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ईश्वर के सत्यस्वरूप को जानकर ही उपासना करना उचित है

-मनमोहन कुमार आर्य
बहुत से मनुष्य ईश्वर को मानते हैं, उसमें श्रद्धा व आस्था भी रखते हैं परन्तु ईश्वर के सत्य स्वरूप को जानते नहीं है। इस कारण से वह ईश्वर की सच्ची उपासना को प्राप्त नहीं हो पाते। हम किसी भी वस्तु से तभी लाभ उठा सकते हैं कि जब हमें उस वस्तु के सत्य गुणों व लाभों का ज्ञान हो। ईश्वर भी एक यथार्थ सत्य सत्ता व पदार्थ है। ईश्वर वैसा नहीं है जैसा कि लोग प्रायः उसके विषय में कहा करते हैं। ईश्वर एक है और वह इस संसार का रचने वाला, पालन करने वाला तथा प्रलय करने वाला है। हम देखते हैं कि संसार का कहीं आदि व अन्त नहीं है अर्थात् यह संसार व विश्व अनन्त परिमाण व क्षेत्रफल वाला है। हमारे जैसे अनन्त सौर मण्डल इस ब्रह्माण्ड में है। संसार में एक ईश्वर होने व सर्वत्र एक दूसरे में बाधक किसी प्रकार की व्यवस्था न होने से पूरे ब्रह्माण्ड का स्वामी व संचालक एक ईश्वर ज्ञात होता है। वेदों में ईश्वर के इस स्वरूप को सर्वव्यापक अर्थात् सब स्थानों पर विद्यमान कहा जाता है। ईश्वर संसार के सभी पदार्थों में ओतप्रोत है। वह प्रत्येक पदार्थ के भीतर भी है और बाहर भी है।

ईश्वर के इस गुण व स्वरूप के कारण ईश्वर को सर्वव्यापक और सर्वान्तर्यामी कहा जाता है। वेदों में ईश्वर को सच्चिदानन्दस्वरूप अर्थात् सत्य, चित्त एवं आनन्द से युक्त वाला बताया गया है। स्वाध्याय, विचार व चिन्तन करने पर ईश्वर का यह स्वरूप सत्य विदित होता है। ईश्वर सत्य है अर्थात् उसकी सत्ता है। ईश्वर काल्पनिक व अयथार्थ सत्ता नहीं है। सत्यस्वरूप ईश्वर चेतन व सर्वज्ञ है। वह दुःखों से सर्वथा रहित एवं पूर्ण आनन्द से युक्त है। वह सर्वव्यापक होकर अखण्ड एवं सर्वत्र एकरस है। कहीं भी कोई मनुष्य ईश्वर की उपासना करता व उससे रक्षा की याचना करता है तो ईश्वर उसकी रक्षा करने के साथ उसकी सहायता करता, उसके दुःख दूर करता तथा उसे सुख प्रदान करता है। ईश्वर ने ही हमारे माता व पिता को जन्म दिया और वही उनका पालनकर्ता रहा है। वही ईश्वर हमारे माता पिता के द्वारा हमें इस संसार में हमारे पूर्वजन्मों के पाप व पुण्य कर्मों का सुख व दुःख रूपी फलों का भोग कराने के लिए जन्म देते हैं। हमें जो सुख व दुःख प्राप्त होते हैं वह हम सबको अपने अपने शुभ व अशुभ कर्मों के परिणामस्वरूप ही प्राप्त होते हैं।

ईश्वर की उपासना करने के अनेक कारण हैं। एक कारण ईश्वर की उपासना से मनुष्य के दुःखों का दूर होना भी होता है। वेदों में कहा गया है कि ईश्वर हमारे सभी दुरितानि अर्थात् सम्पूर्ण दुर्गुण, दुव्र्यसन और दुःखों को दूर करने वाला और हमारे लिये जो हितकारी गुण, कर्म, स्वभाव, पदार्थ और सुख की स्थितियां होती हैं, वह हमें प्राप्त कराता है। केवल सुखों की प्राप्ति के लिए ही उपासना नहीं की जाती अपितु ईश्वर की उपासना करना ईश्वर के सभी जीवात्माओं पर अनादि काल से अनवरत किये जाने वाले उपकारों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए हुआ करता है। उपासना में हम ईश्वर के गुणों व उपकारों का विचार, चिन्तन व ध्यान करते हैं। उनके उपकारों को स्मरण कर उसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। 

माता, पिता, विद्वानों व इतर मनुष्यों के किन्हीं उपकारों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना सभी मनुष्यों का नैतिक कर्तव्य होता है। हम स्वयं अच्छा नहीं समझते कि हम किसी पर निरन्तर उपकार करते रहें और वह व्यक्ति व प्राणी हमारी उपेक्षा व तिरस्कार करता रहे। वह हमारे उपकारों के लिए कृतज्ञ न हो। हमें धन्यवाद न करें। हमारा उचित सम्मान न करे। यदि कोई व्यक्ति उपकार करने वाले मनुष्य का कृतज्ञ नहीं होता तो यथायोग्य व्यवहार के आधार पर ऐसे व्यक्तियों के प्रति उपकारी तो हुआ जा सकता हैं परन्तु उसे हम साधारण कोटि में ही रखेंगे। जो व्यक्ति किसी के उपकार करने पर कृतज्ञता का अनुभव करता व उसके प्रति सम्मान प्रदर्शित करते हुए उनके प्रति आदर, श्रद्धा, विनय आदि की भावना रखता है, वह मनुष्य देश, समाज व संसार में प्रशंसनीय होता है। इसी प्रकार से हमें उपासना में बैठकर ईश्वर के सत्यस्वरूप का विचार करना होता है। उसके उपकारों को स्मरण करना होता है, उपकारों के लिए उसका धन्यवाद करना होता है और उससे सन्मार्ग दर्शन, सत्प्रेरणा करने सहित दुःखों को दूर करने तथा सुख प्रदान करने की प्रार्थना करनी होती है। हम ईश्वर से रक्षा की प्रार्थना करने के साथ उसकी उसके सत्य गुणों से स्तुति करते हुए स्वस्थ व निरोग जीवन, सन्तानों के हित व कल्याण सहित अपने धर्म व संस्कृति की रक्षा एवं उसके संवर्धन की प्रार्थना कर करते हैं। संसार के सब लोगों के सुख व उनके सद्कर्म कर्म करने सहित वेदों का स्वाध्याय करने व वेदमार्ग पर चलने की प्रार्थना भी हम ईश्वर से कर सकते हैं। ऐसा करने से हमारा जीवन परोपकारमय सत्कर्मों से युक्त होता है और हम सभी विद्वानों, मनुष्यों एवं प्राणियों के प्रिय बन जाते हैं। अतः ईश्वर की उपासना ईश्वर के सत्य गुणों व उपकारों का ध्यान करते हुए सभी मनुष्यों को करनी चाहिये। 

ईश्वर ने यह संसार हम सब जीवों के लिये बनाया है। हम सब जीव ईश्वर की सन्तान के समान हैं। ईश्वर हमारा माता व पिता दोनों ही है। वही हमारा आदि आचार्य और वर्तमान में भी शुभ कर्मों का प्रेरक है। ईश्वर के हम पर न केवल इस जीवन में अपितु अनादि काल से अनन्त उपकार हैं। भविष्य में भी हम ईश्वर से अनुग्रहित रहेंगे। इस कारण से हमारा कर्तव्य होता है कि हम आचार्यों के उपदेश तथा वेदों के स्वाध्याय से ईश्वर व आत्मा के सत्यस्वरूप को प्राप्त होकर उसकी प्रतिदिन प्रातः व सायं व अन्य समयों में भी स्तुति, प्रार्थना, उपासना, चिन्तन व ध्यान करते रहें और उसके उपकारों के लिए उसका धन्यवाद करते रहें। 

ऋषि दयानन्द ने ईश्वर की स्तुति पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि वह परमात्मा सब में व्यापक, शीघ्रकारी और अनन्त बलवान् है। वह शुद्ध, सर्वज्ञ, सब का अन्तर्यामी, सर्वोपरि विराजमान, सनातन, स्वयंसिद्ध परमेश्वर अपनी जीवरूप सनातन अनादि प्रजा को अपनी सनातन विद्या से यथावत् अर्थों का बोध वेद (चार वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद) द्वारा कराता है। सगुण भक्ति का उल्लेख कर वह लिखते हैं कि जिस जिस गुण से युक्त व सहित होकर परमेश्वर की स्तुति करना होता है वह सगुण स्तुति होती है। वह ईश्वर कभी शरीर धारण नहीं करता, वह कभी जन्म नहीं लेता, जिस में छिद्र नहीं होता, नाड़ी आदि के बन्धन में नहीं आता ओर कभी पापाचरण नहीं करता, जिस में क्लेष, दुःख, अज्ञान कभी नहीं होता, इत्यादि जिस जिस राग, द्वेषादि गुणों से पृथक मानकर परमेश्वर की स्तुति करना है वह निर्गुण स्तुति कहाती है। इन सगुण व निर्गुण दोनों स्तुतियों का फल यह है कि जैसे परमेश्वर के गुण हैं वैसे गुण, कर्म, स्वभाव अपने भी करना। जैसे वह न्यायकारी हैं तो हम भी न्यायकारी होवें। और जो मनुष्य केवल भांड के समान परमेश्वर के गुणकीर्तन करता जाता है और अपने चरित्र व जीवन को नहीं सुधारता है, उसका स्तुति करना व्यर्थ होता है। स्तुति का अर्थ यह समझ में आता है कि जो गुण ईश्वर में हैं उन्हें हमें अपने जीवन में धारण करना है। ईश्वर के गुणों का उल्लेख करना व उन्हें अपने जीवन में धारण करना ही ईश्वर की स्तुति कहलाती है। 

हमें ईश्वर से प्रार्थना भी करनी होती है। प्रार्थना करने से हमारे भीतर लघुता का भाव आता है और हम ईश्वर को सर्वश्रेष्ठ स्वीकार करते हैं। इससे हममें अहंकार का नाश होता है। प्रार्थना करने वाला मनुष्य निरभिमानी होता है। प्रार्थना एक प्रकार से मनुष्य को अभिमान रहित बनाने की प्रक्रिया भी है। ऋषि दयानन्द ने वेदों के आधार पर ईश्वर की प्रार्थना करने पर प्रकाश डाला है। हम यहां दो मन्त्रों के प्रार्थनापरक अर्थ प्रस्तुत कर रहे हैं। प्रथम प्रार्थना है कि हे अग्ने! अर्थात् प्रकाशस्वरूप पमेश्वर आप की कृपा से जिस बुद्धि की उपासना विद्वान्, ज्ञानी और योगी लोग करते हैं उसी बुद्धि से युक्त हम को इसी वर्तमान समय में आप बुद्धिमान व ज्ञानवान कीजिये। दूसरी प्रार्थना- ईश्वर प्रकाशस्वरूप हैं, वह कृपा कर मुझमें भी प्रकाश स्थापन करें। आप अनन्त पराक्रम युक्त हैं इसलिये मुझ में भी कृपाकटाक्ष से पूर्ण पराक्रम धरिये। ईश्वर अनन्त बलयुक्त हैं इसलिये वह मुझ में भी बल धारण कराये। ईश्वर अनन्त सामथ्र्ययुक्त हैं, वह मुझ को भी पूर्ण समाथ्र्य दें। ईश्वर दुष्ट काम और दुष्टों पर क्रोधकारी हैं, मुझ को भी वैसा ही कीजिये। आप निन्दा, स्तुति और स्वअपराधियों का सहन करने वाले हैं, कृपा से मुझ को भी वैसा ही कीजिये। स्तुति प्रार्थना व उपासना को विस्तार से समझने के लिये सत्यार्थप्रकाश के सप्तमसमुल्लास का उपासना प्रकरण पढ़ना चाहिये। 

उपासना का उल्लेख कर ईश्वर के सच्चे उपासक ऋषि दयानन्द ने लिखा है कि जिस पुरुष के समाधि योग से अविद्यादि मल नष्ट हो गये हैं, आत्मस्थ होकर परमात्मा में चित्त जिस ने लगाया है उस को जो परमात्मा के योग का सुख होता है वह वाणी से कहा नहीं जा सकता क्योंकि उस आनन्द को जीवात्मा अपने अन्तःकरण से ग्रहण करता है। उपासना शब्द का अर्थ समीपस्थ होना है। अष्टांग योग से परमात्मा के समीपस्थ होने और उसके सर्वव्यापी, सर्वान्तर्यामीरूप से प्रत्यक्ष (व ईश्वरका साक्षात्कार करने) के लिए जो-जो काम करना होता है वह सब मनुष्यों व उपासकों को करना चाहिये। 

ईश्वर की उपासना करने से मनुष्य को पहाड़ के समान दुःख प्राप्त होने पर उसे सहन करने की शक्ति प्राप्त होती है। उपासना करने वाला मनुष्य दुःखों में घबराता नहीं है। इस विषय में ऋषि के शब्दों को लिखकर हम लेख को विराम देते हैं। ऋषि लिखते हैं कि जैसे शीत से आतुर पुरुष का अग्नि के पास जाने से शीत निवृत्त हो जाता है वैसे परमेश्वर के समीप प्राप्त होने से सब दोष दुःख छूट कर परमेश्वर के गुण, कर्म, स्वभाव के सदृश जीवात्मा के गुण, कर्म, स्वभाव पवित्र हो जाते हैं, इसलिये परमेश्वर की स्तुति, प्राथर््ाना ओर उपासना अवश्य करनी चाहिये। इस से इस उपासना का फल पृथक् होगा परन्तु आत्मा का बल इतना बढ़ेगा, कि पर्वत के समान दुख प्राप्त होने पर भी वह न घबरायेगा ओर सब को सहन कर सकेगा। क्या यह छोटी बात है? और जो परमेश्वर की स्तुति, प्रार्थना और उपासना नहीं करता वह कृतघ्न और महामूर्ख भी होता है। क्योंकि जिस परमात्मा ने इस जगत् के सब पदार्थ जीवों को सुख के लिये दे रखे हैं, उस का गुण वा उपकार भूल जाना, ईश्वर ही को न मानना, कृतघ्नता और मूर्खता है। 

हम आशा करते हैं कि इस लेख के पाठक उपासना के महत्व को समझेंगे एवं वेद व ऋषियों के ग्रन्थों का स्वाध्याय करने के साथ ईश्वर की उपासना अवश्य ही करेंगे जिससे वह उपासना के सभी लाभों धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष को प्राप्त हो सकें। 

संघ एवं सेवा के सुमेरु थे दर्शनलाल जैन

  • ललित गर्ग –
    वीर प्रसूता भारत माता की कोख से ऐसे अनगिनत लाल जन्में, जिन्होंने देश हित में अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। राष्ट्रसेवी, समाजसेवी एवं संघसेवी दर्शनलाल जैन उनमें से एक हैं, जिन्होंने अपने जीवन के 94 वर्षों में जब से उनकी प्रज्ञा जागृत हुई, एक-एक क्षण राष्ट्र, समाज एवं व्यक्ति उत्थान एवं उन्नयन के लिये जीया। सेवा का अनूठा इतिहास रचते-रचते 8 फरवरी 2021 को उनका निधन हो गया, उनका निधन न केवल हरियाणा प्रांत के लिये, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिये, शिक्षा जगत के लिये बल्कि समाजसेवा के क्षेत्र लिये एक बड़ा आघात है, अपूरणीय क्षति है। हम उनके निधन को समाजसेवा के क्षेत्र में चारित्रिक एवं नैतिक मूल्यों के एक युग की समाप्ति कह सकते हंै।
    सामाजिक कार्यों के लिए पद्मभूषण सम्मान पाने वाले समाजयोद्धा दर्शनलाल जैन का जन्म 12 दिसंबर 1927 को जगाधरी में एक धार्मिक और उद्योगपति जैन परिवार में हुआ था। 1944 में संघ के संपर्क में आए तथा 1946 में प्रचारक के रूप में संघ कार्य करने का निश्चय किया, उम्र बढ़ने के साथ, उनमें देशभक्ति की भावना बढ़ती गयी और इसी कारण आरएसएस में उनकी सक्रियता एवं सहभागिता तीव्रतर होती गयी। 15 साल की उम्र में उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया। जैन कई सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं से जुड़े हुए थे। उन्हें युवा और आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को शिक्षित करने के प्रयासों के लिए जाना जाता है। 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी जब यमुनानगर आए थे तब उन्होंने सार्वजनिक मंच पर उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिया था। समाज सेवा के कामों में आगे रहने वाले जैन का सक्रिय राजनीति में शामिल होने की ओर कभी झुकाव नहीं रहा। 1954 में जनसंघ द्वारा एमएलसी सुनिश्चित सीट के लिए मिले प्रस्ताव को उन्होंने अस्वीकार कर दिया था। बाद में उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार द्वारा राज्यपाल के पद की पेशकश भी की गई, लेकिन उन्होंने गवर्नर का पद भी स्वीकार नहीं किया।
    ‘बाबूजी’ नाम से पुकारे जाने वाले दर्शनलाल जैन जुझारू एवं जीवट वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के हरियाणा प्रांत के पूर्व प्रांत संघचालक रहे, वे संघ एवं समाजसेवा के सुमेरु थे, जिन्होंने कर्मयोगी की भांति जीवन जीया। यह सच है कि वे हरियाणा के थे यह भी सच है कि वे संघ के थे किन्तु इससे भी बड़ा सच यह है कि वे राष्ट्र के थे, राष्ट्रनायक थे। समाजसेवा के क्षेत्र के वे दुर्लभ व्यक्तित्व थे। उदात्त संस्कार, लोकजीवन से इतनी निकटता, इतनी सादगी-सरलता, इतना संस्कृतिप्रेम, इतना समाजसेवा का संस्कार और इतनी सचाई से समाज निर्माण के संकल्प ने उनके व्यक्तित्व को बहुत और बहुत ऊँचा बना दिया था। वे अन्तिम साँस तक देश की सेवा करते रहे। उनका निधन एक राष्ट्रवादी सोच के सेवाआयाम का अंत है। वे सिद्धांतों एवं आदर्शों पर जीने वाले व्यक्तियों की श्रृंखला के प्रतीक थे। उनके निधन को सामाजिक एवं राष्ट्रीय जीवन में शुद्धता की, मूल्यों की, संस्कृति की, सेवा की, आदर्श के सामने राजसत्ता को छोटा गिनने की या सिद्धांतों पर अडिग रहकर न झुकने, न समझौता करने की समाप्ति समझा जा सकता है।
    दर्शनलाल जैन ने नौ दशक तक निस्वार्थ भाव से सक्रिय सेवा की, राजनीति एवं राजनीतिक पदों से दूर रहकर उन्होंने एक नया इतिहास रचा, पर वे सदा दूसरों से भिन्न रहे। घाल-मेल से दूर एवं बेदाग। विचारों में निडर। टूटते मूल्यों में अडिग। घेरे तोड़कर निकलती भीड़ में मर्यादित। उनके जीवन से जुड़ी सेवाभावना, विधायक धारणा और यथार्थपरक सोच ऐसे शक्तिशाली हथियार थे जिसका वार कभी खाली नहीं गया। भले ही लोगों ने उन्हें यूं ही बाबूजी नाम से पुकारना शुरू कर दिया हो लेकिन हरियाणा के लिए सचमुच वे ‘बाबूजी’ यानी सबके प्रिय एवं चेहते थे।
    जिस प्रकार सतयुग में भगीरथजी ने कठिन तप और परिश्रम करने के बाद गंगाजी को नदी के रूप में धरती पर अवतरित किया था, ठीक उसी तर्ज पर आज कलियुग में दर्शनलाल जैन के भरसक प्रयासों से ही विलुप्त सरस्वती नदी का प्रवाह पुनः सम्भव हुआ। यह उनकी कठिन मेहनत, दूरदर्शी सोच एवं परिश्रम का ही परिणाम है कि उनकी निशानदेही पर सरकार ने समय के साथ-साथ लुप्त हो चुकी सरस्वती नदी की धारा को यमुनानगर के मुगलवाली गांव एवं आदिबद्री से खोज निकाला। सरस्वती की पवित्र धारा को धरा पर लाने का श्रेय इनको प्राप्त है। सरस्वती को पुनर्जीवित करने के लिए उन्होंने दो दशक तक लम्बा संघर्ष किया। उनके प्रयासों से ही 21 अप्रैल 2014 को रूलाखेड़ी गांव में सरस्वती नदी की पहली धारा बही। वे सरस्वती शोध संस्थान के अध्यक्ष भी हैं। इसके लिए हर संभव प्रयास किए। तब धरा पर पवित्र नदी की जलधारा फूटी। सरकार भी इस प्रोजेक्ट पर गंभीरता से काम कर रही है।
    दर्शनलालजी ने हरियाणा के पानीपत में शहीद स्मारक बनाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भी लिखा था। इनके प्रयास से ये कार्य सफल हो पाया। ये उनकी जीत थी। उन्होंने शिक्षा और इतिहास क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम किए। वे हरियाणा में सरस्वती विद्या मंदिर, जगाधरी (1954), डीएवी कॉलेज फॉर गल्र्स, यमुनानगर, भारत विकास परिषद हरियाणा, विवेकानंद रॉक मेमोरियल सोसाइटी, वनवासी कल्याण आश्रम हरियाणा, हिंदू शिक्षा समिति हरियाणा, सहित विभिन्न स्कूलों और कॉलेजों के संस्थापक थे। गीता निकेतन आवासीय विद्यालय, कुरुक्षेत्र, और नंद लाल गीता विद्या मंदिर, अंबाला (1997) भी उनके द्वारा स्थापित है। जरूरतमंदों की सहायता करते हुए, नये राजनीतिक चेहरों को गढ़ते हुए, मुस्कराते हुए और हंसते हुए छोटों से स्नेहपूर्ण व्यवहार और हम उम्र लोगों से बेलौस हंसी-मजाक करने वाले दर्शनलालजी की जिंदगी प्रेरक, अनूठी एवं विलक्षण इस मायने में मानी जाएगी कि उन्होंने जिंदगी के सारे सरोकारों को छुआ। वे समाजसेवी थे तो उन्होंने पर्यावरण व संस्कृति उत्थान की भी अलख जगायी।
    जैन ने शिक्षा के क्षेत्र में अहम योगदान दिया। कई स्कूल खुलाए। इतिहास के प्रति युवाओं में रुचि बढ़े इसके लिए पाठ्य पुस्तकें तैयार कराई। स्कूल खोलने का उद्देश्य था कि बच्चे शिक्षित हो सकें। इस सोच के साथ स्कूल खोलने में भूमिका निभाई। संघ में अनुशासन की शिक्षा दी जाती है। संघ के संपर्क में आने वाले व्यक्ति के अंदर खुद-ब-खुद देशभक्ति की भावना घर कर जाती है, संघ कोई राजनीतिक संगठन नहीं है, बल्कि सेवा एवं परोपकार में जुटा मिशन है, आन्दोलन है। दर्शन लाल कहते हैं कि 25 जून 1975 को देश में इमरजेंसी लगी थी। उनको भी जेल यात्रा करनी पड़ी। हालांकि उसमें उनका कोई दोष नहीं था। 2007 में, दर्शनलाल ने राष्ट्र के विस्मृत नायकों को याद करने के लिए योद्धा सम्मान समिति का गठन किया। समिति ने पानीपत के दूसरे युद्ध नायक, हेमाचंद्र विक्रमादित्य के राज्याभिषेक समारोह सहित कई समारोह आयोजित किए।

दर्शनलाल जैन ने अपनी सादगी एवं सरलता से समाज एवं राष्ट्र को एक नया दिशाबोध दिया। वे हरियाणा की सांस्कृतिक विरासत को जीवंतता देने एवं हरियाणा की संस्कृति, पर्यावरण एवं अस्तित्व-अस्मिता के लिए अपनी आवाज उठाने और उसके हक में लड़ने वाले विशिष्ट समाजसेवियों में से एक थे। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हरियाणा संगठन के लिए एक धरोहर थे। उन्होंने संघ को हरियाणा में मजबूत करने के लिए कठोर परिश्रम किया। वे अपने क्षेत्र की जनता के लिए हमेशा सुलभ रहते थे। वे युवावस्था में ही सार्वजनिक जीवन में आये और काफी लगन और सेवा भाव से समाज की सेवा की। वे नंगे पांव चलने वाले एवं लोगों के दिलों पर राज करने वाले समाजसेवियों में थे, उनके दिलो-दिमाग में हरियाणा एवं वहां की जनता हर समय बसी रहती थी। काश! सत्ता के मद, करप्शन के कद, व अहंकार के जद्द में जकड़े-अकड़े रहने वाले राजनेता उनसे एवं उनके निधन से बोधपाठ लें। निराशा, अकर्मण्यता, असफलता और उदासीनता के अंधकार को उन्होंने अपने आत्मविश्वास और जीवन के आशा भरे दीपों से पराजित किया।
दर्शनलाल जैन संघ के एक रत्न थे। उन्होंने हमेशा अच्छे मकसद के लिए काम किया, तारीफ पाने या पद के लिए नहीं। खुद को जाहिर करने के लिए जीवन जीया, दूसरों को खुश करने के लिए नहीं। पद्मभूषण के लिए नाम चयनित होने के बाद उन्होंने कहा कि मुझे केवल राष्ट्र भक्ति नजर आती है और देश में जो सेवा का रचनात्मक सृजनात्मक संसार रच रह रहे हैं वे मेरा परिवार है। मैंने किसी अवार्ड के लिए काम नहीं किया। इसका श्रेय साथ काम करने वाले दोस्तों और समाज सेवा में सहयोग करने वालों को जाता है। जिसकी बदौतल मैं अपने मिशन में कामयाब होता चला गया।
दर्शनलाल जैन के जीवन की कोशिश रही कि लोग उनके होने को महसूस ना करें। बल्कि उन्होंने काम इस तरह किया कि लोग तब याद करें, जब वे उनके बीच में ना हों। इस तरह उन्होंने अपने जीवन को एक नया आयाम दिया और जनता के दिलों पर छाये रहे। उनका व्यक्तित्व एक ऐसा आदर्श व्यक्तित्व हैं जिन्हें संस्कृति, समाजसेवा और सुधारवाद का अक्षय कोश कहा जा सकता है। उनका आम व्यक्ति से सीधा संपर्क रहा। यही कारण है कि आपके जीवन की दिशाएं विविध एवं बहुआयामी रही हैं। आपके जीवन की धारा एक दिशा में प्रवाहित नहीं हुई, बल्कि जीवन की विविध दिशाओं का स्पर्श किया। यही कारण है कि कोई भी महत्त्वपूर्ण क्षेत्र आपके जीवन से अछूता रहा हो, संभव नहीं लगता। आपके जीवन की खिड़कियाँ राष्ट्र एवं समाज को नई दृष्टि देने के लिए सदैव खुली रही। इन्हीं खुली खिड़कियों से आती ताजी हवा के झोंकों का अहसास भारत की जनता सुदीर्घ काल तक करती रहेगी।

चाहे जितना जलाओ विचार जलता नहीं

—विनय कुमार विनायक
चाहे जितना जलाओ विचार जलता नहीं,
विचार मरता नहीं एकबार उग आने पर!
युगों-युगों तक जीवित रहता रहेगा विचार!

विचार एक सीधी रेखा है कागज पर,
जो मिटता नहीं विचारक के मिट जाने पर!

विचार एक अनाशवान हथियार है,
जिसका होता नहीं कोई मारक प्रतिहथियार!

एक विचार प्रतिस्थापित होता नेक विचार से,
एक रेखा के समानांतर दूसरी बड़ी रेखा खींचने से!

नेक विचार एक कर सकता सारे जहां को,
लेकिन भ्रांत विचार तोड़ देता अपने ही वतन को!

‘सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा’,
एक विचार है सार्वकालिक सुन्दर, अजर-अमर-अक्षर,
‘तराना-ए-हिन्दी’ इकबाल प्रपिता पंडित सहज राम सप्रू का!

जो प्रस्थापित हुआ नहीं उनके अगले विचार
‘तराना-ए-मिल्ली’ से, क्योंकि मिट जाती है हस्ती
साम्प्रदायिक व्यक्ति की, किन्तु हस्ती मिटती नहीं
उनकी, जिनका विचार मजहब से ऊंचा देश अपना,
कि मजहब नहीं सिखलाता है आपस में बैर रखना!

मन्वंतर दर मन्वंतर जीवित रहता विचार,
एक विचार तय करता आगामी दूसरा विचार,
विचार समस्या पैदा करता, हल निकालता विचार!

कुछ विचारक कुछ विचार को जलाना चाहते,
जबकि अक्सरा जलाए गए विचार भी काम आते!

स्मृतियों में गालियां खोज खिजलाना अच्छा नही,
धर्मग्रंथों की गालियां अतीत की स्थिति को बतलाती,
आज जो गाली लगती, वो कभी परिस्थिति रही होगी!

हो सकता है एक के हाथ में होगा हथियार!
दूसरे के हाथ में होगी सरकंडा लेखनी की धार!
एक ने तलवार चलाई, दूसरे ने कलम चला दी!

कहते हैं कलम और तलवार में इक्कीस बार
लड़ाईयां चली, कलम जीत गई, तलवार हार गई!

तलवार का जख्म तो भर गया,
मगर जख्म लेखनी का भरता नहीं कभी!
असि की धार भोंथरी हो जाती,
किन्तु लेखनी सदा से हरी की हरी होती!

हरी भरी लेखनी जीवन में हरियाली लाती!
अतीत की गालियां कबीरा की उलटबांसी जैसी!
पूर्व की श्रुति-स्मृति-कृति भविष्य को रोशनी देती!

आज का आरक्षण, अतीत की गालियों का पुरस्कार,
विचार मिटता नहीं, विचार बदलता मानव का व्यवहार!

‘तराना-ए-हिन्दी’ देश को सदा गरिमामंडित करता रहेगा,
जबकि उस विचारक के अगले विचार से देश खंडित हो गया!

विचारों का कैसा विचित्र वैचारिक अंतर्द्वंद्व है?
कि सारे विचार अपने-अपने जगह पर कायम है!

विचार आदिकाल से स्मृति में अबतक अद्यतन है!
यद्यपि सभी विचारों का जन्म परिस्थितिजन्य है!

विचारक बेचारे भौतिक शरीरी, वे आते-जाते रहेंगे,
किन्तु विचार आधिभौतिक पर ईश्वरीय सदा रहेंगे!

सहेज कर रखना होगा सारे सापेक्ष विरोधी विचार,
विचार को विचारो कि मित्र-शत्रु से परे होता विचार!

विचार हमारे तुम्हारे नहीं, ईश्वर के होते सारे विचार!
विचार जलेगा नहीं, विचार जलाने का छोड़ दो विचार!

हमारा यह जन्म हमारे पूर्व एवं पुनर्जन्म के सिद्धान्त को बताता है

-मनमोहन कुमार आर्य
हमारा यह मनुष्य जन्म सत्य एव यथार्थ है। किसी भी मनुष्य को अपने अस्तित्व के होने में कोई सन्देह नहीं होता। हम हैं यह भाव हमारे अस्तित्व व उपस्थिति को स्वयंसिद्ध कर रहा है। हम अतीत में थेया नहीं, यह भी विचार कर माना व जाना जा सकता है। यदि हम न होते तो फिर उत्पन्न कैसे हुए? इस प्रश्न पर विचार करने पर हमें ज्ञात होता है कि हमारा अस्तित्व इस जन्म से पहले भी था। यदि न होता तो इसे इस स्वरूप में कौन क्यों बनाता? कोई भी पदार्थ उत्पन्न होता है तो उसका उपादान एवं निमित्त कारण होना आवश्यक होता है। यदि हमारी आत्मा इस जन्म से पूर्व नहीं थी तो इसे किस चेतन सत्ता ने किस प्रयोजन से किस उपादान कारण व पदार्थ से बनाया है। इसका उत्तर इस लिये नही मिल सकता क्योंकि आत्मा इससे पहले से विद्यमान रही है। आत्मा चेतन सत्ता है जो ज्ञान एवं कर्म करने की क्षमता व सामर्थ्य से युक्त होती है। जन्म न हो तो यह किसी भी कार्य को करने में समर्थ नहीं होती। जन्म लेने पर इसे एक शरीर प्राप्त होता है जिसमें इसके पास सत्य व असत्य को जानने के लिए बुद्धि, देखने के लिए आंख, सुनने के लिये कान, बोलने के लिए वाणी, स्पर्श के लिए त्वचा, चलने के लिए पैर तथा काम करने के लिये दो हाथ होते हैं। यदि पांच ज्ञान व पांच कर्मेन्द्रियों से युक्त पंचभौतिक शरीर न हो तो जीवात्मा ज्ञान प्राप्ति तथा उसके अनुसार कोई भी कर्म वा क्रिया नहीं कर सकता।

जीवात्मा को यह शरीर किस सत्ता से प्राप्त होता है? इस पर विचार करते हैं तो यह ज्ञात होता है कि यह शरीर ऐसी चेतन ज्ञानवान, शरीर को जन्म देने का अनुभव रखने वाली एक अनादि सत्ता के द्वारा ही अस्तित्व में आ सकता है। उस चेतन सत्ता को ही वेदों व वैदिक साहित्य में ईश्वर व परमात्मा कहा गया है। परमात्मा के अनेक गुण, कर्म व स्वभाव हैं। जीवात्मा से भी उसके अनेक सम्बन्ध घटते हैं। इस कारण से परमात्मा के अनेक नाम हो सकते हैं। परमात्मा इस सृष्टि को बनाता है इसलिये उसे सृष्टिकर्ता कहते हैं। वह अनादि काल से विद्यमान है इसलिए उसे अनादि कहते हैं। वह कभी उत्पन्न नहीं हुआ, कभी नष्ट नहीं होगा, उसका कभी अभाव नहीं होगा, वह सदा वर्तमान रहेगा इस कारण से उसको नित्य कहते हैं। इसी प्रकार से ईश्वर में अनेक गुणों का होना पाया जाता है। विद्वान मनीषी बताते हैं कि ईश्वर में अनन्त गुण, कर्म व स्वभाव होते हैं जिन सबको सभी मनुष्य जान भी नहीं सकते। ऋषि दयानन्द ने आर्यसमाज के दूसरे नियम में ईश्वर के स्वरूप व गुणों आदि का उल्लेख किया है। उनके शब्द हैं ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनन्त, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है। उसी की उपासना करनी योग्य है। इस प्रकार की सत्ता, स्वरूप व गुण-कर्म-स्वभाव ईश्वर के हैं। 

ईश्वर के स्वरूप आदि पर विचार करने पर ऋषि दयानन्द निर्मित उपर्युक्त नियम का एक एक शब्द सृष्टिक्रम व ईश्वर में घटता हुआ अनुभव किया जा सकता है। इस कारण यह नियम पूर्णतः सत्य पर आधारित वा सत्य है। अतः परमात्मा ही वह सत्ता है जो चेतन जीवात्मा को जन्म देती है। बिना कर्ता के कोई कार्य व रचना नहीं होती। हमारे जन्म में कर्ता की मुख्य भूमिका में परमात्मा का होना सिद्ध होता है। माता, पिता सहित इस सृष्टि व प्राकृतिक वातावरण का होना भी मनुष्य जीवन में सहायक होता है। यह सब साधन एकत्रित होकर सुलभ होते हैं तब मनुष्य का जन्म होता है। इससे यह ज्ञात होता है कि मनुष्य वा जीवात्मा का शरीर बनता है परन्तु इस शरीर में निवास करने वाली आत्मा का अपने किसी उपादान कारण से उत्पन्न होना सिद्ध नहीं होता। वेद ईश्वरीय ज्ञान है। वेदों में ईश्वर ने आत्मा का अनादि, नित्य, अनुत्पन्न, नाशरहित, अमर, जन्म-मरण धर्मा, कर्म के बन्धनों में बंधी हुई, एकदेशी, अल्पज्ञ, ससीम सत्ता होना बताया है। आत्मा के यह विशेषण व स्वरूप आदि जो वेद और वैदिक साहित्य में हमारे ऋषि-मुनियों ने स्वीकार किये हैं, यह सब ज्ञान व विवेक पूर्वक विचार करने पर सत्य सिद्ध होते हैं। अतः आत्मा वा जीवात्मा का ईश्वर व सृष्टि के उपादान कारण जड़ प्रकृति से भिन्न व पृथक होना सिद्ध व स्पष्ट है। 

संसार में हम देखते हैं कि संसार में नया पदार्थ कोई नहीं बनता अर्थात् अभाव से भाव पदार्थ अस्तित्व को प्राप्त नहीं होते। संसार के मूल प्रकृति व पदार्थों में विकार व संयोग व वियोग की क्रियायें होती हैं। इन्हीं से पहले से उपलब्ध पदार्थों का स्वरूप परिवर्तन व संयोग से नये पदार्थों का निमार्ण होते देखा जाता है। यदि जल न हो तो वाष्प व हिम वा बर्फ आदि नहीं बन सकती। इसी प्रकार से यदि गेहूं न हो तो हमें रोटी व गेहूं के आटे से बनने वाले पदार्थ उपलब्ध नहीं हो सकते। ऐसा ही नियम सर्वत्र देखा जाता है। सृष्टि में मूल जड़ तत्व प्रकृति है जो तीन गुणों सत्व, रज व तम वाली है। इसकी साम्यावस्था प्रकृति कहलाती है। परमात्मा निराकार, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी तथा सर्वशक्तिमान है। वह सर्वज्ञ है तथा उसे पूर्वकल्पों में सृष्टि बनाने का अनुभव है। अपने इस ज्ञान व अनुभव के आधार पर ही परमात्मा इस सृष्टि का निर्माण जीवों के जीवन, भोग एवं अपवर्ग के लिए करते हैं। यह त्रैतवाद ईश्वर, जीव व प्रकृति वेदों का सत्य सिद्धान्त है जो प्रमाण की सभी कसौटियों पर सत्य सिद्ध होता है। 

परमात्मा ने इस प्रकृति में विकार उत्पन्न कर उससे ही इस सृष्टि के सभी कारण व कार्य पदार्थों को बनाया है। इसी प्रक्रिया से सृष्टि में सूर्य, चन्द्र, पृथिवी, ग्रह, उपग्रह, तारे, नक्षत्र, अग्नि, वायु, जल, आकाश, वनस्पतियां, ओषधियां, वन, पर्वत, मानव व अन्य जीवों के शरीर बने हैं। इस समस्त दृश्यमान एवं प्रकृति से इतर सूक्ष्म जगत का निर्माता व पालनकर्ता ईश्वर नामी एकमात्र सत्ता है। ईश्वर से ही यह सृष्टि अस्तित्व में आई है और प्रलय काल में पुनः अपने मूल स्वरूप जड़ प्रकृति कारणावस्था में मिल जाती है। इससे हम सृष्टि रचना के विषय में सत्य ज्ञान से युक्त होते हैं। यह ज्ञान हमें वेद व ऋषियों के सांख्य दर्शन आदि ग्रन्थों से प्राप्त होता है। इसी पर सब मनुष्यों को विश्वास करना चाहिये। इस प्रकार से परमात्मा सृष्टि को बनाकर सृष्टि में विद्यमान अनादि व नित्य सत्ता सूक्ष्म जीवात्माओं को मानव आदि भिन्न भिन्न शरीर प्रदान करते हैं। हमें जो शरीर व योनि मिलती है वह हमारे पूर्वजन्म के कर्मों के आधार पर मिलती है। योगदर्शन के अनुसार हमारा जन्म, योनि, आयु व सुख दुःखों का निर्धारण हमारे पूर्वजन्म के कर्मों के आधार पर होता है। मनुष्य जिस भी योनि में जन्म लेता है वहां वह कर्मों को भोक्ता होता है। मनुष्य योनि में विचार पूर्वक कर्म करने की स्वतन्त्रता सभी मनुष्य जीवात्माओं को प्राप्त है। इससे उसके कर्मों का खाता बदलता रहता है। पूर्व कर्मों का भोग तथा नये कर्मों को करने से मनुष्य आत्मा के शुभ व अशुभ कर्म घटते बढ़ते रहते हैं।

किसी जीवात्मा का कभी अभाव नहीं होता। इसी कारण से मनुष्य कर्मानुसार परमात्मा के द्वारा बन्धन व मोक्ष व अनेक जन्म योनियों को प्राप्त होता रहता है। जीवात्मा के जन्म व मरण की व्यवस्था मोक्ष प्राप्ति पर्यन्त तक चलती रहती है। मोक्ष सद्ज्ञान, विवेक, सद्कर्मों, ईश्वरोपासना, यज्ञादि कर्म, परोपकार, दान व ईश्वर साक्षात्कार आदि कर्मों का परिणाम होता है। मोक्ष प्राप्ति तक मनुष्य के जन्म व मृत्यु का चक्र चलता रहता है। मोक्ष प्राप्त होने पर आवागमन वा जन्म मरण रूक जाता है। शास्त्रों के अनुसार 31 नील वर्षों से अधिक अवधि तक मोक्ष में जीव ईश्वर के सान्निध्य में रहकर मोक्ष का सुख भोगता है। मोक्ष प्राप्ति से पूर्व तक जीवात्मा के बार बार जन्म होते जाते हैं। इससे जीवात्मा का पूर्वजन्म व पुनर्जन्म दोनो ंसिद्ध होते हैं। गीता के श्लोकों में भी पाया जाता है कि जिस आत्मा का जन्म हुआ है उसका पूर्वजन्म निश्चित होता है और जिसकी मृत्यु होती है उसका पुनर्जन्म निश्चित होता है। हमें इस जन्म व मरण के रहस्यों को शास्त्रों का अध्ययन कर जानना चाहिये और वेदादि ग्रन्थों के स्वाध्याय से मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील होकर ईश्वरोपासना आदि कर्म करते हुए धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिये व इन्हें प्राप्त होना चाहिये। यह स्पष्ट है कि जीवात्मा का कभी अभाव नहीं होता। मोक्ष भी जीवात्मा का अस्तित्व बना रहता है। मोक्ष के बाद जीवात्मा का पुनः जन्म होता है। सथ्यार्थप्रकाश ग्रन्थ पढ़कर मनुष्य जीवन से जुड़े सभी प्रश्नों का समाधान प्राप्त किया जा सकता है। अतः सबको सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ को अवश्य पढ़ना चाहिये। यह सिद्ध है कि जीवात्मा का पूर्वजन्म व पुनर्जन्म दोनो होते हैं। दोनो का होना सत्य व सिद्ध है। 

गाड़ी का धुआं दुनिया में हर पांचवीं मौत का ज़िम्मेदार: हार्वर्ड विश्विद्यालय

आप और हम जब अपनी पेट्रोल और डीज़ल की गाड़ी में बैठ आराम से इधर से उधर जाते हैं तब हमारी गाड़ी से निकलने वाले धुआं दुनिया में होने वाली हर पांचवीं मौत का ज़िम्मेदार बन जाता है। बात भारत की करें तो यहाँ जीवाश्म ईंधन के उपयोग से होने वाले PM2.5 वायु प्रदूषण के परिणामस्वरूप हर साल 14 वर्ष से अधिक आयु के 2.5 मिलियन लोगों की मौत हो जाती है। यह आंकड़ा भारत में 14 वर्ष से अधिक आयु के लोगों की होने वाली सालाना 8 मिलियन मौतों का  लगभग 30 फ़ीसद है। बांग्लादेश, भारत और दक्षिण कोरिया इस संदर्भ में दुनिया में सबसे खराब उदाहरण हैं।

ये हैरान करने वाली बातें हार्वर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम, यूनिवर्सिटी ऑफ लीसेस्‍टर और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के सहयोग से किये गये एक ताज़ा शोध में कही गयी है।

इस शोध से मिले आंकड़े पूर्व में किये गये शोध में अनुमानित संख्‍या से कहीं ज्‍यादा है। इसका मतलब यह है कि कोयला और डीजल जैसे जीवाश्‍म ईंधन को जलाने से होने वाला वायु प्रदूषण दुनिया में होने वाली हर पांच मौतों में से एक के लिये जिम्‍मेदार है।

जर्नल एनवायरमेंटल रिसर्च में प्रकाशित हुए इस अध्ययन के मुताबिक उत्तरी अमेरिका, यूरोप तथा दक्षिण पूर्वी एशिया समेत जीवाश्म ईंधनजनित वायु प्रदूषण के उच्चतम स्तरों वाले क्षेत्रों में मृत्यु की दर भी सबसे ज्यादा है।

इस अध्ययन में वायु प्रदूषण के कारण मरने वालों की अनुमानित संख्या को काफी हद तक बढ़ाया गया है। वैश्विक स्तर पर मृत्यु दर के कारणों को लेकर किए गए सबसे बड़े और व्यापक अध्ययन ग्लोबल बर्डन ऑफ़ डिजीज स्टडी की नई रिपोर्ट के मुताबिक बाहरी हवा में घुले पार्टिकुलेट मैटर जिनमें धूल, जंगलों की आग तथा कृषि अवशेष जलाए जाने के कारण उठने वाले धुएं से उत्पन्न पार्टिकुलेट मैटर भी शामिल हैं, से पूरी दुनिया में 42 लाख लोगों की मौत होने की बात कही गई है।

वर्ष 2018 में अकेले जीवाश्म ईंधन से ही 87 लाख लोगों की मौत होने की बात कही गई थी अनुसंधानकर्ता आखिर मौतों के इतने बड़े आंकड़े तक कैसे पहुंच गए?

पूर्व में किए गए शोध वातावरण में घुले पार्टिकुलेट मैटर यानी पीएम 2.5 के  औसत वैश्विक सालाना संघनन का अनुमान लगाने के लिए सेटेलाइट और जमीनी स्तर पर की गई निगरानी पर आधारित थे। समस्या इस बात की है कि सेटेलाइट और जमीन पर किये गये पर्यवेक्षण से जीवाश्म ईंधन जलाए जाने से होने वाले प्रदूषण और धूल तथा जंगलों की आग से उठने वाले धुएं तथा अन्य स्रोतों से उत्पन्न प्रदूषण के बीच फर्क का पता नहीं चल पाता।

हार्वर्ड जॉन ए पॉलसन स्कूल ऑफ़ इंजीनियरिंग एंड अप्लाइड साइंसेज (एसईएएस) के केमिस्ट्री क्लाइमेट इंटरेक्शंस की सीनियर रिसर्च फेलो और इस अध्ययन की लेखक लोरेटा जे मिकली ने कहा, ‘‘सैटेलाइट डाटा के जरिए आप किसी गुत्थी को सिर्फ टुकड़ों में ही देखते हैं। कणों के बीच फर्क ढूंढना सेटेलाइट के लिए एक चुनौती है। यही वजह है कि डेटा की किस्‍मों में अंतर हो सकता है।’’

इस चुनौती से निपटने के लिए हार्वर्ड के अनुसंधानकर्ताओं ने जीईओएस-केम का रुख किया। यह एटमॉस्फेरिक केमिस्ट्री एंड एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग में वेस्को मैकॉय फैमिली प्रोफेसर डेनियल जैकब की अगुवाई में एसपीएएस द्वारा तैयार एटमॉस्फेरिक केमिस्ट्री का एक वैश्विक 3D मॉडल है। पूर्व के अध्ययनों में जीईओएस-चेम का इस्तेमाल पार्टिकुलेट मैटर के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के प्रारूपीकरण में किया जाता था और इसके नतीजों को भूतल, वायुयान तथा अंतरिक्ष आधारित अनुमानों के लिए पूरी दुनिया में मान्यता दी जाती है।

वैश्विक मॉडल बनाने के लिहाज से जीईओएस-केम में उच्च स्थानिक रेजोल्यूशन होता है। इसके जरिए शोधकर्ता पूरी दुनिया को 50X60 किलोमीटर जितने छोटे बॉक्स के ग्रिड में बांट सकते हैं और हर बॉक्स में प्रदूषण के स्तर को देख सकते हैं।

आगे, बर्मिंघम यूनिवर्सिटी में स्नातक के छात्र और इस अध्ययन के प्रथम लेखक करण वोहरा के अनुसार, ‘‘बड़े क्षेत्रों में फैली वायु प्रदूषण की परत के विभिन्न औसतों पर निर्भर रहने के बजाय हम ऐसी पैमाइश करना चाहते हैं, जिससे यह पता लगे कि प्रदूषण कहां पर है और लोग कहां पर रह रहे हैं, ताकि हमें यह ज्यादा बेहतर तरीके से मालूम हो सके कि लोग किस तरह की हवा में सांस ले रहे हैं।’’

 वोहरा को हार्वर्ड में पूर्व पोस्टडॉक्टोरल फेलो और इस समय यूसीएल के डिपार्टमेंट ऑफ जियोग्राफी में एसोसिएट प्रोफेसर के तौर पर कार्यरत इस अध्ययन के सह लेखक एलोइस मैरे की सलाह भी मिली है।

 शोधकर्ताओं ने जीवाश्म ईंधन को जलाए जाने के कारण उत्पन्न पीएम 2.5 के प्रारूपीकरण के लिए जीईओएस-केम द्वारा लगाये गये बिजली, उद्योग, जहाजरानी, विमानन तथा भूतल परिवहन समेत विभिन्न क्षेत्रों द्वारा उत्पन्न प्रदूषणकारी तत्वों से संबंधित अनुमानों का इस्तेमाल किया और नासा ग्लोबल मॉडलिंग एंड असिमिलेशन ऑफिस के मौसम विज्ञान द्वारा संचालित विस्तृत ऑक्सीडेंट एयरोसोल रसायन विज्ञान के अनुरूप काम किया।

हर ग्रिड बॉक्स में जीवाश्म ईंधन जनित पीएम 2.5 के बाहरी संघनन की मात्रा का पता लगने के बाद शोधकर्ताओं को यह जानने की जरूरत हुई कि प्रदूषण के इन स्तरों का मानव स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ रहा है। पिछले कई दशकों से यह जगजाहिर है कि वातावरणीय प्रदूषणकारी तत्व जन स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं लेकिन चीन और भारत जैसे उच्च प्रदूषण के संपर्क वाले देशों में इन प्रभावों की मात्रा जानने के लिए महामारी विज्ञान संबंधी अध्ययन बहुत कम ही हुए हैं। इससे पहले किए गए शोध में इन उच्च स्तरों पर बाह्य पीएम 2.5 के जोखिमों का अनुमान लगाने के लिए आंतरिक द्वितीयक धुएं के कारण स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव को आधार बनाया जाता था। हालांकि एशिया में हाल में किए गए अध्ययनों से यह पता चलता है कि इससे बाहरी वायु प्रदूषण के उच्च संकेंद्रण के जोखिम को काफी हद तक कम करके ही आंका जा पाता था।

हार्वर्ड टी एच चेन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ  एनवायरमेंटल एपिडेमियोलॉजी में प्रोफेसर और इस अध्ययन के सह लेखकों एलीना वोडोनोस तथा जोल श्वार्ट्स ने जोखिम का अनुमान लगाने के लिए एक नया मॉडल तैयार किया है, जो जीवाश्म ईंधन जनित प्रदूषणकारी तत्वों से उत्पन्न पार्टिकुलेट मैटर के संघनन के स्तरों को उनके कारण स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों से जोड़ता है।

इस नए मॉडल में पाया गया है कि लम्‍बे समय तक जीवाश्म ईंधन जनित प्रदूषण के संपर्क में रहने से मृत्यु दर में इजाफा हुआ है। यहां तक कि पीएम के कम संघनन स्तर पर भी मृत्यु दर ज्यादा है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि वैश्विक स्तर पर वर्ष 2012 में हुई कुल मौतों में जीवाश्म ईंधन जनित प्रदूषण के कारण उत्पन्न पार्टिकुलेट मैटर के संपर्क में आने से हुई मौतों का प्रतिशत 21.5 था। मगर चीन में हवा की गुणवत्ता सुधारने के लिए उठाए गए कड़े कदमों की वजह से वर्ष 2018 में यह प्रतिशत गिरकर 18 हो गया है।

श्वार्ट्स ने कहा “हम अक्सर जीवाश्म ईंधन जलाए जाने के कारण उत्पन्न खतरों की ही चर्चा करते हैं। खासकर कार्बन डाइऑक्साइड फैलने और जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में ही बात होती है, मगर ग्रीन हाउस गैसों के साथ निकलने वाले प्रदूषणकारी तत्वों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों को नजरअंदाज कर दिया जाता है। हम उम्मीद करते हैं कि जीवाश्म ईंधन जलाए जाने के कारण स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान की मात्रा तय किए जाने से नीति निर्धारकों और हितधारकों के पास यह प्रत्‍यक्ष संदेश भेजे जा सकते हैं कि ऊर्जा के अन्य स्रोतों की तरफ रुख करने के क्या फायदे हैं। 

एलोइस मैरे ने कहा ‘‘हमारे अध्ययन से इस स्थापित तथ्य में एक और सुबूत जुड़ जाता है कि जीवाश्म ईंधन पर मौजूदा निर्भरता के कारण उत्पन्न वायु प्रदूषण पूरी दुनिया में सेहत के लिए नुकसानदेह है। हम जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता जारी नहीं रख सकते। खास तौर पर तब जब हम यह जान लें कि इससे स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ते हैं और इस स्थिति से बचने के लिए प्रदूषण मुक्त और आसानी से मिलने वाले विकल्प मौजूद हैं।

आंदोलन की आड़ में देश को बदनाम करने की साज़िश तो नहीं?

……..सोनम लववंशी
   जहां खूबियां होती है, वहां खामियां भी जरूर रहती है। किसान आंदोलन के नाम पर हो रहे आंदोलन से तो यही प्रतीत हो रहा है मानो अब आंदोलन अपने स्वार्थ पूर्ति तथा राजनीतिक लाभ का जरिया बनकर रह गया हैं। इतना ही नहीं मानो लगता है, कि आंदोलनकारियों को न ही देश के मान से कोई सरोकार है, और न ही आंदोलन से जनता को हो रही परेशानियों की कोई चिंता। 26 जनवरी को किसान आंदोलन के नाम पर ट्रैक्टर रैली की आड़ में हुई हिंसा, लाल किले पर राष्ट्रध्वज के अपमान की घटना न केवल दुर्भाग्यपूर्ण थी। बल्कि इस घटना ने देश के लोकतंत्र को भी वैश्विक पटल पर शर्मशार किया है। किसान आंदोलन के नाम पर देश मे हो रही राजनीति न केवल देश तक सीमित रही है बल्कि अब विदेशी शक्तियां भी आंदोलन को एक अलग ही मोड़ देने में लगी है। जिनका केवल और केवल एक ही मक़सद है कि कैसे वैश्विक पटल पर भारत को नीचा दिखाया जा सके। 
 जिस किसान आंदोलन का आगाज शांतिपूर्ण ढंग से हुआ था, उसका अंजाम इतना दुर्भाग्यपूर्ण होगा इसकी कल्पना शायद ही किसी भारतीय ने की होगी। 2 महीने से शांतिपूर्ण चल रहे आंदोलन में 26 जनवरी को हुई घटना ने कालिख़ पोतने का काम किया है। अब सवाल यह उठता है कि क्या अपनी मांगों को लेकर किए जा रहे आंदोलन में शक्ति प्रदर्शन करना जरूरी था? कोई भी आंदोलन तभी किया जाता है जब सरकार बात न सूने। यहां तो ऐसी कोई बात नजर नही आई क्योंकि अगर ऐसा था तो सरकार और किसानों के बीच आंदोलन के दौरान 11 दौर की बातचीत नहीं होती। जिस किसान बिल के नाम पर महाभारत की जा रही है। उसे भी आगामी डेढ़ साल तक रोकने की बात तक कि गयी थी, पर किसान नेता बिल रद्द करने की बात पर अड़े हुए है। जबकि सरकार किसान बिल में सुधार करने को तैयार है। फिर क्यों इस आंदोलन को जारी रखा गया। क्या इस आंदोलन को भी शाहीनबाग की शक्ल देने का काम किया जा रहा? सबसे बड़ा सवाल तो अब यह है। देखा जाए तो दोनों ही आंदोलन में काफी समानता नजर आती है। शाहीनबाग के आंदोलन में सीएए और एनआरसी को गलत रूप में प्रस्तुत किया गया तो वही किसान आंदोलन भी एक वर्ग विशेष के हितों की रक्षा के लिए ही किया जा रहा है। अगर ऐसा न होता तो केवल पंजाब और हरियाणा राज्य के किसान ही कृषि बिल का विरोध नही कर रहे होते। इस आंदोलन का नेतृत्व ही पंजाब के राजनीतिक दलों के द्वारा किया जा रहा है। इन नेताओं को आंदोलन के नाम पर अपना राजनीतिक लाभ दिखाई दे रहा है।जब आंदोलन ही राजनीति से प्रेरित होकर किया जाए तो उस आंदोलन का हश्र यही होना था। इस आंदोलन में विदेशी शक्तियों का दखल भी साफ देखा जा सकता है। जिन्हें भारत से कोई विशेष लगाव नही है, उनका मकसद सिर्फ और सिर्फ देश मे गतिरोध पैदा करना है। यही वजह है कि अभी चंद दिनों पहले किसान आंदोलन का समर्थन करने के लिए विदेशी शख्सियत यानी पॉप गायिका ने ट्वीट कर अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारत को कमजोर दिखाने का प्रयास किया। पोर्न स्टार मिया खलीफा जिसे न तो किसानी का मतलब समझ आता है और न ही किसानों के मुद्दों की कोई समझ। वह भी किसान के मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करती दिखी। फ़िर भी क्या यही समझा जाए कि किसान आंदोलन की आड़ में भारत को कमज़ोर करने की साज़िश नहीं? पर्यावरण मुद्दों पर अपनी अंतराष्ट्रीय पहचान बनाने वाली ग्रेटा थॉर्नवर ने तो किसान आंदोलन में हिंसा की पूरी साजिश तक रच डाली। उनके द्वारा जारी की गई टूल किट से साफ पता चलता है कि कैसे भारत मे अस्थिरता लाने की साजिश रची गयी थी। ऐसे में जाहिर सी बात है कि इन सेलिब्रिटी को भारत के किसानों से कोई हमदर्दी तो रही नही होगी? होगी भी कैसे? इन सभी का ताल्लुक दूर दूर तक खेती किसानी से नहीं। ताल्लुक़ है तो एक विशेष विचारधारा से। फ़िर स्पष्ट रूप से इनका मकसद तो पैसे लेकर अपनी पॉपुलैरिटी का उपयोग भारत के विरोध में करना था। लेकिन जब हमारे ही देश का एक बड़ा तबका इन विदेशी शख्सियत के पक्ष में खड़ा हो जाये तो इससे दुर्भाग्यपूर्ण ओर क्या होगा?
  भारत में किसान आंदोलन का इतिहास काफी पुराना रहा है। इन आंदोलनों में से अधिकतर आंदोलनों ने हिंसा का रूप अख्तियार कर लिया था। 1 मार्च 1987 को भारतीय किसान यूनियन ने बिजली की बढ़ी  दरों को लेकर आंदोलन किया था। यह  आंदोलन भी अपने अंजाम तक पहुँचने से पहले ही हिंसा की बलि चढ़ा दिया गया। 27 मार्च 1989 को अलीगढ़ में भूमि अधिग्रहण को लेकर आंदोलन किया गया । जिसमे एक किसान की मौत होने के बाद आंदोलन को खत्म करना पड़ा। साल 2010 में नोएडा में भूमि अधिग्रहण को लेकर भी आंदोलन किया गया। जिसमे आंदोलन ने उग्र रूप धारण कर लिया था। इस आंदोलन के तीन साल बाद भूमि अधिग्रहण पर नया कानून बना। अधिक्तर किसान आंदोलन हिंसक और उग्र रूप में ही नजर आए है। देश मे कोई कानून बनता है तो उसे भी सहज स्वीकार कर पाना बहुत ही कठिन होता है। कृषि कानून पर भी यह बात लागू होती है। लेकिन कृषि कानून की आड़ में जो राजनीति हो रही है। इसके पीछे कौन सी ताकत काम कर रही है। यह जांच का विषय है, क्योंकि किसान आंदोलन के नाम पर खालिस्तान संगठन भी अपनी जड़ें मजबूत करने में लगा हुआ है। अब यह बात किसानों को भी समझना होगा कि वे इस आंदोलन को किस दिशा में लेकर जाना चाहते है। 

 जिस संविधान ने देश के नागरिकों को शांति से अपनी बात कहने की आजादी दी है। जिस गणतंत्र ने हमारे देश के लोकतंत्र को मजबूत बनाया। उसी गणतंत्र की मर्यादा को आंदोलन की आड़ में तार तार करना किसी भी भारतीय को शोभा नहीं देता है। लाल किले को भारत की आन बान और शान का प्रतीक माना जाता है। उस किले पर कोई और झंडा फहराना राष्ट्र ध्वज का अपमान करना है। आज तमाम नेता भले ही यह बात कह रहे हो कि लाल किले पर झंडा फहराने की उनकी कोई मंशा नही थी। लेकिन वे इस बात से कैसे इनकार कर सकते है कि रैली के नाम पर किसानों को भड़काने का काम तो उन्ही नेताओ के द्वारा ही किया गया था। आज भी तमाम राजनीतिक दल किसान आंदोलन की आड़ में अपना राजनीतिक लाभ देख रहे है। जिस किसान आंदोलन को राजनीति से दूर रखा गया था आज तमाम किसान नेता अपने आंदोलन को मजबूती देने के लिये नेताओ का समर्थन लेने तक को तैयार हो गए है। किसान आंदोलन पूरी तरह से राजनीति का अखाड़ा बनकर रह गया है। जिस आंदोलन को जनता का समर्थन और सहानुभति मिली थी। 26 जनवरी की घटना के बाद शायद वह समर्थन मिल पाना नामुमकिन है। तभी किसान नेताओ ने राजनीतिक पार्टियों के समर्थन को स्वीकार कर लिया है। एक तरफ कुछ राजनीतिक दल किसान आंदोलन के पक्ष में खड़े होकर सरकार का विरोध कर रहे है। विदेशी सेलिब्रिटी के देश विरोधी ट्वीट का समर्थन कर रहे है तो वही दूसरी तरफ महाराष्ट्र सरकार तथा कांग्रेस ने किसान आंदोलन के पक्ष में खड़े भारत के सेलिब्रिटी के ट्विटर अकाउंट की जांच के निर्देश दिए है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश मे इस तरह की घटना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। अब देखना यह होगा कि किसान आंदोलन के नाम पर और क्या क्या राजनीतिक रंग दिखाई देते है।
यहां एक सवाल यह भी उठता है कि जो किसान पिछले 2 माह से शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे थे क्या वही किसान इतना उग्र रूप धारण कर लेंगे? जबकि किसान यह बात जानते थे कि हिंसा उनके आंदोलन को खत्म कर देगी फिर ऐसी क्या वजह थी जो इस घटना को अंजाम दिया गया। वजह चाहे जो भी रही हो लेकिन एक बात तय है कि जिस किसान आंदोलन को अब तक जनता का समर्थन ओर सहानुभूति मिल रही थी। अब वह समर्थन मिल पाना लगभग नामुमकिन है। सवाल यह भी उठता है कि इस आंदोलन का भविष्य क्या होगा, क्योंकि अब भी कुछ किसान नेताओं द्वारा आंदोलन जारी है। अब देखना यह होगा कि किसान नेताओ का अगला कदम क्या होगा? यह सवाल तो भविष्य के गर्त में है। लेक़िन देश के कुछ नेताओं और खासकर महाराष्ट्र सरकार की नीयत पर सवाल ज़रूर खड़ें हो रहें। आख़िर ऐसी कौन सी सरकार होगी जो अपने ही देश का पक्ष लेने वाले लोगों के ट्वीट की जांच करती है। ऐसे में मामला साफ़ है कृषि क़ानून के नाम पर आंदोलन तो सिर्फ़ बहाना है, बाकी भारत सरकार को बदनाम करना और अपनी राजनीति चमकाना ही सभी का एक मात्र उद्देश्य है।

ऋतुराज बसन्त

   आ गया ऋतुराज बसन्त । 
    छा गया ऋतुराज बसन्त।।
            हरित घेंघरी पीत चुनरिया ,
            पहिन प्रकृति ने ली अँगड़ाई।
            नव-समृद्धि पा विनत हुए तरु,
             झूम  उठी   देखो  अमराई ।
     आज सुखद सुरभित सा क्यों ये 
     मादक  पवन  बहा अति  मन्द ।। आ गया.....
                       *
               फूल उठी खेतों में सरसों ,
               महक उठी क्यारी क्यारी ।
               लाल, गुलाबी, नीले, पीले,
                फूलों  की  छवि  है  न्यारी।
        आज  सजे फिर  नये  साज,
        वसुधा पर बिखर गये सतरंग ।। आ गया....
                         *
                हुआ पराजित आज शिशिर है,
                विजयी  हुआ  आज  ऋतुराज।
                विजय  दुम्दुभी  बजा  रहे  हैं ,
                गुन गुन  सा  करते  अलिराज।
         कष्ट  शीत  का  दूर  हो  गया ,
         मधु-ऋतु  लाई  सुख  अनन्त ।। आ गया ....
                           *
                  थिरक  उठी है  प्रकृति सुन्दरी ,
                  आज  मिलन  की  वेला  आई ।
                   कूक कूक कोकिल कुल ने भी,
                   सुखकर , सुमधुर  तान  सुनाई।
         सखि! बसन्त आए वर बन कर ,
         साथ  लिये  अपने  अनंग ।। आ गया .....
                          *
                   आ  गया  ऋतुराज  बसन्त।
                    छा  गया ऋतुराज बसन्त ।।
                          **************
                             — शकुन्तला बहादुर

राजनीति त्याग कर राष्ट्रनीति का करना होगा पालन, आंदोलनजीवियों से सावधान रहने की है जरूरत :: नरेन्द्र मोदी

भगवत कौशिक।नई दिल्ली- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रपति के अभिभाषण पर राज्यसभा में जमकर बोले।राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव से बोलना शुरू किया और किसान आंदोलन के डीएनए तक बोले।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि हमें ये तय करना होगा कि हम समस्या का हिस्सा बनेंगे या समाधान का माध्यम। उन्होंने कहा कि राजनीति और राष्ट्रनीति में हमें किसी एक को चुनना होगा। पीएम मोदी बोले कि सदन में किसान आंदोलन की भरपूर चर्चा हुई, जो भी बताया गया वो आंदोलन को लेकर बताया गया लेकिन मूल बात पर चर्चा नहीं हुई।

पीएम मोदी ने संसद से देश को FDI “फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट” की नई परिभाषा बताई, जो किसान आंदोलन के संदर्भ में निकल कर सामने आया है।एफडीआई को आसान भाषा में कहें तो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश। मतलब कि विदेश की कोई कंपनी भारत की किसी कंपनी में सीधे पैसा लगा दे। पीएम मोदी वाला एफडीआई भी विदेशी है, लेकिन इसका संबंध पैसे के निवेश से नहीं बल्कि विचारों के निवेश से है।

संसद में पीएम मोदी ने कहा कि देश को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की जरूरत है। मगर नया FDI जो आया है, उससे बचने की जरूरत है। हिंदी में इसका तर्जुमा करें तो इसका मतलब होता है विदेशी विनाशकारी विचारधारा। पीएम मोदी ने FDI की नई व्याख्या किसान आंदोलन के संदर्भ में की है।आपको बता दें कि पिछले दिनों किसान आंदोलन को लेकर कुछ विदेशी हस्तियों नें अपने विचार सोशल मीडिया पर साझा किए थे। इनमें पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग, अमेरिकी पॉप स्टार रिहाना और पोर्न स्टार मिया खलीफा समेत कई हस्तियां शामिल थीं। जिसके बाद से सोशल मीडिया पर हंगामा मच गया और कई भारतीय हस्तियां उनके खिलाफ मैदान में उतर गईं थीं। पीएम मोदी ने सोमवार को संसद में किसी का जिक्र किए बिना ही FDI की नई व्याख्या से सभी पर निशाना साध दिया।

एमएसपी है,एमएसपी था और एमएसपी रहेंगा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि जब लाल बहादुर शास्त्री जी को जब कृषि सुधारों को करना पड़ा, तब भी उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। लेकिन वो पीछे नहीं हटे थे। तब लेफ्ट वाले कांग्रेस को अमेरिका का एजेंट बताते थे, आज मुझे ही वो गाली दे रहे हैं। पीएम ने कहा कि कोई भी कानून आया हो, कुछ वक्त के बाद सुधार होते ही हैं। पीएम मोदी ने अपील करते हुए कहा कि आंदोलनकारियों को समझाते हुए हमें आगे बढ़ना होगा, गालियों को मेरे खाते में जाने दो लेकिन सुधारों को होने दो। पीएम मोदी ने कहा कि बुजुर्ग आंदोलन में बैठे हैं, उन्हें घर जाना चाहिए। आंदोलन खत्म करें और चर्चा आगे चलती रहे।किसानों के साथ लगातार बात की जा रही है। पीएम मोदी ने किसानों को भरोसा दिलाया कि MSP है, था और रहेगा। मंडियों को मजबूत किया जा रहा है. जिन 80 करोड़ लोगों को सस्तों में राशन दिया जाता है, वो भी जारी रहेगा। किसानों की आय बढ़ाने के लिए दूसरे उपाय पर बल दिया जा रहा है। पीएम मोदी ने कहा कि अगर अब देर कर देंगे, तो किसानों को अंधकार की तरफ धकेल देंगे।

पीएम किसान सम्मान निधि योजना से किसानों को मिली मदद- मोदी

पीएम मोदी ने कहा, ‘’जब हम कर्जमाफी करते हैं तो छोटा किसान उससे वंचित रहता है, उसके नसीब में कुछ नहीं आता है। पहले की फसल बीमा योजना भी छोटे किसानों को नसीब ही नहीं होती थी। यूरिया के लिए भी छोटे किसानों को रात-रात भर लाइन में खड़े रहना पड़ता था, उस पर डंडे चलते थे.’’। उन्होंने कहा, ‘’पीएम किसान सम्मान निधि योजना से सीधे किसान के खाते में मदद पहुंच रही है।10 करोड़ ऐसे किसान परिवार हैं जिनको इसका लाभ मिल गया।अब तक 1 लाख 15 हजार करोड़ रुपये उनके खाते में भेजे गये हैं. इसमें अधिकतर छोटे किसान हैं.’’।

आंदोलनजीवियों से बचकर रहे

पीएम मोदी ने कहा कि कुछ बुद्धिजीवी होते हैं, लेकिन कुछ लोग आंदोलनजीवी हो गए हैं, देश में कुछ भी हो वो वहां पहुंच जाते हैं।कभी पर्दे के पीछे और कभी फ्रंट पर, ऐसे लोगों को पहचानकर हमें इनसे बचना होगा।ये लोग खुद आंदोलन नहीं चला सकते हैं, लेकिन किसी का आंदोलन चल रहा हो तो वहां पहुंच जाते हैं। ये आंदोलनजीवी ही परजीवी हैं, जो हर जगह मिलते हैं। पीएम मोदी ने कहा कि एक नया FDI मैदान में आया है, जो Foreign destructive ideology से देश को बचाने की जरूरत है। पीएम मोदी ने कहा कि आत्मनिर्भर भारत किसी सरकार नहीं बल्कि देश का आंदोलन है।

स्वाध्याय करने से अज्ञान का नाश तथा ज्ञान की वृद्धि होती है

-मनमोहन कुमार आर्य
मनुष्य को परमात्मा ने बुद्धि दी है जो ज्ञान प्राप्ति में सहायक है व ज्ञान को प्राप्त होकर आत्मा को सत्यासत्य का विवेक कराने में भी सहायक होती है। ज्ञान प्राप्ति के अनेक साधन है जिसमें प्रमुख माता, पिता सहित आचार्यों के श्रीमुख से ज्ञान प्राप्त करना होता है। ज्ञान प्राप्ति में भाषा का मुख्य स्थान होता है। मनुष्य प्रथम भाषा के रूप में अपनी माता की भाषा को सीखता है। मातृ भाषा सभी माता के शब्दों को सुनकर ही सीखते हैं। इसके बाद वर्णोच्चारण शिक्षा पढ़कर भाषा को लिखना तथा व्याकरण का ज्ञान प्राप्त कर भाषा को शिष्ट रूप में प्रयोग में लाया जाता है। मातृभाषा और लिपि को सीखकर मनुष्य अन्य अनेक भाषाओं को भी सीख सकता है। संसार की प्रमुख भाषा संस्कृत को माना जा सकता है। संस्कृत में जो ज्ञान उपलब्ध है वह संसार की शायद किसी भाषा में उपलब्ध नहीं होता है। यदि संस्कृत में वेद, उपनिषद, दर्शन आदि से इतर कहीं कुछ ज्ञान है भी तो वह संस्कृत वा वेदों से ही उन सभी ग्रन्थों में गया है। वेद ईश्वरीय ज्ञान होने के साथ सभी सत्य विद्याओं के ग्रन्थ हैं। वेदाध्ययन करने पर मनुष्य ईश्वर, जीवात्मा सहित मनुष्य के कर्तव्य व कर्तव्य एवं सभी सांसारिक विषयों का ज्ञान प्राप्त करने में सफल होता है। इस प्रकार भूमिका तैयार हो जाने पर मनुष्य आधुनिक ज्ञान विज्ञान विषयों को भी पढ़कर व विद्वानों की संगति से सभी विषयों का अपना ज्ञान बढ़ा सकता है।

मनुष्यों को सद्ज्ञान प्राप्त हो जाये तो वह अपने जीवन की सभी समस्याओं को हल कर सकता है व दूसरों का मार्गदर्शन भी कर सकता है। सभी समस्याओं का समाधान एवं सभी प्रकार की उन्नतियां ज्ञान के विकास व विस्तार से ही सम्भव होती है। ज्ञान व विज्ञान का जीवन में महत्व निर्विवाद है, परन्तु इसके साथ मनुष्य के लिये ईश्वर व आत्मा का यथोचित ज्ञान होना भी आवश्यक होता अन्यथा मनुष्य जीवन सार्थक एवं सफल नहीं होता। ईश्वर का ज्ञान प्राप्त करने पर हमें ज्ञात होता है कि हमारा यह समस्त संसार वा ब्रह्माण्ड एक सच्चिदानन्दस्वरूप सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक, अनादि व नित्य सत्ता से बना हुआ है व उसी से संचालित है। ईश्वर ही संसार का उत्पत्तिकर्ता, पालक व संहारक है। वही सब अपौरुषेय रचनाओं का कर्ता तथा सभी वनस्पतियों एवं प्राणियों का उत्पत्तिकर्ता व पालक भी है। मनुष्य को जन्म देने वाला तथा हमें जो सुख व दुःख मिलता है, उसका आधार भी परमात्मा सहित हमारे जन्म-जन्मान्तर के कर्म हुआ करते हैं जिनका हमें फल भोग करना शेष रहता है। हम दुःखों से कैसे बच सकते हैं और सुखों में वृद्धि सहित दुःखों को सदा के लिये कैसे दूर कर सकते हैं, इसका ज्ञान भी हमें हमारी बुद्धि वैदिक साहित्य के अध्ययन से प्राप्त कराती है। अतः मनुष्य को ज्ञान व विज्ञान तथा अंग्रेजी व दूसरी भाषाओं को पढ़ने से पूर्व व साथ साथ हिन्दी व संस्कृत का ज्ञान भी अर्जित करना चाहिये। इसके साथ ही वेदों का अध्ययन भी करना चाहिये जिससे हमारी बुद्धि सभी विद्याओं के ज्ञान से युक्त होकर अपने जीवन को सृष्टिकर्ता की आज्ञाओं का पालन करते हुए दुःखों से दूर रहते हुए सुखों को प्राप्त होकर अपने अनादि देव परमात्मा का प्रत्यक्ष व साक्षात्कार कर सके और अन्त में आनन्दमय ईश्वर को प्राप्त होकर दुःख सुख रूपी आवागमन के चक्र से मुक्त हो सके। 

मनुष्य ज्ञान व विज्ञान तो स्कूलों व विद्यालयों में पढ़ सकता है परन्तु उसे अपने जीवन सहित अपनी आत्मा तथा सृष्टिकर्ता परमात्मा विषयक सत्य ज्ञान प्राप्त करने के लिए स्वाध्याय का आश्रय लेना पड़ता है। स्वाध्याय वेदों के अध्ययन जिसमें सभी विद्यायें विद्यमान हैं, उनके अध्ययन सहित ‘स्व’ अर्थात् स्वयं को जानने के लिये अध्ययन व चिन्तन व मनन करने को भी कहते हैं। स्वाध्याय करके अध्ययन किये हुए विषय का चिन्तन व मनन कर उस ज्ञान को सत्य होने पर ग्रहण व धारण करना होता है। ज्ञान को धारण करने पर ही वह आचरण में आता है। हमें ईश्वर व आत्मा विषयक ज्ञान का महत्व ज्ञात होना चाहिये। हमें जब ईश्वर व आत्मा विषयक ज्ञान होगा तब हम राग द्वेष से रहित होकर विरक्त भावों से संसार का निर्लिप्त होकर त्याग पूर्वक भोग कर सकते हैं जिसके परिणाम से हम अन्य सामान्य मनुष्यों को होने वाले अनेक दुःखों से बच सकते हैं। सुख व दुःख का कारण मनुष्य के कर्म ही हुआ करते हैं। मनुष्य अज्ञान से युक्त जो कर्म करते हैं उनसे प्रायः दुःख हुआ करता है। अज्ञानी मनुष्य को भक्ष्याभक्ष्य का ज्ञान नहीं होता, अतः उससे भोजन करने में भूल होने की सम्भावना भी होती है। अतः हमारा आचार-विचार-व्यवहार व आहार युक्त व ज्ञानसम्मत होना चाहिये। ऐसा तभी होगा जब हम वेदों सहित समस्त धर्म एवं संस्कृति विषयक साहित्य का अध्ययन करने के साथ आयुर्वेद की शिक्षाओं का भी अध्ययन करेंगे और आवश्यक शिक्षाओं को धारण कर उनके अनुसार व्यवहार करेंगे। स्वाध्याय करने से हमें स्वस्थ जीवन बनाने व जीने की शिक्षा भी मिलती है। स्वास्थ्य के लिये हमें समय पर सोना व समय पर जागने के नियम का भी पालन करना होता है। भ्रमण, व्यायाम व योगासन आदि करने होते हैं। सात्विक भोजन का सेवन करना होता है। अभक्ष्य पदार्थों यथा मांसाहार आदि का त्याग भी करना होता है। भोजन समय पर करना चाहिये अन्यथा इसके भी कुछ दुष्परिणाम भविष्य में सामने आते हैं। जीवन को बाह्य व आन्तरिक रूप से शुद्ध व पवित्र बनाना भी सुखी जीवन के लिये आवश्यक होता है। ऐसे अनेक नियमों का ज्ञान हमें सत्साहित्य के स्वाध्याय व अध्ययन करने पर होता है। अतः सभी मनुष्यों को जीवन की उन्नति के लिये आवश्यक सभी प्रकार के उत्तम ग्रन्थों का स्वाध्याय करना चाहिये। 

जब हम वेदों व वैदिक साहित्य का स्वाध्याय करते हैं तो हमें ईश्वर व आत्मा विषयक सत्य ज्ञान प्राप्त होता है। स्वाध्याय व विद्वानों की संगति से हम सभी विषयों के सत्य ज्ञान को प्राप्त हो सकते हैं। ईश्वर को जानने पर हमें ईश्वर के जीवों पर उपकारों का ज्ञान होता है और हम उसके उपकारों को जानकर उसके प्रति कृतज्ञ होते हैं। हमें ईश्वर की उपासना का महत्व विदित होता है और सिद्ध होता है कि ईश्वर की उपासना मनुष्य का परम आवश्यक कर्तव्य है। इसी को पंचमहायज्ञों वा कर्तव्यों में प्रथम स्थान दिया गया है। उपासना करने, योगदर्शन आदि के अध्ययन करने तथा महान योगी ऋषि दयानन्द सरस्वती जी के जीवन व उनके सत्यार्थप्रकाश आदि ग्रन्थों का अध्ययन कर भी हम उपासना विषय को विस्तार से जान सकते हैं व उसे करके अपनी आत्मा की उन्नति कर सकते हैं। उपासना करने से मनुष्य की आत्मा का बल बढ़ता है जिससे वह पहाड़ के समान दुःख प्राप्त होने पर भी घबराता नहीं है। यह लाभ व फल अन्यथा किसी प्रकार से नहीं होता। अतः उपासना का महत्व निर्विवाद है जिसे हमें सन्ध्या पद्धति के अनुसार करनी चाहिये। वेद निर्दिष्ट व अनुमोदित मनुष्य के पांच कर्तव्यों में इतर कर्तव्य देवयज्ञ अग्निहोत्र, पितृयज्ञ, अतिथियज्ञ तथा बलिवैश्वदेवयज्ञ होते हैं। इन सब कर्मों को करने का ज्ञान व प्रेरणा मनुष्य को स्वाध्याय से मिलती है। स्वाध्याय से मनुष्य का ज्ञान उत्तरोतर बढ़ता रहता है। वह उपासना को सिद्ध करके ईश्वर के साक्षात्कार तक पहुंच सकता है। ईश्वर का साक्षात्कार ही मनुष्य जीवन का लक्ष्य होता है। इस लक्ष्य की प्राप्ति में जितना ज्ञान व विज्ञान सहायक हो सकता है, उसका आश्रय लिया जा सकता है। केवल ज्ञान व विज्ञान से युक्त जीवन जो ईश्वर भक्ति व उपासना से रहित है, प्रशस्त नहीं होता। यह बात सभी स्वाध्यायकर्ता जानते हैं। इसी से वेद व उपनिषद आदि ग्रन्थों के स्वाध्याय का महत्व ज्ञात होता है। ऋषि दयानन्द सहित पूर्व के सभी ऋषि व विद्वान वेदों का स्वाध्याय व अध्ययन न करते तो वह महान नहीं बन सकते थे। स्वाध्याय साधारण मनुष्य के जीवन को महान बनाने के कार्य में भी सहायक होता है। स्वाध्याय करने सहित स्वाध्याय से प्राप्त ज्ञान को क्रियात्मक रूप देना भी आवश्यक होता है। अतः सभी बन्धुओं को वेद व वैदिक साहित्य के स्वाध्याय सहित स्वाध्याय से प्राप्त शिक्षा को क्रियात्मक रूप देकर जीवन को सफल करना चाहिये और ऐसा करते हुए धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष को प्राप्त होकर दुःखों से मुक्त होना चाहिये। 

सूझ-बूझ से मुग़ल सल्तनत को जमींदोज़ किया

               ‘मराठा और सिख,  हिन्दू पुनरुत्थान के नेतृत्व के शिखर पर थे. और भारत से मुग़ल साम्राज्य को अन्तत: इनके द्वारा ही  उखाड़ फैंका गया, ना कि अंग्रेजों द्वारा’-[पृ-३६५,३७०-‘ग्लिम्प्सेस ऑफ़ वर्ल्ड हिस्ट्री’]  जवाहरलाल नेहरु के द्वारा व्यक्त इतिहास के इस गौरवशाली क्षण तक देश के पहुँचने का सफ़र बड़ा ही रौचक, और सबक देने वाला है.
             देश की भोगोलिक एकता को प्रभावित करने वाला पहला विदेशी आक्रमण मीर कासिम द्वारा सन ६३८ में किया गया था. इसकी शुरुआत उसने सिंध पर चढ़ाई करके की थी, जब दाहिर सेन वहां के शासक हुआ करते थे . समुद्र मार्ग से होती हुई  मीर कासिम की सेना नें जब समुद्र से रेगिस्तानी इलाके में प्रवेश किया तो दाहिर के मंत्रीयों नें उसे सलाह दी कि दुश्मन की रसद काट दी जाये . जिससे कि युद्ध में जाने के पहले ही भूख-प्यास  से उनके प्राण निकल जाए.  परन्तु ये वो समय था जब कि भारतीय युद्ध-कला में  छल-कपट युक्त चेष्टाओं  को  हेय दृष्टि से देखा जाता था. दाहिर को ये सलाह ‘क्षात्र-धर्म’ के विरुद्ध  लगी; उसने इसको अस्वीकार कर दिया. परिणामस्वरुप, कासिम की सेना कराची के पास देवल के किले तक जा पहुंची. और, दाहिर के ठीक विपरीत, क्षात्र-धर्म क्या होता है इससे बेखबर, कासिम नें जो पहला काम किया वो ये कि किले के मुख्य द्वारपाल के तीन बच्चों को धोखे से अपहरण करवा लिया. और बिना देरी किये उसने एक बच्चे का सर धढ़ से अलग करवा दिया, ये दिखाने के लिए कि अगर उसकी बात न मानी गई तो उसके शेष बच्चों के साथ क्या हो सकता है! असहाय, मुख्य द्वारपाल ने किले के दरवाजे खुलवा दिये. दोनों सेनाओं के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया, और अंत में दाहिर के हाथों पराजय लगी. सिंध हमारे हाथों से निकल गया.
                 इसके बाद देश पर अगला विदेशी हमला ९८०ई में हुआ. इस बार हमलावरों नें जिस मार्ग को चुना वो हमारी सीमा पर स्थित उपगानिस्तान[ आज का अफ़गानिस्तान]  से होकर गुजरता था. उनका सेनापति गज़नी का सुलतान, सुब्क्तगिन, था.  गुप्तचरों से सुब्क्तगिन को पता चला कि भारतीय परंपरा में रात्रि में युद्ध नहीं लड़ा जाता . उसने अपना दूत भेजकर भारतीय राजा जयपाल शाहिया के साथ तय किया कि रात्रि के बाद अगली सुबह युद्ध लड़ा जायेगा. परन्तु अपनी ही बात से मुकरते हुए, जैसे ही आधी रात ढली कि उसने भारतीय  सेना पर हमला बोल दिया; जबकि सैनिक निहत्थे, गहरी नींद में थे! इस एक तरफ़ा युद्ध में पराजित, जयपाल को  काबुल से पीछे हट  पहले उदाबंदपुर और फिर अन्तत: लवकुशपुर[लाहोर]  को अपनी राजधानी बनाना पड़ा. सरहद पार  से होने वाले  विदेशी  हमलों का सिलसिला फिर भी ना थमा.  सुबुक्तगिन नें युद्ध जहां पर समाप्त किया था, वहां से उसे आगे बढ़ाया उससे भी ज्यादा बर्बर व धूर्त उसके लड़के मोहम्मद   गज़नवी नें. अपने पूर्वजों के सबसे भरोसेमंद छल-कपट  रुपी शस्त्र का उपयोग करते हुए, उसने जयपाल शाहिया  के वंशज आनंदपाल और त्रिलोचनपाल शाहिया को पराजित किया, और अफ़गानिस्तान व पंजाब को भारत से अलग करते हुए अपने साम्राज्य में शामिल कर लिया. 
           भागते शत्रु पर पीछे से वार न करना; हाथ लगे शत्रु को क्षमा-दान, अभय-दान देने में अपनी शान समझना; निहत्थे प्रतिपक्षी पर शस्त्र ना उठाना; एक बार जो वचन दिया तो पीछे नहीं हटना, फिर भले ही कितना नुकसान उठाना पड़ जाए; जय-पराजय की परवाह न करते हुए रणभूमि में  लड़ते-लड़ते बलिदान हो जाने को ज्यादा गौरव की बात समझना – सद्गुणों के प्रति ये ऐसा एकान्तिक दृष्टिकोण था जिससे भारतीय  शासक  इतिहास में आगे भी अपने  को अलग नहीं कर पाए. जिसके कारण देश को गुलामी के कलंक से छुटकारा न मिल सका और एक के बाद एक इसके हिस्से विदेशीयों  के कब्ज़े में जाते  चले गए. परन्तु इस अवधि में सर्वप्रथम जिन्होंनें  सही अर्थों में विदेशीयों के छल-कपट को समझकर उनकों उन्ही के खेल में मात देते हुए सफलता पूर्वक मुग़ल सल्तनत के पतन की नींव रखी वो थे मराठा हिन्दूवीर छत्रपति शिवाजी. ये वो समय था जब विदेशी शासकों का तुष्टिकरण कर किसी तरह देश के राजा-रजवाड़े अपनी-अपनी जगीर और राज्य को बचाए रखने में लगे हुए थे. शत्रु पर पहले आक्रमण करने की बात तो वो सोच भी नहीं सकते थे. परन्तु जैसे ही शिवाजी महाराज नें मराठा राजसत्ता का सूत्रपात किया,मुग़लों के विरुद्ध  उन्होंने मोर्चा खोल भीषण आक्रमण कर उनके सैन्यबल तथा साम्राज्य को छिन्न-भिन्न करके रख डाला. क्यूंकि संख्या व संसाधन दोनों ही दृष्टि से उनकी सैन्य क्षमता मुग़लों की तुलना में काफी कमजोर थी, अत: सह्याद्री-पर्वत  का भरपूर उपयोग कर वहां के चप्पे-चप्पे  से सुपरिचित निवासरत अदम्य साहस के धनी मावले वनबंधुओं को साथ ले उन्होंने जिस रणनीति को अपनाया वो इतिहास में छापामार-युद्ध के नाम से विख्यात हुई. छापामार-युद्ध की मार से मुग़ल सेना में त्राहि-त्राहि मच गयी और मराठों को धीरे-धीरे उन पर बढ़त हासिल होने लगी. जैसे-जैसे उनका सैन्य बल बढ़ता गया उन्होंने मुग़लों पर खुला आक्रमण करना शुरू कर दिया. और १९७२ के साल्हेर के युद्ध में तो औरंगजेब के अधीन मुग़लों की भीषण पराजय द्वारा मराठा शूरवीरों नें उन्हें भी बचाव की मुद्रा स्वीकारनें के लिए विवश कर दिया. इसके उपरांत डेढ़ वर्ष तक राजधानी से दूर रहते हुए प्रसिद्ध कर्णाटक-अभियान का सफल संचालन किया. अपने कुशल प्रशासन व योजनाबद्ध रणनीति के बल्बूते इस दौरान उन्होंने विदेशी शासकों को एक के बाद एक युद्ध में परास्त कर महाराष्ट्र के दक्षिण-पूर्व के एक भाग में अलग संप्रभु मराठा राज्य की स्थापना करी.  शिवाजी के द्वारा दिखाए  गए रास्ते पर चलते हुए, आगे चलकर मराठा इतने शक्तिशाली हो उठे कि भयभीत, हताश औरंगजेब नें उनके समक्ष संधि का प्रस्ताव तक भेजा. पर जब तक बहुत देर हो चुकी थी. बदले में मराठाओं से मिली अपनी अवहेलना से उत्पन्न  मानसिक प्रताड़ना से औरंगजेब को मुक्ति तब ही जाकर मिल सकी जब म्रत्यु ने उस अपने गले लगाया. और, विशेषकर १७४० के बाद, मोहम्मद शाह के शासनकाल में मुग़ल जब बहुत ही कमजोर हो चले थे, देश की वास्तविक सत्ता मराठाओं के हाथों आ चुकी थी. वर्ष १७५५-१७५६ के मध्य रघुनाथ राव और मल्हारराव होलकर के नेतृत्व में उन्होंने रोहिल्ला और अफगानों के विरुद्ध निर्णायक जीत हासिल करी, और विदेशीयों  के  ८०० वर्षों के शासन से  पंजाब को मुक्ति दिलाई. आगे चलकर इस विजय अभियान को और आगे बढ़ाने का श्रेय जिसको जाता है वो हैं  सिख महाराजा रणजीत सिंह.  विदेशी वर्चस्व को तोड़ते हुए उनके सेनापति हरिसिंह नलुआ ने अफगानिस्तान के अंदर घुसते हुए काबुल तक को सिख साम्राज्य में मिलाने में सफलता प्राप्त करी, और जिस रत्न जड़ित द्वार को आठ सौ वर्ष पूर्व मेंहमूद गजनवी सोमनाथ के मंदिर को ध्वस्त  कर अपने साथ ले गया था उसे बापस लाकर पुनः उसी स्थान पर स्थापित करने का गौरव प्राप्त किया. अमृतसर के जिस हरिमंदिर गुरुद्वारा को  अहमद शाह अब्दाली ने ध्वस्त कर  दिया था, उसका पुनर्निर्माण कर  महाराजा रंजित सिंह ने  उसे आज के ‘स्वर्ण मंदिर’ का स्वरूप  प्रदान किया. साथ ही विदेशी- शासन काल में सदियों से चले आ रहे गोवध पर प्रतिबन्ध लगाया.

भाषा नहीं किसी धर्म-मजहब की, ये पुकार है रब की

—विनय कुमार विनायक
पाट दो मन की खंदक-खाई,भाषा की दीवार नहीं होती
हवा सी उड़कर जाती-आती, भाषा मन पर सवार होती!

इसपार-उसपार उछल जाती, खुद ही विस्तार हो जाती,
भाषा ध्वनि का झोंका है, पूरे संसार में फैलती जाती!

बड़े-बड़े साम्राज्य ढह गये,उजड़ गये भाषा की मार से,
बड़ी धारदार होती भाषा,किन्तु बिना तलवार की होती!

भाषा सदा से सिखलाती रही है आपस में प्रेम करना,
भाषा नहीं किसी धर्म-मजहब की, ये पुकार है रब की!

धर्म-मजहब बदलता है,किन्तु बदलती नहीं भाषा रीति,
देश टूटता भले धर्म से,किन्तु भाषा विधर्मी को जोड़ती!

हिन्दुस्तान टूटा धर्म के नाम पाकिस्तान बन गया था,
पर सम मजहबी एक रहा नहीं, भाषा की ऐसी शक्ति!

भाषा और संस्कृति एकता और भाईचारे का कंक्रीट है,
मजहबी समानता किसी की वल्दियत हो नहीं सकती!

ओटीटी प्लेटफार्म के द्वारा फैलती अश्लीलता पर सरकार लगाए जल्द अंकुश!

दीपक कुमार त्यागी
लॉकडाउन के दौरान जब देश में सभी लोग अपने घरों में एक तरह से कैद थे, तो उस समय सबसे सुलभता से उपलब्ध मनोरंजन के सशक्त प्लेटफॉर्म के तौर पर ओटीटी प्लेटफार्म देश में उभरा था, देश में इस प्लेटफार्म का चलन बहुत तेजी से बढ़ा था, सिनेमा हाल बंद होने की वजह से अचानक बड़े-बड़े धुरंधर ओटीटी प्लेटफार्म पर आ गये थे, आज बहुत बड़ी संख्या में हर उम्र के दर्शक किसी ना किसी देशी या विदेशी ओटीटी प्लेटफार्म से जुड़े हुए हैं। भारतीय बाजार के मद्देनजर आयेदिन भारतीय दर्शकों के लिए नयी फिल्म या वेब सीरीज़ ओटीटी प्लेटफार्म पर उपलब्ध होती है। उसी कड़ी में देश में ओटीटी प्लेटफार्म अमेजॉन प्राइम वीडियो पर 15 जनवरी शुक्रवार को सैफ अली खान व डिंपल कपाड़िया की वेब सीरीज ‘तांडव’ रिलीज हुई है, जिसके बाद से ही यह सीरीज़ जबरदस्त विवादों में घिरती नज़र आ रही है। इस वेब सीरीज़ के खिलाफ सोशल मीडिया पर लोगों की बड़ी मुहिम चल रही है, देश में बहुत सारी जगह तो इस सीरीज़ से जुड़े हुए कुछ लोगों के खिलाफ एफआईआर तक दर्ज हो चुकी है, कुछ आम दर्शक तो वेब सीरीज़ के निर्माताओं पर सीधे आरोप लगा रहे हैं कि इसमें उन्होंने जानबूझकर भगवान शिव और भगवान राम का अपमान करने का दुस्साहस किया है, लोगों का कहना है कि जानबूझकर सनातन धर्म के अनुयायियों की आस्था से खेलने का कार्य किया गया है, दर्शकों का आरोप है कि इस सीरीज़ में प्रधानमंत्री पद की गरिमा को धूमिल करने का दुस्साहस किया गया है, साथ-साथ जातिगत व धार्मिक विवादित टिप्पणी करके देश के आम लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करने का प्रयास किया गया है। इस स्थिति के बाद बहुत सारे ल़ोगों का मत है कि ‘केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय’ को लोगों की आस्था व भावनाओं से खिलवाड़ करने वाली ‘तांडव’ वेब सीरीज़ पर तत्काल प्रतिबंध लगा देना चाहिए, जिसको लेकर के देश में जगह-जगह से लोगों की मांग कर रहे हैंं। हालांकि ओटीटी प्लेटफार्म पर यह कोई पहली विवादित वेब सीरीज या फिल्म नहीं है इसके पहले भी कई ऐसी फिल्में और वेब सीरीज विभिन्न कम्पनियों के ओटीटी प्लेटफार्म पर आ चुकीं हैं, पूर्व में भी इस तरह से ही मंंदिर में राम धुन पर किसिंग सीन फिल्मा कर सनातन धर्म के लोगों की भावनाओं से खेलने का कार्य एक ओटीटी प्लेटफार्म के द्वारा किया गया था, उस समय भी खूब विवाद हुआ था। लेकिन आज फिर से वही स्थिति है इस तरह की सीरीज़ व फिल्म बनाने वालें निर्माताओं को यह समझना चाहिए कि जिस दिन देश की जनता को यह समझ में आ गया कि यह देशी-विदेशी ओटीटी प्लेटफार्म असभ्यता, अश्लीलता, हिंसा, सेक्स और गाली-गलौज परोस कर अपना उल्लू सीधा करके दर्शकों से धन कमाने का काम कर रहे हैं, उस दिन बिना किसी सरकारी दवाब व दिशा-निर्देश के दर्शक ना मिलने के चलते सभी कुछ बहुत जल्दी सही हो जाएगा। इन ओटीटी प्लेटफार्म चलने वाले प्रबंधन के लोगों को समय रहते यह समझना होगा कि भारत की सम्मानित जनता किसी की भी अभिव्यक्ति की आज़ादी के विरोधी नहीं है, लेकिन वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर आस्था व भावनाओं से खिलवाड़ करने पर अब चुप नहीं बैठेगी, बहुत जल्द वह अधिकांश ओटीटी प्लेटफार्म के विरोध में खड़ी हो जायेगी। लेकिन फिलहाल मौजूदा स्थिति के बाद मन में अब प्रश्न यह उठता है कि आखिरकार हमारे देश में आयेदिन अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज़ होने वाली वेब सीरीज़ों के द्वारा देश के हर उम्र के लोगों के बीच जमकर अश्लीलता, फूहड़ता व गालीगलौज क्यों परोसी जा रही है और बार-बार लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करने का कार्य क्यों किया जा रहा है, हर बार वेब सीरीज़ व फिल्मों के देश-विदेश में निशुल्क प्रचार व जबरदस्त टीआरपी हासिल करने के लिए कोई ना कोई विवादित सीन उसमें डाल दिया जाता है, जिसके दम पर विवाद खड़ा करके दर्शकों को वेब सीरीज़ व फिल्म देखने के लिए आकर्षित करके ओटीटी प्लेटफार्म के द्वारा आम जनमानस की भावनाओं से खिलवाड़ करके जमकर धन कमाया जा रहा है। देश में मौजूदा समय में ओटीटी प्लेटफार्म के लिए कोई नियम कायदे कानून नहीं बने हुए है, जिसका यह लोग अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर गालीगलौज व अश्लीलता परोस कर नाजायज फायदा उठा रहे हैं और बार-बार घटनाओं की पुनरावृत्ति देखकर लगता है कि वेब सीरीज़ के निर्माताओं के लिए धन ही सभी कुछ हो गया है उसके लिए चाहे देश की सभ्यता का मानमर्दन ही क्यों ना करने पड़े। अभी तक के विवादों के बाद भी हमारे देश का ‘केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय’ इस तरह के नकारात्मक हालात पर ना जाने क्यों रोक नहीं लगा पा रहा है, जो स्थिति हमारे देश के सभ्य समाज के लिए बिल्कुल भी बेहतर नहीं है। 
देश में चल रहे सभी देशी-विदेशी ओटीटी प्लेटफार्म को यह ध्यान रखना चाहिए कि अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर उनको वेब सीरीज़ों में अश्लीलता परोसने का अधिकार नहीं मिला हुआ है, उनको हमारी धार्मिक आस्थाओं पर प्रहार करने का अधिकार नहीं मिल जाता। बार-बार घटित हो रही घटनाओं के मद्देनजर अब ‘केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय’ को तत्काल ओटीटी प्लेटफॉर्म पर निगरानी रखने की ज़रूरत है, उसके लिए सख्त नियम कायदे व कानून बनाने की जरूरत है। क्योंकि ओटीटी प्लेटफॉर्म पर जिस तरह से बेखौफ होकर गालीगलौज व अश्लीलता परोसी जा रही है वह हमारे देश के किशोरों को गलत दिशा में ले जाने का कार्य कर रही है। भारत सरकार को देश की युवा पीढी के हित के लिए बहुत जल्द इस पर तत्काल अंकुश लगाने की आवश्यकता है। बार-बार विवाद होने पर भारत सरकार के द्वारा पल्ला झाड़ने और हाथ खड़े कर देने से अब काम नहीं चलने वाला है। सरकार के यह कहने से कि ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अंकुश लगाना हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं है, इससे अब काम नहीं चलने वाला है, सरकार को जल्द नियम बनाकर ओटीटी प्लेटफार्म को अपने अधिकार क्षेत्र में लाना होगा। आज ओटीटी प्लेटफार्म पर कम से कम भारत सरकार को बड़े पर्दे पर आने वाली फिल्मों की तरह सीबीएफसी (सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन) को लागू कर देना चाहिए, जिसे हमारे देश में प्राचलित भाषा में सेंसर बोर्ड कहा जाता है, जिसका कार्य वास्तव में फिल्मों को सेंसर करना नहीं है, बल्कि वह एक ऐसी संस्था है, जो फिल्मों को देखकर उनको सर्टिफिकेशन देती है कि कौन-सी फिल्म किस कैटेगरी (ए, यूए या यू) की है, कुछ फिल्म निर्माता चाहते हैं कि उनकी फिल्में ए से यूए या यूए से यू की कैटेगरी में आ जाएं तो बोर्ड के सदस्य उनको सुझाव देते हैं कि फलां-फलां सीन काट दो और उन संवाद को काट दीजिए, आपकी फिल्म को आपके द्वार चाहने वाली कैटेगरी मिल जायेगी। सरकार को ओटीटी प्लेटफार्म पर यह कानून लागू करने का लाभ होगा, कम से कम ओटीटी प्लेटफार्म के दर्शक को पहले से ही यह जानकारी हो जायेगी कि वेब सीरीज़ या फिल्म में किस तरह के सीन व संवाद हैं। जिस तरह से अभी तक ओटीटी प्लेटफॉर्म की वेब सीरीजों व फिल्मों में बिना किसी सीन की मांग के बेवजह की अश्लीलता व किरदारों के मूँह में गालियां ठूंसी जा रही हैं अधिकांश संवादों में दुअर्थी भाषा और संबोधन में विशेषण के लिए गालियों का चलन हो गया है, इस तरह की स्थिति भारतीय सभ्य समाज के लिए ठीक नहीं है। भारत सरकार के ‘केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय’ को ओटीटी प्लेटफार्म के हालात पर तत्काल विचार करके नियम कायदे कानून बनाकर के भारतीय समाज में संस्कार व सभ्यता बनाए रखने के लिए स्वच्छता अभियान चलाना चाहिए।