रिश्तों की अंधी दुनिया में गुम होती किशोर पीढ़ी
Updated: November 1, 2023
– ललित गर्ग – सोशल मीडिया, मोबाइल एवं संचार-क्रांति से दुनिया तो सिमटती जा रही लेकिन रिश्तों में फासले बढ़ते जा रहे हैं। भौतिक परिवर्तनों,…
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हादसों की खूनी सड़कों पर डरावनी रिपोर्ट
Updated: November 1, 2023
– ललित गर्ग- सड़क हादसों पर सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की की डरावनी, चिन्ताजनक एवं भयावह रिपोर्ट आई है। इसके मुताबिक, पिछले साल 4.61…
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मध्यप्रदेश को बीमारु राज्य की श्रेणी से बाहर निकाला है प्रदेश के किसानों ने
Updated: November 1, 2023
भारत में लगभग 60 प्रतिशत आबादी आज भी ग्रामीण इलाकों में निवास करती है एवं इसमें से बहुत बड़ा भाग अपनी आजीविका के लिए कृषि क्षेत्र पर निर्भर है। यदि ग्रामीण इलाकों में निवास कर रहे नागरिकों की आय में वृद्धि होने लगे तो भारत के आर्थिक विकास की दर को चार चांद लगाते हुए इसे प्रतिवर्ष 10 प्रतिशत से भी अधिक किया जा सकता है। इसी दृष्टि से केंद्र सरकार लगातार यह प्रयास करती रही है कि किसानों की आय को किस प्रकार दुगुना किया जाय। इस संदर्भ में कई नीतियों एवं सुधार कार्यक्रमों को लागू करते हुए किसानों की आय को दुगुना किये जाने के भरसक प्रयास किए गए हैं। अप्रेल 2016 में इस सम्बंध में एक मंत्रालय समिति का गठन भी केंद्र सरकार द्वारा किया गया था एवं किसानों की आय बढ़ाने के लिए सात स्त्रोतों की पहचान की गई थी, इनमे शामिल हैं, फसलों की उत्पादकता में वृद्धि करना, पशुधन की उत्पादकता में वृद्धि करना, संसाधन के उपयोग में दक्षता हासिल करते हुए कृषि गतिविधियों की उत्पादन लागत में कमी करना, फसल की सघनता में वृद्धि करना, किसान को उच्च मूल्य वाली खेती के लिए प्रोत्साहित करना (खेती का विविधीकरण), किसानों को उनकी उपज का लाभकारी मूल्य दिलाना एवं अधिशेष श्रमबल को कृषि क्षेत्र से हटाकर गैर कृषि क्षेत्र के पेशों में लगाना। उक्त सभी क्षेत्रों में केंद्र सरकार द्वारा किए गए कई उपायों के अब सकारात्मक परिणाम दिखाई देने लगे हैं एवं कई प्रदेशों में किसानों के जीवन स्तर में सुधार दिखाई दे रहा है, किसानों की खर्च करने की क्षमता बढ़ी है एवं कुल मिलाकर अब देश के किसानों का आत्मविश्वास बढ़ा है। इस संदर्भ में मध्यप्रदेश में किसानों ने भी आगे बढ़कर प्रदेश के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने का भरपूर प्रयास किया है। आज से कुछ वर्ष पूर्व तक मध्यप्रदेश की गिनती देश के बीमारु राज्यों की श्रेणी में की जाती थी। बीमारु राज्यों की श्रेणी में मध्यप्रदेश के अलावा तीन अन्य राज्य भी शामिल थे, यथा, बिहार, राजस्थान एवं उत्तरप्रदेश। इन राज्यों को बीमारु राज्य इसलिए कहा गया था क्योंकि इन राज्यों में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर बहुत कम थी एवं औसत प्रति व्यक्ति आय बहुत कम होने के चलते गरीबी से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों की संख्या भी बहुत अधिक थी। इसके कारण, इन प्रदेशों में अशिक्षा की दर अधिक थी, ग्रामों में चिकित्सा सहित अन्य सुविधाओं का नितांत अभाव था तथा इन प्रदेशों में जनसंख्या वृद्धि दर भी तुलनात्मक रूप से अधिक थी। कुल मिलाकर, ये प्रदेश कुछ ऐसी विपरीत परिस्थितियों में फसें हुए थे कि इन प्रदेशों में विकास की दर को बढ़ाना बहुत ही मुश्किलों भरा कार्य था, इसलिए इन्हें बीमारु राज्य बोला जाता था। मध्यप्रदेश की आर्थिक व्यवस्था भी मुख्य रूप से कृषि क्षेत्र पर आधारित है। प्रदेश में लगभग दो तिहाई आबादी ग्रामों में निवास करती है एवं यहां लगभग 54 प्रतिशत जनसंख्या अपनी आजीविका के लिए कृषि क्षेत्र पर निर्भर है। वर्ष 2005-06 से 2014-15 के दौरान मध्य प्रदेश ने कृषि के क्षेत्र में औसतन 9.7 प्रतिशत की वृद्धि दर अर्जित की है। इसके बाद के 5 वर्षों के दौरान तो कृषि क्षेत्र में औसत विकास दर बढ़कर 14.2 प्रतिशत प्रतिवर्ष की रही है। यह पूरे देश में सभी राज्यों के बीच कृषि क्षेत्र में अर्जित की गई सबसे अधिक विकास दर है। आज मध्य प्रदेश कई उत्पादों की पैदावार में देश में प्रथम स्थान पर आ गया है। उदाहरण के तौर पर, संतरा (देश के कुल उत्पादन में मध्य प्रदेश का हिस्सा लगभग 30 प्रतिशत है), चना (लगभग 45 प्रतिशत), सोयाबीन (लगभग 57 प्रतिशत), लहसुन (लगभग 32 प्रतिशत) एवं टमाटर (लगभग 16 प्रतिशत) के उत्पादन में मध्य प्रदेश, पूरे देश में, प्रथम स्थान पर आ गया है। दलहन और तिलहन उत्पादन में भी क्रमशः 24 प्रतिशत एवं 25 प्रतिशत के योगदान के साथ मध्यप्रदेश देश में प्रथम स्थान पर है। इसी प्रकार, गेहूं (लगभग 19 प्रतिशत), प्याज (लगभग 15 प्रतिशत), हरा मटर (लगभग 20 प्रतिशत), अमरूद (लगभग 14 प्रतिशत) एवं मक्का (लगभग 12 प्रतिशत) के उत्पादन में मध्य प्रदेश, पूरे देश में द्वितीय, स्थान पर आ गया है। साथ ही, धनिया (लगभग 19 प्रतिशत), लाल मिर्ची (लगभग 7 प्रतिशत), सरसों एवं दूध के उत्पादन में मध्य प्रदेश, पूरे देश में, तीसरे स्थान पर आ गया है। कुल मिलाकर भारत के कुल खाद्यान उत्पादन में मध्यप्रदेश लगभग 7.7 प्रतिशत का योगदान देता है। खाद्य पदार्थों के उत्पादन के मामले में उत्तरप्रदेश के बाद आज मध्यप्रदेश पूरे देश में दूसरे नम्बर पर है। मध्यप्रदेश सरकार ने दरअसल ग्रामीण क्षेत्रों में कई प्रकार की सुविधाएं किसानों को उपलब्ध करायीं हैं जिसके कारण कृषि के क्षेत्र में मध्यप्रदेश ने चहुंमुखी विकास किया है। सबसे पहिले तो सिंचाई की सुविधाओं को वृहद्द स्तर पर गावों में उपलब्ध कराया गया है। मध्यप्रदेश में वर्ष 2000-01 में सिंचाई सुविधाओं का औसत 24 प्रतिशत था, जो कि राष्ट्रीय स्तर के औसत 41.2 प्रतिशत से बहुत ही कम था। परंतु मध्यप्रदेश की सरकार के इस क्षेत्र में मिशन मोड में काम करने के कारण सिंचाई सुविधाओं का औसत स्तर वर्ष 2014-15 में बढ़कर 42.8 प्रतिशत हो गया जो राष्ट्रीय औसत के 47.8 प्रतिशत के काफी करीब पहुंच गया। आज तो यह औसत और भी अधिक आगे आ गया है और प्रदेश में सिंचाई क्षमता 47 लाख हेक्टेयर से अधिक हो गई है। साथ ही, किसानों के फसल की बुआई एवं कटाई करते समय जब जब बिजली की आवश्यकता होती है, उसे प्राथमिकता के आधार पर सही समय पर उपलब्ध कराई जाती है। आज तो मध्यप्रदेश के अधिकतर गावों में लगभग 24 घंटे बिजली उपलब्ध है। इन सबके ऊपर, प्रदेश के सारे गावों को सभी मौसमों में 24 घंटे उपलब्ध रोड के साथ जोड़ दिया गया है। मध्यप्रदेश में आज सड़कों की लम्बाई 5 लाख किलोमीटर से अधिक हो गई है। साथ ही साथ, गेहूं की खरीद पर प्रदेश सरकार की ओर से विशेष बोनस किसानों को उपलब्ध कराया गया है, जिसके चलते किसान गेहूं की फसल को बोने की ओर प्रेरित हुए हैं एवं गेहूं के उत्पादन में मध्यप्रदेश पूरे देश में द्वितीय स्थान पर आ गया है। कृषि उत्पादों की भंडारण क्षमता में भी मध्यप्रदेश ने अभूतपूर्व प्रगति की है, जिसके चलते इन उत्पादों के नुकसान में काफी कमी देखने में आई है। मध्यप्रदेश में विभिन्न कृषि उत्पादों की फसल बढ़ाने के उद्देश्य से जिला स्तर पर उत्पाद विशेष के समूह विकसित किये गए हैं, जिसके चलते उस उत्पाद विशेष का उत्पादन इन जिलों में बहुत तेजी से बढ़ने लगा है। जैसे, मंदसौर, नीमच, राजगढ़, शाजापुर, देवास, सिहोर आदि जिलों में संतरे की खेती को प्रोत्साहन दिया गया है। अमरूद की खेती बढ़ाने के उद्देश्य से मुरेना, श्योपुर, रतलाम, उज्जैन, शाजापुर, सिहोर, सागर, विदिशा, आदि जिलों में समूह विकसित किए गए हैं। इसी प्रकार, केला के उत्पादन के लिए, बुरहानपुर, खरगोन, बड़वाह, खंडवा, हरदा, धार, आदि जिले विकसित किए गए हैं। आलू के उत्पादन हेतु मुरेना, ग्वालियर, शिवपुरी, राजगढ़, शाजापुर, उज्जैन, इंदौर, देवास आदि जिलों में समूह बनाए गए हैं। हरे मटर का उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से ग्वालियर, दतिया, सागर, जबलपुर, नरसिंहपुर, सिवनी, छिंदवाड़ा आदि जिलों में समूहों का गठन किया गया है। इसी प्रकार, लाल मिर्ची, धनिया, लहसुन, आम, अनार, प्याज, टमाटर, आदि उत्पादों हेतु भी प्रदेश के विभिन्न जिलों को उस फसल के समूह के तौर पर विकसित किया गया है। इस पद्धति के चलते भी प्रदेश में इन फलों, सब्जियों आदि का उत्पादन बहुत तेज गति से आगे बढ़ा है। मध्यप्रदेश न केवल उत्पादन के मामले में बल्कि कृषि उत्पादों के निर्यात के मामले में भी चहुमुखी तरक्की की है। मध्यप्रदेश में उत्पादित शरबती गेहूं तो आज पूरे विश्व में अपनी धाक जमा चुका है। इसी प्रकार, मध्यप्रदेश में उत्पादित फलों एवं सब्जियों यथा, संतरे, आम, अमरूद, केला, अनार, प्याज, टमाटर, आलू, मटर, लहसुन, लाल मिर्ची, धनिया, सोयाबीन, चना, आदि की मांग अब वैश्विक स्तर पर होने लगी है। मध्यप्रदेश से समस्त उत्पादों का निर्यात 65,000 करोड़ रुपए के स्तर को पार कर गया है। विश्व में मुख्यतः पश्चिमी राष्ट्रों ने सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर तेज करने के लिए औद्योगिक विकास का सहारा लिया है। अर्थशास्त्र में ऐसा कहा भी जाता है कि कृषि क्षेत्र के विकसित अवस्था में आने के बाद औद्योगिक विकास एवं सेवा क्षेत्र के सहारे ही सकल घरेलू उत्पाद में तेज वृद्धि दर्ज की जा सकती है। परंतु, मध्यप्रदेश राज्य ने एक अलग ही राह दिखाई है एवं कोरोना महामारी के पूर्व के खंडकाल में लगातार 5 वर्षों के दौरान कृषि क्षेत्र में 14 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर अर्जित कर अपने सकल घरेलू उत्पाद में तेज गति से वृद्धि दर्ज करने में सफलता पाई है। मुख्यतः कृषि क्षेत्र में की गई प्रगति के सहारे ही मध्यप्रदेश का सकल घरेलू उत्पाद वर्ष 2019-20 में बढ़कर 9.37 लाख करोड़ रुपए का हो गया है। प्रति व्यक्ति आय भी अब बढ़कर 140,000 प्रति वर्ष हो गई है। मध्यप्रदेश की सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर विगत 10 वर्षों के दौरान राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर से अधिक ही रही है। कुल मिलाकर मध्यप्रदेश ने कृषि क्षेत्र में अतुलनीय विकास के लिए आधारभूत ढांचा खड़ा किया है, जिससे किसानों को अपनी फसल को उगाने से लेकर बाजार में बिक्री करने तक, बहुत आसानी हो रही है। मध्यप्रदेश राज्य का पूंजीगत खर्च वर्ष 2007 में केवल 6,832 करोड़ रुपए का रहा था जो इस वर्ष बढ़कर 56,000 करोड़ रुपए का होने जा रहा है। प्रहलाद सबनानी
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वैश्विक स्तर पर भारतीय सनातन संस्कृति के पालन से ही शांति सम्भव
Updated: October 30, 2023
आज पूरे विश्व में अशांति एवं अराजकता का माहौल है। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध चल ही रहा था कि हमास और इजराईल के बीच युद्ध प्रारम्भ हो गया है एवं इस युद्ध में लेबनान एवं सीरिया भी कूद पड़े हैं। इधर चीन की विस्तारवादी नीतियों के चलते उसके अपने लगभग सभी पड़ौसी देशों के साथ सम्बंध अच्छे नहीं चल रहे हैं। ताईवान, मंगोलिया, जापान, इंडोनेशिया, फिलिपीन, नेपाल, भूटान, म्यांमार, भारत आदि जैसे शांतिप्रिय देश भी आज चीन की नीतियों से बहुत परेशान हैं। एक तरफ तो विकसित देश अपनी आर्थिक नीतियों के असफल होने के कारण कई प्रकार की आर्थिक एवं सामाजिक परेशानियों से जूझ रहे हैं, तो दूसरी ओर अफ्रीकी महाद्वीप क्षेत्र में कई देश अभी भी आर्थिक विकास को तरस रहे हैं और इन देशों के नागरिक गरीबी का जीवन जीने को मजबूर हैं। कुल मिलाकर पूरे विश्व में ही त्राहि त्राहि मची हुई है। इन समस्त विपरीत परिस्थितियों के बीच आज भारत की आर्थिक विकास दर विश्व की समस्त बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच लगातार सबसे तेज बनी हुई है, क्योंकि भारत आज अपनी सनातन संस्कृति का पालन करते हुए ही आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, आदि क्षेत्रों में कार्य करता हुआ दिखाई दे रहा है एवं इसके चलते भारत आज कई क्षेत्रों में पूरे विश्व को राह दिखा रहा है। वैसे भी किसी भी राष्ट्र के मूल में कुछ तत्व निहित होते हैं, जिनके बल पर वह देश आगे बढ़ता है और समाज के विभिन्न वर्गों को एकता के सूत्र में पिरोए रखता है। भारत के एक राष्ट्र के रूप में, इसके मूल में, सनातन हिंदू संस्कृति का आधार है जो हजारों वर्षों से भारत को आज भी भारत के मूल रूप में ही जीवित रखे हुए है। अन्यथा, पिछले लगभग 1000 वर्षों में भारत को तोड़ने के लिए अरब के आक्रांताओं और अंग्रेजों के द्वारा अनेकानेक प्रयास किए गए हैं। अरब के आक्रांताओं एवं अंग्रेजों ने बहुत अधिक प्रयास किए कि किसी तरह भारतीय मूल संस्कृति को तहस नहस किया जाय, शिक्षा पद्धति को ध्वस्त किया जाय, बलात हिंदुओं का धर्म परिवर्तन किया जाय, आदि आदि। इन प्रयासों में उन्हें कुछ सफलता तो अवश्य मिली परंतु पूर्ण रूप से भारतीय संस्कृति को समाप्त नहीं कर पाए। जबकि कई अन्य देशों (ईरान, लेबनान, इंडोनेशिया, मिस्त्र, ग्रीक आदि) में इनके यही प्रयास पूर्ण रूप से सफल रहे एवं वहां के लगभग सम्पूर्ण नागरिकों को इस्लाम में परिवर्तित करने में वे सफल रहे। भारत में चूंकि सनातन हिंदू धर्म का बोलबाला है अतः यहां इन तत्वों को आज तक सफलता नहीं मिली है हालांकि इनके प्रयास अभी भी जारी हैं। अंग्रेजों ने जब भारत पर शासन करना प्रारम्भ किया तो उनका अज्ञानतावश यह सोच था कि यहां के नागरिक कुछ जानते ही नहीं है और इनकी विज्ञान के प्रति कोई समझ ही नहीं है।उनका यह भी सोच था कि भारत कई राज्यों का एक समूह है और यह एक राष्ट्र नहीं है। अंग्रेज तो यह भी सोचते थे कि भारत कभी एक राष्ट्र नहीं रहा है, ना ही अभी यह एक राष्ट्र है और न ही कभी भविष्य में यह एक राष्ट्र रह पाएगा। क्योंकि यहां तो विभिन्न राजा राज्य करते हैं और उनके राज्यों की अलग अलग भौगोलिक सीमाएं हैं इसलिए भारत का एक राष्ट्र्र के रूप में कभी अस्तित्व ही नहीं रहा है। अंग्रेज यह भी मानते थे कि पूरे भारत के लोग एक हो जाएंगे यह कभी सम्भव ही नहीं है। अंग्रेज अहंकारवश भारतीयों को अनपढ़, असभ्य एवं रूढ़िवादी तक कहते थे। उनकी नजरों में भारतीयों की कोई एतिहासिक उपलब्धि नहीं है एवं भारत के बर्बर, जंगली लोगों को सभ्यता सिखाने का दायित्व हमारा (अंग्रेजों का) है। भारत के लोग प्रशासन करने के अयोग्य है। किसी कारण से यदि भारत को स्वतंत्र राष्ट्र्र का दर्जा दे दिया तो इस देश की बर्बादी सुनिश्चित है और फिर इसकी जवाबदारी हमारी (अंग्रेजों की) होगी। उनको विशेष रूप से हिंदुओं से बहुत डर लगता था और वे हिंदुओं से सावधान रहने की आवश्यकता पर बल दिया करते थे। उनका सोच था कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत बहुत जल्दी बर्बाद हो जाएगा। भारत में लोकतंत्र जीवित नहीं रह सकता, यह बहुत ही अस्वाभाविक राज्य है। भारत आजाद होते ही कई टुकड़ों में बिखर जाएगा क्योंकि यहां 52 करोड़ लोग हैं एवं इनकी अलग अलग भाषाएं हैं ये आपस में लड़ते रहते हैं और कभी भी एक नहीं रह पाएंगे। भारत आजादी के बाद पूरी दुनिया के लिए एक भार बन जाएगा एवं यहां के नागरिक भूख से ही मर जाएगे। उक्त सोच ब्रिटेन, अमेरिका, लगभग समस्त यूरोपीय देशों सहित कई देशों की भी थी। आज भी आतंकवादी संगठन एवं विदेशी ताकतें जो भारत को अस्थिर करना चाहते हैं वे इसी परिकल्पना पर अपना कार्य प्रारम्भ करते हैं एवं समाज के विभिन्न वर्गों को आपस में लड़ाने का प्रयास करते नजर आते हैं। उक्त वर्णित देशों की यह सोच इसलिए थी क्योंकि उनके पास हिंदू सनातन संस्कृति का कोई ज्ञान नहीं था बल्कि उनकी अपनी पश्चिम रंग में रची बसी सोच थी जो केवल “मैं” में विश्वास करती थी उनके लिए देश मतलब केवल भौगोलिक सीमाओं वाला जमीन का टुकड़ा और उस जमीन के टुकड़े पर रहने वाले लोग ही विशेष हैं। उनके सोच में अहम का भाव कूट कूट कर भरा है। केवल मैं ही श्रेष्ठ हूं। इस दुनिया में रहने वाले बाकी सभी लोग हमसे हीन हैं। जर्मन लोगों ने अपना एक विशेष दर्शन शास्त्र दुनिया के सामने रखा जिसमें उन्होंने किसी और दर्शन को स्वीकार न करते हुए केवल अपने दर्शन को ही श्रेयस्कर माना एवं अहंकार का भाव जाहिर किया। जर्मन, फ्रेंच से भिन्न हैं। यूरोप में प्रत्येक देश ने अपने आप को दूसरे देश से बिलकुल अलग रखा हुआ है। पश्चिम का राष्ट्रवाद एकांतिक है इसमें समावेशिता का नितांत अभाव है। इसीलिए आज रूस, यूक्रेन के साथ लड़ रहा है तो जर्मनी की फ्रांन्स के साथ नहीं बनती है। इसी प्रकार यूरोप के लगभग सभी देशों के आपसी विचारों में किसी न किसी प्रकार की भिन्नता दृष्टिगोचर होती रहती है। जबकि यह लगभग सभी देश ईसाई धर्म को मानने वाले देश हैं। आज कई इस्लामी देश भी पश्चिमी सोच की राह पर चलते हुए दिखाई दे रहे हैं कि केवल हमारा धर्म ही श्रेष्ठ है। इस धरा पर जो भी इस्लाम को नहीं मानता हैं वह काफिर है और उसे जीने का हक नहीं हैं। काफिर या तो इस्लाम को कबूल करे अथवा वह मार दिया जाएगा। और तो और इस्लामी देशों में भी अलग अलग किस्म के कई फिर्के आपस में ही लड़ते झगड़ते रहते हैं एवं एक दूसरे को अपने से श्रेष्ठ सिद्ध करने की कोशिश में लगे रहते हैं। जबकि भारतीय विचारधारा इसके ठीक विपरीत आचरण करना सिखाती है विशेष रूप से सनातन संस्कृति में जो व्यक्ति जितना विशेष होगा वह उतना ही विनयपूर्ण होगा और इस नाते भारतीय सनातन संस्कृति अविभाजनकारी दर्शन पर चलकर सर्वसमावेशी है। इसमें ईश्वरीय भाव जाहिर होता है। जो मेरे अंदर है वही आपके अंदर भी है अर्थात मुझमें भी ईश्वर है और आपमें भी ईश्वर का वास है। इस प्रकार प्रत्येक भारतीय, चाहे वह किसी भी जाति का हो, किसी भी मत, पंथ को मानने वाला हो, अपने आप को भारत माता का सपूत कहने में गर्व का अनुभव करता है। और, इसलिए भारतीय सनातन संस्कृति अन्य संस्कृतियों को भी अपने आप में आत्मसात करने की क्षमता रखती है। इतिहास में इस प्रकार के कई उदाहरण दिखाई देते हैं। जैसे पारसी आज अपने मूल देश में नहीं बच पाए हैं लेकिन भारत में वे रच बस गए हैं। इसी प्रकार इस्लाम धर्म को मानने वाले लगभग सभी फिर्के भारत में निवास करते हैं जबकि विश्व के कई इस्लामी देशों में केवल एक विशेष प्रकार के फिर्के पाए जाते हैं। भारतीय चिंतन धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार स्तंभों पर स्थापित है। इस दृष्टि से चाहे व्यक्ति हो, परिवार हो, देश यो अथवा विश्व हो, किसी के भी विषय में चिंतन का आधार एकांगी न मानकर एकात्म माना जाता है। भारत के उपनिषदों, वेदों, ग्रंथों में भी यह बताया गया है कि मनुष्य का जीवन अच्छे कर्मों को करने के लिए मिलता है एवं देवता भी मनुष्य के जीवन को प्राप्त करने के लिए लालायित रहते हैं। अच्छे कर्म कर मनुष्य अपना उद्धार कर सकता है इसीलिए भारतीय धरा को कर्मभूमि माना गया है जबकि अन्य देशों की धराओं को भोगभूमि कहा गया है। अन्य धर्म, भोग को बढ़ावा देते हैं जबकि हिंदू सनातन संस्कृति योग को बढ़ावा देती है। इस प्रकार हिंदू धर्म के शास्त्रों, पुराणों एवं वेदों में किसी भी जीव के दिल को दुखाने अथवा उसकी हत्या को निषिद्ध बताया गया है जबकि अन्य धर्म के शास्त्रों में इस प्रकार की बातों का वर्णन नहीं मिलता है। इसी कारण के चलते हिंदू धर्म को मानने वाले अनुयायी बहुत कोमल स्वभाव एवं पूरे विश्व में निवास कर रहे प्राणियों को अपने कुटुंब का सदस्य मानने वाले होते हैं। बचपन में ही इस प्रकार की शिक्षाएं हमारे बुजुर्गों द्वारा प्रदान की जाती हैं। भारतीय संस्कृति में एकात्मता का सोच है। भारत पूरे विश्व की मंगल कामना करता है एवं “वसुधैव कुटुम्बकम”, “सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय”, जैसे सिद्धांतो पर विश्वास करता है। चाहे किसी भी व्यक्ति की कोई भी पूजा पद्धति क्यों न हो, पूरे भारत में एक जैसा हिंदू दर्शन है। हिंदू दर्शन ही भारत में राष्ट्र तत्व है जो पश्चिम की सोच से अलग है। हिंदू दर्शन एक मौलिक दर्शन है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, अंग्रेजों एवं अन्य कई देशों की सोच के ठीक विपरीत, विभिन्न मत, पंथों को मानने वाले भारतीय 26 विभिन्न राष्ट्रीय भाषाओं के साथ न केवल सफलतापूर्वक एक दूसरे के साथ तालमेल बिठाकर आनंद में रह रहे हैं बल्कि आज भारतीय लोकतंत्र पूरे विश्व में सबसे बड़े मजबूत लोकतंत्र के रूप में अपना स्थान बना चुका है। यह केवल सनातन हिंदू संस्कृति के कारण ही सम्भव हो सका है। सनातन हिंदू संस्कृति में एकात्मता का भाव मुख्य रूप से झलकता है। अतः वर्तमान में आतंकवादियों एवं अन्य कई देशों द्वारा पूरे विश्व में अस्थिरता फैलाने के जो प्रयास किए जा रहे हैं उन्हें भारतीय सनातन हिंदू संस्कृति के दर्शन को अपनाकर ही पूर्णतः दबाया जा सकता है। वैसे हाल ही के समय में कई देशों यथा, जापान, रूस, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, इंडोनेशिया आदि आदि में भारतीय संस्कृति के प्रति रूझान बढ़ता जा रहा है। अब तो विश्व के कई विकसित देशों को भी यह आभास होने लगा है कि भारतीय सनातन संस्कृति इस धरा पर सबसे पुरानी संस्कृतियों में एक है और भारतीय वेदों, पुराणों एवं पुरातन ग्रंथों में लिखी गई बातें कई मायनों में सही पाई जा रही हैं। इन पर विश्व के कई बड़े बड़े विश्वविद्यालयों में शोध किए जाने के बाद ही यह तथ्य सामने आ रहे है। अतः कई देशों को अब यह आभास होने लगा है कि भारतीय सनातन संस्कृति को अपनाकर ही विश्व में शांति स्थापित की जा सकती है।
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कृषि एवं पशुपालन में विशेष पहचान रखने वाला सरहदी गांव मंगनाड
Updated: October 30, 2023
भारती देवीपुंछ, जम्मू हर एक व्यक्ति या स्थान अपनी विशेष पहचान रखता है. चाहे वह पहचान छोटी हो या बड़ी. ऐसा कोई स्थान नहीं है…
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अब मासिक धर्म चक्र तक पर असर डाल रहा है वायु प्रदूषण
Updated: October 30, 2023
राखी गंगवार सुनने में अजीब लग सकता है लेकिन अमेरिका में एमोरी यूनिवर्सिटी और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने बचपन में वायु प्रदूषण के संपर्क…
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भारत में बैंक ऋण का उपयोग उत्पादक कार्यों हेतु दक्षता के साथ हो रहा है
Updated: October 30, 2023
भारत में तेज गति से हो रही आर्थिक प्रगति के चलते व्यवसाईयों, कृषकों, उद्यमियों, उद्योगों, सेवाकर्मियों एवं नागरिकों की, उनकी आर्थिक एवं अन्य गतिविधियों के लिए, पूंजी की आवश्यकता लगातार बढ़ती जा रही है। वर्तमान केंद्र सरकार ने इस ओर ध्यान देते हुए विशेष रूप से सरकारी क्षेत्र की बैंकों को तैयार किया है कि वे देश के समस्त नागरिकों को ऋण के रूप में धन अथवा पूंजी आसान शर्तों पर उपलब्ध कराएं ताकि देश के आर्थिक विकास को बल मिल सके। ऋण का उपयोग यदि उत्पादक कार्यों के लिए किया जाता है एवं इससे यदि धन अर्जित किया जाता है तो बैकों से ऋण लेना कोई बुरी बात नहीं है। बल्कि, इससे तो व्यापार को विस्तार देने में आसानी होती है और पूंजी की कमी महसूस नहीं होती है। भारतीय नागरिक तो वैसे भी सनातन संस्कृति के अनुपालन को सुनिश्चित करते हुए अपने ऋण की किश्तों का भुगतान समय पर करते नजर आते हैं इससे बैकों की अनुत्पादक आस्तियों में कमी दृष्टिगोचर हो रही है, जून 2023 को समाप्त तिमाही में भारतीय बैंकों में सकल अनुत्पादक आस्तियों का प्रतिशत केवल 3.7 प्रतिशत था। इससे अंततः बैकों की लाभप्रदता में वृद्धि होती है और इन बैकों के पूंजी पर्याप्तता अनुपात में सुधार होता है। जून 2023 को समाप्त तिमाही में भारतीय बैंकों का पूंजी पर्याप्तता अनुपात 17.1 प्रतिशत था जो अमेरिकी बैंकों के पूंजी पर्याप्तता अनुपात से भी अधिक है। साथ ही, वर्तमान ऋण की, समय पर अदायगी से बैकों की ऋण प्रदान करने की क्षमता में भी वृद्धि होती है। अभी हाल ही में भारतीय स्टेट बैंक के आर्थिक अनुसंधान विभाग द्वारा जारी एक प्रतिवेदन में यह बताया गया है कि भारत में वित्तीय वर्ष 2014 से वित्तीय वर्ष 2023 के बीच बैंकों की कुल सम्पति/देयताओं में वृद्धि, वित्तीय वर्ष 1951 से वित्तीय वर्ष 2014 के बीच की तुलना में 1.3 गुणा अधिक रही है। वित्तीय वर्ष 2051 से 2014 के बीच के 63 वर्षों के दौरान भारत की समस्त अनुसूचित व्यावसायिक बैंकों की सम्पति एवं देयताओं में 142 लाख करोड़ रुपए की वृद्धि दर्ज की गई थी, जबकि वित्तीय वर्ष 2014 से 2023 के बीच के 9 वर्षों के खंडकाल में यह वृद्धि 187 लाख करोड़ रुपए की रही है। बैकों द्वारा अधिक मात्रा में प्रदान की जा रही ऋणराशि के चलते ही बैकों की आस्तियों में अतुलनीय वृद्धि दर्ज की गई है। 22 सितम्बर 2023 को समाप्त पखवाड़े के दौरान बैकों द्वारा प्रदान की गई ऋण राशि में 20 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है, इससे बैकों का ऋण जमा अनुपात 78.58 हो गया है। भारत के बैकों की ऋण राशि में हो रही अतुलनीय वृद्धि के बावजूद, भारत में ऋण:सकल घरेलू उत्पाद अनुपात अन्य देशों की तुलना में अभी भी बहुत कम है। हालांकि हाल ही के समय में विनिर्माण इकाईयों की उत्पादन क्षमता का उपयोग बहुत तेजी से बढ़ा है, वित्तीय वर्ष 2022-23 के चौथी तिमाही में विनिर्माण इकाईयों द्वारा अपनी उत्पादन क्षमता का 76.3 प्रतिशत उपयोग किया जा रहा था, जिसके कारण उद्योग जगत को ऋण की अधिक आवश्यकता महसूस हो रही है। बढ़े हुए ऋण की आवश्यकता की पूर्ति भारतीय बैंकें आसानी से करने में सफल रही हैं। यह तथ्य इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि विकसित देशों में भी प्रायः यह देखा गया है कि बैंकों द्वारा प्रदत्त ऋण में वृद्धि के साथ उस देश के सकल घरेलू उत्पाद में भी तेज गति से वृद्धि दृष्टिगोचर हुई है। भारत में भी अब यह तथ्य परिलक्षित होता दिखाई दे रहा है। भारत में आर्थिक गतिविधियों में आ रही तेजी के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में भी ऋण की मांग लगातार बढ़ रही है। फिर भी, भारत में कोरपोरेट को प्रदत ऋण का सकल घरेलू उत्पाद से प्रतिशत वर्ष 2015 के 65 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2023 में 50 प्रतिशत हो गया है। इसका आशय यह है कि इस दौरान कोरपोरेट ने अपने ऋण का भुगतान किया है एवं उन्होंने सम्भवत: अपनी लाभप्रदता में वृद्धि दर्ज करते हुए अपने लाभ का पूंजी के रूप में पुनर्निवेश किया है। साथ ही, कुछ कोरपोरेट का आकार इतना अधिक बढ़ा हो गया है कि उन्होंने अंतरराष्ट्रीय वित्त बाजार से कम ब्याज की दर पर डॉलर में ऋण प्राप्त करने में सफलता पाई है। हालांकि इस बीच भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी बढ़ा है जो वर्ष 2013 में 2200 करोड़ अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2023 में 4600 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है। विभिन्न बैंकों द्वारा प्रदत्त लम्बी अवधि के ऋण सामान्यतः आस्तियां उत्पन्न करने में सफल रहे हैं, जैसे गृह निर्माण हेतु ऋण अथवा वाहन हेतु ऋण, आदि। इस प्रकार के ऋणों के भविष्य में डूबने की सम्भावना बहुत कम रहती है। बैकों द्वारा खुदरा क्षेत्र में प्रदत्त ऋणों में से 10 प्रतिशत से भी कम ऋण ही प्रतिभूति रहित दिए गए हैं जैसे सरकारी कर्मचारियों को पर्सनल (व्यक्तिगत) ऋण, आदि। पर्सनल ऋण प्रतिभूति रहित जरूर दिए गए हैं परंतु चूंकि यह सरकारी कर्मचारियों सहित नौकरी पेशा नागरिकों को दिए गए हैं, जिनकी मासिक किश्तें समय पर अदा की जाती हैं, अतः इनके भी डूबने की सम्भावना बहुत ही कम रहती है। इस प्रकार, यह कहा जा सकता है कि भारत में अब बैकों द्वारा ऋण सम्बंधी व्यवसाय बहुत सुरक्षित तरीके से किया जा रहा है। इसी कारण से हाल ही के समय में यह पाया गया है कि भारतीय बैंकों की अनुत्पादक आस्तियों की वृद्धि पर अंकुश लगा है। यह भी संतोष का विषय है कि हाल ही के समय में भारतीय बैकों से प्रथम बार ऋण लेने वाले नागरिकों की संख्या में भी वृद्धि दर्ज की गई है। इसका आशय यह है कि भारतीय नागरिक जो अक्सर बैकों से ऋण लेने से बचते रहे हैं वे अब बैकों से ऋण लेने के लिए प्रोत्साहित हो रहे हैं क्योंकि इस बीच बैंकों द्वारा प्रदान किए जा रहे ऋण सम्बंधी शर्तों को आसान बनाया गया है। सिबिल द्वारा जारी की गई जानकारी के अनुसार, भारत में वित्तीय वर्ष 2023 को समाप्त अवधि के दौरान प्रदान किए गए कुल पर्सनल ऋणों में 98 प्रतिशत ऋण 50,000 रुपए से अधिक की राशि के थे और केवल 2 प्रतिशत ऋण ही 50,000 रुपए की कम राशि के थे। यह भारत के नागरिकों की आय में लगातार हो रही वृद्धि को दर्शा रहा है। क्योंकि, पर्सनल ऋण सामान्यतः व्यक्ति की किश्त अदा करने की क्षमता के आधार पर प्रदान किया जाता है। इसी प्रकार, भारत में नागरिकों द्वारा क्रेडिट कार्ड के उपयोग में भी वृद्धि दर्ज की गई है और कई नागरिकों द्वारा क्रेडिट कार्ड के विरुद्ध भी ऋण राशि का उपयोग किया जा रहा है। परंतु, इस दृष्टि से भी यह संतोष का विषय है कि भारत में प्रति क्रेडिट कार्ड औसत ऋण की राशि में लगातार कमी दर्ज हो रही है। इसका आशय यह है कि क्रेडिट कार्ड का उपयोग करने वाले नागरिकों द्वारा ऋण की राशि का भुगतान समय पर हो रहा है एवं इस क्षेत्र में चूक की दर अन्य देशों की तुलना में भारत में बहुत कम है। अमेरिका में तो क्रेडिट कार्ड के विरुद्ध लिए गए ऋणों में चूक की दर बहुत अधिक है एवं बैंकों की एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक की राशि इस मद पर बकाया है। कुल मिलाकर भारत के संदर्भ में यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए कि भारतीय नागरिकों में सनातन संस्कृति के संस्कार होने के कारण बैकों से ऋण के रूप में उधार ली गई राशि का समय पर भुगतान किया जाना एक स्वाभाविक प्रक्रिया की तरह माना जाता है, जिसके कारण भारतीय बैंकों के अनुत्पादक आस्तियों की राशि अन्य देशों की बैंकों की तुलना में कम हो रही है। प्रहलाद सबनानी
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दीपमाला पाण्डेय जल जीवन है। यह पढ़ने में बेहद आम सी बात लग सकती है लेकिन बड़ी गहरी बात है। हमारा शरीर 70 प्रतिशत पानी…
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