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रामचरितमानस में श्रीराम दर्शन

डॉ. नीरज भारद्वाज भगवान श्रीराम के दर्शनों के लिए यह मानव रूपी जीव लालायित रहा है। भगवान का धरा धाम पर आना भी एक पूर्ण योजना के आधार पर…

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लोक मेले बचा सकते हैं ग्रामीण कुटीर उद्योगों की सांसें  

अमरपाल सिंह वर्मा राजस्थान सरकार ने हाल ही में ‘विकसित राजस्थान 2047’ विजन डॉक्यूमेंट को मंजूरी दी है। इसमें राज्य को 2047 तक 4.3 ट्रिलियन डॉलर की अर्थ व्यवस्था बनाने का लक्ष्य रखा गया है। यह लक्ष्य न केवल बड़े औद्योगिक निवेश बुनियादी ढांचे के निर्माण पर निर्भर करेगा बल्कि ग्रामीण समाज की भागीदारी पर भी इसमें महत्वपूर्ण है। सरकार गांवों के उत्पादों को वैश्विक पहचान दिलाने की दिशा में कदम बढ़ाने की इच्छुक है। यह सोच निश्चित ही दूरदर्शी है लेकिन बड़ा सवाल है कि इसे जमीन पर उतारने का व्यावहारिक रास्ता क्या है?अगर सरकार की सोच धरातल पर उतरती है तो गांवों में रोजगार को खूब बढ़ावा मिल सकता है। गांवों की महिलाएं बुनाई, कताई और कढ़ाई में माहिर हैं। हजारों परिवार पीढिय़ों से खादी, हस्तशिल्प, मिट्टी के बर्तन, लकड़ी की कलाकृतियां या अन्य घरेलू उद्योग चला रहे हैं. उनकी बिक्री न के बराबर है। गांवों के कुटीर उद्योग केवल रोजगार का साधन नहीं थे, वे हमारी संस्कृति और आत्म निर्भरता की पहचान थे लेकिन बाजार की अनुपलब्धता के कारण ग्रामीण कुटीर उद्योग कमजोर पड़ रहे हैं। बड़ी तादाद में लोग बेरोजगारी और आय की कमी के कारण गांव छोडक़र शहरों का रुख कर रहे हैं।  प्रश्न उठता है कि इस समाधान का क्या है? इस प्रश्न का उत्तर कहीं न कहीं राजस्थान मेला आयोजक संघ के सचिव जगराम गुर्जर के सुझाव में छिपा है। गुर्जर तीन दशक से लोक मेले आयोजित कर रहे हैं। उनका कहना है कि विभिन्न धार्मिक, पर्यटन महत्व के स्थानों सहित अकेले राजस्थान में ही सौ से अधिक लोक मेले हर साल आयोजित होते हैं और देश भर में इनकी संख्या हजारों में है। इन मेलों में हजारों लोग खरीदारी के लिए आते हैं। ऐसे में अगर राज्य के ग्रामीण कुटीर उद्योग, हस्तशिल्प, खादी और ग्रामोद्योग से जुड़े उत्पादों को मेलों में मंच दिया जाए तो कारीगरों को खरीदार और पहचान दोनों मिल सकते हैं।गुर्जर का यह सुझाव इसलिए भी प्रासंगिक है क्योंकि ग्रामीण उत्पादों की सबसे बड़ी समस्या बाजार का अभाव है। अगर ग्रामीणों को इन लोक मेलों में जोड़ दिया जाए तो उन्हें उत्पाद बेचने के लिए बड़ा अवसर मिल सकता है। स्थानीय से वैश्विक तक का सफर इस जरिए से शुरू किया जा सकता है।सरकार को गांवों के उत्पादों को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए चरणबद्ध रणनीति अपनानी होगी। सबसे पहले जरूरी है कि किसी जिले के उत्पाद को उसी जिले में पहचान दिलाई जाए। उसके बाद बड़े मेलों के माध्यम से उसे अन्य जिलों तक पहुंचाया जाए। जब राज्य भर में ब्रांड वैल्यू बने तो उसे राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ाया जाए और अंतत: उसी ब्रांड को वैश्विक बाजार में उतारा जाए, यानी वैश्विक पहचान का रास्ता स्थानीय पहचान से होकर ही जाता है।इस काम में सरकार की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। केवल विजन डॉक्यूमेंट में बड़े लक्ष्य लिख देने से कुछ नहीं हो सकता। सरकार को जिला उद्योग केंद्रों के माध्यम से गांवों के  हस्तशिल्पियों, कारीगरों और बुनकरों का सर्वे कराना चाहिए। उनकी सूची बनाकर उन्हें मेलों में भागीदारी के लिए प्रेरित और सहयोग करना चाहिए। राज्य में लगने वाले मेले महज उत्सव नहीं हैं, वे ग्रामीण अर्थ व्यवस्था को गति देने का सर्वसुलभ बाजार साबित हो सकते हैं। गांवों के उत्पादों को ग्लोबल बनाने का संकल्प निश्चय ही सराहनीय है लेकिन यह सपना तभी साकार होगा जब सरकार और समाज मिलकर ग्रामीण उद्योगों को स्थानीय से वैश्विक तक की यात्रा तय करने में सहयोग दें। जगराम गुर्जर का मेला मॉडल इस यात्रा का सशक्त कदम हो सकता है। इससे न केवल कारीगरों की आर्थिक स्थिति सुधर सकती है बल्कि राजस्थान के पारंपरिक कुटीर उद्योगों को भी नई पहचान मिलना संभव है। अमरपाल सिंह वर्मा

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प्रवक्ता न्यूज़ कांग्रेस, बीजेपी और राहुल गांधी का खेल

कांग्रेस, बीजेपी और राहुल गांधी का खेल

  शिवानन्द मिश्रा 1968 से 1992 तक अमेरिका के लिए रिपब्लिकन युग कहा जा सकता है क्योंकि इन 24 वर्षों में सिर्फ 4 साल डेमोक्रेट्स के पास रहे, शेष 20 साल रिपब्लिकन पार्टी का राज रहा। 1988 के चुनाव में जब जॉर्ज बुश जीते, उनके उपराष्ट्रपति ने खुलकर कहा था कि अब डेमोक्रेट्स को जीवित रखना हमारी जिम्मेदारी है ताकि कोई तीसरा मोर्चा उभर ना पाए। डेमोक्रेट्स ने इस उपहास को गंभीरता से लिया और 1992 में बिल क्लिंटन के नेतृत्व में जीत दर्ज कर अपनी वापसी की। आज भारत में बीजेपी उसी रिपब्लिकन स्थिति में है जहाँ कांग्रेस को जीवित रखना बीजेपी का रणनीतिक हित बन गया है ताकि तीसरी पार्टियों का खतरा कम हो। आज कांग्रेस पंजाब, राजस्थान, हिमाचल, कर्नाटक और तेलंगाना तक सिमट चुकी है।  राहुल गांधी की सबसे बड़ी “उपलब्धि” यही है कि उन्होंने राज्य स्तर पर खुद को शून्य किया, प्रधानमंत्री बनने की उम्मीद में। कांग्रेस को अब अपनी खोई हुई जमीन पाने के लिए सैकड़ों प्रमोद महाजन या अमित शाह जैसे नेताओं की आवश्यकता होगी। उनकी 99 सीटें उनकी उच्चतम उपलब्धि थीं; उसके बाद शुरू हुआ पतन। अब मामला वोट चोरी तक पहुंच चुका है। एक अनुमान के मुताबिक अगला टारगेट न्यायपालिका, पुलिस या सेना हो सकता है। यह वही सत्ता की निराशा है जिसे मुहम्मद अली जिन्ना ने भी झेला। जब से ममता बनर्जी ने राहुल को नेता प्रतिपक्ष पद से हटने का सुझाव दिया, उनके लिए खुद को प्रासंगिक बनाए रखना जरूरी हो गया है। बिहार में वे खुद शून्य हैं, साथ में आधा दर्जन सीटों वाला तेजस्वी यादव उनके साथ। अब ये दोनों हुड़दंग को जन आंदोलन बताने में लगे हैं।  बीजेपी के हित में यही जरूरी है कि कांग्रेस प्रासंगिक रहे, ताकि कोई तीसरा चेहरा कांग्रेस से ऊपर ना उठ पाए। राहुल गांधी की “ट्यूशन से सीखी राजनीति” से निपटना आसान है लेकिन कोई जननेता आ जाए तो चुनौती बढ़ जाएगी। अमित शाह का उदय हाल के दिनों में तेज़ हुआ है। मोदीजी उनके भरोसे संसद के बिल पास करवा रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि अगले दशक में अमित शाह का युग लगभग निश्चित है। 2029 में मोदीजी अगर फिर चुनाव लड़े तो नेहरू का रिकॉर्ड टूट सकता है लेकिन 2029 या 2034 से अमित शाह का समय शुरू होना लगभग तय है। जो कांग्रेसी अब मोदीजी को “वोट चोर” बोल रहे हैं, वे भविष्य में मोदी का फोटो लगाकर रोते नजर आएंगे। मोदीजी अब नेता वाली लीग से बाहर, उनका नाम अमर। संघर्ष अब नए नेताओं का है और जब विपक्ष में राहुल गांधी हों तो ये संघर्ष आसान होता है। राजनीतिक रणनीति यही है: कांग्रेस अगर सिर्फ 4-5 राज्यों में लड़े तो हमेशा नंबर 2 बनेगी और यह बीजेपी के लिए उचित परिणाम होगा। बस शर्त यही है कि उनके यहाँ डेमोक्रेटिक पार्टी जैसा कोई बिल क्लिंटन न आए, जो रास्ते खुद कांग्रेस ने बंद कर रखे हैं।  राजनीति = गणित + रणनीति + धैर्य राहुल गांधी और कांग्रेस का खेल इस समय सिर्फ बीजेपी के हित में प्रासंगिक बने रहने का है। शिवानन्द मिश्रा 

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टेक्नोलॉजी अंतरिक्ष की गहराई में अनुसंधान करेगा भारत

अंतरिक्ष की गहराई में अनुसंधान करेगा भारत

संदर्भः- राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री ने किया देश का उत्साहवर्धनप्रमोद भार्गवप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतरिक्ष में गहराई से नए अनुसंधानों के लिए…

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कला-संस्कृति गणेश वंदना

गणेश वंदना

वक्रतुण्ड महाकाय,तेज तुम्हारा अनुपम छाय।सूर्यकोटि सम प्रभु दाता,विघ्न हरन जग के त्राता॥ गणपति बाप्पा मोरया,विघ्न विनाशक मोरया।सर्वकार्य सिद्धि कराओ,करुणा धारा बरसाओ॥ जहाँ तुम्हारा नाम लिया…

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लेख अर्धनग्न मुजरे के दौर में गुम होती साहित्यिक स्त्रियाँ

अर्धनग्न मुजरे के दौर में गुम होती साहित्यिक स्त्रियाँ

“सोशल मीडिया की चमक-दमक के शोर में किताबों का स्वर कहीं खो गया है।” इंस्टाग्राम और डिजिटल मीडिया का दौर है। यहाँ आकर्षण और तमाशा…

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राजनीति अंतरिक्ष में खेती-किसान

अंतरिक्ष में खेती-किसान

प्रमोद भार्गव अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के प्रवासी भारतीय शुभांशु शुक्ला ने भविष्य की सुरक्षित खेती-किसानी के लिए अंतरिक्ष में बीज बो दिए हैं। यह सुनने…

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राजनीति समर्पण, सेवा और संगठन की सौ वर्षीय यात्रा से विश्वगुरु भारत की ओर

समर्पण, सेवा और संगठन की सौ वर्षीय यात्रा से विश्वगुरु भारत की ओर

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 वर्ष : उपलब्धियाँ और नये क्षितिज” राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 वर्ष केवल इतिहास की उपलब्धियाँ नहीं, बल्कि भविष्य की…

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कला-संस्कृति गणेश हैं विघ्नहर्ता-मंगलकर्ता एवं जीवंत राष्ट्रीयता के प्रतीक

गणेश हैं विघ्नहर्ता-मंगलकर्ता एवं जीवंत राष्ट्रीयता के प्रतीक

गणेश चतुर्थी- 27 अगस्त, 2025 पर विशेष-ललित गर्ग- भारतीय संस्कृति और धर्मजगत में गणेशजी का स्थान अद्वितीय है। वे विघ्नहर्ता, बुद्धिदाता, मंगलकर्ता और उन्नत राष्ट्र-निर्माता…

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राजनीति वोटर अधिकार यात्रा बनाम एजेंडा यात्रा

वोटर अधिकार यात्रा बनाम एजेंडा यात्रा

डॉ.वेदप्रकाश  महात्मा गांधी का जीवन राष्ट्रीय और वैश्विक फलक पर शांति और सद्भाव के लिए समर्पित रहा लेकिन उनके नाम के गैरवारिस राहुल गांधी जो विपक्ष के नेता भी हैं,  आज राष्ट्रीय और वैश्विक फलक पर अशांति फैलाने और वैमनस्य को समर्पित दिखाई दे रहे हैं। अपने राजनीतिक जीवन के आरंभ से ही वे तथ्यहीन और उल्टी सीधी बातों के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। न उन्हें देश के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और धार्मिक वातावरण की जानकारी है और न ही राजनीति की जानकारी क्योंकि राजनीति में आने के लिए उन्होंने कोई पुरुषार्थ नहीं किया। वह उन्हें पैतृक संपत्ति के रूप में प्राप्त हो गई और इस देश को जानने के लिए वे कभी घर से निकले नहीं।        सर्वविदित है कि स्वतंत्रता के बाद से लगातार कई दशकों तक सत्ता में रहने के बाद वर्ष 2014 से कांग्रेस पार्टी सत्ता से बाहर है। वर्ष 2014 में जनता ने भारी बहुमत के साथ भारतीय जनता पार्टी को अपना समर्थन दिया और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। यह भी सर्वविदित है कि वर्ष 2014 से ही भिन्न-भिन्न रूपों में सामान्य व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आ रहे हैं। जनकल्याण की विभिन्न योजनाएं पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति तक पहुंच रही हैं।  राष्ट्रीय और वैश्विक फलक पर भारत लगातार मजबूत होता जा रहा है। देश में कार्य-व्यवसाय, उद्योग एवं आर्थिक क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हुई है। करोड़ों लोग गरीबी रेखा से बाहर निकले हैं और यह भी सर्वविदित है कि कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस यानी आईएनडीआईए का समूचा विपक्षी गठबंधन लगातार नकारात्मक राजनीति कर रहा है। राहुल गांधी और विपक्ष आज एजेंडेवादी बन चुके हैं। ये सभी नकारात्मकता फैलाने का इकोसिस्टम बनाते हैं और फिर लगातार झूठे प्रचार से उसे सच्चा दिखाने का प्रयास करते हैं।        हम सभी जानते हैं कि जब किसी झूठ को भी बार-बार अलग-अलग ढंग से अलग-अलग लोगों के द्वारा कहा जाता है तो सामान्य व्यक्ति को एक समय के बाद वह सच जैसा दिखने लगता है। वर्ष 2014 में चुनाव हारने के बाद राहुल गांधी ने सबसे पहले ईवीएम मशीन पर दोष मढ़ना शुरू किया। मशीन खराब हैं, उनमें बटन कोई भी दबाओ, वोट भाजपा को ही जाती है आदि । यह नैरेटिव काफी चला, फिर असफल होने पर- प्रधानमंत्री चोर है ऐसे असंवैधानिक नारे शुरू किए गए। इसके बाद संविधान खतरे में है। संविधान बदल दिया जाएगा। लोकतंत्र खतरे में है। आने वाले वर्षों में चुनाव नहीं होंगे, सीधे मोदी का ही शासन चलता रहेगा जैसे नैरेटिव  भी खूब चलाए गए। कृषि कानून, नागरिकता संशोधन कानून और धारा 370 जैसे महत्वपूर्ण और संसद में पास हुए गंभीर कानूनों पर भी तरह-तरह का दुष्प्रचार भ्रम और भय फैलाया गया। समूचे विपक्ष ने राहुल गांधी के नेतृत्व में कभी किसानों को भड़काने का काम किया तो कभी मुसलमानों को भी। यह भी नैरेटिव  बनाया गया कि सरकार किसानों की जमीन छीन लेगी, सरकार मुसलमानों की नागरिकता छीन लेगी आदि। कुछ समय बाद इस प्रकार के झूठे नॉरेटिव से देश में बड़ा आर्थिक और सामाजिक नुकसान हुआ।  हम सभी इस बात से भी परिचित हैं कि राहुल गांधी और विपक्ष के कई नेता संसद में चर्चा में ठीक से हिस्सा नहीं लेते। वे संविधान विरोधी अभद्र भाषा का प्रयोग  हमेशा करते हैं। संसद को बाधित करते हुए शोर शराबा करते हुए बाहर धरने-प्रदर्शन करते हैं। इससे यह भी स्पष्ट है कि वे सवाल जवाब करने में अथवा बहस करने में सक्षम नहीं है। पिछले कई महीनों से राहुल गांधी नए एजेंडे को लेकर पूरे इकोसिस्टम में काम कर रहे हैं। इस बार उन्होंने चुनाव आयोग पर जो संविधान सम्मत संस्था है, भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में वोट चोरी करने का आरोप लगाया है। आरोप की पुष्टि हेतु वह चुनाव आयोग के बार-बार कहने पर भी तथ्य प्रस्तुत करने में असमर्थ रहे हैं।          पिछले कुछ दिन राहुल गांधी और तेजस्वी यादव बिहार में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर वोटर अधिकार यात्रा पर हैं। तेजस्वी यादव के दो मतदाता पत्र मिल चुके हैं। अपनी यात्रा में भी वे नैतिकता की सीमाओं के पार जाकर अनर्गल टीका-टिप्पणी कर रहे हैं। तात्पर्य यह है कि वोटर अधिकार यात्रा अथवा वोट चोरी के आरोप भी उनके एजेंट एवं इकोसिस्टम के अंतर्गत चलाया जा रहा अभियान है। विगत में भी सेना  द्वारा आतंकवाद के जवाब में बालाकोट स्ट्राइक एवं ऑपरेशन सिंदूर जैसी साहसिक कार्रवाई पर राहुल गांधी नकारात्मक टिप्पणी करने के साथ-साथ सेना के शौर्य पर भी प्रश्न उठाते रहे हैं। यह उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता को दिखाता है। सभी जानते हैं कि राहुल गांधी, सोनिया गांधी, लालू यादव, तेजस्वी यादव आदि विपक्ष के बड़े कहे जाने वाले कई नेताओं पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं। अभी ये जमानत पर हैं। चुनाव आयोग द्वारा हाल ही में बिहार में मतदाता सूची शोधन हेतु विशेष सघन पुनरीक्षण अभियान (एफआईआर) के दौरान लाखों मतदाताओं को अपात्र पाया गया। इस प्रक्रिया में बंगाल में भी सघन पुनरीक्षण आरंभ होना है। इसको लेकर भी राहुल गांधी, बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, सपा प्रमुख अखिलेश यादव एवं विपक्ष के अन्य नेता झूठ फैला रहे हैं।     आज यह आवश्यक है कि नेता विपक्ष और सभी विपक्षी दल संसद में अपनी भूमिका के महत्व को समझें। जन कल्याण के लिए योजनाओं हेतु सरकार को सुझाव दें और जनहित में संसद में मुद्दों पर बहस करें। संसद के बाहर झूठे एजेंट चलाने मात्र से राजनीतिक हितों और स्वार्थों की पूर्ति संभव नहीं है। डॉ.वेदप्रकाश

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लेख समस्याएं अनेक, हल एक

समस्याएं अनेक, हल एक

अशोक गुप्त हमारे देश में बहुत ही समस्याएं हैं जिनकी संख्या और आकार बढ़ता ही जा रहा है. अधिकतर बढ़ती समस्याओं का कारण हमारी बढ़ती जनसंख्या और गरीबी है. गरीबी और कार्य के साधन सीमित होने के कारण गाँवों से महानगरों की ओर पलायन जारी है जिसके कारण शहरों में बिजली और पानी की कमी और बढ़ते प्रदूषण के साथ सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे और बढ़ती झुग्गियों  की समस्याएं हो रही है. एक अनुमान के अनुसार दिल्ली में 1000 से अधिक झुग्गी कालोनियां हैं जिनमें कई लाख लोग अमानवीय परिस्थितियों में रहते हैं. ये कालोनियां कहीं-कहीं तो नालों के किनारे या नालों के अंदर भी बसी हुई है. कई स्थानों पर तो नालों को पाट  दिया गया है जिससे बरसाती पानी का भाव रुक जाता है और बारिश होने पर बाढ़ की समस्या पैदा हो जाती है और पानी का निकास नहीं हो पाता .  इन समस्याओं को देखते हुए दिल्ली सरकार ने बहुत सी सरकारी जमीनों से अवैध कब्जे वाली झुग्गियां  हटाई हैं पर इससे ये समस्याएं हल होने वाली नहीं हैं. ये  समस्याएं तभी हल हो सकती हैं यदि ये लोग दिल्ली या ऐसे महानगरों में न रहकर अपने मूल स्थान पर रहें. पलायन रोकने हेतु जनसंख्या वृद्धि पर रोक बहुत आवश्यक है क्योंकि परिवार में बच्चों की अधिक संख्या गरीबी बढ़ाती है पर यह गरीब लोग यह समझ नहीं पाते और उनके प्राय तीन-चार बच्चे होते हैं.  इसके लिए आवश्यक है कि सरकारी योजनाओं जैसे फ्री राशन आदि का लाभ उन्हीं गरीबों को मिले जिनका एक ही बच्चा हो और जो अपने मूल स्थान पर रहते हों. दूसरा बच्चा होते ही यह सुविधा वापस ले ली जानी चाहिए.  यदि हम अपने आसपास देखें तो पाएंगे कि हमारे संपर्क में आने वाले अधिकतर निम्नवर्गीय लोगों के प्राय तीन-चार बच्चे होते हैं. यह वर्ग परिवार नियोजन हेतु गंभीर नहीं होता जबकि अधिकतर पढ़े लिखे मध्यवर्गीय परिवारों में एक से अधिक बच्चा नहीं होता क्योंकि एक बच्चे को ही अच्छे स्कूल में पढ़ाना बहुत महंगा हो चुका है. ऐसे परिवार मजबूरी में सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जा कर अमानवीय परिस्थितियों में रहते हैं पर कम बच्चे पैदा कर अपना जीवन स्तर ऊपर उठाने को तैयार नहीं हैं. केवल लालच ही इन्हें के लिए प्रेरित कर सकता है   इन्हें परिवार नियोजन हेतु प्रेरित करने के लिए सरकार यह नियम बना सकती है कि फ्री राशन जैसी सुविधा केवल उन्हीं गरीब परिवारों को मिले जिन परिवारों में केवल एक बच्चा हो. सरकार उन्हें प्रोत्साहन राशि के रूप में  ₹1000 प्रति मास से ₹12000 प्रति वर्ष की राशि दे सकती है यदि यह अपने मूल स्थान पर रहते हैं. दूसरा बच्चा पैदा होने पर उनकी यह सुविधा छीन ली जानी चाहिए. इसके अतिरिक्त फ्री राशन जैसी सुविधा भी केवल उन्हें परिवारों को दी जानी चाहिए जो अपने मूल स्थान पर रहते हैं और जिनका एक ही बच्चा हो .  यदि यह योजना ठीक से लागू हो पाए तो अगले कुछ वर्षों में जहां गांव से महानगरों में पलायन की समस्या पर लगाम लगेगी, वहीं गरीब जनता के जीवन स्तर में सुधार होगा, उनके बच्चे अच्छा पोषण और अच्छी शिक्षा पा सकेंगे और देश के संसाधनों पर दबाव कम होगा. इसके अतिरिक्त दिल्ली जैसे महानगरों की तेजी से बढ़ती जनसंख्या पर भी लगाम लगेगी और बिजली पानी की समस्याओं व अवैध कब्जे की समस्याओं से धीरे-धीरे मुक्ति मिल पाएगी . इसके अतिरिक्त अवैध कब्ज़ों पर सरकार  को नो टॉलरेंस  नीति अपनानी चाहिए। हटाई गई झुग्गियों के स्थान पर पुनः झुग्गियां बनने या नई  झुग्गी बनने पर पुलिस अधिकारियों  पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए ताकि अवैध बसने वालों को प्रोत्साहन न मिले.

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