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यूपीए द्वितीय ओर वामपंथ दोनो की अग्नि परीक्षा होने वाली है

पाँच राज्यों -पश्चिम बंगाल,तमिलनाडु,केरल,असम और पुद्दुचेरी के विधान सभा चुनाव कार्यक्रम घोषित हो चुके हैं . देश की राजधानी दिल्ली में और सम्बंधित राज्यों में राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हो गईं हैं.घोषित चुनाव कार्यक्रम के मुताबिक -तमिलनाडु ,केरल और पुद्दुचेरी में एक ही चरण में १३ अप्रैल को जबकि असम में दो चरणों में ४ और ११ अप्रैल को मतदान होगा . सबसे लम्बी चुनावी प्रक्रिया पश्चिà �® बंगाल में निर्धारित की गई है , जहां १८ अप्रैल से १० मई तक ६ चरणों में मतदान कराया जायेगा . इन पाँच राज्यों

के चुनावों को स्थानीय मुद्द्ये तो प्रभावित करेंगे ही,साथ ही महँगाई , भृष्टाचार और आर्थिक नीतियों का असर भी पडेगा. ये विधानसभा चुनाव सम्बन्धित राज्यों के कामकाज की समीक्षा रेखांकित करेंगे,साथ ही केद्र की सत्तारूढ़ संयुक प्रगतिशील गठबंधन सरकार के कामकाज पर भी लघु जनमत संग्रह के रूप में देखे जायेंगे ,केंद्र में आसीन संप्रग सरकार का नेत्रत्व का रही कांग्रेस इन चुनाव वाले राज ्यों में से सिर्फ दो में -असम और पुदुचेरी में ही सत्ता में है. तमिलनाडु में उनके ’अलाइंस पार्टनर’द्रुमुक की सरकार है. कांग्रेस का अधिकतम जोर यही हो सकता है कि यथास्थिति बरकरार रहे.आसार भी ऐसे ही बनते जा रहे हैं.उक्त पाँच राज्यों में देश कि तथाकथित मुख्य विपक्षी पार्टी का कोई वजूद नहीं है अतेव कांग्रेस को भाजपा कि ओर से संसद में भले ही चुनौती मिल रही हो किन्तु इन राज्यों में कà चनौती नहीं है.

पश्चिम बंगाल में पिछले करीब ३५ साल से माकपा के नेत्रत्व में वाम मोर्चा काबिज है,उसे कामरेड ज्योति वसु का शानदार नेत्रत्व मिला था . उनके बाद का नेत्रत्व भी कमोवेश सुलझा हुआ और सेद्धान्तिक क्रांतीकारी आदर्शों का तरफदार है किन्तु भूमि सुधार कानून लागू करने,मजदूरों -किसानो को संगठित संघर्ष से अपने अधिकारों कि रक्षा का पाठ पढ़ाने,वेरोज्गरी भत्ता देने,राज्यमें धर्म निरपेक्ष मूल ्यों कि हिफाजत करने के वाबजूद आज का नौजवान बंगाली आर्थिक सुधारों के पूंजीवादी पैटर्न का हामी हो चला है.उसे किसीप्रजातांत्रिक क्रांति या समाजवाद में कोई दिलचस्पी नहीं,वह या तो हिंसक -बीभत्स नग्न छवियों का शिकार हो चला है,या उग्रवाम कि ओर मुड़ चला है. अतः उसे प्रतिकार कि भाषा का सिंड्रोम हो गया है ,इन तत्वों ने बंगाल में माओवाद,ममता ,तृणमूल और गैरवामपंथी दकियानूसी जमातों का ’म हाजोत’ बना रखा है ,कहने को तो कभी कांग्रेस और कभी तपन सिकदर भी इनके साथ हो जाते हैं किन्तु ये उनका एक सूत्रीय संधिपत्र है कि वाम को हटाओ .बाकि एनी सवालों ,नीतियों पर इन में जूतम पैजार होती रही है ,अतः कोई आश्चर्य नहीं कि घोर एंटी इनकम्बेंसी फेक्टर के वावजूद वाम फिर से{आठवीं बार} पश्चिम बंगाल कि सत्ता का जनादेश प्राप्त करने में कामयाब हो जाये.

केरल में तो आजादी के बाद से ही दो ध्रुवीय व्यवस्था कायम है .प्रतेक पाँच साल बाद सत्ता परिवर्तन में कभी कांग्रेस के नेत्रत्व में यु डी ऍफ़ और कभी माकपा के नेत्रत्व में लेफ्ट .अभी लेफ्ट याने वाम मोर्चे कि पारी है देश और दुनिया के राजनीतिक विश्लेषक , पत्रकार ,स्तम्भ लेखक और वुद्धिजीवी मानकर चल रहे होंगे कि अबकी बारी यु डी ऍफ़ याने कांग्रेस के नेत्रत्व में केरल कि सरक�¤ �र बनेगी.विगत एक साल से यु पी ऐ द्वितीय कि सरकार कि जिस तरह से भद पिट रही है ,एक के बाद एक स्केम का भन्दा फोड़ हो रहा है ,कभी शशी थरूर ,कभी पी जे थामस और कभी टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाला ,ये सब घोटाले न जाने देश को कहाँ ले जाते यदि न्यायपालिका कि भृष्टाचार के खिलाफ ईमानदार कोशिशें न होतीं !इन सब भयानक भूलों चूकों को केरल कि जनता भी जरूर देख सुन रही होगी.केरल कि शतप्रतिशत साक्षरता और साम्प्रद�¤ �यिक सहिष्णुता के परिणाम स्वरूप कोई आश्चर्य नहीं कि केरल में भी वामपंथ पुनः सत्ता में आजाये.

तमिलनाडु में मुख्यमंत्री एम् करूणानिधि अब जनता और राज्य पर बोझ बन चुके हैं , उनके परिवार का हर वंदा और वंदी बुरी तरह बदनाम हो चुके हैं ,ऐ राजा,कनिमोझी ,अझागिरी ,दयानिधि मारन,स्टालिन और उस कुनवे का हर शख्स आपादमस्तक पाप पंक में डूब चूका है सो द्रुमुक तो डूवेगी ही, अपने साथ कांग्रेस को भी खचोर डालेगी, कांग्रेस का नेत्रत्व अपनी जिम्मेदारी का ईमानदारी से निर्वाह करने में असफल रहा à ��ो खमियाजा तो भुगतना ही होगा .जयललिता को पुनः सत्तासीन होने कि तैयारी करनी चाहिए .

जहां तक भाजपा कि बात है , इन चुनावों में उसके सरोकार कहीं भी उपस्थिति दर्ज करने में असमर्थ हैं.कुल मिलाकार इन चुनावों के नतीजे केंद्र कि संप्रग सरकार , कांग्रेस , वामपंथ , के भविष्य की दिशा तो तय करेंगे ही, साथ ही इन प्रान्तों की जनता का वर्तमान भृष्ट व्यवस्था से सरोकार रखने वालों के प्रति क्या सोच है ?यह भी जाहिर होगा …..श्रीराम

स्वामी रामदेव- तीन भ्रम और उनकी वास्तविकता

आजकल स्वामी रामदेव देशभर में चर्चा का विषय बने हुए है। जहाँ कई साईंटे ऐसी है जो इस विषय पर स्वामी रामदेव कि आलोचना में कई लेख निकाल चुकी है, वही कुछ साईंटे ऐसी भी है जिन्होंने उनके पक्ष में भी लेख प्रकाशित किये है। विश्व में कोई भी व्यक्तित्व शत प्रतिशत स्वीकार्य नहीं है विरोध किसी भी कार्य का पहला चरण है, जिन विशिष्ट व्यक्तियों का मैंने नीचे जिक्र किया है उन सभी का प्यार और समर�¥ �थन स्वामी रामदेव को हासिल है, हालाँकि ये सूची काफी लम्बी है लेकिन हो सकता है कुछ लोगो को ये भी छोटी लगे, मैं कुछ सम्मानित व्यक्तियों और संस्थाओं के नाम देना चाहता हूँ जैसे योगपितामह श्री बी के एस अयंगर जी, श्री श्री रविशंकर, सद्गुरु जग्गी वासुदेव, महामंडलेश्वर श्री सत्यमित्रानंद जी,महामंडलेश्वर श्री अवधेशानंद गिरिजी, श्री रमेश भाई ओझा जी, सुधांशु जी महाराज, श्री शंकराचार्य जी à ��ांची काम कोटि पीठ, प्रणव पंड्या गायत्री परिवार, ब्रह्माकुमारी, किरण बेदी, अन्ना हजारे, गोविन्दाचार्य, अग्निवेश, राम जेठमलानी, कल्बे जव्वाद, अरविन्द केजरीवाल, विश्वबंधु गुप्ता, कुप श्री सुदर्शन, मोहन भागवत, स्वामी चिदानंद मुनि जी महाराज, सुब्रमण्यम स्वामी, वेद प्रताप वैदिक, आर्क बिशप विन्सेंट कांसेसो, महमूद ए मदनी, जे ऍम लिंगदोह, शांति भूषण, प्रशांत भूषण, मुफ्ती शमूम काजमी, मल्लà ��का साराभाई, अरुण भाटिया, सुनीता गोदरा, आल इंडिया बैंक इम्प्लायिस फेडरेशन और सबसे बढ़कर अखिल भारतीय अखाडा परिषद् और न जाने कितने और लोग और संस्थाए, अब अगर उनके आलोचकों को ये भी काम लगता है तो कुछ और लोगो के नाम भी मैं उपलब्ध करा सकता हूँ। अगर ये आलोचक इन लोगो से भी ज्यादा विद्वान और समझदार है, तो कृपया अपना नाम और पता बताये सबसे पहले तो उनके चरण ही छुने चाहिए अगर नहीं तो इन लोगो के वात ्सल्य का कारण जानना चाहिए कि क्यों स्वामी रामदेव इन्हें इतने प्रिय है।

आलोचकों की केवल तीन शंकाए है जो जानकारी के अभाव के कारण है।

पहली – स्वामी रामदेव की संपत्ति घोषित नहीं है और उनकी बहुत सारी संपत्ति विदेशों में भी है।

उत्तर – स्वामी रामदेव के नाम कोई भी संपत्ति या बैंक अकाउंट नहीं है जो भी है वो ट्रस्ट का है जो पूर्णतः घोषित है, और सरकार द्वारा इसका प्रतिवर्ष आडिट भी किया जाता है। इसके लिए आप पतंजलि योगपीठ से पत्राचार कर सकते है और २५ मार्च को तमाम टी वी चैनलों पर भी उन्होंने इसकी घोषणा कर दी थी। जहाँ तक विदेशो में संपत्ति का सवाल है ये गोपनीय नहीं है जो भी व्यक्ति प्रातः ५ से साढ़े ७ तक आस्था चै�¤ �ल देखता है। वो इस बात को जानता है और ये भी जानता है कि स्वामी जी को ये संपत्ति किसने और कब दान में दी और इसका भारत के कर एवं कानून व्यवस्था से कोई लेना देना नहीं है। ये उन देशो में वहा के भक्तो द्वारा दिया गया दान है जिसे उन देशो कि सरकारों द्वारा ही देखा जाना है अगर भारत सरकार को इसमे कोई शंका है तो वो उन सभी देशो के नाम जानती है आवश्यक कार्यवाही कर सकती है।

दूसरी – स्वामी रामदेव कोई बड़े विद्वान व्यक्ति नहीं है और योग के कोई खास जानकर नहीं है वो आम साधारण लोगो को बहका कर उन्हें लूट रहे है।

उत्तर – स्वामी रामदेव हमेशा इस बात को स्वीकार करते है कि वो कोई विद्वान व्यक्ति नहीं है बल्कि गाँव के किसान के घर पैदा हुए कम पढ़े लिखे व्यक्ति है और मोटी बात समझते है और मोटी बात ही बोलते है। योग और आयुर्वेद पर भी उनका ज्ञान वृहद् नहीं है लेकिन जो बोलते है वो तथ्यात्मक है और तार्किक एवं वैज्ञानिक भी वो एम्स, दिल्ली में भी एक अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में व्याख्यान दे चुके है(ऐसे सेà ��िनारों के सूची बहुत लम्बी है उन्हें यहाँ दे पाना संभव नहीं है) और सबसे बड़ी बात देश के मूर्धन्य योगगुरुओं का उन्हें आशीर्वाद प्राप्त है, जिनका जिक्र लेख में ऊपर किया जा चुका है। जहा तक आम साधारण लोगो को बहका कर उन्हें लूटने कि बात है तो ऊपर दी गयी विद्वानों सूची से ये जाना जा सकता है कि बहकने वाले केवल आम साधारण लोग नहीं है वो बार बार कहते है कि मुझे समर्थ लोगो से ज्यादा से ज्यादा द ान कि आवश्यकता है जिससे कि ज्यादा से ज्यादा लोगो का भला किया जा सके जैसे पतंजलि योगपीठ के देश में ७०० से भी ज्यादा चिकित्सालय है जहाँ निशुल्क चिकित्सीय परामर्श प्राप्त किया जा सकता है और ८०० से ज्यादा आरोग्य केंद्र है जहाँ से रोगी शुद्ध दवाए और अन्य उत्पाद बाज़ार से कम मूल्य पर खरीद सकता है ( ये याद रक्खे कि आयुर्वेद कि ज्यादातर दवाएं दुर्लभ जड़ी बूटियों से बनती है जिनका उत्पादन �¤ �हुत कम है स्वामी रामदेव के प्रयासों से इस क्षेत्र में किसानों के लिए सम्भावनाये बढ़ी है जिससे भविष्य में आयुर्वेदिक दवाओं के दाम कम हो सकते है और नए रोजगार सृजित हो सकते है )। हरिद्वार के पतंजलि योगपीठ में स्थित संत रविदास लंगर में रोज ५ हज़ार लोगो को निशुल्क भोजन कराया जाता है। हरिद्वार के पतंजलि योगपीठ में ४०० कमरों कि निशुल्क आवास व्यवस्था (महर्षि वाल्मीकि धर्मशाला) भी कि गयी है। योग पर वैज्ञानिक परीक्षण करने के लिए और आधुनिक चिकित्सीय विज्ञान में मान्यता दिलाने के लिए उस पर शोध कि आवश्यकता है जिसके लिए धन कि जरूरत है। पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट और भारत स्वाभिमान ट्रस्ट दो अलग अलग ट्रस्ट है और इनमे दिये जाने वाले दान का प्रयोग भी अलग अलग क्षेत्र में होता है।

तीसरी – स्वामी रामदेव की राजनीतिक महत्वाकांक्षा है ।

उत्तर – इसका जवाब समय ही दे सकता है फिलहाल उनके राजनीतिक हस्तक्षेप से जनता को उम्मीदे है वो पहले भी कह चुके है कि वो सन्यासी है और सन्यासी ही रहेंगे वो कोई राजनीतिक पद नहीं लेंगे लेकिन शीर्ष राजनीतिक पदों पर योग्य लोगो को ही बैठने देंगे अगर आजका राजनीतिक नेतृत्व चाहे वो किसी भी पार्टी का हो उनकी ९ सूत्रीय मांगो को पूरा करता है या पूरा करने का वचन देता है तो वो उसका समर्थन करेंगे और अपनी तरफ से कोई राजनीतिक विकल्प नहीं खड़ा करेंगे, अगर किसी राजनीतिक दल को उनकी मांगे गलत लगती है तो उनसे संवाद कर सकता है वो अपने घोषणापत्र में बदलाव करने को तैयार है। जहाँ आज देश के नामी वकील (सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, वीरप्पा मोइली, हंसराज भरद्वाज, मनीष तिवारी, अभिषेक मनु सिंघवी, रविशंकर प्रसाद, जयंती नटराजन………) और किसान (मुलायम सिंह, चौधरी अजित सिंह, ओमप्रकाश चौटाला , भूपिà ��दर सिंह हुड्डा…………) और ग्वाले (लालू प्रसाद……………….) और शिक्षक (मायावती…………..) और अभिनेता (हेमामालिनी, गोविंदा, राजबब्बर, जयाप्रदा, शत्रुघ्न सिन्हा, विनोद खन्ना………..) और कुछ राष्ट्र द्रोही(महबूबा मुफ्ती, सैयद अली शाह गिलानी, मीरवाईज उमर फारूख…………..) और कुछ धार्मिक नेता और संत ( स्वामी चिन्मयानन्द, सतपाल महाराज, योगी आदित्यनाथ, उमा भारती……………) औà �° खिलाडी( अज़हरुद्दीन, कीर्ति आज़ाद, नवजोत सिद्धू……………….) और पत्रकार (कुलदीप नय्यर, बलबीर पुंज, चन्दन मित्रा, राजीव शुक्ला………..) और अपराधी( मुख़्तार अंसारी, शहाबुद्दीन, धनञ्जय सिंह, अरुण गवली ………….) तमाम डॉक्टर, इंजीनियर, रिटायर्ड अधिकारी, रिटायर्ड जज इन सभी के पेशे पर कोई सवाल नहीं ये सभी नेता बन सकते है चुनाव लड़ सकते है लेकिन अगर स्वामी रामदेव इनके चरित्र पर सव�¤ �ल उठाते है और साथ ही ये वचन भी देते है कि वो कभी चुनाव नहीं लड़ेंगे उस पर न जाने कितने सवाल ।

स्वामी रामदेव के भारत स्वाभिमान संगठन के ९ उद्देश्य उल्लिखित है –

१. स्वदेशी चिकित्सा व्यवस्था

२. स्वदेशी शिक्षा व्यवस्था

३. स्वदेशी अर्थ व्यवस्था

४. स्वदेशी कानून एवं कर व्यवस्था

५. भारतीय संस्कृति की रक्षा

६. भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, गरीबी, महगाई, एवं भूखमुक्त वैभवशाली भारत का निर्माण

७. ग्रामीण स्वावलंबन

८. पर्यावरण की रक्षा एवं स्वच्क्षता

९. नियंत्रित जनसँख्या

इन उद्देश्यों को पूरा करने के कुछ उपाय देश की कुछ सम्मानित हस्तियों और विशेषज्ञों द्वारा सुझाया गया है ये आन्दोलन इन्ही उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जा रहा है देश के सभी सम्मानित नागरिको से अनुरोध है कि वो सभी भारत स्वाभिमान कार्यक्रम के निम्नलिखित संगठनों में से किसी में भी शामिल होकर इस आन्दोलन को समर्थन दे, अगर कोई शंका हो तो पहले उसका पुर्णतः निराकरण करे आज देश को आपकी जरूरत है ।

भारत स्वाभिमान कार्यक्रम के संगठन –

* युवा संग़ठन

* शिक्षक संग़ठन

* चिकित्सक संग़ठन

* वित्तीय व्यवसायी संग़ठन

* अधिवक्ता एवं पूर्व न्यायधीशों का न्यायविद् संग़ठन

* किसान संग़ठन

* उद्योग एवं वाणिज्य संग़ठन

* पूर्व – सैनिक संग़ठन

* कर्मचारी संग़ठन

* अधिकारी संग़ठन

* विज्ञान एवं तकनीकी संग़ठन

* कला-संस्कृति संग़ठन

* मीडिया संग़ठन

* वरिष्ठ नागरिक संग़ठन

जय हिंद, जय भारत।

 

थामस का शनी हो गया भारी

0 और कितने प्रमाण चाहिए कांग्रेस की राजमाता को

0 दागदार को बनाया थानेदार, कोर्ट ने उतारा कुर्सी से

0 आखिर क्या चाह रही हैं सोनिया गांधी?

0 सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से दूध का दूध पानी का पानी

(लिमटी खरे)

इक्कीसवीं सदी के पहले दशक की समाप्ति के दौर में सवा सौ करोड़ की आबादी का भारत गणराज्य बुरी तरह शर्मसार हुआ है। देश को शर्मसार और किसी ने नहीं वरन् सवा सौ साल पुरानी और देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस के वर्तमान निजामों ने किया है। लंबे समय से कांग्रेस की बागडोर इटली मूल की श्रीमति सोनिया गांधी के हाथों में है। सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस के सारे कारिंदे मनमानी पर पूरी तरह उतारू हैं, और सोनिया कभी मंद मंद मुस्कुरा देती हैं तो कभी जोर का ठहाका लगा देती हैं।

सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्रीय सतर्कता आयुक्त पोलायिल जोसफ थामस को हटाने के जो आदेश जारी किए हैं, वे देश की कांग्रेसनीत सरकार की किरकिरी करने के लिए पर्याप्त माना जा सकता है, किन्तु घपलों, घोटालों को अंगीकार कर चुकी भ्रष्टों की संरक्षक और हिमायती बनी कांग्रेस पार्टी ने इसे अपने बचाव के तौर पर भी देख रही है। कांग्रेस ने सारी हदें पार कर ली हैं। इस वक्त लगभग तीन लाख करोड़ रूपयों के घपले और घोटाले देश में गूंज रहे हैं, इनका कहीं न कहीं कांग्रेस से संबंध है।

लंबे समय तक पोलायिल जोसफ थामस का बचाव करने वाली केंद्र सरकार के गाल पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जो जबर्दस्त तमाचा मारा है, उसकी गूंज की गूंज सालों साल तक सुनी जाती रहेगी। वस्तुतः प्रधानमंत्री डाॅ.मनमोहन सिंह और गृह मंत्री पलनिअप्पम चिदम्बरम द्वारा सीवीसी की नियुक्ति के लिए गठित समिति की तीसरी सदस्य नेता प्रतिपक्ष श्रीमति सुषमा स्वराज की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए पोलायिल जोसफ थामस को सीवीसी जैसे महत्वपूर्ण पद पर विराजमान कर दिया था। सवाल यह है कि जहां देश की सबसे बडी जांच एजेंसी सीबीआई भी सीवीसी की देखरेख में काम करती है, तब यह आवश्यक हो जाता है कि संवैधानिक पदों पर नियुक्ति के समय संस्थागत गरिमा को बाकायदा ध्यान में रखा जाए। इसके लिए जरूरी है कि सीवीसी जैसे पद पर उस व्यक्ति को बिठाया जाए जिसकी छवि उजली हो, बेदाग हो और वह किसी के दबाव में आकर काम न करे।

पोलायिल जोसफ थामस की हिमाकत तो देखिए उन्होंने सर्वोच्च न्यायलय में यह कहने में भी संकोच नहीं किया कि जब आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोग देश में सांसद चुने जा सकते हैं तो फिर वे सीवीसी क्यों नहीं बन सकते हैं। उधर कितने आश्चर्य की बात है कि देश के प्रधानमंत्री को यह नहीं पता कि पोलायिल जोसफ थामस पर पामोलिन आयल घोटाले का प्रकरण चल रहा है! जब थामस पर एक प्रकरण चल रहा है फिर पलनिअप्पम चिदम्बरम भला थामस को कैसे क्लीन चिट दे सकते हैं।

पोलायिल जोसफ थामस में क्या गुड लगा हुआ है जो सरकार बार बार उनका बचाव करती रही। इतना ही नहीं सरकार द्वारा न्यायपलिका पर भी प्रश्नवाचक चिन्ह लगाते हुए कहा गया कि न्यायपालिका को सरकार के काम में दखल देने का अधिकार नहीं है। कितने आश्चर्य की बात है कि एक अदने से भ्रष्ट अधिकारी को सही ठहराने के लिए कांग्रेसनीत केंद्र सरकार द्वारा न केवल तथ्यों को छिपाने का कुत्सित प्रयास किया है, वरन देश को गुमराह भी करने में कोई शर्म नहीं महसूस की है।

विडम्बना तो यह है कि एक निहायत ईमानदार व्यक्ति के प्रधानमंत्री होते हुए केंद्र सरकार एक के बाद एक घपले घोटालों से घिरती ही चली जा रही है। पता नहीं कब यह सिलसिला रूक सकेगा। इससे पहले कामन वेल्थ गेम्स में सरकार की खासी किरकिरी हो चुकी है। टूजी मामले में आदिमत्थू राजा का बचाव करने वाली सरकार के सामने बुरी स्थिति तब आई जब उसे इसी मसले में राजा से त्यागपत्र मांगा गया और फिर बाद में राजा को जेल भी भेजा गया।

हालात देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि सरकार अपनी जिम्मेवारी को समझना ही नहीं चाहती। बहुत पुरानी कहावत है कि ‘‘जगाया उसे जा सकता है, जो सो रहा हो, किन्तु जो सोने का नाटक करे उसे आप कभी भी जगा नहीं सकते। कहने का तातपर्य महज इतना ही है कि सरकार को अपने हाथ साफ करके सबके सामने आना चाहिए, ना कि आत्मघाती राजनैतिक मजबूरियों को गिनाने का प्रयास करना चाहिए।

भगवान शनि बहुत दयालू और दूसरी ओर बहुत ही क्रूर भी हैं। शनि देव को तेल का अर्पण करने से वे प्रसन्न हो जाते हैं। पोलायिल जोसफ थामस ने केरल में पामोलीन तेल के आयात में घोटाला किया था। इस लिहाज से थामस ने शनि को रूष्ट कर दिया। केरल सरकार ने वर्ष 1991 – 92 में सिंगापुर के एक प्रतिष्ठान से ताड़ का तेल मंगवाया गया था। इसमें आरोप था कि इसे अंतर्राष्ट्रीय दर से अधिक कीमत पर मंगाया गया था। सरकार ने 405 डालर प्रति टन की दर से पंद्रह हजार टन तेल के आयात को मंजूरी दी थी। जबकि बाजार में इसकी दर 392.25 डाॅलर प्रति टन थी। इस हिसाब से राज्य सरकार को उस वक्त 2 करोड़ 32 लाख रूपए का नुकसान उठाना पड़ा था।

जब पोलायिल जोसफ थामस के सीवीसी बनाए जाने की बात चल रही थी तब उनके अलावा 1973 बैच के पश्चिम बंगाल के भारतीय प्रशासनिक सेवा के विजय चटर्जी और 1975 बैच के उत्तरांचल काडर के अधिकारी एस.कृष्णन का नाम उस फेहरिस्त मे ंथा।

दूसरी तरफ देखा जाए तो केंद्रीय सतर्कता आयोग एक स्वायत्ता संस्था है, जो केंद्र सरकार की समस्त विजलेंस इकाईयों की निगरानी का काम करती है। वस्तुतः यह कोई जांच एजेंसी नहीं है, यह सीबीआई या अन्य विभागीय जांच एजेंसियों के माध्यम से काम करवाती है। इतना ही नहीं यह सरकार द्वारा कराए गए निर्माण कार्यों की जांच भी स्वयं अपने स्तर पर ही करती है। देखा जाए तो सीवीसी ने 1998 से ही काम करना आरंभ कर दिया था किन्तु इसका गठन 2003 में देश की सबसे बड़ी अदालत के आदेश के बाद हुआ था।

 

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खबरें ……………….

 

पिघल रही है दस जनपथ और 7 रेसकोर्स में जमी बर्फ

0 सोनिया मनमोहन के बीच संवाद आरंभ

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी और वजीरे आजम डाॅ.मनमोहन सिंह के बीच संवादहीनता की स्थिति अब कुछ हद तक समाप्त होती प्रतीत हो रही है। दोनों ही शीर्ष नेताओं ने सार्वजनिक तौर पर भी अब संवाद आरंभ कर दिया है। पिछले दिनों एक विवाह समारोह में जब दोनों ही ताकतवर नेता आमने सामने आए तो वे एक दूसरे की उपेक्षा करने का साहस नहीं जुटा सके।

पिछले दिनों सोनिया गांधी के एक करीबी सुमन दुबे के पुत्र के विवाह समारोह में कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री डाॅ.एम.एम.सिंह दोनों ही शिरकत करने पहुंचे। दोनों ही के वहां पहुंचने के पहले वर पक्ष की ओर से सोनिया की मण्डली तो वधू पक्ष की कमान प्रधानमंत्री कार्यालय के विश्वस्तों ने संभाल रखी थी।

गौरतलब है कि सुमन दुबे की गिनती कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र दस जनपथ (सोनिया का सरकारी आवास) के वफादारों में होती है, तो सुमन दुबे की बहू एक मलयाली पत्रकार और प्रधानमंत्री कार्यालय के अतिरिक्त सचिव की सुपुत्री हैं, जो प्रधानमंत्री की गुड बुक्स में हैं। इस लिहाज से घोषित और अघोषित सत्ता और शक्ति के केंद्र की वहां उपस्थिति लाजिमी ही थी।

यद्यपि यह विवाह केरल में संपन्न हुआ किन्तु इसका रिसेप्शन धौलाकुआं स्थित वायुसेना के मैदान में संपन्न हुआ। इस अवसर पर मनमोहन और सोनिया गांधी दोनों ही आमने सामने आए और कुछ पलों तक वे एकांत में चर्चारत भी रहे। वहां मौजूद लोग इस नजारे को देखकर यह कहने से नहीं चूके कि संबंधों की बर्फ पिघल रही है।

 

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कांग्रेस को अमरिकी अदालत के समन से खलबली

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। नवंबर 1984 में हिन्दुस्तान में हुए सिख्खों पर हमले की बात लगता है कांग्रेस का पीछा ही नहीं छोड़ रही है। पहले शहरी विकास मंत्री कमल नाथ को अमरिकी समन का सामना करना पड़ा और अब दुनिया के चैधरी अमरिका की एक अदालत ने कांग्रेस पार्टी के नाम से ही समन जारी कर खलबली मचा दी है।

कांग्रेस मुख्यालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार यद्यपि अभी तक कांग्रेस पार्टी को इस समन की प्रति नहीं मिल सकी है किन्तु इंटरनेट के माध्यम से कांग्रेस के पदाधिकारियों को इस बारे में पता चल गया है। कांग्रेस के पदाधिकारी इस मामले में अपनी जुबान खोलने से पूरी तरह बच ही रहे हैं।

प्राप्त जानकारी के अनुसार अमरिका की एक अदालत में सिख्स फाॅर जस्टिस संगठन द्वारा दायर याचिका मंे कांग्रेस पर लगाए गए आरोपों के बारे में अदालत ने कांग्रेस से अपना पक्ष स्पष्ट करने को कहा है। इस संगठन में 1984 के दंगों में बचे अनेक सिख्ख सदस्य हैं।

याचिका में आरोप लगाया कि नवंबर 1984 में कांग्रेस पार्टी केंद्र में सत्ता में थी, उस दौरान कांग्रेस पार्टी द्वारा देश भर में सिख्खों पर हमले की साजिश रची थी। इतना ही नहीं हमलों में मदद दी और लोगों को हमला करने के लिए उकसाया। सिख्खों पर हमला भी उन्हीं राज्यों में हुआ था जहां कांग्रेस सत्ता में थी।

 

अंततः सोनिया ने फेंट ही दिए पत्ते

0 अर्जुन, माहसीना बाहर नए चेहरों पर जोर

 

नई दिल्ली। अंततः कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी ने अपनी कार्यकारिणी का पुर्नगठन कर ही दिया है। पहले चरण में अनेक वरिष्ठ नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। माना जा रहा है कि अपने बेटे राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के मार्ग प्रशस्त करने में लगी सोनिया गांधी ने कड़ा रूख अख्तिायार कर ही लिया है।

चैथी बार अध्यक्ष चुने जाने के तीन माह बाद आज पुर्नगठित कार्यकारिणी में नेहरू गांधी परिवार के विश्वस्त रहे कुंवर अर्जुन सिंह, मोहसीना किदवई और जी.वैंकटस्वामी जैसे उमर दराज नेताओं को स्थान नहीं मिल सका है। सोनिया गांधी ने अनेक लोगों को खलने वाले फैसले लेकर पश्चिम बंगाल, झारखण्ड प्रभारी केशव राव को हटा दिया है। इसके अलावा वी.नारायण सामी, प्रथ्वीराज चव्हाण, मल्लिकार्जुन खडगे, किशोर चंद देव को भी कार्यसमिति से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। आस्कर फर्नाडिस को कार्यसमिति में शामिल करते हुए महासचिव बनाया गया है।

 

सोनिया के राजनैतिक सचिव अहमद पटेल का रूतबा बरकरार रखा गया है। इसके अलावा मोती लाल वोरा, दिग्विजय सिंह, प्रणव मुखर्जी, ए.के.अंटोनी, जनार्दन द्विवेदी, गुलाम नवी आजाद के साथ ही साथ अपने पुत्र राहुल को भी इसमें स्थान दिया गया है। कांग्रेस की कार्यसमिति में अब 19 सदस्य हो गए हैं।

मध्य प्रदेश के बुंदेलखण्ड क्षेत्र के सूरमा सत्यव्रत चतुर्वेदी की भी सोनिया ने छुट्टी कर दी है। इसके अलावा सोनिया गांधी ने अपनी टीम में आस्कर फर्नाडिस, मधुसूदन मिस्त्री, वीरेंद्र सिंह जैसे लोगों को बतौर महासचिव शामिल किया है। चर्चाओं के अनुसार टीम सोनिया में दो बार से सबसे ज्यादा सांसद भेजने वाले आंध्र प्रदेश को प्रतिनिधित्व न मिलने पर दक्षिण में कांग्रेस को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

 

हम हैं पांचवे सबसे बड़े कर्जदार

नई दिल्ली। हिन्दुस्तान विश्व के बड़े कर्जदारों की फेहरिस्त में शामिल हो गया है, जी हां यह सच है। विश्व बैंक के ग्लोबल डेवेलपमेंट फाइनैंस 2010 प्रतिवेदन में 20 कर्जदार देशों के आंकड़ों के आधार पर हिन्दुस्तान को दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा कर्जदार देश बताया गया है।

लोकसभा में शिव कुमार उदासी के प्रश्न के लिखित उŸार में विŸा मंत्री प्रणव मुखर्जी ने बताया कि वल्र्ड बैंक के ग्लोबल डेवेलपमेंट फाइनैंस 2010 रिपोर्ट में बाहरी कर्ज के मामले में भारत को दुनिया का पांचवां सबसे कर्जदार देश बताया गया है। इस सूची में पहले स्थान पर रूस उसके बाद चीन, तुर्की और ब्राजील हैं।

वित्त मंत्री ने कहा कि सितंबर 2010 को समाप्त तिमाही में भारत का बाहरी कर्ज 13 लाख 32 हजार 195 करोड़ रुपये था जबकि इससे पूर्व मार्च 2010 को समाप्त तिमाही में बाहरी कर्ज 11 लाख 84 हजार 998 करोड़ रुपये था। प्रणव मुखर्जी ने कहा कि इन कर्जों र्में सितंबर 2010 को समाप्त तिमाही में 77.7 प्रतिशत कर्ज लंबी अवधि के थे और 22.3 प्रतिशत कर्ज कम समय के थे।

 27 को संसद घेरेंगे बाबा रामदेव

नई दिल्ली। योग गुरू बाबा रामदेव ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखते हुए 27 मार्च को संसद का घेराव करने का ऐलान किया है। असम के कोकराझार में आयोजित योगशिविर के दौरान योग गुरू ने एक बार फिर कहा कि विदेशी बैंकों में जमा भारतीय लोगों के काले धन को वापस लाने की उनकी मुहिम जारी रहेगी।

इस बीच अखिल भारतीय कांग्रेस सेवा दल ने योग गुरू की संपŸिा की सीबीआई से जांच कराए जाने की मांग की है। सेवा दल के संयोजक नवनीत कालरा ने आरोप लगाया है कि बाबा रामदेव ने पिछले एक दशक के दौरान करोड़ों रुपये की संपŸ हासिल कर ली है। उन्होंने मांग की कि बाबा की अकूत संपŸ की सीबीआई से जांच कराई जानी चाहिए।

बाबा रामदेव ने हाल में दिल्ली में आयोजित रैली में कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए उस पर हमला बोला था। बाबा रामदेव ने कहा कि देश में 99 फीसदी भ्रष्टाचार के लिए कांग्रेस जिम्मेदार है।

(लिमटी खरे)

मध्य प्रदेश की फरार विधायक गिरफ्तार

हाईप्रोफाइल ड्रामे के तहत भाजपा से निलंबित विधायक आशारानी सिंह को भोपाल पुलिस ने मध्य प्रदेश विधानसभा के बाहर आज गिरफ्तार कर यहां के कोलार थाने में ले गई। छतरपुर जिले के बिजावर की भाजपा विधायक आशारानी सिंह अपने पति पूर्व विधायक अशोक वीर विक्रम सिंह उर्फ भैयाराजा के साथ नौकरानी तिज्जीबाई की हत्या के मामले में आरोपी हैं। भैयाराजा पहले से ही जेल में हैं।
आशारानी सिंह सुबह 10 बजे विधानसभा पहुंच गई थी, लेकिन पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार नहीं किया। वे सदन में भी मौजूद थीं। शून्यकाल में कांग्रेस विधायक डॉ. गोविंद सिंह ने आशारानी की मदद करने का अध्यक्ष से आग्रह किया, लेकिन अध्यक्ष ने डॉ. सिंह को यह मामला उठाने की इजाजत नहीं दी। आशारानी सदन में करीब एक घंटे रहने के बाद लॉबी में चली गईं। बाहर पुलिस उनका इंतजार कर रही थी। पुलिस विधानसभा परिसर से बाहर निकल रहे एक-एक वाहन की तलाशी ले रही थी। दोपहर एक बजे जैसे ही आशारानी आईं, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। साठ दिन लगातार विधानसभा से बिना अनुमति अनुपस्थित रहने वाले विधायक की सदस्यता खत्म हो सकती है, इसी के चलते आशारानी सिंह विधानसभा पहुंची थीं। अब गिरफ्तारी के बावजूद उनकी विधायकी बची रह सकेगी। वे इसके पहले विधानसभा में प्रश्न लगाती रही हैं। पिछले साल उन्होंने सत्तापक्ष की सदस्य होने के बावजूद बजट में संशोधन प्रस्ताव विधानसभा सचिवालय भिजवा दिया था।
गौरतलब है कि फैशन डिजाइनिंग की छात्रा वसुंधरा बुंदेला की मौत के बाद जब उसके नाना यानी भैया राजा को हत्या की साजिश रचने के लिए पुलिस ने गिरफ्तार किया तो तिज्जो बाई की रहस्यमय हालात में हुई मौत की परतें भी खुलती चलीं गईं। पूर्व विधायक अशोक वीर विक्रम सिहं उर्फ भैया राजा का भोपाल का बंगला यशोदा परिसर में 21 जुलाई 2007 को तिज्जो बाई नाम की नौकरानी ने खुद को आग लगाकर खुदकुशी कर ली थी। पुलिस ने इस मामले को आत्महत्या मानकर मर्ग कायम किया था। विधायक आशारानी ने तिज्जी बाई को परिवार का सदस्य बताते हुए उसकी लाश उसके पति बिहारी और भाई फकीरा के सुपुर्द नही की थी। ठंडे बस्ते में पड़े इस मामलेहवा उस समय मिली जब वसुंधरा हत्याकांड में पुलिस ने भैयाराजा के नौकर भूपेंद्र उर्फ हल्के समेत अन्य आरोपियों से पूछताछ की तो चौंकाने वाले तत्थ सामने आए। मर्ग डायरी की दोबारा जांच शुरू की गई। इसी दौरान तिज्जी के पति बिहारी और फकीरा को तलाशा और उनसे पूछताछ की। बिहारी और फकीरा के बयानों में सामने आया कि आशारानी दो बार तिज्जीबाई का अपहरण करके उसे यशोदा परिसर लाई थी। उसके बाद तिज्जी बाई किसी से भी नही मिल सकती थी। भाई और पति मिलने जाते तो उन्हें मारपीट कर भगा दिया जाता था। पुलिस ने पति और भाई के अदालत में 164 के बयान भी दर्ज कराए। वसुंधरा हत्याकांड के आरोपियों ने भी पुलिस को बताया था कि भैयाराजा द्वारा तिज्जीबाई का यौन शोषण किया जाता था। यह बात पति और भाई के बयानों में भी सामने आई थी। मर्ग की जांच विवेचना प्रकोष्ठ के प्रभारी एएसपी एके पांडे को सौंपी गई थी। एएसपी श्री पांडे ने जांच पूरी कर रिपोर्ट एसएसपी आदर्श कटियार के सुपुर्द कर दी थी। जिसके आधार पर कोलार पुलिस ने विधायक आशारानी, भैयाराजा और उनके सहयोगी बहोरी दहाइत, कन्हैयालाल दुबे, गोपाल सिंह ठाकुर, नर्मदा पाठक, मिजाजी ढीमर और ड्राइवर ख्वाजा के खिलाफ अपहरण, बंधक बनाकर रखना, दुष्कृत्य और आत्महत्या के लिए प्रेरित करने पर 363, 366, 367, 368, 344, 374, 376, 193, 120-बी, 306 और 34 की धारा प्रकरण दर्ज किया था। आरोपियों ने 1993 से 2007 तक तिज्जी बाई को बंधक बनाकर रखा और प्रताडऩाएं दी थी। तिज्जीबाई के मर्ग की केस डायरी जब वरिष्ठ अधिकारियों ने तलब की तो उसमें दो पन्ने फटे हुए थे। वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि केस डायरी के पन्ने फटे होने में टीआई कोलार चंदन सिंह सूरमा की भूमिका संदिग्ध है।
बीजेपी की विधायक आशारानी सिंह ने तीन साल पहले पुलिस को लिखकर बयान दिया था कि तिज्जो बाई के आगे पीछे कोई नहीं है। लेकिन तिज्जोबाई के दूसरे पति दादी ढीमर और भाई फकीरा के सामने आ जाने से एक नया मोड़ ले लिया। बताया जा रहा है कि दोनों बेबस हैं और तिज्जो बाई की मौत का सदमा आज तक झेल रहे हैं। इन लोगों को तो तिज्जो बाई की मौत की खबर तक नहीं दी गई थी। वहीं आशारानी इसे साजिश बताकर इन अल्फाजों में अपनी सफाई दे रही थी। लेकिन सवाल ये है कि बाहुबली भैया राजा और उनकी पत्नी के खिलाफ किस हद तक कार्रवाई हो पाती है ये देखने वाली बात होगी।
जांच के बाद दी गई रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा हुआ था कि तिज्जी बाई का अपहरण वर्ष 1993 में हुआ था और उसे अवैध ढंग से वर्ष 2005 में भैया राजा के फार्म हाउस में रखा गया, जहां पर उसके साथ भैया राजा द्वारा दुष्कृत्य किया जाता था। वर्ष 2005 में तिज्जी बाई आरोपी विधायक के भोपाल स्थित घर से भागकर दिल्ली चली गई और वहां पर बिहारी ढीमर नामक युवक के साथ रहने लगी। दोनों के वापस लौटने की जानकारी मिलने पर भैया राजा और उसकी पत्नी ने कुछ बाहुबलियों को भेजकर उसका अपहरण करा लिया। बाद में भैया राजा और उसकी पत्नी आशारानी सिंह से तंग आकर तिज्जी बाई ने 21 मई 2007 को आत्महत्या कर ली थी। पुलिस ने भैया राजा, उसकी पत्नी आशारानी सिंह व अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया था। पूर्व में 11 मार्च 2010 को हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत अर्जी खारिज होने के बाद फरार भाजपा विधायक आशारानी सिंह की ओर से दूसरी अर्जी दायर की गई थी उसे भी कोर्ट ने खारिज कर दिया था।

मध्य प्रदेश में केवल भैयाराजा और आशारानी ही नहीं बल्कि अन्य कई विधायक ऐसे हैं जिनके खिलाफ धोखाधड़ी से लेकर हत्या तक के प्रकरण दर्ज हैं। उदाहरण देखिए, विधानसभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह तथा डबरा क्षेत्र की महिला विधायक इमरती देवी के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला कायम है।
बिजावर की विधायक आशारानी सिंह अपहरण, बलात्कार में सहयोग तथा आत्महत्या को मजबूर करने की आरोपी हैं,तो सीहोर के रमेश सक्सेना, डिण्डोरी के ओमकार सिंह, खुरई के अरुणोदय चौबे, बंडा के नारायण प्रजापति, गाडरवारा की साधना स्थापक तथा डा. कल्पना पारुलेकर के खिलाफ बलवा, तोडफ़ोड़ तथा आगजनी जैसे गंभीर अपराध पर एफआईआर दर्ज है। टीकमगढ़ जिले के प्रथ्वीपुर से विधायक बृजेंद्र सिंह राठौर पर हत्या और हत्या के प्रयास सहित 4 आपराधिक प्रकरण कायम हैं। इस तरह विधानसभा के 230 में से 48 सदस्य ऐसे हैं, जिनके खिलाफ विभिन्न थानों में अलग-अलग धाराओं में अपराध पंजीबद्ध हैं। इनमें से 18 माननीयों के खिलाफ गंभीर वारदातों को अंजाम देने के आरोप हैं। राज्य मंत्रिमंडल के दो सदस्यों के खिलाफ भी आपराधिक प्रकरण कायम हैं। महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री रंजना बघेल के खिलाफ धारा 323, 506 बी के तहत प्रकरण कायम है, जबकि सहकारिता मंत्री डा. गौरीशंकर बिसेन धारा 188 के तहत प्रकरण दर्ज है। रंजना के खिलाफ प्रकरण चालान तैयार है, लेकिन न्यायालय में प्रस्तुत नहीं किया गया, जबकि श्री बिसेन के खिलाफ प्रकरण न्यायालय में विचाराधीन है। इसके अलावा एक पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा के खिलाफ भी धारा 188 तथा 126 जन प्रतिनिधि अधिनियम के तहत मामला कायम है। यह प्रकरण अभी विवेचना में है।धारा 188 के आरोपी हैं ये विधायक
सत्यनारायण पटेल, यशपाल सिंह सिसौदिया, जितेंद्र डागा, बाला बच्चन, माखन लाल जाटव, डा. कल्पना पारुलेकर।
इनके खिलाफ हुई धारा 151 की कार्रवाई
विश्वास सारंग, जमुना देवी, अजय सिंह, हुकुम सिंह कराड़ा, उमंग सिंगार, केपी सिंह, सुखदेव पांसे, दिलीप सिंह, प्रियवृत सिंह, निशिथ पटेल, तुलसी सिलावट, यादवेंद्र सिंह, बाल सिंह मेड़ा, प्रताप ग्रेवाल, ओमकार सिंह, अजय यादव, लक्ष्मण तिवारी, रेखा यादव।

Binod Upadhya

मानव मात्र को बांटने की नायाब कोशिश

मो. इफ्तेख़ार अहमद,
यूरोपियन अब तक अपने आपको दुनिया के सबसे स्मार्ट, सभ्य और दुनियाभर को सभ्य बनाने का ठेकेदार मानते रहे हैं। इनके इस सिध्दांत को दुनियाभर से चुनौती मिली। 21वीं सदी में एशिया के उभार ने तो इसे पूरी तरह ख्वारिज कर दिया। अब ये जग जाहिर हो चुका है कि 21वीं सदी में एशिया की निर्णायक भूमिका होगी। मौजूदा एशियाई देश प्रकृतिक संपदा से भरपूर होने के साथ ही ज्ञान-विज्ञान कुशल मानव संसाधन के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है। आज एशिया की सबसे बड़ी ताकत उसकी मूल्यपरक जीवन शैली है। जहां 21वीं सदी के इस भौतिकवादी युग में भी मानव मूल्यों को बचाने के लिए सारी सुख सुविधाओं की तीलांजलि दी जा रही, लेकिन अब भी लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (एलएसई) में ऐसे शोध किए जा रहे हैं जो मानव मात्र को खूबसूरत और बदसूरत वर्ग में बांटने और भेद-भाव पैदा करने वाले सिध्दांतों को वैज्ञानिक रूप दे रहा है।

शोध में बताया गया है कि सुंदर पुरुष और महिलाएं सामान्य दिखने वाले पुरुष, महिलाओं से ज्यादा बुद्धिमान होते हैं। हालांकि सुंदरती की परिभाषा नहीं दी गई है जो अपने आपमें भ्रामक है। अगर भारतीय परिदृश्य की बात करें तो यहां सुन्दरता को मूल्यों और चारित्रिक सुंदरता के रूप में देखने की परंपरा रही है, लेकिन स्मार्ट चेहरों के पीछे भागने और काले लोगों पर सफेद चमरी बनाने का नशा चढ़ाकर क्रीम और पाउडर की दुकानदारी चलाने वालों से तो ऐसी कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

यूरोपियन की निगाह में असभ्य माने जाने वाले एशिया के बढ़ते कद और महत्व को पहचानते हुए अमेरिका भी अपनी विदेश नीति में बदलाव करते हुए ‘लुक एशिया की राह पर चल पड़ा है। इसी क्रम में पिछले दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति ने एशिया की तीन उभरती हुई शक्तियों भारत, इंडोनेशिया और दक्षिण कोरिया से संबंध सुधारने के लिए इन देशों की यात्रा की, लेकिन इन सब बातों से अलग लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (एलएसई) में खूबसूरती का इंटेलीजेंसी से संबंध तलाशने के नाम पर जो रिजल्ट सामने आया है वह एक बार फिर सभ्यता, शिक्षा और नई खोज को खूबसूरत लोगों की बपौती साबित करने की कोशिश की तरह है। अब तक माना जाता था कि किसी के दिमाग के तेज होने का खूबसूरती से कोई तअल्लुक नहीं है, ‘लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (एलएसई) द्वारा कराए गए अध्ययन में पाया गया है कि खूबसूरत स्त्री-पुरुष ज्यादा बुद्धिमान होते हैं और उनका आईक्यू औसत से 14 प्वाइंट अधिक होता है। ‘इंटेलीजेंस पत्रिका के मुताबिक खूबसूरत जोड़ों के बच्चे सुंदर भी होते हैं और बुद्धिमान भी। इन गुणों का उनकी आगे तक की पीढिय़ों में आनुवांशिक रिश्ता रहता है। वेबसाइट ‘डेली मेल डॉट को डॉट युके की रिपोर्ट में समाचार पत्र ‘संडे टाइम्स के हवाले से एलएसई की शोधकर्ता संतोषी कनाजावा कहती हैं कि शारीरिक अकर्षण सामान्य बुद्धि से महत्वपूर्ण सकारात्मक ढंग से जुड़ा हुआ है। फिर चाहे इस पर सामाजिक वर्ग, शरीर के आकार और स्वास्थ्य का नियंत्रण हो अथवा नहीं। इस अध्ययन में पाया गया है कि शारीरिक रूप से आकर्षक दिखने वाले पुरुषों का आईक्यू औसत से 13.6 प्वाइंट अधिक होता है, जबकि खूबसूरत दिखने वाली महिलाओं का आईक्यू औसत से 11.4 प्वाइंट अधिक होता है। कनाजावा के ये परिणाम ‘नेशनल चाइल्ड डेवलपमेंट स्टडी पर आधारित हैं। इसमें 17,419 लोगों पर 1958 में मार्च में उनके जन्म के समय से एक सप्ताह तक के लिए नजर रखी गई थी। बताया गया है कि इन लोगों ने अपने बाल्यकाल और व्यस्क अवस्था की शुरुआत में शैक्षिक प्रगति, बौद्धिकता और शारीरिक दिखावट से सम्बंधित कई परीक्षाएं दीं। अमेरिका के ‘नेशनल लांगीट्यूडिनल स्टडी ऑफ एडोलीसेंट हेल्थ के ऐसे ही अध्ययन में 35,000 युवा अमेरिकियों को शामिल किया गया था। कनाजावा का कहना है कि खूबसूरत लोगों के अधिक बुद्धिमान होने की उनकी बात शुद्ध रूप से वैज्ञानिक है।

ये शोध कितना वैज्ञानिक है इस पर तो कुछ नहीं कहा जा सकता है, लेकिन ब्रिटेन, फ्रांस, अमेरिका और आस्ट्रेलिया में बेरोजगारों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। जिसे देखते हुए यहां इन दिनों बाहरी पेशेवरों की आमद को लेकर हो-हुल्ला मचा हुआ है और नतीजतन वहां की सरकारें भी आव्रजन वीजा नीति को सख्त बनाने पर आमादा है। ये शोध उसी दिशा में उठाया गया कदम लगता है। यानी आर्थिक रूप से जर्जर हो चुकी यूरोप की अर्थ व्यवस्थाओं को सुधारने के लिए इस शोध के माध्यम से अब सारकारें अपने देशों में कार्यरत कंपनियों से कह सकेगी कि उनके ये गोरे लोग बाकी दुनिया के लोगों से ज्यादा योग्य और दक्ष है, लिहाजा पहली प्राथमिकता गोरे लोगों को मिलनी चाहिए। इस प्राकर ये शोध यूरोपियन कंपनियों को सुंदर दिखने वाले गोरे लोगों को नौकरी में रखने के लिए मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार करेगी। वहीं इस शोध से सुंदर बनाने के नाम पर दुकान चलाने वालों की दुकानदारी भी चल पड़ेगी। जैसा कि हम सभी आज कल फेयर एंड लवली के विज्ञापन में देखते हैं। लिहाजा ये शोध खूबसूरत और बदसूरत लोगों को बांटने का वैज्ञानिक आधार देने जैसा है, जो एशिया, अफ्रीका और लातीनी अमेरिका के लोगों के अधिकारों का खुला उलंघन और भेद-भाव को बढ़ावा देने का पाखंडपूर्ण वैज्ञानिक आधार के इलावा कुछ नहीं है।

श्रीमती पटेरिया के बयान से बौखलाई गोंडवाना

विधायिका श्रीमती नीता पटेरिया यह भी कह रही हैं कि कौन से मुझे इस क्षेत्र से वोट मिले थे। वहीं कौन आदिवासियों ने मुझे वोट दिया है आदिवासियों ने वोट तो गोंगपा, मुनमुन राय, व कांग्रेस को दिया था। वहंीं हमारे नेता डॉ. बिसेन भी आदिवासियों के वोट नहीं मिल पाने के कारण हार गये और तो और भाजपा में जो भी आदिवासी नेता आये हेैं वे सभी किसी दूसरी पार्टी से आये हैं या फिर स्वार्थ वस पार्टी में आये हैं ।

सिवनी सिवनी विधानसभा क्षेत्र की विधायक श्रीमती नीता पटेरिया ने बैठे-बिठाये गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को भारतीय जनता पार्टी सरकार के विरोध में बोलने के लिए एक जबरदस्त मुद्दा दे दिया है। उन्होने पिछले दिनों मृतक राकेश बरकड़े की आत्महत्या के पश्चात जो बयानबाजी कर बरैया के छत्ते में मानो पत्थर मार दिया है। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने श्रीमती पटेरिया के बयान के विरोध में जबरदस्त विरोध प्रदर्शन का माहौल तैयार कर लिया है। आदिवासी समाज के व्यक्ति श्रीमती पटेरिया के बयान को सारी जाति का अपमान मान रहे हैं। पूरे जिले मेें आदिवासियों के बीच श्रीमती पटेरिया का बयान चर्चा का विषय बना हुआ है। हालांकि यह पहला अवसर नहीं है,जब श्रीमती पटेरिया अपनी ऊलजलूल बयानबाजी से पूरी पार्टी को परेशानी में डाला हो। इसके पूर्व भी वे या उनके वरदहस्तों द्वारा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए परेशानियां खड़ी करते रहे हैं। सांसद रहते हुए एक सिवनी जिले के आदिवासी की लाश तत्कालीन सांसद रहीं श्रीमती पटेरिया द्वारा कोई मदद आश्वासन देने के पश्चात भी न करने के कारण सड़ते रही और मृतक के परिजनों ने मजबूरन उसे दिल्ली में ही दफन किया था। वह घटना भी फिर से ताजा हो गई है। अभी हाल ही में सिवनी विधानसभा क्षेत्र के थांवरी नामक गांव में एक आदिवासी कृषक द्वारा आत्महत्या कर ली गई है। इस कृषक आत्महत्या को घाटे की कृषि के कारण आत्महत्या न होना बताने का सत्ताधारी दल की विधायक और प्रशासन द्वारा भरसक प्रयास किया जा रहा है। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी श्रीमती नीता पटेरिया के व्यवहार को और बर्ताव को आदिवासी विरोधी मान रहे हैं। गोंडवाना का आरोप है कि नीता पटेरिया ने यहां तक कहा है कि भाजपा को आदिवासियों का कौन सा वोट मिलता है। आदिवासियों ने गोंडवाना, मुनमुन राय और कांग्रेस को वोट दिया था,हमें तो कोई वोट मिले ही नहीं। आदिवासियों का वोट अगर भाजपा को मिल जाता तो डॉक्टर ढालसिंह बिसेन जी जीत जाते गोंगपा का ऐंसा आरोप है कि यह बात श्रीमती नीता पटेरिया ने कही है। हालांकि यह बात नीता पटेरिया ने अवश्य कही है और विज्ञप्ति भी जारी हुई है कि आत्महत्या करने वाला किसान महत्वकांक्षी था उसने आत्महत्या कृषि में हुई नुकसानी के कारण नहीं अन्य कारणों से की है। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के द्वारा इन्ही सब मुद्दों पर विशाल सम्मेलन 04 मार्च को केवलारी के रायखेड़ा में आयोजित किया गया है। जारी विज्ञप्ति में गोंगपा के मीडिया प्रभारी विवेक डहेरिया ने बताया है कि इस सम्मेलन में गोंगपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हीरासिंह मरकाम मौजूद रहेंगे। इस सम्मेलन में जिले में किसानों के साथ मुआवजा वितरण में की जा रही लापरवाही आमजनता के साथ अन्याय अत्याचार,शोषण और शासकीय योजनाओं में किये जा रहे भ्रष्टाचारों एवं भाजपा विधायक की आदिवासी विरोधी टिप्पणियों का विरोध किया जायेगा। मीडिया प्रभारी के अनुसार जिले में कई गा्रामों में अभी भी किसानों की पाला से प्रभावित हुई फसलों का सर्वे नहीं हो पाया है ओैर जहां पर सर्वे हुआ है तो अनेक स्थानों पर मुआवजा वितरण नहीं हो पाया है। वहीं राजस्व विभाग के अधिकारियों ने कागजी आंकड़े बनाकर तैयार कर लिये हैं। जिसका प्रचार-प्रसार भाजपा व उनके जनप्रतिनिधियो के द्वारा किया जा रहा है परंतु किसानों को किसी भी तरह से राहत नहंीं मिल पा रही है मुआवजा वितरण कार्य में सिवनी जिला प्रशासन पूरी तरह विफल रहा है। वहीं ग्राम थांवरी का आदिवासी युवा किसान के द्वारा खेती किसानी में हो रहे लगातार घाटे व बढ़ते कर्ज के कारण आत्महत्या कर लिया गया , परंतु उसकी आत्महत्या के कारण को जैसा कि अन्य किसानों की आत्महत्या के मामले में म.प्र. की सरकार विधानसभा में शराबी व पागल बनाकर प्रस्तुत कर रही है उसी तरह सिवनी में भी प्रशासन और भाजपा की विधायिका समझ से परे बताकर कोई नया कारण बनाने का प्रयास कर रहें है। साथ में वोट के आंकड़ों का हवाला देकर एवं मुआवजे को राजनैतिक रंग देकर मुआवजा के मामले में भाजपा पार्टी की विधायिका श्रीमती नीता पटेरिया यह भी कह रही हैं कि कौन से मुझे इस क्षेत्र से वोट मिले थे। वहीं कौन आदिवासियों ने मुझे वोट दिया है आदिवासियों ने वोट तो गोंगपा, मुनमुन राय, व कांग्रेस को दिया था। वहंीं हमारे नेता डॉ. ढालङ्क्षसह बिसेन भी आदिवासियों के वोट नहीं मिल पाने के कारण हार गये और तो और भाजपा में जो भी आदिवासी नेता आये हेैं वे सभी किसी दूसरी पार्टी से आये हैं या फिर स्वार्थ वस पार्टी में आये हैं । इस तरह की बयान बाजी करके म.प्र. में सत्तारूढ़ दल भाजपा के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा आदिवासी सम्मान यात्रा के दौरान आदिवासी मेरे लिए भगवान है जैसी बातों को कहने पर प्रश्र चिन्ह लगा रहीं हैं। आज जनता के साथ बढ़ृ रहे अन्याय, अत्याचार शोषण एवं किसानों का मुआवजा भी भाजपा को वोट देने वाले क्षेत्र के आधार पर ही बनाया जा रहा है। ऐसी जनविरोधी नीतियों के विरोध एवं अन्य समस्याओं को लेकर गोंगपा का विशाल सम्मलेन का आयोजन कल ४ मार्च को किया गया है। सम्मेलन में विशिष्ट अतिथि के रूप में राष्ट्रीय महासचिव श्यामसिंह मरकाम, व अन्य राष्ट्रीय व प्रांतीय पदाधिकारी मौजूद रहेंगे।

ममता का नायककेन्द्रित सांस्कृतिक खेल

रेलमंत्री ममता बनर्जी भाषायी सांस्कृतिक संकीर्णतावाद का खतरनाक खेल खेल रही हैं। यह खेल राष्ट्रीय एकता के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। रेल को राष्ट्रीय एकीकरण का प्रतीक माना जाता है। ममता बनर्जी ने रेलमंत्री बनने के बाद से उसे बांग्ला सांस्कृतिक उन्माद और नायककेन्द्रित सांस्कृतिक फासीवाद का औजार बना दिया है। कोई भी राजनैतिक दल ममता बनर्जी के इस हथकंड़े का प्रतिवाद नहीं कर रहा,यहां तक कि वोट की राजनीति के दबाब में वामदल भी मुँह बंद किए बैठे हैं।

ममता बनर्जी को यदि यह लगता है रेल का देशज संस्कृति और संस्कृतिकर्मियों के साथ संबंध बनना चाहिए तो इससे राष्ट्रीय सांस्कृतिक पंगे उठ खड़े होंगे। जिस तरह ममता बनर्जी ने महज वोट पाने की सस्ती राजनीति के चक्कर में पश्चिम बंगाल में अनेक स्टेशनों का नामकरण नामी-गिरामी लोगों के नाम से किया है। यह उनके सांस्कृतिक प्रेम की नहीं बल्कि भाषायी उन्माद पैदा करने की कोशिश है। नायककेन्द्रित सांस्कृतिक फासीवाद के फ्रेमवर्क में ही इसबार के रेलबजट में रवीन्द्रनाथ टैगोर और स्वामी विवेकानंद के नाम से नई गाडियां चलाने की घोषणा की गयी है।अनेक नायकों के नाम से रेलवे स्टेशनों के नाम भी सुझाए गए हैं। यह सीधे अंध बांग्ला क्षेत्रीयतीवाद और नायककेन्द्रित सांस्कृतिक फासीवाद है,इसे सांस्कृतिक प्रेम नहीं कहते। सांस्कृतिक प्रेम भाषायी अंधत्व से जब बंध जाता है तो सामाजिक टकराव पैदा करता है और ममता बनर्जी जाने-अनजाने यह काम कर रही हैं।यह खतरनाक खेल है। इसे बंद किया जाना चाहिए।

रेल मंत्रालय यह निर्णय ले ही सकता है कि नामी-गिरामी सांस्कृतिक हस्तियों के नाम से रेलवे स्टेशनों के नाम रखे जाएं लेकिन यह काम सारे देश के पैमाने पर होना चाहिए और सभीभाषाओं के प्रति समान नजरिए के आधार पर होना चाहिए।रेल मंत्रालय मानक बनाए,संसद से अनुमति ले और लागू करे। लेकिन ममताबनर्जी ने देश की सभी भाषाओं के प्रति समान नजरिया अपनाने की बजाय रेल जैसी राष्ट्रीय संपदा का अपने अंध क्षेत्रीयतावादी राजनीतिक स्वार्थों के लिए इस्तेमाल करना आरंभ कर दिया है। देश में कहीं पर भी नामी सांस्कृतिक हस्तियों के नाम पर रेलवे स्टेशनों का नामकरण नहीं हुआ है। पश्चिम बंगाल में भी विगत 60 सालों में कभी नायककेन्द्रित नामकरण नहीं हुआ लेकिन ममता बनर्जी के रेलमंत्री बनने के बाद बंगाली हस्तियों के नाम से पश्चिम बंगाल में रेल स्टेशनों का नामकरण हो रहा है जो एकसिरे से गलत है।

सब जानते हैं रेलबजट का पश्चिम बंगाल के आगामी विधानसभा चुनाव के साथ गहरा संबंध है और इस क्रम में रेलबजट में बंगाली क्षेत्रीयतावाद छाया हुआ है। ममता बनर्जी ने रेलमंत्री बनने के वाद सबसे खतरनाक काम यह किया है कि उसने रेल को नायककेन्द्रित सांस्कृतिक फासीवाद ,बांग्ला सांस्कृतिक संकीर्णतावाद और सांस्कृतिक उन्माद के उपकरण के रूप में खतरनाक ढ़ंग से इस्तेमाल किया है।

रेल राष्ट्रीय संपत्ति है और इसका किसी भाषाविशेष के सांस्कृतिक उत्थान के लिए इस्तेमाल करना गलत है। सवाल उठता है ममता बनर्जी को भाषायी संकीर्णतावाद के प्रमोशन के लिए रेल को औजार बनाने का हक किसने दिया है ? वामदल और अन्य राजनीतिक दल चुप क्यों हैं ? रेल बजट में बंगाली क्षेत्रीयतावाद का आलम है कि रवीन्द्रनाथ टैगोर और विवेकानन्द के नाम से नई ट्रेनें चलायी गयी हैं।उल्लेखनीय हैं अनेक हिन्दीभाषी रेलमंत्री हुए हैं लेकिन उन्होंने कभी किसी हिन्दीभाषी बड़े लेखक के नाम से ट्रेन नहीं चलाई। और न रेलवे स्टेशनों के नाम हिन्दी के लेखकों के नाम पर रखे गए।

ममता बनर्जी ने जिस तर्क से उत्तमकुमार के नाम से एक स्थानीय रेलवे स्टेशन का नाम रखा है क्या उसी तर्ज पर वे इलाहाबाद रेलवे स्टेशन का नाम फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन के नाम से रखेंगी ? क्या यह बताने की जरूरत है कि अमिताभ का कद उत्तमकुमार से कम नहीं है,उत्तमकुमार बंगाल का महानायक है लेकिन अमिताभ समूचे देश के फिल्म उद्योग के निर्विवाद महानायक हैं। असल में ममता बनर्जी रेलवे स्टेशनों का नामकरण नायकों के नाम से करके नायककेन्द्रित फासिस्ट सांस्कृतिकबोध का प्रचार कर रही हैं,यह राष्ट्रीय एकता और लोकतंत्र की बुनियादी स्प्रिट के खिलाफ है। नायककेन्द्रित रेल प्रकल्प सांस्कृतिक फासीवाद है। इसे किसी भी तर्क से स्वीकार नहीं किया जा सकता। यह ममता बनर्जी का साहित्य या संस्कृति प्रेम नहीं है। ममता बनर्जी किस तरह अंध सांस्कृतिक उन्माद पैदा कर रही हैं उसका एक उदाहरण ही देना काफी है।

हिन्दी के महाकवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ महिषादल में जन्मे । उन्होंने अपने जीवन के मूल्यवान कई दशक पश्चिम बंगाल में गुजारे । लेकिन उनके नाम से ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल के किसी स्टेशन का नामकरण करने की सुध नहीं आयी। यहां तक कि उनके जन्मस्थान के पास किसी रेलवे स्टेशन का नाम भी उनके नाम पर नहीं रखा गया। निराला में रवीन्द्ननाथ की अनेक खूबियां हैं,बंगाली जाति का सांस्कृतिक सौष्ठव भी है। वे हिन्दी के वैसे ही नायक है जिस तरह बांग्ला के रवीन्द्रनाथ हैं।

पश्चिम बंगाल की राजनीति में हिन्दीभाषियों की 30 से अधिक सीटों पर निर्णायक भूमिका है इनमें बिहार और उत्तरप्रदेश के बाशिंदों की बड़ी संख्या है। खासकर मैथिलीवासियों ने पिछले लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को जमकर वोट दिया जिसके कारण सुदीप वंद्योपाध्याय को कोलकाता उत्तर -पूर्व की सीट जीतने में सुविधा हुई। इन मैथिली भाषियों के नायक हैं बाबा नागार्जुन और उनका इस साल जन्मशती वर्ष है। बाबा नागार्जुन समूची हिन्दी के आदर्श महानायक हैं। रेलमंत्री ममता बनर्जी उन्हें कैसे भूल गईं ? बाबा के नाम से कोई ट्रेन आरंभ क्यों नहीं की ?क्यों रवीन्द्ननाथ के ही नाम से ट्रेन चलेगी बाबा के नाम से नहीं चलेगी ? बाबा नागार्जुन को मैथिली और हिन्दी का नजरूल कहा जाता है। ऐसे महाकवि का यह शताब्दी वर्ष है और बाबा के नाम से ममता बनर्जी को देश के किसी भी स्टेशन का नामकरण करने या उनके नाम से ट्रेन चलाने की आज तक याद क्यों नहीं आयी? हम सवाल करना चाहते हैं रवीन्द्रनाथ टैगोर और विवेकानन्द में ऐसा क्या है जो सुब्रह्मण्यभारती ,निराला और नागार्जुन में नहीं है। असल बात यह है कि रेल की ओट में ममता बनर्जी नायककेन्द्रित सांस्कृतिक फासीवाद की राजनीति कर रही हैं इसका प्रतिवाद होना चाहिए।

 

मनमोहन को दागदार कर गए थॉमस

हमेशा ईमानदार अधिकारी की छवि रखने वाले केंद्रीय सतर्कता आयुक्त पीजे थॉमस को पॉलमोलिन इंपोर्ट केस में आठवां अभियुक्त होना इतना महंगा पड़ेगा यह उन्होंने कभी नहीं सोचा होगा। केंद्रीय सतर्कता आयुक्त बनने के साथ ही थॉमस विवादों के साए में आ गए। इस दौरान प्रधानमंत्री के साथ-साथ पूरी कांग्रेस ने उनका साथ दिया लेकिन थॉमस की नियुक्ति को गैरकानूनी करार देने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए एक और जोर का झटका है। जिस तरह उन्होंने थॉमस की वकालत की थी उससे उनका दामन भी दागदार हो गया है।

अभी प्रधानमंत्री ए राजा, सुरेश कलमाड़ी और अशोक चव्हाण के कर्मों से अपने दामन पर लगे दागों को साफ भी नहीं कर पाए थे कि सुप्रीम कोर्ट ने थॉमस की नियुक्ति को गैरकानूनी करार देकर प्रधानमंत्री के दामन पर एक और गहरा दाग लगा दिया। वैसे इस मामले में प्रधानमंत्री के पास सफाई देने के लिए ज्यादा कुछ बाकी भी नहीं रह गया है। थॉमस की नियुक्ति के लिए गठित तीन सदस्यीय पैनल में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, गृहमंत्री पी चिदंबरम के अलावा विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज थीं। सुषमा ने थॉमस की नियुक्ति का पुरजोर विरोध किया था। लेकिन प्रधानमंत्री ने उनके विरोध को दरकिनार करते हुए 7 सितंबर 2010 को पीजे थॉमस की नियुक्ति पर अपनी मुहर लगा दी थी। अब पीजे थॉमस की इसी नियुक्ति ने प्रधानमंत्री की बेदाग छवि को दागदार बना दिया है।

यदि भ्रष्टाचार के इस मामले के छोड़ दिया जाए तो थॉमस की छवि साफ-सुधरी रही है। वो इससे पहले केरल के मुख्य सचिव भी रह चुके हैं। थॉमस सचिव, दूरसंचार विभाग, संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय,सचिव, संसदीय कार्य मंत्रालय, नई दिल्ली,अपर मुख्य सचिव (उच्चतर शिक्षा),सरकार के मुख्य निर्वाचक अधिकारी एवं प्रधान सचिव,सचिव, केरल सरकार,निदेशक, मात्स्यिकी,प्रबंध निदेशक, केरल राज्य काजू विकास निगम लिमिटेड,सचिव टैक्स (राजस्व बोर्ड),जिलाधीश, एर्नाकुलम,सचिव, केरल खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड और उप जिलाधीश, फोर्ट, कोचीन जैसे प्रतिष्ठित और जिम्मेदारी में परिपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं।

केरल का पॉलमोलिन इंपोर्ट केस पिछले दो दशकों से पीजे थॉमस को परेशान किए हुए था। अब इस केस के चलते ही थॉमस को बड़ी बेरुखी से सीवीसी का पद छोडऩा पड़ रहा है। वो पहले ऐसे सीवीसी बन गए हैं जिनकी नियुक्ति को देश की शीर्ष अदालत ने अवैध करार दिया है। थॉमस पर आरोप लगे थे कि उन्होंने मलेशिया की एक कंपनी से 1500 टन पॉल्म ऑयल इंपोर्ट करने के सौदे में भ्रष्टाचार किया। यह सौदा 1992 में उस समय किया गया था जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता के करूणाकरन केरल के मुख्यमंत्री थे। इस मामले में करुणाकरन प्रथम अभियुक्त जबकि उस समय राज्य के खाद्य मंत्री टीएच मुस्तफा दूसरे नंबर के अभियुक्त थे।

पीजे थॉमस केंद्रीय सतर्कता आयोग के ऐसे पहले आयुक्त हैं जिनकी नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट ने अवैध करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद आज पीजे थॉमस ने केंद्रीय सतर्कता आयुक्त पद से इस्तीफा दे दिया है। इनका पूरा नाम पोलायिल जोसफ थॉमस है। थॉमस का जन्म 13 जनवरी 1951 को हुआ था। वे भौतिक विज्ञान में एमएससी और अर्थशास्त्र में एमए हैं। उन्होंने वर्ष 1973 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में पदभार संभाला। थॉमस पर इससे पहले पामोलीन तेल के आयात के घपले के मामले में आरोप लग चुके हैं। 1992 में जब वे केरल के फूड एंड सिविल सप्लाई सचिव थे, तब यह घोटाला हुआ था। इस घोटाले से सरकार को दो करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ था। हाल ही में खुले 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में भी उनका नाम सामने आया है। इस घोटाले के दौरान वह टेलीकॉम सचिव के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे थे। उनकी नियुक्ति के दौरान विपक्ष ने आपत्ति जताई थी, जिसे नजरअंदाज कर उन्हें सीवीसी बना दिया गया। थॉमस को डर है कि यदि वह इस्तीफा दे देते हैं तो सीबीआई उनसे पूछताछ कर सकती है। साथ ही जरूरत पडऩे पर सीबीआई उनकी गिरफ्तारी भी कर सकती है।

अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा सीवीसी पीजे थॉमस की नियु्क्ति को गैरकानूनी करार देने से कई स्वतंत्र जांच एजेंसियों की स्वतंत्रता पर भी सवाल उठ रहे हैं। भ्रष्टाचार की जांच कर रही विभिन्न खुफिया एजेंसियों में कैसे होती हैं शीर्ष पदों पर नियुक्तियां, क्या राजनीति होती है और कैसे जोड़-तोड़ की जाती है? इन नियुक्तियों के पीछे किस-किस तरह की राजनीतिक मजबूरियां और लाभ व छूट के समीकरण रहते हैं। शीर्ष पद पर पहुंचने के लिए कैसे काम आते हैं नेताओं से प्रगाढ़ संबंध।

केंद्रीय सतर्कता आयोग पूरे देश में भ्रष्टाचार की किसी भी शिकायत की जांच कराने वाली महत्वपूर्ण एजेंसी है। इसके मुखिया पीजे थॉमस की नियुक्ति की प्रक्रिया अपने आप में कई राज खोलती है। थॉमस केरल के पामोलीन आयात घोटाले में फंसे थे। केंद्र सरकार में सचिव बनने के लिए जरूरी केंद्र में दो साल के डेपुटेशन का अनुभव तक उनके पास नहीं था। इसके बावजूद केंद्र सरकार ने उन्हें सचिव बनाया। उनकी नियुक्ति पर ज्यादा लोगों का ध्यान न जाए, इसलिए उन्हें कम महत्वपूर्ण माने जाने वाले संसदीय कार्य मंत्रालय में सचिव बनाया गया। फिर एक आम तबादले की तरह उन्हें हाई प्रोफाइल टेलीकॉम विभाग में सचिव की कुर्सी मिली। उनकी तरफ लोगों का ध्यान तब गया, जब प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय कमेटी ने उन्हें सीवीसी नियुक्त किया। इस कमेटी में गृहमंत्री पी.चिदंबरम ने तो प्रधानमंत्री का समर्थन किया, लेकिन लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने कड़ी आपत्ति जताई।

थॉमस की नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने वाले पूर्व सीबीआई अफसर बीआर लाल कहते हैं कि बाजार भाव से कहीं ज्यादा भाव पर पामोलीन खरीदना भ्रष्टाचार था। प्रधानमंत्री को बताना चाहिए कि ऐसे भ्रष्ट आदमी को भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने वाली एजेंसी का मुखिया बनाने के पीछे क्या मजबूरी थी। भ्रष्ट नौकरशाहों की सूची को इंटरनेट पर डालने का क्रांतिकारी कदम उठाने वाले पूर्व सीवीसी एन. वि_ल कहते हैं कि थॉमस की नियुक्ति नियमों में कमी की वजह से हुई है। नियमों में यह कहीं नहीं है कि केवल बेदाग व्यक्ति को ही सीवीसी बनाया जा सकता है और न ही यह है कि उसे चयन समिति द्वारा सर्वसम्मति से चुना जाएगा।

जानकार बताते हैं कि थॉमस की नियुक्ति नियमों में कमी की वजह से हुई है। नियमों में यह कहीं नहीं है कि केवल बेदाग व्यक्ति को ही सीवीसी बनाया जा सकता है और न ही यह है कि उसे चयन समिति द्वारा सर्वसम्मति से चुना जाएगा। प्रधानमंत्री को बताना चाहिए कि ऐसे भ्रष्ट आदमी को भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने वाली एजेंसी का मुखिया बनाने के पीछे क्या मजबूरी थी।

दरवेश का चोला पहनने से डाकू- संत नहीं हो जाते…

लगता है कि आदरणीय मुकेश धीरूभाई अम्बानी को बोधत्व प्राप्त हो गया है. देश के सबसे बड़े रईस और रिलायंस इंडस्ट्रीज के सर्वेसर्वा श्री मुकेश अम्बानी ने गत मंगलवार {१ मार्च-२०११}को नई दिल्ली में फिक्की {फेडेरशन ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज} के ८३ वें अधिवेशन को सम्बोधित करते हुए जो आप्त वाक्य कहे वे उन्हें भारतीय इतिहास में अमरत्व प्रदान करने के लिए काफी हैं. उपस्थित तमाम दिग्गज पूंज ीपतियों को सम्बोधित करते हुए मुकेश भाई ने कहा कि ’अब वक्त आ गया है कि हम पूंजीपति लोग – सामाजिक जिम्मेदारी के निर्वहन को अपने एजेंडे में शामिल करें’ उन्होंने व्यवसाय, काराबोर और कार्पोरेट सेक्टर को जन-सरोकारों से जोड़ने कि बात कहकर न केवल उद्द्योग जगत बल्कि देश और दुनिया के वामपंथी विचारकों को भी आश्चर्य चकित कर दिया है.

मुकेश अम्बानी ने अमीर भारत और गरीब भारत के बीच की बढ़ती जाती खाई की ओर उपस्थित उद्योगपतियों का ध्यानाकर्षण करते हुए आह्वान किया कि वे इन दोनों -शाइनिंग इंडिया और निर्धन भारत को जोड़ने के लिए काम करें . उन्होंने कहा- ’कारोबार का एकमात्र उद्देश्य मुनाफा ही नहीं होना चाहिए’ मुकेश भाई ने कहा -सिर्फ कार्पोरेट सामाजिक जबाबदेही{सी एस आर} कि जगह अब सतत सामाजिक सरोकार {continuous socail business }के म� �डल को अपनाया जाना चाहिए. सामाजिक जबाबदेही के साथ वित्तीय जबाबदेही भी जरुरी है. किसी कारोबार का एकमात्र उद्देश्य मुनाफा कमाना ही नहीं होना चाहिए. जब तक लाखों लोगों के जीवन को बदलने वाले व्यापक उद्देश्य के साथ कारोबार नहीं किया जायेगा- कोई भी कारोबार सतत नहीं चल पायेगा.

उन्होंने देश के दो पहलुओं पर रोशनी डालते हुए कहा -एक तरफ तो उद्द्योग जगत को भारी लाभ हो रहा है और दूसरी ओर ऐसे करोड़ों लोग हैं जो मूल भूत सुविधाओं -स्वच्छता ,पीने का पानी ,स्वास्थ सेवाओं से महरूम हैं.

मुकेश भाई ने कहा” कि देश कि प्रति-व्यक्ति आय १००० डालर से कम है, जो कि चीन के एक तिहाई से भी कम है. उन्होंने भारतीय मध्यम वर्ग को विराट संभावनाओं का कारक बताते हुए कहा कि यदि एक अरब से ज्यादा विपन्न लोग असंतुष्ट हैं, तो बाकि के संपन्न लोग खुशहाल कैसे रह सकते हैं? भारत कि विकास गाथा तब तक पूरी नहीं होगी जब तक देश के करोड़ों लोगों को प्रगति में भागीदार नहीं बनाया जाता.”

जहां तक मुकेश अम्बानी का इंडिया और भारत के बीच खाई पाटने कि सद- इच्छा का सवाल है तो उसका हमें सम्मान करना चाहिए. किन्तु एक अज्ञात भय भी है कि उस कुत्सित विचार का क्या होगा? जो सुनील मित्तल भारती ने इसी फोरम में ,वर्ष -२००८ में व्यक्त किया था . तब माननीय प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंग जी के समक्ष उनके इस आग्रह पर कि उद्योग जगत को देश के गरीबों का भी ध्यान रखना चाहिए ,निजी क्षेत्र मे उच्च पदों पर ज्यादा आकर्षक वेतन देने से सरकारी क्षेत्र पर दवाव पड़ता है, आप सी ई ओ लोगों को भारी भरकम वेतन नहीं लेना चाहिए ,वगेरह -वगेरह .सुनील मित्तल भारती ने तब तपाक से उत्तर दिया ”कि हम यहाँ व्यापार के माध्यम से मुनाफा कमाने आये हैं जन सरोकारों या जनता कि परेशानियों से हमें कोई लेना-देना नहीं” सुनील मित्तल भारती के इस कटु वक्तव्य से तब मुझे बहुत बुरा लगा था तत्काल एक आलेख  उनके अमर्यादित व्यवसायिक सरोकारों पर मैनें लिखा था -जिसका तात्पर्य यह था कि भारतीय लोकतंत्र पर पूंजीपतियों का कब्जा कराने में सिद्धहस्त श्री मनमोहन सिंग जी को एक नव-धनाड्य पूंजीपति के आगे इस तरह असम्मानित होना स्वीकार नहीं करना चाहिए .लोकतंत्र के लिए यह उचित सन्देश नहीं है.लगता है कि सुनील मित्तल भारती ने माल्थस ,एडम स्मिथ और कीन्स को पढ़े बिना ही कार्पोरेट जगत में कुछ उसी � ��रह से अवसरों को भुना लिया जैसे कि युद्धकाल में वेइमान बनिया कमाता है.

आज श्री मुकेश अम्बानी और श्री सुनील मित्तल भारती दोनों ही भारत के दिग्गज पूंजीपति हैं. दोनों ने खूब धन कमाया. दोनों का राजनीती और समाज पर अपनी-अपनी हैसियत का प्रभाव है ,किन्तु दोनों के विचारों में दो विपरीत ध्रुवों जैसा अंतर क्या दर्शाता है? मित्तल का दर्शन है ”मुनाफा और केवल मुनाफा” उसका परिणाम होगा शोषित आवाम का विद्रोह या जन-क्रांति .

मुकेश अम्बानी ने जो जन-कल्याणकारी कार्पोरेट कल्चर कि पैरवी की है वो नयी नहीं है .विगत कुछ महीनों पहले अमेरिकी पूंजीपति बिल गेट्स ने ,वारेन बफेट ने अपनी सम्पत्ति का बड़ा हिस्सा जन सरोकारों में लगाने का ऐलान किया था .उनका कहना था कि जो जहां से लिया वो वहां वापिस तो नहीं किया जा सकता किन्तु उसका आंशिक तो लौटाया ही जा सकता है. भारत के अजीम प्रेमजी भी इस विषय में पहल कर चुके हैं .इससे पह ले भारत के स्थापित पूंजीपतियों -बिडला ,टाटा और अन्य पूंजीपतियों ने भी ”दान” और ’लोक- कल्याण ’ कि परम्परा में सदियों से अपनी भागीदारी जारी रखी थी.

जिस देश में इतने दूरदर्शी और घाघ पूंजीपति होंगे वहां जनता का जनाक्रोश समय-समय पर दान -दक्षिणा के नाम पर निसृत होते रहने से किसी तरह कि बगावत या क्रांति कि संभावना नहीं रहेगी . .भारत और अमेरिका में इसी वजह से क्रांति कि संभावनाएं वैसी नहीं वन पा रही हैं जैसी कि सोवियत संघ ,चीन ,क्यूबा ,वियेतनाम या कोरिया में बनी थीं .आज अरब राष्ट्रों में क्रांति के नाम पर जो बबाल मच रहा है उसका करण भी वही व्यवस्था जनित आक्रोश है .चूँकि वहां के पूंजीपति और शासक वर्ग सुनील मित्तल भारती कि तरह जनता के सरोकारों को अपने व्यापारिक और प्रबंधकीय सरोकारों से अपडेट नहीं कर पाए अतः वे जनता के हाथों पिट रहे हैं ,देश कि सत्ता और लूटी गई सम्पदा का अधिकार भी उनसे छीना जा रहा है. भारत में जब तक मुकेश अम्बानी जैसे लोग अथाह पैसा कमाते हुए गरीब जनता का मुंह बंद करने के लिए तथाकथित जनकल्णकारी सरोकारों कि पैरवी करते रहेंगे तब तक जनाक्रोश सघन नहीं हो पायेगा , जब तक जनाक्रोश सघन नहीं होगा तब तक आर्थिक-सामाजिक और राजनैतिक क्रांति कि संभावनाएं भी क्षीण रहेंगी . अस्तु! मुकेश अम्बानी के वक्तब्य को एक घाघ पूंजीपति की वर्तमान वैश्विक परिदृश्य के परिप्रेक्ष्य में भारत कि निर्धन जनता को निरंतर कष्ट उठाते रहने , शांति बनाये रखने ,क्रांति से दूर रहने, इंडिया बनाम भारत म मेल -मिलाप बनाये रखने , और पूंजीपतियों को राज्य सत्ता का कृपा- भाजन बनाये रखने में देखा जाना चाहिए.

सर्वमान्य नेतृत्व का अभाव : एक दृटिकोण

वर्तमान में भारत का जो राजनैतिक दृश्य है उसे देखकर यह लगता है कि हमारे देश में एक केन्द्रीय नेतृत्व का अभाव है। एक ऐसा नेता जिसकी राट्रव्यापी क्षवि हो और जिसे छ लाख गाँवों में भी वैसी ही पहचान मिली हो जैसी इस देश के गुने चुने महानगरों में। एक ऐसा नेतृत्व जिसकी आवाज आम आवाम के दिलो दिमाग पर असर करे और जिसका प्रभाव आमजन तक हो।

एक समय था जब इस देश में महात्मा गाँधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार बल्लभ भाई पटेल, लाल बहादुर ास्त्री, इंदिरा गाँधी, जय प्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया व राजीव गाँधी जैसे एक छत्र नेताओं ने राज किया। ये वे नेता थे जिनकी पहचान राट्रीय स्तर की थी और जिन्हें भारत का आम आदमी अपना नेता मानता था। ये ऐसे नेता थे जो इन देश की आमजन की नब्ज पहचानते थे और आम आदमी के सुख दुख में भी इन लोगों की सीधी भागीदारी थी। उस समय जब चुनाव होते थे तो लोग पार्टी को वोट देते थे, लोग नेहरू व इंदिरा को वोट देते थे उन्हें इस बात से कम मतलब होता था कि पार्टी ने जिस प्रत्याशी को खड़ा किया है वो केैसा है।

जब राट्रपिता महात्मा गाँधी की हत्या हुई तो लोगों को लगा कि अब यह देश कैसे चलेगा और कुछ ऐसा ही लोगों ने तब सोचा जब इंदिरा गाँधी नहीं रही। कहने का मतलब यह है कि इन लोगों ने अपने आप को इस देश का पर्यायवाची बना लिया था। इसी तरह जब इस देश में अनाज की कमी हुई तो लाल बहादुर ास्त्री ने लोगों को सोमवार के दिन उपवास रखने के लिए कहा और इस अपील का ऐसा प्रभाव हुआ कि आज तक हजारों लोग सोमवार का उपवास रखते हैं। पंडित नेहरू की एक आवाज पर लाखों लोग गाँव से ाहरों से निकल कर आजादी के आंदोलन में कूद पड़े थे। जय प्रकाश नारायण की एक अपील सुनकर लोगों ने अपनी नेता इंदिरा गाँधी का तख्ता पलट दिया था। एक ऐसा व्यक्ति जिसकी बम विस्फोट में मौत होने पर लोगों को ऐसा लगा कि जैसे अपने खुद के घर में किसी की मौत हो गई हो। मुझे याद है कि जब राजीव गाँधी की हत्या हुई तो इस देश में हजारों ादियाँ स्थगित हो गई थी क्योंकि देश ने अपने प्रिय नेता को खो दिया था। वर्तमान में इस तरह का सर्वमान्य नेतृत्व नजर नहीं आता। ऐसे नेता का हमारे पास अभाव है जिसकी पहचान पूरे भारत में एक जैसी हो या यूं के जिसकी पहचान एक जन नेता की हो।

वर्तमान में हमारे पास राट्रीय पार्टीयों के राट्रीय अध्यक्ष हैं लेकिन इन राट्रीय पार्टीयों के पास कोई भी राट्रीय नेता नहीं है। वर्तमान परिदृश्य में इस देश में एक भी ऐसा नेता नहीं है जो यह दावा कर सके कि उसे कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक औैर बंगाल से लेकर पंजाब तक पहचाना जाता है और यही कारण है कि राट्रीय पहचान का अभाव होने के कारण इन बड़ी पार्टीयों को क्षेत्रीय दलों से समझौते करने पड़ते हैं और गठबंधन की मजबूरी पूरे देश को उठानी पड़ती है।

नेताओं की राट्रीय क्षवि पूरे भारत को एकसूत्र में पिरोने का काम करती है और उस नेता से जुड़ा हर कार्यकर्ता व आम आवाम अपने आप को एक परिवार की तरह समझता है पर वर्तमान में ऐसा कोई बड़ा परिवार हमारे सामने नजर नहीं आ रहा है। एक नेता होने से नीति निर्माण व ासन व्यवस्था चलाने में सुविधा रहती है और पार्टी अपनी खुद की विचारधारा पर चलकर देश के लिए कुछ कर सकती है। परन्तु वर्तमान में किसी भी पार्टी की विचारधारा का प्रभाव देश पर नहीं पड़ता नजर आता। सर्वमान्य नेता की कमी ने स्थानीय नेताओं को ताकतवर बनाया और स्थानीय नेताओं के ताकतवर होने से देश में गठबंधन की सरकारें बनने लगी और जैसा की हमारे वर्तमान नेता मानते हैं कि गठबंधन की अपनी खुद की मजबूरियाँ होती है इसलिए सर्वमान्य नेतृत्व का अभाव केन्द्रीय सरकार पर नजर आने लगता है और ऐसी सरकार मजबूर सरकार बन जाती है।

यह सही भी है कि अगर किसी भी पार्टी में सर्वमान्य नेता हो तो छुटभैये नेताओं की नहीं चलती और उस कद्दावर नेता के सामने कोई भी टिक नहीं पाता और सर्वमान्य नेता का अभाव होने से हर कोई छोटा नेता भी अपने आप को बड़ा ताकतवर समझने लगता है। इससे पार्टी को तो नुकसान होता ही है साथ ही साथ इसका प्रभाव देश पर भी पड़ता है। जैसा कि पहले था कि काँग्रेस के पास नेहरू, इंदिरा जैसे सर्वमान्य नेता थे जिनकी पहचान अंतर्राट्रीय नेता के रूप में थी और यही कारण था कि उनके सामने कोई भी विरोध के स्वर पैदा नहीं होते थे और अगर होते भी तो ऐसे विरोध करने वाले नेता खुद हाशिये पर चले जाते थे। कुछ ऐसा ही आलम भारतीय जनता पार्टी में रहा जब अटल बिहारी वाजपेयी जैसा बड़ा नेतृत्व पार्टी को मिला। लोग अटल बिहारी को भाजपा का मुखौटा कहते थे और इसी मुखौटै ने भाजपा की राट्रीय पहचान बनाई थी, इसी एक नेतृत्व के कारण भाजपा ने कईं पार्टीयों को एक मंच पर लाने का काम किया और केन्द्र में सरकार भी बनाई।

वर्तमान में भारत की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक पार्टी काँग्रेस व सबसे बड़ी विरोधी पार्टी भाजपा के पास केन्द्रीय नेतृत्व तो है लेकिन दोनों ही पार्टी के नेता उस स्तर के नहीं है जो स्तर इंदिरा गाँधी या कुछ हद तक अटल बिहारी वाजपेयी का रहा है। इसी कारण इन दोनों पार्टीयों को देश के लगभग हर राज्य में राज्य स्तरीय पार्टीयों से हाथ मिलाना पड़ रहा है। कारण साफ है कि इन राज्यों में दोनों पार्टीयों के पास ऐसे नेतृत्व का अभाव है जिसकी खुद ही पहचान उस राज्य में हो तो ऐसी स्थिति में राज्य में पहचान रखने वाले नेतृत्व का हाथ थामना पड़ता है। इस प्रकार सत्ता में रहने के लिए इन पार्टीयों के लिए गठबंधन एक मजबूरी बन जाता है। ये राट्रीय पार्टीयाँ सत्ता चलाने के लिए फिर इन क्षेत्रीय पार्टीयों के दबाब में रहती है और इसी दबाब को ये लोग गठबंधन का धर्म कहते हैं और इसी दबाब को पूरे देश को मजबूरी के रूप में सहन करना पड़ता है।

अगर इन पार्टीयों के पास करिश्माई व पहचान वाला केन्द्रीय नेतृत्व हो तो इन पार्टीयों को इन क्षेत्रीय दलों की जरूरत न पड़े और नही ऐसे किसी दबाब में देश को सहन करना पड़े।

अगर हम चिंतन करें तो यह बात सामने आती है कि इस देश में केन्द्रीय नेतृत्व का अभाव इसलिए हुआ क्योंकि राट्रीय स्तर की सोच व पूरे भारत की समझ रखने वाला कोई भी व्यक्ति वर्तमान में राजनीति में नजर नहीं आता है। अगर हम बात नेहरू, पटेल, गाँधी व इंदिर की करते हैं तो यह बात एकदम साफ है कि इन लोगों को पूरे भारत की समझ थी और ये लोग भारत की संस्कृति व भारत के लोगों से पूरी तरह परीचित थे। इन लोगों ने घूम घूम कर पूरे देश के दौरे किए थे। नेहरू इलाहबाद के कुंभ में काफी समय बिताया करते थे और पटेल ने पूरे देश को एकसूत्र में पिरोकर अपना कद बहुत बड़ा कर लिया था। इंदिरा गाँधी को नेहरू की पुत्री होने का लाभ मिला तो गाँधी जैसे कालजयी लोगों का भी सामिप्य मिला। कुछ ऐसी ही परिस्थितियाँ रामनोहर लोहिया व जय प्रकाश नारायण की थी कि ये लोग भारत भूमि से दिल से जुड़े थे और इन लोगों में विरोध करने की भी सकारात्मक ताकत थी। अटल बिहारी वाजपेयी की भी बात करें तो वाजयपेयी में भी भारतीय व राट्रीय सोच थी जिसने उन्हें राट्रीय नेता बनाया था। तो यह बात साफ है कि राट्रीय नेता वो ही बन सकता है जिसके पास राट्रीय सोच व नजरिया हो। वर्तमान में ऐसी सोच व नजरिये के व्यक्तित्व का अभाव है इसलिए राट्रीय नेताओं का भी अभाव है।

जरूरत है ऐसे व्यक्तित्व की जो पूरे भारत को एक धागे में पिरो सके और पूरे देश को एक पहचान दिला सके। जब एक ऐसा नहीं होगा हमारे सामने महँगाई, क्षेत्रियता, अलगाववाद व आतंकवाद जैसी समस्याऍं आती रहेगी। घर परिवार में जब बुजुर्ग व्यक्ति की मौत हो जाती है तो सभी भाई अपने अपने अलग अलग मकान बनाकर रहने लगते हैं और कुछ ऐसा ही किसी देश में तब होता है जब एकछत्र नेतृत्व नहीं होता तो ऐसी स्थिति में सभी क्षेत्रीय लोग अपनी फली अपनी राग बजाने लगते हैं। इसलिए जिस तरह घर का बुजुर्ग घर की पहचान होता है और पूरा परिवार उसी बुजुर्ग का परिवार कहकर जाना जाता है ठीक उसी तरह देश का एक सर्वमान्य नेता पूरे देश ही पहचान होत है और उस ऐसे नेतृत्व में ही देश प्रगति कर सकता है पहचान बना सकता है।

याम नारायण रंगा ‘अभिमन्यु’

नत्थूसर गेट के बाहर

पुकरणा स्टेडियम के पास

बीकानेर {राजस्थान} 334004

नया बजट और नए खतरे

नव्य उदारीकरण में भारत के अधिकांश बुद्धिजीवियों ने अपने को पूंजीपरस्ती से बांध लिया है। युवा इस पूंजी के नारकीय खेल से पीड़ित हैं । औरतें इसमें पिस रही हैं। किसानों और मजदूरों के जीवन में तबाही मची हुई है।  इसके बाबजूद वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी और उनकी भक्तमंडली दावा कर रही है कि भारत विकास कर रहा है और केन्द्र सरकार विकासकार्यों पर सबसे ज्यादा खर्च कर रही है। वास्तविकता यह है  कि वित्तमंत्री ने एक भी बड़ा कारखाना खोलने का संकेत नहीं दिया है। बेकारी कम करने का एक भी नुस्खा नहीं बताया है। सवाल उठता है कि बेकारी कम नहीं होगी तो देश में सामाजिक असुरक्षा बढ़ेगी और ऐसी अवस्था में कानून और व्यवस्था की एजेंसियों की मदद की जरूरत ज्यादा पड़ेगी और इस संदर्भ में देखें तो बजट में सुरक्षा एजेंसियों का खास ख्याल रखा गया है। देश की वास्तविकता यह है कि भारत सरकार सुरक्षा एजेंसियों और सुरक्षा बलों के साथ- रक्षामद में ज्यादा खर्च करने जा रही है। यह इस बात का सबूत है कि देश में कानून-व्यवस्था के प्रबंधन पर ज्यादा व्यय होगा। मसलन वित्तमंत्री ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी,बाएसएफ,सीआरपीएफ आदि के लिए ज्यादा धन का आवंटन किया गया है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी के लिए बजट से 55.68 करोड़ रूपये आवंटित किए गए हैं। यानी पिछले साल की तुलना में 16.33 करोड़ रूपये ज्यादा आवंटित किए गए हैं। इस संस्था को गैर-योजनामद से 2009-10 में 11.91 करोड़ रूपये आवंटित  किए गए थे जिसमें इस साल के लिए गैर-योजनामद से 42.06 करोड़ रूपये दिए गए हैं। इस संस्था को आतंकवाद से संबंधित घटनाओं पर काम करने,जांच करने,रोकने और केस चलाने का अधिकार दिया गया है। सीबीआई को पिछले साल की तुलना में इस साल कम फंड आवंटित किया गया है। बीएसएफ के लिए 7628.79 करोड़ रूपये आवंटित किए गए हैं।सीआरपीएफ के लिए 7827.32 करोड़ रूपये आवंटित किए गए हैं वित वर्ष की तुलना में 300 करोड़ रूपये ज्यादा है। नेशनल इंटेलीजेंस ग्रिड को 33.81 करोड़ रूपये आवंटित किए गए हैं। इस संस्था का काम है काउंटर टेररिज्म के खतरे पर निगरानी रखना,उसके डाटा की जांच-पड़ताल करना। वहीं दूसरी ओर कारपोरेट घरानों के लिए प्रत्यक्ष करों में 11,500 करोड़ रूपये के कंशेसन दिए गए हैं। इसके विपरीत साधारण जनता पर 11,300 करोड़ रूपये के नए कर लगाए गए हैं। कारपोरेट घरानों से केन्द्र सरकार ने स्वेच्छा से 2010-11 में 1,38,921 करोड़ रूपये के कर वसूल नहीं किए। इसी तरह 2009-10 में कारपोरेट घरानों से 1,18,930 करोड़ रूपये के कर वसूल नहीं किए गए थे। केन्द्र सरकार ने इस तरह कारपोरेट घरानों को पिछले तीन सालों में 4लाख करोड़ रूपये दिए हैं। इसी तरह किसानों के मद में आने वाली विभिन्न योजनाओं के लिए आवंटित धन में कटौती की गई है। केन्द्र सरकार का समग्र खर्चा 3लाख करोड़ के करीब बैठता है इसके लिए वह कर वसूली पर जोर नहीं दे रही है बल्कि विभिन्न तरीकों से कर्ज लेकर चला रही है। केन्द्र सरकार ने आम आदमी को और ज्यादा कंगाल बनाने के लिए तकरीबन 20हजार करोड़ रूपये की सब्सीडी कटौतियां इस बजट में की हैं। इसके अलावा विभिन्न वित्तीय क्षेत्रों में विदेशी पूंजी निवेश को आमंत्रण देकर मनमोहन सिंह सरकार ने एकसिरे से देश की अर्थव्यवस्था को विदेशी वित्तीय संस्थानों के रहमोकरम पर गिरवी रख दिया है।    सैटेलाइट टीवी चैनलों के साथ प्रतिस्पर्धा में संचार माध्यमों को ,खासकर प्रसारभारती को खड़ा रखने की जरूरत है लेकिन मनमोहन सिंह सरकार अपने नव्य-उदार एजेण्डे पर आक्रामक ढ़ंग से बढ़ रही है और निजी चैनलों की मदद करते हुए उसने इसबार के बजट में प्रसारभारती के लिए आवंटित धन में कटौती कर दी है। पिछले साल की तुलना में इस साल प्रसारभारती को 300 करोड़ रूये कम आवंटित किए गए हैं। 2010-11 में 1,757.14 करोड़ रूपये दिए गए जो इस साल के बजट में घटाकर 1,484.01 करोड़ कर दिए गए हैं। इसबार के बजट की खूबी है 9प्रतिशत विकास दर ,भयानक बेकारी,मंहगाई में उछाल और देशी वित्तीय संस्थाओं में विदेशी पूंजीका अबाध प्रवेश यानी नए किस्म की आर्थिक गुलामी का आगमन।

जिले के विकास में सभी सहयोगियों और अधिकारी का सहयोग आवश्यक है-मोहन चंदेल

जिले के विकास में सभी सहयोगियों और अधिकारी का सहयोग आवश्यक है-मोहन चंदेल

सिवनी -:जिला पंचायत के समस्त निर्वाचित जिला पंचायत सदस्यों द्वारा बिना किसी गति अवरोध के जिला पंचायत के आधीन कार्यो को जिले के ग्रामीण विकास में सहयोगात्मक भावना से कार्यो को अंजाम दिया जा रहा है। पंचायत राज की जो मूल भावना है उस भावना के अनुरूप त्रिस्तरीय पंचायत राज कार्य करें इसे प्राथमिकता देते हुए सभी जिला पंचायत के सदस्य प्रशासनिक अमले के सहयोग से कार्य कर रहें हैं। एक वर्ष के इस कार्यकाल में बेहतर परिणाम भी सामने आये हैं। यह बात जिला पंचायत अध्यक्ष मोहनङ्क्षसंह चंदेल द्वारा आज जिला पंचायत के सभा कक्ष में एक वर्ष पूर्ण होने पर आयोजित पत्रकार वार्ता में जानकारी देते हुए कही गई। उन्होंने साल भर का लेखा-जोखा भी प्र्रस्तुत किया। ग्रामीण विकास के लिए चल रही योजनाओं की जानकारी दी और जिला पंचायत द्वारा विभिन्न मदों में जिनका सीधा सम्बन्ध योजनाओं के संचालन से है उनकी मदवार स्वीकृति और व्यय की गई राशि की जानकारी प्रदान की गई उन्होंने बताया कि भारत सरकार की महत्वकांक्षी योजना महात्मागांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत १४१०७.३६० लाख रूपये का आवंटन प्राप्त हुआ था जिसके विरूद्ध १००२९.३१३ लाख रूपये व्यय किये गये, स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना के तहत ५३६.८८० लाख रूपये का आवंटन प्राप्त हुआ था जिसके विरूद्ध ५१०.०३६ लाख रूपये व्यय किये गये हैं, राजीव गांधी जलग्रहण क्षेत्र प्रबंधन मिशन के तहत ६४६.२०० लाख रूपये का आवंटन प्राप्त हुआ था जिसमें से ४४२.३५० लाख रूपये के कार्य कराये गये, इंदिरा आवास योजना के तहत ४९०.६१ लाख रूपये का आवंटन प्राप्त हुआ जिसमेंं से ४७०.५० लाख रूपये के कार्य कराये गये हैं, इंदिरा आवास योजना भौतिक लक्ष्य के लिए १०९० लाख रूपये का आवंटन प्राप्त हुआ है जिसका कार्य प्रगति पर है, मुख्यमंत्री आवास योजना के तहत ६.८० लाख का आवंटन प्राप्त हुआ है जिसमें ५.८० लाख रूपये का कार्य करा लिये गये हैं मुख्यमंत्री आवास योजना भौतिक लक्ष्य ३० का कार्य प्रगति पर है, समग्र स्वच्छता अभियान के तहत ३९०.८१ लाख रूपये प्राप्त हुए जिसके विरूद्ध १५०.१६ का कार्य कराया गया है। बेकवर्ड रीजनग्रांट योजना के तहत १५५३.९१ लाख रूपये का आवंटन प्राप्त हुआ जिसमें से १०७०.१७ लाख रूपये विभिन्न कार्यो में खर्च हुए है, मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम परिषद के लिए २१४७.५३ लाख रूपये का आवंटन प्राप्त हुआ था जिसमें से १६०७.९३ लाख रूपये खर्च किये गये है।

जिला पंचायत अध्यक्ष मोहन चंदेल ने कहा कि महात्मागांधी द्वारा कल्पित ग्राम स्वराज की अवधारणा पर आधारित पंचायत राज लागू करने में मध्यप्रदेश अग्रणी रहा है। उसी मृूल भावना के अनुरूप पंचायत राज कार्य करें और ग्रामों का समग्र विकास सूनिश्चित हो इसकी चिंता करते हुए जिला पंचायत जनपद पंचायत और ग्राम पंचायत के प्रतिनिधियों को कार्य करना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों खेल प्रतिभाओं को पर्याप्त अवसर प्राप्त हो इसी मंशा से ग्रामीण क्षेत्रों में खेल मैदान विकसित करने की योजना है, जिला पंचायत के सदस्यों से उन्होंने आग्रह किया है कि नंदनफलोद्यान योजना में विशेष रूचि लेकर अपने-अपने क्षेत्रों में इस योजना पर पर्याप्त कार्य करें। इस अवसर पर जिला पंचायत के सदस्यों ने चहुमुखी विकास में कोई कसर बाकी न रहे, इस प्रकार का संकल्प लिया। १ वर्ष पूर्ण होने पर आयोजित विशेष कार्यक्रम में जिला पंचायत उपाध्यक्ष अनिल चौरसिया ने भी उपस्थित जनों को सम्बोधित किया और उन्होंने जिले में भ्रष्टाचार पर गहरा दुख प्रगट किया मुख्यकार्यपालन अधिकारी राकेश सिंह ने भी संक्षिप्त सम्बोधन में १ वर्ष के कार्याे का विवरण प्रस्तुत किया । जिला पंचायत सदस्य वशीरखान ने पाले से फसल की नुकसानी को बड़ी नुकसानी बताते हुए नियमानुसार मुआवजा न मिलने पर आपत्ति प्रगट की, घंसौर विकासखंड से जिला पंचायत सदस्य श्रीमती माया मुरारी के पति ने भी अपने विचार रखे, उन्होंने भी भ्रष्टाचार नौकरशाही, और आदिवासियों के शोषण के दुख को अपने सम्बोधन में व्यक्त किया। अधिकांध जिला पंचायत सदस्य भ्रष्टाचार और अव्यवस्थाओं से पीडि़त दिखाई दिये, श्रीमती रचना बिसेन ने भी समर्थन मूल्य पर धान खरीदी हो रही गड़बडिय़ों से किसानों को लाभ न मिलने का दुख प्रगट किया। रामगोपाल जयसवाल भी अपने तीखे अंदाज में असंतोष प्रगट करते रहे। इस अवसर पर उपस्थित कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आशुतोष वर्मा ने भी उपस्थित जिला पंचायत सदस्यों को सम्बोधित करते हुए कहा कि यह प्रसंन्नता की बात है कि चुनकर आये जिला पंचायत बहुत संतुलित है, इसमें युवाओं का जोश है और बुजुर्गो का समावेश है। उन्होंने जिला पंचायत के एक वर्ष पूर्ण होने पर सभी को बधाई देते हुए कहा कि मोहन चंदेल द्वारा जो पदयात्रा की गई थी उसमें उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में जो विसंगतियां देखी थी उसे दूर करने का प्रयास होना चाहिए।

परमानंद जयसवाल के विरूद्ध आज हो सकती है एफआईआर

सिवनी वन माफिया के रूप मे चर्चित और वन संपदा की तस्करी के अनेक आरोप के आरोपी परमानंद जयसवाल के विरूद्ध कुरई थाने में तहसीलदार कुरई को अपर केलेक्टर द्वारा निर्देश जारी किये गये है सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार संभवत: आज या कल परमानंद जयसवाल के विरूद्ध आपराधिक प्रकरण दर्ज कराया जा सकता है। मिली जानकारी के अनुसार कुरई विकासखंड के टिकारी माल की किसी निजी भूमि में लगे हुए झाड़ के साथ इन्होंने शासकीय भूमि के झाड़ भी कटा लिये थे हल्के के पटवारी द्वारा एवं अन्य राजस्व के अधिकारियों द्वारा आपत्तियां किये जाने पर उनके साथ गालीगलोच की जाती रही है। जिसकी शिकायत उच्चाधिकारियों को की गई मामले को संज्ञान में लेने के पश्चात काफी विस्तृत विवेचना हुई और अंत में पाया गया कि मामला आपराधिक प्रकरण दर्ज कराने योग्य है सूत्र बताते हैं कि परमानंद जयसवाल के विरूद्ध एफआईआर दर्ज करने के निर्देश अपरकलेक्टर द्वारा लगभग १ पखवाड़ेे पूर्व तहसीलदार को दे दियेगये थे परंतु एफआई आर आज दिनंाक तक नहीं होना अनेक संदेहो को जन्म दे रहा रहा है वहीं इस संबम्बध में कुरई तहसीलदार से चर्चा की गई तो उन्होंने जगणना की व्यवस्त्ता होने का कारण बताया और शीघ्र ही एफआईआर करने की बात कही है

मुख्यमंत्री आवास योजना में 70 हजार रूपये में जरूरतमंदों के लिए मकान बनाये जायेंगे

सिवनी -:शासन की योजनाओं को ग्रामीणों तक पहुंचाने के लिए जिला जनसम्पर्क विभाग द्वारा जिले के आदिवासी विकासखंडों में लगाये जा रहे सूचना शिविरों की श्रृंखला में गत 26 फरवरी को छपारा विकासखंड के दूरस्थ ग्राम केवलारी में ऐसा ही सूचना शिविर आयोजित किया गया। इस मौके पर ग्राम सरंपच केवलारी श्रीमती जलवतीबाई, बकोडा सरपंच श्री धनीराम बरकडे, सचिव ललित शर्मा, आदिम जाति कल्याण विभाग के मंडल संयोजक श्री एस.पी.सिंह, पशु चिकित्सा विभाग के ए.व्ही.एफ.ओ. श्री जी.एल.सोनकुंवर, उद्यान विस्तार अधिकारी श्री नामदेव, वनपाल श्री शिवदयाल, जलसंसाधन के उपयंत्री श्री डेहरिया, पी.एच.ई. के उपयंत्री श्री खरे, पी.सी.ओ. श्री डेहरिया के अलावा अन्य अधिकारी एवं स्थानीय ग्रामीणजन उपस्थित थे।

शिविर में जनपद पंचायत छपारा के ए.डी.ओ. श्री महेश यादव ने ग्रामीणों को बताया कि आगामी एक अप्रैल से लागू हो रही मुख्यमंत्री आवास योजना के तहत जरूरतमंदों के लिए मकानों का निर्माण किया जायेगा। उन्होंने बताया कि छपारा जनपद पंचायत क्षेत्र में 500 आवास प्रतिवर्ष के मान से आगामी तीन वर्षो में कुल 1500 आवासों का निर्माण इस योजना के तहत किया जायेगा। आवास बनाने के लिए जरूरतमंद ग्रामीण के पास खुद की जमीन होना चाहिये। इस योजना के तहत कुल 70 हजार रूपये में मकान बनाये जायेंगे, जिसमें 60 हजार रूपये बैंक से ऋण दिया जायेगा। जिसमें 30 हजार रूपये की सब्सिडी मिलेगी। ऋणी को 30 हजार रूपये बैंक में चुकता करना पडेगा और 10 हजार रूपये हितग्राही को स्वंय की ओर से लगाना होगा। इस योजना हेतु पात्र हितग्राही का चयन ग्राम सभा द्वारा किया जायेगा। उन्होंने बताया कि गांव के बेरोजगार लोग स्व सहायता समूह बनाकर ग्राम में ही खुद का छोटा रोजगार स्थापित कर सकते है। शिविर में मंडल संयोजक द्वारा आदिम जाति कल्याण विभाग के माध्यम से आदिवासी भाईयों के आर्थिक व सामाजिक कल्याण हेतु शासन द्वारा संचालित योजनाओं की विस्तृत जानकारी ग्रामीणों को दी गई। उन्होंने बताया कि आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा छपारा विकासखंड में 4 कन्या आश्रम संचालित किये जा रहे है। जिसमें कन्याओं की शिक्षा-दीक्षा के अलावा उनके रहने-खाने की पूरी व्यवस्था की जाती है। ग्रामीणजन अपनी कन्याओं को इस आश्रमों में भर्ती कराकर उन्हें शिक्षा दिला सकते है।

उद्यान विभाग के विस्तार अधिकारी ने ग्रामीणों को उद्यानिकी विभाग द्वारा संचालित विविध योजनाओं यथा मसाला बीज विकास, फलदार पौधे प्रदाय योजना, पुष्प व सब्जी विकास योजना सहित स्प्रिंकलर एवं टपक सिंचाई योजनाओं की विस्तृत जानकारी ग्रामीणों को देते हुए ग्रामीणों द्वारा पूछे गये प्रश्नों एवं शंकाओं का समाधान भी किया।

पी.सी.ओ. श्री डेहरिया ने ग्रामीणों को महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारन्टी योजना के तहत छपारा विकासखंड में कराये जा रहे निर्माण कार्यो की जानकारी देकर ग्रामीणों को इस योजना में मजदूरी दर में हुई वृद्वि के बारे में भी बताया। शिविर में ओमकार कश्यप की नाटॠ मंडली द्वारा नुक्कड नाटक के माध्यम से राज्य शासन की लोकप्रिय व जनहितैषी योजनाओं की रोचक प्रस्तुति देकर ग्रामीणों को उनके लाभ बताये एवं योजनाओं का आगे आकर लाभ उठाने का संदेश भी दिया गया।

चिकित्सा विभाग द्वारा इन सूचना शिविरों में स्वास्थ्य सुधार योजनाओं के प्रचार के लिए विशेष रूप से नियुक्त किये गये एक जादूगर द्वारा अपनी कलाप्रदर्शन से ग्रामीणों को परिवार नियोजन व कल्याण कार्यक्रम, जननी सुरक्षा योजना सहित अन्य योजनाओं की जानकारी देकर उनका मनोरजन भी किया गया। इस मौके पर जनसम्पर्क विभाग द्वारा प्रचार साहित्य भी ग्रामीणों के बीच वितरित किया गया।