सच की आड़ में झूठ परोस रहे राहुल गांधी
Updated: November 11, 2025
भारत में 90 करोड़ मतदाता हैं, इसलिए मतदाता सूची में गड़बड़ी से इंकार नहीं किया जा सकता। सवाल सिर्फ इतना है कि ये गड़बड़ियां कैसे हुई हैं,
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अब्बा डब्बा जब्बा नहीं,अब अप्पू टप्पू पप्पू…
Updated: November 6, 2025
सुशील कुमार ‘नवीन ‘ वर्ष 1997 में एक फिल्म रिलीज हुई थी। फिल्म का नाम था ‘जुदाई’। मुख्य रोल में थे सुपरस्टार अनिल कपूर और लेडी सुपर स्टार श्रीदेवी। दोनों सुपरस्टारों के साथ जबरदस्त भूमिका में थी रंगीला गर्ल उर्मिला मातोंडकर। जो लोग 40 से बड़ी उम्र के है, अधिकांश फिल्मप्रेमियों ने ये फिल्म टीवी या सिनेमा में अवश्य देखी होगी। फिल्म की कहानी तो उस समय की सुपरहिट थी ही, सो उसकी चर्चा करने की जरूरत ही नहीं है। जरूरत है फिल्म के एक सुपरहिट डायलॉग ‘अब्बा डब्बा जब्बा’ पर चर्चा करने की। मूक बधिर महिला के निभाए गए आइकॉनिक रोल में इस डायलॉग ने उपासना सिंह को रातों रात सुर्खियों में ला दिया था। वैसे आज के समय में उपासना सिंह किसी परिचय की मोहताज नहीं है। आप भी सोच रहे होंगे कि इस डायलॉग की आज 28 वर्ष बाद अचानक कैसे याद हो आई। तो सुनिए बिहार में गुरुवार 6 नवंबर और 11 नवंबर को चुनाव होना है। बिहार की कुल 243 सीट पर दो चरण में चुनाव हो रहे हैं। लगभग 7.43 करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। देश की राजनीति में बिहार की बड़ी भूमिका रहती है। इसलिए भाजपा गठबंधन और कांग्रेस गठबंधन जीत के लिए अपना पूरा जोर लगाए हुए है। 121 सीटों के लिए प्रचार थम चुका है। शेष 122 सीटों के लिए 9 नवंबर तक आरोप प्रत्यारोपों का दौर जारी रहेगा। 11 नवंबर को द्वितीय चरण के मतदान के बाद परिणाम 14 नवंबर को आयेगा। अब सीधे मुद्दे पर आते हैं। चुनाव कोई भी हो चटखारे लेने में कोई कर कसर नहीं छोड़ता। मोदी विरोधी हर मंच से जुमलेबाज, वोट चोर तो कहते ही है। साथ में दो चार तंज और भी छोड़ देते हैं। इसी क्रम में कसर मोदी भी नहीं छोड़ते। जहां मौका लगता है, वहीं तरकश से तीर छोड़ देते है। इस बार मोदी से ज्यादा तो यूपी वाले बाबा जी(योगी आदित्यनाथ) चुनावी मैदान में छक्के पे छक्का मारे जा रहे हैं। नया डायलॉग है पप्पू, अप्पू और टप्पू। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बिहार की धरती से न केवल पटना की राजनीति को नहीं साध रहे, बल्कि दिल्ली तक की विपक्ष की राजनीति को निशाने पर ले रहे हैं।। हाल ही में उन्होंने बातों-बातों में विपक्ष के तीन बड़े चेहरों पर पप्पू, अप्पू और टप्पू का ऐसा डायलॉग मारा है जो लगातार चर्चा में है। उन्होंने बिना नाम लिए इन तीन चेहरों में कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी, सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव और बिहार में विपक्ष के सीएम फेस राजद नेता तेजस्वी यादव को गांधी जी के तीन बंदरों से इनका उदाहरण दिया। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि आज गांधी जी के तीन बंदरों की तरह बिहार के महागठबंधन में भी तीन बंदर हैं। पप्पू, अप्पू और टप्पू। पप्पू सच बोल नहीं सकता, अप्पू सच सुन नहीं सकता और टप्पू सच देख नहीं सकता। उन्होंने बिना नाम लिए राहुल गांधी, अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव पर टिप्पणी करते हुए कहा कि वह तीनों (पप्पू, टप्पू और अप्पू) बंदर न सच देखते हैं, न सुनते हैं, न बोलते हैं। कुछ भी हो डायलॉग जबरदस्त ट्रेंड में है। खैर जो कहा सो कह दिया। लोकतंत्र में सबको बोलने की आजादी है। इन्होंने छक्का मारा है तो मौका लगेगा तो वो भी पीछे नहीं रहेंगे। अथर्ववेद में लिखा गया यह सूक्त आज के समय प्रासंगिक जान पड़ता है। मा भ्राता भ्रातरं द्विक्षन्, मा स्वसारमुत स्वसा। सम्यञ्च: सव्रता भूत्वा वाचं वदत भद्रया।। इसका अर्थ है कि भाई, भाई से द्वेष न करें, बहन, बहन से द्वेष न करें, समान गति से एक-दूसरे का आदर- सम्मान करते हुए परस्पर मिल-जुलकर कर्मों को करने वाले होकर अथवा एकमत से प्रत्येक कार्य करने वाले होकर भद्रभाव से परिपूर्ण होकर संभाषण करें। पुराने समय की बात करें तो राजनीति में भाषा कभी जन-जागरण का माध्यम होती थी। नेता जो बोलते थे वो मर्यादित बोलते थे। आज ट्रेंडिंग का जमाना है। ऐसा बोलो कि समाचार पत्रों और टीवी चैनलों की सुर्खियां तो बने ही साथ में पब्लिक भी इसे खूब सर्कुलेट करे। यदि ये कहे कि राजनेता आज विचार सर्कुलेट नहीं करते अपितु चुनावी रंगमंच में डायलॉग डिलिवरी करते हैं। किसी नेता के संबोधन की जान ‘पप्पू’ है, किसी के लिए ‘चोर’। थोड़ा आगे बढ़े तो कोई फ्री की रेवड़ी बोल अपना वक्तव्य पूरा कर लेता है तो कोई ठगबंधन। फ्लैश बैक में जाएं तो किसी समय अटल बिहारी वाजपेयी का ‘हार नहीं मानूंगा’ समर्थकों में जोश से भर देता था। अब जोश भाषण से वही कटाक्षों से भरे जाने लगे हैं। ये बात सही है कि सुर्खियों के लिए डायलॉग जरूरी हैं, लेकिन जब मुद्दे छोड़ डायलॉग ही एजेंडे बन जाएं तो जनता वही महसूस करेगी जो उपासना सिंह ने ‘जुदाई’ में कहा था- ‘अब्बा डब्बा जब्बा’ अर्थात् बहुत कुछ कहोगे पर कुछ समझ में नहीं आएगा। भगवतगीता का प्रसिद्ध श्लोक इसे और सारगर्भित कर देगा। गीता में कहा गया है – यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः। स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते। भाव है को श्रेष्ठ पुरुष जो आचरण करते हैं, दूसरे मनुष्य (आम इंसान) भी वैसा ही आचरण, वैसा ही काम करते हैं। वह (श्रेष्ठ पुरुष) जो प्रमाण या उदाहरण प्रस्तुत करता है, समस्त मानव-समुदाय उसी का अनुसरण करने लग जाते हैं। लेखक: सुशील कुमार ‘नवीन’ ,
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गुरूनानक देव ने होशंगाबाद में स्वर्णस्याही से लिखी थी श्री गुरु ग्रंथ साहिब पोथी,आज भी दर्शन को उमड़ती है भीड़
Updated: November 6, 2025
आत्माराम यादव पीव ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से प्राचीन, नर्मदापुर तथा आधुनिक काल में होशंगाबाद जिले का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। पुण्य सलिला माँ नर्मदा…
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प्राथमिक स्तर से कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) शिक्षा की शुरूआत एक परिवर्तनकारी पहल
Updated: November 6, 2025
भारत सरकार द्वारा प्राथमिक स्तर से कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) की शिक्षा शुरू करने की योजना भारतीय शिक्षण प्रणाली के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ के…
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लालच और रिश्तों की त्रासदी
Updated: November 6, 2025
लालच आँखें मूँद दे, भेद न देखे प्रीत।भाई भाई शत्रु बने, टूटे अपने मीत।। धन के पीछे दौड़कर, भूले यूँ सम्मान।घर आँगन में छा गया,…
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समय पर पता चलने पर संभव है कैंसर का निदान
Updated: November 6, 2025
राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस (7 नवम्बर) पर विशेष– योगेश कुमार गोयलकिसी भी व्यक्ति के लिए कैंसर एक ऐसा शब्द है, जिसे अपने किसी परिजन के…
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भारत में राज्य सरकारों के ऋणों में भारी वृद्धि इन राज्यों की अर्थव्यवस्था को ले डूबेगी
Updated: November 6, 2025
किसी भी नागरिक, वाणिज्यिक संस्थान, राज्य सरकार अथवा केंद्र सरकार द्वारा उत्पादक कार्यों के लिए बाजार से ऋण लेना केवल तब तक ही सही हैं जब तक बाजार से लिए गए ऋण से कम से कम उस स्तर तक आय का अर्जन हो कि इस ऋण के ब्याज एवं किश्त का भुगतान इस आय से आसानी से किया जा सके। परंतु, किसी भी व्यक्ति अथवा संस्थान द्वारा बाजार से ऋण यदि अनुत्पादक कार्य के लिए लिया जा रहा है तो इस ऋण के ब्याज एवं किश्त का भुगतान करना निश्चित ही मुश्किल कार्य हो सकता है। आज भारत के कुछ राज्यों की बजटीय स्थिति पर भारी दबाव पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है क्योंकि इन राज्यों ने बाजार से भारी मात्रा में ऋण लिया हैं एवं इस ऋण का उपयोग अनुत्पादक कार्यों यथा बिजली के बिल माफ करना, नागरिकों के खातों में सीधे राशि जमा करना, मुफ्त पानी उपलब्ध कराना, कुछ पदार्थों पर सब्सिडी उपलब्ध कराना, आदि के लिए किया जा रहा है। इन राज्यों की स्थिति इस कदर बिगड़ चुकी है कि इन्हें ऋणों पर अदा किए जाने वाले ब्याज एवं किश्तों के भुगतान हेतु भी ऋण लेना पड़ रहा हैं। यदि कुछ और वर्षों तक इन राज्यों की यही स्थिति बनी रही तो निश्चित ही यह राज्य दिवालिया होने की स्थिति में पहुंच जाने वाले हैं। हाल ही के कुछ वर्षों में केंद्र सरकार द्वारा भी बाजार से ऋण लेने की राशि में वृद्धि देखी जा रही है। वर्ष 2019 में केंद्र सरकार पर 1.74 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का ऋण बक़ाया था जो वर्ष 2025 में, लगभग दुगना होते हुए, बढ़कर 3.42 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया है और वर्ष 2029 तक इसके 4.89 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर तक हो जाने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। भारत का सकल घरेलू उत्पाद आज 4.19 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है। इस प्रकार, भारत सरकार का ऋण, भारत के सकल घरेलू उत्पाद के 80 प्रतिशत के स्तर को पार कर गया है। केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों की निर्भरता ऋण पर लगातार बढ़ती हुई दिखाई दे रही है जिसे देश की अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य की दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता है। आज केंद्र सरकार पर 200 लाख करोड़ रुपए की राशि का ऋण बक़ाया है एवं समस्त राज्य सरकारों पर 82 लाख करोड़ रूपए का ऋण बकाया है, इस प्रकार केंद्र एवं राज्य सरकारों पर संयुक्त रूप से 282 लाख करोड़ रुपए का ऋण बक़ाया है जो देश के सकल घरेलू उत्पाद का 81 प्रतिशत है। एक तरह से भारतीय अर्थव्यवस्था ऋण के ऊपर विकसित की जा रही है। जबकि, भारतीय आर्थिक दर्शन ऋण पर निर्भरता को प्रोत्साहन नहीं देता है। चाणक्य के अर्थशास्त्र में, राजा के पास कोष में आधिक्य होने का वर्णन मिलता है। राजा के पास यदि ऋण के स्थान पर कोष का आधिक्य होगा तब वह राज्य अपने नागरिकों के कल्याण पर अधिक राशि खर्च करने की स्थिति में रहेगा। अर्थात, प्राचीन भारत में राज्यों का आधिक्य का बजट रहता था, उसी स्थिति में वे राज्य अपने नागरिकों के कल्याण के कार्यों को तेज गति से चलाने की स्थिति में रहते थे। राज्य का खजाना ही यदि खाली हो तो वे किस प्रकार से राज्य के नागरिकों के लिए भलाई के कार्य कर सकते हैं। आज की स्थिति, बिलकुल विपरीत दिखाई देती है और आज कुछ राज्य बाजार से ऋण लेकर भी नागरिकों को मुफ्त में सुविधाएं उपलब्ध करा रहें हैं बगैर यह सोचे समझे कि आगे आने वाले समय में बाजार से लिए गए ऋण का भुगतान किस प्रकार किया जाएगा। आज भारत में कुछ राज्यों की स्थिति यह है कि वे अपनी कुल आय का 55 प्रतिशत भाग कर्मचारियों को वेतन, पेन्शन एवं उधार ली गई राशि पर ब्याज के भुगतान करने जैसी मदों पर खर्च कर रहे हैं। जबकि, विभिन्न राज्य अपनी आय को बढ़ा सकने की स्थिति में नहीं है। कुछ राज्य तो वर्ष भर में जिस आय की राशि का आंकलन करते हैं उसे प्राप्त ही नहीं कर पाते हैं और बजटीय आय की राशि एवं वास्तविक आय की राशि में 11 प्रतिशत तक की कमी रहती है, जबकि इन राज्यों के खर्च नियमित रूप से बढ़ते जा रहे हैं और इस प्रकार इन राज्यों का बजटीय घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है और अब यह असहनीय स्थिति में पहुंच गया है। आज राज्यों की कुल आय का 84 प्रतिशत भाग स्थिर मदों पर खर्च हो रहा है। प्रदेश को आगे बढ़ाने एवं आर्थिक रूप से सम्पन्न बनाने के लिए कुछ राशि इन राज्यों के पास उपलब्ध ही नहीं हो पा रही है। पूंजीगत खर्चों में लगातार हो रही कमी के चलते इन राज्यों में नए अस्पतालों का निर्माण, नए रोड का निर्माण नए स्कूल हेतु भवनों का निर्माण नहीं हो पा रहा हैं, जिससे रोजगार के नए अवसर भी निर्मित नहीं हो पा रहे हैं। पंजाब में कुल आय का 76 प्रतिशत भाग कर्मचारियों के वेतन, पेन्शन एवं ऋण पर ब्याज अदा करने जैसी मदों पर खर्च हो रहा है इसी प्रकार हिमाचल प्रदेश में 79 प्रतिशत एवं केरल में 71 प्रतिशत भाग उक्त मदों पर खर्च किया जा रहा है। साथ ही, कुछ राज्यों द्वारा अपनी कुल आय का भारी भरकम हिस्सा सब्सिडी जैसी मदों पर खर्च किया जा रहा है। जैसे, पंजाब द्वारा अपने बजटीय आय का 24 प्रतिशत भाग सब्सिडी पर खर्च किया जा रहा है। इसी प्रकार, हिमाचल प्रदेश द्वारा 5 प्रतिशत, आंध्रप्रदेश द्वारा 15 प्रतिशत, तमिलनाडु द्वारा 12 प्रतिशत एवं राजस्थान द्वारा 13 प्रतिशत राशि सब्सिडी पर खर्च की जा रही है। पंजाब द्वारा तो अपने बजट की 100 प्रतिशत राशि (24 प्रतिशत सब्सिडी पर एवं 76 प्रतिशत राशि वेतन, पेन्शन एवं ब्याज पर खर्च की जा रही है) सामान्य मदों पर खर्च की जा रही है और पूंजीगत खर्चों के लिए शून्य राशि बचती है। विभिन्न राज्यों द्वारा पेन्शन की मद पर वर्ष 1980-81 में अपने राज्य की कुल आय का केवल 3.4 प्रतिशत की राशि का खर्च किया जा रहा था जो वर्ष 2021-22 में बढ़कर 24.3 प्रतिशत हो गया। इसी कारण से भारत सरकार ने पेन्शन अदा करने के नियमों में परिवर्तन किया था। आज यदि पेन्शन की नीति को नहीं बदला गया होता तो इस मद पर होने वाला खर्च बढ़कर 30 प्रतिशत के आसपास पहुंच जाता। पिछले कुछ वर्षों के दौरान देश के कई राज्यों ने अपने पूंजीगत खर्च को घटाया है। वर्ष 2015-16 से वर्ष 2022-23 के बीच राज्यों ने अपने पूंजीगत खर्च में 51 प्रतिशत तक की कमी की है। दिल्ली में 38 प्रतिशत, पंजाब में 40 प्रतिशत, आंध्रप्रदेश में 41 प्रतिशत पश्चिम बंगाल में 33 प्रतिशत से पूंजीगत खर्चों में कमी दर्ज हुई है। आज कई राज्य सरकारें सब्सिडी प्रदान करने की मद पर अपने खर्चों को लगातार बढ़ा रहीं हैं एवं पूंजीगत खर्चों को लगातार घटा रही हैं, जो उचित नीति नहीं कही जा सकती है। इस प्रकार तो इन राज्यों की अर्थव्यवस्थाएं शीघ्र ही डूबने के कगार पर पहुंच जाने वाली हैं। इन राज्यों में हिमाचल प्रदेश, केरल, पश्चिमी बंगाल जैसे राज्य शामिल हैं। सब्सिडी, वेतन, पेन्शन एवं ब्याज जैसी मदों पर लगातार बढ़ रहे खर्चों के कारण आज 15 राज्यों का बजटीय घाटा कानूनी रूप से निर्धारित 3 प्रतिशत की सीमा से ऊपर हो गया है। हिमाचल प्रदेश में बजटीय घाटा बढ़कर 4.7 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 4.1 प्रतिशत, आंध्रप्रदेश में 4.2 प्रतिशत एवं पंजाब में 3.8 प्रतिशत के खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। इसी क्रम में ध्यान में आता है कि मध्य प्रदेश सरकार ने 5200 करोड़ रुपये का नया कर्ज लेने का निर्णय लिया है। यह फैसला इसलिए चर्चा में है क्योंकि भाईदूज के अवसर पर ‘लाड़ली बहना योजना’ के अंतर्गत 1.27 करोड़ महिलाओं के खातों में राशि समय पर नहीं पहुंच पाई थी। इसके बाद सरकार ने प्रदेश स्थापना दिवस पर भुगतान सुनिश्चित करने के लिए ऋण लेने का रास्ता चुना है। जब किसी राज्य को सामाजिक योजनाओं पर खर्च के लिए ऋण लेना पड़े तो यह स्थिति उस प्रदेश की अर्थव्यवस्था के लिए उचित नहीं कही जा सकती है। मध्यप्रदेश द्वारा ऋण लेने की रफ्तार पिछले कुछ वर्षों में कुछ तेज हुई है। मार्च 2024 तक मध्यप्रदेश राज्य पर 3.7 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था, जो अब बढ़कर 4.8 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। जबकि, मध्यप्रदेश की आय में इस रफ्तार से वृद्धि नहीं देखी जा रही है। वित्तीय अनुशासन की दृष्टि से यह स्थिति चिंताजनक है, क्योंकि ब्याज भुगतान का बोझ हर साल बढ़ता जा रहा है। हिमाचल प्रदेश, पंजाब, केरल एवं पश्चिम बंगाल की राह पर कहीं मध्यप्रदेश राज्य भी तो नहीं चल पड़ा है। प्रहलाद सबनानी
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अमीरी में अभिवृद्धि विद्रोह एवं संकट का बड़ा कारण
Updated: November 6, 2025
-ललित गर्ग-विश्व अर्थव्यवस्था पर किए गए हालिया अध्ययन विशेषकर जी-20 पैनल की रिपोर्ट ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि धन और…
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गुप्त परमाणु हथियार परीक्षण की आशंकाएं
Updated: November 6, 2025
संदर्भः- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का दावा चीन और पाकिस्तान समेत कई देश कर रहे हैं गुप्त परमाणु परीक्षण-प्रमोद भार्गवअमेरिकी राश्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक…
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जानलेवा प्रदूषण, सरकारों की शर्मनाक नाकामी
Updated: November 7, 2025
-ललित गर्ग-भारत की वायु में जहर घुल चुका है। हाल ही में चिकित्सा जनरल में प्रकाशित एक अध्ययन ने यह निष्कर्ष दिया है कि 2010…
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गुरु नानक देवः मानवता के पथप्रदर्शक विलक्षण संत
Updated: November 4, 2025
गुरु नानक जयन्ती- 5 नवम्बर, 2025-ललित गर्ग- भारत की पवित्र भूमि सदैव से महापुरुषों, संतों और अवतारों की कर्मभूमि रही है। इसी भूमि पर तलवंडी…
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बेटियाँ ऑन द पिच: भारत की बदलती क्रिकेट गाथा
Updated: November 4, 2025
पवन शुक्ला वो पल कुछ अलग था — हवा में उम्मीद थी और आसमान किसी नए इतिहास का साक्षी बन रहा था। हर चौके पर…
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