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80 करोड ग्रामीणों का जीवन दाव पर!

वास्तव में इस देश का बण्टाधार करने वाले हैं, इस देश के बडे बाबू जो स्वयं को महामानव समझते हैं और इससे भी बडी और शर्मनाक बात यह है कि इस देश का मानसिक रूप से दिवालिया राजनैतिक नेतृत्व इन बडे बाबुओं की बैसाखी के सहारे ही अपनी राजनीति कर रहा है। ये बडे बाबू कभी नहीं चाहेंगे कि ग्रामीणों को भी इंसान समझा जावे। यहाँ विचारणीय बात यह भी है कि ये बडे बाबू क्यों नहीं चाहते कि शहरी क्षेत्र के डॉक्टर गॉवों में सेवा करें? इसकी बडी वजह यह है कि इन बडे बाबुओं के पास काले धन की तो कोई कमी है नहीं, लेकिन केवल इस धन के बल पर ये बडे बाबू और इनके आका राजनेता अपनी सन्तानों को बडे बाबू की जाति में तो आसानी से शामिल नहीं करा सकते हैं। लेकिन देश में अनेक ऐसे मैडीकल कॉलेजों को इन्हीं बडे बाबुओं की मेहरबानी से पूर्ण मान्यता मिली हुई है, जो धनकुबेर बडे बाबुओं, राजनेताओं और उद्योगपतियों की निकम्मी और बिगडी हुई सन्तानों को मनचाहा डोनेशन लेकर डॉक्टर बनाने का कारखाना सिद्ध हो रहे हैं। इन मैडीकल कारखानों से पास होकर निकलने वाले डॉक्टर निजी प्रेक्टिस में तो सफल हो नहीं सकते। अतः उनको सरकारी क्षेत्र में ले-देकर डॉक्टर बनना दिया जाता है और इन शहरी जीवों को डॉक्टरी करने के लिये कभी भी ग्रामीण क्षेत्रों की घूल नहीं फांकनी पडे इस बात का पक्का इलाज करने के लिये आधे-अधूरे ज्ञान वाले ग्रामीण डॉक्टर बनाकर ग्रामीण क्षेत्र में ही नियुक्त करवाने का घिनौना और विकृत विचार राजनैतिक नेतृत्व के माध्यम से इस देश पर लादा जा रहा है।

संविधान के अनुच्छेद 21 में जीवन के मूल अधिकार का उल्लेख किया गया है। जिसकी व्याख्या करते हुए भारत की सर्वोच्च अदालत अर्थात्‌ सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अनुच्छेद 21 में प्रदान किये गये जीवन के मूल अधिकार का तात्पर्य केवल जीने का अधिकार नहीं है, बल्कि इसमें सम्मानपूर्व जीवन जीने का मूल अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट का इससे आगे यह भी कहना है कि कोई भी व्यक्ति बिना पर्याप्त और समुचित स्वास्थ्य सुविधाओं के तो स्वस्थ रह सकता है और न हीं वह सम्मान पूर्वक जिन्दा ही रह सकता है। अतः सरकार का दायित्व है कि प्रत्येक देशवासी को पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध करवाये, जिनमें सभी प्रकार की जाँच और उपचार भी शामिल है। सर्वोच्च अदालत का यहाँ तक कहना है कि जिन लोगों के पास उपचार या चिकित्सकीय परीक्षणों पर खर्चा करने के लिये आर्थिक संसाधन नहीं हैं, उनके लिये ये सब सुविधाएँ मुफ्त में उपलब्ध करवाई जानी चाहिये। ताकि कोई व्यक्ति बीमारी के कारण बेमौत नहीं मारा जाये। अन्यथा संविधान द्वारा प्रदत्त जीवन के मूल अधिकार का कोई अर्थ नहीं होगा।

जबकि इसके ठीक विपरीत ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाली सत्तर प्रतिशत आबादी के लिये स्थापित सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर या तो डॉक्टर पदस्थ नहीं है या पदस्थ रहकर भी अपनी सेवा नहीं दे रहे हैं। भारत सरकार एवं राज्य सरकारों के समक्ष आजादी के प्रारम्भ से ही यह समस्या रही है कि शहरों में पला, बढा और पढा व्यक्ति डॉक्टर बनने के बाद गाँवों में लोगों को अपनी सेवाएँ देने में आनाकानी करता रहा है। जिसे साफ शब्दों में कहें तो ग्रामीणों की चिकित्सा सेवा करने के बजाय डॉक्टर शहरों में रहकर के अपनी निजी प्रेक्टिस करने में अधिक व्यस्त रहते हैं। इस मनमानी को कडाई से रोकने के बजाय केन्द्र सरकार ने डॉक्टरों के सामने दण्डवत होकर घुटने टेकते हुए बचकाना निर्णय लिया है कि ग्रामीणों का उपचार करने के लिये ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को ही गाँव में डॉक्टर बना दिया जाये, जिससे कि शहरी डॉक्टरों को गाँवों में तकलीफ नहीं झेलनी पडे। सरकार चाहती है कि गाँव के व्यक्ति को गाँव में ही नौकरी मिल जाये और इस सबसे गाँव के लोगों को हमेशा अपने गाँव में डॉक्टरों की उपलब्धता रहेगी। इसके लिये केन्द्र सरकार बैचलर ऑफ रूरल हेल्थ केयर (बीआरएच) कोर्स शुरू करने जा रही है।

पहली नजर में भारत सरकार का उक्त निर्णय कितना पवित्र और निर्दोष नजर आता है, लेकिन इसके पीछे के निहितार्थ दूरगामी दुष्प्रभाव डालने वाले हैं। जिन पर विचार किये बिना ही केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की संसदीय सलाहकार समिति तक ने इस विचार को मान्यता दे दी है। जिसे केन्द्र सरकार शीघ्रता से लागू करने जा रही है।

जबकि ग्रामीण डॉक्टर बनाने की उपरोक्त विकृत योजना न मात्र देश के 80 करोड ग्रामीणों के जीवन और स्वास्थ्य के साथ खिलवाड और भेदभाव करने वाली ही है, बल्कि इसके साथ-साथ यह योजना पूरी तरह से असंवैधानिक भी है। इस योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्र के 12वीं पास विद्यार्थियों को चयनित करके 3 वर्ष में डॉक्टर बनाया जायेगा। ऐसे लोग डॉक्टर तो होंगे, लेकिन उन्हें अपनी डॉक्टरी ज्ञान का उपयोग केवल गाँव में ही करना होगा। शहर में जाते ही कानून की नजर में उनका डॉक्टरी ज्ञान अवैधानिक हो जायेगा। अर्थात्‌ इस योजना के तहत डॉक्टर बनने वाला व्यक्ति जीवनपर्यन्त शहर में रहकर डॉक्टरी करने का ख्वाब नहीं देख सकेगा और गाँव में रहने वाला व्यक्ति अपने गाँव में रहते हुए किसी बडे शहर के, बडे अस्पताल में इलाज करने का लम्बा अनुभव रखने वाले शहरी डॉक्टर से उपचार करवाने का सपना नहीं देख सकेगा।

कितने दुःख और आश्चर्य की बात है कि एक ओर तो संविधान का अनुच्छेद 14 कहता है कि देश के सभी नागरिकों को कानून के समक्ष समान समझा जायेगा और साथ ही साथ सभी लोगों को कानून का समान संरक्षण भी प्रदान किया जायेगा। जबकि इस तीन वर्षीय पाठ्यक्रम के तहत ग्रामीण डॉक्टर की डिग्री करने वाले डॉक्टर को, शहरी क्षेत्र के डिग्रीधारी डॉक्टरों की तरह स्नातक स्तर की अन्यत्र कहीं भी पात्रता नहीं होगी। सरकारी नौकरी नहीं मिलने पर या ऐसे ग्रामीण डॉक्टर को सरकारी नौकरी छोडने पर, शहर में प्रेक्टिस करने का कानूनी अधिकार भी नहीं होगा।

इस सबके उपरान्त भी ग्रामीण डॉक्टर की प्रस्तावित डिग्री में प्रवेश पाने वालों में भी कडी प्रतियोगिता होना तय है, क्योंकि सर्व-प्रथम तो इस देश में बेरोजगारी एक बडी समस्या है। दूसरे इस देश के युवा वर्ग में सरकारी नौकरी के प्रति कभी न मिटने वाला सम्मोहन है। तीसरे वातानुकूलित कक्षों में बैठकर भारत सरकार के लिये नीति बनाने वाले बडे बाबू ग्रामीण लोगों को इंसान कब समझते हैं। उनकी नजर में ग्रामीण क्षेत्र के लोग तो शुरू से ही दूसरे दर्जे के नागरिक रहे हैं। इसलिये ग्रामीणों के जीवन को ग्रामीण डॉक्टरों के माध्यम से प्रयोगशाला बनाने में इन कागजी नीति-नियन्ताओं का क्या बिगडने वाला है?

भारत सरकार बिना नौकरी की गारण्टी दिये, इन डॉक्टरों से किसी भी शहर में जाकर प्रेक्टिस करने का हक कैसे छीन सकती है? यही नहीं ग्रामीण डॉक्टर की डिग्री करने वाले लोगों को स्नातक होकर भी आईएएस या अन्य ऐसी कोई भी परीक्षा में बैठने का कानूनी हक नहीं होगा, जो प्रत्येक ग्रेज्युएट को होता है।

इस निर्णय से साफ तौर पर यह प्रमाणित हो रहा है कि भारत सरकार समस्या का स्थाई समाधान ढूंढ़ने के बजाय उसका तात्कालिक समाधान ढूंढ़ रही है, जिससे अनेक नई समस्याएँ पैदा होना स्वाभाविक है। यदि कल को अध्यापक, ग्राम सेवक, कृषि वैज्ञानिक, थानेदार, कोई भी कह देंगे कि वे भी असुविधापूर्ण ग्रामीण क्षेत्र में क्यों नौकरी करें, तो सरकार के पास कौनसा जवाब होगा। आगे चलकर इससे शहर बनाम ग्रामीण में देश का विभाजन होना तय है। देश में आपसी वैमनस्यता का वातावरण भी निर्मित होगा। जबकि होना तो यह चाहिये कि प्रत्येक लोक सेवक को लोक सेवा के लिये हर हाल में और हर स्थान पर तत्पर रहना चाहिये और जो उसके लिये तैयार नहीं हों, उन्हें लोक सेवा में बने रहने का कोई हक नहीं। ऐसे लोगों को लोक सेवा से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाना चाहिये। फिर देखिये कितने लोग ग्रामीण क्षेत्र में जनता की सेवा से मुःह चुराते हैं।

सचाई कुछ और ही है। वास्तव में इस देश को बण्टाधार करने वाले है, इस देश के बडे बाबू जो स्वयं को महामानव समझते हैं और इससे भी बडी और शर्मनाक बात यह है कि इस देश का मानसिक रूप से दिवालिया राजनैतिक नेतृत्व इन बडे बाबुओं की बैसाखी के सहारे ही अपनी राजनीति कर रहा है। ये बडे बाबू कभी नहीं चाहेंगे कि ग्रामीणों को भी इंसान समझा जावे। यहाँ विचारणीय बात यह भी है कि ये बडे बाबू क्यों नहीं चाहते कि शहरी क्षेत्र के डॉक्टर गाँवों में सेवा करें? इसकी बडी वजह यह है कि इन बडे बाबुओं के पास काले धन की तो कोई कमी है नहीं, लेकिन केवल इस धन के बल पर ये बडे बाबू और इनके आका राजनेता अपनी सन्तानों को बडे बाबू की जाति में तो आसानी से शामिल नहीं करा सकते हैं। लेकिन देश में अनेक ऐसे मैडीकल कॉलेजों को इन्हीं बडे बाबुओं की मेहरबानी से पूर्ण मान्यता मिली हुई है, जो धनकुबेर बडे बाबुओं, राजनेताओं और उोगपतियों की निकम्मी और बिगडी हुई सन्तानों को मनचाहा डोनेशन लेकर डॉक्टर बनाने का कारखाना सिद्ध हो रहे हैं। इन मैडीकल कारखानों से पास होकर निकलने वाले डॉक्टर निजी प्रेक्टिस में तो सफल हो नहीं सकते। अतः उनको सरकारी क्षेत्र में ले-देकर डॉक्टर बनवा दिया जाता है और इन शहरी जीवों को डॉक्टरी करने के लिये कभी भी ग्रामीण क्षेत्रों की घूल नहीं फांकनी पडे इस बात का पक्का इलाज करने के लिये आधे-अधूरे ज्ञान वाले ग्रामीण डॉक्टर बनाकर ग्रामीण क्षेत्र में ही नियुक्त करवाने का घिनौना और विकृत विचार राजनैतिक नेतृत्व के माध्यम से इस देश पर लादा जा रहा है।

उपरोक्त निर्णय से यह बात भी सिद्ध हो चुकी है कि बडे बाबुओं की नजर से दुनियां को देखने के आदि इस देश के राजनैतिक नेतृत्व की नजर में शहरों में रहने वालों का जीवन इतना महत्वपूर्ण है कि उन्हें गाँवों में रहने वाले आलतू-फालतू लोगों की सेवा के लिये, गाँवों में क्यों पदस्थ किया जाये? यदि आधुनिक सुख-सुविधाओं में जीवन जीने के आदि हो चुके शहरी लोगों को ग्रामीण क्षेत्रों में नियुक्त किया गया तो ऐसा करना तो उनके खिलाफ क्रूरता होगी! जबकि गाँव में रहने वाले के मुःह में तो जवान होती ही नहीं। इसलिये उसका जैसे चाहे शोषण, तिरस्कार और अपमान किया जा सकता है। तब ही तो उक्त बैचलर ऑफ रुरल हेल्थ केयर (बीआरएच) कोर्स में प्रवेश के समय ही ग्रामीण क्षेत्र में रहकर सेवा करने की बाध्यकारी और असंवैधानिक शर्त थोपी जाने का प्रस्ताव है।

इसके विपरीत देश के धन से संचालित बडे-बडे शिक्षण संस्थानों में अध्ययन करने वाले अन्य सभी विद्यार्थियों को प्रवेश देने से पूर्व क्या भारत सरकार ऐसा नियम बना सकती है कि उनको आवश्यक रूप से देश में रहकर ही अपनी सेवाएँ देनी होंगी और वे विदेश में जाकर नौकरी नहीं करेंगे। या यदि विदेश में जायेंगे तो उनकी डिग्री अमान्य होगी। सरकार ऐसा कभी नहीं कर सकती! लेकिन क्यों? इस सवाल का उत्तर देश के उन करोडों लोगों को चाहिये, जिन्हें संविधान, देश सेवा और समानता की भावना में आस्था है!

आखिर सिंह तो गरजेगा ही – संजीव पांडेय

इन दिनों एक गरम खबर चर्चा में है। खबर है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी के बीच तनाव बढ़ रहा है। दोनों के बीच तनाव की एक लकीर खींच गई है। हालांकि इसके कई कारण बताए जा रहे है। पर इन कारणों में कितनी सच्चाई है इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है। दूसरी बार प्रधानमंत्री के तौर पर अपनी पारी शुरू करने के बाद जिस सिंह को बकरी के तौर पर लिया जा रहा था वो अब सिंह की तरह गरज रहा है। कई फैसले अपने मर्जी से मनमोहन सिंह ने लिए है। इसमें सोनिया गांधी की सहमति नहीं बतायी जा रही है। कुछ फैसलों पर तो सोनिया गांधी ने नाराजगी भी जतायी है। कह सकते है कि पार्टी में एक बार फिर सता को लेकर विवाद की शुरूआत हो सकती है। हालांकि यह भी कयास लगाया जा रहा है कि कुछ शरारती कांग्रेसियों ने मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी के बीच दूरी बढ़ाने के लिए यह अफवाह फैलायी हो।

कुछ जगहों पर खबर लगी है कि सोनिया गांधी मनमोहन सिंह के कुछ लिए गए फैसलों से नाराज है। इन फैसलों में संत सिंह चटवाल को पदमश्री देना, शर्म अल शेख में कांग्रेस पार्टी की लाइन से अलग जाकर पाकिस्तान के साथ जारी ज्वाइंट स्टेटमेंट में भारत के हितों की अनदेखी करना और बीटी बैंगन को लेकर मनमोहन सिंह का स्टैंड है। बताया जाता है कि इन सारे मामलों में मनमोहन सिंह ने अपनी मर्जी से फैसला लिया है। इस फैसले से सोनिया गांधी नाराज है। निश्चित तौर पर यह कारण ताजा विवाद के कारण हो सकते है। पर विवाद की शुरूआत यहां से नहीं हुई है। इससे पहले भी प्रधानमंत्री ने कुछ फैसले लिए थे जो सोनिया गांधी को पसंद नहीं थे।

प्रधानमंत्री ने 2009 में जब दूसरी बार अपनी पारी शुरू की तो मंत्रीमंडल के गठन के वक्त ही एक विवाद हो गया था। वो विवाद था अंबिका सोनी और पवन बंसल को केंद्रीय मंत्रीमंडल में लिए जाने को लेकर। सोनिया गांधी दोनों को केंद्रीय मंत्रीमंडल में लिए जाने के विरोध में थी। लेकिन प्रधानमंत्री ने मौके पर दोनों का नाम अपनी तरफ से डलवा दिया। दोनों मंत्रियों के बिजनेस साझीदारी को लेकर सोनिया गांधी के पास शिकायत थी और सोनिया गांधी ने इन शिकायतों को काफी गंभीरता से लिया था। लेकिन मनमोहन सिंह ने दोनों को अपने साथ रखा। दूसरी बार प्रधानमंत्री के तौर पर पद हासिल करने के बाद मनमोहन सिंह के व्यवहार में एक और परिवर्तन आया है। ये परिवर्तन यह है कि वे दस जनपथ में हाजिरी लगाना या हर फैसले पर सोनिया गांधी से सलाह लेना छोड़ चुके है। जबकि पिछले कार्यकाल में वे हर फैसले से पहले सोनिया गांधी की सहमति लेते थे। ये एक गंभीर व्यवहार परिवर्तन है।

यह तय है कि मनमोहन सिंह ने अपना एक ग्रुप कांग्रेस में बनाया है। इस ग्रुप में अंबिका सोनी या पवन बंसल ही नहीं है, बल्कि कई और लोग है। बहुत ही चालाकी से मनमोहन सिंह ने अपने खास लोगों को कई पदों से नवाजा है। साथ ही एक कम्युनिटी विशेष के लोगों को महत्वपूर्ण पदों से भी नवाजा है। यह कम्युनिटी विशेष उनकी ही खत्री सिख बिरादरी है। उन्होंने अपनी बिरादरी से दो गर्वनर लगा दिया। इकबाल सिंह को पांडिचेरी का गर्वनर लगाया तो पूर्व आर्मी चीफ जेजे सिंह को नार्थ इस्ट में गर्वनर लगा दिया। साथ ही मोटेंक सिंह को भी महत्वपूर्ण पद देकर अपनी पकड़ वे बनाए हुए है। पर सबसे विवादास्पद फैसला हाल ही में संत सिंह चटवाल को लेकर मनमोहन सिंह ने लिया है। संत सिंह चटवाल भी मनमोहन सिंह की तरह ही पाकिस्तान के रावलपिंडी से आए है और मनमोहन सिंह की बिरादरी से संबंधित है। यही नहीं वे अमेरिकी प्रशासन के भी नजदीक है। सारा देश संत सिंह चटवाल को फ्राड के तौर पर जानता रहा है। उनपर भारत में सीबीआई ने मामला दर्ज किया है और बैंको के लिए कर्ज संत सिंह चटवाल ने नहीं लौटाए है। इसके बावजूद मनमोहन सिंह ने उन्हें पदमश्री दिलवाया।

यह तय है कि मनमोहन सिंह आने वाले दिनों में सोनिया गांधी की परेशानी और बढ़ाएंगे। ये ठीक सीताराम केसरी की तरह ही व्यवहार करेंगे। सीताराम केसरी ने नरसिम्हाराव से इसी तरह का व्यवहार किया था। हालांकि सोनिया गांधी नरसिम्हा राव नहीं है। वे एक मजबूत है और नेहरू परिवार की वारिस है। पर यहां पर खतरा और है। मनमोहन सिंह सोनिया गांधी की पसंद बेशक न हो पर अमेरिका की पसंद है। भारत जैसे देश में मनमोहन सिंह जैसे लोगों को प्रधानमंत्री बनाए रखना अमेरिकी प्रशासन अपने हितों के लिए ज्यादा उचित समझता है। पिछले छ सालों के कार्यकाल मे मनमोहन सिंह ने अमेरिकी हितों में कई कदम उठाए। तभी अमेरिकी इशारे पर पार्टी लाइन से अलग हटकर पाकिस्तान से बातचीत शुरू की। हालांकि यह बातचीत गलत है और शांति की बातचीत है। पर शांति अगर अमेरिका के इशारे पर बहाल हो तो यह भारत के हित में नहीं है। बीटी बैंगन को लेकर मनमोहन सिंह जयराम रमेश को किनारे लगा चुके है। जयराम रमेश सोनिया गांधी के नजदीक है। पर मनमोहन सिंह उन्हें पसंद नहीं कर रहे है। पर समस्या आने वाले दिनों में कुछ और कारणों से गंभीर होगी।

राहुल गांधी सारे संगठनात्मक कामों से अगले साल के मध्य तक मुक्त हो जाएंगे। उनकी एनएसयूआई और यूथ कांग्रेस का गठन तबतक हो जाएगा और उनकी टीम तैयार हो जाएगी। पर इसके बाद राहुल गांधी क्या करेंगे। इस पर गंभीर विचार कांग्रेस में शुरू हो गया है। वे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की टीम में काम नहीं करेंगे यह तय है। वे अपने हिसाब से टीम तैयार कर रहे है। फिर राहुल गांधी के पास तो एक ही विकल्प रहेगा। वो विकल्प होगा प्रधानमंत्री का पद। इसके लिए मनमोहन सिंह को 2011 में प्रधानमंत्री की कुर्सी से उतारना होगा। क्या इसके लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तैयार हो जाएंगे। फिर उस समय अमेरिका क्या चाहेगा यह भी देखना होगा। क्योंकि अब तो हमारे देश में प्रधानमंत्री कौन होगा इसके फैसले में अमेरिका की भूमिका भी तो महत्वपूर्ण होती है। और तो और मंत्रीमंडल में कौन होगा इसका फैसला भी अमेरिका ही लेता है। नटवर सिंह की छुट्टी इसका उदाहरण है।

राहुल गांधी की एक और परेशानी है। झारखंड चुनाव में कांग्रेस को खास सफलता नहीं मिली। अब बिहार चुनाव होना है। बिहार चुनाव में अगर कांग्रेस को उम्मीद से ज्यादा सफलता नहीं मिली तो राहुल गांधी की सारी चमक फीकी पड़ जाएगी। इसलिए कांग्रेस में गांधी नेहरू परिवार के भक्त यह नहीं चाहते कि राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए 2014 का इंतजार किया जाए। उनकी यही इच्छा है कि जल्द से जल्द राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाया जाए ताकि 2014 का चुनाव राहुल गांधी की उपल्बिधयों पर लड़ा जाए। पर क्या सरदार मनमोहन सिंह यह होने देंगे। यह तो समय ही बताएगा।

संबंधों का अन्त है पोर्न

पोर्न देखना आज आम बात हो गई है। पोर्न से बचना अब असंभव सा होता जा रहा है। पोर्न ने जिस तरह समूचे दृश्य संसार को घेरा है, उतनी तेजी से किसी विधा ने नहीं घेरा। पोर्न के सवाल हमें परेषान करते हैं। राज्य के हस्तक्षेप की मांग करते हैं। सामाजिक हस्तक्षेप की मांग करते हैं। पोर्न का सामाजिक विमर्श में आना इस बात का संकेत है कि समाज परवर्ती पूंजीवाद के सांस्कृतिक विमर्ष में दाखिल हो चुका है। खासकर इंटरनेट के आने के बाद पोर्न सहजता से उपलब्ध है, पोर्न विमर्श भी सहजभाव से उपलब्ध है। पोर्न से बचने का सॉफ्टवेयर भी सहज उपलब्ध है।

 आज पोर्न शरीफों का मनोरंजन है। विज्ञापन,फिल्म,मोबाइल,पत्रिका,इटरनेट आदि सभी माध्यमों के जरिए पोर्न हम तक पहुँच रहा है। एक सर्वे के अनुसार ब्रिटेन में सन् 2000 तक तकरीबन 33 फीसदी इंटरनेट यूजर पोर्न का इस्तेमाल कर रहे थे। अमेरिका में पोर्न उद्योग का कारोबार 15 विलियन डालर सालाना आंका गया है। वर्ष में फिल्मों की टिकट और ललित कलाएं खरीदने से ज्यादा लोग पोर्न पर ज्यादा खर्च कर रहे हैं। अमेरिका में अकेले लॉस एंजिल्स में सालाना दस हजार हार्डकोर पोर्न फिल्में तैयार हो रही हैं। जबकि हॉलीवुड साल में मात्र 400 फिल्में बना पाता है।

पोर्न व्यवसाय का दायरा बहुत बड़ा है। इसकी धीरे-धीरे सामाजिक स्वीकृति बढ़ रही है। आज यह फैशन का रूप धारण कर चुका है। पोर्न के संदर्भ में पहला सवाल यह उठता है कि पोर्न को औरतें ज्यादा देखती हैं या मर्द ? सर्वे बताते हैं पोर्न पुरूष ज्यादा देखते हैं, पोर्न सबकी क्षति करता है। यह सामयिक पूंजीवादी फैशन है। यह अपने तरह का खास सम्मान दिलाता है।

एडवर्ड मारियट ने ‘मैन एण्ड पोर्न'(गार्दियन,8नबम्वर2003) में लिखा कि पोर्न आज ज्यादा स्वीकृत धंधा है, ज्यादा फैशनेबिल ज्यादा आरामदायक है,सबसे बड़ा व्यापार है, आज स्थिति यह है कि इसका सभ्य समाज के आनंद रूपों में स्वीकृत स्थान है।

पोर्न को हम वर्षों से देख रहे हैं कि किन्तु हमने कभी इसका विश्लेषण नहीं किया कि किस तरह इसने स्त्री का दर्जा गिराया है। यह समयानुकूल पूंजीवादी फैशन है। यह सिर्फ औरत ही नहीं सारे समाज को पतन के गर्त में मिलाया है। यह बात बार-बार कही जा रही है कि पश्चिम में औरतें खूब पोर्न देख रही हैं किन्तु सच यह है कि पोर्न मर्द ज्यादा देख रहे हैं। यह मूलत: मर्द विधा है।

 पोर्न की ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में परिभाषा है सन् 1864 से ‘वेश्या के अपने संरक्षक के प्रति जीवन, हाव-भाव’ पोर्न है। बाद में चेम्बर ने लिखा ‘कामुक उत्तेजना पैदा करने वाली सामग्री’ को पोर्न कहते हैं। इसका साझा थीम है पावर और समर्पण। जिसका आधार है वेश्या। जबकि ‘कामुकता’ (इरोटिका) में पोर्न की तुलना में नियंत्रण और वर्चस्व कम होता है।

 पोर्न मनुष्य की बुनियादी जिज्ञासाओं को शांत करती है। जो पोर्न के आदी हो जाते हैं, वे अन्य किसी के साथ मिल नहीं पाते। पोर्न मर्द के बारे में झूठी धारणाएं पैदा करती है। स्त्री-पुरूष संबंधों के बारे में झूठी धारणा बनाती है। उत्तेजना पैदा करने के नाम पर पोर्न मर्द का शोषण करती है। स्त्री के प्रति घृणा पैदा करती है। मर्द और दोनों के बीच आत्मीयता का झूठा वायदा करती है। संक्रमण काल में सिर्फ हस्तमैथुन का विकल्प पेश करती है। पुरूष जब अकेला होता है, कामुक तौर पर कुण्ठित हो तब वह पोर्न देखता है।

 पोर्न की लत शराब की लत की तरह है जो सहज ही छूटती नहीं है। अनेक मर्तबा पति अपनी पत्नी को साथ में बिठाकर पोर्न देखने के लिए दबाव डालता है और यह तर्क देता है इससे कामोत्तेजना बढ़ेगी सेक्स में मजा आएगा, बाद में स्वयं के मैथुन दृश्यों को कैमरे से उतारता है और सोचता है कि वह तो पोर्न से बाहर है किन्तु सच यह है कि इससे ज्यादा अमानवीय चीज कुछ भी नहीं हो सकती।

 पोर्न का मूल लक्ष्य है अन्य व्यक्ति को अमानवीय बनाना, संबंध को अमानवीय बनाना,आत्मीयता को अमानवीय बनाना। इसके अलावा जो लोग पोर्न देखकर अपनी पत्नी से प्यार करना चाहते हैं, ऐसी पत्नियों के लिए पोर्न दर्दनाक अनुभव है। वे इसमें एकसिरे से आनंद नहीं ले पाती हैं।

 जो लोग पोर्न का इस्तेमाल करते हैं वे अंदर से मर चुके होते हैं। वे अपने इस मरे हुए के दर्द से ध्यान हटाने के लिए पोर्न का इस्तेमाल करते हैं। पोर्न एक तरह से बच्चे का मनोविज्ञान भी है जहां बच्चा माता-पिता के नियंत्रण से मुक्त होकर जीना चाहता है। पुरूष के संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जो मर्द पोर्न ज्यादा देखते हैं वे अंदर से खोखले हो जाते हैं,संबंध बनाने में असमर्थ होते हैं। पोर्न मर्द को मजबूर करती है कि वह खोखले संबंध बनाए।

 पोर्न की लत अवसाद की सृष्टि करती है। पोर्न मर्द को मुक्ति नहीं देता, बल्कि लत पैदा करता है, लत का गुलाम बनाता है। इसके अलावा कामुक हिंसाचार में भी इसकी भूमिका है। पोर्न से बचने का आसान तरीका है कि आप अपने कम्प्यूटर को जबावदेह बनाएं, अन्य आपके कम्प्यूटर को देख सके कि आप क्या देख रहे हैं। पारिवारिक संबंधों में मधुरता हो, बच्चों से प्यार हो, तो पोर्न से बचा जा सकता है।

अमेरिका में ईमेल द्वारा हिन्दू विरोधी षडयंत्र

अमेरिका, 2 मार्च (हि.स.)। यूरोप तथा एशिया महाद्वीप में हिन्दू धर्म को बदनाम करने के लिए समय-समय पर चलाए जाने वाले षड्यंत्र का एक बार फिर खुलासा हुआ है। इस बार हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए वेबसाइट तथा ईमेल का सहारा लेकर झूठा तथा अनर्गल प्रचार अमेरिका से किया जा रहा है। हाल ही में जो बात पकड में आई है वह ईमेल से संबंधित है। इस ईमेल द्वारा यूरोप तथा अन्य देशों के क्रिश्चियनों को यह संदेश भेजा जा रहा है कि भारत में हिन्दुओं के बीच क्रिश्चियन धर्मावलम्बी सुरक्षित नहीं है। उन पर लगातार हिन्दुओं द्वारा अत्याचार किए जा रहे हैं। ईमेल में सभी देशों के क्रिश्चियनों से हिन्दुस्थान में रहने वाले क्रिश्चियनों की जिन्दगी बचाने के लिए सामुहिक प्रार्थना की अपील की गई है।     

इसकी आपातकालीन प्रार्थना की गुजारिश में लिखा है कि सभी कृपया भारत के चर्चों के लिए प्रार्थना करें, बुध्दिास्ट, अतिवादियों ने कल रात 20 चर्चों में आग लगा दी है और आजकी रात वे 200 चर्चों को ओलिसाबैंग प्रांत में नष्ट करने का इरादा रखते हैं। ये लोग योजनाबध्दा तरीक से 24 घंटों में 200 मिशनरियों को मारने वाले हैं। अपनी जान बचाने के लिए अभी सभी क्रिश्चियन गांवों में छुपे हुए हैं। कृपया उनके लिए सभी क्रिश्चियन प्रार्थना करें और इस ईमेल को अपने सभी परिचित क्रिश्चियनों के पास भेजें। साथ ही सभी ईश्वर से प्रार्थना करें कि वह भारत में रहने वाले हमारे क्रिश्चियन भाई-बहिनों पर दया करे । जब यह संदेश आपको मिले तब इस आपात प्रार्थना की गुजारिश अन्य क्रिश्चियन भाईयों को भी भेजें।

इस ईमेल को पढकर अमेरिका तथा अन्य यूरोपीय देशों में रह रहे हिन्दुओं से पूछा जा रहा है कि क्या भारत में इस तरह की कोई घटना घटी है ? क्या क्रिश्चियनों पर इतने बर्बर अत्याचार किए जा रहे हैं। 

ऐसे ईमेल की जानकारी के बाद विश्वहिन्दू परिषद के केंद्रीय सहमंत्री अण्णाजी मुकादम ने इसे अतिवादी क्रिश्चियनों के द्वारा हिन्दुओं की विश्व में छबि बिगाडने के लिए योजनाबध्दा तरीके से किया जा रहा षड्यंत्र करार दिया है । उनका कहना है कि अमेरिका में ईमेल तथा वेबसाईटों के लिए कानून सख्त नहीं है। वहां जब तक छपवाकर किसी बात का प्रचार नहीं किया जाता वह कानून के दायरे में नहीं आता है। इसी का फायदा अमेरिका तथा अन्य यूरोपीय देशों में हिन्दू विरोधी लोग उठाते हैं।

 

पाकिस्तान में सिखों की बर्बर हत्या से आक्रोशित विश्व हिन्दू परिषद

अमेरिका, 2 मार्च (हि.स.)। विश्वहिन्दू परिषद की अमेरिका शाखा ने पाकिस्तान में गैर मुस्लिमों पर लगाए गए कर जजिया न चुकाने पर सिख भाईयों की सर काटकर हत्या किए जाने पर गहरा आक्रोश व्यक्त किया है। अमेरिका के हिन्दूसमुदाय की ओर से विश्व हिन्दू परिषद (विश्व हिन्दू संस्था अमेरिका) ने शोकाकुल परिवारों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए पाकिस्तान के फाटा स्थान पर हुई इस घटना को इस्लामिक जिहादियों द्वारा किया गया अत्यंत कायरतापूर्ण, असभ्य और घिनौना अपराध करार दिया है।

विहिप अमेरिका ने एक प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से दो बहादुर सिख भाईयों के सर काटे जाने की घटना के लिए गहरा आक्रोश और निराशा व्यक्त की है। इन दोनों सिखों के शव पाकिस्तान के खाईबर तथा औराकजाई  नामक जिलों में मिले थे।

नई दिल्ली स्थित सूत्रों के मुताबिक इन मारे गए सिखों को इस्लाम कबूल करने या फिर मरने का विकल्प दिया गया था। सिखों द्वारा इस्लाम कबूल करने से मना करने पर इनकी सर काटकर हत्या कर दी गई। इसके अलावा स्थानीय समुदाय को आतंकित और अपमानित करने के लिए इनके सर पेशावर के भाईजोगासिंह गुरूद्वारे को भेजे गए थे।

प्राप्त जानकारी के मुताबिक घटना से करीब 34 दिन पहले छह सिखों को अगवा किया गया था, जिनमें से चार सिख अभी भी इस्लामिक जिहादियों के कब्जे में हैं। इसके अलावा एक हिन्दू (गैर सिख) को भी कुछ जिहादियों द्वारा 19 फरवरी को अगवा किया गया है। औसतन नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस तथा पाकिस्तान के आदिवासी इलाकों में तालिबान द्वारा गैर मुस्लिमों पर जजिया कर लगाए जाने तक करीब दस हजार सिख निवास करते थे। जब इस्लामी जिहादियों द्वारा सिख समुदाय के अधिकांश लोगों की सम्पत्ति पर कब्जा कर लिया गया तब इस समुदाय के अधिकांश लोग पाकिस्तान के विभिन्न शहरों जैसे पेशावर, लाहौर और ननकाना साहब की ओर भाग गए।

विश्वहिन्दू परिषद अमेरिका ने मृत आत्माओं के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए पीडित परिवारों को भरोसा दिलाया है कि अमेरिका में रहे हिन्दू इस संकट और दु:ख की घडी में अपने भाई-बहिन के साथ हैं। साथ ही परिषद ने कहा है कि पाकिस्तान में इस तरह की दुष्साहसिक वारदातों के बावजूद भी भारत सरकार ने पाकिस्तान के साथ शांतिवार्ता फिर से आरंभ कर दी है। विहिप अमेरिका का मानना है कि अब समय आ गया है कि भारत सरकार पाकिस्तान को कडा संदेश देते हुए सभी तरह की बातचीत बंद कर दे जब तक कि दोषियों को कडी सजा नहीं मिलती है। 

दर्जनों अज्ञात लोगों के खिलाफ बस जलाने का मामला दर्ज

डबवाली! शनिवार शाम को जिला सिरसा के विभिन्न स्थानों पर हरियाणा रोड़वेज की बसों को जलाने के आरोप में संबंधित थानों में अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दर्ज करके पुलिस ने आगामी कार्यवाही शुरू कर दी है।
प्राप्त जानकारी अनुसार गांव मुन्नांवाली में तेल छिड़क कर बस को आग लगाने का प्रयास करने के आरोप में बस चालक रामकुमार पुत्र मोमन राम निवासी पन्नीवाला मोटा की शिकायत पर 10-12 अज्ञात लोगों के खिलाफ धारा 436, 511, 148, 149 आईपीसी तथा पब्लिक सम्पत्ति को नुक्सान पहुंचाने के आरोप में 3/4 के तहत केस दर्ज किया गया है।
इसी प्रकार चालक अशोक कुमार की शिकायत पर गांव नुइयांवाली में हरियाणा रोड़वेज की बस को आग लगा कर क्षतिग्रस्त करने के आरोप में थाना औढां पुलिस ने 30-40 अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ धारा 148/149/341/435 आईपीसी तथा पब्लिक सम्पत्ति को नुक्सान पहुंचाने के आरोप में 3/4 के तहत केस दर्ज करके आरोपियों की तालाश शुरू कर दी है। यह भी पता चला है कि पुलिस काफी हद तक आरोपियों का सुराग लगाने में सफल रही है।

ऊर्जा का वैकल्पिक स्त्रोत है शैवाल

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में संपन्न हुई अंतराष्ट्रीय विज्ञान संगोष्ठी में ऊभर कर आई यह बात

वाराणसी, 28 फरवरी (हि.स.)। शैवाल मानव जीवन के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण और बहुगुणी है। यह न केवल खाद्य पदार्थ के रूप में उपयोग में लाई जा सकती है बल्कि गंदगी साफ करने तथा स्वास्थ्य की ह्ष्टि से भी विशेष महत्व रखती है। इसमें बंजर भूमि को उर्वर बनाने का माद्दा भी है। इसकी क्षमता अद्भुत है। यह कहीं भी किसी भी स्थिति में अपना अस्तित्व बचाने में सक्षम है। उक्त बात बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में विज्ञान दिवस की पूर्व संध्या पर तीन दिन से चल रही अंतर्राष्टन्ीय संगोष्ठी में उभर कर सामने आई।

वनस्पति विज्ञान विभाग के तत्वावधान में स्वतंत्रता भवन में आयोजित तीन दिवसीय शैवाल पर शोध विषयक अंतर्राराष्ट्रीय सम्मेलन में मुख्य अतिथि की आसंदी से बोलते हुए ओरेगन इंस्टीट्यूट ऑफ मेराइन बायोलॉजी (यूएसए) के पूर्व निदेशक प्रो. रिचर्ड डब्ल्यू कैस्टेनहोल्ज ने शैवाल की अनेक विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह खारे पानी, मरुस्थल, उच्च व कम ताप में भी अपना वजूद बचाए रहती है। प्रदूषण मुक्ति में तो यह सहायक है ही ऊर्जा का मजबूत स्त्रोत भी बन सकती है। उनका कहना था कि शैवाल मानव जाति का मित्र है। अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. डी.पी. सिंह ने विभाग के उज्ज्वल इतिहास का जिक्र’ किया। भारत के सभी प्रदेशों सहित जापान, नीदरलैंड, आस्ट्रेलिया, कोरिया, फिनलैंड, स्पेन, रोमानिया, इग्लैंड, चीन आदि देशों से आए वैज्ञानिकों ने इस अंतर्राष्टन्ीय संगोष्ठी में शैवाल के मानव तथा जीव-जंतुओं के जीवन से जुडे विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला।

वहीं प्रो. रिचर्ड डब्ल्यू कैस्टेनहोल्ज सहित जापान से आए प्रोफेसर ओमारी, प्रोफेसर तकादे, प्रो. कवालो, प्रो. नाकामोटो, नीदरलैंड के प्रो. स्टॉल, आस्ट्रेलिया से आए प्रो. नीलन, प्रो. जयकोक जॉन, प्रो. किसिंग, यूके के प्रो. रिटन, प्रो. हेड, प्रो. हेज, कोरिया से आए प्रो. व्ही मॉक ओ, फिनलैंड के प्रो. सिवोनिल, प्रो. मारी आरो, स्पेन के प्रो. अबॉल, रोमानिया के एडेलियाल तथा चाइना के प्रो. लीव ने शैवाल को लेकर किए गए अपने विभिन्न शोधों पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि शैवाल विषम परिस्थितियों में किस तरह जीवित रहती है तथा यह पौधों के साथ मिलकर मानव जीवन के लिए कैसे एक सहयोगी की भूमिका निभाती है। संगोष्ठी में काई के बॉयोटेक्नॉलाजी प्रभाव को लेकर भी बात की गई, साथ ही उर्वरक व वैकल्पिक ऊर्जा के रूप में इसके उपयोग पर भी प्रकाश डाला गया। विदेशों से आए कुछ वैज्ञानिकों का यह भी कहना था कि यह दवा के रूप में भी उपयोग में लाई जा सकती है और भोजन के स्थान पर इसका उपयोग कर स्वस्थ जीवन भी जिया जा सकता है। इससे सीवर के पानी को शुध्दा कर उपयोग में लाया जाना संभव है, साथ ही यह वातावरण के लिए भी मित्रवत है।

रविवार विज्ञान दिवस की पूर्व संध्या तक चले तीन दिवसीय इस इंटरनेशनल सिम्पोजियम में भारत के प्राय: सभी राज्यों के युवा वैज्ञानिकों ने भाग लिया। इसमें 232 पोस्टरों की प्रस्तुतियाँ हुईं, वहीं कुछ विदेशी विश्वविद्यालय के युवा वैज्ञानिकों ने भी अपने पोस्टर प्रस्तुत किए। भारत के प्रो. आप्टे भाभा इंस्टीट्यूट, प्रो. भट्टाचार्य इंदौर, प्रो. वीजे राव मुंबई, प्रो. टीए शर्मा विजयवाडा, प्रो. पीव्ही सुब्बाराव गुजरात आदि अनेक प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों ने भाग लिया। समापन कार्यक्र’म में यूके के प्रसिध्दा वैज्ञानिक प्रो. रिटन ने कहा कि भारत के अन्य विश्वविद्यालयों तथा शोध संस्थानों में ऐसे आयोजन होते रहना चाहिए। हिन्दुस्तान विज्ञान के क्षेत्र में बहुत अच्छा कार्य कर रहा है। नीदरलैंड के वैज्ञानिक प्रो. स्टॉल ने अपने वक्तव्य में कहा कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का वनस्पति विभाग पिछले 8 दशकों से शैवाल के क्षेत्र में न केवल भारत में अग्रणी है बल्कि विदेशों में भी हर वैज्ञानिक यहां के शोध कार्य से परिचित हैं। इग्लैंड के प्रो. हैज का कहना था कि शैवाल पर जो सम्मेलन आज यहां हुआ उसमें काई से संबंधित तमाम क्षेत्रों की चर्चा की गई है। हम चाहते हैं कि आगे कुछ विशेष क्षेत्र चुनकर जिसमें वैकल्पिक ऊर्जा, फोडर (पशुओं का चारा), फर्टिलाइजर्स या फिर अन्य विषय भी हो सकता है पर विस्तृत कार्य किया जाना चाहिए।

इस अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी के अवसर पर कार्यक’म सचिव प्रो. सुरेंद्र सिंह ने सभी अतिथियों का आभार माना तथा विदेशी और देश के वैज्ञानिकों को आश्वस्त किया कि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय का वनस्पति विज्ञान विभाग शैवाल तथा अन्य वनस्पतियों को लेकर गंभीर शोध कार्य करेगा। वहीं कार्यक्रम संयोजक प्रो. अश्विनी कुमार राय ने विदेशी वैज्ञानिक मेहमानों को आश्वस्त करते हुए कहा कि उनके सुझाव भारत के विज्ञान जगत के लिए महत्वपूर्ण हैं। बीएचयू का वनस्पति विभाग कोशिश करेगा कि उन्हें अमल में ला सके। यहाँ आए सभी सुझावों को यूजीसी, ह्यूमन रिसर्च सेंटर और साईंस टेक्नालॉजी केंद्रों को भेजेंगे।

इस संगोष्ठी में भारत के अनेक वैज्ञानिकों द्वारा आपसी सहयोग बनाकर शैवाल के क्षेत्र में नयी शोध परियोजनाओं पर कार्य करने की बात भी उभर कर सामने आयी। इस मौके पर शोध पत्रिका का विमोचन भी किया गया। विभागाध्यक्ष प्रो. बीआर चौधरी ने विभाग की उपलब्धियां बताईं। विषय स्थापना आयोजन सचिव प्रो. सुरेंद्र सिंह, स्वागत संयोजक प्रो. एके राय, संचालन डॉ. नंदिता घोषाल व धन्यवाद ज्ञापन प्रो. आरके अस्थाना के द्वारा किया गया।

हिन्दू समाज दे अपने पिछडे और उपेक्षित बन्धुओं को सम्मान और स्नेह : मोहन भागवत

भोपाल, 28 फरवरी (हि.स.)। आज का विज्ञान भी कहता है कि सभी भारतीय 40 हजार वर्ष पूर्व से एक हैं उनका डीएनए इस बात का प्रमाण है कि प्रत्येक भारतवासी आपस में भाई हैं, उनका खून का रिश्ता है। यह हिन्दू समाज एकजुट होकर खडा हो जाए तो भारत खडा हो जाएगा। यानि स्वार्थभरी जितनी भी बुराईयाँ हैं वह समाप्त हो जाएगी, लेकिन हिन्दू एकजुट न हों इसके लिए अनेक शक्तियाँ आज अत्यधिक जोर देकर अपने-अपने तथा संगठित स्तर पर प्रयास कर रहीं हैं। यह बात दो दिन के प्रवास पर भोपाल आए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन राव भागवत ने कही।

शहीद भवन में आयोजित सद्भावना बैठक में उन्होंने विभिन्न मत-पंथ और सम्प्रदाय प्रमुखों को सम्बोधित करते हुए कहा कि हमारे पिछडे उपेक्षित बन्धुओं की हिन्दू समाज से सुख की कोई अपेक्षा नहीं है, वह तो हजारों साल से अपने धर्म की रक्षा के लिए लडते और मरते आए हैं। उन्हें अपने इस समाज से सम्मान और स्नेह की अपेक्षा है जो कि हमें अपने इन बन्धुओं को देना चाहिए। श्री भागवत ने जोर देकर कहा कि 800 वर्षों से हिन्दू समाज के पिछडे वर्गों के लोग राजनीति पद-प्रतिष्ठित और अधिकारों से वंचित हैं, जिन्हें आज राजनीतिक स्तर पर मुख्य धारा में लाने की जरूरत है। हमारे मन में सद्भावना रही तो दुनियाँ की कोई ताकत नहीं जो हमें पीछे रख सके। उन्होंने कहा कि किसी भी दल को चुनने और सरकार के बारे में फैसला करने के लिए सभी स्वतंत्र हैं, लेकिन हिन्दू समाज के हित के लिए सभी जाति, सम्प्रदाय और संगठनों को मिलकर काम करने की जरूरत है। सभी एक दूसरे समुदायों से मेल-जोल बढाएं, ताकि गलतफहमियां दूर हो सकें ।

सरसंघचालक श्री भागवत ने कहा कि बाहर यह गलत फहमी है कि राजनीतिक दलों को संघ कंटनेल करता है, ऐसा नहीं है। संघ केवल अच्छी बातें सुझाता है मानना अथवा न मानना उनका काम है। अच्छा करेंगे तो फल अच्छा मिलेगा और बुरा करने पर बुरा। हमारे स्वयंसेवक सरकार में हैं उनसे जिन्हें काम है वह सीधे बात करें। यदि वह नहीं सुनते तो जैसी लोकतंत्रात्मक व्यवस्था में अपनी बात के लिए यदि आन्दोलन की जरूरत है वह आप करिए, लेकिन हमेशा यह ध्यान रखें कि इस प्रतिस्पर्धात्मक व्यवस्था में हिन्दू समाज की एकता कहीं भंग न हो, क्योंकि समाज की एकता इन सब से ऊपर है। उन्होंने कहा कि सद्भावना समाज की गति का आधार है। व्यवस्थाएं बदलती रहती हैं, किन्तु इसके चलते अहंकार का भाव न आए । हृदय में समानता का भाव रहे यही समरसता के लिए आवश्यक है। उन्होंने विभिन्न समुदाय प्रमुखों से तीन बिन्दुओं पर सुझाव मांगे तथा अपेक्षा की कि वे अपने समुदाय विशेष के द्वारा सामाजिक सद्भावना और समाज सेवा के क्षेत्र में क्या-क्या कर सकते हैं। जिससे सामाजिक सद्भाव पैदा करने का आचरण बन सके।

श्री भागवत ने राजस्थान में आरक्षण की मांग को लेकर हुए मीणा-गुर्जर आन्दोलन का जिक्र करते हुए बताया कि किस तरह अनेक संत महात्माओं द्वारा किए गए सामाजिक जागरण के कार्य के परिणाम स्वरुप वहाँ किसी हिन्दू का रक्त नहीं बहा जबकि दोनों ही समुदायों ने अपनी-अपनी मांगों को लेकर आन्दोलन किया था।

शहीद भवन में आयोजित इस सद्भावना बैठक के प्रारंभ में सरसंघचालक श्री भागवत ने सर्वप्रथम शहीद भगत सिंह की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित किए तथा भारतमाता के चित्र पर माल्यार्पण करते हुए बैठक का शुभारंभ किया। मंच पर सरसंघचालक मोहनराव भागवत के अलावा क्षेत्र संघचालक श्रीकृष्ण माहेश्वरी तथा मध्यभारत प्रांत संघसंचालक शशिभाई सेठ उपस्थित थे।

हिंदू समाज की 103 जातियों के प्रतिनिधि के साथ अनेक सामाजिक संगठनों के पदाधिकारी ने भाग लिया । जिनमें से 35 प्रतिनिधियों ने अपने अनुभव एवं सुझाव संघ के सरसंघचालक श्री भागवत के सामने रखे। ज्ञातव्य हो सर संघचालक बनने के बाद श्री भागवत देश भर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की योजनानुसार बनाए गए 40 प्रांतों के निरंतर प्रवास पर हैं। इस कडी में यह उनकी 24 वीं सद्भावना बैठक थी।

नाना देशमुख को श्रधांजली

नाना जी देशमुख ने हमेशा अपने उद्बोधन में यही कहा है कि हमें नाना जी मत सम्बोधित करो, मुझे सिर्फ नाना कहो। मैं तुम्हारा नाना हूँ। कितना वात्सल्य झलकता है इन शब्दों में। वाणी की ओजस्विता, हाजिर वक्तृत्व एवं प्रखर कर्तृत्व नाना की अपनी पहचान रही है। ग्रामीण पुर्नसंरचना की वीणा नाना ने उठायी तो शनिवार दिनांक 27.02.2010 के सायंकाल चिरविश्राम मुद्रा में आ गये। चित्रकूट की पावन धरती ने अपने इस ओजस्वी सपूत को अपनी गोद में हमेशा के लिए सुला लिया। न केवल चित्रकूट अपितु राष्ट्र एवं विश्व मानवता नाना की ऋणी है और रहेगी। नाना ने भारत के पहले ग्रामीण विश्वविद्यालय महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के रूप में जब गौशाला का श्रीगणेश किया तो उद्धाटन में पूजा के समय उपाध्याय युगल को चुना गया। गौशाला के दूध का सम्बन्ध मेरे पूरे परिवार से रहा है। संस्कार निर्माण की प्रक्रिया में गाय के दूध का कितना महत्व है इसे मैं बखूबी समझती हूँ। गौशाला में हिन्दुस्तान के विभिन्न क्षेत्रों की देशी नस्लों, उनके वंशजों तथा उनके उत्पादों के आधार पर संवर्धन, शोधन, परिस्करण एवं वितरण का गुरूत्तर दायित्व आज की तारीख में भी आरोग्यधाम दीनदयाल शोध संस्थान चित्रकूट में जारी है। गो-धन ग्रामीण अर्थव्यवस्था की धुरी है। हिन्दुस्तारी संस्कृति में मुद्रा संवर्धन में भी अनोखा एवं बेजोड़ नमूना है।

गैर कांग्रेसवाद की मुहिम को बीसवीं सदी के आठवें दशक में साकार करने में लोक नायक जयप्रकाश नारायण के साथ नाना का योगदान राष्ट्र के लिए वैकल्पिक राजनैतिक मॉडल तैयार करने तथा समग्र क्रान्ती का बिगुल फूंकने में प्रेरणास्पद रहेगा। हिन्दू मिशन-शैली नाना की अपनी पहचान है। अपने से भिन्न मतावलम्बियों यथा लाहियावादी समाजवादियों को अपने से अभिन्न रखना नाना की समरसता का बेजोड़ नमूना रहा है। दलगत राजनीति के दलदल में फंसी वर्तमान संसदीय प्रणाली से नाना खिन्न थे। सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय पुनरूत्थान में बाधक वोट बैंक की राजनीति नाना की दृष्टि हेय थी। परिणाम स्वरूप सक्रिय राजनीति से सन्यास लेकर इस राजर्षि ने ग्रामीण्ा पुर्नसंरचना का जो आदर्श नमूना दीनदयाल शोध संस्थान के माध्यम से राष्ट्र के सामने प्रस्तुत किया है उसी से देश की दिशा एवं दशा सुधरेगी। मेरी समझ से ग्रामीण अर्थव्यवस्था प्रधान भारतवर्ष का जीर्णोंध्दार नाना द्वारा सुझाये गये ग्रामीण विकास माडल द्वारा ही सम्भव है।

मेरी लेखनी विश्राम नहीं लेना चाहती फिर कुछ पंक्तियों में मैने अपने नाना को श्रध्दा सुमन अर्पित किया। आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि नाना ने स्वीकार कर ली होगी क्योंकि आत्मा की अमरता का सिध्दान्त श्रीमद् भगवत गीता का डिम-डिम घोष है।

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावक:।

न चैनं क्लेदयन्त्यापो, न शोषयति मारूत:॥

हिन्दू चिंतन आज की वैश्विक आवश्यकता : डॉ. मोहनराव भागवत

संघ अनुभूति से समझने का विषय है। संघ में ऐसे व्यक्ति कैसे तैयार होते हैं जो अपना सुखदुख भूलकर राष्ट्र के लिये स्वयं का होम कर देते हैं। संघ में श्रीपति और नाना जी देशमुख जैसे राष्ट्रभक्त तैयार होते हैं। संघ दूर से समझ में नहीं आता। कुछ बाते करने की होती हैं। संघ कार्य केवल हमारे राष्ट्र की नहीं बल्कि विश्व की आवश्यकता है। आज दुनियाँ के देश यह मानकर चल रहे हैं कि यदि हिन्दू संस्कृति का विराट स्वरूप विश्व के सामने खडा हो जाए तो सभी को समान रूप से शांति, प्रेम और सौहार्द मिलेगा। भारत जबजब खडा होता है तब भारत में राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध, विवेकानंद, अरविन्द, गांधी, सुभाषचन्द्र बोस पैदा होते हैं और राष्ट्र और धर्म रक्षा के लिये बच्चों तक को होम करने वाली लंबी श्रृंखला यहाँ चलती है। उक्त उद्गार भोपाल के लाल परेड ग्राउण्ड में वार्षिकोत्सव और हिन्दू समागम कार्यक’म के अवसर पर रविवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ चालक माननीय डॉ. मोहनराव भागवत ने व्यक्त किये।

उन्होंने कहा कि कल ही संघ के दो वरिष्ठ कार्यकर्ता अपना पार्थिव त्यागकर उत्तम गति को प्राप्त हुये हैं। एक का कार्यक्षेत्र कर्नाटक, महाराष्ट्र रहा ऐसे श्रीपति शास्त्री जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन इतिहास के अध्यापक के अलावा संघ कार्य में लगाया तथा दूसरे स्व. नानाजी देशमुख जिन्होंने बचपन में अनाथ अवस्था में किसी तरह अपना पालनपोषण किया लेकिन प्रखर व्यक्तित्व को प्राप्त करने के बाद अपना पूरा जीवन देश की सेवा में लगा दिया। वे राजनीति में गए और यह बताया कि राजनीति में उत्तम कार्य कैसे किए जाते हैं। जब राजनीति में फल मिलने का अवसर आया तो स्वयं को समाज सेवा में समपिर्त कर दिया। प्रयास ओर लगन से कैसे राष्ट्र का विकास होता है यह उन्होंने चित्रकूट में साकार कर दिखाया है। वह उत्तम संगठक थे। श्री भागवत ने कहा कि उनके जाने से प्रत्येक स्वयंसेवक के मन में खिन्नता है लेकिन सामूहिक सकंल्प भी है कि जिस कार्य को उन्होंने छोडा है उसे पूरा करना अब उनका कतर्व्य है। संघ में श्रीपति और नाना जी जैसे देशभक्त तौयार होते हैं। संघ दूर से समझ में नहीं आता। कुछ बाते करने की होती हैं। संघ अनुभूति से समझने का विषय है।
 
डॉ. मोहनराव भागवत ने कहा कि संघ कार्य हमारे राष्ट्रजीवन और सम्पूर्ण विश्व की आवश्यकता है। धर्म संस्कारों के कारण आचरण में आता है संस्कृति और धर्म दोनों का आधार समाज है। जो अपना हिन्दू धर्म और संस्कृति है वह वसुदैव कुटुम्बकम की बात करती है। वह देने की बात कहती है, त्याग की बात कहती है। इसलिये वह हमारी ही नहीं विश्व की आवश्यकता है। श्री भागवत ने कहा कि आज जो देश इतना सम्पन्न है वह उतना ही समस्याग’स्त और दुःखी है विज्ञान की जितनी प्रगति हुई, उतनी समस्या बी आखिर कयों ? क्योंकि हर कोई सभी कुछ अपने हिसाब से चलाना चाहता है। दुनिया के चिंतक जो इन समस्याओं के मूल में पहॅुंचे तब उन्हें लगा कि इसके पीछे जो कारण जिम्मेदार हैं। वह है, मैं ही सही बाकी सब गलतकी भावना का होना। कुछ लोगों में कट्टरता प्रमाण में कम है। वे शांति के नाम पर प्रेम और सौहार्द का चौंगा पहनकर संदेश देने जाते हैं और छलकपट के जितने रूप हो सकते हैं करते हैं।
 
उन्होंने कहा कि अमेरिका आर्थिक दवाब बनाकर पूरी दुनिया को मुठ्ठी में कर लेना चाहता है। चीन साम’ाज्यवादी ताकत दिखाकर दूसरों को दबा रहा है। ऐसे में यह कहने वाला विचार कौन सा है विविधता में एकता देखो। इसे लेकर चलने वाला समाज भारत का हिन्दू समाज है। दूसरों के लिये जीना, जीना है और अपने लिए ही जीना पशुता है ऐसा मानने वाला दुनिया में भारत का हिन्दू समाज है और कोई नहीं। त्याग संयम का जीवन जिओ और प्रकृति के साथ रहो। यह शिक्षा हमें हिन्दू समाज से मिलती है। यूरोप में पतिपत्नि के सम्बन्ध, देश भक्ति आदि सभी कुछ सौदा है। हर बात को पैसे के तराजू पर तोला जाता है। इसी कारण वहाँ अशांति है जबकि अपने यहाँ परिवार को महत्व दिया गया है। इसलिये आज दुनिया के देश कहते हैं यदि हिन्दू संस्कृति विराट रूप से विश्व में खडी हो जाए तो सभी को प्रेमशांति और सौहार्द मिलेगा।

श्री भागवत ने पाकिस्तान का जिक’ करते हुये कहा कि हमारी पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान हमारा शत्रु है। हमने अपनी मातृभूमि के टुकडे भी किये और दुःख भी झेल रहे हैं। हम इतने भोले हैं वह बारबार आतंकवादी भेजता है हम अंहिसा की बात करते हैं। आताताईयों को अंिहसा के मार्ग पर चलाने के लिये सबक सिखाना चाहिए यही धर्म है। उन्होंने कहा कि हिन्दूस्थान हिन्दू राष्ट्र है यह स्पष्ट कल्पना सभी के मन में होनी चाहिए। भारतभूमि के अपार प्रेम के कारण तीन लाख पाकिस्तानी हिन्दू भारत आए लेकिन कश्मीर में आज तक उनकी कोई चिंता नहीं। सो तीन लाख काश्मीरी हिन्दुओं को भ’म के कारण कश्मीर छोडना पडा उनके अधिकारों की किसी को फिक’ नहीं। श्री भागवत ने प’श्न किया कि क्या भारत में हिन्दुओं का कोई हिस्सा नहीं। भारत का प्रधानमंत्री संविधान से उपर उठकर कहता है संसाधनों पर पहला हक उनका है। हिन्दुओं की अवहेलना हिन्दू आचायोर्ं का अपमान, हिन्दुओं के पैसों का दुरूपयोग। यह सब आखिर क्यों ? केवल नेताओं के मतों की आस है इसलिये। सुप्रीम कोर्ट के बारबार कहने पर भी घुसपैठियों को नहीं भगाया जाता, वह सीमावतीर इलाकों में बस रहे हैं। सिर्फ अपने वोटरों की सं’या बाने के लिये नेता यह सब कर रहे हैं । उन्हें सहयोग कौन दे रहा है? राजनीतिज्ञ सारे देश में एकता का भाव नहीं भरतो। भाषापंथ-सम्प्रदाय को लेकर झगडा करवाना यह सब विदेशी ताकते तो कर ही रही है लेकिन हमारे लोग भी राजनीति के लिये यह सब करते हैं। पंथसंप्रदाय हमें जोड नहीं सकते ऐसे में कौन है। जो हमें जोडता है वह है हिन्दुत्व का विचार। वास्तव में जोजो भारतीय है वह सब हिन्दू है, जो हिन्दू नहीं वह भारतीय नहीं। आज जो भारत में समस्याएँ है वह इसीलिए हैं क्योंकि इस अखण्ड मातृभूमि के प्रति चैतन्य माँ जगत जननी का स्वरूप देखने का अभाव है।
उन्होंने कहा कि हिन्दुत्व ही समन्वय की बात कहता है, जो संस्कृति विश्व के प्रति कृतज्ञता का भाव रखती है वह हिन्दू संस्कृति है। इण्डोईरानी प्लेट में रहने वाले सभी 40 हजार वर्ष से एक समान हैं। भारत में रहने वाले सभी समान पूर्वजों के वंशज हैं हम कोई भी पूजा पद्धति अपनाए और भाषा बोले। हम भारत माता के पुत्र है, हिन्दू परम्परा के संवाहक हैं। हिन्दुत्व वास्तव में मानवता है वही हम सभी को जोडता है। हमारी एकता का आधार भी वही है।
श्री भागवत ने कहा कि भारत में यदि हिन्दुत्व के आधार पर विकास योजनाएँ बने तो देश अवश्य सम्पन्न होगा। पश्चिम के मूल्य आज अपने देश के परिवारों को तोड रहे हैं वहाँ के लोग भारत के मूल्यों को आशाभरी ह्ष्टि से देख रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम लोग हजार वर्ष गुलाम रहे क्योंकि हमने शक्ति की उपासना छोड दी। शक्ति सेनापुलिस की नहीं लोक की होती है। आज इसी के जागरण की आवश्यकता है। लोगों की आँखों से स्वार्थ सिद्धि हटाकर जरूरत भारत के प्रति अपार श्रृद्धा भरने की है।
सारे देश में एकता का वातावरण उत्पन्न करने का काम रा.स्व.संघ का है। स्वयंसेवक के व्यवहार पर समाज की आस्था और विश्वास है। यही कारण है जो 1 लाख 57 हजार से अधिक सेवा कार्य स्वयंसेवक बिना किसी लोभ लालच के अपनी चमडी घिसकर कर रहे हैं। मनुष्य निर्माण से देश का वातावरण प्रभावित होता है। समाज का आचरण भी वैसा ही बनता है। वातावरण बनाने का काम करने वाले कार्यकतार रा.स्व.संघ की शाखा से निकलते हैं। इसलिए जो लोग संघ को दूर से देखते हैं मैं आह्वान करता हूँ वे संघ को आकर पास से देखें। एक घण्टा शाखा में देकर बाकी 7 घण्टें समाज के अच्छे कार्य में लगा दें। लोग दर्शक बनकर न रहें आगे आकर काम करें। यह हमारी भारत माता है। नई पी को सामर्थसम्पन्न देश हम सभी को सौंपना है।
सरसंघचालक श्री भागवत के उद्बोधन के पूर्व हिन्दू समागम स्वागत समिति अध्यक्ष श्री आर.डी.शुक्ला ने स्वागत भाषण दिया वहीं आयोजन समिति के महासचिव श्री दीपक शर्मा ने सभी का आभार माना

…और हो गई नानाजी की देह एम्स के हवाले

...और हो गई नानाजी की देह आयुर्विज्ञान संस्थान ( एम्स) के हवाले

स्व. नानाजी देशमुख का पार्थिव शरीर विशेष विमान द्वारा आज चित्रकूट से नई दिल्ली लाया गया। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान, सांसद अनिल माधव दवे एवं संस्थान के अध्यक्ष श्री वीरेंद्रजीत सिंह नानाजी का पार्थिव शरीर लेकर आज दोपहर दिल्ली हवाई अड्डे पहुंचे जहां नानाजी के हजारों प्रशंसक एवं कार्यकर्ता नानाजी अमर रहें, भारत माता की जय आदि नारों के साथ उनकी पार्थिव देह को एक वैन में रख जनता के अंतिम दर्शनों के लिए आयोजित कार्यक्रम स्थल केशव कुंज की ओर रवाना हुए।

वैन में स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, सांसद अनिल माधव दवे आदि पार्थिव देह के साथ उपस्थित थे। इस अवसर पर लोकसभा के उपाध्यक्ष करिया मुंडा, नेता प्रतिपक्ष श्रीमती सुषमा स्वराज, राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष अरुण जेटली, भाजपा अध्यक्ष श्री नितिन गडकरी, पूर्व भाजपा अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह, संगठन महामंत्री श्री रामलाल समेत हजारों की संख्या में कार्यकर्ता उपस्थित थे।

सैकड़ों गाड़ियों के काफिले के साथ नानाजी के पार्थिव शरीर को सर्वप्रथम दीनदयाल शोध संस्थान के मुख्यालय लाया गया जहां कुछ देऱ के लिए पार्थिव शरीर जनता के दर्शनार्थ रखा गया। उल्लेखनीय है कि यह मुख्यालय नानाजी देशमुख का दिल्ली का निवास स्थान भी था। यहां पर पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम एवं नानाजी के परिजनों ने उन्हें अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

पुनः काफिले के साथ उनका पार्थिव शरीर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के झण्डेवालां स्थित केशवकुंज कार्यालय लाया गया जहां काफिले में शामिल गण्यमान्य नेताओं,कार्यकर्ताओं के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर कार्यवाह सुऱेश जोशी उपाख्य भैय्याजी जोशी, सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी, विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अशोक सिंहल, पूर्व उप प्रधानमंत्री एवं भारतीय जनता पार्टी संसदीय दल के अध्यक्ष श्री लालकृष्ण आडवाणी, वरिष्ठ भाजपा नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी, संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री मदनदास देवी, विश्व हिंदू परिषद के वरिष्ठ नेता आचार्य गिरिराज किशोर, क्षेत्र संघचालक डॉ. बजरंगलाल गुप्त, प्रांत संघचालक श्री रमेश प्रकाश, प्रो. देवेन्द्र स्वरूप, श्री माधव देशमुख, श्री हरीशचन्द्र श्रीवास्तव, गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेंद्र मोदी, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री रमेश पोखरियाल निशंक, पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खण्डुरी, झारखंड के उपमुख्य मंत्री श्री रघुवर दास समेत हजारों स्यवंसेवकों ने नानाजी को श्रद्धासुमन अर्पित किए।

इस अवसर पर भारत की राष्ट्रपति श्रीमति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती मीरा कुमार, लोकसभा के महासचिव की ओर से उनके प्रतिनिधियों ने नानाजी के पार्थिव शरीर पर पुष्प चक्र अर्पित कर उन्हें अपनी श्रद्धांजलि निवेदित की। लोकसभा के उपाध्यक्ष श्री करिया मुंडा, राज्यसभा के महासचिव श्री अग्निहोत्री ने स्वयं उपस्थित होकर नानाजी के पार्थिव शरीर पर पुष्पचक्र अर्पित किए।

श्रद्धांजलि कार्यक्रम को संक्षिप्त रूप से भाजपा संसदीय दल के अध्यक्ष श्री लालकृष्ण आडवाणी ने संबोधित करते हुए कहा कि नानाजी ने समाज सेवा का संकल्प लिया और उस पर आजीवन चलते रहे। इस कार्य के लिए उन्होंने राजनीति के पथ का भी त्याग कर दिया। वह सभी के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। इस अवसर पर दधीचि देहदान समिति के अध्यक्ष आलोक कुमार ने नानाजी देशमुख के पार्थिव शरीर को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान को सौंपने की संपूर्ण प्रक्रिया के बारे में शोकाकुल लोगों को जानकारी दी।

तत्पश्चात् नानाजी की पार्थिव देह को काफिले के साथ अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ले जाया गया जहां उसे अंतिम रूप से चिकित्सा अनुसंधान के कार्यों के लिए चिकित्सकों को सौंप दिया गया। नानाजी ने चूंकि अपनी वसीयत में देहदान की प्रक्रिया को ही अंतिम संस्कार की प्रक्रिया कहकर संबोधित किया है, अतएव इसे ही अंतिम संस्कार मानकर कार्यकर्ता अपने-अपने गंतव्य की ओर लौट गए। उल्लेखनीय है कि नानाजी नई दिल्ली की सेवा संस्था दधीचि देहदान समिति के प्रथम देहदानी थे। इस संदर्भ में अपनी अंतिम वसीयत की पंक्तियों में जो मनोभाव उन्होंने प्रकट किए थे, प्रस्तुत है उसका अविकल पाठ- संपादक

नानाजी देशमुख की अंतिम वसीयत

मैं नाना देशमुख पुत्र स्वर्गीय श्री अमृतराव देशमुख,निवासी दीनदयाल शोध संस्थान, 7-ई, स्वामी रामतीर्थ नगर, रानी झांसी मार्ग, नयी दिल्ली-110055, आज दिनांक 11 अक्तूबर, 1997 को दिल्ली में यह अपनी अंतिम वसीयत घोषित करता हूं।

1-मेरी यह मानव देह मानवमात्र की सेवा करने के लिए सर्वशक्तिमान परमात्मा द्वारा वरदान के रुप में मुझे प्राप्त है। उसी की अनुकंपा से मैं आज तक इस देह द्वारा मानव सेवा करता आया हूं। मेरी मृत्यु के बाद भी इस देह का जरूरतमंदों के लिए उपयोग किया जाए, यह मेरी एकमेव अभिलाषा है।

2-मैंने इस विषय पर गंभीरता से विचार किया है। अपने सहयोगियों एवं हितचिंतकों से भी चर्चा की है। स्वस्थ मन, संतुलित मस्तिष्क एवं सुदीर्घ चिंतन के उपरांत मैं स्थिर मति होकर अपने इस शरीर को निम्न प्रकार से अर्पित करता हूं।

3-मैं एतद् द्वारा अपनी मृत्यु के पश्चात् अपनी आंखें, कान ( पर्दा और हड्डियां), गुर्दे एवं दिमागी अवयव मृत्यु होने पर जरूरतमंद लोगों में प्रत्यारोपण के लिए दान करता हूं। मेरी मृत्यु होने के समय तक हुई वैज्ञानिक प्रगति के फलस्वरूप मेरे अन्य अंगों का भी प्रत्यारोपण संभव हुआ तो मेरे शरीर के अन्य अवयव भी प्रत्यारोपण के लिए मैं दान करता हूं।

4-मैं इस विषय के द्वारा अपनी मृत्यु के पश्चात् अपने उपरोक्त व अन्य सभी अंगों को चिकित्सकीय उपयोग के लिए निकालने का अधिकार उस कार्य के लिए सक्षम व्यक्तियों को देता हूं। यह अधिकार मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम 1994 की धारा 3 के अन्तर्गत भी दिया गया माना जाए। यह दान एवं अधिकार निश्चित, अपरिवर्तनीय और किसी भी अवस्था में वापस नहीं हो सकेगा।

5-मैं एतद् द्वारा शरीर के शेष अवयवों को किसी भी ऐसे मेडिकल कॉलेज या अन्य संस्था को दान करता हूं जहां इसकी चिकित्सकीय या वैज्ञानिक शोध के लिए आवश्यकता हो। मैं चाहता हूं कि मेरे साथी और अन्य संबंधी लोग कृपया इस दान को ही मेरे शरीर का अंतिम संस्कार मानें। यह मेरे जीवन की चिरवांछित अभिलाषा रही है। किसी भी अन्य प्रकार की विधि की आवश्यक्ता इस देहदान की विधि के बाद न समझें।

6- मैंने, अपनी मृत्यु के स्थान से, मेरी देह को उपयुक्त मेडिकल कॉलेज, अस्पताल या अन्य उपयुक्त संस्थान तक पहुंचाने के लिए रु.11000/-( ग्यारह हजार रुपये) ड्राफ्ट क्रमांक824243 दिनांक- 12-9-1997 बैंक शाखा-भारतीय स्टेट बैंक, झंडेवालान एक्सटेंशन, नयी दिल्ली द्वारा दधीचि देहदान समिति को सौंप दिया है।

मैं श्री आलोक कुमार, अध्यक्ष-दधीचि देहदान समिति, 150, डी.डी.ए. फ्लैट्स, मानसरोवर पार्क, शहादरा, दिल्ली-110032 को इस वसीयत का निष्पादक नियुक्त करता हूं। यह निष्पादन यथासंभव अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के द्वारा कराने का प्रयास करें।

मैंने अपने इस वसीयत पत्र पर आज उपरोक्त दिनांक और स्थान पर मेरी पुत्री श्रीमती कुमुद सिंह एवं पुत्र हेमन्त पाण्डे की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए हैं। इन दोनों ने मेरे अनुरोध पर मेरी व परस्पर की उपस्थिति में इस इच्छा पत्र पर गवाह के नाते हस्ताक्षर किए हैं।

नाना देशमुख
11 अक्तूबर, 1997, दिल्ली

हिन्दू एक संस्कृति है : मोहनराव भागवत

भोपाल, 27 फरवरी (हि.स.)। हिन्दू कहने से किसी समाज विशेष का ही चरित्र नहीं मिलता बल्कि भारत की पहचान ही हिन्दुस्थान के नाम से विश्व में सर्वत्र है। हिन्दू एक संस्कृति है, जिसमें मत-पंथ की भिन्नता के बावजूद सभी समाहित हैं। सिंधू सभ्यता से जुडा हुआ यह शब्द सम्बोधन के स्तर पर प्रत्येक भारतीय के लिए बोला जाता है।

यह बात अनौपचारिक चर्चा में सम्पादकों से बातचीत के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन राव भागवत ने कही। उन्होंने कहा कि हिन्दू होने के तीन आधार संघ मानता है। अपनी मातृभूमि के प्रति समर्पण, भारत की महान्-संत परम्परा और पूर्वजों के प्रति श्रृध्दाा का भाव तथा यहाँ की संस्कृति से जोडकर स्वयं को देखने की ह्ष्टि का होना। एक मातृभूमि के स्तर पर भारत के प्रत्येक नागरिक में प्राय: यह तीनों ही भाव गूढतम आर्थों में समाहित हैं। इसलिए संघ मानता है कि भारत में रहने वाले सभी हिन्दू हैं और उनकी जो परस्पर गुँथी हुई सांस्कृतिक धारा है वह हिन्दुस्थान की संस्कृति है।

वर्तमान राजनीति परिह्श्य पर उन्होंने कहा कि राजनीति में आ रहे युवाओं से आशा की जा सकती है कि वह महान् और शक्तिशाली भारत का निर्माण करेंगे उनके अनुसार आज जो राजनीति में युवा आ रहे हैं उनमें अपने देश के भिन्न हालातों से उत्पन्न कमियों को देकर क्षोभ है। वह इन्हें दूर कर सशक्त और सृह्ढ भारत का स्वप्न देखते हैं। राजनीति में आ रही युवा पीढी यह मानकर चल रही हैकि भारत के र्स्वागीण विकास के मापदण्डों के बीच राजनीति को नकारा नहीं जा सकता, बल्कि इसके बलबूते वह देश को सशक्त राष्टन् बना सकते हैं।

श्री भागवत ने हिन्दू समाज का संगठित स्वरूप क्यों ? इस पर श्री विस्तार से अपनी बात कही। उनका कहना था कि सशक्त हिन्दू समाज ही शक्तिशाली भारत का निर्माण कर सकता है क्योंकि सम्पूर्ण विश्व में भारत की पहचान हिन्दू समाज के कारण है। उनके अनुसार हिन्दूसमाज के उत्थान से ही विश्व शांति और सौहार्द की ओर बढेगा वहीं जिस वैश्विक कल्याण की भावना से ओतप्रोत इस हिन्दू समाज रचना के पीछे का ताना बना है वह भी साकार होगा। इसके अलावा सरसंघचालक श्री भागवत ने यह भी बताया कि समाज जीवन से जुडा आज कोई क्षेत्र शेष नहीं है जहाँ संघ के स्वयंसेवक सेवा कार्यों में रत न हों अर्थात समाज सेवा से जुडे प्रत्येक क्षेत्र में आज संघ के स्वयंसेवक तन समर्पित, मन समर्पित और यह जीवन समर्पित की भावना और प्रेरणा से प्रेरित होकर दिन रात कार्य में लगे हुए हैं।

सभ्य मन की अनग अभिव्यक्ति है होली – जयप्रकाश सिंह

भारतीय मनीषीयों ने ईवर की अनुभूति ‘रसो वै सः’ के रुप में की है । चरम अनुभति को रसमय माना है । यही मनीषी ईवर को सिच्चदानंद भी कहता है । यानी भारतीय मानस के लिए ईवर और आनंद की अनुभूतियां अलग अलग नहीं हैं । होली भारतीय चित द्वारा इसी रस की स्वीकृति और अभिव्यक्ति है । होली आधुनिक बुद्धिजीवियों की उस संकल्पना पर करारा वार करती है जिसके अनुसार परम्परागत भारतीय समाज आनंद की अनुभूति से विमुख है । और इस समाज में आनंद की स्वीकृति और अभिव्यक्ति के लिए कोई ‘स्पेस’ नहीं है । पश्चमी नजरिए में रचे पगे इन बुद्धिजीवियों को होली की रंगीनमिजाजी आकर्षित नहीं करती। जिस समाज में प्राचीनकाल से ही कौमुदी महोत्सव मनाए जाने की परम्परा रही है, वह समाज रस और आनंद से विमुख कैसे हो सकता है । आज की विद्वतमण्डली यदि होली और कौमुदी महोत्सव को भूलकर वैलेण्टाइन डे को अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए जरुरी मानती है तो यह उसकी आत्मविस्मृति और आत्महीनता की स्थित को ही दर्शाती है । हां, यह बात जरुर है कि भारत ने आनंद की अपनी अलग परिभाषा दी और आनंद की अनुभूति के अपने तौर तरीके भी विकसित किए। यह तरीके सामान्यबोध अथवा कॉमनसेंस पर आधारित है और सामाजिक चौखटों का भी इसमें धयान दिया जाता है । भारतीय लोकपरम्परा इस बात पर बल देती है कि ‘चौकी’ का काम ‘चौके’ पर और ‘चौके’ का काम ‘चौकी’ पर नहीं करना चाहिए। यह समाज व्यवस्था को बनाए रखने की दृश्टि से आवश्यक है । सामाजिक स्वास्थ्य को बनाए रखते हुए ‘रसास्वादन’ करना भारत की एक प्रमुख विशेषता है । पश्चमी लोग आज भी आनंद की अनुभूति के संदर्भ में व्यक्ती और समाज के बीच ऐसा संतुलन नहीं स्थापित कर सके हैं । इसीलिए, अपनी आंख पर पश्चमी चश्मा लगाए लोगों को यह बात असम्भव लगती है कि परिवार और समाज के दायरे में रहकर भी आनंद लिया जा सकता है । बुद्धिजीवियों के इस वर्ग की मानसिकता को समझने के लिए अंगरेजी मीडिया को केस स्टडी के रुप में लिया जा सकता है । अंगरेजी मीडिया में अंगरेजी मानिसिकता के लोग ही हावी हैं । इसीलिए, अंगरेजी मीडिया में कभी भी होली के त्योहार को आनंद के त्योहार के रुप में नहीं परोसा जाता। कुछ रंग बिरंग समाचार और चित्र जरुर चिपका दिए जाते हैं । होली का त्योहार अपने में आनंद का दर्शन समाहित किए हुए है। इस दर्शनशास्त्र को भारतीय संदर्भों में पहचानने और व्याख्यायित करने की कोशिश अंगरेजी मीडिया कभी नहीं करती । बसंत क्या है, इस मौसम में आम जनमानस क्यों उल्लासित होता है, उसकी बसंत ऋतु को लेकर क्या अवधारणाएं और परंपराएं हैं, इन बातों से अंगरेजी मीडिया का कुछ भी लेना देना नहीं होता ।

ये लेखक लोग भी होली के उत्साह को भांप नहीं पाते । या भांपकर भी इस लोक उत्साह को पिछडे एवं गंवारु लोगों के मन की अनग अभिव्यक्ति मान लेते हैं । वस्तुतः ऐसा नहीं है । होली सुसंस्कृत मन की अनग अभिव्यक्त है । भारतीय लोक परम्परा के अद्वितीय अन्वोक विद्यानिवास मिश्र ने भारतीय लोकमानस का अवधूत भगवान शिव का प्रतिबिम्ब माना है । भगवान शिव का बाहरी रुप अनग है । गले में सांप है । पूरे तन भस्म से लिपटा हुआ है । भूत बैताल उनके सभासद है ।बाहर से वह बहुत भयावह हैं । लेकिन अंतःकरण विपायी है । भगवान शिव साक्षात योगीवर हैं और आाशुतोष हैं । जल्दी से प्रसन्न होकर किसी को कोई भी वरदान दे सकते हैं । इसी तरह भारतीय मन बाहर से देखने में तो अनग लगता है लेकिन अंदर से वह सभ्य है । होली इसी भारतीय मन का एक त्योहार के रुप में पूर्ण प्रकटीकारण है ।

होली उसी भारतीय लोकमानस की अभिव्यक्ति है जो अब भी परम्परा को सींच रहा है और उससे रस भी ले रहा है। होली के मन को समझने के लिए गांव का मन समझना जरुरी है । होली वास्तव में गंवई मन की ही अभिव्यक्ति है । गांव में आज भी किसी एक व्यक्ति के बीमार पडने पर सभी ग्रामीण हाल चाल पूछने जाते हैं । किसी झोपडी में आग लगने पर पूरे गांव के लोग अपने बर्तन लेकर आग बुझाने का चल देते हैं । यह गंवई मन दमकल विभाग को फोन कर अपने कर्तव्य की इतिश्री नहीं समझ लेता । होली उस सामूहिक मन की अभिव्यक्ति है जो आज भी बसंत के आगमन पर बसंत और विरह के गीत गाता है । होली उन होलियारों के मन की अभिव्यक्ति है जो आज भी गांव के हर घर के सामने जाकर ‘कबीरा सरारार..’ कहता है । गांव की भाभियों से होली खेलने के लिए मान मनौव्वल भी करता है और घंटो धारना प्रदर्शन भी। यह टोली तभी आगे बढती है जब घर की नई नवेली बहू के साथ होली खेलने का मौका मिल जाए ।

इन होलिहारों के होली खेलने के तरीके को आप अनग कह सकते हैं । ये केवल आपको रंग ‘लगाएंगे’ नहीं । रंगों से आपको ‘रंगदेंगे ’और रंगों से सराबोर कर देंगे । कभी कभी तो दस बीस होलिहारे आपको ‘पटक’ कर रंग लगाएंगे । इतना सब कुछ होने के बाद आपको गोद में उठाकर हवा में भी लहराएंगे और भावातिरेक में गले भी मिलेंगे । इसके बाद दिन के दूसरे पहर यही होलिहारे आपको प्रसिद्ध लोक कवि शारदा प्रसाद सिंह की पंक्तियां ‘नियरान बसंत कंत न पठए पतिया’ गाते हुए मिल जाएंगे ।

इस गंवई सभ्य मन के आनंद को आज का तथाकथित सभ्य समाज कैसे समझ सकता है जो शाम को किसी से काम निकालने के लिए सुबह नमस्ते करता है। इस समाज में ‘जैरमी’ भी बिना कारण नहीं होती । वैसे गंवई मन के इस होली भाव को आप क्या कहेंगे । सभ्य या असभ्य !