धर्म-अध्यात्म ईसा मसीह : अहिंसा, करुणा और सत्य के अमर प्रतीक April 17, 2025 / April 17, 2025 by योगेश कुमार गोयल | Leave a Comment गुड फ्राइडे (18 अप्रैल) पर विशेष Read more » ईसा मसीह
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म राम भक्त हनुमान सिखाते हैं जीवन जीने की कला April 11, 2025 / April 11, 2025 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment (हनुमान जयंती विशेष, 12 अप्रैल 2025) संदीप सृजन हनुमान जी भारतीय संस्कृति और धर्म में एक अद्वितीय स्थान रखते हैं। रामायण के इस महान पात्र को न केवल एक शक्तिशाली योद्धा और भक्त के रूप में जाना जाता है, बल्कि वे एक ऐसे प्रेरक व्यक्तित्व भी हैं जो हमें जीवन जीने की कला सिखाते हैं। […] Read more » हनुमान हनुमान जयंती
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म आंजन धाम : हनुमान जी की जन्मस्थली April 11, 2025 / April 11, 2025 by कुमार कृष्णन | Leave a Comment हनुमान जयंती विशेष, 12 अप्रैल 2025) कुमार कृष्णन हनुमान भारत वर्ष के लोकदेवता हैं। चंडी, गणपति और शिवलिंग की तरह वे भी उस भारतीयता के प्रसव क्षणों में उदित हुए हैं जो आर्य एवं आर्येतर अर्थात आदि निषाद किरात, द्रविड़ और आर्य के चतुरंग समन्वय से उत्पन्न हुई हैं। अपने विकसित रूप में यह भारतीय […] Read more » Anjan Dham: Birthplace of Hanuman हनुमान जयंती
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म प्राकृतिक उपचार की विधि है यज्ञोपवीत संस्कार April 7, 2025 / April 7, 2025 by प्रमोद भार्गव | Leave a Comment प्रमोद भार्गव यह प्रबंध सनातन संस्कृति में ही निहित है, जिसमें प्रत्येक संस्कार को शारीरिक उपचार के प्राकृतिक शोध से जोड़कर समाज के प्रचलन में लाया गया है। इन्हीं में ही एक है यज्ञोपवीत अर्थात उपनयन या जनेऊ संस्कार। वैदिक काल में स्थापित इस संस्कार से तात्पर्य वेदों के पठन, श्रवण तथा अध्ययन-मनन से है। इन लक्ष्यों […] Read more » यज्ञोपवीत संस्कार
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म मन की शुद्धता से प्रसन्न होती हैं महागौरी April 4, 2025 / April 4, 2025 by डॉ घनश्याम बादल | Leave a Comment दुर्गा अष्टमी डॉ घनश्याम बादल व्रत, उपवास और पूजा-पाठ हिंदू धर्म की पहचान हैं । उसकी यह विशेषता उसे अन्य धर्मों से विशिष्ट बनाती है । वर्ष में एक से अधिक बार ऐसे अवसर आते हैं जब श्रद्धालु हिंदू एक या दो दिन नहीं बल्कि कई कई दिन व्रत एवं उपवास करके अपने इष्ट देव […] Read more » महागौरी
धर्म-अध्यात्म रामनवमी: मर्यादा, न्याय और धर्म की विजय का पर्व April 4, 2025 / April 4, 2025 by योगेश कुमार गोयल | Leave a Comment रामनवमी (6 अप्रैल) पर विशेष– योगेश कुमार गोयलभगवान श्रीराम के जन्मोत्सव के रूप में समूचे भारतवर्ष में प्रतिवर्ष चैत्र मास की शुक्ल पक्ष नवमी को अपार श्रद्धा, भक्ति और उल्लास के साथ रामनवमी का त्यौहार मनाया जाता है, जो इस वर्ष 6 अप्रैल को मनाया जा रहा है। इस दिन श्रीराम की जन्मस्थली अयोध्या में […] Read more » Ram Navami: Festival of victory of dignity ramnavami रामनवमी
धर्म-अध्यात्म चंडिका स्थान: यहां गिरी थी सती की बांयीं आंख April 3, 2025 / April 3, 2025 by कुमार कृष्णन | Leave a Comment कुमार कृष्णन देश में 52 शक्तिपीठ हैं, सभी शक्तिपीठों में देवी मां के शरीर का एक हिस्सा गिरा था। जिसके कारण यहां मंदिर स्थापित हुए। ऐसा ही एक शक्तिपीठ बिहार के मुंगेर जिले से करीब चार किलोमीटर दूर है। यहां देवी सती की बाईं आंख गिरी थी यह मंदिर को चंडिका स्थान और श्मशान चंडी के नाम से जाना जाता है। मान्यताओं के अनुसार मंदिर में आने वाले श्रृद्धालुओं की हर मुराद पूरी होती है। इस स्थान को लेकर लोगों का कहना है कि यहां आंखो से संबंधित हर रोग का इलाज होता है। जी हां, यहां खास काजल मिलता है जिसे आंखों में लगाने से व्यक्ति के आंख से संबंधित रोग दूर हो जाते हैं। वैसे तो यहां भारी संख्या में श्रृद्धालुओं का तांता लगा रहता है लेकिन नवरात्रि में यहां भक्तों का सैलाब आ पड़ता है। चूंकि मंदिर के पूर्व और पश्चिम में श्मशान है और मंदिर गंगा किनारे स्थित है। जिसके कारण यहां तांत्रिक तंत्र सिद्धियों के लिए आते हैं। नवरात्र को समय मंदिर का महत्व और भी अधिक हो जाता है। सुबह के समय मंदिर में तीन बजे देवी का पूजन शुरु होता है और शाम के समय भी श्रृंगार पूजन किया जाता है। इस कारण नवरात्र के दौरान कई विभिन्न जगहों से साधक तंत्र सिद्धि के लिए भी जमा होते हैं। चंडिका स्थान में नवरात्र के अष्टमी के दिन विशेष पूजा का आयोजन होता है। इस दिन सबसे अधिक संख्या में भक्तों का यहां जमावड़ा होता है।सिद्धि-पीठ होने के कारण, चंडिका स्थान को सबसे पवित्र और पवित्र मंदिरों में से एक माना जाता है। यह गुवाहाटी स्थित कामाख्या मंदिर जैसा ही महत्वपूर्ण है। चंडिका स्थान के मुख्य पुजारी नंदन बाबा बताते हैं कि चंडिका स्थान एक प्रसिद्ध शक्ति पीठ है। नवरात्र के दौरान सुबह तीन बजे से माता की पूजा शुरू हो जाती है। संध्या में श्रृंगार पूजन होता है। अष्टमी के दिन यहां विशेष पूजा होती है। इस दिन माता का भव्य शृंगार होता है। यहां आने वाले लोगों की सभी मनोकामना पूर्ण होती है। श्रृद्धालुओं का मानना है कि यहां देवी के दरबार में हाजिरी लगाने से हर मनोकामना पूरी हो जाती है। मंदिर प्रांगण में काल भैरव, शिव परिवार और बहुत सारे हिंदू देवी- देवताओं के मंदिर हैं। भगवान शिव जब राजा दक्ष की पुत्री सती के जलते हुए शरीर को लेकर जब भ्रमण कर रहे थे, तब सती की बाईं आंख यहां गिरी थी। इस कारण यह 52 शक्तिपीठों में एक माना जाता है। इसके अलावा इस मंदिर को महाभारत काल से जोड़ा जाता है। कर्ण मां चंडिका के परम भक्त थे। वह हर रोज़ मां के सामने खौलते हुए तेल की कड़ाही में कूदकर अपनी जान देते थे और मां प्रसन्न होकर उन्हें जीवनदान दे देती थी और उसके साथ सवा मन सोना भी देती थी। कर्ण सारा सोना मुंगेर के कर्ण चौरा पर ले जाकर बांट देते। इस बात का पता जब उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के पड़ा तब वे वहां पहुंचे और उन्होंने अपनी आंखों से पूरा दृश्य देखा। एक दिन वह कर्ण से पहले मंदिर गए ब्रह्म मुहूर्त में गंगा स्नान कर स्वयं खौलते हुए तेल की कड़ाही में कूद गए। मां ने उन्हें जीवित कर दिया। वह तीन बार कड़ाही में कूदे और तीन बार मां ने उन्हें जीवनदान दिया। जब वह चौथी बार कूदने लगे तो मां ने उन्हें रोक दिया और मनचाहा वरदान मांगने को कहा। राजा विक्रमादित्य ने मां से सोना देने वाला थैला और अमृत कलश मांग लिया। मां ने भक्त की इच्छा पूरी करने के बाद कड़ाही को उलटा दिया और स्वयं उसके अंदर अंतर्ध्यान हो गई। आज भी मंदिर में कड़ाही उलटी हुई है। उसके अंदर मां की उपासना होती है। मंदिर में पूजन से पहले विक्रमादित्य का नाम लिया जाता है, फिर मां चंडिका का। नवरात्र में श्रद्धालुओं की भीड़ अन्य दिनों की तुलना में कई गुना ज्यादा होता है।नवरात्र अष्टमी के दिन यहां खास पूजा होती है।यहां के पुजारी ने बताया कि मुंगेर-खगड़िया जिला का एप्रोच पथ जब से बना है तब से नवरात्र में गंगा पार खगड़िया, बेगूसराय जिला के श्रद्धालु भारी संख्या में पहुंच रहे हैं। श्रद्धालुओं ने बताया कि मां शक्तिपीठ चंडिका स्थान का बहुत बड़ा महत्व है और कई साल से मां की पूजा अर्चना करते आ रहे हैं। मां से जो भी मांगते हैं मां पूरी करती है। तंत्र साधना में इसका स्थान असम के कामाख्या मंदिर के जैसा है। पहले इसे एक बहुत छोटा प्रवेश द्वार था लेकिन 20 वीं शताब्दी में, इसका प्रवेश द्वार बड़े में बदल दिया गया था। चंडिका स्थान का विकास 40-50 साल पहले राय बहादुर केदार नाथ गोयनका ने किया था, फिर से वर्ष 1991 में श्याम सुंदर भंगड़ ने किया था। आईटीसी ने भी सामाजिक दायित्व के तहत मंदिर परिसर को विकसित किया। परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती के अनुसार नवरात्रि, माँ दुर्गा को समर्पित नौ रातों का पर्व है। यह आध्यात्मिक जागरूकता, भक्ति और आंतरिक परिवर्तन का दिव्य अवसर है। इन नौ दिनों में माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है, जो विभिन्न गुणों और ब्रह्मांडीय ऊर्जाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं और हमारे शरीर, मन और आत्मा को प्रभावित करते हैं। चंडी माता का आक्रामक पहलू है। चंडी तब अस्तित्व में आती है जब सभी मानवीय और दैवीय प्रयास विफल हो जाते हैं। मानव प्रयास की एक सीमा होती है और दैवीय प्रयास की भी एक सीमा होती है। चंडी की कहानी दुर्गासप्तशती पुस्तक में वर्णित है , जिसमें ब्रह्मांडीय मां की महिमा का वर्णन किया गया है। कहानी देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध से शुरू होती है। देवताओं ने राक्षसों को कड़ी टक्कर दी और राक्षसों को स्वर्ग से निकाल दिया गया। ब्रह्मांड का पूरा संतुलन गड़बड़ा गया। शांति और सद्भाव के बजाय अराजकता और संघर्ष दिन का क्रम था। पूर्ण मनोबल की स्थिति में, देवता गए और त्रिदेवों को अपनी व्यथा सुनाई, जिनका प्रतिनिधित्व ब्रह्मा, निर्माता, विष्णु, संरक्षक और शिव, संहारक ने किया। जब तीनों देव देवों की पीड़ा सुन रहे थे, तो वे क्रोधित हो गए और उनके क्रोध से एक रूप, एक आकृति प्रकट हुई। वह चंडी थी, जिसे दुर्गा के नाम से भी जाना जाता है। दुर्गा का जन्म प्रत्येक देव के तेज से हुआ था और वह सभी ब्रह्मांडीय शक्तियों के संश्लेषण का प्रतिनिधित्व करती है। सिद्ध शक्तिपीठ स्थल चंडिका स्थान के सौंदर्यीकरण की योजना को सरकारी मंजूरी मिल गयी है। पर्यटन विभाग 4.18 करोड़ की लागत से चंडिका स्थान का सौंदर्यीकरण करा रहा है। इसके तहत श्रद्धालुओं के ठहरने के धर्मशाला, मल्टीपरपस हॉल, मुख्यद्वार से गर्भगृह तक पाथ वे का निर्माण कराया जाना है। मुख्य प्रवेश द्वार को बड़ा और आकर्षक बनाया जाएगा। इसके अलावा मंदिर का चाहरदीवारी का भी निर्माण होगा।वहीं सुरक्षा के उद्देश्य से मंदिर परिसर में सीसीटीवी कैमरा लगाया जाएगा। मंदिर परिसर को पूरी तरह समतल बनाकर भक्तगण को बैठने के लिए पेड़ के नीचे बेंच लगाया जाएगा। इसके अलावा मंदिर परिसर में हाई मास्ट लाइट, पाथ वे, दवा के साथ फस्ट एड कक्ष तथा मंदिर से पानी की निकासी और वर्षा जल संरक्षित करने के लिए ड्रेनेज चैनल और रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाया जाएगा। कुमार कृष्णन Read more » Chandika Sthan
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म राम से बड़ा राम का नाम April 3, 2025 / April 3, 2025 by डॉ नीलम महेन्द्रा | Leave a Comment वो त्रेता युग का समय थाजब सूर्यवंशी महाराज दशरथ के घर कौशलनन्दन श्री राम का जन्म हुआ था। समय कहाँ रुकता है भला !तो वह अपनी गति से चलता रहा। आज हम द्वापर से होते हुए कलियुग में आ गए हैं। लेकिनइतने सहस्रों वर्षों के बाद भी, इतने युगों के पश्चात भीप्रभु श्री राम का चरित्र […] Read more » Ram's name is greater than Ram राम से बड़ा राम का नाम
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म सनातन संस्कृति में छिपा है पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान April 1, 2025 / April 1, 2025 by प्रो. महेश चंद गुप्ता | Leave a Comment प्रो. महेश चंद गुप्ता भारतीय सनातन संस्कृति और पर्यावरण के बीच युगों पुराना नाता है। एक सनातन संस्कृति ही है, जिसमें प्रकृति को केवल अस्तित्व का आधार ही नहीं बल्कि पूजनीय माना गया है। आधुनिक विज्ञान में जिस पर्यावरणीय संतुलन की वकालत की जाती है, उस संतुलन को सनानत परंपराओं में सदियों से साधा जा रहा है। सनातन संस्कृति में प्रत्येक प्राकृतिक तत्व को दिव्य माना गया है। हमारे लिए सूर्य, जल, वायु और वनस्पति सबको देवतुल्य हैं। जरूरत के समय पेड़ों को काटने से पहले उनकी अनुमति मांगने और तुलसी पत्र तोड़ते समय विनम्र भाव से क्षमा मांगने की विनम्रता केवल हमारी संस्कृति में ही है। हम सूर्यास्त के बाद फूल-पत्तियां इसलिए नहीं तोड़ते क्योंकि तब तब वे विश्राम की अवस्था में होते हैं। न केवल भारत में बल्कि विदेशों मेंं बसा हिंदू समुदाय भी पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपने दायित्व का निर्वाह कर रहा है। इस बात को अब विदेशों में भी स्वीकार कर इससे प्रेरणा ली जाने लगी है। ब्रिटेन के इंस्टीट्यूट फॉर द इम्पैक्ट ऑफ फेथ इन लाइफ (आईआईएफएल) की ओर से हाल में किए गए एक अध्ययन में यह निष्कर्ष सामने आया है। अध्ययन की रिपोर्ट में उल्लेख है कि पर्यावरण सुरक्षा के मुद्दे पर ब्रिटेन में हिंदू समुदाय बाकी समुदायों की तुलना में सबसे ज्यादा सक्रिय है। अधिकांश हिंदू पर्यावरण के लिए कुछ न कुछ कर रहे हैं। कण-कण में भगवान के होने का विश्वास उनका प्रेरणास्रोत है। 64 फीसदी हिंदू ‘रीवाइल्डिंग’ यानी इको सिस्टम को नई जिंदगी देने में शामिल हैं। 78 फीसदी हिंदू अपनी आदतों मेंं इसलिए बदलाव लाते हैं ताकि पर्यावरण को नुकसान कम हो। 44 प्रतिशत हिंदू पर्यावरणीय संगठनों से जुड़े हैं। अध्ययन में हिंदू, मुस्लिम और ईसाई समुदायों के पर्यावरण संबंधी नजरिये और गतिविधियों का विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट से पता चलता है कि ब्रिटेन के 82 फीसदी ईसाई धर्म को पर्यावरण सुरक्षा से जोड़ते हैं पर उनके सुरक्षा संबंधी काम सबसे कम हैं। 31 फीसदी ईसाई जलवायु परिवर्तन को ही नकारते हैं, जो किसी भी धार्मिक समूह में सबसे ज्यादा है। 92 प्रतिशत मुस्लिम व 82 प्रतिशत ईसाई मानते हैं कि उनका धर्म पर्यावरण की देखभा करने की जिम्मेदारी देता है लेकिन उनकी यह सोच व्यवहार में नहीं बदलती। अगर हिंदू पर्यावरण संरक्षण के लिए सक्रिय हैं तो इसका मुख्य कारण यह है कि हिंदू धर्म में ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना निहित है जो संपूर्ण सृष्टि को एक परिवार के रूप में देखने की शिक्षा देती है। यही भाव हममेें प्रकृति के प्रति एकात्मता का भाव विकसित करता है। आज जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन की चुनौती से जूझ रही है, तब सनातन संस्कृति की यह सोच और व्यवहार मानवता के लिए एक प्रेरणा बन सकता है। यह अध्ययन पर्यावरण संकट और जलवायु परिवर्तन के खतरों के दृष्टिगत बहुत महत्वपूर्ण है। इस अध्ययन से न सिर्फ सनातन संस्कृति और पर्यावरण के संबंधों का पता चलता है, वहीं यह बात भी साबित होती है कि दशकों पहले कामकाज के सिलसिले में विदेशों में बस गए हिंदू आज भी अपनी संस्कूति को आत्मसात किए हुए हैं। हिंदू सनातन धर्म में पर्यावरण केवल आध्यात्मिकता या पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है बल्कि यह संपूर्ण सृष्टि के प्रति एक गहरी जागरूकता और सम्मान की भावना से ओत-प्रोत है। हमारी संस्कृति में प्रकृति और जीव-जंतुओं को पूजनीय मानते हुए उनके संरक्षण पर जोर दिया गया है। इससे हिंदू धर्म में पर्यावरण संरक्षण केवल नैतिक दायित्व नहीं है बल्कि धार्मिक आस्था और दैनिक जीवन का अभिन्न अंग भी है। हमारे पुरखों को पर्यावरण से कितना प्रेम था, इसका पता उनके द्वारा स्थापित मान्यताओं से चलता है। सनातन धर्म में यह मान्यता है कि संपूर्ण सृष्टि पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश पंचतत्वों से बनी है। इन पंचतत्वों को संतुलित रखना जीवन का मूल उद्देश्य है। इसी कारण पर्यावरण की शुद्धता और संतुलन बनाए रखना हिंदू दर्शन का प्रमुख भाग है। सनातन संस्कृति में पग-पग पर पर्यावरण संरक्षण के उपाय किए गए हैं। भूमि पूजन, गोवर्धन पूजा के बहाने पृथ्वी पूजन की परंपरा अनायास थोड़े बन गई है। नदियों को देवी मानकर पूजने के पीछे गंगा, यमुना, नर्मदा, कृष्णा आदि तमाम नदियों की पवित्रता को बनाए रखने की मंशा ही तो है। हवन और यज्ञ में प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का उपयोग करने के पीछे पर्यावरण को शुद्ध करने की भावना निहित है। हमारे पुरखों ने योग और प्राणायाम के जरिए शुद्ध वायु का महत्व कितने वैज्ञानिक ढंग से समझाया है। पुरखों ने आकाश को अनंत ऊर्जा का स्रोत माना एवं ध्यान और साधना के माध्यम से इसका संतुलन बनाए रखने का संदेश दिया तो इसके पीछे भी तो प्रकृति के प्रति श्रद्धा भाव ही है। पेड़ों और वनस्पतियों को देवतुल्य मानकर उनकी पूजा के पीछे उनके संरक्षण की भावना ही तो है। हमारे पुरखों ने सदियों पहले जिस तुलसी को मां लक्ष्मी का स्वरूप मानकर हर घर में लगाने की परंपरा शुरू की, उसके औषधीय गुणों को आज वैज्ञानिक भी स्वीकार करते हैं। हमारे यहां प्राचीन काल में ही ऋषि-मुनि आश्रमों में वन लगाने को प्राथमिकता दी गई और आज भी मंदिरों और आश्रमों में वृक्षारोपण को पवित्र कार्य के रूप में करके उसका अनुसरण किया जा रहा है। हमारे देश मेंं पर्यावरण संरक्षण हमारी शिक्षा पद्धति का प्राचीन काल से ही भाग रहा है। हमारे ऋषि-मुनि पर्यावरण शुद्ध रखने के लिए हवन-यज्ञ करते थे। इससे वातावरण को साफ एवं समय पर वर्षा में मदद मिलती थी। आधुनिक काल में भी ऐसे उदाहरण हैं, जब हवन-यज्ञ के बाद वर्षा होते देखी गई है। मौजूदा समय में तो प्राचीन परंपराओं का अनुसरण करने की ज्यादा जरूरत हैं क्योंकि नदियों का जल कम एवं प्रदूषित हो रहा है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं। समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है और विश्व के कई तटीय शहरों के डूब जाने का अंदेशा है। प्राचीन गुरुकुलों में पर्यावरण संरक्षण पर जोर दिया जाता था तो मौजूदा दौर मेंं भी कॉलेजों-विश्वविद्यालयों में पर्यावरण संरक्षण पर शोध एवं अध्ययन, अधिकाधिक पेड़ लगाने और पर्यावरण अनुकूलता के लिए स्वच्छ वातावरण को प्राथमिकता दी जा रही है। हमारी मान्यता है कि शुद्ध एवं साफ वातावरण मेंं लक्ष्मी का वास होता है और इससे समृद्धि आती है, हमारे इस विचार को विदेशों में अपनाया गया है। विभिन्न देशों में विश्वविद्यालयों के लंबे-चौड़े, खुले परिसर एवं वहां सघन हरियाली इसका प्रमाण है। सनातन संस्कृति मेंं जैव विविधता को बनाए रखने के लिए जहां गाय को माता का दर्जा दिया गया है, वहीं नाग पंचमी पर सांपों की पूजा कर उनके महत्व को भी स्वीकारा गया है। गंगा दशहरा और कार्तिक स्नान जैसे त्योहारों के माध्यम से जल शुद्धता बनाए रखने का संदेश दिया गया है। अद्र्धकुंभ, कुंभ और महाकुंभ मेंं नदियों की सफाई और उनकी महत्ता पर बल दिया गया है। अध्ययन की रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंदू धर्म कर्म पर आधारित है। इसमें मान्यता है कि इस जीवन में हम जो करते हैं, उसका असर अगले जन्म पर पड़ता है। अच्छे कर्म से बुरे कर्म मिटते हैं और अगला जन्म बेहतर होता है। इसीलिए पर्यावरण के प्रति दायित्व बोध बना हुआ है। हमारे युवा इसमेंं सबसे अग्रणी हैं 18-24 वर्ष के 46 फीसदी धार्मिक युवा ईश्वर को पर्यावरणविद् के रूप में देखते हैं। आज समूची दुनिया जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और पारिस्थितिक असंतुलन की समस्याओं से जूझ रही है। इन समस्याओं का समाधान भारतीय सनातन संस्कृति में खोजा जा सकता है। हमारी महान परंपराएं समूची दुनिया में पर्यावरण संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण मार्गदर्शक बन सकती हैं। हिंदू धर्म में पुराने कपड़ों और सामान का पुन: उपयोग करने की परंपरा रीसाइक्लिंग और अपशिष्ट प्रबंधन का प्राचीन रूप नहीं तो क्या है। हमारे यहां शाकाहार को बढ़ावा इसलिए दिया गया क्योंकि हमारे पूर्वज जानते थे कि शाकाहार को बढ़ावा देने से कार्बन उत्सर्जन कम होता है और पर्यावरणीय संतुलन बना रहता है। हमारी संस्कृति मेंछठ पूजा में जल और सूर्य का महत्व, संक्रांति में तिल और गुड़ तथा होली में प्राकृतिक रंग जैव विविधता को संरक्षण के परिचायक हैं। हिंदू सनातन धर्म और पर्यावरण संरक्षण की भावना परस्पर गहराई से जुड़े हुए हैं। यह जुड़ाव केवल धार्मिक नियमों का पालन करने तक सीमित नहीं है बल्कि एक संपूर्ण जीवन शैली है जो प्रकृति के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन, सम्मान और संरक्षण को प्राथमिकता देती है। अगर आज पूरी दुनिया इन सिद्धांतों को अपना ले तो न सिर्फ पर्यावरण संकट को कम किया जा सकता है बल्कि जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों से भी निपटा जा सकता है। प्रकृति की रक्षा करना केवल हमारा धर्म नहीं बल्कि हमारा नैतिक उत्तरदायित्व भी है। प्रो. महेश चंद गुप्ता Read more » The solution to environmental problems is hidden in Sanatan culture सनातन संस्कृति सनातन संस्कृति में छिपा है पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म सृष्टि चक्र का शाश्वत सनातन संवाहक भारतीय नवसम्वत्सर March 31, 2025 / April 1, 2025 by कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल | Leave a Comment ~ कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि भारतीय संस्कृति में अपना विशिष्ट महत्व रखती है। यह तिथि नवसम्वत्सर – हिन्दू नववर्ष के उत्साह पर्व की तिथि है। यह तिथि भारतीय मेधा के शाश्वत वैज्ञानिकीय चिंतन – मंथन के साथ – साथ लोकपर्व के रङ्ग में जीवन के सर्वोच्च आदर्शों से एकात्मकता स्थापित […] Read more » Indian new year the eternal carrier of the cycle of creation भारतीय नवसम्वत्सर
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म वर्त-त्यौहार नव संवत्सर : भारत का नव वर्ष March 30, 2025 / March 31, 2025 by सुरेश हिन्दुस्थानी | Leave a Comment सुरेश हिन्दुस्थानी आज यह प्रामाणिक रूप से कहा जा सकता है कि अपने स्वर्णिम अतीत को विस्मृत करने वाला भारतीय समाज अब अपनी जड़ों की ओर लौट रहा है। सही मायनों में कहा जाए तो समाज प्राकृतिक होने की ओर कदम बढ़ा चुका है। विश्व की महान और शाश्वत परंपराओं का धनी भारत देश भले […] Read more » Nav Samvatsara: India's New Year नव संवत्सर
धर्म-अध्यात्म जीवन को पहचानो March 25, 2025 / March 25, 2025 by डॉ. नीरज भारद्वाज | Leave a Comment डॉ. नीरज भारद्वाज ऋग्वेद में लिखा है- मनुर्भव जनया देव्यं जनम् अर्थात मनुष्य को अपने आप को सच्चा मनुष्य बनाना चाहिए और दिव्य गुणों वाली संतानों को जन्म देना चाहिए। दूसरे शब्दों में कहें तो सुयोग्य मनुष्यों के निर्माण में लगातार प्रयास करना चाहिए। व्यक्ति किसी पद पर पहुंचे या ना पहुंचे पर उसे सच्चा व्यक्ति और […] Read more » जीवन को पहचानो