कविता बुढ़ापे पर सवार अजगर January 14, 2020 / January 15, 2020 | Leave a Comment आत्माराम यादव पीव बड़ी मासूमियत से बुजुर्ग पिता ने कहा- बेटा] बुढ़ापा अजगर सा आकर मेरे बुढ़ापे पर सवार हो गया है जिसने जकड़ रखे है मेरे हाथ पैर न चलने देता है न उठने-बैठने देता है। बेटा, मेरे बाद तेरी माँ को अपने ही पास रखना। पिता के चेहरे पर पॅसरी हुई थी उदासी […] Read more » बुढ़ापे पर सवार अजगर
कविता सोफे का दर्द January 14, 2020 / January 20, 2020 | Leave a Comment आत्माराम यादव पीव मैं अपने सोफे पर बैठा मोबाईल में डूबा हुआ था और ढूंढ रहा था पसंद की रिंगटोन चिड़ियों की चहकने-फुदकने कोयल-बुलबुल की बोलियाॅ गिलहरियों सहित अनेक कर्णप्रिय आवाजें मुझे जंगल के खग-मृग का मधुर कलरव सा आनंद दे रही थी। अचानक मेरी तंद्रा टूटी जैसे लगा कि मेरा सोफा मुझसे कुछ बातें […] Read more » सोफे का दर्द
कविता कहाँ गये भवानीप्रसाद मिश्र के ऊँघते अनमने जंगल January 14, 2020 / January 14, 2020 | Leave a Comment भवानीप्रसाद मिश्र ने देखे थे सतपुड़ा के घने जंगल नींद में डूबे हुये मिले थे वे उॅघते अनमने जंगल। झाड़ ऊॅचे और नीचे जो खड़े थे अपनी आंखे मींचे जंगल का निराला जीवन मिश्रजी ने शब्दो में उलींचें। मिश्र की अमर कविता बनी सतपुड़ा के घने जंगल आज ढूंढे नहीं मिलते सतपुड़ा की गोद में […] Read more » ऊँघते अनमने जंगल
लेख साहित्य जब महावीर हनुमान ने सीता,लक्ष्मण,भरत के प्राणों की रक्षा की January 14, 2020 / January 14, 2020 | Leave a Comment गोस्वामी तुलसीदास रचित श्रीरामचरित्र मानस रामायण में महावीर हनुमान के अनेक स्वरूप के दर्शन होते हैं। जहॉ मारूति, आंजनेय,बजरंगवली, महावीर,हनुमान जैसे अनेक नामों से वे विख्यात हुये वही शिवजी के 11 वे रूद्र का अवतार होने से वे सबसे बलवान और बुद्धिमान भी है और उनके पराक्रम एवं चार्तुय से ही सुग्रीव, माता सीता, […] Read more » महावीर हनुमान
कविता साहित्य काश हर घर आँगन हो January 10, 2020 / January 10, 2020 | Leave a Comment कितना अच्छा था जब हम बच्चे थे तब घर के आँगन में इकट्ठा हो जाता था पूरा परिवार। कैलाश,शंकर, विनिया चन्दा आँगन में खूब मस्ती करते थे तब आँगन किसी खेल के मैदान से कमतर नहीं था जिसमें समा जाता था सारा मोहल्ला घर-द्वार। मकान से जुड़ा हुआ आँगन आँगन से बाहर तक घर का […] Read more »
कविता जीवन का अधूरापन January 10, 2020 / January 10, 2020 | Leave a Comment मुझे याद है प्रिय शादी के बाद तुम दूर-बहुत दूर थी मैं तुम्हारे वियोग में दो साल तक अकेला रहा हॅू। बड़ी शिद्दत के बाद तुम आयी थी तुम्हारे साथ रहते तब दिशायें मुझे काॅटती थी और तुम अपनी धुन में मुझसे विलग थी। तुम्हारा पास होना अक्सर मुझे बताता जैसे जमीन-आसमान गले मिलने को […] Read more »
लेख साहित्य पण्डित-पंडताई के बीच झगड़ा January 7, 2020 / January 7, 2020 | 1 Comment on पण्डित-पंडताई के बीच झगड़ा लेखक आत्माराम यादव पीव (आकाश मार्ग से नारद जी हाथों में वीणा लिये भारत के एक गाँव की ओर प्रस्थान कर रहे है और जॅपते जा रहे है- श्रीमन नारायण नारायण हरि हरि …. श्रीमन नारायण नारायण हरि हरि . वे गाँव की सीमा में प्रवेश करते है तभी उन्हें एक भक्त मिलता है) भक्त- […] Read more » पण्डित-पंडताई के बीच झगड़ा
कविता ईश्वर को नौकर रख सकता है इंसान January 3, 2020 / January 3, 2020 | Leave a Comment जिस दिन ईश्वर ने अपना वसीयतनामा इंसान के नाम लिख दिया इंसान ने खोद डाली सारी खदानें सोना,चान्दी, हीरे-मौती निकाल कर अपनी तिजौरी भर ली। धरती की सारी सुरंगे स्वार्थी इंसान ने खोज ली और सारी तिजौरियों को बहुमूल्य रत्न भण्डारों से भर ली। उसने पहले नदियों के पानी को बेचा नदियों के किनारों की […] Read more » ईश्वर को नौकर रख सकता है इंसान
कविता छेदवाली नाव पर सवार पत्रकार January 3, 2020 / January 3, 2020 | Leave a Comment मुद्दत से चली आ रही पत्रकारिता की पुरानी कई छिद्रवाली नाव पर सवार है मेरे शहर के तमाम पत्रकार इस पुरानी नाव में कुछ छेद पार कर चुके लोगों ने तो कुछ छेद इस नाव पर सवार लोगों ने किये है। इस पुरानी नाव को चट्टानों के बीच भयंकर तूफानों को भी झेलना होता है […] Read more » पत्रकार
कविता क्यों हुये डाक्टर लुटेरा एक समान January 2, 2020 / January 2, 2020 | Leave a Comment ओ नाच जमूरे छमा-छम, सुना बात पते की एकदम हाथपैर में हड़कन होती है, सर में गोले फूटे धमा-धम आं छी जुकाम हुआ या सीने में दर्द करे धड़ाधड़क, छींकें गरजे तोपों सी या खून नसों में फुदकें फुदकफुदक मेरा जमूरा बतायेगा, क्यों डाक्टर लूटेरा नहीं किसी से कम सुन मेरे प्यारे सुकुमार जमूरे तेरी […] Read more » doctors have become looters क्यों हुये डाक्टर लुटेरा एक समान डाक्टर लुटेरा एक समान
व्यंग्य ब्रज नही बचो कान्हा के समय जैसों January 2, 2020 / January 2, 2020 | Leave a Comment (ब्रजदर्शन के बाद ) जे वृन्दावन धाम नहीं है वैसो, कान्हा के समय रहो थो जैसो समय बदलते सब बदले हाल वृन्दावन हुओ अब बेहाल। कान्हा ग्वालो संग गईया चराई, वो जंगल अब रहो नही भाई निधि वन सेवाकुंज बचो है, राधाकृष्ण ने जहाॅ रास रचो है। खो गयी गलियाॅ खो गये द्वारे, नन्दगाॅव की […] Read more » कान्हा
कविता कब होगी सुख की भोर December 31, 2019 / December 31, 2019 | Leave a Comment कह रहे है माता-पिता अब जीवन कितना बाकी है कब तक धड़केगा यह दिल और कितनी साॅसें बाकी है। बेटा बहू पोता नहीं आते ममता से धड़के छाती है। बेटे से बतियाना कब होगा मुश्किल से कटती दिन-राती है। पोते को कंठ लगाने की यह प्यास अभी तक बाकी है। घर अपने बहू क्यों नहीं […] Read more » कब होगी सुख की भोर