आर्थिकी जीएसटी का नया दौर: कराधान व्यवस्था क्रांति की ओर

जीएसटी का नया दौर: कराधान व्यवस्था क्रांति की ओर

– ललित गर्ग – भारतीय कराधान व्यवस्था में जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) का आगमन एक ऐतिहासिक एवं क्रांतिकारी कदम था। इसने अप्रत्यक्ष करों के…

Read more
लेख एक चेतावनी है अफगानिस्तान का भूकंप

एक चेतावनी है अफगानिस्तान का भूकंप

प्रमोद भार्गव 31 अगस्त 2025 की मध्य रात्रि के बाद पूर्वी अफगानिस्तान में 6.0 तीव्रता के आए भूकंप ने बड़ी त्रासदी रच दी। करीब 1400…

Read more
लेख भारतीय संस्कृति में गुरु शिष्य की परंपरा अति प्राचीन

भारतीय संस्कृति में गुरु शिष्य की परंपरा अति प्राचीन

डा. नर्मदेश्वर प्रसाद चौधरी हमारे देश भारत में गुरु और शिष्य की परंपरा बहुत ही पुरानी है जो सदियों से चली आ रही है। आज भी…

Read more
लेख डिजिटल युग में शिक्षक की भूमिका हुई और अधिक महत्वपूर्ण

डिजिटल युग में शिक्षक की भूमिका हुई और अधिक महत्वपूर्ण

-संदीप सृजन डिजिटल युग ने शिक्षा के परिदृश्य को पूर्णतः परिवर्तित कर दिया है। पहले शिक्षक कक्षा में ब्लैकबोर्ड और पुस्तकों के माध्यम से ज्ञान प्रदान…

Read more
राजनीति गुजरा वोटर यात्रा का “कारवां”, अब सिर्फ नफरत का “गुबार” 

गुजरा वोटर यात्रा का “कारवां”, अब सिर्फ नफरत का “गुबार” 

प्रदीप कुमार वर्मा पीएम नरेंद्र मोदी के विरुद्ध “तू-तड़ाक” की भाषा का इस्तेमाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दिवंगत मां के विरुद्ध भद्दी गालियों का चलन, कांग्रेस नेता राहुल गांधी का भावी पीएम के रूप में ऐलान, राजद नेता तेजस्वी यादव द्वारा खुद को सीएम घोषित करने की कशमकश और ‘वोट चोर, गद्दी छोड़’ जैसे नारों का प्रयोग। कांग्रेस नेता राहुल गांधी की अगुवाई में बिहार में वोटर अधिकार यात्रा का यही फलसफा देखने को मिला। कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा मतदाताओं के अधिकारों के प्रति जागरूकता के लिए निकाली गई वोटर अधिकार यात्रा एक प्रकार से अपने उद्देश्य से कोसों दूर रही। विपक्ष द्वारा चुनाव आयोग को कटघरे में खड़ा करने की नाकाम कोशिश भी वोटर अधिकार यात्रा में दिखी। वहीं, प्रधानमंत्री समेत भाजपा तथा अन्य के विरुद्ध राजनीतिक घृणा का एक नया चेहरा भी सामने आया। कांग्रेस और राजद जहां वोटरों के अधिकार से इस यात्रा को जोड़ रही है। वहीं, भाजपा सहित समूचे एनडीए के नेताओं का आरोप है यह घुसपैठियों को बचाने की यात्रा है। कुल मिलाकर बिहार चुनाव में वोटर अधिकार यात्रा का कारवां गुजर चुका है और अपने पीछे राजनीतिक नफरत का गुबार छोड़ गया है।            कांग्रेस नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन की बिहार में करीब एक पखवाड़े की वोटर अधिकार यात्रा सोमवार को समाप्त हो गई। यह यात्रा राज्य के 25 जिलों और 110 विधानसभा क्षेत्रों से गुजरी। राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ सासाराम से शुरू हुई थी और पटना में समाप्त हुई। करीब एक हजार 300 किलोमीटर लंबी इस यात्रा का मकसद उन लाखों मतदाताओं के लिए आवाज उठाना था, जिनके नाम वोटर लिस्ट से हटा दिए गए हैं। इस यात्रा से बिहार का मतदाता कितना जागरूक हुआ है, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन वोटर अधिकार यात्रा के दौरान कई विवाद हुए और राजनीति के कई स्याह चेहरे यात्रा के दौरान देखने को मिले। वोटर अधिकार यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए “तू-तड़ाक” की भाषा का इस्तेमाल किया। हद तो तब हो गई जब कांग्रेस और राजद के मंच से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दिवंगत मां को भी गाली दी गई जिसके चलते राहुल गांधी की इस वोटर अधिकार यात्रा के ” निहितार्थ” को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं।            बिहार में पिछले करीब चार दशकों में कांग्रेस लगातार कमजोर होती गई है। बिहार की राजनीति में वर्तमान में कांग्रेस राजद की अगुवाई वाले महा गठबंधन का हिस्सा है। बिहार में अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन की तलाश लेकर कांग्रेस ने वोटर अधिकार यात्रा शुरू की।  इस यात्रा ने राहुल गांधी को विपक्ष के मुख्य चेहरे के तौर पर स्थापित किया, इसमें कोई दो राय नहीं है। यह भी सत्य है कि वोटर अधिकार यात्रा ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को भी उत्साहित किया है। यात्रा के जरिए देश के मुख्य विपक्षी दलों ने भी अपनी एक जुटता दिखाने की कोशिश की और यात्रा के दौरान इन दलों के नेताओं ने अपनी सक्रिय सहभागिता निभाई। वोटर अधिकार यात्रा में कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, रेवंत रेड्डी, अशोक गहलोत, केसी वेणुगोपाल, सिद्धारमैया शामिल हुए। आरजेडी से तेजस्वी यादव पूरे समय यात्रा में रहे और लालू प्रसाद यादव भी इसमें बीच में शामिल हुए।       वोटर अधिकार यात्रा में समाजवादी पार्टी से अखिलेश यादव, डीएमके के एमके स्टालिन और कनिमोझी, झारखंड मुक्ति मोर्चा से हेमंत सोरेन, तृणमूल कांग्रेस से यूसुफ पठान और ललितेश त्रिपाठी, एनसीपी (शरद पवार) से सुप्रिया सुले और जितेंद्र आव्हाड, शिवसेना (यूबीटी) से संजय राउत, वामपंथी पार्टियों से दीपांकर भट्टाचार्य (सीपीआई-एमएल), डी राजा (सीपीआई), एमए बेबी (सीपीआई-एम) और वीआईपी से मुकेश सहनी भी शामिल हुए। लेकिन वोटर अधिकार यात्रा के दौरान समय-समय पर हुए विवादों के चलते इस यात्रा के उद्देश्य और औचित्य पर भी सवाल उठने लगे। वोटर अधिकार यात्रा के दौरान राहुल गांधी द्वारा ऐलान किया गया था कि इस यात्रा के माध्यम से जिन लोगों के वोट काटे गए हैं, उनकी पहचान कर उनको सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग के सामने पेश किया जाएगा लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। एक विवाद उस समय भी आया जब दक्षिण भारत के नेताओं ने वोटर अधिकार यात्रा में शिरकत की जिसको लेकर भाजपा और जनता दल यूनाइटेड ने उन पर निशाना साधा। यात्रा से पूर्व दक्षिण भारत के नेताओं ने बिहारी लोगों पर कथित अपमानजनक टिप्पणी की थी जिसको लेकर भी यात्रा के दौरान काफी “तनाव” देखने को मिला। इस यात्रा के दौरान कुछ विवाद भी हुए। राहुल गांधी के काफिले में एक पुलिस कांस्टेबल घायल हो गया। बीजेपी ने इस मुद्दे पर हमला किया। दरभंगा में एक रैली के दौरान पीएम मोदी के खिलाफ कथित तौर पर अपमानजनक टिप्पणी की गई। कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा मंच से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरुद्ध उपयोग की गई तू-तडाक की भाषा को लेकर लोगों में काफी रोष देखने को मिला तथा राहुल के इस तेवर की खूब आलोचना भी हुई। बीजेपी को इससे विपक्ष पर हमला करने का मौका मिल गया और उसने इसकी कड़ी आलोचना की। पटना में पक्ष-विपक्ष के पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच झड़प भी हुई, जिससे तनाव बढ़ गया। कई राजनीतिक प्रेक्षकों ने राहुल गांधी की इस भाषा को सभ्य और शुचिता की राजनीति से परे बताया। कांग्रेस और राजद की वोटर अधिकार यात्रा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दिवंगत मां के अपमान के रूप में भी याद किया जाएगा। कांग्रेस और राजद के मंच से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिवंगत मां के लिए भद्दी गलियों का इस्तेमाल वर्तमान की घृणित राजनीतिक सोच को बताता है। भाजपा अब इस अपमान के लिए कांग्रेस तथा आरजेडी पर हमलावर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिला सशक्तिकरण के कार्यक्रम में भावुक होते हुए कहा कि उनकी मां का राजनीति से कोई लेना देना नहीं, वह  सशरीर मौजूद नहीं है। इसके बाद भी उसे गाली दी गई। बिहार की मां-बहन और बेटियां इस अपमान को कभी बर्दाश्त नहीं करेंगे। अपनी मां के अपमान के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस भावुक अपील ने बिहार चुनाव के पहले नजर एक नया राजनीतिक विमर्श सेट कर दिया है। राजनीति के जानकारों का मानना है कि जब-जब कांग्रेस सहित विपक्ष ने नरेंद्र मोदी को व्यक्तिगत रूप से निशाना बनाया है, तब तब विपक्ष को इसका नुकसान उठाना पड़ा है।           वोटर अधिकार यात्रा के दौरान वोट चोरी के जो भी सबूत दिखाए गए,…

Read more
राजनीति हिंदुस्तान की विदेश नीति : बदलते वैश्विक परिदृश्य में नई दिशा और चुनौतियाँ

हिंदुस्तान की विदेश नीति : बदलते वैश्विक परिदृश्य में नई दिशा और चुनौतियाँ

अशोक कुमार झा 21वीं सदी की अंतरराष्ट्रीय राजनीति और अर्थव्यवस्था में हिंदुस्तान का स्थान तेजी से बदल रहा है। एक ओर यह पाँचवीं सबसे बड़ी…

Read more
राजनीति वैश्विक कूटनीति के ‘मोदी मॉडल’ से मचे अंतरराष्ट्रीय धमाल के मायने

वैश्विक कूटनीति के ‘मोदी मॉडल’ से मचे अंतरराष्ट्रीय धमाल के मायने

कमलेश पांडेय वैश्विक कूटनीति के ‘मोदी मॉडल’ से एक के बाद एक मचे अंतरराष्ट्रीय राजनयिक धमाल के मायने ब्रेक के बाद निरंतर दिलचस्प होते जा…

Read more
राजनीति भागवत ने विपक्ष की बड़ी उम्मीद तोड़ दी

भागवत ने विपक्ष की बड़ी उम्मीद तोड़ दी

राजेश कुमार पासी मोदी को तीसरा कार्यकाल मिलने से विपक्ष में हताशा बढ़ती जा रही है । दूसरी तरफ जो पूरा इको सिस्टम मोदी को सत्ता से हटाना चाहता है, वो भी असहाय महसूस कर रहा है । 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्षी दलों और उनके इको सिस्टम को लग रहा था कि इस बार वो मोदी को सत्ता से बाहर कर देंगे लेकिन उनकी उम्मीद टूट गई। अल्पमत की सरकार होने पर उनकी उम्मीद फिर जाग गई कि नीतीश और नायडू की बैसाखियों पर टिकी यह सरकार ज्यादा दिन नहीं चल पाएगी क्योंकि मोदी को गठबंधन सरकार चलाने का अनुभव नहीं है। एक साल बाद विपक्ष को समझ आ गया है कि निकट भविष्य में इस सरकार को कोई खतरा नहीं है। ऐसे में संघ प्रमुख मोहन भागवत के एक बयान ने विपक्ष को उम्मीदों से भर दिया ।  मोदी जब सत्ता में आये थे तो उन्होंने भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं को सक्रिय राजनीति से बाहर कर दिया था । इससे ये संदेश गया कि भाजपा अब बूढ़े नेताओं को पार्टी में रखने वाली नहीं है। विशेष रूप से भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को जब भाजपा ने टिकट नहीं दिया तो कहा जाने लगा कि पार्टी अब 75 साल से ज्यादा उम्र वाले नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा रही है। इस बात की अनदेखी कर दी गई कि जब आडवाणी जी को भाजपा ने चुनावी राजनीति से बाहर किया तो उनकी उम्र 75 वर्ष से कहीं ज्यादा 92 वर्ष थी । इसी तरह मुरली मनोहर जोशी को भी भाजपा ने 85 वर्ष की आयु में टिकट नहीं दिया था और उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया था ।  विपक्ष ये विमर्श कहां से ले आया कि भाजपा अब 75 साल से ज्यादा उम्र के नेताओं को सक्रिय राजनीति से बाहर का रास्ता दिखा रही है। जब आडवाणी जी पार्टी में एक सांसद के रूप में 92 वर्ष तक रह सकते हैं तो 75 साल वाला फार्मूला कहां से आ गया                भाजपा विरोधी जान चुके हैं कि प्रधानमंत्री मोदी को सत्ता से हटाना उनके वश की बात नहीं है। उन्होंने पूरी कोशिश करके देख लिया है कि मोदी की लोकप्रियता कम होने का नाम नहीं ले रही है। उनके लगाए आरोपों का जनता पर कोई असर नहीं होता है। विपक्ष नए-नए मुद्दे लेकर आता है लेकिन उसके मुद्दे जनता के मुद्दे नहीं बन पाते हैं। यही कारण है कि हताशा में विपक्ष देश विरोध तक चला जाता है।  जब मोहन भागवत ने 75 साल में रिटायर होने के मोरोपंत पिंगले के कथन का जिक्र किया था तो विपक्ष में बहुत बड़ी उम्मीद पैदा हो गई थी । उन्हें लगा कि मोदी को सत्ता से हटाना बेशक मुश्किल हो लेकिन जब संघ प्रमुख कह रहे हैं कि 75 साल वाले नेता को रिटायर हो जाना चाहिए तो मोदी भी रिटायर हो जाएंगे । उनकी उम्मीदों पर पानी फेरते हुए भागवत ने बयान दिया है कि मैंने किसी के लिए नहीं कहा कि उसे 75 साल में पद छोड़ देना चाहिए। उन्होंने दूसरी बात यह कही कि मैं भी 75 साल का होने जा रहा हूँ और मैं भी पद नहीं छोड़ने जा रहा हूँ। विपक्ष को लग रहा था कि अगर भागवत पद छोड़ देंगे तो मोदी पर नैतिक दबाव आ जायेगा और उन्हें भी पद छोड़ना पड़ेगा। भागवत के इस बयान से कि वो भी पद छोड़ने वाले नहीं है, विपक्ष की सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया है। कितने ही लोग अपने-अपने प्रधानमंत्री मन में बना चुके थे, उनके सपने टूट गए। विपक्ष ही नहीं, भाजपा के भी कुछ लोग अपनी गोटियां बिठा रहे थे. उनकी भी उम्मीद खत्म हो गई है।  संघ प्रमुख के बयान से यह सोचना कि मोदी भी रिटायर हो जाएंगे, विपक्ष की राजनीतिक नासमझी है । मेरा मानना है कि 2029 का चुनाव तो भाजपा मोदी के नेतृत्व में लड़ने वाली है और संभावना इस बात की भी है कि 2034 का चुनाव भी मोदी के नेतृत्व में लड़ा जाएगा ।  अंत में उनका स्वास्थ्य निर्णय लेगा कि वो कब तक पद पर बने रहते हैं। राजनीति में भविष्यवाणी नहीं की जाती लेकिन मेरा मानना है कि मोदी खुद सत्ता छोड़कर जाएंगे. उन्हें न तो विपक्ष सत्ता से हटा सकता है और न ही भाजपा में कोई नेता ऐसा कर सकता है । राजनीति में वही पार्टी का नेतृत्व करता है जिसके नाम पर वोट मिल सकते हैं। इस समय मोदी ही वो नेता हैं जिनके नाम पर भाजपा वोट मांग सकती है। जब तक मोदी राष्ट्रीय राजनीति में हैं, भाजपा किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकती और न ही संघ कुछ कर सकता है। भाजपा पर संघ का प्रभाव है, इसमें कोई दो राय नहीं है लेकिन भाजपा के काम में एक हद तक ही संघ दखल दे सकता है। भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व को बदलना संघ के लिए भी मुश्किल काम है क्योंकि इसी नेतृत्व के कारण संघ के सारे काम पूरे हो रहे हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भाजपा कैडर आधारित पार्टी है और इस समय कैडर पूरी तरह से मोदी के पीछे खड़ा है। कैडर के खिलाफ जाकर भाजपा के नेतृत्व को बदलने के बारे में सोचना संघ के लिए भी मुश्किल है। बेशक संघ भाजपा का मातृ संगठन है लेकिन प्रधानमंत्री मोदी से बड़ा व्यक्तित्व आज कोई दूसरा नहीं है, संघ प्रमुख भी नहीं । भाजपा और संघ में कहा जाता है कि व्यक्ति से बड़ा संगठन होता है लेकिन मोदी आज संगठन से बड़े हो गए हैं। क्या यह सच्चाई संघ को नजर नहीं आ रही है। मेरा मानना है कि संघ भी इस सच की अनदेखी नहीं कर सकता । अगर कहीं भी संघ के मन में ऐसा विचार आया होगा कि भाजपा की कमान एक उम्र के बाद मोदी की जगह किसी दूसरे नेता को देनी चाहिए तो सच्चाई को देखते हुए वो पीछे हट गया है। मोदी जी की जगह किसी और को नेतृत्व सौंपने के परिणाम की कल्पना संघ ने की होगी तो उसे पता चल गया होगा कि मोदी को हटाने का भाजपा और संघ को कितना बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है ।                 क्या संघ को अहसास नहीं है कि मोदी सरकार आने के बाद उसका सामाजिक और भौगोलिक विस्तार लगातार हो रहा है। वो इससे अंजान नहीं है कि अगर भाजपा सत्ता से बाहर गयी तो उसकी सबसे बड़ी कीमत संघ को ही चुकानी होगी । अगर मोदी के कारण संघ का भाजपा पर नियंत्रण कम हो गया है तो उसका राष्ट्रीय महत्व भी बहुत बढ़ गया है। अगर मोदी के जाने के बाद भाजपा के हाथ से सत्ता चली जाती है तो संघ को भाजपा पर ज्यादा नियंत्रण मिलने का कोई फायदा होने वाला नहीं है। देखा जाए तो संघ एक सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन है, राजनीतिक संगठन नहीं है। राजनीतिक उद्देश्य के लिए उसने भाजपा का निर्माण किया था जो पूरी तरह से फलीभूत हो रहा है। अगर भाजपा के जरिये संघ के न केवल राजनीतिक बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक उद्देश्य भी पूरे हो रहे हैं तो संघ को भाजपा से कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। ऐसा लगता है कि संघ ने बहुत सोच समझ कर पीछे हटने का फैसला कर लिया है। संघ को सत्ता की ताकत का अहसास अच्छी तरह से हो गया है और वो यह भी जान गया है कि भाजपा का लगातार सत्ता में रहना कितना जरूरी है। भाजपा के लगातार तीन कार्यकाल तक सत्ता में रहने की अहमियत का अंदाजा संघ को है इसलिए वो नहीं चाहेगा कि उसकी दखलंदाजी से भाजपा को अगला कार्यकाल मिलने में बाधा उत्पन्न हो जाए।  भागवत ने कहा है कि भाजपा का अगला अध्यक्ष कौन होगा, ये भाजपा को तय करना है. संघ का इससे कोई लेना देना नहीं है । उनके इस बयान से साबित हो गया है कि संघ ने भाजपा में दखलंदाजी से दूरी बना ली है। इसका यह मतलब नहीं है कि भाजपा और संघ में दूरी पैदा हो गई है बल्कि संघ ने अपनी भूमिका को पहचान लिया है। उसको यह बात समझ आ गई है कि उसका काम भाजपा को सत्ता पाने में मदद करना है लेकिन सत्ता कैसे चलानी है, ये उसे तय नहीं करना है। संघ को पता चल गया है कि सत्ता पाने के बाद देश चलाना भाजपा का काम है और संघ का काम सत्ता के सहयोग से अपने संगठन को आगे बढ़ाने का है । वैसे भी जिन लोगों के हाथ में भाजपा की बागडोर है, वो संघ से निकले हुए उसके स्वयंसेवक ही हैं । संघ को अहसास हो गया है कि वो किसी को पार्टी का नेता बना सकता है लेकिन जनता का नेता बनाना उसके हाथ में नहीं है।  2014 के बाद मोदी अब भाजपा के नेता या संघ के कार्यकर्ता नहीं रह गए हैं बल्कि वो देश के नेता बन गए हैं। संघ जानता है कि मोदी की इस समय क्या ताकत है, इसलिए वो मोदी को कोई निर्देश देने की स्थिति में नहीं है। विपक्ष को मोदी के रिटायर होने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए थी लेकिन अब उसे समझ आ जाना चाहिए कि उसे जल्दी मोदी से छुटकारा मिलने वाला नहीं है । जब तक मोदी का स्वास्थ्य अनुमति देगा, वो भाजपा का नेतृत्व करते रहेंगे ।  राजेश कुमार पासी

Read more
मनोरंजन ‘सराहना’ के बाद ‘व्‍यावसायिक सफलता’ के इंतजार में अलाया एफ

‘सराहना’ के बाद ‘व्‍यावसायिक सफलता’ के इंतजार में अलाया एफ

सुभाष शिरढोनकर 28 नवंबर 1997 को मुंबई में एक्‍ट्रेस पूजा बेदी की बेटी के तौर पर पैदा हुई एक्‍ट्रेस अलाया एफ की शुरूआती पढाई मुंबई…

Read more
राजनीति ब्राह्मण:तेल की खरीद में जातीय विभाजन की आग

ब्राह्मण:तेल की खरीद में जातीय विभाजन की आग

संदर्भ-अमेरिकी व्यापारी पीटर नवारो बेहूदा बयान – प्रमोद भार्गवधर्म और जाति भारत की कमजोर कड़ियां रही हैं। इसकी षुरूआत फिरंगी हुकूमत ने भारत में धर्म…

Read more
लेख कुदरत का संदेश

कुदरत का संदेश

कुदरत का रूठना भी ज़रूरी था,इंसान का घमंड टूटना भी ज़रूरी था।हर कोई खुद को खुदा समझ बैठा,उस वहम का छूटना भी ज़रूरी था। पेड़…

Read more
लेख शिक्षा का व्यवसायीकरण और बाजारीकरण देश के समक्ष बड़ी चुनौती 

शिक्षा का व्यवसायीकरण और बाजारीकरण देश के समक्ष बड़ी चुनौती 

05 सितंबर 2025 शिक्षक दिवस पर विशेष शिक्षक समाज में उच्च आदर्श स्थापित करने वाला व्यक्तित्व होता है। किसी भी देश या समाज के निर्माण में शिक्षा की अहम भूमिका होती है, कहा जाए तो शिक्षक समाज का आईना होता है। हिन्दू धर्म में शिक्षक के लिए कहा गया है कि आचार्य देवो भवः यानी कि शिक्षक या आचार्य ईश्वर के समान होता है। यह दर्जा एक शिक्षक को उसके द्वारा समाज में दिए गए योगदानों के बदले स्वरूप दिया जाता है। शिक्षक का दर्जा समाज में हमेशा से ही पूजनीय रहा है। कोई उसे गुरु कहता है, कोई शिक्षक कहता है, कोई आचार्य कहता है, तो कोई अध्यापक या टीचर कहता है ये सभी शब्द एक ऐसे व्यक्ति को चित्रित करते हैं, जो सभी को ज्ञान देता है, सिखाता है और जिसका योगदान किसी भी देश या राष्ट्र के भविष्य का निर्माण करना है। सही मायने में कहा जाये तो एक शिक्षक ही अपने विद्यार्थी का जीवन गढता है। और शिक्षक ही समाज की आधारशिला है। एक शिक्षक अपने जीवन के अन्त तक मार्गदर्शक की भूमिका अदा करता है और समाज को राह दिखाता रहता है, तभी शिक्षक को समाज में उच्च दर्जा दिया जाता है। माता-पिता बच्चे को जन्म देते हैं। उनका स्थान कोई नहीं ले सकता, उनका कर्ज हम किसी भी रूप में नहीं उतार सकते, लेकिन एक शिक्षक ही है जिसे हमारी भारतीय संस्कृति में माता-पिता के बराबर दर्जा दिया जाता है। क्योंकि शिक्षक ही हमें समाज में रहने योग्य बनाता है। इसलिये ही शिक्षक को समाज का शिल्पकार कहा जाता है। गुरु या शिक्षक का संबंध केवल विद्यार्थी को शिक्षा देने से ही नहीं होता बल्कि वह अपने विद्यार्थी को हर मोड़ पर उसको राह दिखाता है और उसका हाथ थामने के लिए हमेशा तैयार रहता है। विद्यार्थी के मन में उमडे हर सवाल का जवाब देता है और विद्यार्थी को सही सुझाव देता है और जीवन में आगे बढ़ने के लिए सदा प्रेरित करता है। एक शिक्षक या गुरु द्वारा अपने विद्यार्थी को स्कूल में जो सिखाया जाता हैं या जैसा वो सीखता है वे वैसा ही व्यवहार करते हैं। उनकी मानसिकता भी कुछ वैसी ही बन जाती है जैसा वह अपने आसपास होता देखते हैं। इसलिए एक शिक्षक या गुरु ही अपने विद्यार्थी को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। सफल जीवन के लिए शिक्षा बहुत उपयोगी है जो हमें गुरु द्वारा प्रदान की जाती है। विश्व में केवल भारत ही ऐसा देश है यहाँ पर शिक्षक अपने शिक्षार्थी को ज्ञान देने के साथ-साथ गुणवत्ता युक्त शिक्षा भी देते हैं, जो कि एक विद्यार्थी में उच्च मूल्य स्थापित करने में बहुत उपयोगी है। जब अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश का राष्ट्रपति आता है तो वो भारत की गुणवत्ता युक्त शिक्षा की तारीफ करता है।  किसी भी राष्ट्र का आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विकास उस देश की शिक्षा पर निर्भर करता है। अगर राष्ट्र की शिक्षा नीति अच्छी है तो उस देश को आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता अगर राष्ट्र की शिक्षा नीति अच्छी नहीं होगी तो वहाँ की प्रतिभा दब कर रह जायेगी बेशक किसी भी राष्ट्र की शिक्षा नीति बेकार हो, लेकिन एक शिक्षक बेकार शिक्षा नीति को भी अच्छी शिक्षा नीति में तब्दील कर देता है। शिक्षा के अनेक आयाम हैं, जो किसी भी देश के विकास में शिक्षा के महत्व को अधोरेखांकित करते हैं। वास्तविक रूप में ज्ञान ही शिक्षा का आशय है, ज्ञान का आकांक्षी है- विद्यार्थी और इसे उपलब्ध कराता है शिक्षक। एक शिक्षक द्वारा दी गयी शिक्षा ही शिक्षार्थी के सर्वांगीण विकास का मूल आधार है। प्राचीन काल से आज पर्यन्त शिक्षा की प्रासंगिकता एवं महत्ता का मानव जीवन में विशेष महत्व है। शिक्षकों द्वारा प्रारंभ से ही पाठ्यक्रम के साथ ही साथ जीवन मूल्यों की शिक्षा भी दी जाती है। शिक्षा हमें ज्ञान, विनम्रता, व्यवहार कुशलता और योग्यता प्रदान करती है। शिक्षक को ईश्वर तुल्य माना जाता है। आज भी बहुत से शिक्षक शिक्षकीय आदर्शों पर चलकर एक आदर्श मानव समाज की स्थापना में अपनी महती भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं। लेकिन इसके साथ-साथ ऐसे भी शिक्षक हैं जो शिक्षक और शिक्षा के नाम को कलंकित कर रहे हैं, और ऐसे शिक्षकों ने शिक्षा को व्यवसाय बना दिया है, जिससे एक निर्धन शिक्षार्थी को शिक्षा से वंचित रहना पड़ता है और धन के अभाव से अपनी पढाई छोडनी पडती है। आधुनिक युग में शिक्षक की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। शिक्षक वह पथ प्रदर्शक होता है जो हमें किताबी ज्ञान ही नहीं बल्कि जीवन जीने की कला सिखाता है। आज के समय में शिक्षा का व्यवसायीकरण और बाजारीकरण हो गया है। शिक्षा का व्यवसायीकरण और बाजारीकरण देश के समक्ष बड़ी चुनौती हैं। पुराने समय में भारत में शिक्षा कभी व्यवसाय या धंधा नहीं थी। इससे छात्रों को बडी कठिनाई का सामना करना पड रहा है। शिक्षक ही भारत देश को शिक्षा के व्यवसायीकरण और बाजारीकरण से स्वतंत्र कर सकते हैं। देश के शिक्षक ही पथ प्रदर्शक बनकर भारत में शिक्षा जगत को नई बुलंदियों पर ले जा सकते हैं। गुरु एवं शिक्षक ही वो हैं जो एक शिक्षार्थी में उचित आदर्शों की स्थापना करते हैं और सही मार्ग दिखाते हैं। एक शिक्षार्थी को अपने शिक्षक या गुरु प्रति सदा आदर और कृतज्ञता का भाव रखना चाहिए। किसी भी राष्ट्र का भविष्य निर्माता कहे जाने वाले शिक्षक का महत्व यहीं समाप्त नहीं होता क्योंकि वह ना सिर्फ हमको  सही आदर्श मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं बल्कि प्रत्येक शिक्षार्थी के सफल जीवन की नींव भी उन्हीं के हाथों द्वारा रखी जाती है। किसी भी देश या राष्ट्र के विकास में एक शिक्षक द्वारा अपने शिक्षार्थी को दी गयी शिक्षा और शैक्षिक विकास की भूमिका का अत्यंत महत्व है। आज शिक्षक दिवस है, आज का दिन गुरुओं और शिक्षकों को अपने जीवन में उच्च आदर्श जीवन मूल्यों को स्थापित कर आदर्श शिक्षक और एक आदर्श गुरु बनने की प्रेरणा देता है। – ब्रह्मानंद राजपूत

Read more