ट के इस ताजातरीन फैसले से वे आशंकाएं दूर हो जाएंगी जो इस नए कानून को लेकर इससे पहले  जताई जा रही थीं। चूंकि कोर्ट का यह निर्णय संविधान के अनुरूप है, इसलिए दोनों पक्षों ने इसे मान लिया है। यह एक शुभ लक्षण है। बताया जाता है कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से किए गए संशोधन महत्वपूर्ण और जरूरी हैं, क्योंकि इनमें संविधान की भावनाओं का भी ख्याल रखा गया है। इसलिए इसके परिवर्तित मायने राष्ट्रीय एकता के लिहाज से अहम हैं। लिहाजा इस फैसले का मुख्य असर निम्नलिखित है:- पहला, कोर्ट ने उस प्रावधान पर रोक लगा दी है जिसमें वक्फ बनाने के लिए व्यक्ति का 5 वर्षों तक इस्लाम का अनुयायी होना जरूरी था, बताया गया है। हालांकि यह रोक तभी तक लागू रहेगा जब तक राज्य सरकारें इसके लिए अलग से नियम नहीं बना देतीं। चूंकि यह शर्त मनमानी हो सकती थी, इसलिए अदालत ने इसे स्थगित कर दिया है। समझा जाता है कि वक्फ करने के लिए न्यूनतम 5 बरसों तक इस्लाम का अनुयायी होने के प्रावधान पर तब तक रोक रहेगी, जब तक राज्य सरकारें इसके सत्यापन के लिए नियम नहीं बना लेती। चूंकि देश में धर्म व्यक्तिगत मामला है और यह जरूरी नहीं कि कोई नागरिक अपनी धार्मिक पहचान का सार्वजनिक प्रदर्शन करे। इसलिए यह तय करना कि कोई किसी धर्म को कब से मान रहा है, बेहद जटिल है। राज्य सरकारों से उम्मीद है कि इस बारे में नियम बनाते समय वे सभी पहलुओं का ध्यान रखेंगी और ज्यादा संवेदनशीलता बरतेंगी। दूसरा, कोर्ट ने यह भी निर्णय दिया है कि जिला कलेक्टर को यह फैसला देने का अधिकार नहीं है कि कोई संपत्ति वक्फ है या नहीं, जब तक वक्फ ट्रिब्यूनल या कोर्ट अंतिम निर्णय न कर ले। इससे कलेक्टर की शक्ति सीमित हुई है और मनमानी पर रोक लगी है। यह एक अहम संशोधन है क्योंकि शीर्ष अदालत ने वक्फ संपत्ति जांच के प्रावधानों पर पूरी तरह से रोक लगा दी है। साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया है कि नामित अधिकारी की आंशिक रूप से रिपोर्ट के आधार पर ही किसी प्रॉपर्टी को गैर-वक्फ नहीं माना जा सकता। समझा जाता है कि अदालत ने  संपत्ति अधिकार तय करने की ताकत जिलाधिकारी को देने को संविधान में की गई व्यवस्था शक्ति के पृथक्करण के सिद्धांत के खिलाफ माना है। यह व्यवस्था इसलिए की गई है, ताकि लोकतंत्र के तीनों अहम अंगों- विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच शक्ति का संतुलन बना रहे। एक पक्ष की ओर पलड़े का थोड़ा भी झुकाव व्यवस्था के संतुलन को बिगाड़ देगा।  तीसरा, वक्फ बोर्ड में सदस्यों की संख्या और गैर-मुस्लिम सदस्यों की सीमा में संशोधन भी कुछ हद तक सुरक्षित की गई है लेकिन कोर्ट ने कुछ प्रावधानों पर स्थगन लगाया है। लिहाजा लोगों को उम्मीद है कि अब उनकी सरकार अन्य धर्मों के लिए भी इसी तरह के कानून लाएगी व उसका अनुपालन का निर्णय करेगी। चतुर्थ, कोर्ट ने कुछ प्रावधानों को शक्ति के ‘मनमाने’ प्रयोग को रोकने के लिए अस्थायी रूप से स्थगित किया है जिसमें वक्फ संपत्तियों का पंजीकरण और बुजुर्गों का धर्म पालन जैसे मुद्दे शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि वक्फ संशोधन अधिनियम के कई बिंदुओं पर विपक्ष को गहरी आपत्ति थी। इसे लेकर दोनों सदनों में और सड़क पर भी काफी हंगामा हुआ। इस मामले की गंभीरता और उसके असर को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट का फैसला जिम्मेदारी भरा है।  यूँ तो इस बाबत दायर याचिका में पूरे कानून को रद्द करने की मांग की गई थी लेकिन शीर्ष अदालत ने इसे नहीं माना। इस तरह के कदम बेहद दुर्लभ मामलों में उठाए जाते है और इनका प्रभाव बहुत व्यापक होता है। देखा जाए तो इस मायने में सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक विवेक का इस्तेमाल किया और यह भी ध्यान रखा कि विधायिका के साथ सीमाओं का अतिक्रमण न हो। इसलिए उसने समझदारी पूर्वक बीच का रास्ता निकाला है। कुल मिलाकर सुप्रीम कोर्ट ने इस संवेदनशील मामले में बेहद संतुलित नज़रिया अपनाया है।  सच कहा जाए तो कोर्ट का यह फैसला वक्फ कानून में संतुलित नज़रिया को अधिक न्यायसंगत और संवैधानिक बनाने की दिशा में संकेत देता है। साथ ही इसके मार्फ़त सरकारी शक्तियों और व्यक्तिगत अधिकारों का संतुलन बनाने का प्रयास भी किया गया है। कोर्ट के इस फैसले से संबंधित कुछ नियम और प्रावधान तभी तक लागू नहीं होंगे, जब तक इस बारे में अधिक स्पष्ट नियम और निर्देश नहीं बन जाते। इस तरह से स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संशोधन अधिनियम के कुछ प्रावधानों पर रोक लगा दी है जबकि पूरे कानून पर पूरी तरह से रोक नहीं लगाई है। ऐसा करके उसने एक ओर जहां संतुलित नजरिया अपनाते हुए शक्ति का संतुलन बिठाने की कोशिश की है, वहीं दूसरी ओर वक्फ कानून पर फैसला देते हुए उसने अतिरिक्त संवेदनशीलता की जरूरत भी समझी है। यही वजह है कि  अपेक्षाकृत विवादास्पद मामलों में उसका एक और जिम्मेदारी भरा निर्णय सामने आया है जिससे देश-प्रदेश ने राहत की सांस ली है।  कमलेश पांडेय

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प्रवक्ता न्यूज़ नरेन्द्र मोदी युगांतरकारी नेतृत्व के प्रतीक महामानव

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