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पूरी दुनिया में मिसाल थी इंदिरा की दबंगता

इंदिरा जयंती (19 नवम्बर) पर विशेष

योगेश कुमार गोयल
19 नवम्बर 1917 को पं. जवाहरलाल नेहरू के घर जब प्रियदर्शिनी नामक कन्या ने जन्म लिया था तो किसे पता था कि यही कन्या आगे चलकर न केवल इस देश की बागडोर संभालेगी बल्कि इसकी दबंगता पूरी दुनिया में मिसाल बन जाएगी। ऑक्सफोर्ड और स्विट्जरलैंड में उच्च शिक्षा प्राप्ति के पश्चात् इंदिरा गांधी ने भी उच्च पद पर नौकरी करने या कोई अन्य कार्य करने के बजाय अपना जीवन देशसेवा में ही समर्पित करने का निश्चय किया। देशभक्ति की भावना इंदिरा जी में बचपन से ही कूट-कूटकर भरी थी। विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के आव्हान से प्रेरित होकर बचपन में ही इन्होंने अपने घर के बाहर अपने कीमती कपड़ों की होली जलाकर न केवल अपनी इसी भावना का परिचय दिया था बल्कि उसके बाद इंदिरा जी से प्रेरणा लेकर इस आन्दोलन ने पूरे देश में जोर पकड़ा था।
इंदिरा जी के स्कूली दिनों में एक दिन स्कूल में गांधी जी के आमरण अनशन को लेकर एक सभा का आयोजन था, जिसमें बच्चों को भी बोलने का अवसर दिया गया था। जब इंदिरा जी ने बोलना शुरू किया तो सभागार में सन्नाटा छा गया और सभी एकटक इंदिरा को निहारने लगे कि इतनी छोटी बालिका इतनी गूढ़ बातें कैसे कर रही है। उन्होंने कहा, ‘‘आखिर स्वर्ण अपने ही दलित भाईयों को गिरा हुआ, छूत और निकृष्ट क्यों समझते हैं तथा उनके साथ दुवर््यवहार और अत्याचार क्यों करते हैं? अगर हमने अपनी ही सेवा करने वालों का इस तरह से निरन्तर तिरस्कार न किया होता तो आज अंग्रेजों को इस प्रकार लाभ उठाने का अवसर न मिल रहा होता और न ही बापू को इस तरह से आमरण अनशन कर अपने प्राण दांव पर लगाने पड़ते।’’ इंदिरा जी की इन गूढ़ और तर्कसम्मत बातों से सभी नतमस्तक थे और उनकी सराहना कर रहे थे। इंदिरा में बचपन से ही एक अच्छी राजनेता होने के तमाम गुण विद्यमान थे। 21 वर्ष की आयु में वह कांग्रेस में शामिल होकर सक्रिय राजनीति में कूद पड़ी। उसके बाद उन्होंने आजादी के आन्दोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
1942 में उन्होंने फिरोज गांधी से प्रेम विवाह किया किन्तु 1960 में फिरोज गांधी का अकस्मात् निधन हो गया। पिता जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद देश की बागडोर संभालने की जिम्मेदारी इंदिरा के कंधों पर आई तो अपनी दृढ़ता, दबंगता, निडरता और वाकपटुता से उन्होंने दुनियाभर को अपना लोहा मानने को विवश कर दिया। अमेरिका और ब्रिटेन जैसे विकसित एवं प्रभावशाली देशों में भी उनकी तूती बोलती थी। 1966 से 1977 तक उन्होंने देश पर एकछत्र शासन किया और उनकी कार्यशैली तथा देश के प्रति उनका समर्पण भाव देखकर विरोधी भी उनकी सराहना किए बिना नहीं रह पाते थे। हालांकि लालबहादुर शास्त्री के बाद प्रधानमंत्री बनी इंदिरा को शुरूआती दौर में ‘गूंगी गुडि़या’ की उपाधि दी गई थी किन्तु बहुत ही कम समय में अपने साहसिक निर्णयों से इंदिरा ने साबित कर दिखाया था कि वो एक ‘गूंगी गुडि़या’ नहीं बल्कि ‘लौह महिला’ हैं।
बैंकों के राष्ट्रीयकरण तथा 1971 के भारत-पाक युद्ध में भारत की शानदार जीत के बाद इंदिरा जी जनमानस की आंखों का तारा बन गई थी किन्तु 1975-77 के इमरजेंसी काल ने उनकी छवि पर ग्रहण लगाने में प्रमुख भूमिका निभाई और इस दौर ने उनकी छवि एक तानाशाह के रूप में स्थापित कर दी। यही वजह रही कि 1977 में इंदिरा को पहली बार हार का सामना करना पड़ा और सत्ता उनके हाथ से छिन गई किन्तु निराश होना तो जैसे उन्होंने सीखा ही नहीं था, इसलिए 1980 में एक बार फिर विशाल बहुमत के साथ वह सत्ता में लौटी। अपने शासनकाल में उन्होंने कभी अलगाववादी व साम्प्रदायिक आग भड़काने वाले तत्वों को नहीं पनपने दिया। ऐसे तत्वों को उन्होंने बेदर्दी से कुचलने में जरा भी देर नहीं लगाई।
1980 में पुनः देश का शासन संभालने के बाद पंजाब में अलगाववादी ताकतों ने खालिस्तान की मांग शुरू की और दूसरे मुल्कों की शह पर अपने नापाक इरादों को कामयाब बनाने के लिए सिख अलगाववादियों ने भयानक नरसंहार का दौर शुरू किया तथा पंजाब में अवैध रूप से हथियारों के जखीरे इकट्ठा करने शुरू कर दिए। देश की जांबाज, निडर एवं साहसी नेता इंदिरा को भला यह कैसे सहन होता, इसलिए जैसे ही उन्हें खबर मिली कि सिख अलगाववादियों ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर जैसी पाक जगह में भी हथियारों का विशाल जखीरा इकट्ठा किया है तो उन्हें देश की एकता और अखंडता कायम रखने तथा अलगाववादियों के मंसूबों पर पानी फेरने के लिए इस पवित्र धर्मस्थल के भीतर न चाहते हुए भी ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ के तहत पुलिस भेजने का सख्त निर्णय लेना पड़ा। हालांकि उस वक्त स्वर्ण मंदिर के भीतर पुलिस बल भेजने के उनके फैसले की बहुत आलोचना हुई किन्तु जब स्वर्ण मंदिर से हथियारों का बहुत बड़ा जखीरा बरामद हुआ और धार्मिक स्थल की आड़ में चल रही इस राष्ट्र विरोधी साजिश का भंडाफोड़ हुआ तो उन्हीं लोगों ने इंदिरा जी की सराहना की। उसके बाद इंदिरा ने जिस दिलेरी और दृढ़ता के साथ अलगाववादियों को रौंदा, वह एक मिसाल बन गया लेकिन अलगाववादियों के विरूद्ध चलाए गए उनके इसी ऑपरेशन की वजह से ही वह उनकी हिट लिस्ट में सबसे ऊपर आ गई और उन्होंने हर हाल में उनकी हत्या कर उन्हें अपने मार्ग से हटाने की ठान ली।
खुद इंदिरा जी को अपनी मौत का पहले ही आभास हो गया था लेकिन फिर भी वह अपने नेक इरादों से टस से मस न हुई और अलगाववादियों के खिलाफ अपना अभियान पहले से भी तेज कर दिया। 30 अक्तूबर 1984 को भुवनेश्वर की एक विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए इंदिरा ने अपनी हत्या का पूर्वाभास होने का स्पष्ट संकेत देते हुए कहा था, ‘‘देश की सेवा करते हुए यदि मेरी जान भी चली जाए तो मुझे गर्व होगा। मुझे भरोसा है कि मेरे खून की एक-एक बूंद देश के विकास में योगदान देगी और देश को मजबूत एवं गतिशील बनाएगी।’’
इंदिरा जी के इस भाषण के चंद घंटों बाद ही अर्थात् अगले दिन 31 अक्तूबर 1984 को सुबह करीब सवा नौ बजे उनके दो निजी अंगरक्षकों ने ही उन्हें उस वक्त गोलियों से छलनी कर दिया, जब वह अपने आवास से निकलकर विदेशी मीडिया को इंटरव्यू देने जा रही थी। इस हत्याकांड से जहां पूरे देश में शोक की लहर छा गई, वहीं दूसरी ओर इंदिरा जी का शहीदी रक्त रंग लाया और इस नृशंस हत्याकांड के बाद सिख समुदाय की ओर से सिख अलगाववादियों को मदद मिलनी बंद हो गई और इंदिरा जी की शहादत के साथ ही खालिस्तान की मांग भी गहरे दफन हो गई। इंदिरा जी अक्सर कहा करती थी कि उन कायरों और बुजदिलों पर मातम करो, जो दुनिया के जुल्मों से घबराकर इस तरह आंखें बंद कर लेते हैं, जैसे कि कुछ हुआ ही न हो।

ज़ख्म भरने से पहले ही खुरच रहे हैं, जी20 देश कुछ ऐसे निवेश कर रहे हैं!

कोविड से पहले जहाँ दुनिया भर में पर्यावरण अनुकूल नीतिगत फैसलों के नतीजे दिखना शुरू ही हुए थे, वहीँ कोविड की आर्थिक मार से उबरने के नाम पर दुनिया की कुछ चुनिन्दा अर्थव्‍यवस्‍थाएं अब जीवाश्‍म ईंधन से जुड़े उद्योगों पर अच्छा ख़ासा निवेश कर रही हैं। इससे न सिर्फ़ पिछले फैसलों के नतीजों पर पानी फिर रहा है, बल्कि अगले दस सालों में रिन्यूएबिल ऊर्जा अपनाने के रास्ते पर ख़ासी रुकावटें भी पैदा होंगी।

कोविड-19 महामारी के कारण हुए आर्थिक नुकसान की भरपाई के लिये जी20 देशों द्वारा इकोनोमिक रिकवरी या आर्थिक पुनरुत्थान के नाम पर जम कर कोयले, तेल और गैस से सम्‍बन्धित परियोजनाओं में भारी निवेश किये जा रहे हैं और इससे पर्यावरण से, कोविड-पूर्व, मिलने वाले सकारात्‍मक रुझानों पर अब खतरा मंडराता नज़र आ रहा है। ये चुनिन्दा अर्थव्‍यवस्‍थाएं कोविड-19 रिकवरी पैकेज का एक बड़ा हिस्‍सा जीवाश्‍म ईंधन से जुड़े उद्योगों में खर्च कर रही हैं, जिससे अगले 10 सालों में हरित ऊर्जा को सौ फ़ीसद अपनाने में अच्छी ख़ासी रुकावटें पैदा होगी। ऐसा कहना है जी20 देशों के 14 थिंक टैंक के सालाना समझौते के तहत प्रकाशित 2020 क्‍लाइमेट ट्रांसपेरेंसी रिपोर्ट का।  

इस रिपोर्ट में तमाम महत्‍वपूर्ण निष्‍कर्ष निकाले गये हैं और अगर बात फ़िलहाल भारत की ही करें तो कोविड-19 महामारी ने भारत की अर्थव्यवस्था को एक प्रकार की आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों से अवगत कराया। मई 2020 में, प्रधान मंत्री मोदी की USD 266bn कोविड19 – राहत पैकेज भारत की वार्षिक GDP का लगभग 10% था, लेकिन इसमें जलवायु को प्रभावित करने वाले कोई पर्याप्त निवेश नहीं थे। अब आगे दिए जाने वाला स्टिमुल्स का पुनर्निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, बिजली क्षेत्र, परिवहन और शहरी नियोजन में एनर्जी ट्रांजीशन को तेज़ी देना। इसके बिना, लॉकडाउन से उत्सर्जन में गिरावट की संभावना ग्रीन रिकवरी के बिना फिर से बढ़ेगी।

भारत का प्रति कैपिटा ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन, G20 के औसत से काफी नीचे है। पर भारत के उत्सर्जन में पिछले एक दशक में तेजी से वृद्धि हुई है और इसके और ज़्यादा तेज़ी से बढ़ने का अनुमान है।

भारत विभिन्न नीतियों के माध्यम से कोयला पर टैक्स और सब्सिडी दोनों देता है। भारत विभिन्न राजकोषीय नीतियों के माध्यम से कोयला टैक्स और सब्सिडी दोनों देता है। कोयला को दी जाने वाली  सब्सिडी, उसकी जगह  रिन्यूएबिल्स को देने से लागत बचत हो सकती है, और हवा की गुणवत्ता में सुधार जैसे महत्वपूर्ण सह-लाभ भी होंगे।उसके पास वर्तमान में कोयले को चरणबद्ध रोप से ख़त्म  करने की कोई योजना नहीं है। भारत को कोल फेज-आउट के लिए एक रोडमैप विकसित करने की सख्त ज़रूरत है। हलांकि ऐसा करने से कोयला खनन में लगे मजदूरों और समुदायों के साथ साथ थर्मल पॉवर में  कम कर रहे लोगों की नौकरियों पर असर पड़ेगा और इस बात को ध्यान में रख कर बदलाव करना होगा ।

भारत का परिवहन क्षेत्र वर्तमान में अपनी ऊर्जा संबंधित C02 उत्सर्जन के 14% के लिए जिम्मेदार, एक तेजी से बढ़ता हुआ क्षेत्र है जिसमे  वाहन स्वामित्व तेज़ी से बढ़ रहा है, और सरकार को EVs की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए मजबूत कार्रवाई करने और 2030 तक 30% इलेक्ट्रिक वाहनों के अपने लक्ष्य को पूरा करने का अवसर प्रदान करता है।

हालाँकि वैश्विक 1.5 ° C IPCC परिदृश्यों के साथ संगत होने और अपनी सीमा के अंदर के लिए भारत को 2030 तक उत्सर्जन में वृद्धि को 4.597 MtCO2e( मिलियन टन कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन) से कम करने और उसे  2050 तक 3.389 MtCO2e की सीमा में लाने की ज़रूरत है। भारत ने अपना  2030 NDC ( राष्ट्रीय स्तर पर स्व-निर्धारित कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने का लक्ष्य) केवल 6,034 MtCO2e और 6,203 MtCO2e के बीच अपने उत्सर्जन को सीमित करना रखा है ।

भारत एक वैश्विक नेता बन सकता है, अगर वह नए कोयले से चलने वाली बिजली बनाने की योजनाओं को छोड़ दे और 2040 तक बिजली के लिए कोयले के उपयोग को चरणबद्ध कर देता है। यह आंकड़े भूमि के उपयोग के उत्सर्जन को छोड़कर पूर्व-कोविड-19 अनुमानों पर आधारित हैं।

अपनी प्रतिक्रिया देते हुए क्‍लाइमेट एनालीटिक्‍स के डॉक्‍टर किम कोत्‍जी ने कहा “देशों की प्रोफाइल ही यह बताने के लिये काफी है कि उन्‍होंने वर्ष 2019 में जलवायु को बचाने के लिये क्‍या किया और क्‍या नहीं किया। अब सरकारों को अपनी नीतियों, निवेशों और भरपाई के प्रयासों को उत्‍सर्जन सम्‍बन्‍धी अपने दीर्घकालिक लक्ष्‍यों के अनुरूप ढालना ही होगा। यह रिपोर्ट जी20 देशों के नेताओं को अपने यहां विभिन्‍न क्षेत्रों को कार्बनमुक्‍त करने के लिये प्रेरणा तथा प्रोत्‍साहन देने के सिलसिले में व्‍यापक नजरिया उपलब्‍ध कराती है। इस रिपोर्ट में जलवायु अनुकूलन, प्रदूषणकारी तत्‍वों के उत्‍सर्जन में कमी और वित्‍तपोषण के करीब 100 पैमानों पर जी20 देशों के प्रदर्शन का विश्‍लेषण किया गया है। क्‍लाइमेट ट्रांसपेरेंसी द्वारा की गयी छठी सालाना समीक्षा में कोविड-19 संकट को लेकर जी20 देशों द्वारा दी गयी प्रतिक्रिया और वर्ष 2020 के लिये उत्‍सर्जन सम्‍बन्‍धी ताजा डेटा और अनुमानों को समर्पित एक अतिरिक्‍त अध्‍याय भी शामिल है। पूरी दुनिया में ग्रीनहाउस गैसों के कुल उत्‍सर्जन में जी20 देशों की हिस्‍सेदारी 75 प्रतिशत है।

वर्ष 2020 के संस्‍करण में जलवायु संरक्षण के मामले में जी20 देशों के प्रदर्शन का आकलन करने के साथ-साथ कोविड-19 संकट के प्रभावों और उन्‍हें लेकर सरकारों द्वारा उठाये गये कदमों के विश्‍लेषण को भी शामिल किया गया है। वर्ष 2019 में ऊर्जा सम्‍बन्‍धी उत्‍सर्जन में वृद्धि के दीर्घकालिक रुख में उल्‍लेखनीय कमी आने के साथ-साथ जी20 देशों में अक्षय ऊर्जा का एक रफ्तार से विकास भी हुआ है। मगर, अनुसंधानकर्ताओं ने आगाह किया है कि सरकारों द्वारा जीवाश्‍म ईंधन सम्‍बन्‍धी परियोजनाओं को दिया जा रहा बिना शर्त समर्थन और महामारी के कारण हुए नुकसान की भरपाई के उनके मौजूदा प्रयासों को देखते हुए कोविड-पूर्व के सकारात्‍मक रुख को नुकसान का खतरा पैदा हो रहा है।

वहीँ ओवरसीज डेवलपमेंट इंस्‍टीट्यूट की डॉक्‍टर शार्लीन वॉटसन कहती हैं, ‘‘जी20 देशों के कम से कम 19 देशों ने अपने घरेलू तेल, कोयला तथा/अथवा गैस क्षेत्रों को वित्‍तीय सहयोग देने का फैसला किया है। इसके अलावा 14 देशों ने जलवायु संरक्षण सम्‍बन्‍धी शर्तें लगाये बगैर अपनी राष्‍ट्रीय विमानन कम्‍पनियों को वित्‍तीय मदद देने का निर्णय लिया है। सिर्फ 4 जी20 देशों ने ही जीवाश्‍म ईंधन से जुड़ी परियोजनाओं या प्रदूषण फैलाने वाले अन्‍य उद्योगों के मुकाबले ग्रीन सेक्‍टरों को ज्‍यादा धन दिया है। रिकवरी पैकेज या तो जलवायु संकट का समाधान करते हैं, या फिर हालात को और भी खराब कर सकते हैं। जी20 देशों के कुछ सदस्‍य, जैसे कि यूरोपीय यूनियन, फ्रांस तथा जर्मनी जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों से खुद को बचाते हुए अधिक सतत अर्थव्‍यवस्‍था का निर्माण कर अच्‍छा उदाहरण पेश कर रहे हैं। वहीं, अन्‍य देश जीवाश्‍म ईंधन को अत्‍यधिक समर्थन करके हाल में बने अच्‍छे माहौल को खराब करने का खतरा पैदा कर रहे हैं।”

इस रिपोर्ट पर इनीशिटिवा क्‍लाइमैटिका द मेक्सिको के जॉर्ज विलारियाल ने कहा, ‘‘महामारी से पहले ऊर्जा से संबंधित कुछ क्षेत्रों में जलवायु संरक्षण सम्‍बन्‍धी कदमों के परिणाम सामने आ रहे थे और संकट ने जी20 के ज्‍यादातर देशों में उन रुझानों को एक-दूसरे से जोड़ा है, लेकिन अगर जलवायु संरक्षण की दिशा में और आगे कदम नहीं बढ़ाये गये तो वे सकारात्‍मक प्रभाव महज क्षणिक साबित होंगे और वातावरण में सीओ2 की मात्रा में बढ़ोत्‍तरी का सिलसिला जारी रहेगा। आने वाले महीनों में राजनीतिक पसंद से यह तय होगा कि जी20 देश उत्‍सर्जन के ग्राफ को सतत रूप से झुकाने में कामयाब हो पाएंगे या नहीं।”

हालांकि चीन, दक्षिण अफ्रीका, जापान और दक्षिण कोरिया इस सदी के मध्‍य तक कार्बन से मुक्ति पाने की दौड़ में हाल ही में शामिल हुए हैं। यह रिपोर्ट कहती है कि सर्वाधिक प्रदूषण फैलाने वाले सबसे बड़े देशों में शामिल मुल्‍कों में जलवायु सम्‍बन्‍धी मुश्किल लक्ष्‍यों को हासिल करने के लिये जरूरी रफ्तार बन रही है। हालांकि अल्‍पकालीन नीतियां और निवेश अब भी दीर्घकालिक योजनाओं के अनुरूप नहीं हैं।

यह तब है जब वैश्विक तापमान में वृद्धि का आंकड़ा 1.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच रहा है और परिणामस्‍वरूप तपिश, जंगलों की आग और बाढ़ जैसी जलवायु सम्‍बन्‍धी चरम स्थितियों के कारण जी20 देशों में हालात अपेक्षाकृत बदतर हो जाएंगे। वैश्विक तापमान में डेढ़ डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्‍तरी की स्थिति में जी20 देशों में से ऑस्‍ट्रेलिया, ब्राजील, फ्रांस, इटली, मेक्सिको, तुर्की, भारत, सऊदी अरब और दक्षिण अफ्रीका पर वैश्विक अनुमानों के मुकाबले कहीं ज्‍यादा बुरा असर पड़ने का खतरा है। विश्लेषण में इस महत्वपूर्ण अंतर की भी पहचान की गयी है कि कैसे सरकारें कार्बन से मुक्ति पाने की चुनौती पर प्रतिक्रिया दे रही हैं।

उदाहरण के तौर पर जापान, फ्रांस, ब्रिटेन और कनाडा जीवाश्‍म ईंधन से चलने वाली कारों को चरणबद्ध ढंग से इस्‍तेमाल से बाहर करने की तिथियां तय कर चुके हैं। वहीं, ट्रम्‍प प्रशासन ने वाहनों से निकलने वाले प्रदूषण को कम करने सम्‍बन्‍धी नियम वापस ले लिये। जी20 में शामिल 18 देशों ने अपनी कार्बन प्राइसिंग योजनाओं को या तो लागू कर दिया है, या फिर ऐसा करने की प्रक्रिया में हैं, जबकि भारत और ऑस्‍ट्रेलिया ने ऐसी कोई योजना ही नहीं बनायी है। इसके अलावा कनाडा, फ्रांस और ब्रिटेन ने जहां कोयले के लिये सार्वजनिक वित्‍तपोषण पर जहां पूरी तरह पाबंदी लगा दी है, वहीं चीन, भारत, इंडोनेशिया, रूस तथा दक्षिण अफ्रीका ने ऐसे कोई प्रतिबंध नहीं लगाये हैं।

हम्‍बोल्‍ट–वियाड्रिना गवर्नेंस प्‍लेटफॉर्म की कैटरीना गोडिन्‍यो ने कहा “हमें आगामी जी20 समिट और अगले साल होने वाली यूएन क्‍लाइमेट कांफ्रेंस में दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍थाओं वाले देशों और सबसे ज्‍यादा प्रदूषण फैलाने वाले मुल्‍कों की जलवायु संरक्षण के प्रति बढ़ी हुई प्रतिबद्धताओं और नेतृत्‍व की फौरन जरूरत है। अमेरिका के राष्‍ट्रपति चुनाव के नतीजों से जलवायु को लेकर अंतरराष्‍ट्रीय राजनीति में कुछ उम्‍मीद जागी है, मगर जी20 में शामिल सभी देशों को भी अपने हिस्‍से की जिम्‍मेदारी निभानी होगी।”

प्रकृति व् पर्यावरण

जब पल पल पेड़ कटते जायेंगे ,
तब सब जंगल मैदान बन जायेंगे |
मानव तब बार बार पछतायेगा ,
जब सारे वे मरुस्थल बन जायेगे ||

जब पौधे सिमट गए हो गमलो में ,
प्रकृति सिमट गयी हो बंगलो में |
जब उजाड़ जायेगे घौसले पेड़ो से,
तब बन्द हो जायगे पक्षी पिंजरों में ||

जब गांव बस रहे हो नगरों में,
प्रदूषण फ़ैल रह हो नगरों में |
जहरीली हवा होगी चारो तरफ,
दम घुट जायेगा बंद कमरों में ||

जब वाहन रेंग रहे हो सड़को पर,
वे धुआँ उडा रहे हो सड़को पर |
तब मानव सांस कैसे ले पायेगा ?
वह दम तोड़ेगा अपना सड़को पर ||

तब प्रकृति अपना रौद्र रूप दिखायेगी,
मानव से हर तरह से बदले चुकायेगी |
वह अपने नए रूप में जल्द आयेगी ,
कोरोना जैसी नई महामारी लायेगी ||

कोरोना, पराली एवं प्रदूषण केे दमघोटू माहौल में आतिशबाजी

-ललित गर्ग-

दीपावली पर कोरोना महामारी की अनेक बंदिशों एवं हिदायतों के बावजूद जिन्दगी की चकाचैंध ने हमारे लगातार असभ्य होने को ही उजागर किया। यह असभ्यता ही है कि अदालती फैसलों एवं सरकारी अपीलों के बावजूद पटाखों पर नियंत्रण की बात खोखली साबित हुई। पराली एवं वायु प्रदूषण से दमघोटू माहौल एवं कोरोना के लगातार फैलते जाने के संकट को ताक पर रखते हुए लोगों ने घोर लापरवाही बरतते हुए न केवल स्वयं बल्कि दूसरों के जीवन को संकट में डाला। जनता ने आतिशबाजी पर नियंत्रण के कानूनी फरमानों का मखौल उड़ाते हुए रात भर पटाखे छुड़ाए। यह कैसी शासन-व्यवस्था है? यह कैसा अदालतों की अवमानना का मामला है? यह सभ्यता की निचली सीढ़ी है, जहां तनाव-ठहराव की स्थितियों के बीच हर व्यक्ति अपने आमोद-प्रमोद के लिये अपनी जड़ों एवं दायित्वों से दूर होता जा रहा है। यह कैसा समाज है जहां व्यक्ति के लिए पर्यावरण, अपना स्वास्थ्य या दूसरों की सुविधा-असुविधा का कोई अर्थ नहीं है। अर्थ है, तो सिर्फ अपने मनोरंजन का। जीवन-शैली ऐसी बन गयी है कि आदमी जीने के लिये सब कुछ करने लगा पर खुद जीने का अर्थ ही भूल गया, यही कारण है जिन्दगी विषमताओं और विसंगतियों से घिरी होकर कहीं से रोशनी की उम्मीद दिखाई नहीं देती। क्यों आदमी मृत्यु से नहीं डर रहा है? क्यों भयभीत नहीं है? लोगों में पटाखे फोड़ने के लिए एक खास तरह का हिंस्र उत्साह, अराजकता एवं अनुशासनहीनता देखी गयी।
आज कोरोना महामारी के संकटकालीन समय में देश दुख, दर्द और संवेदनहीनता के जटिल दौर से रूबरू है, समस्याएं नये-नये मुखौटे ओढ़कर डराती है, भयभीत करती है। कोरोना ने समाज में बहुत कुछ बदला है, मूल्य, विचार, जीवन-शैली, वास्तुशिल्प सब में परिवर्तन है। आदमी ने जमीं को इतनी ऊंची दीवारों से घेर कर तंगदील बना दिया कि धूप और प्रकाश तो क्या, जीवन-हवा को भी भीतर आने के लिये रास्ते ढूंढ़ने पड़ते हैं। सुविधावाद हावी है तो कृत्रिम साधन नियति बन गये हैं। चारों तरफ भय एवं डर का माहौल है। यह भय केवल कोरोना से ही नहीं, भ्रष्टाचारियों से, अपराध को मंडित करने वालों से, सत्ता का दुरुपयोग करने वालों से एवं अपने दायित्व एवं जिम्मेदारी से मुंह फैरने वाले अधिकारियों से भी है। हमें यह स्वीकार करना होगा कि हम अब भी ऐसे मुकाम पर हैं, जहां सड़क पर बाएं चलने या सार्वजनिक जगहों पर न थूकने जैसे कर्तव्यों की याद दिलाने के लिए भी पुलिस की जरूरत पड़ती है। जो पुलिस अपने चरित्र पर अनेक दाग ओढ़े हंै, भला कैसे अपने दायित्वों का ईमानदारी एवं जिम्मेदारी से निर्वाह करेंगी। पुलिस का डंडा या सख्त कानून कभी भी इंसान को सभ्य नहीं बना सकते। अंदर से इच्छाशक्ति न हो तो कानूनों के पालन में इस दिवाली जैसी स्थिति होती है। सारे कानून-कायदों, अदालती या सरकारी आदेशों और पुलिस की कवायद के बावजूद पटाखे छूटते रहे। वैसे भी, भारत दुनिया के चुनिंदा देशों में है, जहां शायद सबसे अधिक कानून होंगे, लेकिन हम कितना कानून-पालन करने वाले समाज हैं, यह किसी से छिपा नहीं है।
नरसी मेहता रचित भजन ‘‘वैष्णव जन तो तेने कहिए, जे पीर पराई जाने रे’’ गांधीजी के जीवन का सूत्र बन गया था, लेकिन यह आज के आम लोगों का जीवनसूत्र क्यों नहीं बनता? क्यों नहीं आमजन पराये दर्द को, पराये दुःख को  एवं पराये जीवन को अपना मानते? क्यों नहीं जन-जन की वेदना और संवेदनाओं से अपने तार जोड़ते? बर्फ की शिला खुद तो पिघल जाती है पर नदी के प्रवाह को रोक देती है, बाढ़ और विनाश का कारण बन जाती है। देश की स्वास्थ्य-रक्षा में आज ऐसे ही बाधक तत्व उपस्थित हैं, जो जनजीवन में आतंक एवं संशय पैदा कर उसे मौत की अंधेरी राहों मेें, निराशा और भय की लम्बी काली रात के साये में धकेल रहे हैं। कोई भी व्यक्ति, प्रसंग, अवसर अगर राष्ट्र को एक दिन के लिए ही आशावान बना देते हैं तो वह महत्वपूर्ण होते हैं। पर यहां तो चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा व्याप्त है। हमारा राष्ट्र नैतिक, आर्थिक, राजनैतिक और सामाजिक एवं व्यक्तिगत सभी क्षेत्रों में मनोबल के दिवालिएपन के कगार पर खड़ा है। और हमारा नेतृत्व गौरवशाली परम्परा, विकास और हर कोरोना खतरों से मुकाबला करने के लिए तैयार है, का नारा देकर अपनी नेकनीयत का बखान करते रहते हैं। पर उनकी नेकनीयती की वास्तविकता किसी से भी छिपी नहीं है, देश की राजधानी और उसके आसपास जिस तरह पटाखों पर लगे नियंत्रण की छीछालेदर हुई, उससे यह सहज ही जाहिर हो गया है। बात पुलिस की अक्षमता की नहीं है। उन कारणों की शिनाख्त करने की है, जिनके चलते एक आम नागरिक पर्यावरण या उसके अपने स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर मंडरा रहे खतरों के बावजूद लगातार उदासीन एवं लापरवाह क्यों होता जा रहा है।
कैसी विडम्बना है हमारे समाज की। किसी अनियमितता का पर्दाफाश करना पूर्वाग्रह माना जाता है। सत्य बोलना अहम् पालने की श्रेणी में आता है। साफगोही अव्यावहारिक है। भ्रष्टाचार को प्रश्रय नहीं देना समय को नहीं पहचानना है। आखिर नयी गढ़ी जा रही ये परिभाषाएं समाज और राष्ट्र को किन वीभत्स दिशाओं में धकेल रही है? विकासवाद की तेज आंधी के बावजूद हमारा देश, हमारा समाज तरह-तरह के बंधनों में आज भी जकड़ा हुआ है। उसमें न आत्मबल है, न नैतिक बल। सुधार की, नैतिकता की बात कोई सुनता नहीं है। दूर-दूर तक कहीं रोशनी नहीं दिख रही है। इन घनी अंधेरी रातों में हम कैसे विश्व गुरु बन पायेंगे?
नदी में गिरी बर्फ की शिला को गलना है, ठीक उसी प्रकार उन बाधक एवं असंवेदनहीन तत्वों को भी एक न एक दिन हटना है। यह स्वीकृत सत्य है कि जब कल नहीं रहा तो आज भी नहीं रहेगा। उजाला नहीं रहा तो अंधेरा भी नहीं रहेगा। जे पीर पराई जाने रे- भजन के बोल आज भी अनेक लोगों के हृदय को छूते है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हृदय को भी छू गया है तभी उन्होंने सबका साथ-सबका विकास एक विशिष्ट राष्ट्र कल्याणकारी उपक्रम जन-जन की पीड़ा को हरने के लिए प्रारंभ किया। राष्ट्र आज जिस मुकाम पर पहुंचा है, वहां खड़े होकर यह स्पष्ट महसूस किया जा सकता है कि मोदी नीतियों का हार्द ही है परायी पीर को जानना। पराया दुख, पराया दर्द समझना। परायी पीर को समझने का ही अर्थ है उस पीड़ा को, उस तकलीफ को मिटाने का जी-जान से प्रयत्न करना। इसी से एक सभ्य व्यवस्था इंसानों के बीच बनेगी जिसमें पुलिस सड़कों से पूरी तरह से अनुपस्थित हो जाएंगी और सारी नागरिक गतिविधियां बिना उसके हस्तक्षेप के चलती रहेंगी। दरअसल, एक आदर्श राज्य की अवधारणा में पुलिस, अदालतें और जेल जैसी संस्थाओं एवं स्थितियों की जरूरत न होना ही हमारे सभ्य होने का प्रमाण है। इन दुर्लभ श्रेष्ठताओं को पाने के लिये कुछेक घंटों का अभ्यास पर्याप्त नहीं होता। उसके लिये सतत पुरुषार्थ एवं संकल्प की जरूरत है।  

‘लव जिहाद’ पर ‘शिवराज’ की ‘सर्जिकल स्ट्राइक’

                        प्रभुनाथ शुक्ल 

मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार लव जिहाद पर राज्यसभा में अध्यादेश लाने का फैसला किया है। सरकार का यह उचित समय पर सही फैसला है। धार्मिकता की आड़ में इस घिनौने अपराध पर लगाम लगनी चाहिए। अगर बिल पास करवाने में मामा की सरकार सफल रहीं तो मध्यप्रदेश लव जिहाद पर कानून बनाने वाला देश का पहला राज्य बन जाएगा। लव जिहाद के खिलाफ सरकार की यह पहली सर्जिकल स्ट्राइक होगी। इसके पूर्व कर्नाटक, हरियाणा और यूपी इस पर कानून बनाने का फैसला किया है। 

निश्चित रुप से लव जिहाद एक घृणित धार्मिक साजिश है। कोई भी धर्म संस्कृति इसकी मान्यता नहीँ देता है। लेकिन हाल के सालों में लव जिहाद सियासी मुद्दा बन गया है। यह हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच नफरत और घृणा के साथ सामुदायिक तनाव का कारण भी बन रहा है। तीन साल पूर्व भारत में ऐसी शब्दावली विकसित नहीँ थीं, लेकिन मीडिया और सियासी वजह से लव जिहाद की शब्दावली हर जुबान पर चढ़ गई। हरियाणा के वल्लभगढ़ में एक हिंदू लड़की को मुस्लिम युवक की तरफ़ से गोली मार कर हत्या करने की घटना ने देश को हिलाकर रख दिया। इस घटना ने लव जिहाद की बहस को नया रुप दिया है। 

मध्यप्रदेश सरकार लव जिहाद पर अध्यादेश लाकर राज्य में सियासी बढ़त लेना चाहती है। वह हिंदू समाज के बड़े वर्ग को ख़ुश कर बड़े वोटबैंक को साधना चाहती है। हालाँकि  लव जिहाद की घटनाएँ इसके पूर्व भी घटित होती रहीं हैं, लेकिन तब यह शब्दावली नहीँ थीं,  लेकिन इस परिभाषा ने इसे अत्यधिक ज्वलंत बना दिया है। लव जिहाद पर कई घटनाएँ बेहद चौंकाने वाली हैं। 

हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच लव जिहाद नफरत का कारण भी बन रहा है। बल्लभगढ़ की घटना ने इसे नया रुप दिया है। सभ्य समाज में लव जिहाद का कोई स्थान नहीँ है। लव यानी प्रेम ईश्वर का स्वरूप है। प्रेम शास्वत है, प्रेम में त्याग और समर्पण होता है वहां जिहाद का क्या मतलब। जहाँ मोहब्बत है वहां जिहाद हो ही नहीँ सकता। लेकिन जिहाद के लिए मोहब्बत का ढोंग रचना सबसे बड़ी धार्मिक साजिश है। लव जिहाद हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्म और संस्कृति को बदनाम करने की आतंकी साजिश है। कुछ गंदी सोच के लोग दोनों धर्म और संस्कृति को बदनाम कर समाज में नफरत और द्वेष फैलाना चाहते हैं। 

भारत में सभी धर्म और संस्कृति के लोग रहते हैं। यह सनातन संस्कृति और संस्कार का देश है। सनातन ने कभी किसी दूसरे धर्म को भारत में फलने फूलने से नहीँ रोका। सभी धर्मों के लोग अपनी धर्मिक आजादी के साथ जीते हैं। एक दूसरे की धर्म, संस्कार और परम्परा में विश्वास रखते हैं। लेकिन इसे अब राजनीतिक मुद्दा बना दिया गया है। लव जिहाद का मामला किसी भी धर्म-संस्कृति से सम्बन्धित क्यों न हो, लेकिन यह एक महिला की जिंदगी से जुड़ा सवाल है। 

भारतीय समाज में महिलाओं का सम्मान सबसे प्रथम वरीयता है। हिंदू धर्म में नारी को बड़ा सम्मान दिया जाता है। हिंदू धर्म में महिलाओं को गृहणी यानी लक्ष्मी और देवि माना गया है। हमारे वेदों में कहाँ गया है कि जहाँ नारियों की पूजा यानी सम्मान होता है वहां देवता बास करते हैं। भारतीय नारी त्याग और समर्पण की प्रतिमूर्ति है। इस तरह की नारियों को भोग्या समझना सबसे बड़ी नासमझी है। किसी भी धर्म के लिए कठमुल्लापन घातक है। हमेशा खुली संस्कृति का सम्मान करना चाहिए। सभी धर्मों में नारियों का बड़ा सम्मान है, लेकिन कुछ नासमझ और बहके युवक आतंकी साजिश में फँस कर अपना धार्मिक अधिकार मानते हैं। यह उनकी सबसे बड़ी भूल है। 

भारत में लव जिहाद की शुरुवात कुछ साल पूर्व केरल से हुई थी। जहाँ एक हिंदू लड़की और एक मुस्लिम लड़के के बीच प्रेम विवाह के बाद साजिश का मामला सामने आया था। यह घटना इतनी चर्चित हुई कि इसकी जाँच एनआईए से करानी पड़ी। लव जिहाद दो शब्दों से मिलकर बना है। अंग्रेजी भाषा का शब्द लव यानी प्यार और अरबी भाषा का शब्द जिहाद है। प्रेम के जाल में फंसाकर लड़की का धर्म परिवर्तन करवा देना ही लव जेहाद है। निश्चित रुप से यह एक समाजिक बुराई है। वास्तव में इस पर सख्त क़दम उठाने की ज़रूरत है।

मध्यप्रदेश सरकार इस पर कठोर कानून बनाने का फैसला किया है। जिसमें पाँच साल का कारावास और गैरजमानती धाराओं में मुक़दमें दर्ज किए जाएंगे। लव जिहाद में शामिल सह आरोपी को भी मुख्य आरोपी की तरह कानूनी धाराओं में निरुद्ध किया जाएगा। हालाँकि सरकार ने मोहब्बत करने वालों का पूरा ख़याल रखा है।अगर किसी गैर धर्म की लड़की से कोई शादी करना चाहता है तो उसकी भावनाओं का भी सरकार ने सम्मान किया है। शादी के लिए अपनी इच्छा से धर्म परिवर्तन की खुली छूट दी गई है, लेकिन इसके लिए कमसे कम एक माह पूर्व जिलाधिकारी को आवेदन करना होगा। इसलिए इस पर अधिक राजनीति नहीँ होनी चाहिए। 

सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है कि लव जिहाद की स्थितियां हैं। भोली- भाली लड़कियों को फँसा कर धर्म परिवर्तन कर लव जिहाद की हालात पैदा किए जाते हैं। केरल हाईकोर्ट ने  2016 में लव जिहाद की शिकार हुई एक हिंदू लड़की की शादी रद्द कर दिया था। लव जिहाद वास्तव में भारत के खिलाफ एक साजिश है। इस कानून बनना राज्य सरकारों का एक उचित फैसला है। लेकिन इस खुले मन से बहस होनी चाहिए। इस एक बड़ी बहस होनी चाहिए। लव जिहाद भारतीय समाज के लिए कलंक है।

 लव जिहाद पर किसी तरह की राजनीति नहीँ होनी चाहिए। क्योंकि कानून किसी भी समस्या का समाधान नहीँ है। कानून की आड़ में किसी धर्म के लोगों का उत्पीड़न नहीँ होना चाहिए। क्योंकि तरह देश में कई कानून बने हैं जिनका खुला दुरपयोग हो रहा है। दलित और दहेज उत्पीड़न कानून इसके सफल उदाहरण हैं। क्योंकि इस तरह के कानूनों का समाजिक और सियासी दुरपयोग होने का भी भय रहता है और होता भी है। फिलहाल लव जिहाद की बढ़ती घटनाएँ सामजिक चिंता का विषय हैं। मध्यप्रदेश सरकार का फैसला उचित है, लेकिन लव जिहाद पर कानूनी बनाने के पूर्व व्यापक बहस के बाद विपक्ष को भी विश्वास में लेना चाहिए। राजनीतिक बढ़त लेने की होड़ में ज़मीन हकीकत का भी ख़याल रखना होगा। 

ओबामा और राहुल

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के संस्मरण ‘ए प्रोमिज्ड लेंड’ नामक पुस्तक में भारत संस्मरण प्रकाशित हुए हैं। इस पुस्तक के पहले भाग में उन्होंने अपनी 2010 की पहली भारत-यात्रा का वर्णन किया है। उसके दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके पुत्र राहुल से हुई उनकी भेंट का भी विवरण है। उसे लेकर भारत के पक्ष-विपक्ष में काफी नोक-झोंक हो रही है।

यह नोक-झोंक उस वक्त हो रही है, जबकि कांग्रेस पार्टी बिहार, म.प्र., उ.प्र., गुजरात आदि प्रांतों में बुरी तरह से हार गई हैं। राहुल गांधी को पसंद करते हुए भी ओबामा ने उन्हें आत्मविश्वासरहित उथला-सा नौजवान बताया है। इसे लेकर राहुल पर आक्रमण करने की जरुरत क्या है ? यह तो राहुल पर बड़ी तात्कालिक, नरम और तटस्थ टिप्पणी है।

भारत के लोग यह कई बार बता चुके हैं कि वे राहुल के बारे में क्या सोचते हैं लेकिन कांग्रेसी लोग सार्वजनिक तौर पर या तो चुप रहते हैं या फिर राहुल के कसीदे काढ़ते हैं। यह उनकी मजबूरी है। ओबामा की इस टिप्पणी को लेकर उनकी आलोचना करना भी ठीक नहीं है, क्योंकि उन्हें जो ठीक लगा, सो उन्होंने लिख दिया। यदि वे कांग्रेस-विरोधी और मोदीभक्त होते तो क्या उसी प्रसंग में वे डा. मनमोहनसिंह और सोनिया गांधी की इतनी ज्यादा तारीफ करते ?

उनकी टिप्पणियों से यह अंदाज जरुर लगता है कि ओबामा खुले दिल के आदमी हैं। 1999 में वे जब शिकागो से सीनेटर थे, उनसे मेरी मुलाकात अचानक हो गई। मैं एक भारतीय मूल के मित्र से मिलने गया तो उन्होंने उनके पास बैठे एक अश्वेत व्यक्ति से मिलवाया था और वह सज्जन मेरे साथ 5-10 मिनिट बैठे रहे। कई वर्ष बाद 2008 में मुझे मेरे मित्र ने बताया कि वे बराक ओबामा ही थे, जो हिलैरी के खिलाफ राष्ट्रपति का चुनाव लड़ रहे हैं।

बराक ओबामा की सज्जनता के कई किस्से अमेरिका में मशहूर हैं। यह पूछा जा रहा है कि उन्होंने नरेंद्र मोदी के बारे में कुछ क्यों नहीं लिखा? हो सकता है कि वे अपनी पुस्तक के दूसरे खंड में लिखें और कुछ ऐसा लिख दें कि उसे लेकर कांग्रेसी लोग भाजपा पर टूट पड़ें। यदि डोनाल्ड ट्रंप आपबीती लिख मारें तो वह दुनिया की सबसे ज्यादा बिकने वाली किताब बन सकती है। ओबामा ने अपनी संस्मरणों में अन्य कई देशों के नेताओं पर भी टिप्पणी की है। इन टिप्पणियों के कारण उनकी किताब कई देशों में बहुत बिकेगी।

ओबामा की तुलना यदि हम अमेरिका के अन्य राष्ट्रपतियों- रिचर्ड निक्सन, रोनाल्ड रेगन, जाॅर् बुश, जिमी कार्टर आदि से करें और उनके गोपनीय दस्तावेज देखे तो हम दंग रह जाएंगे। उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्रियों के बारे में इतनी फूहड़ और आपत्तिजनक टिप्पणियां की हैं कि उनका उल्लेख करना भी उचित नहीं लगता।

यदि भारत के प्रधानमंत्री लोग भी ओबामा की तरह अपने संस्मरण लिखते तो उन पर जमकर बहस चल सकती थी लेकिन ज्यादातर प्रधानमंत्री अपने पद से हटने के बाद देवगौड़ा या मनमोहनसिंह की तरह ज्यादा जिये नहीं। हमारे कुछ पूर्व राष्ट्रपतियों ने जरुर अपने संस्मरण लिखे हें, जो कि पठनीय हैं लेकिन उनमें वह वजन नहीं है, जो किसी प्रधानमंत्री के संस्मरण में होता है।

लोंगेवाला में मोदी-सन्देश एक चेतावनी भी, सीख भी

-ः ललित गर्ग:-

राष्ट्र-जीवन को ऊंचाई देनी है, इसलिए गहराई भी जरूरी है। बुनियाद जितनी गहरी होगी, राष्ट्र उतना ही ऊंचा और मजबूत बनेगा। यूं तो राष्ट्रीयता एवं सुरक्षा मूल्यों की श्रेष्ठता से जुड़ा हमारे राष्ट्र का चरित्र स्वयं आदर्श है पर एक साथ बहुत-सी अच्छाइयों का अभ्यास कठिन साधना है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसी राष्ट्र-साधना में साधनारत हैं। वे राष्ट्र-विकास की इस यात्रा में शक्ति, मनोबल, आस्था एवं विश्वास के संकल्पों के साथ आगे बढ़ते हुए देश को सशक्त बना रहे हैं। हर वर्ष की भांति इस वर्ष की दीपावली पर वे राष्ट्र की सुरक्षा को सुनिश्चित करने वाले नायकों के बीच पहुंचे। दीपावली जैसलमेर में सेना और सीमा सुरक्षा बल के जवानों के साथ मनाई। प्रधानमंत्री ने लोंगेवाला में पडौसी देश चीन और पाकिस्तान को चेताया और कहा कि अगर भारत को आजमाया गया तो प्रचंड जवाब दिया जायेगा, भारत की ओर से रत्ती भर भी समझौता नहीं किया जायेगा। यह उद्बोधन दीपावली का प्रेरक एवं हौसल्लों की बुन्दगी को उजागर करने वाला उद्बोधन है, जिसने पडौसी देशों में खलबली मचा दी है।
प्रधानमंत्री का विश्वासभरा सन्देश एक चेतावनी भी है, सीख भी है और स्वयं की तैयारी का प्रकट स्वरूप है। इसी विश्वास में संपूर्ण रचनात्मक एवं राष्ट्र के सशक्तीकरण की शक्तियां उजागर हुई हैं। दुनिया में कोई भी शासक अपनी वैभवता एवं साधन-सुविधाओं के आधार पर बड़ा या छोटा नहीं होता बल्कि अपने विश्वास एवं चरित्र से बड़ा होता है। मोदी की महानता उनके चरित्र से बंधी है और उसी चरित्र में उनका विश्वास निहित है, बंद निर्माण के रास्तों को खोल देने का संकल्प है। मोदी औरों की बैसाखियों पर चलते नहीं, औरों की प्रशंसा पर फूलते नहीं, आलोचनाओं पर पैरों को थामते नहीं है। अपने अनूठे साहस एवं पवित्र उद्देश्यों के लिये ऊंची छलांगे भरते हैं। लोगेवाला में भी उन्होंने ऐसी ही एक छलांग भरते हुए पडौसी देशों के मनसूंबों को नेस्तनाबूंद किया है।
लोंगेवाला पोस्ट सीमा सुरक्षा बल के लिए रणनीतिक रूप से बहुत अहम है। भारत और पाकिस्तान  के बीच सीमाओं पर दनादन और एलओसी पर लद्दाख में भारत और चीन के मध्य तनातनी के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रण क्षेत्र में टैंक पर सवार होकर पाकिस्तान और चीन को दो टूक चेतावनी देते हुए कहा कि भारत की रणनीति साफ है, स्पष्ट है। आज का भारत समझने और समझाने की नीति पर विश्वास करता है लेकिन अगर हमें आजमाने की कोशिश होती है तो जवाब भी उतना ही प्रचंड मिलेगा। हम दुश्मन को घर में घुसकर मारते हैं। उन्होंने चीन का नाम लिए बिना उसकी विस्तारवादी सोच पर करारा प्रहार किया। प्रधानमंत्री के शब्दों में उनके मनोबल की शक्ति का परिचय हमेशा ही दिया है, लेकिन रण क्षेत्र में उनकी मौजूदगी के अर्थ गहरे हैं, साहसभरे हैं एवं भारत की बढ़ती शक्ति के पंखों की उड़ान है। भारत मोदी के नेतृत्व में सतत अभ्यास से पूर्णता तक पहुंचा है। राष्ट्र के सफर में अपने उद्देश्यों के प्रति मोदी के मन में अटूट विश्वास होना देश की सुरक्षा का सबसे बड़ा आश्वासन है। कहा जाता है-आदमी नहीं चलता, उसका विश्वास चलता है। आत्मविश्वास सभी गुणों को एक जगह बांध देता है यानी कि विश्वास की रोशनी में मोदी का संपूर्ण व्यक्तित्व और कर्तृत्व उजागर हो रहा है, जो नये भारत एवं सशक्त भारत का द्योतक है।
नये सपनों का भारत निर्मित करते हुए मोदी सेना को सशक्त भारत का आधार मानते हैं। सेना के बल पर ही राष्ट्र का स्वाभिमान जीवित है। दीपावली या अन्य त्यौहारों पर परिवार से दूर सेना के जवान मोर्चे पर तैनात रहते हैं। जो त्याग, तपस्या, उत्सर्ग, बलिदान जवान करते हैं, उससे देश में एक विश्वास पैदा होता है। प्रधानमंत्री हर वर्ष दीपावली सैनिकों के बीच मनाते हंै, यह एक अनूठी पहल है, वे सीमाओं एवं सैनिकों के संग दीपावली इसलिए मानते हैं ताकि उन्हें भरोसा दिलाया जा सके कि 130 करोड़ देशवासी उनके साथ मजबूती से खड़े हैं। उन्हें जवानों की अपराजेयता एवं साहस पर गर्व है। निश्चित ही प्रधानमंत्री की जवानों के बीच उपस्थित जवानों के मनोबल को बहुगुणित कर देती है और उनका जोश एवं राष्ट्र के लिये मर-मिटने का इरादा अधिक मजबूत हो जाता है। इन विलक्षण क्षणों में सैनिक नयी ऊर्जा से भर जाते हैं और युद्ध हो या प्राकृतिक आपदा, बर्फीली पहाड़ियों पर रहें या फिर तपती दुपहरी में रेगिस्तान में, जवानों में एक नया उत्साह जागता है। जवानों की आंखों में तेरते सशक्त भारत के सपने एवं भारतीय सशस्त्र सेनाओं को एक उभरते लोकतंत्र के एक शानदार संस्थान के रूप में विकसित होते देख हर भारतीय को गर्व होता है। सेना ऐसी संस्था है, जिसे सरकार ही नहीं बल्कि पूरे देश का अगाध विश्वास, प्रेम और स्नेह हासिल है।
भारत बदल रहा है, हौले-हौले नहीं, तेज रफ्तार के साथ ये परिवर्तन जारी है। बदलाव भी ऐसा है जिससे बेहतरी की, सैन्य ताकत की, विकास की, सशक्तिकरण की उम्मीद जागी है। परिवर्तन की ये बयार महसूस की जा सकती है, क्योंकि यह बदलाव ढंका-छुपा नहीं है। कोरोना महामारी के कहर के बावजूद गति पकड़ती अर्थ-व्यवस्था एवं विश्व स्तर पर कूटनीतिक रिश्तों के वितान तक परिवर्तन की छाप गहरे पड़ी है, इसका श्रेय मोदी के करिश्माई व्यक्तित्व, नीतियों एवं पारदर्शी शासन-व्यवस्था को जाता है। मोेदी की अलौकिक शासन व्यवस्था का ही परिणाम है कि सेना बहुत मजबूत हुई है। राफेल विमानों से लेकर हर आधुनिकतम शस्त्र सेना को मिले हैं। मिसाइलें बनाने में तो भारत अब स्वयं सक्षम हो चुका है। दुनिया समझने लगी है कि भारत अपने हितों की कीमत पर रत्ती भर भी समझौता करने वाला नहीं है। पुलवामा हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक, बालाकोट स्थित आतंकवादी कैम्प पर एयर अटैक किया। डोकलाम के बाद लद्दाख में भी चीन के सामने भारत डट कर खड़ा है।
सेना के शौर्य और मजबूती से ही भारत वैश्विक मंचों पर प्रखरता से अपनी बात कहने में सक्षम हुआ है। सेना ने स्वदेशी भावना का आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करते हुए सौ से ज्यादा हथियारों और साजो-सामान को विदेश से नहीं मंगवाने का फैसला किया है। प्रधानमंत्री हथियारों के मामले में आत्मनिर्भरता के प्रबल पक्षधर हैं। पूरा देश जानता है कि राष्ट्र के स्वाभिमान, राष्ट्र की अस्मिता, राष्ट्र की विरासत, राष्ट्र के गौरव पर हमला करने वालों को सेना मुंहतोड़ जवाब देगी। सेना में सरहदें बदल देने की क्षमता है, दुश्मनों को इरादों को ध्वस्त करने का मादा है। सैनिकों की चरण रज किसी मंदिर की विभूति से कम पवित्र नहीं। प्रधानमंत्री की पाकिस्तान और चीन को ललकार के साथ समूचे राष्ट्र में नए जोश का संचार हुआ है। एक सशक्त, अच्छी और सच्ची शासन व्यवस्था के लिये उसके पास उन रास्तों का ज्ञान होना बहुत जरूरी है जो उसे अपने लक्ष्य तक पहुंचाते हैं, सही ज्ञान ही सही दर्शन और सही आचरण दे सकता है।
सेना का विश्वास भारत की सबसे बड़ी ताकत है। विश्वास से भरा सेना का मन परिस्थिति के अनुकूल स्वयं ढलता नहीं बल्कि उन्हें अपने अनुसार ढाल लेता है। विश्वास के अभाव में सफलताएं संभव नहीं, क्योंकि लड़ाई में युद्ध होने से पहले ही हथियार डाल देने वाला सिपाही कभी विजयी नहीं बनता। कार्य प्रारंभ होने से पहले ही यदि मन संदेह, भय, आशंका से भर जाए तो यह बुझदिली है। लेकिन हमारा सौभाग्य है कि राष्ट्रनायक के रूप में मोदी एवं सुरक्षा नायकों के रूप में हमारे सैनिक बदलते भारत की कहानी गढ़ने में लगे हैं। हम क्यों किसी से स्वयं को कम मानें जबकि हमारे भीतर अनंत शक्तियों का स्रोत प्रवाहित है, मोदी जैसा सशक्त नेतृत्व है एवं सीमाओं पर सुरक्षा में डटे सैनिक हैं। जरूरत सिर्फ अहसास की है। एक बार पूरे आत्मविश्वास के साथ स्विच दबा दें, पूरा राष्ट्र-जीवन रोशनी से भर जाएगा।
दीपावली पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार फिर सेनानायकों के विलक्षण, साहसी एवं बुलन्द उपक्रमों की प्रशंसा करते हुए आह्वान किया है कि पराक्रमी बनो। कष्टों से घबराओं नहीं, उन्हें सहो। जोखिमों से खेलना सीखेंगे तभी तो मंजिल तक पहुंच सकेंगे। साहसी बनकर आगे बढ़ें। ‘मैं यह काम कर नहीं सकता’ इस बुझदिली को छोड़कर यह कहना सीखें कि मेरे जीवन-कोश में ‘असंभव’ जैसा शब्द नहीं लिखा है। तभी नये भारत का अभ्युदय दुनिया की सबसे बड़ी ताकत बनेगा।

अबकै ही तो आई खुशियों वाली दिवाली

सुशील कुमार ‘नवीन’

गांव के पूर्व मुखिया बसेशर लाल और उनकी पत्नी राधा के कदम जमीन पर नहीं पड़ रहे। शहर जा बसे दोनों बेटे अपने परिवार के साथ गांव में आ रहे हैं। वो भो एक-दो दिन के लिए नहीं। जब तक लोकडाउन और कोरोना महामारी से राहत नहीं मिलेगी, वो यहीं रहेंगे। छोटे बेटे रमन ने जब से फोन कर यह सूचना दी है। दोनों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं है। 

तीन दिन से घर की साफ सफाई चल रही है। खुद बसेशर लाल पास खड़े होकर अपने पुराने हवेलीनुमा मकान की लिपाई-पुताई करवाने में जुटे हैं तो राधा पड़ोस की श्यामा के साथ मिठाई और नमकीन बनवाने में जुटी है। तिकोनी मठ्ठी, मटर,सूखी मसालेदार कचोरी बनाई जा चुकी है। श्यामा साथ के मकान की पुत्रवधु है। वह राधा को बोली कि इतनी नमकीन का क्या करेंगे। राधा का जवाब था- अरे बहु-बेटे बच्चों के साथ आ रहे है। कोई कमी नही रहनी चाहिए। 

श्यामा बोली-अम्मा, आते तो वो हमेशा ही है। एक-दो दिन में वापस चले जाएंगे। उसके लिए इतना सामान क्यों बनवा रही हो। वो साथ भी नहीं ले जाएंगे। बांटोगी भी कितना। बाद में इन्हें गायों को खिलाना पड़ेगा। हर बार यही तो होता है। श्यामा की बात गलत भी नहीं थी पर ममता अपनी जगह थी। जीत तो उसी की होनी थी। उधर, बसेशर लाल अपने हिसाब से काम में लगे थे। बढ़ई को बुला तीन पुराने पलंगों और दोनों तख्तों को ठीक करवाया जा चुका था। राधा के पुराने सन्दूक से निकली गई नई बेडशीटों ने उन्हें ढक बैठक को अलग ही रूप दे दिया था। 

   आज वो दिन आ ही गया। राधा ने सुबह श्यामा की बेटी सुनहरी और उसकी एक सहेली विद्या के सहयोग से घर के बाहर बड़ी सी रंगोली बनवा दी। कोई उसके ऊपर से गुजर इसे खराब न कर दे। इसके लिए घर के गेट पर लाठी लेकर खुद बैठी हुई है। आज तो दोपहर का भोजन भी वही किया। शाम 7 बजे तक उनके पहुंचने की उम्मीद थी। अन्धेरा होते ही राधा ने मुंडेर दीयों से रोशन कर दी।सारा घर दिवाली ज्यों जगमग कर रहा था। साढ़े 7 बजे एक बड़ी गाड़ी घर के आगे आकर रुकी। आवाज सुनते ही राधा पूजा की थाली लेकर गेट पर पुहंच गई। पहले सबके तिलक किया फिर आरती उतारी। बहु-बेटों ने पैर छू आशीर्वाद लिया और घर में प्रवेश किया। राधा दोनों पोतों के साथ बातों में मग्न हो गई।

बड़ा बेटा वीरेन और छोटा रमन हैरान थे कि आज न तो दिवाली है न कोई और त्योहार। फिर घर आज इस तरह रोशन क्यों है। दोनों बहुएं रीना और माधवी भी इस प्रश्न का जवाब जानना चाहती थी पर बाबूजी से पूछने की हिम्मत किसी की नहीं हो रही थी। रमन के बेटे राहुल के पूछे गए सवाल ने सबके कान खड़े कर दिए। वह बोला-दादा, आज दिवाली है क्या। दादा हंसे। पहले राधा की तरफ देखा फिर बेटे बहुओं की तरफ। सब एकटक उनके जवाब की बाट जोह रहे थे।

 बसेशर लाल को अपने पोते से इस तरह के प्रश्न की उम्मीद नहीं थी पर अब जवाब तो देना ही था। बोले-हां, बेटा आज दिवाली ही है। तभी तो घर दीयों से जगमगा रहा है। अब दूसरे पोते राघव ने सवाल दाग दिया। बोला-दादा जी, दिवाली है तो पटाखे क्यों नहीं बज रहे। इस बार चुप बैठी राधा ने जवाब दिया। बोलीं-तुम दोनों जब से आये हो तब से अपनी प्यारी बोली से पटाखे ही तो बजा रहे है। खुशियों की फुलझड़ियां छूट रही है। खिलखिलाहट के अनार फूट रहे हैं। सब साथ तभी दिवाली। सब नहीं तो कैसी दिवाली। राधा के ये कहते ही सब समझ गए कि असली दिवाली तो आज ही है। बहुएं बोलीं-अम्मा अबके ये दिवाली तो लंबी चलेगी। रात को सोते समय बसेशर लाल राधा से बोले-होगी किसी के लिए ये महामारी। हमारे लिए तो ये वरदान बनकर आई है। किसी को फुर्सत ही नहीं थी। भगवान भी न अपनों को जोड़ने का कोई न कोई बहाना बना ही देते हैं। राधा बोली-अब सो जाओ, कल से तुम्हारी वही खुशियों वाली सुबह शुरू होने वाली है।

सुशील कुमार ‘नवीन’

बिडेन, मोदी और भारत-अमेरिका संबंधों के बदलते आयाम

अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में केवल राष्ट्रीय हित अपरिवर्तित रहते हैं। व्यक्तिगत संबंध राष्ट्रीय हितों के लिए बाधा नहीं बनते हैं, इसलिए बिडेन श्री नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रम्प के साथ संबंधों से प्रभावित नहीं होंगे। भारत वर्तमान में विश्व मंच पर एक बढ़ती हुई शक्ति है। इसलिए, भारत अमेरिका की नीतियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और अमेरिका के साथ बेहतर संबंध भारत की वैश्विक स्थिति में सुधार करेंगे।

अपने विजय भाषण में, उन्होंने एकता के एक संदेश पर जोर दिया और कहा कि अब समय आ गया है कि “अमेरिका की आत्मा को ठीक करो और पुनर्स्थापित करो।” मैं एक राष्ट्रपति बनने की प्रतिज्ञा करता हूं जो विभाजित नहीं करना चाहता है बल्कि एकजुट करना चाहता है। आप सभी के लिए जिन्होंने राष्ट्रपति ट्रम्प को वोट दिया, मैं आज रात निराशा को समझता हूं। लेकिन अब एक दूसरे को मौका दें।जो बिडेन पूर्व राष्ट्रपति ओबामा के समय से भारत-अमेरिका के रणनीतिक संबंधों के पक्ष में हैं। हालाँकि ट्रम्प का भारत-प्रशांत क्षेत्र पर अधिक ध्यान केंद्रित था, जहाँ भारत चीन को रोकने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका का एक महत्वपूर्ण सहयोगी बन गया, और यह संभावना है कि बिडेन भारत एक महत्वपूर्ण सहयोगी बना रहेगा। इसके साथ ही, अफगानिस्तान में शांति स्थापना और आतंकवाद के खिलाफ भारत और अमेरिका की नीतियों को एक ही दिशा में लागू किया जाएगा।

ओबामा और बिडेन ने अपने प्रत्येक देश और पूरे क्षेत्र में आतंकवाद से लड़ने के लिए भारत के साथ सहयोग को मजबूत किया। ” बिडेन का मानना है कि दक्षिण एशिया में आतंकवाद के लिए कोई सहिष्णुता नहीं हो सकती है।” हालांकि, पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर प्रशासन में अपने समय के दौरान उन्होंने बहुत कुछ नहीं कहा, भारत सरकार को उम्मीद है कि जब वह सीमा पार आतंकवाद की बात करेंगे तो वह भारत-पाकिस्तान के प्रति अमेरिकी प्रशासन के दृष्टिकोण की विरासत को आगे बढ़ाएंगे। ट्रम्प प्रशासन ने ईरान के साथ परमाणु समझौते पर एकतरफा प्रतिबंध लगा दिया था, जो पिछले ओबामा प्रशासन के फैसले के खिलाफ था। अमेरिका और ईरान दोनों के साथ भारत के संबंध अच्छे हैं। ऐसी स्थिति में भारत के सामने एक दुविधा पैदा हो गई थी। यह संभव है कि जो बिडेन प्रशासन इस स्थिति को हल करेगा।

ट्रम्प प्रशासन में, अमेरिका विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनेस्को, मानवाधिकार आयोग जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से दूर जा रहा था। भारत वैश्विक संस्थानों के महत्व के पक्ष में है। इस स्थिति में, भारत और ट्रम्प प्रशासन की नीतियों में उलटफेर हुआ। शायद संयुक्त राज्य अमेरिका ने जो बिडेन के प्रशासन के तहत इन वैश्विक संस्थानों के महत्व को मान्यता दी। ट्रम्प के नेतृत्व में, अमेरिका पेरिस जलवायु संधि से खुद को अलग कर रहा था जबकि भारत पर्यावरण को उन्नत करने के लिए सभी प्रयास कर रहा है। जो बिडेन के शासन के तहत, यह संभव है कि पेरिस संधि को यूएसए द्वारा मान्यता दी जाए। ट्रम्प प्रशासन ने भारतीय वस्तुओं पर प्रतिबंधों को अमेरिका के पक्ष में भारत-अमेरिकी व्यापार संतुलन के साथ-साथ भारत को जीएसपी श्रेणी से अलग करने के प्रयास में लगाया।

यह संभव है कि भारत फिर से बिडेन प्रशासन के तहत जीएसपी श्रेणी में शामिल हो जाए।
अनिवासी भारतीयों और भारतीय मूल के लोगों की स्थिति में सुधार की संभावना है जो ट्रम्प की संरक्षणवादी नीतियों से नकारात्मक रूप से प्रभावित थे। उपराष्ट्रपति कमला हैरिस भी भारतीय मूल की हैं। अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग की रिपोर्ट ने भारत को धार्मिक उत्पीड़न का देश बताया, जिसके लिए ट्रम्प प्रशासन की प्रतिक्रिया तटस्थ थी, लेकिन बिडेन प्रशासन की उपाध्यक्ष कमला हैरिस ने इसके खिलाफ अपना बयान दिया। उसी समय, ट्रम्प प्रशासन जम्मू और कश्मीर में स्थिति, लोकतंत्र के उल्लंघन, नागरिकता संशोधन अधिनियम, जाति और सांप्रदायिक हिंसा के विषय पर तटस्थ था, जबकि कमला हैरिस ने इन मुद्दों पर भारत के खिलाफ प्रतिक्रिया व्यक्त की।

2013 में भारत का दौरा करने वाले जो बिडेन ने भारत से दूसरे देशों में लोगों के प्रवास पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। चीन को रोकने के लिए बनाया जा रहा क्वाड (भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान) ट्रम्प प्रशासन की रणनीतियों का महत्वपूर्ण बिंदु था और यह इतना प्रभावी हो गया कि जर्मनी भी इसमें शामिल होने पर विचार कर रहा था। लेकिन यह नहीं कहा जा सकता है कि क्वाड बिडेन प्रशासन में भी इतना महत्व हासिल करेगा। ट्रम्प ने चुनाव प्रचार में हॉडी मोदी और नमस्ते ट्रम्प (भारत के प्रधान मंत्री और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की घटनाओं) का इस्तेमाल किया।

अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में केवल राष्ट्रीय हित अपरिवर्तित रहते हैं। व्यक्तिगत संबंध राष्ट्रीय हितों के लिए बाधा नहीं बनते हैं, इसलिए बिडेन श्री नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रम्प के साथ संबंधों से प्रभावित नहीं होंगे। भारत वर्तमान में विश्व मंच पर एक बढ़ती हुई शक्ति है। इसलिए, भारत अमेरिका की नीतियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और अमेरिका के साथ बेहतर संबंध भारत की वैश्विक स्थिति में सुधार करेंगे, इसलिए दोनों देशों को एक दूसरे की आवश्यकता है। भारत और अमेरिका के बीच बेहतर संबंध पूर्व और पश्चिम के बीच का ऐसा संबंध है जो पूरी दुनिया के लिए फायदेमंद होगा।

जो बिडेन भारत का मित्र रहा है. बराक ओबामा प्रशासन में उपाध्यक्ष बनने से बहुत पहले, बिडेन ने भारत के साथ मजबूत संबंधों की वकालत की थी। बिडेन ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, सीनेट की विदेश संबंध समिति के अध्यक्ष के रूप में और बाद में उपाध्यक्ष के रूप में, भारत के साथ रणनीतिक जुड़ाव को गहरा बनाने में। वास्तव में, 2006 में, अमेरिका के उपराष्ट्रपति बनने से तीन साल पहले, बिडेन ने अमेरिका-भारत संबंधों के भविष्य के लिए अपने दृष्टिकोण की घोषणा की: “मेरा सपना है कि 2020 में, दुनिया के दो निकटतम राष्ट्र भारत होंगे और संयुक्त राज्य अमेरिका 2013 में मुंबई की यात्रा के दौरान एक भाषण में, श्री बिडेन ने कहा था: “हम जिस तरह से आप एक एकल, गर्वित राष्ट्र में जातीयता, विश्वास और जीभ पिघल रहे हैं, उसकी प्रशंसा करते हैं।

पिछले 20 वर्षों में, हर अमेरिकी राष्ट्रपति – बिल क्लिंटन, जॉर्ज डब्ल्यू बुश, बराक ओबामा और डोनाल्ड ट्रम्प के बीच कई मुद्दों पर मतभेद थे, लेकिन अगर कोई एक सामान्य विषय था जिस पर सभी सहमत थे तो यह था: भारत के साथ एक मजबूत संबंध । इसका मतलब यह है कि भारत के साथ बेहतर संबंधों के पक्ष में द्विदलीय समर्थन की परंपरा रही है, और प्रत्येक अमेरिकी राष्ट्रपति ने पिछले दो दशकों में अपने पूर्ववर्ती से विरासत में जो हासिल किया है, उससे बेहतर बनाया है। यह मानने का कोई कारण नहीं है कि बिडेन परंपरा को जारी नहीं रखेगा, लेकिन निश्चित रूप से, उसकी अपनी शैली और बारीकियां होंगी, और रिश्ते पर अपनी व्यक्तिगत मुहर लगाएगा।

इन सबसे ऊपर, श्री बिडेन की विदेश नीति को देखा जाएगा कि वह विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनेस्को, मानवाधिकार परिषद, संयुक्त कार्य योजना जैसे समझौतों सहित ट्रम्प की बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था से कितना उलटफेर करता है। ईरान परमाणु समझौते और पेरिस जलवायु समझौते और पारंपरिक ट्रांस-अटलांटिक और ट्रांस-पैसिफिक गठबंधन से बिडेन की विदेश नीति को भी देखा जाएगा कि नियमों पर आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को मजबूत करने के लिए वह क्या ठोस उपाय करता है। श्री बिडेन के प्रशासन के साथ सरकार के व्यवहार की सफलता अब इस बात पर निर्भर करती है कि भारत सरकार अगले कुछ महीनों में अमरीका के साथ रिश्तों में कितनी “सामान्य” स्थिति में वापस आ सकती है।

पर्यावरण का अलख जगाता किशोर वरद कुबल

अलका गाडगिल

महाराष्ट्र

वर्तमान में पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति दुनिया भर में एक गंभीर समस्या बन चुकी है। इसके दुष्प्रभाव से न केवल कई प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं बल्कि स्वयं मानव सभ्यता खतरे में पड़ चुकी है। हालांकि अब इसके लिए दुनिया भर में जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। ताकि सतत विकास के लक्ष्य को शत प्रतिशत हासिल किया जा सके। पर्यावरण को बचाने में एक तरफ जहां पूरी दुनिया मिल कर लड़ रही है वहीं कुछ लोग व्यक्तिगत रूप से भी इसे बचाने के प्रयास में जुटे हुए हैं। ख़ास बात यह है कि इस काम में नई पीढ़ी भी सक्रिय भूमिका निभा रही है। कई ऐसे युवा हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में संसाधन की कमी के बावजूद पर्यावरण को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं।

इन्हीं में एक युवा वरद कुबल हैं। महाराष्ट्र के सिंधुदुर्गा जिले के अचरा गाँव के निवासी वरद कम उम्र में ही पर्यावरण के प्रति काफी जागरूक हैं। वह पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने गांव के नाज़ुक पारिस्थितिकी तंत्र के बारे में बोलते हैं। वरद कहते हैं कि लगातार हो रहे निर्माण गतिविधियों का ख़ामियाज़ा क्षेत्र के पेड़, पक्षियों और जानवरों को भुगतना पड़ रहा है। हजारों पेड़ काटे जा रहे हैं, जिससे गांव के आसपास का वातावरण अस्थिर हो गया है। बेमौसम बारिश, बाढ़ और तूफान असामान्य हैं, जिसका दुष्परिणाम पूरी पारस्थितिकी तंत्र को भुगतना पड़ रहा है। वरद ने 12 साल की उम्र में ही पर्यावरण के प्रति जागरूकता का काम शुरू कर दिया था। जब उन्होंने पहली बार समुद्री पक्षी बर्डलेन टर्न को बचाने का अभियान चलाया था। लगभग तीन साल पहले पश्चिमी तट पर एक तूफान आया था, जिसके दौरान ये असहाय प्रवासी पक्षी घायल हो गए थे। संभवत: इन पक्षियों को मानसूनी हवाओं द्वारा कोंकण तट की ओर खदेड़ दिया गया था।

वरद उस घटना को याद करते हुए बताते हैं कि आंधी तूफान के तुरंत बाद मैं समुद्र तट पर आकर बैठा था पीछे हटते ज्वार को देख रहा था। तभी मुझे कुछ असामान्य गतिविधि नज़र आई। मैंने देखा कि कौवे का झुंड एक घायल पक्षी पर लगातार हमले कर रहा है और वह स्वयं का बचाव करने में भी सक्षम नहीं है। मैंने उसे उठाया और घर ले आया। वरद ने इससे पहले इन पक्षियों को कभी इतना करीब से नहीं देखा था। उसे पता भी नहीं था कि वह किस प्रजाति की पक्षी है। इंटरनेट पर खोज से पता चला है कि वह कैरिबियन द्वीपों से आये थे और फारस की खाड़ी में घोंसले बनाकर हिंद महासागर में अपने गैर-प्रजनन का मौसम बिताते थे। 32 सेंटीमीटर लंबी स्पाइकी पुंछ वाले ये त्रिमाणि रंग के पक्षी गंभीर रूप से घायल हो गए थे। वरद ने उस घायल पक्षी को खिलाया और चोट के निशान को साफ़ कर मरहम लगाया। एक सप्ताह तक उनकी देखभाल की, जिससे वह उड़ने के लायक हो सके। उल्लेखनीय है कि समुद्र में रहने वाले पक्षियों के बारे में आम लोगों को बहुत कम जानकारियां होती है। यहाँ तक कि समुद्र के किनारे रहने वाले निवासियों को भी इनके बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं होती है, जबकि यह पर्यावरण के सबसे बड़े संरक्षकों में एक होते हैं।

इस घटना के बाद वरद के जीवन में बहुत बड़ा बदलाव आ गया। जल्द ही पक्षियों का बचाव एक मिशन के रूप में बदल गया। हाल के वर्षों में कोंकण क्षेत्र में अथक विकास गतिविधियों के परिणामस्वरूप, पक्षियों और कई अन्य समुद्री और तटीय प्रजातियों के आवास विलुप्त होने के खतरे में हैं। शहरों और कस्बों के चारों उलझी हुई तारों में फंस कर यह पक्षी अक्सर गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं। वरद इन घायलों को बचाते हैं और उनका इलाज करते हैं। वरद कहते हैं कि इन पक्षियों को बचाना और उनके अस्तित्व को बनाये रखना अत्यधिक चुनौतीपूर्ण कार्य है। वह कहते हैं कि उनका मिशन पक्षियों के बचाव और राहत तक ही सीमित नहीं है बल्कि वह तटीय और समुद्री जैव विविधता के बारे में गहराई से जानने के लिए भी उत्सुक रहते हैं। कम उम्र में ही जैव विविधता के प्रति संवेदनशील सोच रखने वाले वरद कहते हैं कि ‘मनुष्य और पशु पक्षियों के स्वभाव में काफी अंतर है। मनुष्य जहां हिंसक साधनों को अपनाता है वहीं पशु और पक्षी मानवीय मार्ग का अनुसरण करते हैं, यह अजीब बात है। मैंने एक बिल्ली को गिलहरी के एक घायल बच्चे की देखभाल करते हुआ भी देखा है। मनुष्य का स्वभाव उसकी प्रकृति पर निर्भर है क्योंकि हम भी पर्यावरण का एक हिस्सा हैं। हमारी गतिविधियों का पृथ्वी की सभी प्रणालियों पर प्रभाव पड़ता है। दिल्ली में हवा में प्रदूषण का स्तर अधिक होने के कारण लोगों को सांस लेने में तकलीफ़ होती है। इसीलिए हमारे इको सिस्टम की देखभाल करने की आवश्यकता है। वर्तमान समय में जीने में असफल रहते हुए कल के बारे में बहुत अधिक चिंता क्यों करें? हमें स्वीकार करना चाहिए कि हमारे पास पहले से ही क्या है और इसे संरक्षित करने का किस प्रकार प्रयास करने की ज़रूरत है।

इस किशोर उम्र में वरद पर्यावरण के प्रति पूरी तरह से समर्पित हो चुके हैं। उन्होंने इस क्षेत्र में जाम्भुल, नीम, बरगद और पीपल जैसे देशी किस्मों के पौधे लगाने का अभियान शुरू किया। हाल ही में उन्होंने अपने साथियों के साथ मुंबई-गोवा राजमार्ग के साथ अचरा बंदरगाह पर इन पौधों का रोपण भी किया है। उसने अपने घर के पीछे रंगीन अंडे के छिलकों से भरा है। जिसमें चमकीले और सुंदर रंगों में चित्रित गोले हैं। इतना ही नहीं उसने ‘सीड एग’ नाम से एक महत्वपूर्ण पहल की शुरुआत भी की है, जिसमें बीज को अंकुरित होने के लिए अंडे के छिलके का उपयोग किया जाता है। छिलके की पेंटिंग पूरी होने के बाद उसमें कुछ मिट्टी भर दी जाती है और एक स्थानीय पौधे के बीजों को खोल में गहराई से रखा जाता है। खाली माचिस की डिब्बी रंगीन होती है और उस पर अंडे का खोल गोंद के साथ चिपका होता है, इसका उपयोग शेल के लिए एक ट्रे के रूप में किया जाता है।

वरद अभी स्कूली छात्र है और 12 वीं कक्षा के बाद पर्यावरण के क्षेत्र में ही अपना कैरियर बनाना चाहते हैं। उसके इस काम में उसके माता पिता का भरपूर समर्थन हासिल है। हालांकि अभी भी स्कूल में उसके कार्यों को बहुत गंभीरता से नहीं लिया जाता है। लेकिन इन सब बातों से दूर वह पर्यावरण के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरी तरह से निभा रहे हैं। नई पीढ़ी में पर्यावरण के प्रति गंभीरता न केवल आने वाले भविष्य के लिए बेहतर होगा बल्कि सतत विकास के प्रयासों को भी बल मिलेगा। वास्तव में वरद जैसे युवा सभी के लिए मिसाल है, जिसका अनुकरण नई पीढ़ी को करनी चाहिए। तभी हम स्वस्थ्य और सुंदर धरती की परिकल्पना को साकार करने में सक्षम हो सकेंगे।

ऋषि दयानन्द के तप, त्याग व भावनाओं को ध्यान में रखकर हमें वेदभाष्य सहित उनके सभी ग्रन्थों का स्वाध्याय करना चाहिये

मनमोहन कुमार आर्य
ऋषि दयानन्द संसार के महापुरुषों में अन्यतम थे। उन्होंने जो कार्य किया वह अन्य महापुरुषों ने नहीं किया। उन्होंने ही हमें ईश्वर के सत्यस्वरूप से परिचित कराया है। उनसे पूर्व ईश्वर का सत्यस्वरूप वेद, उपनिषद आदि ग्रन्थों में उपलब्ध था परन्तु देश के न केवल सामान्य जन अपितु विद्वानों को भी उसका ज्ञान नहीं था। आज उनकी कृपा से ईश्वर के सत्यस्वरूप, उसके कार्यों एवं उपासना पद्धति का हमें यथावत् ज्ञान है परन्तु आज भी अधिकांश लोग उसको जानकर उसका लाभ लेना नहीं चाहते। ऐसा करना लोगों की अविद्या के कारण है। मत सम्प्रदायों के आचार्य भी अपने हित व अहित अथवा स्वार्थों सहित अविद्या ही के कारण लोगों का उचित मार्गदर्शन करने में सहयोग व योगदान नही कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में वेदों के जन जन में प्रचार की प्रतिनिधि संस्था आर्य समाज व इसके विद्वानों को ही वेदों को जन जन तक पहुंचाने और अविद्या को दूर करने के प्रयत्न करने चाहियें। ऐसा किया भी जा रहा है परन्तु जो हो रहा है उसका परिमाण आवश्यकता से कहीं कम है। इसमें वृद्धि की जानी चाहिये और कम महत्व के कार्यों को सीमित कर ऋषि दयानन्द की इच्छा व भावनाओं के अनुरूप वेदों का प्रचार व प्रसार किया जाना चाहिये। ऐसा करना ही हमारा पुनीत कर्तव्य है। इसी उद्देश्य से ईश्वर ने सृष्टि के आरम्भ में वेदों का ज्ञान दिया था और उसके बाद महाभारत तक वेद प्रचार की अटूट परम्परा रही जिसमें वेद ज्ञानी ऋषि मुनियों ने वेदाध्ययन एवं वेद प्रचार को ही अपने सभी कर्तव्यों में सबसे अधिक महत्व दिया। ऋषि दयानन्द ने तो इस कार्य में अपना पूरा जीवन ही समर्पित किया। यदि वह ऐसा न करते तो आज देश में कोई वेद प्रचार वा धर्म प्रचार की बात न कर रहा होता। आज से भी अधिक मत-मतान्तरों का बोलबाला होता। ज्ञान व विज्ञान की अवहेलना अब से अधिक होती। वेद प्रचार से ही अविद्या एवं सभी प्रकार के अज्ञान, अन्धविश्वास, पाखण्ड, कुरीतियों एवं सामाजिक बुराईयों का अन्त किया जा सकता है तथा ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के महान लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।

ऋषि दयानन्द (1825-1883) के समय में संसार में अविद्या फैली हुई थी। ऋषि दयानन्द भारत में जन्में थे अतः उनका कर्तव्य था कि पहले वह भारत से अविद्या को दूर करें। उन्होंने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये सद्ज्ञान को प्राप्त होने के लिये अपूर्व तप व पुरुषार्थ किया। उन्होंने अपने महान तप से उस वेदज्ञान को प्राप्त किया था जो विगत लगभग पांच हजार वर्षों से विद्वानों के आलस्य व प्रमाद के कारण विलुप्त हो गया था। उनके समय में वेदों के मिथ्या व कल्पित अर्थ प्रचलित थे। ऋषि दयानन्द ने देश के धार्मिक विद्वानों की शरण में जाकर उनसे अपनी शंकाओं का समाधान करने का प्रयत्न किया था। इस प्रयास में वह एक सफल योगी बने थे जो समाधि अवस्था में ईश्वर के साक्षात्कार को प्राप्त होता है। इसके बाद भी वह परा तथा अपरा विद्या की प्राप्ति के लिये प्रयत्नरत थे। उनकी इच्छा वेद वेदांग के शीर्ष विद्वान दण्डी स्वामी प्रज्ञाचक्षु विरजानन्द सरस्वती जी को प्राप्त कर पूरी हुई। ऋषि दयानन्द ने स्वामी विरजानन्द जी से तीन वर्ष 1860-1863 तक वेद वेदांगों का अध्ययन किया था। इस अध्ययन, योग में उनकी उच्च स्थिति तथा पवित्र धार्मिक जीवन से उन्हें वेदों को प्राप्त कर वेदांगों की सहायता से वेदों के सत्य वेदार्थ को जानने की योग्यता प्राप्त हुई थी। उन्होंने अपनी योग्यता का लाभ अपने तक ही सीमित नहीं रखा अपितु अपने गुरु स्वामी विरजानन्द सरस्वती की प्रेरणा व अपने सत्संकल्पों से वेद विद्या के प्रकाश से संसार को आलोकित करने का पुरुषार्थ किया। उनके प्रयत्न बड़ी मात्रा में सफल हुए। यदि मत-मतान्तरों के उनके विरोधी आचार्य व अनुयायी उनका विरोध न करते तथा उनकी जीवन हानि न होती तो वह कहीं अधिक कार्य करते जिससे संसार से अज्ञान का नाश तथा ज्ञान व विद्या का पूर्ण प्रकाश हो जाता। उन्होंने जो कार्य किया वह संसार से अज्ञान को दूर करने में समर्थ व प्रायः पर्याप्त है। 

ऋषि दयानन्द ने अपने जीवन काल में सृष्टि की आदि में परमात्मा से उत्पन्न चार वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद पर भाष्य करना आरम्भ किया था। उन्होंने ऋग्वेद आंशिक तथा यजुर्वेद का सम्पूर्ण भाष्य किया है। उनका किया हुआ वेदभाष्य अर्थात् वेदार्थ अपूर्व एवं अन्यतम है। ऋषि दयानन्द के अनुयायियों ने वेदों के शेष भाग पर भी भाष्य पूरा किया है। आज हमें ऋषि के अनुयायी विद्वानों के किए अनेक वेदभाष्य प्राप्त हैं जिससे हम वेदों के बीस हजार से अधिक मन्त्रों में से प्रत्येक मन्त्र का वेदोंगों की सहायता से किया गया सत्य भाष्य व वेदार्थ जान सकते हैं। यह ऋषि दयानन्द की बहुत बड़ी देन है। वेदभाष्य से इतर ऋषि दयानन्द ने आर्यभाषा हिन्दी में अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे हैं। सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, आर्याभिविनय, संस्कारविधि, पंचमहायज्ञविधि, गोकरुणानिधि, व्यवहारभानु आदि उनके प्रमुख ग्रन्थ हंै। उनका पत्रव्यवहार एवं जीवन चरित भी अध्ययन व स्वाध्याय के लिये उत्तम कोटि के ग्रन्थ हैं। इनका अध्ययन कर मनुष्य अपने जीवन के उद्देश्य व लक्ष्य को जान सकता है तथा उन्हें प्राप्त करने के साधन, उपाय व विधि भी उसे ऋषि के ग्रन्थों से विदित होती है। उसी को धर्म पालन भी कहा जाता है। मनुष्य को पंच महायज्ञ करने होते हैं। इनको करके मनुष्य धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष को प्राप्त होता है। मनुष्य की आत्मा का जन्म व पुनर्जन्म जिसे आवागमन कहते हैं, इस आवागमन से छूट कर मोक्ष प्राप्ति के लिये ही वेदों में धर्म पालन का विधान है। यह पूरा विधान ऋषि दयानन्द के ग्रन्थों मुख्यतः सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका एवं वेदभाष्य आदि को पढ़कर ज्ञात होता है। ऋषि के ग्रन्थों के साथ उपनिषद, दर्शन, ब्राह्मण आदि ग्रन्थों के अध्ययन से भी ज्ञान की वृद्धि एवं ईश्वर प्राप्ति की प्रेरणा मिलती है व ईश्वर प्राप्त भी होता है। अतः सभी मनुष्यों को अपने मनुष्य जीवन को सफल करने के लिये ऋषि दयानन्द के ग्रन्थों का आश्रय लेना चाहिये। ऐसा नहीं करेंगे तो मनुष्य जीवन सफल नहीं होगा, ऐसा हमें अध्ययन से स्पष्ट प्रतीत होता है। 

ऋषि दयानन्द के जीवन चरितों को पढ़कर उनके तप, त्याग तथा पुरुषार्थ का ज्ञान मिलता है। उन्होंने अप्राप्त ज्ञान को प्राप्त कर उसे जनसामान्य को सुलभ कराया। यदि वह ऐसा न करते तो आज सम्पूर्ण मनुष्य जाति वेद विषयक उस ज्ञान से अपरिचित होती जिससे वह अब ऋषि दयानन्द के कारण परिचित है। ऋषि दयानन्द की एक मुख्य देन यह भी है कि उन्होंने अपने सभी ग्रन्थों का हिन्दी में प्रणयन किया है। उनके सभी ग्रन्थों के अंग्रेजी व अन्य भाषाओं में अनुवाद भी हुए हैं। अतः ऋषि दयानन्द द्वारा प्रदत्त ज्ञान का सभी मनुष्य अध्ययन कर लाभ उठा सकते हैं। ईश्वर का सत्यस्वरूप तथा उसके गुण, कर्म व स्वभाव का जैसा ज्ञान उनके ग्रन्थों में प्राप्त होता है वैसा विश्व साहित्य में प्राप्त नहीं होता। ईश्वर ध्यान व समाधि द्वारा प्राप्त होता है। इसका पूरा विज्ञान हमें ऋषि के ग्रन्थों व वैदिक साहित्य में प्राप्त होता है। ईश्वर को जानना व उसे योग विधि से प्राप्त करना ही मनुष्य जीवन का लक्ष्य है। यह अन्यथा प्राप्त नहीं होता। इसके लिये वेदज्ञान को प्राप्त होकर कर्म व उपासना करना ही मुख्य साधन होता है। ऐसा ही हमारे पूर्वज सभी ऋषि, मुनि, विद्वान व आचार्य किया करते थे। हमें भी ऋषि के जीवन तथा वैदिक साहित्य के सत्य सिद्वान्तों का अनुसरण करना है तथा मत-मतान्तरों की अविद्यायुक्त शिक्षाओं से बचना है। यदि हम मत-मतान्तरों से जुड़ते हैं तो हम अविद्या से दूर नहीं हो सकते। आर्यसमाज कोई मत व सम्प्रदाय नहीं है अपितु यह वेद प्रचार, विद्या प्राप्ति, धर्म एवं देश रक्षा, समाज सुधार तथा श्रेष्ठ समाज के निर्माण का एक आन्दोलन है। अतः आर्यसमाज से जुड़ कर ही हम अपने जीवन को सफल कर सकते हैं तथा मोक्षगामी हो सकते हैं। 

ऋषि दयानन्द ने विद्या प्राप्त करने के लिये जो पुरुषार्थ किया उसे जानकर उनके प्रति सिर झुकता है। इतना पुरुषार्थ, तप व त्याग शायद ही जीवन में किसी महापुरुष ने किया हो। उन्होंने अपने जीवन में अप्राप्त व विलुपत सत्य ज्ञान की प्राप्ति के असम्भव कार्य को सम्भव किया और उसे सभी मनुष्यों तक पहुंचाने के भी अपूर्व कार्य किये। हमें ऋषि दयानन्द की भावनाओं को समझना व अनुभव करना चाहिये। वह सारे संसार को अविद्या से मुक्त तथा विद्या से युक्त कर मनुष्य को परम पद मोक्ष प्रदान कराना चाहते थे। हम भी उनके साहित्य का अध्ययन व आचरण कर परम पद के पथिक बन सकते हैं। हमारा कर्तव्य है कि हम ऋषि दयानन्द के सभी साहित्य व ग्रन्थों सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, संस्कारविधि, आर्याभिविनय, पंचमहायज्ञविधि सहित उनके वेदभाष्य का अध्ययन करें। ऐसा करके हम अपनी आत्मा की उन्नति करने में सफल होंगे और साथ ही हम ऋषि दयानन्द के प्रति कृतघ्नता के दोष से भी मुक्त होंगे। सभी मनुष्यों को मत-मतान्तरों से ऊपर उठकर ऋषि ग्रन्थों का अध्ययन कर अपने जीवन की उन्नति करने सहित उनके ऋण से उऋण होना चाहिये। यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तो विश्व की श्रेष्ठतम वैदिक धर्म व संस्कृति की रक्षा नहीं हो सकेगी। हमें ऋषि दयानन्द के तप, त्याग व भावनाओं को समझना चाहिये और उनकी सभी हितकर बातों को आचरण में लाकर उनके प्रति कृतज्ञ व नतमस्तक होना चाहिये।

कायस्थ समाज आज मना रहा है अपने कुल देवता भगवान चित्रगुप्त जी की जयंती

                                                                                                                   

 संजय सक्सेना
           पूरा देश जहां भैया दूज मना रहा है,वहीं कायस्थ समाज भैया दूज के साथ-साथ आज अपने कुल देवता भगवान श्री चित्रगुप्त महाराज की जयंती भी मना रहा है। आज के दिन कायस्थ समाज परम्परागत रूप से कलम-दवात की पूजा करके विद्या की देवी माॅ सरस्वती की भी पूजा करता है। भगवान चित्रगुप्त के बारे में सभी जानते होंगे। चित्रगुप्त एक प्रमुख हिन्दू देवता हैं। वेदों और पुराणों के अनुसार धर्मराज श्री चित्रगुप्त जी अपने दरबार में मनुष्यों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा करके न्याय करने वाले बताए गये हैं।आधुनिक विज्ञान ने यह सिद्ध किया है कि हमारे मन में जो भी विचार आते हैं वे सभी चित्रों के रुप में होते हैं। भगवान चित्रगुप्त इन सभी विचारों के चित्रों को गुप्त रूप से संचित करके रखते ह।ैं अंत समय में ये सभी चित्र दृष्टिपटल पर रखे जाते हैं एवं इन्हीं के आधार पर जीवों के पारलोक व पुनर्जन्म का निर्णय सृष्टि के प्रथम न्यायाधीश भगवान चित्रगुप्त करते हैं। विज्ञान ने यह भी सिद्ध किया है कि मृत्यु के पश्चात जीव का मस्तिष्क कुछ समय कार्य करता है और इस दौरान जीवन में घटित प्रत्येक घटना के चित्र मस्तिष्क में चलते रहते हैं। इसे ही हजारों बर्षों पूर्व हमारे वेदों में लिखा गया हैं। जिस प्रकार शनि देव सृष्टि के प्रथम दण्डाधिकारी हैं भगवान चित्रगुप्त सृष्टि के प्रथम न्यायाधीश हैं, उन्हें न्याय का देवता माना जाता है।  मनुष्यों की मृत्यु के पश्चात, पृथ्वी पर उनके द्वारा किए गये कार्यों के आधार पर उनके लिए स्वर्ग या नरक का निर्णय लेने का अधिकार चित्रगुप्त के पास है। अर्थात किस को स्वर्ग मिलेगा और कौन नर्क में जाएगा? इस बात का निर्धारण भगवान धर्मराज चित्रगुप्त जी द्वारा ही किया जाता है। श्री चित्रगुप्त जी महाराज के बारे में ऐसी मान्यता है कि वह यमराज के यमलोक में नाना प्रकार के जीव-जन्तुओं के कर्मोे का हिसाब किताब रखते थे। चित्रगुप्त जी महाराज  यमराज के बहनोई हैं। ब्रह्मा की काया से उत्पन्न होने के कारण इन्हें ‘कायस्थ’ भी कहा जाता है। विश्वकर्मा की तरह ही कायस्थ समाज के लोग ब्राह्मणों का उपवर्ग हैं। गरूड़ पुराण में यमलोक के निकट ही चित्रलोक की स्थिति बताई गई है।
    कायस्थ समाज के लोग भाईदूज के दिन श्री चित्रगुप्त जयंती मनाते हैं। इस दिन पर वे कलम-दवात की पूजा करते हैं जिसमें पेन, कागज और पुस्तकों की पूजा होती है। यह वह दिन है, जब भगवान श्री चित्रगुप्त का उद्भव ब्रह्माजी के द्वारा हुआ था। चित्रगुप्त के अम्बष्ट, माथुर तथा गौड़ आदि नाम से कुल 12 पुत्र हुए। मतांतर से चित्रगुप्त के पिता मित्त नामक कायस्थ थे। इनकी बहन का नाम चित्रा था। पिता के देहावसान के उपरांत प्रभास क्षेत्र में जाकर सूर्य की तपस्या की जिसके फल से इन्हें ज्ञान हुआ। वर्तमान समय में कायस्थ जाति के लोग चित्रगुप्त के ही वंशज कहे जाते हैं।
कायस्थ समाज के लोग देशभर में फैले हुए हैंे। कश्मीर में दुर्लभ बर्धन कायस्थ वंश, काबुल और पंजाब में जयपाल कायस्थ वंश, गुजरात में बल्लभी कायस्थ राजवंश, दक्षिण में चालुक्य कायस्थ राजवंश, उत्तर भारत में देवपाल गौड़ कायस्थ राजवंश तथा मध्यभारत में सतवाहन और परिहार कायस्थ राजवंश सत्ता में रहे हैं।कायस्थों को मूलतः12 उपवर्गों में विभाजित किया गया है। यह 12 वर्ग श्री चित्रगुप्त की पत्नियों देवी शोभावती और देवी नंदिनी के 12 सुपुत्रों के वंश के आधार पर है। भानु, विभानु, विश्वभानु, वीर्यभानु, चारु, सुचारु, चित्र (चित्राख्य), मतिभान (हस्तीवर्ण), हिमवान (हिमवर्ण), चित्रचारु, चित्रचरण और अतीन्द्रिय (जितेंद्रिय)।उपरोक्त पुत्रों के वंश अनुसार कायस्थ की 12 शाखाएं हो गईं- श्रीवास्तव, सूर्यध्वज, वाल्मीकि, अष्ठाना, माथुर, गौड़, भटनागर, सक्सेना, अम्बष्ठ, निगम, कर्ण और कुलश्रेष्ठ।श्री चित्रगुप्तजी के 12 पुत्रों का विवाह नागराज वासुकि की 12 कन्याओं से हुआ जिससे कि कायस्थों की ननिहाल नागवंशी मानी जाती है। माता नंदिनी के 4 पुत्र कश्मीर में जाकर बसे तथा ऐरावती एवं शोभावती के 8 पुत्र गौड़ देश के आसपास बिहार, ओडिशा तथा बंगाल में जा बसे। बंगाल उस समय गौड़ देश कहलाता था।