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सोसल साइट्स और वसुधैव कुटुबंकम की अवधारणा

विज्ञान और तकनीकी विकास के इस युग में कई आविष्कारों ने हमारे दैनिक जीवन में आवष्यक या अनावश्यक ढंग से घुसपैठ की है । कुछ ने लाभ पहुंचाए हैं तो कुछ ने नुकसान । कुछ के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता (रिसर्च चल रही है) । सोसल साइटस को हम ससम्मान ‘कुछ नहीं कहा जा सकता’ वाली श्रेणी में रखेंगे । कुछ वर्षों पूर्व तक यह अस्तित्वविहीन था और आज यह सर्वब्याप्त और सर्वसुलभ होकर मनुष्यमात्र की सुखानुभूति हेतु सेवारत है । इसकी ख्याति और दैवीय गुणों को देखते हुए देवगण भी आश्चर्यचकित होंगे और मनुष्यजाति से मन ही मन ईर्श्र्या कर रहे होंगे ।

क्या बच्चे और क्या बूढ़े कोई भी इसकी माया से अछूता नहीं । ए देश, जाति, धर्म, लिंग, रंग, आयु, सामाजिक-आर्थिक स्तर की सीमांओं से परे हो गया है और लोग पूरी समरसता के साथ इसका प्रयोग कर रहे हैं । नेताजी श्वेत वस्त्रों में हाथ जोड़े हुए, मोहिनी मुस्कान के साथ (ए मुस्कुरा क्यों रहे हैं, यह शोध का विषय है) जगह जगह जनसभाएं और शिलान्यास करते हुए; धार्मिक बन्धु पूजापाठ और धर्म का प्रचार (ढ़ोंग) करते हुए; प्रेमी जोड़े अपने प्रेम की नुमाइश करते हुए; समाजसेवी अपनी समाजसेवा का ढोल पीटते हुए; सबकुछ आपको यहां दिख जाएगा । बचपन के साथी, कुम्भ के मेले में बिछड़ा भाई, सालों पहले परदेशी हुआ साजन, चुनाव बाद गायब हुए नेताजी सब आपको यहीं मिलेंगे । कई भगोड़े और अंतर्राष्टीयकिस्म के असामाजिक तत्व जिन्हें कई मुल्कों की पुलिस भी नहीं ढूंढ पा रही है, समय समय पर अपने शांतिदूतों को संदेश देने यहां अवतरित होते रहते हैं । किसी को ढूंढने या फिर प्रचार के लिए किसी शारीरिक श्रम की आवश्यता नहीं बस ‘लाग इन’ करने या ‘अपलोड’ होने भर की देर है, दर्शकगण ‘आनलाइन’ ही मिलेंगे ।

सोसल साइट्स ने लोगों की बहुमुखी प्रतिभा को समझने और मंच प्रदान करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । ऐसे लोग जिनसे कभी गाय पर निबन्ध भी लिखते नहीं बना, सोसल साइट्स की कृपा से मुर्धन्य कवि और लेखक हो गये हैं । प्रतिदिन एक न एक कालम तो ‘चिपका’ ही देते हैं । ऐसे महानुभाव जिन्हें आप ‘कूप मंडूक’ ‘घोंचू’ या सभ्यतापूर्वक ‘इन्ट्रोवर्ट’ कह सकते हैं, भी ‘आनलाइन’ बहुत ‘लाइक’ किए जाते हैं और फेसबुक पर 2500 लोगों से ज्यादा की फ्रेंडलिस्ट रखते हैं । ए अलग बात है कि इन्हें अपने पड़ोसी का भी नाम पता नही है । कुछ लोग तो ऐसे हैं जिनके कभी किसी विषय में 35 प्रतिशत से ज्यादा अंक नहीं आए लेकिन सोसल साइटस की महिमा से बड़े शिक्षाविद हो गये हैं और ‘हाउ टू इम्प्रूव योर परफार्मेंस इन इक्जाम’ पर आर्टिकल्स की सिरीज पोस्ट कर रहे हैं । कहने का अर्थ बस इतना सा है कि लोग भांति भांति के कर्म में लीन हैं और मनोहर मुस्कान के साथ स्वयं को विज्ञापित कर स्वनामधन्य हो रहे हैं ।

सोसल साइट्स ने एक क्रांतिकारी और महत्वपूर्ण बात जो मानव समुदाय को सिखलाई वह है ‘पावर आफ शेयरिंग’। मानव समुदाय पहले इस कला में इतना सिद्धहस्त नहीं था । आप कल्पना करें कि आपनें आज के बीस वर्ष पूर्व विद्यालय में कोई मौलिक कविता लिखी होती । लिखने के बाद अघ्यापक महोदय को दिखाया होता । अघ्यापक महोदय ने ‘लय’, ‘छन्द’ ‘अलंकार’ नामक कठिन शब्दों के प्रयोग के साथ पचास गलतियां बता दीं होती (हालांकि उन्होनें स्वयं भी कभी कोई कविता नहीं लिखी होती थी) । आप निराश हो गये होते और आपकी प्रतिभा का फूल खिलने के पहले ही मुरझा गया होता । लेकिन सोसल साइट्स की असीम कृपा से आज ऐसा नहीं है । आप कविता लिखिए (गुणवत्ता की चिन्ता मत कीजिए, कितनी भी निम्नस्तरीय हो, चलेगी) और उसको ‘अपलोड’ कीजिए । आपको ‘लाइक’, ‘कमेंटस’ और ‘शेयर’ मिलेंगे । कई लोग तो बिना पढ़े भी ‘लाइक’ करेंगे ।

बच्चे को क्लास में ड्राइंग टीचर से मिला हुआ ‘वेरी गुड’, मौसी के लड़के के साथ खाये हुये गोलगप्पे, स्टाइलिश हेयरकट, सर्दी जुकाम की ‘गंभीर’ बीमारी, बच्चे की ‘पहली छींक’ या घर में हुई सत्यनारायण भगवान की कथा, ये सारी एतिहासिक महत्व की जानकारियां अब लोग छुपाते नहीं हैं, बल्कि ‘पोस्ट’ और ‘अपलोड’ करते हैं और पूरी दुनिया से ‘शेयर’ करते हैं ।

मित्रों, आप केवल कल्पना करें कि कक्षा तीन में पढ़ने वाला बच्चा, उसका भाई, बहन, स्कूल, मुहल्ला, शहर, प्रदेश, पूरा देश, संतरी से लेकर प्रधानमंत्री और सम्पूर्ण विश्व अगर किसी एक स्थान पर समागम कर रहे हैं तो वह सोसल साइट्स ही है । वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा यहां मूर्त रुप ले रही है । छोटी-छोटी बातों पर मरने-मारने के लिए तैयार लोग यहां ‘फ्रैंडशिप’ के लिए ‘रिक्वेश्ट’ कर रहे हैं । इस समागम में आप भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं । बस आपको ‘लाग इन’ करने और अपना समय देने की आवष्यकता है (अगर आपके पास है)।  

अपनी इन दैवीय विशेषताओं के साथ इसकी कुछ कमियां भी हैं, बस ठीक उसी तरह से जैसे चन्द्रमा में दाग । अभी हाल में ही रसियन लोगों के एक ग्रुप ने एक खेल इजाद किया और इसी सोसल साइट्स के माध्यम से प्रेसित और प्रचारित किया । खेल का नाम है ‘ब्ल्यू ळेल’। बाद में इसी जैसे और भी कई खेल अलग अलग नामों से आ गये । इन खेलों में बहुत मनोरंजक तरीकों से आपको अपना नश्वर जीवन त्यागने के लिए प्रेरित किया जाता है । दुर्भाग्यवश, विश्वभर में बहुत से लोग, जिनमें अधिकांश बच्चे हैं, इनके खेल को समझने में असफल रहे और असमय काल के शिकार हुए ।

ध्यान रखें, जीवन नश्वर है, लेकिन नष्ट होने के पहले तक मूल्यवान है; आपके लिए भी, आपके अपनों के लिए भी । वैसे भी नश्वर जीवन को नष्ट करने की इतनी बेचैनी क्यों ? वसुधैव कुटुम्बकम के महान विचार को वास्तविकता के धरातल पर लाने वाली सोसल साइट्स के प्रयोग में थोड़ी सावधानीयुक्त समझदारी का परिचय दें और इसे एन्टीसोसल होने से बचाएं ।

डा. प्रदीप याम रंजन

मैन्युअल स्केवेंजिंग : अमानवीय प्रथा खत्म हो पाएंगे?

भारत में “मैनुअल स्केवेंजर्स का रोज़गार और शुष्क शौचालय का निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993” के तहत हाथ से मैला ढोने की प्रथा को 2013 में एक कानून के जरिए प्रतिबंधित कर दिया गया है। बावजूद इसके देश में आज भी लाखों लोग सीवरों और सेप्टिक टैंकों में उतरकर सफाई लिए मजबूर हैं। यह प्रथा अमानवीय होने के साथ साथ जानलेवा भी है। नालों में फैली गंदगी से उनमें घातक गैसें बनते हैं,जिसकी हल्की सी खुराक बेहोश करने के लिए काफी है। यदि यह गैस नाक में ज्यादा चली गईं तो जान चली जाती हैं। आंकड़ों के अनुसार 2016 से 2019 के बीच देश
में लगभग 282 सफाईकर्मी सीवर और सेप्टिक टैंक साफ करने के दौरान अकाल मौत के आगोश में सो गए।लेकिन सफाईकर्मियों के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों की माने तो जमीनी हक़ीक़त कहीं ज्यादा भयावह। केंद्र सरकार ने सफाईकर्मी के स्थिति की गंभीरता को देखते हुए कानून में संशोधन करके सीवरों और सेप्टिक टैंकों की मशीन आधारित सफाई को अनिवार्य करने का निर्णय लिया है। अब शब्दावली में से ‘मैनहोल’ शब्द को हटा कर ‘मशीन-होल’ शब्द का उपयोग किया जाएगा।
19 नवंबर को केंद्र सरकार ने दो नई महत्वपूर्ण घोषणाएं की। सामाजिक कल्याण मंत्रालय सीवरों और सेप्टिक टैंकों की सफाई के लिए मशीनों का उपयोग अनिवार्य करने के लिए एक कानून लेकर आएगा। दूसरी तरफ शहरी कार्य मंत्रालय ने इंसानों द्वारा सीवर की सफाई रोकने के लिए राज्यों के बीच एक प्रतियोगिता की शुरुआत की। 243 शहरों के बीच होने वाली इस प्रतियोगिता के लिए 52 करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं। राज्य सरकारों ने प्रण लिया है कि अप्रैल 2021 तक इस तरह की सफाई की प्रक्रिया को पूरी तरह से मशीन आधारित बना दिया जाएगा। सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले शहरों को इनाम दिया जाएगा।

आपदा को अवसर में बदलती ग्रामीण महिलाएं

लीलाधर निर्मलकर

भानुप्रतापपुर, छत्तीसगढ़

कोरोना महामारी ने देश-दुनिया की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ आम जनता की आर्थिक स्थिति को भी भारी नुकसान पहुंचाया है। एक तरफ जहां लाॅक डाउन में लोगों का रोजगार छिन गया तो अनलाॅक होने के बाद भी लोगों को आसानी से काम नहीं मिल रहा है। शहरी क्षेत्रों में मजदूरों की आवश्यकता होने के कारण जैसे-तैसे उन्हें काम मिल भी जा रहा है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में रोज़गार की समस्या अब भी गंभीर बनी हुई है। बड़ी संख्या में लोग अभी भी रोज़गार की तलाश में भटक रहे हैं। हालांकि इस चिंता के बीच सकारात्मक बात यह रही है कि शहरों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों ने भी स्वयं का रोज़गार शुरू करने की दिशा में क़दम बढ़ाया है और इसमें उन्हें काफी सफलता भी मिली है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण एकता स्व-सहायता समूह और जागृति स्व-सहायता समूह की महिलाएं हैं। जिन्होंने लाॅक डाउन में रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न होने पर भी हार नहीं मानी और अपने मजबूत इरादों तथा दृढ़ इच्छाशक्ति की बदौलत घर की खाली पड़ी बाड़ी और खेत में सब्जी उत्पादन करके न केवल अपने परिवार का भरण पोषण कर रही हैं बल्कि उन्हें बेच कर लाभ भी कमा रही हैं।

छत्तीसगढ़ में कांकेर जिला स्थित भानुप्रतापपुर ब्लाॅक के ग्राम मुंगवाल की दस ग्रामीण महिलाएं आसपास के गांव क्षेत्रों के लिए इन दिनों मिसाल बन गई हैं। कोरोना संक्रमण काल की विषम परिस्थितियों से लेकर बारिश के मौसम में भी महिलाएं अपने-अपने खेतों और बाड़ियो में कृषि सखी के माध्यम से सब्जी उत्पादन करके कोरोना दौर के बीते आठ महीनों में प्रतिमाह 2500 से 3000 रुपए की कमाई कर रही हैं। गांव की महिलाएं समूह के माध्यम से हरी सब्जियों जैसे तोरई, बरबट्टी, करेला, टमाटर और भिंडी का उत्पादन करके उन्हें आस-पास के स्थानीय बाजार में बेचने का कार्य करती हैं। बाजारों में इन महिलाओं की सब्जियों की मांग भी बहुत है। इसके पीछे की एक वजह लाॅकडाउन के बाद से सब्जियों की कम आवक है तो दूसरी वजह उनके द्वारा की जा रही जैविक विधि से उत्पादन है। समूह की महिलाएं बगैर किसी रासायनिक खाद का उपयोग करके सामान्य तरीके से जैविक खेती कर रही हैं।

दरअसल आज के भाग-दौड़ भरी जिंदगी में जिस तरह लोगों की सेहत को ताक पर रख कर फल-सब्जियों का उत्पादन रासायनिक तरीके से हो रहा है, वह न केवल स्वास्थ्य के लिए बल्कि जमीन की उर्वरक शक्ति के लिए भी हानिकारक हो गया है। यही वजह है कि महिला स्व-सहायता समूह की इस जैविक खाद से खेती करने के प्रयास को आमजन की सराहना भी मिल रही है। महिलाओं ने बताया जैविक खाद के लिए गोबर, पेड़ के पत्ते, सब्जियों के अवशेष को कुछ दिन तक एक जगह इकट्ठा करके रखते हैं तब जाकर यह खाद तैयार होता है और फिर इसका उपयोग खेतों में किया जाता है। इस योजना को अमल में लाने के मुख्य कारणों का खुलासा करते हुए एकता स्व-सहायता समूह की सदस्या कांति गोटा कहती हैं कि लाॅकडाउन में सब काम बंद हो गया था, जिसके बाद खाल़ी पडे़ खेत और बाड़ी को देखकर ध्यान आया कि इसमें हम सब्जी उगाकर रोज़गार प्राप्त कर सकते हैं। फिर उन्हीं खेतों में हमने सब्जी उगाने का प्रयास किया जो अब हमारे रोज़गार का मुख्य आधार बन गया है। वह कहती हैं कि कोरोनाकाल की शुरूआत में हमारे गांव क्षेत्र के साप्ताहिक बाजारों में रोक होने के कारण सब्जियों के दाम लगातार बढ़ रहे थे। ऐसे में गांव के गरीब लोगों को सब्जियां खरीदने में काफी दिक्कत हो रही थी। हमारे उत्पादन से गांव के लोगों को बहुत राहत मिली है और सभी लोग हमारी सब्जियों को अब आसानी से खरीद लेते हैं। तो सामान्य दिनों की अपेक्षा बाजार में सब्जियों के दाम ज्यादा होने के कारण हमे अच्छी कमाई भी हो रही है।


समूह की दूसरी महिला सरिता कोर्राम ने बताया कि हम सभी महिलाओं को पांच सौ रुपए में बीज और रस्सी दिया गया है। साथ ही बिहान की ओर से सब्जी उत्पादन के लिए सबसे पहले महिला कृषि मित्रों को प्रशिक्षण दिया गया। जिसके बाद वह हमारे गांव में आकर हमें प्रशिक्षित कर हमारी बाड़ी में ही तरोई, बरबट्टी, लौकी सहित अन्य हरी सब्जियों का उत्पादन करने के तरीके बताए। जागृति स्व-सहायता समूह की सदस्या हेमना जुर्री ने बताया कि मुंगवाल गांव में मैं ही सबसे ज्यादा क्षेत्र में तोरई, बरबट्टी, करेला, टमाटर और भिड़ी की खेती कर रही हूं। साथ ही भविष्य में प्रशासन की और मदद मिलती है तो अपनी मछली पालन व मुर्गी पालन करके भी अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाना चाहूंगी।


इस संबंध में मुंगवाल की कृषि मित्र जयंती परडोटी कहती हैं कि आज ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं पहले की अपेक्षा अब अधिक जागरूक हो गई हैं। सब्जी उगाने के संबंध में उनसे जब बात की गई तो चार समूह की महिलाएं तुरंत तैयार हो गई। कोरोना जैसे आपतकाल में मुंगवाल जैसे ही आसपास के अन्य गांव बनौली, बुदेली, कनेचुर की महिलाएं भी अलग-अलग तरह से सब्जियों व अन्य चीजों का उत्पादन कर लाभ प्राप्त कर रही हैं। बिहान योजना से जुड़े फिल्ड ऑफिसर नवज्योति ने बताया कि मुंगवाल गांव में 10 महिला स्व-सहायता समूह है, जिसमें से 4 समूह सब्जी उगाने का कार्य कर रही हैं। जिन्हें बिहान योजना के माध्यम से सहायता दी जा रही है। उन्होंने बताया कि भानुप्रतापपुर ब्लॉक में बिहान के माध्यम से 524 किसान सब्जी उत्पादन से जुड़े हैं और यहां 4 कलस्टर के 95 ग्रामसभा में कुल मिलाकर 1000 स्व-सहायता समूह हैं। इन सबको मिलाकर ब्लॉक लेवल पर महिला शक्ति फेडरेशन भी बनाया गया है जो महिलाओ को स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहन और मार्गदर्शन  करती है।

राज्य सरकार की सहायता से ही सही कांकेर जिले में ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं अपनी मेहनत से स्व-रोजगार की नई शुरुआत कर रही हैं। वैसे तो छत्तीसगढ़ का यह क्षेत्र अपनी कला संस्कृति और खूबसूरत वादियों के लिए पहचाना जाता है, लेकिन विकास में पिछड़ापन और नक्सलियों का प्रभाव इसके माथे पर दाग की तरह है। बावजूद इसके ग्रामीण महिलाओ का यह छोटा सा प्रयास स्वयं के साथ साथ क्षेत्र के विकास में भी सराहनीय कदम हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आपदा को अवसर में बदलने का दिया गया मंत्र का ज़मीनी स्तर पर इससे अच्छा उदाहरण और नहीं हो सकता है। 

वेदों के प्रकाश से ही संसार को ईश्वर सहित धर्म आदि का ज्ञान हुआ है

-मनमोहन कुमार आर्य

                संसार में किस सत्ता से ज्ञान उत्पन्न प्राप्त हुआ है? इस विषय का विचार करने पर ज्ञात होता है कि ज्ञान का प्रकाश ज्ञानस्वरूप, सर्वज्ञ, सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान तथा सृष्टिकर्ता परमात्मा से सृष्टि के आरम्भ में हुआ है। परमात्मा ही ने अपनी सर्वज्ञता, सर्वव्यापकता तथा सर्वशक्तिमान स्वरूप से असंख्य चेतन जीवात्माओं को उनके पाप पुण्य कर्मों का भोग कराने के लिये इस सृष्टि को रचा है। परमात्मा के असंख्य अनन्त गुणों में से एक गुण सर्वज्ञान से युक्त होना भी है। इसी को ईश्वर का सर्वज्ञ होना कहा जाता है। ईश्वर के इसी गुण से सृष्टि की रचना सम्भव हुई है। ईश्वर ही इस सृष्टि को रचकर इसका पालन व रक्षण कर रहे हैं। परमात्मा ने इस सृष्टि को ज्ञान-विज्ञानपूर्वक अपनी शक्तियों से बनाया है। वह ऐसी सृष्टि इससे पूर्व भी अनन्त बार बना चुके हैं। इसका कारण ईश्वर, जीवात्मा तथा प्रकृति का अनादि होना है। यदि ईश्वर ऐसा न करें तो वह सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकर, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान व सृष्टिकर्ता होकर भी निकम्मा कहलाये जा सकते हैं। कोई भी समर्थ मनुष्य निष्क्रिय जीवन व्यतीत करना पसन्द नहीं करता। सामथ्र्य का लाभ उसे यथास्थान उपयोग करने में ही होता है। इसी प्रकार ईश्वर ने अपनी स्वसामर्थ्य का प्रयोग इस सृष्टि को रचने, पालन करने, जीवों को उनके पाप व पुण्य कर्मों के अनुसार जन्म देने, कर्मानुसार जीवों को सुख व दुःख प्रदान करने तथा जीवों को दुःखों से छुड़ाकर मोक्ष प्रदान करने में किया है व कर रहे हंै। यह ज्ञान हमें ईश्वर से उसके वेदज्ञान सहित वेद के उच्च कोटि के विद्वान ऋषियों के ग्रन्थों के अध्ययन से प्राप्त हुआ व होता है। परीक्षा करने पर यह ज्ञान सर्वथा शुद्ध एवं दोषरहित सिद्ध होता है।

                सृष्टि के उत्पन्न होने से पूर्व सृष्टि रचना होने के कारण यह सम्पूर्ण जगत् प्रलय अवस्था में अन्धकार से आवृत्त था। सभी जीव इस अन्धकार में ढके हुए सुषुप्ति अवस्था में विद्यमान थे। पूर्व सृष्टि का प्रलय काल समाप्त होने पर परमात्मा ने इस सृष्टि को स्वशक्ति स्वज्ञान सर्वज्ञता से रचा। इस सृष्टि की रचना में आरम्भ से कार्य योग्य बनने तक 6 चतुर्युगियों का समय लगता है। यह अवधि 2 करोड़ 59 लाख वर्ष की होती है। सृष्टि रचना पूर्ण होने पर सृष्टि में अग्नि, वायु, जल आदि सर्वत्र सुलभ हो जाते हैं। भूमि पर वनस्पति, अन्न, फल एवं ओषधियां भी उत्पन्न होती हैं। प्राणी जगत की उत्पत्ति भी परमात्मा क्रमशः करते हैं। मनुष्य आदि प्राणियों के लिए वातावरण सर्वथा अनुकूल होने तथा आवश्यक पदार्थ उपलब्ध होने पर एक पर्वतीय स्थान जहां का जलवायु शीतोष्ण होता है, अर्थात् जिसमें मनुष्य आदि प्राणी जीवनयापन कर सकते हैं, मनुष्यों की उत्पत्ति होती है। प्रथम परमात्मा अमैथुनी सृष्टि करते हैं। इन स्त्री व पुरुषों में परमात्मा चार पवित्र ऋषि आत्माओं अग्नि, वायु, आदित्य तथा अंगिरा को उत्पन्न कर उन्हें क्रमश ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद के मन्त्रों का ज्ञान देते हैं। मन्त्रोच्चारण तथा उनके अर्थ भी इन ऋषियों को परमात्मा ही अपने सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी तथा जीवस्थ स्वरूप से आत्मा में प्रेरणा व साक्षात् स्वरूप के द्वारा बताता व पढ़ाता है। इन चार ऋषियों ने पहले ब्रह्मा जी को वेद पढ़ाये थे। ब्रह्माजी से ही वेदों के अध्ययन व अन्यों को अध्यापन व पढ़ाने का कार्य आरम्भ हुआ। परमात्मा की कृपा व प्रेरणा से यह व्यवस्था व्यवस्थित रूप से सम्पन्न होती है। इसके बाद ब्रह्माजी सहित सभी ऋषि व विद्वान अपने अनिवार्य कर्तव्य के रूप में दूसरे मनुष्यों को वेदाध्ययन व वेदाभ्यास कराते हैं। यह भी जानने योग्य है कि इस सृष्टि के बनने पर परमात्मा ने मनुष्यों की प्रथम उत्पत्ति तिब्बत नामी पर्वतीय स्थान पर की थी। वैदिक साहित्य मे इन सब बातों के समर्थक प्रमाण व उल्लेख पाये जाते हैं। यह वर्णन बुद्धिसंगत तथा व्यवहारिक होने से मान्य हैं।

                वेदों का अध्ययन प्रचार .करने वाले ऋषियों की मान्यता रही है कि वेद ईश्वर प्रदत्त ज्ञान है और इसमें सभी सत्य विद्यायें निहित हैं। ऋषि दयानन्द ने ऋषियों की मान्यताओं को पढ़कर तथा इसकी परीक्षा कर इस मान्यता को स्वीकार किया इसको अपने ग्रन्थों के द्वारा प्रचारित भी किया है। उन्होंने ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका तथा सत्यार्थप्रकाश में वेद सब सत्यविद्याओं का पुस्तक है, इस मान्यता को प्रमाणों सहित प्रस्तुत सिद्ध भी किया है। इसके बाद आर्यसमाज के अनेक विद्वानों ने वेद के सब सत्य विद्याओं से युक्त होने विषयक ग्रन्थ व पुस्तकें लिखी हैं जिससे ज्ञात होता है कि वेदों में बीज रूप में सब सत्य विद्याओं का वर्णन उपलब्ध है। मनुष्य वेदाध्ययन कर अपनी योग्यता बढ़ा कर किसी इष्ट विषय का विस्तार कर उसे निःशंकता से जान सकते हैं तथा उससे देश व समाज को लाभान्वित कर सकते हैं। यह भी बता दें कि वेदों में विमान का उल्लेख मिलने के साथ इसके निर्माण का भी उल्लेख हुआ है। महर्षि भारद्वाज का लिखा वैदिक विमान शास्त्र प्राचीन ग्रन्थ भी उपलब्ध है। वेद तथा दर्शन ग्रन्थों में सत्व, रज व तम गुणों वाली त्रिगुणात्मक प्रकृति से क्रमश महतत्व, अहंकार, पांच तन्मात्राओं, दश इन्द्रियों, मन व बुद्धि आदि सहित पंच महाभूतों की उत्पत्ति पर भी प्रकाश डाला गया है। दर्शन वेदों के उपांग कहलाते हैं। अतः दर्शनों का ज्ञान वेद ज्ञान का ही विस्तार है जो ऋषियों ने समाधि अवस्था को प्राप्त कर अपने विवेक तथा चिन्तन, मनन सहित अनुसंधान आदि कार्यों के द्वारा प्रस्तुत किया है।

                वेदों में संसार के मूल ईश्वर, जीव प्रकृति पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। ईश्वर के सत्यस्वरूप वा उसके गुण, कर्म स्वभाव का यथार्थ ज्ञान वेदों से ही प्राप्त होता है। चारों वेदों में ईश्वर की चर्चा आती है तथा उसके स्वरूप का वर्णन उपलब्ध होता है। ऋषि ने वेदाध्ययन कर आर्यसमाज का दूसरा नियम बनाया है जिसमें वह बताते हैं किईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनन्त, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है। उसी की उपासना करनी योग्य है। प्रथम नियम में ऋषि दयानन्द ने बताया है कि सब सत्य विद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं उनका आदि मूल परमेश्वर है। ईश्वर सर्वज्ञ है तथा वह जीवों के सभी पूर्व, वर्तमान तथा भविष्य के कर्मों का साक्षी है। जीवों के पुण्य व पाप रूपी कर्मों का फल देने तथा उन्हें दुःखों से मुक्त कराकर मोक्ष प्रदान कराने के लिये ही परमात्मा ने इस सृष्टि को बनाया है। मोक्ष प्राप्ति के लिये मनुष्य को वेदाध्ययन, योग व ध्यान साधना कर ईश्वर का साक्षात्कार करना होता है। सत्कर्म, परोपकार व दान आदि करने होते हैं। अविद्या का नाश तथा विद्या का प्रकाश करना होता है। वसुर्धव कुटुम्बकम् की भावना के अनुरूप सबसे प्रेम, मित्रवत् व स्वबन्धुत्व का व्यवहार करना होता है जैसा कि वर्तमान युग में ऋषि दयानन्द जी ने करके दिखाया है। अतः वेदों की महत्ता इस कारण भी है कि उसी ने सबसे पहले ईश्वर सहित सृष्टि में विद्यमान सभी पदार्थों का सत्यस्वरूप सभी मनुष्यों को बताया है। सब मनुष्यों के कर्तव्य व धर्म का उल्लेख भी वेदों में प्राप्त होता है। इसी लिये वेद मनुष्य के लिये अमृततृल्य विद्या के ग्रन्थ है। यदि परमात्मा वेदों का ज्ञान न देता तो संसार में व्यवस्था देखने को न मिलती जो वर्तमान में है। सभी मनुष्यों व मत-मतान्तरों पर वेदों की शिक्षाओं का प्रभाव भी देखा जाता है। जिस मत में जो भी सत्य कथन व मान्यता है, उसका आधार वेद ही है। वह मान्यतायें वेदों से ही मत-मतान्तरों में पहुंची हैं। मत-मतान्तरों की स्थापना व आविर्भाव से पूर्व भी उन सब सत्य मान्यताओं का प्रचार विश्व में था जिसका आधार वेद ही था। मत-मतान्तरों ने उन्हीं प्रचलित वेद मान्यताओं को अपने मत में स्थान दिया है। इससे वेदों का महत्व निर्विवाद है। 

                संसार में ईश्वर के अतिरिक्त जीवात्मा तथा प्रकृति का भी अस्तित्व है जिसे विज्ञान भी अब तक जान समझ नहीं पाया है। जीव के स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए ऋषि दयानन्द ने बताया है कि जो चेतन, अल्पज्ञ, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, सुख, दुःख और ज्ञान गुणवाला तथा नित्य है वहजीवकहलता है। जीव की यह परिभाषा एक लघु पुस्तकआर्योद्देश्यरत्नमालामें ऋषि दयानन्द ने दी है। यह परिभाषा जीव के स्वरूप का यथार्थ ज्ञान कराती है। सभी मनुष्यों को चाहिये कि वह जीवन के आरम्भ काल में ही सत्यार्थप्रकाश अवश्य पढ़े। इससे उनके जीवन को नई दिशा प्राप्त होगी। वह श्रेष्ठ मानव बन सकते हैं। यदि किसी कारण कोई सत्यार्थप्रकाश नहीं पढ़ता तो उसे ऋषि दयानन्द की आर्योद्देश्यरत्नमाला का अध्ययन तो अवश्य ही करना चाहिये। इस ग्रन्थ में वेदों में आये मुख्य 100 विषयों व मान्यताओं का संकलन कर उनकी संक्षिप्त व्याख्यायें की गई हैं। यह ग्रन्थ एक घंटे की अवधि में पढ़कर पूरा किया जा सकता है। इस ग्रन्थ को पढ़ने से जो लाभ होता है वह संसार की मोटी मोटी पोथियों को पढ़कर भी प्राप्त नहीं होता। सृष्टि के बारे में ऋषि दयानन्द ने इस ग्रन्थ में बताया है कि जो कर्ता (परमेश्वर) की रचना से कारण द्रव्य (सत्व, रज व तम गुणों वाली प्रकृति) को किसी संयोग विशेष से अनेक प्रकार कार्यरूप होकर वर्तमान में व्यवहार करने के योग्य होता है, वह सृष्टि कहलाती है।

                ईश्वर द्वारा सृष्टि के आरम्भ में वेदों के प्रकाश से ही मनुष्यों को इस सृष्टि के सभी रहस्यों सहित धर्म, आचार, व्यवहार आदि का भी ज्ञान हुआ था। इन सब विषयों को वेदाध्ययन सहित सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, पंचमहायज्ञ विधि, संस्कार विधि आदि ग्रन्थों का अध्ययन कर ही जाना जा सकता है। सभी मनुष्यों वा पाठकों को इन ग्रन्थों को पढ़ना चाहिये और अपनी भ्रान्तियों को दूर करना चाहिये। आर्यसमाज के विद्वानों ने सभी विषयों को समझाने के लिय ईश्वर, आत्मा, प्रकृति तथा धर्माधर्म विषयक प्रभूत साहित्य का सृजन किया है। इसे पढ़कर कोई भी मनुष्य ज्ञानी और निःशंक हो सकता है। ईश्वर, सभी ऋषि मुनियों व विद्वानों का वेद व वैदिक साहित्य को सुरक्षित रखने तथा उसे हम तक पहुंचाने में महान योगदान हैं। उन सबके प्रति हम कृतज्ञ हैं। हम ऋषि दयानन्द को भी सादर नमन करते हैं।

मैंने जिस मिट्टी में जन्म लिया वो चंदन है

—विनय कुमार विनायक
मैंने जिस मिट्टी में जन्म लिया वो चंदन है,
मैं जिस गोद में खेला हूं उसका अभिनंदन है!

जिसने ये तन दिया उस मां को मेरा नमन है,
जिस पिता का मैं पुण्य फला उनका वन्दन है!

इस मिट्टी को मेरे नाम किया जिस ईश्वर ने
उनकी शान में समर्पित मेरा संपूर्ण जीवन है!

मूक-बधिर,अंधा-लंगडा बना देना उनके बस में,
उन्हें कोटिशःप्रणाम, जिनका दान चंगा तन है!

आया इस भू पर असहाय अकेले रोते कलपते
स्वागत में देखा मां पिता मित्र कुटुम्ब धन है!

कहने को सब माया है, बेगाना सब काया है,
किन्तु इतने इंतजाम किए जिसने वे कौन हैं?

सृष्टि के आरम्भ से यह रहस्य है बना हुआ,
खोज पा लेना उनको सबसे बड़ा अन्वेषण है!

अबतक खोजे हैं जितने वो यहीं उपलब्ध थे,
अब भी जिसे खोजना बांकी वो अपनापन है!

ईश्वर,रब,खुदा, भगवान विविध नाम उनका,
ये तो सिर्फ उस अप्राप्ति का सीमा बंधन है!

ईश्वर व ईश्वर की संज्ञा भाषाई अभिव्यक्ति,
उस अदृश्य, परमसत्ता का संदेश तो अमन है!

ये मेरा अपना, वो पराया, मन का ये वहम है,
ना कोई अंत्यज,ना ब्राह्मण, ना ही दुश्मन है!

ना कोई हिन्दू, ना मुस्लिम, ना किश्चियन है,
ये धर्मभाई,वो बिरादर, मजहबी खोखलापन है!

मिट्टी का खिलौना है, ये बम,बारूद,मिसाइल,
मत इतराओ आयुधों पर, ये कागजी ईंधन है!

पशु अच्छे मानव से जिसमें धर्म,रंग-भेद नहीं,
अलग-अलग धर्म-दर्शन कहना, मानवी भ्रम है!

खोजें, ईजाद करें, अन्वेषण करें, इन्भेन्सन करें,
अपना इष्ट जिनका नाम अपनापन है,अमन है!

जिसे खोज नहीं पाया कोई पंडित,पोप, पैगम्बर,
जो सिर्फ आपके अंतर्मन में सदियों से दफन है!

धारण कर कभी गेरुआ कभी सफेद, कभी कंचन,
कभी शेरबानी वसन तन पे सबके सब कफन है!

जन्मे कितने सिकंदर, हिटलर,गजनवी, तैमूरलंग,
लंगड़े लूले नंगे बदन, छोड़ गए जो, नंगा तन है!

कैसी व्यवस्था है उनकी ना ताला ना संदूक-बंदूक,
अंततः ले जा पाता नहीं कोई एक मिट्टी कण है!

आवाज दे भेजा जिसने बेआवाज ले जाते, क्या नहीं
ये इच्छा,वासना,कामना मानवाधिकार का दमन है?

अंत में एक और भंगिमा छोड़ जाती मानव जाति,
पशु से परे मुखपर वो गहरी वेदना या मुस्कान है!
—विनय कुमार विनायक

बचपन की उपेक्षा आखिर कब तक?

‘सार्वभौमिक बाल दिवस’ 20 नवंबर, 2020 पर विशेष
-ललित गर्ग-

संपूर्ण विश्व में ‘सार्वभौमिक बाल दिवस’ 20 नवंबर, को मनाया जाता है। इस दिवस की स्थापना वर्ष 1954 में हुई थी। इस दिवस को “अंतर्राष्ट्रीय बाल अधिकार दिवस” भी कहा जाता है। बच्चों के अधिकारों के प्रति जागरूकता, अंतर्राष्ट्रीय बाल संवेदना तथा बच्चों के कल्याण, शिक्षा एवं सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए यह दिवस मनाया जाता है। बच्चों का मौलिक अधिकार उन्हें प्रदान करना इस दिवस का प्रमुख उद्देश्य है। इसमें शिक्षा, सुरक्षा, चिकित्सा मुख्य रूप से हैं। विश्वस्तर पर बालकों के उन्नत जीवन के ऐसे आयोजनों के बावजूद आज भी बचपन उपेक्षित, प्रताड़ित एवं नारकीय बना हुआ है, आज बच्चों की इन बदहाल स्थिति की जो प्रमुख वजहें देखने में आ रही है वे हैं-सरकारी योजनाओं का कागज तक ही सीमित रहना, बुद्धिजीवी वर्ग व जनप्रतिनिधियों की उदासीनता, माता-पिता की आर्थिक विवशताएं, समाज का संवेदनहीन होना एवं गरीबी, शिक्षा व जागरुकता का अभाव है।
सार्वभौमिक बाल दिवस पर बच्चों के अधिकार, कल्याण, सम्पूर्ण सुधार, देखभाल और शिक्षा के बारे में लोगों को जागरूक किया जाता है। दुनिया में सभी जगहों पर बच्चों को देश के भविष्य की तरह देखते थे। लेकिन उनका यह बचपन रूपी भविष्य आज अभाव एवं उपेक्षा, नशे एवं अपराध की दुनिया में धंसता चला जा रहा है। बचपन इतना डरावना एवं भयावह हो जायेगा, किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। आखिर क्या कारण है कि बचपन बदहाल होता जा रहा है? बचपन इतना उपेक्षित क्यों हो रहा है? बचपन के प्रति न केवल अभिभावक, बल्कि समाज और सरकार इतनी बेपरवाह कैसे हो गयी है? यह प्रश्न सार्वभौमिक बाल दिवस मनाते हुए हमें झकझोर रहे हैं।
सरकारों को कानूनों और नीतियों को बदलने और बच्चों के स्वास्थ्य की देखभाल करने के लिए व्यापक प्रयत्नों की अपेक्षा है। बच्चों को जीवित रहने और विकसित करने के लिए आवश्यक पोषण भी जरूरी है। साथ ही, बच्चों को हिंसा और शोषण से बचाना आवश्यक है। इसने बच्चों को अपनी आवाजें सुनने और अपने समाजों में भाग लेने में सक्षम बनाया जाना आदि जरूरतों को देखते हुए इस दिवस की प्रासंगिकता है। जब हम किसी गली, चैराहे, बाजार, सड़क और हाईवे से गुजरते हैं और किसी दुकान, कारखाने, रैस्टोरैंट या ढाबे पर 4-5 से लेकर 12-14 साल के बच्चे को टायर में हवा भरते, पंक्चर लगाते, चिमनी में मुंह से या नली में हवा फूंकते, जूठे बर्तन साफ करते या खाना परोसते देखते हैं और हम निष्ठुर बन रहते हैं। प्रतिकूल परिस्थितियों व गरीबी के मार से बेहाल होकर इस नारकीय कार्य करने को विवश है। कूड़ों के ढेर से शीशी, लोहा, प्लास्टिक, कागज आदि इकट्ठा करके कबाड़ की दुकानों पर बेचते हैं। इससे प्राप्त पैसों से वह अपने व परिवार का जीविकोपार्जन करते हैं। लेकिन सार्वभौमिक बाल दिवस जैसे आयोजनों के बावजूद कब तक हम बचपन को इस तरह बदहाल, प्रताड़ित एवं उपेक्षा का शिकार होने देंगे।
आज का बालक ही कल के समाज का सृजनहार बनेगा। लेकिन कमजोर नींवों पर हम कैसे एक सशक्त राष्ट्र की कल्पना कर सकते हैं? हमारे देश में भी कैसा विरोधाभास है कि हमारा समाज, सरकार और राजनीतिज्ञ बच्चों को देश का भविष्य मानते नहीं थकते लेकिन क्या इस उम्र के लगभग 25 से 30 करोड़ बच्चों से बाल मजदूरी के जरिए उनका बचपन और उनसे पढने का अधिकार छीनने का यह सुनियोजित षड्यंत्र नहीं लगता? यह कैसी विडम्बना है कि जब इस उम्र के बच्चों को स्कूल में होना चाहिए, खानदानी व्यवसाय के नाम पर एक पूरी पीढ़ी को शिक्षा, खेलकूद और सामान्य बाल सुलभ व्यवहार से वंचित किया जा रहा है और हम अपनी पीठ थपथपाए जा रहे हैं। बच्चों को बचपन से ही आत्मनिर्भर बनाने के नाम पर हकीकत में हम उन्हें पैसा कमाकर लाने की मशीन बनाकर अंधकार में धकेल रहे हैं।
पारिवारिक काम एवं आर्थिक बदहाली के नाम पर अब बचपन की जरूरतों को दरकिनार कर खुलेआम बच्चों से काम कराया जा सकता है, नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने इन स्थितियों पर कड़ा विरोध व्यक्त किया है। कुछ बच्चें अपनी मजबूरी से काम करते हैं तो कुछ बच्चों से जबरन काम कराया जाता है। यदि गौर करें तो हम पाएंगे कि किसी भी माता-पिता का सपना अपने बच्चों से काम कराना नहीं होता। हालात और परिस्थितियां उन्हें अपने बच्चों से काम कराने को मजबूर कर देती हैं। पर क्या इसी आधार पर उनसे उनका बचपन छीनना और पढने-लिखने की उम्र को काम की भट्टी में झोंक देना उचित है? ऐसे बच्चे अपनी उम्र और समझ से कहीं अधिक जोखिम भरे काम करने लगते हैं। वहीं कुछ बच्चे ऐसी जगह काम करते हैं जो उनके लिए असुरक्षित और खतरनाक होती है जैसे कि माचिस और पटाखे की फैक्टरियां जहां इन बच्चों से जबरन काम कराया जाता है। इतना ही नहीं, लगभग 1.2 लाख बच्चों की तस्करी कर उन्हें काम करने के लिए दूसरे शहरों में भेजा जाता है। इतना ही नहीं, हम अपने स्वार्थ एवं आर्थिक प्रलोभन में इन बच्चों से या तो भीख मंगवाते हैं या वेश्यावृत्ति में लगा देते हैं।
देश में सबसे ज्यादा खराब स्थिति है बंधुआ मजदूरों की जो आज भी परिवार की समस्याओं की भेंट चढ़ रहे हैं। चंद रुपयों की उधारी और जीवनभर की गुलामी बच्चों के नसीब में आ जाती है। महज लिंग भेद के कारण कम पढ़े-लिखे और यहां तक कि शहरों में भी लड़कियों से कम उम्र में ही काम कराना शुरू कर दिया जाता है या घरों में काम करने वाली महिलाएं अपनी बेटियों को अपनी मदद के लिए साथ ले जाना शुरू कर देती हैं।  कम उम्र में काम करने वाले बच्चे शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक रूप से कमजोर होते हैं। साथ ही उनकी सेहत पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। इतना ही नहीं, कभी-कभी उनका शारीरिक विकास समय से पहले होने लगता है जिससे उन्हें कई बीमारियों का सामना करना पड़ता है। इन बच्चों को न पारिवारिक सुरक्षा दी जाती है और न ही सामाजिक सुरक्षा। बाल मजदूरी से बच्चों का भविष्य अंधकार में जाता ही है, देश भी इससे अछूता नहीं रहता क्योंकि जो बच्चे काम करते हैं वे पढ़ाई-लिखाई से कोसों दूर हो जाते हैं और जब ये बच्चे शिक्षा ही नहीं लेंगे तो देश की बागडोर क्या खाक संभालेंगे? इस तरह एक स्वस्थ बाल मस्तिष्क विकृति की अंधेरी और संकरी गली में पहुँच जाता है और अपराधी की श्रेणी में उसकी गिनती शुरू हो जाती हैं। वर्तमान संदर्भ में आधुनिक पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन शैली पर यह एक ऐसी टिप्पणी है जिसमें बचपन की उपेक्षा को एक अभिशाप के रूप में चित्रित किया गया है। सच्चाई यह है कि देश में बाल अपराधियों की संख्या बढ़ती जा रही है। बच्चे अपराधी न बने इसके लिए आवश्यक है कि अभिभावकों और बच्चों के बीच बर्फ-सी जमी संवादहीनता एवं संवेदनशीलता को फिर से पिघलाया जाये। फिर से उनके बीच स्नेह, आत्मीयता और विश्वास का भरा-पूरा वातावरण पैदा किया जाए। श्रेष्ठ संस्कार बच्चों के व्यक्तित्व को नई पहचान देने में सक्षम होते हैं। अतः शिक्षा पद्धति भी ऐसी ही होनी चाहिए। सरकार को बच्चों से जुड़े कानूनों पर पुनर्विचार करना चाहिए एवं बच्चों के समुचित विकास के लिये योजनाएं बनानी चाहिए। ताकि इस बिगड़ते बचपन और भटकते राष्ट्र के नव पीढ़ी के कर्णधारों का भाग्य और भविष्य उज्ज्वल हो सकता है। ऐसा करके ही हम सार्वभौम बाल दिवस को मनाने की सार्थकता हासिल कर सकेंगे।
प्रे्षकः

बैठक है वीरान !!

चूस रहे मजलूम को, मिलकर पुलिस-वकील !
हाकिम भी सुनते नहीं, सच की सही अपील !!

जर्जर कश्ती हो गई, अंधे खेवनहार !
खतरे में सौरभ दिखे, जाना सागर पार !!

थोड़ा-सा जो कद बढ़ा, भूल गए वो जात !
झुग्गी कहती महल से, तेरी क्या औकात !!

बूढ़े घर में कैद हैं, पूछ रहे न हाल !
बचा-खुचा खाना मिले, जीवन हैं बेहाल !!

हत्या-चोरी लूट से, कांपे रोज समाज !
रक्त रंगे अखबार हम, देख रहे है आज !!

किसे सुनाएँ वेदना, जोड़े किस से आस !
नहीं खून को खून का, सौरभ जब अहसास !!

आकर बसे पड़ोस में, ये कैसे अनजान !
दरवाजे सब बंद है, बैठक है वीरान !!

यह सृष्टि ईश्वर ने जीवों के सुख तथा मोक्ष के लिये बनाई है

मनमोहन कुमार आर्य

                एक अदृश्य सत्ता से यह जगत बना है। उसी सत्ता ने हम जीवात्माओं के शरीर भी बनायें हैं और इस सृष्टि को देखने भोग करने में सहायक हमें दो आंखे प्रदान की हैं। इस सृष्टि को देखकर विचारशील मनुष्यों के मन, मस्तिष्क तथा बुद्धि में इस सृष्टि के कर्ता वा रचयिता को जानने की इच्छा उत्पन्न होती है। इस स्वाभाविक प्रश्न का तर्क एवं युक्तियों से सत्य सिद्ध होने वाला ज्ञान विज्ञान हमें मतमतान्तरों इतर पुस्तकों में सरलता से प्राप्त नहीं होता। इसका यथार्थ उत्तर है कि यह सृष्टि इसके कर्ता रचयिता सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक तथा सर्वज्ञ परमात्मा से बनी है। परमात्मा के अतिरिक्त संसार में ऐसी कोई सत्ता नहीं है जो इस सृष्टि को उत्पन्न कर इसका संचालन पालन कर सके। विगत 1 अरब 96 करोड़ वर्षों से इस सृष्टि की रचना होकर पालन हो रहा है और इसमें एक सुव्यवस्था देखने को मिलती है। इस सृष्टि से पुराना इस संसार में कुछ भी नहीं है। इतनी पुरानी सृष्टि आज भी नवीन ही दिखती है। यह ईश्वर का ईश्वरत्व व महानता का बोध कराती है। सृष्टि कितनी विशाल है इसका उल्लेख हमारे वैज्ञानिक करते हैं। इससे ईश्वर की रचना शक्ति सहित सामथ्र्य एवं गुणों का भी बोध होता है। ईश्वर को यथार्थ स्वरूप में जानना संसार के प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है। इसका प्रामाणिक ज्ञान हमें ईश्वरीय ज्ञान चार वेदों सहित ऋषियों के बनाये ग्रन्थ दर्शन, उपनिषद, मनुस्मृति आदि ग्रन्थों एवं ऋषि दयानन्द के सत्यार्थप्रकाश एवं ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका आदि में प्राप्त होता है जो सभी सृष्टि रचना पर प्रकार डालने के साथ ईश्वर से ही इसे रचा हुआ बताते हैं। यह सभी ग्रन्थ और इनके कथ्य इसलिये प्रामाणित हैं कि यह सभी ग्रन्थ ऋषियों व योगियों की रचनायें हैं जिन्होंने ईश्वर का साक्षात्कार किया हुआ था तथा जिनकी प्रतिज्ञा होती थी कि वह केवल सत्य का ही आचरण एवं प्रचार करेंगे। इस प्रतिज्ञा व आचरण से ही वह ऋषि व योगी बनते थे।

                वेद संसार के सबसे अधिक प्रामाणिक ग्रन्थ हैं। इसका कारण सृष्टि के आरम्भ में अमैथुनी सृष्टि में उत्पन्न चार ऋषियों को परमात्मा से वेदों के ज्ञान को प्राप्त होना है। ऋषि दयानन्द ने इस तथ्य को अपने ग्रन्थ में तर्क एवं युक्ति के साथ समझाया है। वेदों में सृष्टि रचना विषयक जो तथ्य बताये हैं उस पर भी एक दृष्टि डाल लेते हैं। ऋग्वेद 10.129.7 मन्त्र में कहा गया है कि हे मनुष्य! जिस से यह विविध सृष्टि पकाशित हुई है, जो धारण और प्रलयकर्ता है, जो इस जगत् का स्वामी है, जिस व्यापक में यह सब जगत् उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय को प्राप्त होता है, सो परमात्मा है। उस को तू जान और दूसरे को सृष्टिकर्ता मत मान। ऋग्वेद के एक अन्य मन्त्र में बताया गया है कि यह सब जगत् सृष्टि से पहले अन्धकार से आवृत, रात्रिरूप में जानने के अयोग्य, आकाशरूप सब जगत् तथा तुच्छ अर्थात् अनन्त परमेश्वर के सम्मुख एकदेशी आच्छादित था। पश्चात् परमेश्वर ने अपने सामथ्र्य से कारणरूप से कार्यरूप कर दिया। ऋग्वेद मन्त्र 10.129.1 में परमात्मा उपदेश करते हैं हे मनुष्यों! जो सब सूर्यादि तेजस्वी पदार्थों का आधार और जो यह जगत् हुआ है और आगे अनन्त काल तक होगा उस का एक अद्वितीय पति परमात्मा इस जगत् की उत्पत्ति के पूर्व विद्यमान था और जिस ने पृथिवी से लेके सूर्यपर्यन्त जगत् को उत्पन्न किया है, उस परमात्म देव की प्रेम से भक्ति किया करें। यजुर्वेद के मन्त्र 31.2 में परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे मनुष्यों! जो सब में पूर्ण पुरुष और जो नाश रहित कारण और जीव का स्वामी जो पृथिव्यादि जड़ और जीव से अतिरिक्त है, वही पुरुष इस सब भूत भविष्यत् और वर्तमानस्थ जगत् का बनाने वाला है। इस प्रकार वेदों में अनेक प्रकार से सृष्टि की उत्पत्ति के विषय को प्रस्तुत कर उसे ईश्वर से उत्पन्न व संचालित बताया है। यह विवरण स्वतः प्रमाण कोटि का विवरण है। ऐसा वेदों के मर्मज्ञ एवं महान ऋषि दयानन्द सरस्वती ने अपने विशद ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर कहा है। सृष्टि के आरम्भ से ही वेदों को स्वतः प्रमाण मानने की परम्परा रही है जो सर्वथा उचित है।

                सृष्टि बनाने वाले ईश्वर का सत्यस्वरूप कैसा है, इस पर ऋषि दयानन्द ने प्रकाश डाला है। वह लिखते हैं कि ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनन्त, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है। इस ईश्वर से ही यह सृष्टि जिसमें प्राणी जड़ चेतन समस्त जगत सम्मिलित है, उत्पन्न हुआ है। ऋषि दयानन्द ने सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ में ईश्वर को प्रत्यक्ष एवं अनुमान आदि प्रमाणों के आधार पर सत्य सिद्ध किया है। ऋषि दयानन्द उच्च कोटि के योगी थे। वह समाधि को सिद्ध किये हुए थे। उन्होंने सृष्टि के रचयिता, पालन व प्रलयकर्ता ईश्वर का साक्षात्कार भी किया था। वह अपने ग्रन्थों में सर्वत्र इस सृष्टि को ईश्वर से उत्पन्न व संचालित मानते हैं। अतः यदि कोई आचार्य, विद्वान व वैज्ञानिक ऐसा नहीं मानता तो यही कहना पड़ता है कि वह वेद परम्पराओं सहित योगाभ्यास आदि से रहित होने के कारण अविद्या व अज्ञान से युक्त है। ईश्वर व सृष्टि के रहस्यों को बिना वेदाध्ययन एवं योगाभ्यास के ठीक ठीक नहीं जाना जा सकता। मत-मतान्तरों की अविद्यायुक्त बातों से भ्रम ही उत्पन्न होते हैं। अतः कोई वेदेतर मत मनुष्य को ईश्वर, आत्मा और सृष्टि विषयक सत्य ज्ञान नहीं करा सकता। ऐसा वेदाध्ययन करने से स्पष्ट होता है।

                प्रकृति, जीव और परमात्मा यह तीन सत्तायें व पदार्थ अज अर्थात् अजन्मा हैं। इनका जन्म व उत्पत्ति कभी नहीं होती। इसीलिए इन्हें अनादि व नित्य कहा जाता है। यह तीन पदार्थ ही सब जगत के कारण हैं। इन्हीं से यह जगत बना है। इन तीन पदार्थों का कारण अन्य कोई पदार्थ व सत्ता नहीं है। इस अनादि प्रकृति व इससे बनी सृष्टि का भोग अनादि जीव मनुष्यादि जन्म लेकर करते हैं और इसमें फंसते अर्थात् बन्धनों को प्राप्त होते हैं। परमात्मा प्रकृति का भोग नहीं करता। अतः वह प्रकृति में नहीं फंसता अर्थात् वह कर्म फल के अनुसार मिलने वाले सुख व दुःख को प्राप्त नहीं होता। ऋषि दयानन्द ने सांख्य दर्शन के आधार पर प्रकृति का लक्षण भी लिखा है। वह लिखते हैं कि सत्व, रज और तम तीन वस्तुओं से मिलकर जो एक सघात है उस का नाम प्रकृति है। इस प्रकृति से महतत्व बुद्धि, उस से अहंकार, उससे पांच तन्मात्रा सूक्ष्म भूत और दश इन्द्रियां तथा ग्यारहवां मन, पांच तन्मात्राओं से पृथिव्यादि पांच भूत तथा चैबीस और पच्चीसवां पुरुष अर्थात् जीव और परमेश्वर हैं। इन में से प्रकृति अविकारिणी है और महतत्व, अहंकार तथा पांच सूक्ष्म भूत प्रकृति का कार्य एवं इन्द्रियां मन और स्थूल भूतों का कारण हैं। पुरुष न किसी की प्रकृति, न उपादान कारण और न किसी का कार्य है। इसका अर्थ है कि प्रकृति में विकार होकर ही यह दृश्य जड़ जगत सूर्य, चन्द्र, पृथिवी, अग्नि, जल, वायु, आकाश, मन, बुद्धि, मनुष्य शरीर आदि बने हैं। परमात्मा तथा जीव के मूल स्वरूप में विकार कदापि नहीं होता। संसार में ईश्वर, जीव तथा प्रकृति तीन अनादि व नित्य पदार्थ है। हमारी यह सृष्टि प्रवाह से अनादि है। परमात्मा ने यह सृष्टि अपनी शाश्वत प्रजा जीवों के पूर्वजन्मों के कर्मों के सुख व दुःख रूपी फल भोग कराने के लिये बनाई है। जीव कर्म करते हैं और इसमें फंसते हैं। जो मनुष्य आसक्ति रहित होकर वेद विहित ईश्वरोपासना, अग्निहोत्र यज्ञ, पितृयज्ञ सहित परोपकार व दान आदि कर्मों को करते हैं वह योगाभ्यास कर जन्म व मरण के बन्धनों से छूट कर परम पद आनन्द से युक्त मोक्ष को प्राप्त होते हैं। यही जीव की परम गति होती है। यही सब जीवों का लक्ष्य है। इसीलिये परमात्मा जीवों को भोग व अपवर्ग अर्थात् मोक्ष प्रदान करने के लिये इस सृष्टि की रचना करते हैं। यह क्रम अनादि काल से चल रहा है और अनन्त काल तक चलेगा। यह ज्ञान वेद व वैदिक साहित्य से इतर कहीं प्राप्त नहीं होता। सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ से वेदों के यथार्थस्वरूप का बोध होता है। हमें अपनी सभी जिज्ञासाओं के समाधान के लिये सत्यार्थप्रकाश व वेद आदि ग्रन्थों को पढ़ना चाहिये और मुक्ति के लिये प्रयत्न करने चाहिये। इसी में विश्व के प्रत्येक मनुष्य का हित व लाभ है।

पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ जातिगत विभेदों से ऊपर है ‘छठ’ महापर्व

  • मुरली मनोहर श्रीवास्तव

कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकति जाय… बहंगी लचकति जाय…
बात जे पुछेलें बटोहिया बहंगी केकरा के जाय ? बहंगी केकरा के जाय ?…..

पर्यावरण संरक्षण की बात चल पड़ी है। प्रकृति के विभिन्न तत्वों के महत्ता को फिर से लोग समझने लगे हैं। हमारी सनातन परंपरा में प्रकृति पूजा का प्रचलन शुरु से है और वर्ष के कोई न कोई दिन देवता पूजन के साथ-साथ प्रकृति पूजन से जुड़ा है। इस पृथ्वी के सजीवों की साक्षात निर्भरता सूर्य पर टिकी हुई है। उनके आराधना का पर्व पवित्रता के साथ-साथ सादगी का प्रतीक भी है। वैसे तो भारत देश में सभी त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। छठ पूजा हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। मुख्य रूप से यह त्योहार बिहार में मनाया जाता है लेकिन धीरे-धीरे यह भारत के सभी हिस्सों में मनाया जाने लगा है। इसके अलावे भारतवंशियों द्वारा विदेशों में भी मनाया जाता है। हिन्दुओं द्वारा मनाये जाने वाले इस पर्व को इस्लाम सहित अन्य धर्मावलम्बी भी मनाते हैं।
छठ पूजा हिंदू धर्म का प्राचीन त्योहार है जो सूर्य भगवान को समर्पित है। छठ त्योहार के वास्तविक उत्पत्ति के बारे में प्रमाण मिनते हैं। प्राचीन ऋग्वेद ग्रंथों और सूर्य की पूजा के लिए विभिन्न प्रकार की चर्चाएं मिलती भजन के रुप में मिलती है।
सुख, समृद्धि का व्रत है छठः
भारत में सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है छठ, मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र माह में और दूसरी बार कार्तिक माह में चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है। चार दिवसीय इस त्योहार की शुरूआत चतुर्थी से होती है और सप्तमी को इसका अंतिम दिन होता है। सूर्य देव से जुड़े इस पर्व में महिलाएं पति की लंबी आयु और संतान सुख के साथ-साथ परिवार में सुख-समृद्धि के लिए इस व्रत को रखती हैं। छठ पूजा सूर्य और उनकी पत्नी उषा को समर्पित है। छठ पूजा की परंपरा और उसके महत्व के बारे में कई उल्लेुख मिलते हैं। माना जाता है कि यह व्रत सीता तथा द्रौपदी ने भी रखा था। इस पर्व में सुगा और केला का अलग ही महत्व है। तभी तो संगीत में इसकी व्याख्या सुनने को मिलती है।
छठ के त्योइहार की शुरुआत महाभारत काल से मानी जाती है। द्रौपदी और पांडव ने अपनी समस्याओं को सुलझाने और अपने खोए राज्य को पुनः प्राप्त करने के लिए छठ त्योहार करना शुरु किया था। यह भी माना जाता है कि छठ पूजा पहली बार सूर्य पिता कर्ण द्वारा की गई थी। सूर्यपुत्र कर्ण प्रतिदिन घंटों नदी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया करते थे जिसकी वजह से वह महान योद्धा भी बने। उस जमाने से चली आ रही छठ में अर्घ्य दान की परंपरा प्रचलित है। वहीं यह भी माना जाता है कि जब पांडव अपना सारा राजपाठ हार गए तब द्रोपदी ने छठ व्रत रखकर पांडवों को उनका सारा राजपाठ वापस दिलवाया था। वहीं एक और कहानी यह है कि, भगवान राम और सीता ने 14 साल के निर्वासन के बाद अयोध्या लौटने के तुरंत बाद छठ पूजा की थी। उसके बाद यह महत्वपूर्ण और पारंपरिक हिंदू त्योहार के रुप में हर घर में मनाया जाने लगा।
36 घंटे का व्रत है छठः
इस पर्व की तैयारी दिवाली के बाद ही बड़े उत्साह से कर दी जाती है। छठ पूजा चार दिवसीय उत्सव है। इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है। इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। इस दौरान वे पानी भी ग्रहण नहीं करते। पूजा की शुरुआत पहले दिन सेन्धा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में ली जाती है। अगले दिन से उपवास आरम्भ होता है। व्रति दिनभर अन्न-जल त्याग कर शाम करीब सात बजे से गुड़ में खीर बनाकर, पूजा करने के उपरान्त प्रसाद ग्रहण करते हैं, जिसे खरना कहते हैं। तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को नदी में खड़ा होकर अर्घ्य यानी दूध अर्पण करते हैं। अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हैं। पूजा में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है।
कठिन तपस्या का व्रत छठः
शास्त्रों के अनुसार ऐसा भी कहा गया है की इस दिन माता छठी यानि सूर्य की पत्नी की पूजा होती है। इस पूजा के जरिये हम भगवान सूर्य को धन्यवाद देते हैं और उनसे अपने अच्छे स्वास्थ्य और रोग मुक्त रहने की कामना करते हैं। जिन घरों में यह पूजा होती है। वहां भक्तिगीत गाकर ही सभी कार्यों को व्रति किया करते हैं।
छठ उत्सव के केंद्र में छठ व्रत है जो एक कठिन तपस्या की तरह है। भोजन के साथ ही सुखद शैय्या का भी त्याग किया जाता है। पर्व के लिए बनाये गये कमरे में व्रति फर्श पर एक कम्बल या चादर के सहारे ही रात बिताते हैं। इस उत्सव में शामिल होने वाले लोग नये कपड़े पहनते हैं, जिनमें किसी प्रकार की सिलाई नहीं की गयी होती है। महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहनकर छठ व्रत करते हैं। इस पर्व को करने के लिए एक मान्यता यह भी है कि जब तक अगली पीढ़ी की किसी विवाहित महिला इसके लिए तैयार न हो जाए। तब तक इसे करते रहना होता है।
एक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य के देव सूर्य मंदिर में छठी मैया की आराधना की थी। तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी। कहते हैं कि उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन भी शुरू हो गया।
विश्वकर्मा ने किया देव सूर्य मंदिर का निर्माणः
बिहार के औरंगाबाद जिले के देव स्थित प्राचीन सूर्य मंदिर अनोखा है। ऐतिहासिक त्रेतायुगीन पश्चिमाभिमुख सूर्य मंदिर अपनी विशिष्ट कलात्मक भव्यता के साथ-साथ अपने इतिहास के लिए भी विख्यात है। औरंगाबाद से 18 किलोमिटर दूर देव स्थित सूर्य मंदिर करीब सौ फीट ऊंचा है। मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण त्रेता युग में स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने किया था। जनश्रुतियों के मुताबिक, एक राजा ऐल एक बार देव इलाके के जंगल में शिकार खेलने आए थे। शिकार खेलने के समय उन्हें प्यास लगी। पानी की तलाश करते हुए राजा के हाथ में जहां-जहां पानी का स्पर्श हुआ, वहां का कुष्ठ ठीक हो गया। काले और भूरे पत्थरों की नायाब शिल्पकारी से बना यह सूर्य मंदिर ओड़िशा के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर से मिलता-जुलता है। मंदिर के निर्माणकाल के संबंध में मंदिर के बाहर लगे एक शिलालेख पर ब्राह्मी लिपि में लिखित और संस्कृत में अनूदित एक श्लोक के मुताबिक, इस मंदिर का निर्माण 12 लाख 16 हजार वर्ष त्रेता युग के बीत जाने के बाद इला-पुत्र पुरुरवा ऐल ने आरंभ करवाया। छठ पर्व के मौके पर यहां लाखों लोग भगवान भास्कर की अराधना के लिए जुटते हैं, कहा जाता है कि जो भक्त मन से इस मंदिर में भगवान सूर्य की पूजा करते हैं, उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

*ॐ सूर्य देवं नमस्तेस्तु गृहाणं करुणा करं | *
अर्घ्यं च फलं संयुक्त गन्ध माल्याक्षतैयुतम् ||

विदेशों में भी छठ मनाया जाता हैः
सृष्टि और पालन शक्ति के कारण सूर्य की उपासना सभ्यता के विकास के साथ विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग रूप में प्रारम्भ हो गयी, लेकिन देवता के रूप में सूर्य की वन्दना का उल्लेख पहली बार ऋगवेद में मिलता है। इसके बाद अन्य सभी वेदों के साथ ही उपनिषद् आदि वैदिक ग्रन्थों में इसकी चर्चा प्रमुखता से हुई है। निरुक्त के रचियता यास्क ने द्युस्थानीय देवताओं में सूर्य को पहले स्थान पर रखा है। उत्तर वैदिक काल के अन्तिम कालखण्ड में सूर्य के मानवीय रूप की कल्पना होने लगी। इसने कालान्तर में सूर्य की मूर्ति पूजा का रूप ले लिया। वैसे तो छठ बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश का मुख्य पर्व माना जाता है। लेकिन इसकी महत्ता इतनी बढ़ी की अब यह नेपाल के कुछ हिस्सों में विस्तृत रूप से मनाया जाता है इसके अलावे यह मॉरीशस, गुयाना, फिजी, त्रिनिडाड और टोबैगो सूरीनाम और जमैका में भी मनाया जाता है। इतना ही नहीं छठ देश के लगभग सभी हिस्सों सहित दुनिया के जिन देशों में भारतीय मूल के लोग निवास कर रहे हैं, वो निर्धारित तिथि पर छठ पूजा जरुर करते हैं या फिर जिनको संभव हुआ वो अपने गांव में आकर छठ पूजा करने के लिए जरुर आते हैं।
वेद-पुराणों में भी छठ की है चर्चाः
पौराणिक काल आते-आते सूर्य पूजा का प्रचलन और अधिक बढ़ गया। भारत में सूर्योपासना ऋग वैदिक काल से होती आ रही है। सूर्य और इसकी उपासना की चर्चा विष्णु पुराण, भगवत पुराण, ब्रह्मा वैवर्त पुराण आदि में विस्तार से मिलती है। मध्य काल तक छठ सूर्योपासना के व्यवस्थित पर्व के रूप में प्रतिष्ठित हो गया, जो आज तक चलता आ रहा है।
पौराणिक काल में सूर्य को आरोग्य देवता भी माना जाता है। सूर्य की किरणों में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता पायी जाती है। तभी तो भगवान कृष्ण के पौत्र शाम्ब को कुष्ठ रोग हो गया था।जिसका निवारण भी इसी व्रत से माना जाता है। छठ पर्व की एक अलग महत्ता है कि क्या राजा क्या रंक सभी एक साथ इस पर्व को मनाते हैं। इस अनुष्ठान के प्रति दिनोंदिन लोगों का लगाव बढ़ता ही जा रहा है। आस्था के इस पर्व में पूजा के साथ बच्चे जमकर इसको इंज्वॉय भी करते हैं।

एससीओ में भारत की बढ़ती भूमिका

अरविंद जयतिलक
गत दिवस पहले शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के 20 वें वर्चुअल शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने द्विपक्षीय मुद्दे उठाने पर जिस तरह पाकिस्तान की लानत-मलानत की, देखें तो वह उसी का पात्र भी है। पाकिस्तान अच्छी तरह अवगत है कि ऐसा करना एससीओ चार्टर का उलंघन है। फिर भी वह अपनी आदत से बाज नहीं आ रहा है। बता दें कि सम्मेलन में इमरान खान ने कश्मीर का नाम लिए बिना कहा कि वह विवादित क्षेत्र की स्थिति में बदलाव करने की किसी देश की अवैध एवं एकतरफा कार्रवाई का विरोध करता है। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के कड़े तेवर से उनकी बोलती बंद हो गयी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्चुअल सम्मेलन को संबोधित करते हुए चीन और पाकिस्तान को सख्त संदेश देते हुए कहा कि एससीओ के सभी सदस्य देश एकदूसरे की सार्वभौमिकता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करें। प्रधानमंत्री ने सदस्य देशों के बीच संपर्क मजबूत करने में भारत की सहभागिता का उल्लेख करते हुए कहा कि एससीओ क्षेत्र से भारत का घनिष्ठ ऐतिहासिक-सांस्कृतिक संबंध है। हमारे पूर्वजों ने इस साझा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को निरंतर संपर्कों से जीवंत बनाए रखा है। प्रधानमंत्री मोदी ने संयुक्त राष्ट्र के मूल लक्ष्य को अधूरा बताते हुए कोविड-19 महामारी की आर्थिक तथा सामाजिक पीड़ा से जूझ रहे विश्व को उसकी व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन पर जोर देने की भी अपील की। उल्लेखनीय है कि इस बैठक में रुसी राष्ट्रपति, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान समेत विश्व के कई नेता शामिल हुए। एससीओ में भारत की दमदार भूमिका से स्पष्ट है कि मध्य एशिया में भारत की भू-राजनीतिक स्थिति लगातार मजबूत हो रही है और व्यापार, उर्जा, अर्थव्यवस्था, संस्कृति, पर्यटन, पर्यावरण और सुरक्षा क्षेत्र को पंख लग रहा है। सदस्य देशों के बीच द्विपक्षीय रक्षा सहयोग का दायरा व्यापक हो रहा है और नियमित आदान-प्रदान, यात्राएं, विचार-विमर्श, सैन्यकर्मियों का प्रशिक्षण सैन्य तकनीकी सहयोग तथा संयुक्त अभ्यास जैसे कार्यक्रमों को बढ़ावा मिल रहा है। उम्मीद है कि यह सम्मेलन आर्थिक विकास को गति देने के साथ व्यापार, निवेश, अंतरिक्ष, स्वास्थ्य सुविधाओं, कृषि, सूचना एवं संचार प्रौद्यागिकी के क्षेत्र में विस्तार को नया आयाम देगा। जाहिर है कि मध्य एशिया बहुत बड़ा उपभोक्ता बाजार है और इस क्षेत्र में अब भारत के लिए स्वयं को स्थापित करने में मदद मिलेगी। साथ ही भारत के लिए इस क्षेत्र में उभर रही आतंकी गतिविधियों अंतर्राष्ट्रीय खतरों, अवैध ड्रग कारोबार, जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए सभी सदस्य देशों को गोलबंद करना आसान होगा। यह तथ्य है कि भारत अरसे से विभिन्न क्षेत्रीय मंचों के जरिए आतंकवाद के विरुद्ध आवाज उठाता रहा है। लेकिन अब जाकर उसे भरपूर तवज्जों मिलनी शुरु हुई है। इसका पूरा श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को जाता है। उल्लेखनीय है कि शंघाई सहयोग संगठन एक ताकतवर संगठन है। इस मंच के जरिए भारत न सिर्फ पाकिस्तानी और चीनी सैन्य गतिविधियों पर निगरानी रख सकेगा बल्कि आतंकी समूहों की आवाजाही पर भी व्यापक दृष्टि रखने में सक्षम होगा। ध्यान देना होगा कि आतंकवाद से सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि मध्य एशिया समेत संपूर्ण विश्व लहूलुहान है। ऐसे में शंघाई सहयोग संगठन का आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होना उम्मीद जगाने वाला है। गौर करें तो यह संगठन तकरीबन हर शिखर सम्मेलन में आतंकवाद के सभी रुपों की भत्र्सना की है और काउंटर टेरोरिज्म कन्वेंशन को लेकर सहमति जतायी है। संगठन का उद्देश्य सदस्य देशों के बीच आपसी सहयोग एवं विकास को स्थापित करना, अच्छे पड़ोसी की तरह रहना और समय पर एकदूसरे के काम आना है। इसके अलावा क्षेत्रीय शांति सुरक्षा को बढ़ाना, भविष्य में आने वाली आर्थिक राजनैतिक समस्याओं का एकजुटता के साथ सामन करना, आपसी वाणिज्य और व्यापार को बढ़ावा देना, विज्ञान एवं तकनीकी के क्षेत्र में आपसी सहयोग को बढ़ाना, संस्कृति, शिक्षा, उर्जा, परिवहन, पर्यावरण सुरक्षा जैसे मसलों पर आपसी सहयोग से कार्य करना तथा विश्व शांति के लिए प्रयास करना भी है। गौरतलब है कि 2018 में चीन के तटीय शहर किंगदाओ में संपन्न शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में भारत को पहली शिरकत करने का मौका मिला। इससे पहले वह बतौर पर्यवेक्षक की भूमिका में था। कजाकिस्तान की राजधानी अस्ताना में संपन्न सम्मेलन में भारत की स्थायी सदस्यता पर मुहर लगी। गौर करें तो पहले संगठन के सदस्य राष्ट्रों का कुल क्षेत्रफल 30 मिलियन 189 हजार वर्ग किमी और जनसंख्या तकरीबन 1.5 बिलियन था किंतु भारत के जुड़ जाने से संगठन का क्षेत्रफल व जनसंख्या व्यापक हो गया है। आज की तारीख में यह संगठन विश्व की तकरीबन आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाला संगठन बन चुका है। चूंकि इस संगठन ने संयुक्त राष्ट्र संघ के अलावा यूरोपिय संघ, आसियान, काॅमनवेल्थ और इस्लामिक सहयोग संगठन से भी संबंध स्थापित किए हैं इस लिहाज से संगठन का सदस्य होने के नाते भारत की भूमिका महत्वपूर्ण हो गयी है। गौर करें तो अभी तक संगठन पर चीन का वर्चस्व रहा है लेकिन चूंकि भारत की अर्थव्यवस्था चीन के मुकाबले तेजी से आगे बढ़ रही है ऐसे में संगठन में भारत की भूमिका का विस्तार होना तय है। कुटनीतिज्ञों की मानें तो भारत की भूमिका बढ़ने से चीन के व्यापक प्रभाव में कमी और दृष्टिकोण में बदलाव आएगा। एससीओ के दबाव के कारण वह आतंकिस्तान बन चुके पाकिस्तान को प्रश्रय देने से भी बचेगा। चूंकि एससीओ के सदस्य देशों का भारत से अति निकटता है ऐसे में संभव है कि संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की स्थायी सदस्यता को लेकर चीन के रुख में बदलाव आए। ऐसा इसलिए कि संघाई सहयोग संगठन के सभी सदस्य देश मसलन रुस, कजाखिस्तान, किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान पहले से ही संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन कर चुके हैं। संघाई सहयोग संगठन के इतिहास में जाएं तो अप्रैल, 1996 में शंघाई में हुई एक बैठक में चीन, रुस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान आपस में एकदूसरे के नस्लीय और धार्मिक तनावों से निपटने के लिए सहयोग करने को राजी हुए। तब इस संगठन को शंघाई फाइव कहा गया। जून 2001 में चीन, रुस और चार मध्य एशियाई देशों कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के नेताओं ने शंघाई संगठन सहयोग शुरु किया और धार्मिक चरमपंथ से निपटने के अलावा व्यपार व निवेश को बढ़ाने के लिए समझौता किया। शंघाई फाइव के साथ उजबेकिस्तान के आने के बाद इस समूह को शंघाई सहयोग संगठन कहा गया। यह संगठन एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। इसका कार्यालय बीजिंग में है और क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना ताशकंद में है। राज्य प्रमुखों की परिषद इस संगठन का सर्वोच्च निकाय है जिसकी प्रतिवर्ष बैठक होती है। इसके अलावा शासन प्रमुखों की परिषद (एचजीसी) की वार्षिक बैठक होती है। शंघाई सहयोग संगठन में 2008 से डायलाॅग पार्टनर यानी वार्ताकार सहयोग की व्यवस्था की गयी है। 2009 के शिखर सम्मेलन में सबसे पहले श्रीलंका और बेलारुस को डायलाॅग पार्टनर का दर्जा दिया गया। अफगानिस्तान, शंघाई सहयोग संगठन-अफगानिस्तान कांटैट ग्रुप का हिस्सा है और इस गु्रप की स्थापना 2005 में की गयी थी। इस संगठन की शिखर बैठकों में संयुक्त राष्ट्र, सीआईएस, यूरेशियन इकोनाॅमिक कम्युनिटि एवं सामुहिक सुरक्षा संधि संगठन यानी सीएसटीओ के प्रतिनिधि भी भाग लेते हैं। गौरतलब है कि 2005 में भी कजाकिस्तान के आस्ताना में भारत के प्रतिनिधियों ने पहली बार शंघाई सहयोग संगठन के सम्मेलन में भाग लिया था। यह पहला अवसर था जब पर्यवेक्षक देशों के प्रतिनिधियों को सम्मेलन में संबोधित करने का अधिकार दिया गया। जानना आवश्यक है कि भारत सितंबर 2014 में एससीओ की सदस्यता के लिए आवेदन किया था। अच्छी बात यह है कि एससीओ की सदस्यता ग्रहण करने के उपरांत हर सम्मेलन में भारत ने यूरेशियाई धरती के लोगों के साथ अच्छे संबंध रखने की प्रतिबद्धता दोहरायी है और आतंकवाद से मिलकर निपटने की वकालत की है। सच कहें तो भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत वर्ष संपन्न हुए बिश्केक सम्मेलन की तरह इस वर्चुअल सम्मेलन में भी अपने संबोधन के जरिए दुनिया को प्रभावित किया है और वैश्विक स्तर पर उनकी लोकप्रियता पुनः गूंजी है।

केंद्र सरकार द्वारा अब रोज़गार सृजन पर दिया जा रहा है विशेष ध्यान

एक अनुमान के अनुसार, कोरोना महामारी के चलते देश में लगभग 20 लाख रोज़गारों  पर विपरीत प्रभाव पड़ा था। अतः केंद्र सरकार के सामने अब सबसे महत्वपूर्ण सोच का विषय यह है कि किस प्रकार देश में औपचारिक क्षेत्र में रोज़गार के अधिक से अधिक अवसर, निर्मित किए जायें। साथ ही, कोरोना महामारी के दौरान छोटे छोटे उद्योगों को दिवालिया होने से बचाना भी एक और महत्वपूर्ण विषय केंद्र सरकार के सामने था। उद्योगों को दिवालिया होने से बचाने के लिए तो तरलता सम्बंधी एक विशेष पैकेज प्रदान किया गया, जिसका बहुत ही सकारात्मक प्रभाव दिखाई दिया एवं लघु एवं मध्यम उद्योग तो पुनः प्रारम्भ हो गए। केंद्र सरकार के प्रयासों से शहरों से ग्रामों की ओर हुए मज़दूरों की पलायन सम्बन्धी समस्या को भी बहुत ही सफल तरीक़े से हल कर लिया गया। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार ने राशि का आबंटन बढ़ाकर ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के कई अवसर निर्मित किए। ग़रीब वर्ग को खाने पीने एवं मूलभूत आवश्यकताओं की वस्तुएं उपलब्ध कराने के कई गम्भीर प्रयास किए गए एवं इन प्रयासों में केंद्र सरकार को सफलता भी मिली।

वित्तीय वर्ष 2020-21 के द्वितीय तिमाही (जुलाई-सितम्बर) में केंद्र सरकार ने कई वित्तीय उपायों की घोषणा की थी ताकि विनिर्माण क्षेत्र, खनन क्षेत्र, ढाँचागत निर्माण क्षेत्र, आदि जो अप्रेल-जून 2020 के दौरान एकदम बंद हो गए थे, उन्हें पुनः प्रारम्भ किया जा सके। इन वित्तीय उपायों का भी बहुत सफल प्रभाव रहा एवं इन क्षेत्रों में औद्योगिक इकाईयों में उत्पादन पुनः प्रारम्भ हो गया। अब वित्तीय वर्ष 2020-21 के तृतीय तिमाही (अक्टोबर-दिसम्बर) में सेवा क्षेत्र की इकाईयों एवं गृह निर्माण क्षेत्र पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है ताकि इन क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों में तेज़ी लायी जा सके। इन क्षेत्रों में रोज़गार के अधिक अवसर निर्मित किए जा सकते हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि केंद्र सरकार बहुत ही बारीकी से यह देख रही है कि किस क्षेत्र को कब कब क्या आवश्यकता है एवं अर्थव्यवस्था के कौन से क्षेत्र शीघ्र पुनर्जीवित हो रहे हैं एवं कौन से क्षेत्र पुनर्जीवित होने में समय ले रहे हैं। इन क्षेत्रों को किस प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है एवं इन परेशानियों को किस प्रकार दूर किया जा सकता है। इस सम्बंध में उचित समय पर सही उपाय भी हो रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा बहुत ही व्यवस्थित तरीक़े से कार्य किया जा रहा है।

हाल ही में वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन ने कई महत्वपूर्ण घोषणाएं की हैं। देश में रोज़गार एक महतवपूर्ण क्षेत्र है जिस पर अब फ़ोकस किया जा रहा है। लॉकडाउन की अवधि के दौरान देश में कई उद्योगों पर विपरीत असर पड़ा था एवं रोज़गार के लाखों अवसरों का नुक़सान हुआ था। अतः सबसे बड़ी घोषणा रोज़गार को पुनर्जीवित करने के सम्बंध में हैं। मार्च से सितम्बर 2020 की अवधि के दौरान जिन लोगों के रोज़गार चले गए थे अथवा जिनके रोज़गार में दिक्कत आई थी, अब अगर नियोक्ता उनको दुबारा से रोज़गार देता है तो केंद्र सरकार ईपीएफ में 24 प्रतिशत अंशदान (12 प्रतिशत नियोक्ता का हिस्सा और 12 प्रतिशत कर्मचारी का हिस्सा) अपनी ओर से प्रदान करेगी। जिन नियोक्ताओं के पास 50 से कम कर्मचारी कार्यरत हैं उन्हें कम से कम दो कर्मचारियों की नियुक्ति करनी होगी एवं जिन नियोक्ताओं के पास 50 से ज़्यादा कर्मचारी कार्यरत हैं उन्हें कम से कम 5 कर्मचारियों की नियुक्ति करनी होगी, तभी वे इस योजना का लाभ लेने के लिए पात्र हो सकेंगे। जिन उद्यमों में 1000 से कम कर्मचारी कार्यरत हैं उन्हें 24 प्रतिशत की राशि का पूरा लाभ मिलेगा एवं जिन उद्यमों में 1000 से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं उन्हें केवल कर्मचारी के 12 प्रतिशत हिस्से की राशि का लाभ मिलेगा। निजी क्षेत्र को यह बहुत बड़ा लाभ प्रदान किया जा रहा है। कर्मचारी के आधार कार्ड का उपयोग करके हितग्राही के खाते में सीधे ही राशि जमा की जाएगी। रोज़गार के अवसरों को पुनर्जीवित करने के लिए यह एक बहुत बड़ा उपाय माना जा रहा है।

गृह निर्माण उद्योग अकुशल श्रमिकों के लिए रोज़गार के अवसर उत्पन्न करता है। अतः प्रधान मंत्री आवास योजना के अंतर्गत 18000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त आबंटन किया गया है, ताकि शहरी क्षेत्रों में अधिक से अधिक मकान इस योजना के अंतर्गत बनाए जा सकें एवं रोज़गार के अवसर निर्मित हो सकें। साथ ही, अभी लागू नियमों के अनुसार, दो  करोड़ रुपए तक के मकान बेचने पर यदि सर्कल दर एवं अनुबंध दर में 10 प्रतिशत से अधिक का अंतर है तो मकान/फ़्लैट क्रेता एवं विक्रेता दोनों को ही आय कर नियमानुसार देना होता है परंतु इस नियम को शिथिल कर 20 प्रतिशत तक के अंतर तक छूट प्रदान की जा रही है।

उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना का दायरा भी बढ़ाया जा रहा है। पहले इस योजना के अंतर्गत केवल 3 उद्योगों को शामिल किया गया था परंतु अब 10 और उद्योगों को भी इस योजना में शामिल कर लिया गया है जिन्हें 146,000 करोड़ रुपए की राशि का प्रोत्साहन दिया जायेगा। इस प्रोत्साहन योजना के लागू किए जाने से इन उद्योगों में विकास की रफ़्तार बढ़ेगी एवं रोज़गार के नए अवसरों का सृजन होगा। कुल मिलाकर सरकार अब प्रयास कर रही है कि औपचारिक क्षेत्रों में रोज़गार के अधिक से अधिक अवसर निर्मित हों। आज देश में 83 प्रतिशत रोज़गार अनऔपचारिक क्षेत्रों में निर्मित होते हैं।

किसानों को खाद हेतु सब्सिडी प्रदान करने के लिए 65,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त व्यवस्था केंद्र सरकार द्वारा की जा रही है। यह खाद सब्सिडी देश में 14 करोड़ किसानों को उपलब्ध करायी जाएगी। देश में बुनियादी ढांचा विकसित करने के उद्देश्य से आधारभूत निवेश फ़ंड को 6,000 करोड़ रुपए केंद्र सरकार द्वारा प्रदान किए जा रहे हैं ताकि बुनियादी ढांचा विकसित करने हेतु नए उद्यमों को वित्त उपलब्ध कराया जा सके।

विश्व में कई विकसित देशों ने तो बहुत बड़ी राशियों के आर्थिक पैकेज की घोषणाएं की थीं परंतु विकासशील देशों के पास पूंजी का अभाव है अतः उपलब्ध राशि का सही तरीक़े से इस्तेमाल हो इसका ध्यान रखना बहुत ही आवश्यक है ताकि राजस्व घाटे से सम्बंधित  नियमों का पालन भी किया जा सके। इसलिए भारत सरकार भी सोच समझकर सही समय पर ही आर्थिक घोषणाएं कर रही है। अभी तक 29.88 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज की घोषणा समय समय पर की जा चुकी है जो देश के सकल घरेलू उत्पाद का 15 प्रतिशत है।

हालांकि बेरोज़गारी की दर अप्रेल/मई माह 2020 में एकदम बढ़कर 38 प्रतिशत पर पहुंच गई थी, जिसे शीघ्रता से कम करना आवश्यक था, अतः केंद्र सरकार ने सही समय पर कई आर्थिक निर्णय लिए जिसके चलते आज बेरोज़गारी की दर गिरकर 8 प्रतिशत से भी नीचे आ गई है। अब तो उक्त वर्णित की गई कई नई घोषणाओं के बाद यह दर और भी नीचे आएगी, क्योंकि उक्त वर्णित आर्थिक उपायों की घोषणा के बाद ऐसी उम्मीद की जा रही है कि औपचारिक क्षेत्र में रोज़गार के 50-60 लाख नए अवसर निर्मित होंगे।

काश्मीर में स्वस्थ राजनीति का दौर चले

-ललित गर्ग-
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हाल ही में नैशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, पीपल्स कॉन्फ्रेंस और सीपीआईएम रूपी पीपल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन (पीएजीडी) नामक राजनीतिक मोर्चा पर तीखा हमला बोलते कहा कि गुपकार गैंग जम्मू-कश्मीर को फिर से आतंक, हिंसा, अशांति और उत्पात के दौर में ले जाना चाहता है। यह गुपकार राजनीतिक दल राज्य में स्थानीय निकायों के चुनाव लड़ रहा है। अभी तक कांग्रेस का इनके साथ घोषित तौर पर कोई समझौता नहीं है, लेकिन स्थानीय स्तर पर सीटों का तालमेल होने की चर्चा है। गुपकार की बढ़ती सक्रियता से कहीं कश्मीर में शांति, अमन एवं लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर फिर से अंधेरे ना छाये?
गृहमंत्री ने गुपकार को एक राजनीतिक दल की बजाय एक गैंग कहकर संबोधित किया है, इससे भले ही कुछ लोग सहमत न हो, लेकिन इसे गैंग कहने के कुछ तो कारण रहे होंगे। एक पूरा वातावरण जो मिल रहा है, परिवेश निर्मित किया जा रहा है, वह आतंक एवं अशांति को बढ़ाने वाला है, घटाने वाला बिलकुल नहीं लगता। क्यों आवश्यकता है कि राष्ट्र-विरोधी, आतंक एवं अशांतिमूलक गतिविधियों एवं विचारों को संक्रामक बनाया जाए? प्रांत की शांति व्यवस्था एवं विकास की प्रक्रिया को बाधित किया जाये। गुपकार की आक्रामक एवं राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों के बीच हम कल्पना कैसे करें कि हिंसा नहीं बढ़ेगी, आतंक नहीं पनपेगा और अशांति नहीं बढ़ेंगी? इसलिए सबसे पहले ध्यान देना है कश्मीर के परिवेश पर, वहां के वातावरण पर। वहां के स्थानीय राजनीतिक दलों ने अपने चारों ओर किस प्रकार के वातावरण का निर्माण कर रखा है? वह जब तक नहीं बदलेगा, तब तक हिंसा-आतंक को उत्तेजना देने वाली घटनाएं और निमित्त उभरेंगे।
आतंक एवं हिंसाग्रस्त इस प्रांत में शांति स्थापना के लिये भारत सरकार के प्रयत्न निश्चित ही जीवंत लोकतंत्र का आधार बने है। जरूरत है कश्मीर में राजनीतिक एवं साम्प्रदायिक संकीर्णता की तथाकथित आवाजों की बजाय सुलझी हुई सभ्य राजनीतिक आवाजों को सक्रिय होने का मौका दिया जाए, विकास एवं शांति के नये रास्ते उद्घाटित किये जाये, इसी दृष्टि से गृहमंत्री का गुपकार पर खास तौर पर हमलावर होना स्वाभाविक है। अगर ये दल राज्य में अनुच्छेद 370 की वापसी की मांग पर अड़े हुए हैं तो उनकी इस मांग से किस तरह और क्यों सहमत हुआ जा सकता है। भारत का संविधान और यहां की लोकतांत्रिक व्यवस्था उन्हें शांतिपूर्ण ढंग से अपनी बात रखने की इजाजत देती है, लेकिन उनकी राष्ट्र-विरोधी गतिविधियां एवं बयान किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं है।  
केन्द्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी यह कहती रही है कि अनुच्छेद 370 के तहत विशेष प्रावधान खत्म करने का फैसला राज्य की जनता के हित में किया गया है, जिसकी लम्बे समय से आवश्यकता महसूस की जा रही थी। अब चुनाव वह उपयुक्त मौका है जब भाजपा के कार्यकर्ता घर-घर जाकर लोगों को इस फैसले की खूबियां समझा सकते हैं और उन्हें समझाना भी चाहिए। जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक संगठनों की अलोकतांत्रिक गतिविधियों एवं प्रांत में आतंक-अशांति एवं हिंसा को बल देने वाले बयानों एवं मनसूंबों का भी बेपर्दा करना चाहिए। इसी से वहां लोकतंत्र स्थापित हो सकेगा। दूर बैठकर भी हर भारतीय इस बात को गहराई से महसूस कर रहा है और देख रहा है कि जम्मू-कश्मीर में शांति, सौहार्द, विकास एवं सह-जीवन का वातावरण बन रहा है। वहां संविधान के साये में लोकतंत्र प्रशंसनीय रूप में पलता हुआ दिख रहा है। लेकिन गुपकार में सत्ताविहीन असंतुष्टों की तरह आदर्शविहीन असंतुष्टों की भी एक लम्बी पंक्ति है जो सत्ता की लालसा में शांति कम, खतरे ज्यादा उत्पन्न कर रही है। वे सब चाहते हैं कि हम आलोचना करें, अच्छाई में भी बुराई खोजे, शांति एवं सौहार्द की स्थितियों को भी अशांत बताये, पर वे शांति का, सुशासन का, विकास का उदाहरण प्रस्तुत नहीं करते। हम गलतियां निकालें पर दायित्व स्वीकार नहीं करें। ऐसा वर्ग आज जम्मू-कश्मीर के लिये विडम्बना एवं त्रासदी बने मुद्दों को लेकर एक बार फिर सक्रिय है। वे लोग अपनी रचनात्मक शक्ति का उपयोग करने में अक्षम है, इसलिये स्थानीय निकाय के चुनावों में लोकतांत्रिक अधिकारों को आधार बनाकर अस्तव्यस्तता एवं अशांति को बढ़ाने में विश्वास करते हैं।
भले ही इस राज्य में उग्रवाद के चरम उठान के दिनों में भी गुपकार से जुड़ी पार्टियां न केवल चुनाव प्रक्रिया से जुड़ी रहकर राज्य में सरकार चलाती रही हैं बल्कि इनके सैकड़ों नेता-कार्यकर्ता आतंकी हमलों में मारे गए हैं और अलग-अलग समय में ये केंद्र सरकार का भी हिस्सा रही हैं, लेकिन यह भी बड़ा सच है कि इन्होंने आतंकवाद को पनपने का अवसर देते हुए, अशांति का वातावरण बनाते हुए एवं विकास को अवरूद्ध करके ही अपनी राजनीतिक हितों की रोटियां सेकी है। यह भी एक सच है कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इन दलों के प्रमुख नेता कश्मीर को लेकर भारत के पक्ष का समर्थन करते रहे हैं। आज भी ये स्थानीय चुनावों में पूरी शिद्दत से शामिल हो रहे हैं, चुनाव बहिष्कार की बात नहीं कर रहे। लेकिन ये दल राज्य में अनुच्छेद 370 की वापसी की मांग पर अड़े हुए हैं, पाकिस्तान के सूर में सूर मिलाते हैं तो किस तरह उनसे सहमति बने?
गृहमंत्री अमित शाह ने कश्मीर के इन राजनीतिक संगठनों को आपराधिक गिरोह या गैंग करार किया है तो इसमें कोई अतिश्योक्ति प्रतीत नहीं होती है। यह एक साहसभरा कदम है, साहस का परिचय तो कश्मीर में केंद्र सरकार ने अनुच्छेद-370 को हटाकर भी दिया, उससे भी अधिक उसने शांति एवं व्यवस्था बनाये रखने की स्थितियों को निर्मित कर परिपक्वता का परिचय दिया है। अनुच्छेद-370 के हटने के बाद की नवीन स्थितियों में कश्मीर की जनता ने राहत की सांस ली है, नवीन परिवेश में वहां किसी बड़ी अप्रिय, हिंसक, आतंकी एवं अराजक स्थिति का न होना, वहां की जनता का केन्द्र सरकार में विश्वास का परिचायक है। प्रांत में हर कदम लोकतांत्रिक सावधानी, सूझबूझ एवं विवेक से उठाना, समय की मांग है, चाहे स्थानीय निकायों के चुनाव हो या उनमें सक्रिय गुपकार की राजनीतिक गतिविधियां। कहीं ऐसा न हो कि घाटी में गलत एवं अराजक राजनीतिक दलों को प्रश्रय देने से वहां हिंसा एवं आतंक का नया दौर शुरू हो जाये।
नरेन्द्र मोदी सरकार के सामने कश्मीर में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को स्थापित करना सबसे बड़ी प्राथमिकता है। पर कुछ गुपकार से जुड़े स्वार्थी राजनेता एवं राजनीतिक दल किसी कोने में आदर्श की स्थापना होते देखकर अपने बनाए स्वार्थप्रेरित समानान्तर आदर्शों की वकालत कर रहे हैं। यानी स्वस्थ परम्परा का मात्र अभिनय। प्रवंचना का ओछा प्रदर्शन। ऐसे लोग कहीं भी हो, उन्नत जीवन एवं सशक्त राष्ट्र की बड़ी बाधा है। कश्मीर में भी ऐसे बाधक लोग लोकतंत्र का दुरुपयोग करते हुए दिखाई दे रहे हैं। कुछ ऐसे व्यक्ति सभी जगह होते हैं जिनसे हम असहमत हो सकते हैं, पर जिन्हें नजरअन्दाज करना मुश्किल होता है। चलते व्यक्ति के साथ कदम मिलाकर नहीं चलने की अपेक्षा उसे अडंगी लगाते हैं। सांप तो काल आने पर काटता है पर दुर्जन तो पग-पग पर काटता है। कश्मीर को शांति, विकास एवं सह-जीवन की ओर अग्रसर करते हुए ऐसे दुर्जन लोगों से सावधान रहना होगा। यह निश्चित है कि सार्वजनिक जीवन में सभी एक विचारधारा, एक शैली व एक स्वभाव के व्यक्ति नहीं होते। अतः आवश्यकता है दायित्व के प्रति ईमानदारी के साथ-साथ आपसी तालमेल व एक-दूसरे के प्रति गहरी समझ की। भारत विविधता में एकता का ”मोजायॅक“ राष्ट्र है, जहां हर रंग, हर दाना विविधता में एकता का प्रतिक्षण बोध करवाता है। अगर हम हर कश्मीरी मंे स्थानीय निकाय के चुनावों में आदर्श स्थापित करने के लिए उसकी जुझारू चेतना को विकसित कर सकें तो निश्चय ही आदर्शविहिन असंतुष्टों यानी गुपकारों की पंक्ति को छोटा कर सकेंगे। और ऐसा होना कश्मीर में अशांति एवं आतंक की जड़ों को उखाड़ फेंकने का एवं शांति स्थापना का सार्थक प्रयत्न होगा।