समाज जीवन की राह: शांति की चाह September 29, 2018 by ललित गर्ग | Leave a Comment ललित गर्ग – आज हर व्यक्ति चाहता है – हर दिन मेरे लिये शुभ, शांतिपूर्ण एवं मंगलकारी हो। संसार में सात अरब मनुष्यों में कोई भी मनुष्य ऐसा नहीं होगा जो शांति न चाहता हो। मनुष्य ही क्यों पशु-पक्षी, कीट-पंतगें आदि छोटे-से-छोटा प्राणी भी शांति की चाह में बेचैन रहता है। यह ढ़ाई अक्षर का […] Read more » अशांति कुंठा घुटन जीवन की राह: शांति की चाह तनाव नाम रूप शब्द शास्त्र संत्रास संस्कार संस्कृति सिद्धांत
कविता ज्वार उठाना होगा, मस्तक कटाना होगा September 10, 2018 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment कवि आलोक पाण्डेय समर की बेला है वीरों अब संधान करो, शत्रु को मर्दन करने को, त्वरित अनुसंधान करो | मातृभू की खातिर फिर लहू बहाना होगा; ज्वार उठाना होगा, मस्तक कटाना होगा| सिंहासन की कायरता से , संयम अब डोल रहा चिरस्थायी संस्कृति हित , कडक संघर्षों को खोल रहा| अखिल विश्व की दिव्य […] Read more » अमर सपूतों आतंक शिवाजी समर संस्कृति
विविधा बेशर्म हैं नंगे-भूखे May 23, 2015 by डॉ. दीपक आचार्य | 1 Comment on बेशर्म हैं नंगे-भूखे -डॉ. दीपक आचार्य- दुनिया में खूब सारे लोग हैं जिन्हें न किसी की परवाह है, न कोई लाज-शरम। इन लोगों के लिए मर्यादाओं, नियम-कानूनों और अनुशासन से लेकर जीवन के किसी भी क्षेत्र में संस्कारों का कोई महत्त्व नहीं है। हमारे लिए इंसान के रूप में पैदा हो जाना ही काफी नहीं है बल्कि इंसानियत […] Read more » Featured बेशर्म हैं नंगे-भूखे समाज संस्कृति
विविधा संस्कृतियों को बचाने के लिए संयुक्त परिवार जरूरी May 16, 2015 by आदर्श तिवारी | 1 Comment on संस्कृतियों को बचाने के लिए संयुक्त परिवार जरूरी –आदर्श तिवारी- महान समाजशास्त्री लूसी मेयर ने परिवार को परिभाषित करते हुए बताया कि परिवार गृहस्थ्य समूह है. जिसमें माता –पिता और संतान साथ –साथ रहते है. इसके मूल रूप में दम्पति और उसकी संतान रहती है. मगर ये विडंबना ही है कि, आज के इस परिवेश में दम्पति तो साथ रह रहें, लेकिन इस […] Read more » Featured परिवार संयुक्त परिवार संस्कृति संस्कृतियों को बचाने के लिए संयुक्त परिवार जरूरी
कला-संस्कृति वैदिक संस्कृति विश्व में प्रथम व श्रेष्ठ है – ‘विश्ववरणीय हमारी संस्कृति’ August 29, 2014 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment -मनमोहन कुमार आर्य- विश्व के सभी मानवों की संस्कृति क्या है? इसका उत्तर है कि संसार की सबसे प्राचीन एवं सब सत्य विद्याओं सहित जीवन के प्रत्येक पहलू पर प्रकाश डालने वाली ईश्वर प्रदत्त दिव्य ज्ञान की पुस्तक ‘वेद’ सारे विश्व की धर्म, संस्कृति, शिक्षा, संस्कार व सभ्यता का मूल है। वेदों के अनुरूप कार्य, […] Read more » वेद वेद श्रेष्ठ वैदिक संस्कृति श्रेष्ठ वेद संस्कृति
कला-संस्कृति संस्कृति के हत्यारे August 5, 2011 / December 7, 2011 by प्रवक्ता ब्यूरो | 3 Comments on संस्कृति के हत्यारे राजेन्द्र जोशी (विनियोग परिवार) पांच सौ साल पहले यह दुनिया आज की तुलना में सुखी और हिंसा रहित थी। लेकिन 1492 में एक ऐसी घटना घटी जिसने सारे विश्व के प्रवाह को मोड़ दिया। पहले देश-विदेश से वस्तु के आयात-निर्यात का काम जहाजों से होता था। ऐसे जहाजों को यूरोप के लुटेरे लूट लेते थे […] Read more » culture संस्कृति
कला-संस्कृति संस्कृति से सर्वनाश की और…………………….. July 1, 2011 / December 9, 2011 by राम नारायण सुथर | 2 Comments on संस्कृति से सर्वनाश की और…………………….. आज विश्वभर में खतरे का बिगुल भयंकर नाद कर रहा है उसका सन्देश है की हम सावधान हो जाये तथा संसार की अनित्यता के पीछे जो महान सत्य अंतर्निहित है उसे पहचान ले आज चारो और अशांति असंतोष स्वार्थ और सकिर्नता का भयंकर रूप प्रकट हो गया है मानव की पाशविक प्रवृत्ति को सिनेमा अखबार […] Read more » culture संस्कृति
बच्चों का पन्ना सिर्फ संस्कृति ही नहीं देश के भविष्य का भी संकेतक है बालपन January 8, 2011 / December 16, 2011 by प्रवक्ता ब्यूरो | 2 Comments on सिर्फ संस्कृति ही नहीं देश के भविष्य का भी संकेतक है बालपन -पंकज किसी भी देश का बच्चा उस देश की वास्तविक स्थिति पेश करता है। वह उसके सभ्यता संस्कृति से ही साक्षात्कार नहीं कराता है बल्कि उसके भविष्य का भी स्पष्ट संकेत देता है। इस स्थापना के आलोक में देखें तो हमारे नौनिहाल जिस हाल में हैं उसे देख कर खासी निराशा होती है। लेकिन यह […] Read more » culture संस्कृति
समाज शिक्षा, संस्कृति और समाज… September 15, 2010 / December 22, 2011 by प्रवक्ता ब्यूरो | 1 Comment on शिक्षा, संस्कृति और समाज… -राजीव बिश्नोई प्रेम को परिभाषित करना वर्तमान परिदृश्य में मुश्किल है। चूँकि हर रोज इस बात पर बहस ज्यादा हो रही है कि क्या प्रेम करने वालों को सामाजिक मान्यता मिलनी चाहिए विशेषकर उस समाज में जिसकी बुनियाद मनु, अरुस्तु या ओशो का मिला-जुला रूप हो सकती हैं। जबकि प्रेम का आंकलन उन लोगों के […] Read more » Education शिक्षा समाज संस्कृति
कला-संस्कृति संस्कृति उद्योग नीति के अभाव में गुलामी का रास्ता September 12, 2010 / December 22, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 3 Comments on संस्कृति उद्योग नीति के अभाव में गुलामी का रास्ता -जगदीश्वर चतुर्वेदी भारत में मौजूदा हालात काफी चिन्ताजनक हैं। हमारे यहां विकासमूलक मीडिया के बारे में तकरीबन चर्चाएं ही बंद हो गई हैं। समूचे मीडिया परिदृश्य देशी इजारेदार मीडिया कंपनियों , बहुराष्ट्रीय मीडिया कंपनियों और विज्ञापन कंपनियों ने वर्चस्व स्थापित कर लिया है। विभिन्न मीडिया मालों की बिक्री के माध्यम से ये कंपनियां दस हजार […] Read more » culture संस्कृति
धर्म-अध्यात्म कृष्ण को कैद से निकालना होगा September 5, 2010 / December 22, 2011 by डॉ. सुभाष राय | 3 Comments on कृष्ण को कैद से निकालना होगा डा. सुभाष राय हम अपने नायकों की शक्ति और क्षमता को पहचान नहीं पाते इसीलिए उनकी बातें भी नहीं समझ पाते। हम उनकी मानवीय छवि को विस्मृत कर उन्हें मानवेतर बना देते हैं, कभी-कभी अतिमानव का रूप दे देते हैं और उनकी पूजा करने लगते हैं। इसी के साथ उनके संदेशों को समझ पाने, उन्हें […] Read more » culture संस्कृति
धर्म-अध्यात्म भारतीय संस्कृति में राष्ट्रधर्म और विधान का राज्य August 14, 2010 / December 22, 2011 by वी. के. सिंह | 6 Comments on भारतीय संस्कृति में राष्ट्रधर्म और विधान का राज्य -वी. के. सिंह भारतीय संस्कृति में सामाजिक व्यवस्था का संचालन सरकारी कानून से नहीं बल्कि प्रचलित नियमों जिसे ‘धर्म’ के नाम से जाना जाता था, के द्वारा होता था। धर्म ही वह आधार था जो समाज को संयुक्त एवं एक करता था तथा विभिन्न वर्गों में सामंजस्य एवं एकता के लिए कर्तव्य-संहिता का निर्धारण करता […] Read more » culture राष्ट्रधर्म संस्कृति