चुनाव मतदाता किस कटोरे का विषपान करे? February 8, 2012 / February 8, 2012 by अब्दुल रशीद | 1 Comment on मतदाता किस कटोरे का विषपान करे? अब्दुल रशीद लोकतंत्र में मतदान करना हर नागरिक का उत्तरदायित्व होता है और अधिकार भी। यही लोकतंत्र की विशेषता है कि एक आम आदमी अपने मत से अपने लिए सरकार के नुमाइन्दे चुन सकता है। जनता के द्वारा जनता की सरकार के लिए मतदान के जरिए अपना प्रतिनिधि चुनना अपने आप में महत्वपुर्ण है और […] Read more » Democracy voters मतदाता विषपान
लेख समाज राइट टू रिकाल February 1, 2012 / February 1, 2012 by अब्दुल रशीद | 2 Comments on राइट टू रिकाल अब्दुल रशीद लोकतंत्र में कहा जाता है सत्ता जनता से जनता के लिए जनता के द्वारा चलता है। लेकिन क्या ऐसा होता है? आज जनता के वोट द्वारा सत्ता भले ही चुनी जाती है लेकिन न तो सत्ता जनता के हित में काम करती है और न ही जनता के भागीदारी को समझती है कारण […] Read more » Democracy Right to Recall राइट टू रिकाल लोकतंत्र
राजनीति न लोक ही बचा न तंत्र January 26, 2012 / January 26, 2012 by डॉ0 शशि तिवारी | Leave a Comment डॉ. शशि तिवारी लोक का स्थान स्वयं ने ले लिया और तंत्र का स्थान परिवादवाद ने, बची-कुची कसर जातिवाद के तंत्र ने कर दी। बढ़ते लम्पट तंत्र एवं गिरते राजनीतिक तंत्र से कहीं न कहीं नुकसान गणतंत्र को अवश्य ही हुआ है। गुलाम भारत को स्वतंत्र कराने में जिन नेताओं ने अपनी जवानी न्यौछावर कर […] Read more » Democracy न लोक ही बचा न तंत्र
लेख लोकतंत्र का स्वरूप बदलने की जरूरत तो है पर अवसर नहीं December 8, 2011 / December 8, 2011 by वीरेन्द्र जैन | 3 Comments on लोकतंत्र का स्वरूप बदलने की जरूरत तो है पर अवसर नहीं वीरेन्द्र जैन केन्द्रीय मंत्री फारुख अब्दुल्ला का कहना है कि अब देश में नियंत्रित लोकतंत्र अपनाने का समय आ गया है। उनका कहना एक ओर तो समस्याओं की ओर उनकी चिंताओं को दर्शाता है किंतु दूसरी ओर ऐसा हल प्रस्तुत करता है जिसकी स्वीकार्यता बनाने के लिए एक तानाशाही शासन स्थापित करना होगा। स्मरणीय है […] Read more » Democracy केन्द्रीय मंत्री फारुख अब्दुल्ला लोकतंत्र का स्वरूप बदलने की जरूरत
विविधा लोकतंत्र का सबसे भयावह और शर्मनाक दौर है यह August 15, 2011 / December 7, 2011 by गिरीश पंकज | 1 Comment on लोकतंत्र का सबसे भयावह और शर्मनाक दौर है यह गिरीश पंकज अपने देश का लोकतंत्र अब धीरे-धीरे छाया-लोकतंत्र में तब्दील होता जा रहा है. मतलब यह कि लोकतंत्र-सा दिख तो रहा है, मगर छाया होने के कारण पकड़ में नहीं आ रहा. लोकतंत्र तो है, आज़ादी भी है, मगर कैसी? भ्रष्टाचार करने के लिये हम स्वतंत्र है, सडकों पर ‘स्लट मार्च’ के लिये स्वतंत्र है, […] Read more » Democracy लोकतंत्र
जन-जागरण ये कैसा लोकतंत्र है ? August 10, 2011 / December 7, 2011 by प्रवक्ता ब्यूरो | 1 Comment on ये कैसा लोकतंत्र है ? वीरेन्द्र सिंह राठौर कैबिनेट से सरकारी ड्राफ्ट को मंजूरी मिलते ही अन्ना हजारे ने इसे देश के साथ धोखा बताते हुए….. 16 अगस्त से फिर से आमरण अनशन की घोषणा कर दी और इसके बाद एक बार फिर सरकार हरकत में आ गई ,….और उसने वो ही किया जो एक डरी हुई ढीठ सरकार कर […] Read more » Democracy लोकतंत्र
विविधा वीर जवानों से ऐसा बर्ताव करना लोकतंत्र के लिए खतरनाक सिद्ध हो सकता है… August 3, 2011 / December 7, 2011 by सुरेश चिपलूनकर | 1 Comment on वीर जवानों से ऐसा बर्ताव करना लोकतंत्र के लिए खतरनाक सिद्ध हो सकता है… सुरेश चिपलूनकर अपनी जान पर खेलकर देश के दुश्मनों से रक्षा करने वाले सैनिकों के प्रति सरकार और नौकरशाही का संवेदनहीन रवैया जब-तब सामने आता रहता है… 1) संसद पर हमले को नाकाम करने वाले जवानों की विधवाओं को चार-पाँच साल तक चक्कर खिलाने और दर्जनों कागज़ात/सबूत मंगवाने के बाद बड़ी मुश्किल से पेट्रोल पम्प […] Read more » Democracy लोकतंत्र
राजनीति लोकतंत्र : चुनौतियाँ और समाधान July 21, 2011 / December 8, 2011 by राजीव गुप्ता | 1 Comment on लोकतंत्र : चुनौतियाँ और समाधान समानो मन्त्रः समिति समानो समानं मनः सह चित्तमेषाम ! समानं मंत्राभिः मन्त्रये वः समानेन वो हविषा जुहोनि !! लोगों का लक्ष्य और मन समान हो , तथा वे समान मन्त्र से, समान यज्ञों के पदार्थों से ईश्वर का मनन करें ! ऋग्वेद और अथर्ववेद के इन सूक्तियों में कुछ हद तक हम लोकतंत्र ( समानता […] Read more » Democracy चुनौतियाँ लोकतंत्र समाधान
राजनीति आखिर लोकतंत्र कहां है? May 25, 2011 / December 12, 2011 by चैतन्य प्रकाश | Leave a Comment चैतन्य प्रकाश मैक्स ईस्टमैन ने 1922 में कहा था ”मैं कभी ऐसा अनुभव करता हूं कि पूंजीवादी और साम्यवादी तथा प्रत्येक व्यवस्था एक दैत्याकार यंत्र बनती जा रही है, जिसमें जीवन मूल्यों की मृत्यु हो रही है”। लैंग के विचार में इस भौतिकवादी संसार में सफलता का मूल्य हमें स्वत्व के संकट के रूप में […] Read more » Democracy लोकतंत्र
राजनीति यह कैसा लोकतंत्र February 14, 2011 / December 15, 2011 by रोहित पंवार | 1 Comment on यह कैसा लोकतंत्र रोहित पंवार मतदाता पहचान पत्र हासिल करने की हमारी रूचि छिपी नहीं है. आखिर वोट देने से ज्यादा सिम खरदीने में यह जरुरी जो है वास्तव में जिस दिन मतदाता पहचान पत्र की केवल मतदान डालने में ही प्रयोग की सरकारी घोषणा हो जाए तो, किसी महंगे मल्टीप्लेक्स में सिनेमा की टिकट महंगी होने पर […] Read more » Democracy लोकतंत्र
विविधा गणतंत्र दिवस के बहाने January 26, 2011 / December 15, 2011 by सतीश सिंह | 1 Comment on गणतंत्र दिवस के बहाने सतीश सिंह राष्ट्रध्वज को फहराने का अधिकार नागरिकों के मूलभूत अधिकार और अभिव्यक्ति के अधिकार का ही एक हिस्सा है। यह अधिकार केवल संसद द्वारा ऐसा परितियों में ही बाधित किया जा सकता है जिनका उल्लेख संविधान की कण्डिका 2, अनुच्छेद 19 में किया गया है। खण्डपीठ में साफ तौर पर कहा गया है कि […] Read more » Democracy republic गणतंत्र लोकतंत्र
राजनीति लोकतंत्र के मंदिर से टूटती आस December 10, 2010 / December 19, 2011 by पंकज चतुर्वेदी | 3 Comments on लोकतंत्र के मंदिर से टूटती आस –पंकज चतुर्वेदी पिछले कुछ दिनों से भारत के लोकतंत्र की सबसे बड़ी पंचायत में जो कुछ हो रहा है, वो सीधे –सीधे इस देश की भोली-भाली जनता से छल है । आम जनता के कल्याण और विकास का दावा और वादा करके सत्ता सुन्दरी का सुख भोगने वाले हमारे जन प्रतिनिधि ऐसे होंगे ये हमने […] Read more » Democracy लोकतंत्र