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श्रीराम भक्त हनुमान के जन्म स्थान पर विवाद चरम पर

अशोक प्रवृद्ध

शक्ति, भक्ति, आस्था, बल, बुद्धि, ज्ञान, दैवीय शक्ति, बहादुरी, बुद्धिमत्ता, निःस्वार्थ सेवा-भावना आदि गुणों और अपना सम्पूर्ण जीवन मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम व माता सीता की सेवा व भक्ति में लगा देने तथा बिना किसी उद्देश्य के कभी भी अपनी शक्तियों का, अपने शौर्य का व्यर्थ प्रदर्शन नहीं करने के कारण त्रेतायुग से आज तक प्रसिद्ध श्रीराम भक्त हनुमान के जन्मस्थल को लेकर दक्षिण भारत के दो राज्यों, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश के मध्य विवाद चरम पर है। संकट मोचक, बजरंगवली, पवनसुत, पवन कुमार, महावीर, बालीबिमा, मारुतसुत, अंजनिसुत, मारुति आदि नामों से भक्तों के बीच प्रसिद्ध श्रीहनुमान के जन्म स्थली को लेकर पूर्व से ही कर्नाटक और आंध्र प्रदेश दोनों ही राज्य अपने राज्य में हनुमान की जन्मस्थली होने का दावा ठोकते रहे हैं। इस नए विवाद की शुरुआत कर्नाटक के इस नए दावे पर हुई जिसमें कर्नाटक के शिवमोगा स्थित एक मठ के धर्मगुरु ने मारुतिनंदन के जन्म स्थान पर नया दावा ठोकते हुए यह कहा है कि उत्तर कन्नड़ जिले के तीर्थस्थल गोकर्ण में रामदूत हनुमान का जन्म हुआ था। कर्नाटक के शिवमोगा स्थित रामचंद्रपुर मठ के प्रमुख राघवेश्वर भारती अपने दावे के समर्थन में रामायण में उल्लिखित प्रमाण का जिक्र करते हैं कि रामायण में हनुमान सीता से समुद्र के पार गोकर्ण में अपना जन्म स्थान होने की बात बतलाते हैं। रामायण के इस प्रमाण से यह सिद्ध है कि गोकर्ण हनुमान की जन्मभूमि है और किष्किंधा स्थित अंजनाद्रि उनकी कर्मभूमि है। इस नये दावा के बाद धार्मिक और पुरातात्विक हलकों में विवाद शुरू हो गया है। उधर आंध्रप्रदेश आंध्र के तिरुपति की पहाड़ी पर हनुमान जन्मस्थली होने का दावा पूर्व से ही करता रहा है। हैरतअंगेज बात यह है कि हनुमान का जन्म स्थल पूर्व से ही कई अन्य स्थलों पर होने का दावा भी किया जाता रहा है। पूर्व से ही कई अन्य स्थलों पर हनुमान की जन्म स्थली होने के दावे के मध्य इन नए दावों से प्रश्न उत्पन्न होता है कि कोप्पल का गोकर्ण, उत्तर कन्नड़ का गोकर्ण अथवा तिरुपति की अंजानाद्रि पहाड़ी, या फिर झारखण्ड का आंजन धाम, या गुजरात का डांग, या कहीं और, आखिर कहां हनुमान का जन्म हुआ था?

उल्लेखनीय है कि कर्नाटक का पूर्व से ही यह दावा रहा है कि हनुमान का जन्म कोप्पल जिले के अनेगुंडी में किष्किंधा के अंजनाद्रि पर्वत पर हुआ था। कर्नाटक वासी बेल्लारी के पास स्थित हम्पी ( हंपी) को सदियों से किष्किंधा क्षेत्र अथवा वानरों का प्रदेश मानते आए हैं। रामायण में हम्पी से लगे किष्किंधा का एक संदर्भ अंकित है। रामायण के अनुसार इसी किष्किंधा नामक स्थान पर भगवान राम और लक्ष्मण पहली बार हनुमान से मिले थे। कर्नाटक ने किष्किंधा के अंजनाद्रि को लेकर अपने दावे के समर्थन में एक प्रोजेक्ट पर काम भी शुरू किया है। दूसरी ओर आंध्र प्रदेश भी हनुमान की जन्मस्थली पर पूर्व से ही दावा करता आ रहा है कि हनुमान की जन्मभूमि तिरुपति की सात पहाड़ियों में से एक पर है। इस पहाड़ी का नाम भी अंजनाद्रि ही है। तिरुपति में स्थित तिरुमला मंदिर हिन्दुओं की आस्था, बिश्वास और मान्यता का बड़ा केंद्र है। तेलुगू में तिरुमला का अर्थ सात पहाड़ियां होता है। यह मंदिर इन्हीं सात पहाड़ियों को पार करने पर आता है। टीटीडी अर्थात तिरुमला तिरुपति देवस्थानम ट्रस्ट बोर्ड के कार्यकारी अधिकारी केएस जवाहर रेड्डी का कहना है, हमारे पास पौराणिक और पुरातात्विक प्रमाण हैं। इनके आधार पर हम साबित कर सकते हैं कि तिरुपति के अंजनाद्रि पर्वत पर ही हनुमान का जन्म हुआ था। दावे के प्रमाण के तौर पर टीटीडी द्वारा सुबूत आधारित एक पुस्तिका भी जारी की गई है, जिसमें यह प्रमाणित करने की कोशिश की गई है कि हनुमान का जन्म तिरुमाला की सात पवित्र पहाड़ियों में से एक पर हुआ था। यह भगवान वेंकटेश्वर का निवास स्थान है। खगोलीय, पुरालेखीय, वैज्ञानिक और पौराणिक प्रमाण वाली यह पुस्तिका, यह साबित करेगी कि तिरुमला पहाड़ियों पर भगवान हनुमान का जन्म हुआ था। इस विवाद को सुलझाने के लिए टीटीडी द्वारा पिछले साल दिसम्बर में विद्वानों की एक उच्चस्तरीय समिति का गठन अध्ययन करने और सात पहाड़ियों में से एक अंजनाद्रि में प्रमाण एकत्रित करने के लिए किया गया था। लेकिन कुछ पुरातत्वविदों और इतिहासकारों ने टीटीडी के दावे को खारिज कर दिया है। इतिहासकारों की राय है कि हम्पी या विजयनगर राजवंश की पूर्ववर्ती राजधानी के आस- पास का क्षेत्र किष्किंधा क्षेत्र है। उनका दावा है कि हम्पी में पुरा-ऐतिहासिक काल की अनेक शिला कलाकृतियों में पूंछ वाले लोगों को चित्रित किया गया है। संगमकल्लू, बेलाकल्लू के पास अनेक गुफा कृतियों में मनुष्य के साथ पूंछ जैसी आकृति देखी जा सकती है। कुछ विद्वान विवाद सुलझाने के लिए कलाकृतियों को आधार बना रहे हैं। रामायण में वर्णित किष्किंधा के सभी भौगोलिक क्षेत्रों को चिह्नित करते हुए प्राप्य अभिलेख, उपलब्ध साक्ष्य, मौजूदा परंपराएं तथा लोक श्रुतियां यह प्रमाणित करती हैं कि पूर्ववर्ती विजयनगर राज्य, जिसे पहले पंपा क्षेत्र कहा जाता था, को किष्किंधा के रूप में पहचाना गया है, जहां सैकड़ों हनुमान मंदिर हैं।

ज्योतिषीय गणना के अनुसार श्रीहनुमान का जन्म 1 करोड़ 85 लाख 58 हजार 120 वर्ष पहले चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्र नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6.03 माता अंजनी के गर्भ से जन्म हुआ था। चैत्र मास की पूर्णिमा के दिन ही श्रीहनुमान का जन्म दिन अर्थात हनुमान जयन्ती का पर्व मनाया जाता है।  लेकिन हनुमान जन्म से सम्बंधित व्रत हनुमान जयन्ती एक और दिन, कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को भी मनाया जाता है, अर्थात हनुमान जयंती वर्ष में दो बार दो विभिन्न तिथियों को मनाई जाती हैं। इसका कारण यह है कि हनुमान की जन्मतिथि को लेकर भी विद्वानों के मध्य मतभेद हैं। कुछ विद्वान हनुमान जयन्ती की तिथि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी मानते हैं तो कुछ चैत्र शुक्ल पूर्णिमा। विचित्र बात यह भी है कि इस विषय में पुरातन ग्रंथों में दोनों तिथियों के ही उल्लेख मिलते हैं, परन्तु इनके कारणों में भिन्नता बतलाई गई है। इसी प्रकार हनुमान के जन्म स्थान को लेकर भी भ्रम की स्थिति बनी हुई है और इस सम्बन्ध में कई प्रकार के मत प्रचलित हैं। जिसके कारण आज भी कोई यह स्पष्ट रूप से दावा करने की स्थिति में नहीं है कि हनुमान का जन्म आखिर भारत के किस स्थान अथवा प्रदेश में और कहां हुआ था?  श्रीराम भक्त हनुमान की माता का नाम अंजना होने के कारण उन्हें आंजनेय तथा उनके पिता का नाम केसरी होने से उन्हें केसरीनंदन भी कहा जाता है। केसरी को कपिक्षेत्र का राजा होने के कारण कपिराज भी कहा जाता था। लेकिन आज भी यह अनुतरित ही है कि यह कपि क्षे‍त्र भारत में कहां स्थित है? हरियाणा के लोग राज्य के कैथल को हनुमान की जन्म स्थली मानते और कहते हैं कि वानरों की कपि नाम की जाति के वहां निवासरत होने के कारण उसे कपि क्षेत्र कहा जाता था। कपिस्थल कुरु साम्राज्य का एक प्रमुख भाग था। हरियाणा का आज का कैथल ही पूर्व में कपिस्थल था, जो पहले करनाल जिले का भाग था। कुछ शास्त्रों में ऐसा वर्णन आता है कि कैथल ही हनुमान का जन्म स्थान है। कुछ विद्वान हनुमान की माता का नाम अंजनी और फिर अंजनी पुत्र होने से हनुमान की संज्ञा आंजनेय होने के कारण उनके नाम से बसे स्थल आंजनेय के आधार पर तथा इस आधार पर स्थानीय स्तर पर प्रचलित किम्बदन्तियों के परिप्रेक्ष्य में हनुमान की जन्मस्थली झारखण्ड के गुमला जिलान्तर्गत आंजन धाम में होने का दावा करते हैं। झारखण्ड में प्रचलित स्थानीय मान्यताओं के अनुसार हनुमान का जन्म गुमला जिला मुख्यालय से करीब पन्द्रह किलोमीटर दूर जंगलों- पहाड़ों के मध्य स्थित आंजन गांव की एक गुफा में हुआ था। आंजन ग्राम पंचायत के सचिव सुरेश कुमार शाही का कहना है कि जंगलों -पहाड़ों और नदी- नालों के मध्य इस सुरम्य स्थल पर स्थित इसी गांव में माता अंजनी निवास करती थी, और आंजन गांव की पहाड़ी पर स्थित गुफा में रामभक्त हनुमान का जन्म हुआ था। माता अंजनी और उनके पुत्र आंजनेय के इस स्थल पर निवास करने के कारण ही इस स्थल का नाम आंजन धाम प्रचलित हुआ है। इसे प्राचीन काल में आंजनेय कहा जाता था, और इस आंजनेय का अपभ्रंश रूप आंजन नाम से आज इस स्थान को जाना जाता है। यहां की पहाडी पर माता अंजनी की गोद में हाथ में गदा धारण किए बाल्यरूप हनुमान  की एक प्राचीन प्रस्तर की मूर्ति स्थापित है। समीप ही यहाँ आंजन की पहाडी पर ही स्थानीय सरना सनातन धर्मावलम्बियों ने विगत दशकों में माता अंजनी और बालक हनुमान की प्रतिमा से संयुक्त एक मन्दिर का निर्माण किया गया है, जहाँ श्रीरामनवमी, हनुमान जन्मोत्सव और राम व हनुमान से सम्बन्धित अन्य दिवसों पर विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजनों के साथ ही भंडारे का भी आयोजन किया जाता है। स्थानीय मान्यता के अनुसार यहां की आदिवासी- गैरआदिवासी दोनों समुदाय की जातियां बड़ी संख्या में भक्ति और श्रद्धा के साथ माता अंजनी और बजरंगबली की पूजा करती है। वर्तमान में इस स्थल की महता व लोकप्रियता को देखकर स्थानीय प्रशासन द्वारा वुनियादी सुविधाएं मुहैय्या कराने के लिए हाथ- पाँव मारने की सुगबुगाहट सुनाई दी रही है। मान्यतानुसार यहाँ से लगभग बीस किलोमीटर दूर गुमला जिले के पालकोट प्रखंड में बालि और सुग्रीव का राज्य था। पालकोट को प्राचीन काल में पम्पापुर के नाम से जाना जाता था। यहाँ की एक पहाड़ी को किष्किंधा नाम से जाना जाता है। यहीं पर एक पहाडी पर माता शबरी का आश्रम था। यहाँ की पहाड़ियों में कई गुफाएं आज भी विद्यमान हैं। समीप ही पहाडी में स्थित एक प्राचीन तालाब पम्पासर नाम से विख्यात है। उल्लेखनीय है कि मैसूर में भी पंपासरोवर अथवा पंपासर नामक  एक पौराणिक स्थान है। हंपी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा माना जाता है । तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मुख्य मार्ग से कुछ हटकर बाईं ओर पश्चिम दिशा में, पंपा सरोवर स्थित है । यहां के एक पर्वत में स्थित स्थित एक गुफा को रामभक्त शबरी के नाम पर शबरी गुफा कहते हैं। गुजरात के डांग जिले के के अंजनी पर्वत में स्थित अंजनी गुफा में ही हनुमान का जन्म होने का दावा किया जाता रहा है। मान्यता के अनुसार त्रेत्तायुग में गुजरात स्थित डांग जिला दण्डकारण्य प्रदेश के रूप में जाना जाता था। यहीं भगवान राम व लक्ष्मण को शबरी ने बेर खिलाए थे। आज यह स्थल शबरीधाम नाम से जाना जाता है। डांग जिले के आदिवासियों की सबसे प्रबल मान्यता यह भी है कि डांग जिले के अंजनी पर्वत में स्थित अंजनी गुफा में ही हनुमान का भी जन्म हुआ था। कहा जाता है कि अंजनी माता ने अंजनी पर्वत पर ही कठोर तपस्या की थी और इसी तपस्या के फलस्वरूप उन्हें पुत्र रत्न के रूप में हनुमान की प्राप्ति हुई थी। माता अंजनी ने अंजनी गुफा में ही हनुमान को जन्म दिया था। इसी प्रकार अन्य मतों के अनुसार कुछ लोग राजस्थान के चुरु जिले के सुजानगढ़ में, कुछ हंफी में तो कुछ लोग नासिक के त्र्यंबकेश्वर के पास अंजनेरी पहाड़ी को हनुमान का जन्म स्थल मानते हैं। इन सभी स्थलों पर हनुमान की जन्म स्थली होने के अपने -अपने दावे हैं, परन्तु यह स्थापित किया जाना आवश्यक है कि हनुमान की जन्मस्थली आखिर कहाँ है?

आज के परिवेश में मीडिया का रोल


       आज के युग एवं परिवेश में मीडिया का एक महत्वपूर्ण रोल है चाहे वह प्रिन्ट मीडिया हो चाहे वह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हो या सोशल मीडिआ हो | आम तौर पर हम टेलीविजन,रेडियो और अख़बार आदि को ही मीडिया को ही  प्रमुख अंग  मानते रहे है क्योकि हम इनके द्वारा ही सूचनाओं का आदान – प्रदान होना  समझते है | परन्तु उदारीकरण नीति  के कारण  मोबाइल व इंटरनेट आ जाने से सूचनाओं का  आदान प्रदान काफी बढ़ गया है | इन्ही कारणों से  सोशल मीडिया ने भी अपनी विशेष स्थान बना लिया है क्योकि इसके द्वारा सूचनाओं का आदान- प्रदान बहुत ही आसान और प्रभावशाली  हो गया है |  हर किसी  को अपनी बात  रखने का एक बेहद आसान प्लेटफॉर्म मिल चुका है  जो आज के परिवेश में एक बड़ा रूप ले चुका है | आप चाहे किसी जगह बैठे हो या कोई भी समय हो,आपने अपना मोबाइल या लेपटॉप उठाया और उसके द्वारा आप तुरंत आपनी  बात को पहुंचा सकते है,जो कि सबके हाथ में एक अदृश्य कलम है जो समय समय पर अपनी ताकत दिखाती रहती  है | लेकिन इसके कुछ दुष्परिनाम भी सामने आ रहे है,जिसके परिणाम हमे व्यक्तिगत और सामुहिक रूप से भुगतने पड़ रहे है,क्योकि इसके द्वार गलत सूचनाएं व अफवाहे आग की  तरह समाज व संसार में फैल रही  है | जिनका सम्पादित करना परखना व जांच करना एक बड़ी टेढ़ी खीर ही नहीं है अपितु बड़ा मुश्किल भी है | आकड़ो के अनुसार पूरी दुनिया में इस सोशल मिडिया को लगभग एक अरब से ज्यादा लोग प्रयोग करते है जो की काफी सक्रिय है भारत में इनकी संख्या बीस करोड़ से ज्यादा है | इस सोशल मिडिया के सबसे खास बात ये है कि आप दुनिया के किसी कोने में बैठे हो आप वही से अपनी बात को शेयर कर सकते  बात को किसी भी कोने में पंहुचा सकते है |             आज के परिवेश में मीडिया का रोल बहुत ही महत्वपूर्ण हो गया है इसके बिना तो आज  किसी की गाडी एक इंच भी आगे नहीं बढ़ सकती । चाहे वह नेता हो अभिनेता हो या साधारण व्यक्ति हो  वह अपनी बात किसी को भी इस सोशल माध्यम द्वारा पंहुचा जा सकता यह बात दूसरी कि उसके बात कोई सुने या ना सुने पर वह अपनी बात आसानी से कह सकता है क्योकि उसे बोलने लिखने और अपनी अभिव्यक्ति करने का अधिकार उसे सविंधान दिया है इसके  लिए उसे किसी सोर्स या सिफारिश की जरूरत नहीं पड़ती | आज के कोरोना काल में इसका महत्व और भी  बढ़ गया है | आप अपने बंद कमरे में बैठकर भी इसका प्रयोग कर सकते है और सबकी बात देख व सुन सकते  है पर इसका दुष्परिणाम यह है कि इसकी सत्यता आप नहीं परख सकते | अफवाओं का बाजार इसी सोशल मीडिया द्वारा गर्म होता है |  अक्सर इस सोशल मीडिया का फायदा दुश्मन देश ज्यादा उठाते है और कई प्रकार के अफवाहे अपने दुश्मन देश को भेजते रहते है |             आज लगभग सभी टी वी चैनल कोरोना से सम्बन्धी आकड़े दे रहे है और बतलाते है की किस राज्य में या किस देश में कितने लोग कोरोना से प्रभावित और संकरित  हुए ,कितने ठीक हुए कितने मरे, इन सब बातो से केवल पब्लिक में डर का माहौल पैदा होता और यह माहौल दिन प्रतिदिन  बढ़ता जा रहा है और लोग नर्वस होते जा रहे है | पहले ही लोगो के काम धंधे बंद हो गए | कल कारखाने बंद हो गए है मजदूर बेरोजगार हो गए है और दर दर की ठोकरे खा रहे है और दूसरी तरफ टी वी  चैनलों द्वारा इन सबकी खबर देकर लोगो को काफी नर्वस या निराश कर रहे है जो हमारे देश में नहीं अपितु पूरे विश्व में मौत का कारण बन हुए  है | आज मौतों कारण कोरोना तो है ही बल्कि दूसरी तरफ निराशा का माहौल व डर भी  है |  मेरा सुझाव है कि इस प्रकार के वातवरण को रोका जाये और देश वासियो की लिए सकारात्मक कदम उठाये जाये जिससे विश्व का कल्याण हो और इस आपदा से निबटा जाये न की इसका सभी  टी वी चैनलों द्वारा इन सबका प्रदर्शन व प्रसारण किया जाये जो की देश के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है  जय हिन्द जय भारत भारत माता की जय | 
आर के रस्तोगी 

जलवायु परिवर्तन से मुकाबले की चुनौती

-अरविंद जयतिलक 

जलवायु परिर्तन से मुकाबला करने के लिए अमेरिका की तरफ से आयोजित डिजिटल शिखर सम्मेलन संपन्न हो गया। इस शिखर सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए ठोस कदम उठाए जाने की जरुरतों पर बल दिया। उनका यह आह्वाहन इस मायने में महत्वपूर्ण है कि एक जिम्मेदार देश के रुप में भारत अपनी भूमिका का शानदार निर्वहन कर रहा है। जहां एक ओर दुनिया के अधिकांश देश कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने में कोताही बरत रहे हैं वहीं भारत पहले ही कार्बन उत्सर्जन में 35 फीसद कमी लाने का संकल्प जता चुका है। इस सम्मेलन की अच्छी बात यह रही कि अमेरिका ने भी 2030 तक ग्रीनहाउस उत्सर्जन में 50 फीसद की कटौती का एलान किया है। भारत और अमेरिका ने पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए एक नया उच्चस्तरीय यूएस-इंडिया क्लाइमेट एंड ग्रीन एनर्जी एजेंडा 2030 साझेदारी शुरु की है। भारत ने 2030 तक 450 गीगावाॅट अक्षय उर्जा का लक्ष्य हासिल करने का महत्वकांक्षी लक्ष्य रख दुनिया के सामने मानक तय कर दिया है। गौरतलब है कि इस डिजिटल सम्मेलन में 40 देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने हिस्सा लिया और इस बात पर सहमति बनी कि जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिए सभी देश मिलकर काम करेंगे। देखना दिलचस्प होगा कि यह सम्मेलन अपने लक्ष्यों की कसौटी पर कितना खरा उतरता है। यह आशंका इसलिए कि गत वर्ष मेड्रिड में संपन्न जलवायु के मुद्दे पर चली मैराथन वार्ता बेनतीजा रही। कार्बन उत्सर्जन पर कोई समझौता हुए बिना ही वार्ता समाप्त हो गयी। जबकि इस सम्मेलन में 200 देशों के प्रतिनिधियों ने हरसंभव प्रयास किया कि 2015 के पेरिस समझौते की शर्तों को मूर्त रुप देकर कार्बन उत्सर्जन में कटौती के महत्वकांक्षी लक्ष्य को साध लिया जाए। लेकिन बात नहीं बनी। वैज्ञानिकों की मानंें तो इस वर्ष कार्बन डाईआॅक्साइड के उत्सर्जन में और अधिक तेजी आने की उम्मीद है। इसकी बड़ी वजह एशिया और विशेष रुप से चीन में कोयले का भारी इस्तेमाल माना जा रहा है। हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय उर्जा एजेंसी यानी आईईईए ने अपनी रिपोर्ट में 2021 में उर्जा खपत में 1.5 अरब टन कार्बन उत्सर्जन का अनुमान जताया है। एजेंसी की मानें तो उर्जा संबंधी उत्सर्जन में यह इतिहास की दूसरी सबसे बड़ी वृद्धि होगी। अगर सरकारें तेजी से कार्बन उत्सर्जन में कटौती नहीं करेंगी तो 2022 में हमें ज्यादा खराब स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। एक आंकड़ें के मुताबिक अब तक वायुमण्डल में 36 लाख टन कार्बन डाइआॅक्साइड की वृद्धि हो चुकी है और वायुमण्डल से 24 लाख टन आॅक्सीजन समाप्त हो चुकी है। अगर यही स्थिति रही तो 2050 तक पृथ्वी के तापक्रम में लगभग 4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि तय है। वैज्ञानिकों की मानें तो बढ़ते तापमान के लिए मुख्यतः ग्लोबल वार्मिंग है और इससे निपटने की त्वरित कोशिश नहीं हुई तो आने वाले वर्षों में धरती का खौलते कुंड में परिवर्तित होना तय है। अमेरिकी वैज्ञानिकों की मानें तो वैश्विक औसत तापमान पिछले सवा सौ सालों में अपने उच्चतम स्तर पर है। औद्योगिकरण की शुरुआत से लेकर अब तक तापमान में 1.25 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो चुकी है। आंकड़ों के मुताबिक 45 वर्षों से हर दशक में तापमान में 0.18 डिग्री सेल्सियस का इजाफा हुआ है। आइपीसीसी के आंकलन के मुताबिक 21 सवीं सदी में पृथ्वी के सतह के औसत तापमान में 1.1 से 2.9 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी होने की आशंका है। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने वायु में मौजूद आॅक्सीजन और कार्बन डाईआॅक्साइड के अनुपात पर एक शोध में पाया है कि बढ़ते तापमान के कारण वातावरण से आॅक्सीजन की मात्रा तेजी से कम हो रही है। पिछले आठ सालों में वातारवरण से आॅक्सीजन काफी रफ्तार से घटी है। वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी का तापमान जिस तेजी से बढ़ रहा है उस पर काबू नहीं पाया गया तो अगली सदी में तापमान 60 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक अगर पृथ्वी के तापमान में मात्र 3.6 डिग्री सेल्सियस तक वृद्धि होती है तो आर्कटिक के साथ-साथ अण्टाकर्टिका के विशाल हिमखण्ड पिघल जाएंगे। देखा भी जा रहा है कि बढ़ते तापमान के कारण उत्तरी व दक्षिणी ध्रुव की बर्फ चिंताजनक रुप से पिघल रही है। वर्ष 2007 की इंटरगवर्नमेंटल पैनल की रिपोर्ट के मुताबिक बढ़ते तापमान के कारण दुनिया भर के करीब 30 पर्वतीय ग्लेशियरों की मोटाई अब आधे मीटर से कम रह गयी है। हिमालय क्षेत्र में पिछले पांच दशकों में माउंट एवरेस्ट के ग्लेशियर 2 से 5 किलोमीटर सिकुड़ गए हैं। 76 फीसद ग्लेशियर चिंताजनक गति से सिकुड़ रहे हैं। कश्मीर और नेपाल के बीच गंगोत्री ग्लेशियर भी तेजी से सिकुड़ रहा है। अनुमानित भूमंडलीय तापन से जीवों का भौगोलिक वितरण भी प्रभावित हो सकता है। कई जातियां धीरे-धीरे ध्रुवीय दिशा या उच्च पर्वतों की ओर विस्थापित हो जाएंगी। जातियों के वितरण में इन परिवर्तनों का जाति विविधता तथा पारिस्थितिकी अभिक्रियाओं इत्यादि पर गहरा असर पड़ेगा। पर्यावरणविदों की मानें तो बढ़ते तापमान के लिए मुख्यतः ग्रीन हाउस गैस, वनों की कटाई और जीवाश्म ईंधन का दहन है। तापमान में कमी तभी आएगी जब वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में कमी होगी। कार्बन उत्सर्जन के लिए सर्वाधिक रुप से कोयला जिम्मेदार है। हालांकि ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट की रिपोर्ट पर गौर करें तो अमेरिका ने कोयले पर अपनी निर्भरता काफी कम कर दी है। इसके स्थान पर वह तेल और गैस का इस्तेमाल कर रहा है। लेकिन भारत की बात करें तो उसकी कुल आबादी का एक बड़ा हिस्सा आज भी कोयले पर निर्भर है। अच्छी बात यह है कि भारत ने गत वर्ष पहले पेरिस जलवायु समझौते को अंगीकार करने के बाद क्योटो प्रोटाकाल के दूसरे लक्ष्य को अंगीकार करने की मंजूरी दे दी है। इसके तहत देशों को 1990 की तुलना में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को 18 फीसद तक घटाना होगा। माना जा रहा है कि भारत के इस कदम से अन्य देश भी इसे अंगीकार करने के लिए आगे आएंगे। गौर करें तो पेरिस जलवायु समझौते पर भी भारत ने दुनिया को राह दिखायी। उल्लेखनीय है कि 2020 से कार्बन उत्सर्जन को घटाने संबंधित प्रयास शुरु करने के लिए दिसंबर, 2015 को यह संधि हुई। इस संधि पर 192 देशों ने हस्ताक्षर किए। 126 देश इसे अंगीकार कर चुके हैं। भारत ने 2 अक्टुबर, 2016 को इसे अंगीकार करके अन्य देशों को भी अंगीकार करने की राह दिखायी। फिर कुछ अन्य देशों द्वारा इसे अंगीकार किए जाने पर 4 नवंबर, 2016 को यह प्रभावी हुआ। इसके तहत बढ़ते वैश्विक औसत तापमान को दो डिग्री सेल्सियस पर ही रोकने का लक्ष्य तय है। पृथ्वी के तापमान को स्थिर रखने और कार्बन उत्सर्जन के प्रभाव को कम करने के लिए कंक्रीट के जंगल का विस्तार और अंधाधुंध पर्यावरण दोहन पर लगाम कसना होगा। जंगल और वृक्षों का दायरा बढ़ाना होगा। पेड़ और हरियाली ही धरती पर जीवन के मूलाधार हैं। वनों को धरती का फेफड़ा कहा जाता है। वृक्षों और जंगलों का विस्तार होने से धरती के तापमान में कमी आएगी। लेकिन विडंबना है कि वृक्षों और जंगलों का ध्यान नहीं रखा जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र की ‘ग्लोबल फॅारेस्ट रिसोर्स एसेसमेंट’ (जीएफआरए) की रिपोर्ट में कहा गया है कि 1990 से 2015 के बीच कुल वन क्षेत्र तीन फीसद घटा है और 102,000 लाख एकड़ से अधिक का क्षेत्र 98,810 लाख एकड़ तक सिमट गया है। यानी 3,190 लाख एकड़ वनक्षेत्र में कमी आयी है। गौर करें तो यह क्षेत्र दक्षिण अफ्रीका के आकार के बराबर है। रिपोर्ट में कहा गया है कि प्राकृतिक वन क्षेत्र में कुल वैश्विक क्षेत्र की दोगुनी अर्थात छः फीसद की कमी आयी है। वनों के विनाश से वातावरण जहरीला हुआ है और प्रतिवर्ष 2 अरब टन अतिरिक्त कार्बन-डाइआॅक्साइड वायुमण्डल में घुल-मिल रहा है। बेहतर होगा कि वैश्विक समुदाय बढ़ते तापमान से निपटने के लिए कार्बन डाईआॅक्साइड के उत्सर्जन पर नियंत्रण लगाएं।   

ओ-टू मिशन: शांति एवं स्वास्थ्य की संजीवनी

 ललित गर्ग 

आज पूरी मानवजाति एक बड़ी एवं भयावह कोरोना वायरस महामारी के कहर से जूझ रही है और दुनिया ग्लोबल वार्मिंग जैसी चिंताओं से रू-ब-रू है। लोगों को पर्यावरण की अहमियत, इंसानों व पर्यावरण के बीच के गहरे ताल्लुकात को समझते हुए प्रकृति, पृथ्वी, वृक्षारोपण एवं पर्यावरण के संरक्षण के लिए जागरूक होना होगा। आज कोरोना महामारी के समय में हमने यह अहसास कर ही लिया है कि हमारे जीवन मे ऑक्सीजन की कितनी जरूरत है। इस संकट के समय में हम देख रहे है कि रोगियों को ऑक्सीजन की पूर्ति नहीं हो पा रही है लेकिन अनादिकाल से हमारी ऑक्सीजन की पूर्ति हमारी प्रकृति एवं वृक्ष करते रहे हंै। जीवन को संतुलित एवं जीवनमय बनाने की इस सुंदर और व्यवस्थित प्रक्रिया को हमने तथाकथित विकास एवं आर्थिक स्वार्थ के चलते भारी नुकसान पहुंचाया है। प्रकृति का लगातार हो रहा दोहन, वनो का छीजन और पर्यावरण की उपेक्षा ही कोरोना जैसी महामारी का बड़ा कारण है। वर्तमान में हमने जंगल नष्ट कर दिए और भौतिकवादी जीवन ने इस वातावरण को धूल, धुएं के प्रदूषण से भर दिया है जिससे हमारी सांसें अवरूद्ध हो गयी एवं भविष्य खतरे में है। इस खतरे से बचाने में ओ-टू मिशन-यानी घर-घर वृक्षारोपण क्रांति एक कारगर उपाय है।
धर्मयोग फाउंडेशन मिशन ओ-टू यूनिवर्स के अंतर्गत देशभर में वृक्षारोपण के अनूठे और प्रेरक उपक्रम आयोजित कर रहा है। कोरोना महामारी के बीच आॅक्सीजन की बढ़ती किल्लत को देखते हुए वृक्षारोपण के माध्यम से आॅक्सीजन की मात्रा बढ़ाने का यह अभिनव उपक्रम शांति एवं स्वास्थ्य का अनूठा आयाम है। प्रकृति की जीवंतता ही कोरोना की मुक्ति का माध्यम है। मिशन ओ-टू यूनिवर्स के प्रेरणास्रोत है मंत्र महर्षि श्री योगभूषण महाराज, वे वृक्षारोपण करते हुए प्रकृति संरक्षण के लिये जन्मदिन, विवाह, शादी, अन्य मांगलिक अवसरों पर उपहार स्वरूप वृक्ष प्रदान करने के लिए लोगों को संकल्पित करा रहे हैं। धर्मयोग फाउंडेशन अपने समस्त कार्यक्रमों में लम्बे समय से अतिथियों को उपहार एवं सम्मान स्वरूप तुलसी का पौधा भेंट करता है।
वृक्ष हमारे लिए, जानवरों के लिए, जलवायु संतुलन, जलस्रोत को बचाने के लिए बहुत जरूरी है। वृक्षों को बचाने के लिए लड़ने वाले लोग भी वाकई में शानदार हैं, न केवल बचाने बल्कि वृक्षों को कटने से रोकने के लिये अपनी जान देने वाले राजस्थान के विश्नोई समाज के लोग प्रेरक एवं पूजनीय है। ऐसे लोग जो ये जानते है कि वृक्षों की हमारे जीवन में क्या भूमिका है। पेड़ हमारे जीवन की कहानी का पहला अध्याय है और अगर यहीं नहीं होंगे तो जीवन जल्द ही खत्म हो जाएगा। हम सभी को जीने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत होती है अगर ऑक्सीजन नहीं होगी तो जीवित रहना संभव ही नहीं है और ऑक्सीजन के लिए पेड़ की जरूरत है, इसी वजह से ओ-टू मिशन सबसे बड़ी जरूरत है।
एक तरफ तेज रफ्तार से बढ़ती दुनिया की आबादी, तो दूसरी तरफ तीव्र गति से घट रहे प्राकृतिक ऊर्जा स्रोत- समूचे प्राणि जगत के सामने अस्तित्व की सुरक्षा का महान संकट है। पिछले लम्बे समय से ऐसा महसूस किया जा रहा है कि वैश्विक स्तर पर वर्तमान में सबसे बड़ी समस्या पर्यावरण से जुडी हुई है। इसके संतुलन एवं संरक्षण के सन्दर्भ में पूरा विश्व चिन्तित है। आज पृथ्वी विनाशकारी हासिए पर खड़ी है। सचमुच आदमी को जागना होगा। जागकर फिर एक बार अपने भीतर उस खोए हुए आदमी को ढूंढना है जो सच में खोया नहीं है, अपने लक्ष्य से सिर्फ भटक गया है। यह भटकाव पर्यावरण के लिये गंभीर खतरे का कारण बना है। पानी के परंपरागत स्रोत सूख रहे हैं। वायुमण्डल दूषित, विषाक्त हो रहा है। माटी की उर्वरता घट रही है। इससे उत्पादन में कमी आ रही है। भू-क्षरण, भूमि का कटाव, नदियों द्वारा धारा परिवर्तन-ये घटनाएं आये दिन घटित हो रही हैं। बाढ़, भूस्खलन और भूकंप प्रतिवर्ष तबाही मचा रहे हैं। इससे मनुष्य की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक समृद्धि के भविष्य पर अनेक प्रश्नचिह्न उभर रहे हैं। पर्यावरण चिन्ता की घनघोर निराशाओं के बीच एक बड़ा प्रश्न है कि कहां खो गया वह आदमी जो स्वयं को कटवाकर भी वृक्षों को काटने से रोकता था? गोचरभूमि का एक टुकड़ा भी किसी को हथियाने नहीं देता था। जिसके लिये जल की एक बूंद भी जीवन जितनी कीमती थी।
पर्यावरण को बचाना है तो पेड़ को बचाना होगा क्योंकि पेड़ों के द्वारा ही पर्यावरण शुद्ध हो सकता है। अगर पर्यावरण शुद्ध नहीं होगा तो हम सभी आए दिन किसी ना किसी बिमारी से ग्रसित होंगे। आपको बता दें कि पेड़ बीमारियों से शरीर को निजात दिलाते है। पर्यावरण को बचाए रखने के लिए पेड़ को बचाना जरूरी है और पेड़ हमारे कई कार्यों में सहायक होते हैं- पेड़ों से ही जल का शुद्धिकरण, जल वाष्पीकरण, जल संरक्षण होता है। पर्यावरण में पेड़ नहीं होंगे तो दुनिया खत्म होने में समय नहीं लगेगा, पेड़ ही है जिससे अर्थव्यवस्था विकसित होती है और उसे गति मिलती है उसी कि वजह से रोजगार उत्पन्न होता है। इससे जीवन भी पल्लवित और सुगंधित होगा। वृक्षों से हमें प्राणवायु मिलती है और प्राण वायु के बगैर शरीर की कल्पना नहीं की जा सकती है। आक्सीजन देने की क्षमता, मौसम की अनुकूलता और आयु को ध्यान में रखते हुए इस ओ-टू मिशन के लिए पीपल, जामुन, नीम, वट और बरगद जैसे पेड़ों के साथ-साथ तुलसी के पौधे को रोपणे का अभियान घर-घर में शुरु किया गया है। महानगरों में जहां जगह का अभाव है वहां छतों पर हरिमिता आच्छादित परिवेश निर्मित किये जा रहे हैं।
हमारे पुरखों का कहना था कि प्रकृति का जीवन-रक्षा में उपयोग करना चाहिए न कि प्रकृति का शोषण। सभी ग्रंथों में वृक्ष के महत्व को समझाया है। कहा भी गया है कि एक जलकुंड दस कुंए के समान है, एक तालाब दस जलकुंडों के बराबर है, एक पुत्र का दस तालाबों जितना महत्व है और एक वृक्ष का दस पुत्रों के समान महत्व है। वृक्षों के प्रति ऐसी संवेदनशीलता और चेतना जाग्रत हो, इसी उद्देश्य से ओ-टू मिशन एक शुभ शुरुआत है। वृक्ष प्रकृति की अनुपम देन हैं। ये पृथ्वी और मनुष्य के लिए वरदान हैं। ये देश की सुरक्षा और समृद्धि में भी सहायक होते हैं।
पर्यावरण संकट का मूल कारण है प्रकृति का असंतुलन एवं उपेक्षा। औद्योगिक क्रांति एवं वैज्ञानिक प्रगति से उत्पन्न उपभोक्ता संस्कृति ने इसे भरपूर बढ़ावा दिया है। स्वार्थी और सुविधा भोगी मनुष्य प्रकृति से दूर होता जा रहा है। उसकी लोभ की वृत्ति ने प्रकृति एवं पृथ्वी को बेरहमी से लूटा है। इसीलिए पर्यावरण की समस्या दिनोंदिन विकराल होती जा रही है। न हवा स्वच्छ है, न पानी। तेज शोर आदमी को मानसिक दृष्टि से विकलांग बना रहा है। ओजोन परत का छेद दिनोंदिन बढ़ रहा है। सूरज की पराबैंगनी किरणें, मनुष्य शरीर में अनेक घातक व्याधियाँ उत्पन्न कर रही हैं। समूची पृथ्वी पर उनका विपरीत असर पड़ रहा है। जंगलों-पेड़ों की कटाई एवं परमाणु ऊर्जा के प्रयोग ने स्थिति को अधिक गंभीर बना दिया है।
कोरोना की विकरालता हो या पर्यावरण संकट- अपेक्षा है, प्रत्येक व्यक्ति अपना दायित्व समझे और इस समस्या का सही समाधान ढूँढे। महात्मा गांधी ने कहा-सच्ची सभ्यता वही है, जो मनुष्य को कम से कम वस्तुओं के सहारे जीना सिखाए। अणुव्रत प्रवर्तक आचार्य तुलसी ने कहा-सबसे संपन्न व्यक्ति वह है जो आवश्यकताओं को कम करता है, बाहरी वस्तुओं पर कम निर्भर रहता है।’’ महापुरुषों के ये शिक्षा सूत्र समस्याओं के सागर को पार करने के लिए दीप-स्तंभ का कार्य कर सकते हैं। प्रकृति एवं पर्यावरण की तबाही को रोकने के लिये बुनियादी बदलाव जरूरी है और वह बदलाव सरकार की नीतियों के साथ जीवनशैली में भी आना जरूरी है। इसके लिये धर्मयोग फाउंडेशन के मिशन ओ-टू यूनिवर्स की भांति वृक्षारोपण जीवनशैली बने, तभी मानवता के सम्मुख मंडरा रहे खतरों से बचा जा सकेगा।

महायोद्धा बाजीराव पेशवा’ भारत के अपराजित हिन्दू सेनानी सम्राट!

दीपक कुमार त्यागी

“हर-हर महादेव” के युद्धघोष के साथ देश में अटक से लेकर कटक तक केसरिया ध्वज लहरा कर “हिन्दू स्वराज” लाने का जो सपना वीर मराठा छत्रपति शिवाजी महाराज ने देखा था, उसको काफी हद तक मराठा साम्राज्य के चौथे पेशवा या प्रधानमंत्री वीर बाजीराव प्रथम ने पूरा किया था। जिस वीर महायोद्धा बाजीराव पेशवा प्रथम के नाम से अंग्रेज शासक थर-थर कांपते थे, मुगल शासक बाजीराव से इतना डरते थे कि उनसे मिलने तक से भी घबराते थे। हिंदुस्तान के इतिहास में पेशवा बाजीराव प्रथम ही अकेले ऐसे महावीर महायोद्धा थे, जिन्होंने अपने जीवन काल में 41 युद्ध लड़े और एक भी युद्ध नहीं हारा। साथ ही वीर महाराणा प्रताप और वीर छत्रपति शिवाजी के बाद बाजीराव पेशवा प्रथम का ही नाम आता है, जिन्होंने मुगलों से बहुत लंबे समय तक लगातार लोहा लिया था। पेशवा बाजीराव बल्लाल भट्ट एक ऐसे महान योद्धा थे। जिन्होंने निजाम, मोहम्मद बंगश से लेकर मुगलों, अंग्रेजों और पुर्तगालियों तक को युद्ध के मैदान में कई-कई बार करारी शिकस्त देकर धूल चटाने का कार्य किया था। बाजीराव पेशवा के समय में महाराष्ट्र, गुजरात, मालवा, बुंदेलखंड सहित 70 से 80 प्रतिशत भारत पर उनका शासन था। ऐसा रिकॉर्ड वीर मराठा छत्रपति शिवाजी तक के नाम पर भी नहीं है। जब तक पेशवा बाजीराव जीवित रहे हमेशा अजेय रहे, इस महायोद्धा कभी कोई शासक हरा नहीं पाया।

हालांकि इस महावीर अजेय योद्धा के साथ हमारे देश के इतिहासकारों ने कभी न्याय नहीं किया, उन्होंने एक महान योद्धा को हमेशा गुमनाम नायक बनकर ही रहने दिया। महायोद्धा बाजीराव को इतिहास ने उनका तय सम्मान कभी नहीं दिया, देश में फिल्म “बाजीराव मस्तानी” आने तक तो उनके बारे में बहुत ही कम लोग जानते थे, अधिकांश लोगों ने उसके बाद ही इस महान योद्धा के बारे में जाना और समझा। उस समय जनता के बीच ‘अपराजित हिन्दू सेनानी सम्राट’ के नाम से प्रसिद्ध इस महान सेनानायक पेशवा बाजीराव प्रथम की आज 28 अप्रैल को पुण्यतिथि है।

बाजीराव पेशवा को लोग ‘बाजीराव बल्लाल भट्ट’ और ‘थोरले बाजीराव’ के नाम से भी जानते थे। छत्रपति शिवाजी के बाद वह गुरिल्ला युद्ध तकनीक के सबसे बड़े प्रतिपादक थे। उन्होंने अपने कुशल नेतृत्व, व्यूह रचना एवं कारगर रणकौशल के बलबूते पर मराठा साम्राज्य का देश में बहुत तेजी से सबसे अधिक विस्तार किया था। आइए आज जानते हैं इस वीर महायोद्धा के जीवन से जुड़ी कुछ प्रमुख बातें व उनकी वीर गाथाओं के बारे में।

● पेशवा बाजीराव बल्लाल भट्ट का पारिवारिक इतिहास :-
पेशवा बाजीराव बल्लाल का जन्म 18 अगस्त सन् 1700 को बेहद प्रतिष्ठित चितपावन कुल के ब्राह्मण परिवार में पिता बालाजी विश्वनाथ और माता राधाबाई के घर में हुआ था। उनके पिताजी मराठा छत्रपति शाहूजी महाराज के प्रथम पेशवा (प्रधानमंत्री) थे। बाजीराव का एक छोटा भाई भी था चिमाजी अप्पा। बाजीराव अल्पायु से ही अपने पिताजी के साथ हमेशा सैन्य अभियानों में जाया करते थे।

पेशवा बाजीराव ने दो शादियां की इनकी पहली पत्नी का नाम काशीबाई और बाजीराव के चार बेटे थे। बालाजी बाजीराव उर्फ नानासाहेब का जन्म सन् 1721 में हुआ था और बाद में बाजीराव प्रथम की मौत के बाद सन् 1740 में शाहूजी ने उन्हें अपना पेशवा नियुक्त किया था। दूसरे बेटे की रामचंद्र की मृत्यु जवानी में ही हो गई और तीसरा बेटा रघुनाथराव 1773-74 के दौरान पेशवा के रूप में कार्यरत थे। चौथे पुत्र जनार्दन कि भी जवानी में मृत्यु हो गई थी।

बाजीराव ने मस्तानी से दुसरी शादी की थी जो कि बुंदेलखंड के हिंदू राजा छत्रसाल और उनकी एक फारसी मुस्लिम पत्नी रुहानी बाई की बेटी थी। बाजीराव उससे बहुत अधिक प्रेम करते थे और उसके लिए पुणे के पास एक महल भी बाजीराव ने बनवाया जिसका नाम उन्होंने ‘मस्तानी महल’ रखा। सन् 1734 में बाजीराव और मस्तानी का एक पुत्र हुआ जिसका नाम कृष्णा राव रखा गया था। जो बाद में शमशेर बहादुर प्रथम कहलाया। लेकिन पेशवा परिवार ने कभी भी इस शादी को स्वीकार नहीं किया। परंतु यह ध्यान देने योग्य बात है कि मस्तानी के खिलाफ पेशवा परिवार द्वारा जो घरेलू युद्ध छिड़ा था, उसमें बाजीराव की प्रथम पत्नी काशीबाई ने कभी भी कोई भूमिका नहीं निभाई थी। इतिहासकारों के मतानुसार व विभिन्न ऐतिहासिक दस्तावेजों से पता चलता है कि काशीबाई हमेशा मस्तानी को बाजीराव की दूसरी पत्नी के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार थीं, लेकिन उनकी सास राधाबाई और देवर चिमाजी अप्पा के विरोध के कारण ऐसा कभी नहीं हो सका।

उस समय पुणे के कुछ ब्राह्मणों ने बाजीराव के मस्तानी के साथ संबंधों के कारण पेशवा परिवार का बहिष्कार तक कर दिया था। चिमाजी अप्पा और बालाजी बाजीराव उर्फ नानासाहेब ने सन् 1740 में बाजीराव और मस्तानी को अलग करने हेतु बलप्रयोग की शुरुआत की थी। जब बाजीराव किसी अभियान पर पुणे से बाहर गये हुए थे, तब उन्होंने मस्तानी को घर में नजरबंद किया था। जब एक अभियान पर बाजीराव कि बिगड़ती स्वास्थ्य को देखकर चिमाजी अप्पा ने नानासाहेब को मस्तानी को छोड़ने और बाजीराव से मिलने के लिए भेज देने का आदेश दिया था। लेकिन नानासाहेब ने इसके बजाय अपनी मां काशीबाई को उनके पास भेजा था। कहा जाता है कि काशीबाई ने बाजीराव की मृत्युशैया पर एक वफ़ादार और कर्तव्य परायण पत्नी बनकर बहुत सेवा की थी। 28 अप्रैल 1740 को वीर महान योद्धा बाजीराव प्रथम की बुखार बीमारी के चलते आकस्मिक मृत्यु हो गयी तब उनकी पत्नी काशीबाई और उनके बेटे जनार्दन ने नर्मदा नदी के किनारे रावेरखेडी, पश्चिम निमाड, मध्य प्रदेश में बाजीराव का अंतिम संस्कार किया था।

बाजीराव की मौत के बाद सन् 1740 में उनकी दूसरी पत्नी मस्तानी का भी निधन हो गया और तब बाजीराव की पहली पत्नी काशीबाई ने मस्तानी व बाजीराव के पुत्र शमशेर बहादुर प्रथम का हमेशा ख्याल रखा था।

पेशवा बाजीराव, जिन्हें बाजीराव प्रथम भी कहा जाता है, मराठा साम्राज्य के एक महान पेशवा थे। उस समय पेशवा का अर्थ होता था प्रधानमंत्री। वे मराठा छत्रपति शाहूजी महाराज के चतुर्थ प्रधानमंत्री थे। बाजीराव ने अपना प्रधानमंत्री का पद सन् 1720 से अपनी मृत्यु सन् 1740 तक बहुत ही सफलतापूर्वक संभाला था।

● बाजीराव का गौरवशाली इतिहास :- बचपन से बाजीराव को घुड़सवारी करना, तीरंदाजी, तलवार, भाला, बनेठी, लाठी आदि चलाने का उन्हें बहुत शौक था। 13-14 वर्ष की खेलने की आयु में बाजीराव अपने पिताजी के साथ विभिन्न अभियानों पर घूमते थे। वह उनके साथ घूमते हुए राज दरबारी चालों, युद्ध नीति व रीति-रिवाजों को आत्मसात करते रहते थे। यह क्रम 19-20 वर्ष की आयु तक चलता रहा। अचानक एक दिन बाजीराव के पिता का निधन हो गया, तो वह मात्र बीस वर्ष की उम्र में मराठा शासक छत्रपति शाहूजी महाराज के पेशवा बना गये। इतिहास के अनुसार बाजीराव घुड़सवारी करते हुए लड़ने में सबसे माहिर थे और यह माना जाता है कि उनसे अच्छा घुड़सवार सैनिक भारत में आज तक कभी नहीं देखा गया। उनके पास 4 घोड़े थे, जिनका नाम नीला, गंगा, सारंगा और औलख था। अपने प्रिय घोडों की देखभाल बाजीराव स्वयं करते थे। पेशवा बाजीराव की लंबाई 6 फुट, हाथ लंबे, शरीर बलिष्ठ था। पूरी सेना को वो हमेशा बेहद सख्त अनुशासन में रखते थे। अपनी बेहतरीन भाषण शैली से वो सेना में एक नया जोश भर देते थे।

अल्पवयस्क उम्र के होते हुए भी बाजीराव ने अपनी असाधारण योग्यता प्रदर्शित की। पेशवा बनने के बाद अगले बीस वर्षों तक बाजीराव मराठा साम्राज्य को लगातार बहुत तेजी से बढ़ाते रहे। उनका व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली था। वह जन्मजात नेतृत्वशक्ति, अद्भुत रणकौशल, अदम्य साहस की साक्षात प्रतिमूर्ति थे। उन्होंने अपने बेहद प्रतिभासंपन्न अनुज भाई चिमाजी अप्पा के सहयोग द्वारा शीघ्र ही मराठा साम्राज्य को भारत में सर्वशक्तिमान् बना दिया था। अपनी वीरता, अपने नेतृत्व क्षमता, गुरिल्ला युद्ध तकनीक व बेहतरीन युद्ध-कौशल रणनीति के द्वारा यह महान वीर योद्धा बाजीराव जंग के मैदान में 41 लड़ाई लड़ा और हर लड़ाई को जीतकर हमेशा अजेय विजेता रहा। छत्रपति शिवाजी महाराज की तरह वह बहुत ही कुशल घुड़सवार थे। घोड़े पर बैठे-बैठे भाला चलाना, बनेठी घुमाना, बंदूक चलाना उनके बाएँ हाथ का खेल था। घोड़े पर बैठकर बाजीराव के भाले की फेंक इतनी जबरदस्त होती थी कि सामने वालें दुश्मन को जान बचने के लाले पड़ जाते थे।

बाजीराव के समय में भारत की जनता मुगलों के साथ-साथ अंग्रेजों व पुर्तगालियों के अत्याचारों से त्रस्त हो चुकी थी। यह आक्रांता भारत के देवस्थान मंदिरों को तोड़ते, जबरन धर्म परिवर्तन करते, महिलाओं व बच्चों को मारते व उनका भयंकर शोषण करते थे। ऐसे में बाजीराव पेशवा ने उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक ऐसी विजय पताका फहराई कि चारों ओर उनके नाम का डंका बजने लगा। उनकी वीरता को देखकर लोग उन्हें शिवाजी का साक्षात अवतार मानने लगे थे।

● बाजीराव की शौर्यगाथा :-

-सन् 1724 में शकरखेडला में बाजीराव पेशवा ने मुबारिज़खाँ को परास्त किया था।

-सन् 1724 से 1726 तक मालवा तथा कर्नाटक पर प्रभुत्व स्थापित कर लिया।

-सन् 1728 में पालखेड़ में महाराष्ट्र के शत्रु निजामउलमुल्क को पराजित करके उससे चौथ तथा सरदेशमुखी वसूली की।

-सन् 1728 में मालवा और बुंदेलखंड पर आक्रमण कर मुगल सेनानायक गिरधरबहादुर तथा दयाबहादुर पर विजय प्राप्त की।

-तदनंतर मुहम्मद खाँ बंगश को परास्त किया सन् 1729 में।

-सन् 1731 में दभोई में त्रिंबकराव को नतमस्तक कर बाजीराव ने आंतरिक विरोध का दमन किया।

-सीदी, आंग्रिया तथा पुर्तगालियों एवं अंग्रेजो को भी बहुत ही बुरी तरह पराजित किया।

-बाजीराव का मुगलों की दिल्ली को जीतने का अभियान, उन्होंने सादात खां और मुगल दरबार को सबक सिखाने की सोची। उस वक्त देश में कोई भी ऐसी ताकत नहीं थी, जो सीधे दिल्ली पर आक्रमण करने का ख्वाब भी दिल में ला सके। मुगलों का और खासकर दिल्ली दरबार का ऐसा खौफ सबके सिर चढ़कर बोलता था। लेकिन बाजीराव को पता था कि ये खौफ तभी हटेगा जब दिल्ली पर खुद सीधा हमला होगा। बाजीराव ने उसी उद्देश्य से दिल्ली पर चढ़ाई कर दी। 10 दिन की दूरी बाजीराव ने केवल 500 घोड़ों के साथ 48 घंटे में बिना रुके बिना थके पूरी कर ली। देश के इतिहास में अब तक 2 राजाओं के आक्रमण ही सबसे तेज माने गए हैं- एक अकबर का फतेहपुर से गुजरात के विद्रोह को दबाने के लिए 9 दिन के अंदर वापस गुजरात जाकर हमला करना और दूसरा महान योद्धा बाजीराव का दिल्ली की मुगल सल्तनत पर हमला करना। बाजीराव ने आज जहां तालकटोरा स्टेडियम है वहां पर अपनी सेना का कैंप डाल दिया, उसके पास केवल 500 घुड़सवार सैनिक योद्धा थे। मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीला बाजीराव को लाल किले के इतना करीब देखकर घबरा गया। उसने खुद को लाल किले के अंदर सुरक्षित इलाके में कैद कर लिया और मीर हसन कोका की अगुआई में 10 हजार सैनिकों की टोली को बाजीराव से निपटने के लिए भेजा। बाजीराव के 500 लड़ाकों ने उस सेना को 28 मार्च 1737 के दिन बुरी तरह शिकस्त दी। यह दिन भारत के इतिहास का स्वर्णिम दिन था और मराठा ताकत के लिए सबसे बड़ा दिन।

-सन् 1737 तक बाजीराव की सैन्यशक्ति का चरमोत्कर्ष था। उसी वर्ष भोपाल में बाजीराव पेशवा ने फिर से निजाम को पराजय दी। अंतत: 1739 में उन्होनें नासिरजंग पर विजय प्राप्त की थी।

बाजीराव प्रथम को एक महान घुड़सवार सेनापति के रूप में जाना जाता है और इतिहास के उन महान योद्धाओं में बाजीराव का नाम आता है जिन्होंने कभी भी अपने जीवन में एक भी युद्ध नहीं हारा, यह उनकी महानता व युद्ध कौशल को दर्शाता है। बाजीराव के रूप में भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा वीर महायोद्धा घुड़सवार सेनापति हुआ था।

अमेरिकी इतिहासकार बर्नार्ड मांटोगोमेरी के अनुसार
‘बाजीराव पेशवा भारत के इतिहास का सबसे महानतम सेनापति था और पालखेड़ युद्ध में जिस तरीके से उन्होंने निजाम की विशाल सेनाओं को पराजित किया उस वक्त सिर्फ बाजीराव प्रथम ही ऐसा कर सकते थे, उसके अलावा भारत या भारतीय उपमहाद्वीप में यह सब करने की क्षमता किसी और से नहीं थी।’

बाजीराव प्रथम और उनके भाई चिमाजी अप्पा ने बेसिन के लोगों को पुर्तगालियों के अत्याचार से भी बचाया जो जबरन धर्म परिवर्तन करवा रहे थे और जबरन यूरोपीय सभ्यता को भारत में लाने की कोशिश कर रहे थे। सन् 1739 में अंतिम दिनों में अपने भाई चिमाजी अप्पा को भेजकर उन्हें पुर्तगालियों को हरा दिया और वसई की संधि करवा दी थी।

जिस समय बाजीराव प्रथम को सन् 1720 में छत्रपति शाहूजी महाराज ने मराठा साम्राज्य का पेशवा नियुक्त किया था, जिसके बाद कई सारे बड़े मंत्री बाजीराव से नाराज हो गए जिसके कारण उन्होंने युवा सरदारों को अपने साथ में लाना शुरू कर दिया जिसमें मल्हारराव होलकर, राणोजीराव शिंदे आदि मुख्य रूप से शामिल थे, इन सभी ने बाजीराव के साथ मिलकर संपूर्ण भारत पर अपना प्रभाव जमाने को रात-दिन एक कर दिया था। बाजीराव प्रथम कि सबसे बड़ी जीत सन् 1728 में पालखेड की लड़ाई में हुई जिसमें उन्होंने निजाम की सेनाओं को पूर्णतया दलदली नदी के किनारे लाकर खड़ा कर दिया था, अब निजाम के पास आत्मसमर्पण के अलावा और कोई चारा नहीं बचा था, 6 मार्च 1728 को उन्होंने मुंशी शेवगाँव की संधि की थी।

उन्होंने छत्रपति शाहूजी महाराज को मराठा साम्राज्य का वास्तविक छत्रपति घोषित कर दिया और संभाजी द्वितीय को कोल्हापुर का छत्रपति। उसके बाद जीवन काल में बाजीराव ने कई और लड़ाई लड़ी।

सन् 1737 में जब बाजीराव दिल्ली फतह के बाद वापस पुणे की ओर लौटे, जहां पर मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीला ने साआदत अली खान और हैदराबाद के निजाम को लिखा कि आप बाजीराव को पुणे से पहले ही रोक ले, जिसके चलते निजाम व बाकी सभी की सेना का सामना बाजीराव से भोपाल के निकट हुआ। जिसमें 24 दिसंबर 1737 के दिन मराठा सेना ने सभी को बहुत ही जबरदस्त तरीके से हराया। निजाम ने अपनी जान बचाने के लिए बाजीराव से संधि कर ली। इस बार 7 जनवरी 1738 को ये संधि दोराहा में हुई। मालवा, मराठों को सौंप दिया गया और मुगलों ने 50 लाख रुपए बतौर हर्जाना बाजीराव को सौंपे।

मालवा का संपूर्ण क्षेत्र अब मराठो को प्राप्त हो गया, इससे मराठों का प्रभाव संपूर्ण भारत में स्थापित हो गया। बाजीराव ने सन् 1730 मे शनिवार वाड़ा का पुणे में निर्माण करवाया और पुणे को राजधानी बनाया। बाजीराव ने ही पहली बार देश में “हिंदु पदशाही” का सिद्धांत दिया और सभी हिंदुओं को एक कर विदेशी शक्तियों के खिलाफ लड़ने का बीड़ा उठाया, हालांकि उन्होंने कभी भी किसी अन्य धर्म के मानने वाले लोगों पर कोई अत्याचार नहीं किया।

उन्होंने सन् 1739 में अपने भाई की चिमाजी की सेनाओं के द्वारा पुर्तगालियों को बेसिन में पराजित करके वसई की संधि कर ली, जिसके तहत पुर्तगालियों के अभद्र पूर्ण व्यवहार से भारतीय जनता को बाजीराव प्रथम ने बचा लिया। बाजीराव प्रथम बहुत ही महान और काबिल हिंदू महायोद्धा थे, संपूर्ण भारत में बाजीराव प्रथम की ताकत का जबरदस्त खौफ फैला हुआ था, यहां तक कि जयपुर के राजा जयसिंह द्वितीय भी उनकी काफी तारीफ करते थे। सन् 1731 में उन्होंने मोहम्मद खान बंगस की सेना को पराजित कर महाराजा छत्रसाल को उसे बचा लिया और वापस उनका बुंदेलखंड राज्य उनको सम्मान के साथ लौटा दिया, इसे प्रसन्न होकर उन्होंने अपनी पुत्री मस्तानी का विवाह बाजीराव से कर दिया और जब छत्रसाल की मौत हुई तो बाजीराव को बुंदेलखंड राज्य का एक तिहाई हिस्सा मराठा साम्राज्य में मिलाने के लिए दे दिया गया था।

बाजीराव पेशवा की वीरता के बारे में इतिहास तथा राजनीति के एक विद्वान् सर रिचर्ड टेंपिल ने बाजीराव की महत्ता का यथार्थ अनुमान एक वाक्य समूह में किया है।
वह लिखते है कि-
‘सवार के रूप में बाजीराव को कोई भी मात नहीं दे सकता था। युद्ध में वह सदैव अग्रगामी रहता था। यदि कार्य दुस्साध्य होता तो वह सदैव अग्नि-वर्षा का सामना करने को उत्सुक रहता। वह कभी थकता न था। उसे अपने सिपाहियों के साथ दुःख-सुख उठाने में बड़ा आनंद आता था। विरोधी मुसलमानों और राजनीतिक क्षितिज पर नवोदित यूरोपीय सत्ताओं के विरुद्ध राष्ट्रीय उद्योगों में सफलता प्राप्त करने की प्रेरणा उसे हिंदुओं के विश्वास और श्रद्धा में सदैव मिलती रही। वह उस समय तक जीवित रहा जब तक अरब सागर से बंगाल की खाड़ी तक संपूर्ण भारतीय महाद्वीप पर मराठों का भय व्याप्त न हो गया। उसकी मृत्यु डेरे में हुई, जिसमें वह अपने सिपाहियों के साथ आजीवन रहा। महान योद्धा युद्धकर्ता पेशवा के रूप में तथा हिंदू शक्ति के महान अवतार के रूप में मराठे उसका हमेशा स्मरण करते रहेंगे।’

देश में जब भी होलकर, सिंधिया, पवार, शिंदे, गायकवाड़ जैसी ताकतों की बात होगी तो पता चलेगा कि वे सब पेशवा बाजीराव प्रथम की ही देन थीं। ग्वालियर, इंदौर, पूना और बड़ौदा जैसी ताकतवर रियासतें बाजीराव के चलते ही अस्तित्व में आईं। बुंदेलखंड की रियासत बाजीराव के दम पर ही जिंदा थी।

बाजीराव का 28 अप्रैल 1740 में केवल 40 वर्ष की उम्र में इस दुनिया से चले जाना मराठा शासकों के लिए ही नहीं, बल्कि देश की बाकी पीढ़ियों के लिए भी बहुत ही दर्दनाक भविष्य लेकर आया। उनकी मृत्यु के चलते ही अगले 200 वर्ष तक भारत गुलामी की जंजीरों में जकड़े रहा और उनके बाद देश में कोई भी ऐसा योद्धा नहीं हुआ, जो पूरे देश को एक सूत्र में बांधकर आजाद करवा पाता। जब भी भारत के इतिहास के महान योद्धाओं की बात होगी तो निस्संदेह महान पेशवा श्रीमंत बाजीराव प्रथम का नाम हमेशा गर्व से लिया जायेगा और वह हमेशा हम सभी भारतवासियों के आदर्श व प्रेरणास्रोत सदा बने रहेंगे। आज पुण्यतिथि पर हम सभी देशवासी भारत के महावीर महान योद्धा बाजीराव प्रथम को भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

।। जय हिन्द जय भारत ।।
।। मेरा भारत मेरी शान मेरी पहचान ।।

विराट कोहली का विराट प्रदर्शन

– योगेश कुमार गोयल
‘क्रिकेट का बाइबिल’ कही जाने वाली पत्रिका विजडन क्रिकेटर्स अलमैनाक द्वारा पहले वनडे मैच की 50वीं सालगिरह पर हाल ही में 1971 से 2021 के बीच हर दशक के लिए एक सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटर चुना गया। भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली को पत्रिका द्वारा 2010 वाले दशक का सर्वश्रेष्ठ एकदिवसीय क्रिकेटर चुना गया जबकि इंग्लैंड के हरफनमौला बेन स्टोक्स को लगातार दूसरे साल भी ‘वर्ष का सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटर’ चुना गया। विजडन के सम्पादक के मुताबिक स्टोक्स ने बीते साल 58 मैचों में 641 टेस्ट रन बनाए और 19 विकेट भी हासिल किए, जो किसी भी अन्य क्रिकेटर से बेहतर प्रदर्शन था। पत्रिका के अनुसार दिसम्बर माह में उनके पिता की मौत जैसी पारिवारिक त्रासदी के बावजूद उन्होंने खेल के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई। जहां तक विराट कोहली की बात है तो विश्व कप 2011 की विजेता भारतीय टीम के सदस्य रहे विराट ने 10 वर्षों के अंतराल में 60 से ज्यादा की औसत से 11 हजार से भी ज्यादा रन बनाए। कोहली के अलावा विजडन द्वारा मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर को 1990 के दशक का वनडे क्रिकेटर और 1983 की विश्व कप विजेता भारतीय टीम के कप्तान कपिल देव को 1980 के दशक का सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटर चुना गया। उल्लेखनीय है कि तेंदुलकर ने 1998 में सर्वाधिक 9 वनडे शतक बनाए थे, जो एक कैलेंडर वर्ष में किसी भी बल्लेबाज द्वारा लगाए गए सर्वाधिक शतक का रिकॉर्ड है। कपिलदेव ने 1980 के दशक में सर्वाधिक विकेट झटके थे और सर्वाधिक स्ट्राइक रेट से एक हजार से ज्यादा रन बनाये थे। उनकी कप्तानी में टीम इंडिया ने 1983 विश्व कप अपने नाम किया था।
विराट पिछले चार महीनों के अंदर दूसरी बार दशक के सर्वश्रेष्ठ एकदिवसीय क्रिकेटर चुने गए हैं। इससे पहले उन्हें 28 दिसम्बर 2020 को अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) द्वारा दशक का सर्वश्रेष्ठ पुरुष क्रिकेटर चुना गया था और सर गारफील्ड सोबर्स पुरस्कार से नवाजा गया। आईसीसी द्वारा दशक की टेस्ट, वनडे और टी-20 की जिन टीमों का चयन किया गया था, स्टार बल्लेबाज कोहली तीनों ही फार्मेट में शामिल होने वाले एकमात्र क्रिकेटर रहे थे। विराट को दशक की टेस्ट टीम का कप्तान भी बनाया गया। सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजों में शुमार भारतीय टीम के कप्तान 32 वर्षीय विराट ने अगस्त 2008 में श्रीलंका के खिलाफ एकदिवसीय क्रिकेट में पदार्पण किया था और 254 वनडे में वह 12169 रन बना चुके हैं। 2011 की विश्व कप विजेता भारतीय टीम के सदस्य रहे कोहली ने कुल 42 शतकों के साथ 10 वर्षों की अवधि में ही 11 हजार से ज्यादा रन बनाए हैं। विगत दस वर्षों में विराट ने क्रिकेट के सभी फॉर्मेट में कुल 66 अंतर्राष्ट्रीय शतक तथा 94 अर्धशतक जड़ते हुए 20 हजार से भी ज्यादा रन बनाए। इस एक दशक की अवधि में उन्होंने टेस्ट, टी-20 तथा वनडे में 56.97 के औसत से 20396 रन बनाए और दशक में वनडे में 10 हजार से ज्यादा रन बनाने वाले एकमात्र खिलाड़ी भी बने, जो उन्होंने 61.83 के औसत से बनाए। वनडे मैचों में विराट ने 12040 रन, टेस्ट क्रिकेट में 7318 रन और टी-20 अंतर्राष्ट्रीय मैचों में इन दस वर्षों में 2928 रन बनाए और सभी प्रारूपों में मिलाकर उनका औसत 50 से अधिक का रहा। 70 से अधिक पारी खेलते हुए उनका सर्वाधिक औसत 56.97 का रिकॉर्ड रहा। वन-डे में उन्होंने एक दशक में 39 शतक और 48 अर्धशतक जड़े तथा 112 कैच लपके।

दूसरी बार दशक के सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटर बने विराट
दिल्ली में 5 नवम्बर 1988 को जन्मे विराट कोहली का जीवन आसान नहीं रहा। जिस दिन वह दिल्ली की ओर से कर्नाटक के खिलाफ रणजी मैच खेल रहे थे, उस दिन उनके पिता का देहावसान हो गया था किन्तु दुखों का इतना बड़ा पहाड़ टूटने पर भी विराट ने टूटने के बजाय न केवल वह मैच पूरा किया बल्कि उस मैच को अपने पिता के नाम समर्पित किया था। विराट ने 2008 में एकदिवसीय मैचों में पदार्पण किया था और 2011 में उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में कदम रखा। उसी वर्ष वह विश्व कप की विजेता टीम का हिस्सा भी बने और उसी दौरान अपने पदार्पण मैच में ही शतक जड़कर अहसास करा दिया था कि उनके हौंसले कितने बुलंद हैं। अपने कैरियर का पहला रन विराट ने महेन्द्र सिंह धोनी की कप्तानी में बनाया था और मजेदार बात यह रही कि उनका 10 हजारवां रन भी धोनी की मौजूदगी में ही बना था।
विराट कोहली की विराट शख्सियत के बारे में आस्ट्रेलिया के विख्यात क्रिकेटर टॉम मूडी का कहना है कि विराट इस शिखर पर अकेले हैं, जहां न पहले कोई था और न बाद में कोई होगा। सचिन तेंदुलकर विराट की निरंतरता और जुनून के साथ उनकी बल्लेबाजी को बेमिसाल बताते रहे हैं तो वीरेन्द्र सहवाग का उनके बारे में कहना है कि विराट ने निरंतरता को नए आयाम दिए हैं और यह ‘सॉफ्टवेयर’ हर वक्त अपडेट होता रहा है। बांग्लादेश के स्टार बल्लेबाज तमीम इकबाल तो विराट की तारीफ करते हुए यहां तक कहते हैं कि कभी-कभी ऐसा लगता है कि भारतीय कप्तान विराट कोहली इंसान नहीं हैं क्योंकि जैसे ही वह बल्लेबाजी के लिए उतरते हैं, ऐसा लगता है कि वह हर मैच में शतक बनाएंगे। तमीम के मुताबिक विराट जिस तरह अपने खेल पर कार्य करते हैं, वह अविश्वसनीय है। वह कहते हैं कि पिछले 12-13 वर्षों में उन्होंने सभी महान खिलाडि़यों को खेलते देखा है किन्तु ऐसा व्यक्ति नहीं देखा, जिसने विराट जैसा दबदबा बनाया हो।
जिस समय विराट के कैरियर की शुरूआत हुई थी, उस समय क्रिकेट में धोनी और सहवाग की तूती बोलती थी लेकिन विराट ने कुछ ही समय में अपने प्रदर्शन से हर किसी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। हालांकि तब किसी ने सोचा भी नहीं था कि एक दिन यही विराट अपने नाम के ही अनुरूप क्रिकेट में विराट कीर्तिमान स्थापित करते हुए अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट का इतना बड़ा सितारा बन जाएगा और रिकॉर्डों के मामले में क्रिकेट के भगवान माने जाते रहे सचिन तेंदुलकर को भी पीछे छोड़ देगा। अंडर-19 क्रिकेट टीम हो या सीनियर टीम, विराट ने हर जगह अपने बल्ले से ऐसे जलवे दिखाए हैं कि खेलप्रेमी उनके दीवाने हो गए। कहना गलत नहीं होगा कि अपने जोश, जुनून, तेज गति से रन बनाने की भूख और कड़ी मेहनत के बलबूते पर विराट आज जिस पायदान पर खड़े हैं, वहां उन्होंने तमाम भारतीय खिलाडि़यों को पीछे छोड़ दिया है।

कलचुरी: हैहय यदुवंशी क्षत्रियों की ऐतिहासिक गाथा

—विनय कुमार विनायक
ये ऐतिहासिक गाथा,कलचुरी हैहय यदुवंशी क्षत्रियों की,
चन्द्र, बुध,पुरुरवा,आयु, नहुष,ययाति, यदु, हैहयवंश की,
सोम शीतलम्,बुद्ध पूर्व,आयुष्मान,ययातिवंशी यादों की!

ये सच है कि इस भू की जो चीजें धरा में उपलब्ध है,
उसकी नाश कभी नहीं होती, चाहे वो धन हो या वंश,
न जाने कितनी बार यहां आए राम-रावण, कृष्ण-कंश!

जमाना लाख बुरा चाहे,किसी का यहां बुरा होता नहीं,
तुम मारो किसी वंश,जाति या विचार को हथियार से,
वो मरते नहीं कभी,किसी के चाहने भर से या डर से!

कहने को यह कहा गया है, कि किसी वंश-जाति को,
मारना हो तो उनका इतिहास बिगाड़ दो और मार दो,
मगर काल का चक्र घूमता, कहता बिगड़ी सुधार लो!

‘हैहयानां पंच कुला:’शौण्डिक एक हैहयवंशी क्षत्रिय था,
जो अत्रि ऋषिपुत्र चन्द्र के वंशज सहस्त्रार्जुन का पौत्र,
दत्तात्रेय के पाशुपत पंथ का अनुयायी शिव भक्त था!

शौण्डिक गण महाभारत युद्ध कौरव पक्ष से लड़ा था,
संशप्तक योद्धा बनकर अर्जुन के सामने आ खड़ा था,
‘ब्राह्मणां अमर्षनात्’ क्षत्रिय से वृषलत्व को पाया था!

पाशुपतपंथी कलचुरी राजपूत बन फिर उभर आया था,
शौण्डिकेरा,तुण्डिकेरा,कुण्डिकेरा कुण्डिनपुर के हैहयों ने,
दो सौ अडतालीस ईस्वी में कलचुरी संवत् चलाया था!

पांच सितंबर 248 ई., वि.सं. 306 का पहला आश्विन,
कलचुरी इन्द्रदत्तपुत्र दह्यसेन हुआ था चेदि में आसीन!
चेदि है जबलपुर जहां जाबालिपुत्र सत्यकाम आश्रम था!

कलचुरी सहस्त्रार्जुनवंशी त्रैकुटक की राजधानी त्रिपुरी;
तेवर में बैठा दह्यसेन पुत्र ब्याघ्रसेन, फिर जयनाथ!
आगे कोकल्लदेव 850ई.में, महानृप बनके आया था!

कोकल्लदेव कलचुरी ने त्रिपुरी में राजधानी बसाया था,
ईस्वी स. 850 से 890 तक कोकल्लदेव ने राज किया,
महोबा के श्रीहर्ष चंदेलपुत्री नट्टा से विवाह रचा लिया!

कोकल्लदेव धर्मात्मा,दानी,शास्त्रवेत्ता, परोपकारी राजा थे,
भोज,बल्लभराज,श्रीहर्ष, शंकरगण को निर्भय करने वाले!
कोकल्लदेव के अठारह पुत्रों में मुग्धतुंग उतराधिकारी थे!

मुग्धतुंग पुत्र बालहर्ष और केयूरवर्ष युवराज गद्दी पे बैठे,
बालहर्ष का उत्तराधिकारी,उनके अनुज केयूरवर्ष युवराज थे,
इनकी रानी नोहला ने नोहलेश्वर शिवमन्दिर बनवाई थी!

युवराजदेव पुत्र लक्ष्मण ने वैद्यनाथ मठ पे ह्रदयशिव व
नोहलेश्वर मठ पर उनके शिष्य अघोरशिव को बैठाए थे,
लक्ष्मण ने पश्चिम विजयकर,कोशल व औण्ड्र को जीते!

औण्ड्र राजा से जीत में मिली स्वर्ण कालिया नाग मूर्ति,
दक्षिण समुद्र में पूजनकर सोमनाथ को अर्पित किए थे,
लक्ष्मण ने बिल्हारी में लक्ष्मणसागर तालाब बनवाए थे!

लक्ष्मण के पुत्र शंकरगण और युवराज देव द्वितीय थे,
युवराजदेवपुत्र कोकल्ल दूसरे औ’उनके पुत्र गांगेयदेव हुए,
गांगेयदेव ने सोने, चांदी और तांबे के सिक्के चलवाए!

गांगेयदेव ने चंदेलों से,कालिंजर का किला जीत लिए थे,
कालिंजराधिपति कहलाए, उड़िया व बंगाल को पछाड़े थे,
1041ई. में अक्षयवट प्रयाग में रानियों संग मोक्ष पाए!

अरब विद्वान अलबरुनी दस सौ तीस में डाहल आए थे
औ’ गांगेयदेव की राजव्यवस्था की भूरी-भूरी प्रशंसा की,
कालिंजर के चंदेलों ने गांगेयदेव को जगत विजेता लिखे!

गांगेयदेव राज्य विस्तारकर,विक्रमादित्य विरुदधारी बने थे,
उनके उत्तराधिकारी महादानी काशीराज कर्णदेव कलचुरी थे,
कर्णदेव ने कर्णावती नगरी बसाई मध्यप्रदेश कारीतलाई में!

कर्णदेव महान शासक थे काशी का कर्णमेरु मंदिर बनवाए,
कर्णदेव के भेड़ाघाट अभिलेख में उत्कीर्ण उनकी विरुदावली,
उनके विक्रम से कलिंग कांप उठा, पाण्ड्य ने उग्रता छोड़ी!

कर्णदेव के काल में महमूद गजनवी ने आक्रमण किया था
और दक्षिण से तमिल शासक राजेंद्र चोल ने पूर्व क्षेत्र घेरा,
राजेन्द्र चोल ने तंजोर से बंगाल,पांड्य,केरल, कलिंग जीता!

तमिल दल प्रधान राजेंद्र चोल अतिमहत्वाकांक्षी शासक थे,
पूर्वी भारत विजेता,जंगी बेड़ा ले मलाया,जावा,सुमात्रा जीते,
ऐसी विकट स्थिति में मध्यदेश में मालवा,चेदि बढ़ रहे थे!

उन दिनों मालवा में राजा भोज और चेदि में गांगेयदेव थे,
गांगेयदेव के पुत्र कर्णदेव सिंह कलचुरी सिंहासनारुढ़ होकर,
किया धनुष टंकार, चंदेल-महमूद-राजेंद्र चोल पे किया वार!

उन राजाओं को अशक्त कर कर्ण ने मगध पे किया प्रहार,
इस समय तक महमूद और राजेंद्र चोल स्वर्ग गए सिधार,
महिपाल पुत्र नयपाल को करद बना,किया संबंधी स्वीकार!

फिर कर्णदेव दक्षिणाभिमुख हुए, चोल से युद्ध करने गए,
पांड्य और मुरल पर बरस पड़ी कर्णदेव सिंह की तलवार,
गुर्जर,हूण हेकड़ी भूले,कुंग,बंग,कलिंग ने किए हार स्वीकार!

त्रिपुरी के साथ उत्तर भारत में काशी बनी दूजा राजधानी,
बारह वर्षों तक कर्ण ने असि से चारों दिशाएं जीत लिए,
थानेश्वर,हांसी,नगरकोट मुसलमानी आतंक से मुक्त हुए!

किम्बदंती;’कर्ण डहरिया कर्ण जुझार,कर्ण हांक जानै संसार’
कर्ण की सेना डाहल मंडल से, चारों तरफ भारत में फैली,
छत्तीसगढ़ से झारखण्ड के कर्णटांड़/कर्माटांड़,कर्णग्राम तक!

कर्णग्राम यानि कैरोग्राम में कर्णेश्वर महादेव कर्ण स्थापित,
काशी में कर्णमेरु, विश्वनाथ,झारखंड में कर्णेश्वर, वैद्यनाथ
के उपासक कर्णदेव सिंह कलचुरी महादानी,राजा महान थे!

कर्णदेवसिंह 1041 ई में त्रिपुरी सिंहासन पे आसीन हुए थे,
मैथिली-अंगिका-बंगला-उड़िया कवि विद्यापति दरबारी उनके,
कर्ण व हूंणपुत्री आवल्लदेवी पुत्र; यश:कर्ण उत्तराधिकारी थे!

कर्णदेव का अवसान ईस्वी सन् ग्यारह सौ बाईस में हुआ,
त्रिपुरी की गद्दी पर कर्ण पुत्र यश:कर्ण का अभिषेक हुआ,
यश:कर्णदेव का उत्तराधिकारी नरसिंह देव कलचुरी हुए थे!

नरसिंहकन्या कर्पूरदेवी की शादी सोमेश्वर चौहान से हुई,
कर्पूरदेवी के लाल थे मु.गोरी के विजेता पृथ्वीराज चौहान,
पृथ्वीराज महावीर थे जिसे मु.गोरी ने छल से मार दिया!

कलचुरी की भाग्य लक्ष्मी अब वाम होने चली नरसिंह से,
जयसिंहदेव, फिर विजयसिंहदेव, फिर अजयसिंहदेव आए,
किन्तु हैहयवंशी कलचुरी की, त्रिपुरी सत्ता सिमटती जाए!

महाभारत कालीन कर्ण से भी कलचुरी कर्ण बड़े दानी थे,
हरबोले बसुदेवा भिक्षुक ने कर्ण दानी की विरुदावली गाई,
“राजा करण बड़ दानी भए कि हर गंगा।
सवा पहर मन सोनो देंय कि हरगंगा।।
सोन काट नरियर में देंय कि हर गंगा
रानी करे खिचराहा दान की हरगंगा।।
बेटा करें गौवों का दान कि हरगंगा।
बहू करें वस्तर का दान कि हरगंगा।।
कर कन्या मोतिन का दान कि हरगंगा।
धरम धुजा द्वारे फहराय कि हरगंगा।।“

एक बार भगवान ने कलचुरी कर्ण दानी की परीक्षा ली,
तपी वेशधारी देव ने एक बालक से कर्ण का पता पूछे,
बालक ने कहा ‘‘कौन करण का पूछो नाव कि हरगंगा।
एक करण चेदि का नाव कि हरगंगा।।
दूजो करण पंडित का नाव कि हरगंगा।
तीजे करण कलवारो नाव कि हरगंगा।।
और करण राजन का नाव कि हरगंगा।“
तब तपस्वी बोला हमें दानी करण,चेदि करण दिखाओ,
हम कलचुरी करण से मिलना चाहते,राजा से मिले वो,
राजा से मिलकर तपी ने कहा पुत्र का मांस खिलाओ!!

दानी कर्ण कलचुरी कर्ण ने अपने बालक को काटकर,
रानी ने मांस पकाके तपी के सामने रख दी परोसकर,
कौर उठाकर ज्यों लिन्हा,भगवान प्रकट हो वर दीन्हा,

‘‘दिशा दिशा कर टेरे गए कि हरगंगा।
तब पिता पिता कर मिलगे आय कि हरगंगा।।“

कर्णदेव या लक्ष्मीकर्ण देश के शक्तिशाली शासक थे,
कला, साहित्य औ’ संस्कृति रक्षक कर्ण के दरवार में
विद्यापति, गंगाधर, बिल्हण कवि थे, कर्ण दरबार में!

कर्ण को हिन्दू नेपोलियन कहा जाता,उन्होंने चौरासी
तालाब बनवाए जबलपुर में, अपनी मां के तर्पण को,
जो कर्णदेव को जन्म देकर स्वर्ग को सिधार गई थी!

कर्णदेव ने ढेरों मंदिर बनवाए और ब्राह्मणों को दिए,
अमर कंटक में मंदिर समूह,पंच मठ,कर्ण, शिवमंदिर,
जोहिला नदी मंदिर,पातालेश्वर शिवालय और पुष्करी!
—विनय कुमार विनायक

कोरोना की मार देश में हाहाकार!

वाह रे देश की बड़ी-बड़ी कुर्सी पर विराजमान बड़े-बड़े जिम्मेदार। क्या कोई भी जिम्मेदारी लेगा यह सोचना ही अपने आपमें बेईमानी है। क्योंकि यह सत्य है कि कोई भी जिम्मेदारी लेने के लिए आगे कदापि नहीं आएगा। दुखद यह है कि समस्या के निराकरण पर जितना जोर देना चाहिए वह बल आँकड़ों को गोल-गोल घुमाने में लगाने का प्रयास किया जा रहा है। यह बहुत ही दुखद है। ऐसा क्यों है यह सबसे बड़ा सवाल है। क्योंकि धरातल की हकीकत और कागजों पर खींची जा रही लाईन में बहुत बड़ा अंतर है। ऐसा क्यों किया जा रहा है। यह कार्य किसके द्वारा किया जा रहा है। इसके पीछे कौन लोग हैं। यह बड़ा सवाल है। क्योंकि जिस प्रकार की स्थिति शमशान घाटों से उभरकर आ रही है वह दिल को दहला देने वाली है। लेकिन इतनी गंभीर परिस्थिति के बावजूद भी आंकड़ों को गोल-गोल घुमाया जा रहा है। ऐसी स्थिति बहुत ही चिंताजनक है।
सवाल यहीं नहीं रुक जाता। अपितु यहाँ से अनेकों सवालों का जन्म होता है क्योंकि शमशान घाटों की स्थिति इतनी भयावक है कि जिसे शब्दों में उकेरने का साहस कोई भी नहीं जुटा सकता। जहाँ पर चारों ओर चिताएं ही चिताएं दिखाई देती है। शमशान घाटों के बाहर का दृश्य ऱोंगटे को खड़े कर देता है। क्योंकि शवों की लम्बी लाईन लगी हुई है। आज शव अंतिम संस्कार की प्रतीक्षा में लाईन में रखे है जोकि अपनी बारी का इंतजार करते हैं। इतनी भयावक स्थिति है जिसे देखकर पत्थर भी अपने आँसुओं को नहीं रोक सकता। लेकिन देश के सिस्टम को चलाने वाले जिम्मेदारों को यह जमीनी हकीकत दिखाई नहीं दे रही। बड़ी-बड़ी कुर्सी पर बैठे हुए जिम्मेदार समस्या के निराकरण से इतर आँकड़ों को गोल-मोल घुमाने में लगे हुए है। स्थिति बड़ी ही दर्दनाक है शमशान के द्वार पर खड़ा प्रत्येक व्यक्ति विलाप करता हुआ दिखाई दे रहा है क्योंकि कोई अपने पिता के शव को लेकर आया है तो कोई अपनी माता के शव को। कोई अपने भाई के शव को लेकर आया है तो कोई अपने बहन के शव को। इससे भी दर्दनाक स्थिति यह है कि जब शमशान के द्वार पर 70 वर्ष के बुजुर्ग के कांधों पर अपने नौजवान बेटे का शव होता है। बूढ़ा पिता अपने बुढ़ापे की दुहाई देकर विलाप करता है। इस प्रकार के दुख दर्द को देखकर शरीर क्या आत्मा तक काँप उठती है। लेकिन यह दुख उन जिम्मेदारों को नहीं दिखाई दे रहा। इसके पीछे का कारण क्या है। इस प्रकार का व्यव्हार जनता के प्रति क्यों किया जा रहा है। जनता का दुख दर्द उनको क्यों नहीं दिखाई दे रहा। इसके पीछे शायद कारण यह है कि जो जिम्मेदार हैं वह अपनी आँखों से समस्या को नहीं देखना चाहते। क्योंकि वह बंगलों एवं गाड़ियों से उतकर शमशानों एवं कब्रिस्तानों तथा अस्पतालों तक जाने की जहमत नहीं उठाना चाहते। बंगलों के अंदर बैठकर आंकड़ो को गोल-मोल करने की जुगत में पूरी तरह से लगे हुए हैं। यह बड़ी दुखद स्थिति है।
अस्पतालों की स्थिति और भी दुखद है जिसे शब्दों में उकेर पाना अत्यंत जटिल है। क्योंकि अस्पतालों की सीमा एवं क्षमता सीमित है संसाधन भी सीमित हैं। परन्तु मौत और जीवन के बीच झूलती हुई जिन्दगियों की कतार बहुत लंबी है। बात यहीं तक नहीं रूकती क्योंकि प्रति सेकेण्ड कोरोना से पीड़ितों की तादाद और तेजी के साथ बढ़ती चली जा रही है जिससे कि लाईन बहुत तेजी के साथ बढ़ रही है। इसी कारण किसी को बेड मिल पा रहा तो किसी को बेड नहीं मिल पा रहा। अब कल्पना करें जब बेड तक नसीब नहीं हो पा रहा तो उपचार कैसा…? चिकित्सा से संबन्धित सुविधाओं को पाने की स्थिति क्या होगी…? क्योंकि जब बेड ही नहीं मिल पा रहा तो दवाईयां एवं ऑक्सीजन तक पहुँच कैसे हो पाएगी यह बड़ा सवाल है…? यह सवाल इतना बड़ा है जोकि कौंध रहा है। यह बात बिल्कुल आईने की तरह साफ है। देश की जनता किस हाल में है इसे समझने के लिए किसी बड़े फार्मूले की जरूरत नहीं है। मात्र बंगलों से बाहर निकलकर अस्पतालों तक जाने की जरूरत है। अस्पताल तक जब आप पहुँचेगे तो स्थिति देखकर आपकी आँखों से आँसू निकल पड़ेंगे क्योंकि स्थिति इतनी भयावक है। कोई बेड के लिए गिड़गिड़ा रहा है तो कोई दवाईयों के लिए अपने हाथों को जोड़ रहा है। कोई ऑकसीजन के लिए दर-दर भटकता हुआ दिखाई दे रहा है। देश की इतनी बड़ी आबादी जिस तरह से काल के मुँह के सामने अपने आपको खड़ा पा रही है। उससे दिन प्रति दिन चिंताएं और बढ़ रहीं हैं। जिस पर कार्य करने की जरूरत है। क्योंकि यह स्थिति ऐसी है जिसको नहीं छिपाया जा सकता। समस्या से ग्रस्त लोग जिस समस्या में जी रहे हैं वह अपनी समस्या को कैसे नकार सकते हैं। क्या वह अपनी समस्या को भूल सकते हैं…? यह बड़ा सवाल है।
इसलिए बंगलों से के बाहर निकलकर जमीन पर उतरने की जरूरत है। आँकड़ों को गोल-मोल घुमाने का खेल चल पाएगा यह कहना मुश्किल है। इसलिए समय रहते जिम्मेदारों को जमीन पर उतरकर कार्य करने की जरूरत है। आँकड़ों को घुमाना देश के भविष्य के लिए शायद ठीक नहीं होगा। क्योंकि ऊँची-ऊँची कुर्सी पर बैठे हुए जिम्मेदारों को यह समझ लेना चाहिए की अब जमीन पर उतरकर कार्य करना पड़ेगा। धरातल की तस्वीर को बदलना होगा। छोटी लाईन के सामने बड़ी लाईन कागज पर खींच देने से कार्य नहीं चलेगा। क्योंकि आरोप-प्रत्यारोप के खेल से जनता का भला कभी भी नहीं हुआ। किसी भी समस्या का निराकरण आँकड़ों के माध्यम से कभी भी नहीं हुआ। समय बदलता रहता है शासन तथा सत्ता दोनो बदलती रहती है। लेकिन किसी का दर्द दुख और गम कभी भी नहीं बदलता। जिसने अपने किसी को खो दिया वह कभी भी उसको नहीं पा सकता। किसी माँ को अपना बेटा नहीं मिलेगा। किसी अनाथ बेटी को अपना पिता नहीं मिलेगा जिसको इस महामारी ने उससे छीन लिया। इसलिए वक्त की जरूरत को समझते हुए कार्य करने की जरूरत है।

आपदा में अवसर के खिलाफ संकट में समाधान की जरूरत

मनोज कुमार
आपदा में अवसर तलाशने वालों के खिलाफ संकट में समाधान तलाशने की जरूरत है. स्वाधीनता के पहले कुछ सालों के बाद हमारे समाज को भ्रष्टाचार, घोटाले ने निगल लिया है. बार बार और हर बार हम सब इस बात को लेकर चिंता जाहिर करते रहे हैं लेकिन यह लाइलाज बना हुआ है. आज हम जिस चौतरफा संकट से घिरे हुए हैं, उस समय यह बीमारी कोरोना से भी घातक साबित हो रही है. खबरों में प्रतिदिन यह पढऩे को मिलता है कि कोरोना से बचाव करने वाले इंजेक्शन, दवा और ऑक्सीजन की कालाबाजारी हो रही है. अस्पताल मनमाना फीस वसूल रहे हैं. जान बचाने के लिए लोग अपने घर और सम्पत्ति बेचकर अस्पतालों का बिल चुका रहे हैं. हालात बद से बदतर हुआ जा रहा है. शिकायतों का अम्बार बढ़ा तो सरकार सक्रिय हुई और टेस्ट से लेकर एम्बुलेंस तक की दरें तय कर दी गई लेकिन अस्पताल प्रबंधन पर इसका कोई खास असर होता हुआ नहीं दिखा. कोरोना से रोगी बच जा भी जा रहा है तो जर्जर आर्थिक हालत उसे जीने नहीं दे रही है. यह आज की वास्तविक स्थिति है लेकिन क्या इसके लिए अकेले सरकार दोषी है या हमारा भी इसमें कोई दोष है? क्यों हम इस स्थिति से उबरने के लिए सरकार के साथ खड़े नहीं होते हैं? यह बात बहुत साफ है कि सरकार कोई और नहीं, हम हैं क्योंकि हमने उन्हें चुनकर सत्ता सौंपी है. हमारे सामने विकल्प है कि वे हमारे चयन पर खरे नहीं उतरते हैं तो अगली बार उन्हें बेदखल कर सकते हैं. खैर, यह बात तब होगी जब हम इस विकट स्थिति से उबर जाएंगे. अभी कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर चर्चा करना जरूरी है.
आपदा को अवसर बनाकर जो लोग धन बटोरने में जुटे हुए हैं, उनके खिलाफ खड़े होकर हम संकट में समाधान की पहल कर सकते हैं. इंजेक्शन, दवा और ऑक्सीजन की कालाबाजारी से इंकार करना मुश्किल है.लेकिन असल सवाल यह है कि आखिर इसके लिए जिम्मेदार कौन है? मेरी बात आपको आहत कर सकती है लेकिन सच यही है कि हम अपनी और अपनों की जान बचाने के लिए इस कालेधंधे को बढ़ावा देते हैं. आर्थिक रूप से सम्पन्न लोगों को इस बात से फर्क नहीं पड़ता है कि बाजार की कीमत क्या है और हम उसकी कीमत क्या चुका रहे हैं. फर्क पड़ता है उन बहुसंख्यक आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को जिनका हक मारा जा रहा है. जब हम स्वयं को शिक्षित और जागरूक होने का दावा करते हैं तो हमारा फर्ज बनता है कि हम इन कालाबाजारियों को ट्रेप करें और पुलिस के हाथों सौंप दें. हमारे भीतर तक डर इतना समा चुका है कि अच्छे खासे शिक्षित लोग भी कोरोना से बचाव की दवा और ऑक्सीजन जैसी जरूरी चीजों का बेवजह भंडारण कर रहे हैं. कालाबाजारियों और जमाखोर दोनों ही समाज के लिए नासूर बन चुके हैं. इन दोनों वृत्तियों के मनोरोगियों के खिलाफ हम और आप खड़े हो जाते हैं तो स्थिति स्वयमेव नियंत्रण में आ जाएगी. सरकार ने इस दिशा में कदम बढ़ा दिया है और मनमाना वसूले गए बिलों की वापसी करायी गई है. यही नहीं सरकार का आग्रह है कि ऐसे अस्पताल प्रबंधन के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करायी जाए. अब हमें सरकार के साथ खड़ा होकर उन सभी लोगों को बेनकाब करना है जो समाज के लिए नासूर बनते जा रहे हैं.
कोरोना का जो भयावह मंजर है, उससे हम थरथरा रहे हैं लेकिन इस भयावह मंजर में एक-एक सांस बचाने के लिए डॉक्टर और उनकी मेेडिकल टीम जुटी हुई है, उसका हमें धन्यवाद कहना चाहिए. निश्चित रूप से जिस दबाव में डॉक्टर और मेडिकल टीम काम कर रही है, उनके व्यवहार में कभी कुछ तल्खी आ सकती है. कभी वे अपनी ड्यूटी पर थोड़ी देर से आते हैं तो पेनिक होने के बजाय उनका सहयोग कीजिए. लेकिन जो मनमाना वसूली हो रही है, वह अस्पताल प्रबंधन की है. लेकिन आम लोगों में यह धारणा बन चुकी है कि डॉक्टर लूट रहे हैं. यह शिकायत भी दूर होना चाहिए. अस्पातल प्रबंधन के निर्देश और दबाव में डॉक्टर जरूरत ना होने के बाद भी ऐसी दवा लेने की सलाह दे रहे हैं, जिसकी जरूरत ही नहीं है. एक मित्र की सीटी रिपोर्ट एकदम क्लीयर और ऑक्सीजन लेवल 100 होने के बाद भी फेवीफ्लू दवा जिसका डोज पहले दिल 3200 एमजी और बाद के पांच दिन प्रतिदिन 1600 एमजी लेने की सलाह दी गई. यही नहीं, इलाज के लिए गए व्यक्ति का पुराना मेडिकल रिकार्ड भी नहीं पूछा जाता है. जिस व्यक्ति का मैं उल्लेख कर रहा हूं, वह पहले से लीवर के रोग से पीडि़त है और डॉक्टर द्वारा निर्देशित दवा लेन पर शर्तिया उसके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता. अकारण अस्पताल में भर्ती कराने का भी दबाव बनाया जाता है. एक पत्रकार मित्र को भी जब डॉक्टर ने एडमिट करने की बात कही तो उस मित्र ने पूछ लिया कि आपके अस्पताल के मुख्य द्वार पर ‘नो बेड अवेलेबल’ लिखा है तो आप मुझे कहां एडमिट करेंगे. डॉक्टर निरूत्तर. एक वरिष्ठ डॉक्टर ने कहा कि उन पर अस्पताल का दबाव रहता है, इसलिए ऐसी दवा लिखी जाती है. यह अपने आपमें दुर्भाग्यजनक है. मेरे एक मित्र को डॉक्टरों के समय पर अस्पताल नहीं पहुंचने की शिकायत थी लेकिन उनके पास इस बात का जवाब नहीं था कि डॉक्टरों के लौटने का वक्त क्या है? डॉक्टर की आलोचना कर आप उनके मनोबल को तोडक़र अपना नुकसान कर रहे हैं.  सिक्के के दो पहलु होते हैं और हमें दोनों तरफ देखना होगा. डॉक्टर और मेडिकल स्टॉफ शिद्दत के साथ मानव सेवा में जुटे हुए हैं. इन सब को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए लेकिन जो संकट के समय भी धन संग्रहण में जुटे हैं, उन्हें  सरकार के संज्ञान में लाना आज की सबसे बड़ी जरूरत है.
एक-एक सांस के लिए लड़ते मरीजों और उनके परिजनों से लाखों का बिल वसूलने वाले अस्तपाल प्रबंधन के खातों की जांच इनकम टेक्स डिपार्टमेंट द्वारा की जानी चाहिए. नगद लेन-देन पर पूर्णत: प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए तथा इस बात की भी जांच हो कि कोरोना बीमारी के पहले अस्पताल की आय और व्यय कितना था और वर्तमान में कितना है, तो स्थिति साफ हो जाएगी. यह किसी को परेशान करने की प्रक्रिया नहीं है बल्कि आम आदमी को राहत दिलाने की और सरकार के प्रयासों को मजबूती दिलाने में एक कदम हो सकता है. बिलिंग काउंटर के पास सीसीटीवी कैमरा लगाना अनिवार्य होना चाहिए ताकि समस्त किस्म के व्यवहार की रिकार्डिंग हो और उन पर नियंत्रण पाया जा सके. वक्त बहुत नाजुक है. सबको सबका सहयोग चाहिए. यह वक्त दोषारोपण का नहीं है बल्कि एक-दूसरे का हाथ थाम कर आगे बढक़र मुसीबत से निकलने का है. सरकार की कमियां बताने में गुरेज ना हो लेकिन निंदारस से बाहर आना होगा. 

सृष्टि के नियम


किये है जो कर्म हमने,उन्हीं का फल पा रहे हैं,
बोए है जो पेड़ हमने,उन्हीं के फल खा रहे है।
चला आ रहा है यह नियम सृष्टि का सदियों से,
उसी को सब लोग संसार में निभाते जा रहे है।।

आवागमन का नियम सृष्टि का चला आ रहा है,
जो आया है यहां वह यहां से चला जा रहा है।
नियम अटल है सृष्टि के उनमें परिवर्तन नहीं है,
जिसको भेजा है यहां उसको बुलाया जा रहा है।।

जिसको मुंह दिया है उसको खाने को दे रहा है,
सबकी नैय्या को भवसागर से वहीं खे रहा है।
अदृश्य वह है लेकिन वह सबको देख रहा है,
जिसने सब कुछ दिया वहीं सब कुछ ले रहा है।।

आर के रस्तोगी

रोहित सरदाना राष्ट्रवादी सोच के शिखर थे



 ललित गर्ग 

मशहूर न्यूज एंकर, टीवी पत्रकारिता के एक महान् पुरोधा पुरुष, मजबूत राष्ट्रवादी सोच एवं निर्भीक वैचारिक क्रांति के सूत्रधार, उत्कृष्ट राष्ट्रवादी के धनी रोहित सरदाना की असामयिक मौत अंचभित कर रही है। एक संभावनाओं भरी टीवी पत्रकारिता का सफर ठहर गया, उनका निधन न केवल पत्रकारिता के लिये बल्कि भारत की राष्ट्रवादी सोच के लिये एक गहरा आघात है, अपूरणीय क्षति है। उनका निधन एक युग की समाप्ति है। भले ही कोरोना संक्रमण और दिल का दौरा पड़ने से वह दुनिया छोड़कर चले गए, लेकिन एक दिन पहले तक वह लोगों की मदद के लिए सक्रिय थे। कोरोना का शिकार हुए लोगों के इलाज के लिए रेमडेसिविर इंजेक्शन, ऑक्सीजन, बेड आदि तक की व्यवस्था के लिए वह लगातार सोशल मीडिया पर एक्टिव थे और लोगों से सहयोग की अपील कर रहे थे। उन्होंने लोगों से प्लाज्मा डोनेट करने की भी अपील की थी।
लंबे समय तक जी न्यूज में एंकर रहे रोहित सरदाना इन दिनों आज तक न्यूज चैनल में एंकर के तौर पर काम कर रहे थे। कोरोना वायरस ने देश की अनेक प्रतिभाओं को काल का ग्रास बनाया है, लेकिन सरदाना को उठा ले जाएगा, ये कल्पना नहीं की थी। लंबे समय से टीवी मीडिया का चमकता-दमकता, साहसी एवं बेवाक वैचारिकी का चेहरा रहे रोहित सरदाना इन दिनों ‘आज तक’ न्यूज चैनल पर प्रसारित होने वाले शो ‘दंगल’ की एंकरिंग करते थे। उन्होंने सशक्त एवं प्रभावी टीवी पत्रकारिता से नये मानक गढ़े। भले ही उनकी तेज एवं तीखी पत्रकारिता से एक वर्ग-विशेष खफा था, पत्रकारिता जगत में भी कुछ लोग उनसे विचार-भेद रखते थे। लेकिन इसके बावजूद वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई जैसे लोगों को भी रोहित सरदाना की मौत ने विचलित किया, उन्होंने ट्विटर पर श्रद्धांजलि देते हुए कहा, ‘दोस्तों बेहद दुखद खबर है। रोहित मेरे बीच राजनीतिक मतभेद थे, लेकिन हमने हमेशा बहस को एंजॉय किया।


रोहित सरदाना एक जुनूनी एंकर पत्रकार थे। उनके टीवी शो को देखने वाले लोगों की संख्या करोड़ों में है और अपने निर्भीक एवं साहसी राष्ट्रवादी सोच से वे काफी लोगों के चहेते थे। तमाम उग्रपंथी ताकतों की तरफ से लगातार धमकियां मिलने के बावजूद उन्होंने अपनी टीवी पत्रकारिता की धार को कम नहीं होने दिया। विडम्बना है कि कट्टरवादी शक्तियां उनकी मौत पर भी खुशियां मना रही है, यह कैसा जहर वातावरण में घुला है। जबकि रोहित ने पत्रकारिता में उच्चतम मानक स्थापित किये। वे न केवल अपने शो के जरिये राष्ट्र की ज्वलंत समस्याओं को सशक्त तरीके से प्रस्तुति देते रहे बल्कि गरीबों, अभावग्रस्तों, पीडितों और मजलूमों की आवाज बनते रहे और उनकी बेखौफ सोच एवं वाणी के सामने सत्ताएं हिल जाती थी। अपनी कलम, विचार एवं प्रस्तुति के जरिये उन्होंने लोकतंत्र के चैथे स्तंभ को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके शो एवं टीवी कार्यक्रमों ने लाखों लोगों की समस्याओं को सरकारों और प्रशासन के सामने रखा और भारतीय लोकतंत्र में लोगों की आस्था को और मजबूत बनाने में योगदान दिया।
रोहित सरदाना एक प्रसिद्ध भारतीय पत्रकार, एंकर, स्तंभकार, संपादक ही नहीं थे, बल्कि वे एक संवेदनशील राष्ट्रवादी व्यक्तित्व थे। उनको हम भारतीयता, पत्रकारिता एवं भारतीय राजनीति का अक्षयकोष कह सकते हैं, वे चित्रता में मित्रता के प्रतीक थे तो गहन मानवीय चेतना के चितेरे जुझारु, नीडर, साहसिक एवं प्रखर व्यक्तित्व थे। वे एक ऐसे बहुआयामी व्यक्तित्व थे, जिन्हें पत्रकार जगत का एक यशस्वी योद्धा माना जाता है। उन्होंने आमजन के बीच, हर जगह अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया। लाखों-लाखों की भीड़ में कोई-कोई रोहित सरदाना जैसा विलक्षण एवं प्रतिभाशाली व्यक्ति जीवन-विकास की प्रयोगशाला मेें विभिन्न प्रशिक्षणों-परीक्षणों से गुजरकर महानता का वरन करता है, विकास के उच्च शिखरों पर आरूढ़ होता है और अपनी मौलिक सोच, कर्मठता, कलम, जिजीविषा, पुरुषार्थ एवं राष्ट्र-भावना से समाज एवं राष्ट्र को अभिप्रेरित करता है। देश और देशवासियों के लिये कुछ खास करने का जज्बा उनमें कूट-कूट कर भरा था।
रोहित सरदाना का जन्म 22 सिंतंबर, 1979 को कुरुक्षेत्र, हरियाणा में हुआ था। रोहित ने वहीं से अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी की और आगे की पढ़ाई के लिए वह हिसार चले गए और उन्होंने गुरु जम्बेश्वर विश्वविद्यालय विज्ञान और प्रौद्योगिकी में दाखिला लिया। उन्होंने वहां से मनोविज्ञान में स्नातक की डिग्री हासिल की है और उसी यूनिवर्सिटी से मास कम्युनिकेशन में मास्टर्स की डिग्री हासिल की है। रोहित सरदाना शादीशुदा हैं और उनकी दो बेटियां भी हैं। उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में भी दाखिला लिया था क्योंकि वह हमेशा से अभिनेता बनना चाहते थे लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो पाया, यही समय था जब उन्होंने पत्रकार बनने का फैसला किया। 2004 में, सहारा के लिए उन्हें सहायक निर्माता के रूप में काम करने का मौका मिला और जी न्यूज में कार्यकारी संपादक के रूप में शामिल होने से पहले उन्होंने सहारा में दो साल तक काम किया। वर्तमान में, वह एक शो कर रहे है जहाँ वह संसद सदस्यों के लिए एक रिपोर्ट कार्ड बनाते थे, जिसमें उनके संसदीय क्षेत्र में उनके काम का सारा विवरण होता है। इसके अलावा, उनके शो मतदाताओं को अपना नेता तय करने में मदद करते हैं। जी न्यूज में एक डिबेट शो “ताल-ठोक” के किया करते थे, जिसमे वे समकालीन और सामाजिक मुद्दों पर चर्चा करते थे। इस शौ से उन्होंने काफी नाम कमाया। 2017 में, उन्होंने जी न्यूज को छोड़, आजतक में ज्वाइन कर लिया और इनदिनों वे डिबेट शो दंगल की मेजबानी करते थे। रोहित सरदाना को कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया है और उन पुरस्कारों में संसुई बेस्ट न्यूज प्रोग्राम अवार्ड, माधव ज्योति सम्मान और सर्वश्रेष्ठ समाचार एंकर अवार्ड शामिल हैं जो दिल्ली एजुकेशन सोसाइटी द्वारा प्रायोजित किया गया था। 2018 में ही रोहित सरदाना को गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार से नवाजा गया था।
रोहित सरदाना एक ऐसे जीवन की दास्तान है जिन्होंने अपने जीवन को बिन्दु से सिन्धु बनाया है। उनके जीवन की दास्तान को पढ़ते हुए जीवन के बारे में एक नई सोच पैदा होती है। जीवन सभी जीते हैं पर सार्थक जीवन जीने की कला बहुत कम व्यक्ति जान पाते हैं। रोहितजी के जीवन कथानक की प्रस्तुति को देखते हुए सुखद आश्चर्य होता है एवं प्रेरणा मिलती है कि किस तरह से दूषित राजनीतिक, साम्प्रदायिक परिवेश एवं आधुनिक युग के संकुचित दृष्टिकोण वाले समाज में जमीन से जुड़कर आदर्श जीवन जिया जा सकता है, आदर्श स्थापित किया जा सकता है। और उन आदर्शों के माध्यम से देश की पत्रकारिता, राजनीति, पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय और वैयक्तिक जीवन की अनेक सार्थक दिशाएँ उद्घाटित की जा सकती हैं। उन्होंने व्यापक संदर्भों में जीवन के सार्थक आयामों को प्रकट किया है, वे आदर्श जीवन का एक अनुकरणीय उदाहरण हंै, मूल्यों पर आधारित पत्रकारिता, समाजसेवा एवं राष्ट्रवादी सोच को समर्पित एक लोककर्मी का जीवनवृत्त है। उनके जीवन से कुछ नया करने, कुछ मौलिक सोचने, पत्रकारिता एवं राजनीति को राष्ट्र प्रेरित बनाने, सेवा का संसार रचने, सद्प्रवृत्तियों को जागृत करने की प्रेरणा मिलती रहेगी। उनके जीवन से जुड़ी राष्ट्रवादी धारणा और यथार्थपरक सोच ऐसे शक्तिशाली हथियार थे जिसका वार कभी खाली नहीं गया। वे जितने उच्च नैतिक-चारित्रिक पत्रकार थे, उससे अधिक मानवीय एवं सामाजिक थे। उनके निधन को सिद्धांतों पर अडिग रहकर न झुकने, न समझौता करने की पत्रकारिता की समाप्ति समझा जा सकता है। वे समर्पित-भाव से पत्रकारिता-धर्म के लिये प्रतिबद्ध थे। आपके जीवन की खिड़कियाँ समाज एवं राष्ट्र को नई राष्ट्रवादी दृष्टि देने के लिए सदैव खुली रही। उनकी सहजता और सरलता में गोता लगाने से ज्ञात होता है कि वे गहरे मानवीय सरोकार से ओतप्रोत एक अल्हड़ व्यक्तित्व थे। बेशक रोहितजी अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन अपने सफल पत्रकार जीवन के दम पर वे हमेशा भारतीय पत्रकारिता के आसमान में एक सितारे की तरह टिमटिमाते रहेंगे।

भारतीय परम्पराओं का पालन कर दी जा सकती है कोरोना महामारी को मात

कोरोना महामारी का संकट, अपने दूसरे दौर में, एक बार पुनः देश के सामने पहले से भी अधिक गम्भीर चुनौती बनकर आ खड़ा हुआ है। इस बार संक्रमण की रफ्तार कहीं तेज है। प्रतिदिन संक्रमित होने वाले मरीजों की संख्या जहां प्रथम दौर में लगभग 97,000 की अधिकतम संख्या तक पहुंची थी, वहीं इस बार यह लगभग 4 लाख की अधिकतम संख्या तक पहुंचने की ओर अग्रसर है। साथ ही, इस बार कोरोना का संक्रमण अधिक भीषण भी है जिसके कारण पहिले दौर की महामारी की तुलना में दूसरे दौर में मृत्यु दर भी अधिक दिखाई दे रही है। अस्पतालों में मरीजों के लिए बिस्तरों की कमी नजर आने लगी है, आक्सीजन की कमी दिख रही है और कहीं कहीं दवाओं की कमी भी देखी जा रही है। भारत के एक विशाल देश होने के कारण समस्या कई बार वृहदाकार रूप ले लेती है। हालांकि केंद्र सरकार, राज्य सरकारें, स्थानीय प्रशासन अपनी ओर से भरपूर प्रयास कर रहे हैं ताकि देश के नागरिकों पर कोरोना महामारी के कारण पड़ने वाले प्रभाव को कम किया जा सके। परंतु, फिर भी इस महामारी पर नियंत्रण होता दिखाई नहीं दे रहा है।      

इस प्रकार की महामारी के इस दौर में यह देखा जा रहा है कि भारतीय समाज भी आगे आकर एक दूसरे की मदद में जुट गया है। कई सेवा संस्थान, औद्योगिक एवं व्यावसायिक संगठन तथा सामाजिक एवं धार्मिक संगठन आगे आकर कोरोना से प्रभवित परिवारों की मदद में जुट गए हैं। वैसे भी गंभीरतम संकटों से जूझने के मामले में भारतीय समाज की क्षमता सर्वविदित ही है। यही भारतीय परम्परा भी रही है कि जब जब देश पर गम्भीर संकट आया है, भारतीय समाज एक दूसरे के सहयोग के लिए एक दूसरे के साथ आ खड़ा हुआ है।   

कोरोना महामारी के प्रथम दौर के समय भारत ने विश्व के कई देशों को दवाईयां उपलब्ध कराते हुए अन्य प्रकार से भी उनकी सहायता की थी। अब चूंकि कोरोना महामारी का दूसरा दौर भारत पर भारी पड़ता दिख रहा है तो न केवल भारतीय समाज बल्कि विश्व के कई अन्य देशों ने भी भारत की ओर मदद का हाथ बढ़ाया है। अमेरिका, रूस, सिंगापुर, थाईलेंड, आस्ट्रेलिया, साऊदी अरब, यूनाइटेड अरब अमीरात, जर्मनी, फ़्रान्स, बेलजीयम, आयरलेंड, स्वीडन आदि देशों ने दवाईयां, आक्सीजन उत्पादन करने वाले संयत्र, वेक्सीन, वेंटीलेटर, दवाईयों के भारत में निर्माण हेतु कच्चा माल आदि भारत की ओर रवाना कर दिये है अथवा शीघ्र ही रवाना करने वाले हैं।

देश पर आए संकट की इस घड़ी में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता भी हमेशा की भांति देश के विभिन्न भागों में सेवा कार्यों के लिए सक्रिय हो गए हैं। कई नगरों में तो स्वयंसेवकों की टोलियां अपने अपने स्तर पर कोरोना से प्रभावित परिवारों की सहायता करती दिखाई दे रही हैं। चाहे वह कोरोना से गम्भीर रूप से प्रभावित मरीज के लिए अस्पताल में बिस्तर की व्यवस्था करवाना हो, आक्सीजन की व्यवस्था करना हो, दवाईयों की व्यवस्था करना हो, वेंटीलेटर की व्यवस्था करना हो, मरीज़ को कवारंटाईन करने के उद्देश्य से उसे अस्पताल में भर्ती कराना हो, मरीज़ के घर पर अन्य सदस्यों के लिए भोजन की व्यवस्था करना, आदि कार्यों में अपने आप को लिप्त कर लिया है। कई स्थानों पर तो संघ ने अन्य समाजिक एवं धार्मिक संस्थाओं के साथ मिलकर कवारंटाईन केंद्रों की स्थापना भी की है। साथ ही, स्वयंसेवकों द्वारा समाज में लोगों को वेक्सीन लगाने हेतु प्रेरित भी किया जा रहा है एवं वेक्सीन लगाए जाने वाले केंद्रों पर भी अपनी सेवाएं प्रदान की जा रही हैं। कुल मिलाकर स्वयंसेवक कई प्रकार की टोलियां बनाकर समाज में कोरोना से प्रभावित परिवारों को व्यवस्थित रूप से अपनी सेवायें प्रदान कर रहे हैं। बहुत बड़ी मात्रा में धार्मिक एवं सामाजिक संगठन भी इस कार्य आगे आकर विभिन प्रकार की सेवायें प्रदान कर रहे हैं यथा, कोरोना से प्रभवित हुए गरीब तबके के घरों में खाद्य सामग्री पहुंचाई जा रही है, मंदिरों, गुरुद्वारों आदि से भोजन की व्यवस्था की जा रही है, आदि। प्रत्येक मानव को अपना परिजन मानकर उसकी सेवा में लग जाना यह स्वयंसेवकों का विशेष गुण है।

कोरोना महामारी के प्रथम दौर के समय भी स्वयंसेवकों ने सेवा भारती के माध्यम से लगभग 93,000 स्थानों पर 73 लाख राशन के किट का वितरण किया था, 4.5 करोड़ लोगों को भोजन पैकेट वितरित किये थे, 80 लाख मास्क का वितरण किया था, 20 लाख  प्रवासी मजदूरों और 2.5 लाख घुमंतू मजदूरों की सहायता की थी, इस काल में स्वयंसेवकों ने 60,000 यूनिट रक्तदान करके भी एक कीर्तिमान स्थापित किया था। इस प्रकार सेवा कार्य का एक उच्च प्रतिमान खड़ा कर दिखाया था जो कि किसी चैरिटी की आड़ में धर्मांतरण करने वालों की तरह का कार्य नहीं था। यह सब जाती, पाती, संप्रदाय, ऊंच-नीच के भेद से ऊपर उठकर “वसुधैव कुटुंबकम” अर्थात परिवार की भावना से किया गया सेवा कार्य था।

आज संकट की इस घड़ी में यदि हम भारतीय परम्पराओं का पालन करते हुए समाज में एक दूसरे के सहयोग में आकर खड़े होते हैं तो निश्चित ही जिन परिवारों पर यह आपदा आई है उन पर इस आपदा के प्रभाव को कम किया जा सकता है। इस दृष्टि से कहा भी जाता है (प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज ने भी अपने एक लेख में बताया है) कि भारतीय समाज अद्वितीय रूप से संगठित समाज है क्योंकि वह मानता है कि एक ही परमसत्ता संपूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त है और उससे परे भी वही है। इस सृष्टि का संचालन कतिपय सार्वभौम आधारों से ही हो रहा है और इन आधारभूत नियमों को ही मूल धर्म या प्रथम धर्म या सनत धर्म या सनातन धर्म कहते हैं। अत: मनुष्य मात्र के लिये जिन आधारभूत सार्वभौम नियमों को मानना आवश्यक है, वे सत्य, अहिंसा, अस्तेय, संयम, मर्यादित उपभोग, पवित्रता, संतोष, श्रेष्ठ लक्ष्यों के लिये कष्ट सहन, ज्ञान की साधना और सर्वव्यापी भागवत सत्ता में श्रद्धा – ये 10 सार्वभौम नियम मानवधर्म हैं इनका पालन तो सभी मनुष्यों को करना ही चाहिए। इनके पालन से निश्चित ही समाज पर आए संकटों के प्रभाव को कम किया जा सकता है। आज कोरोना महामारी के प्रभाव को कम करने के लिए किए जा रहे प्रयासों में भी इन्हीं भारतीय परम्पराओं की झलक दिखाई देती है। जैसे मास्क पहनना (अहिंसा), अपने आस पास स्वच्छता का वातावरण बनाए रखना (पवित्रता), शारीरिक दूरी बनाए रखना (भारत में व्याप्त हाथ जोड़कर अभिवादन करने के पद्धति को तो आज पूरा विश्व ही अपना रहा है), निजी तथा सार्वजनिक कार्यक्रमों में संख्या की सीमा का पालन करना (मर्यादित उपभोग), कर्फ़्यू पालन जैसे नियम – अनुशासन एवं आयुर्वेदिक काढ़ा सेवन, भाप लेना (भारतीय चिकित्सा पद्धति की ओर भी आज पूरा विश्व आशा भारी नज़रों से देख रहा है), योग क्रिया करना (भारतीय योग को भी आज पूरा विश्व अपनाता दिख रहा है), टीकाकरण जैसे स्वास्थ्य के विषयों के बारे में व्यापक जनजागरण करना आदि का वर्णन तो सनातनी परम्परा में भी दृष्टिगोचर होता है। समाज के सभी वर्गों में आपसी तालमेल स्थापित करते हुए सकारात्मकता, आशा एवं विश्वास का भाव जगाकर  भी कोरोना महामारी को नियंत्रित किया जा सकता है। जैसा कि ऊपर वर्णित किया जा चुका है कि इसके लिए भारत में कई धार्मिक, सामाजिक एवं स्वयंसेवी संगठन भरपूर प्रयास कर रहे हैं।    

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि भारतीय परम्पराओं का पालन कर भी कोरोना महामारी को न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में ही मात दी जा सकती है।