दोहे साहित्य माखन चखत मोहन रहत ! May 26, 2017 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment माखन चखत मोहन रहत, गोपिन के मन गोपन रमत; Read more » माखन चखत मोहन रहत
दोहे साहित्य तुम चलत सहमित संस्फुरत ! May 16, 2017 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment उड़िकें गगन आए धरणि, बहु वेग कौ करिकें शमन; वरिकें नमन भास्वर नयन, ज्यों यान उतरत पट्टियन ! बचिकें विमानन जिमि विचरि, गतिरोध कौ अवरोध तरि; आत्मा चलत झाँकत जगत, मन सहज करि लखि क्षुद्र गति ! Read more » तुम चलत सहमित संस्फुरत !
दोहे साहित्य प्राण की आहुति कोई देता ! May 8, 2017 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment प्राण की आहुति कोई देता, समझ बलिदान कहाँ कोई पाता; ताक में कोई है रहा होता, बचा कोई कहाँ उसे पाता ! रही जोखिम में ज़िन्दगी रहती, सुरक्षा राह हर कहाँ होती; तभी तो ड्यूटी है लगी होती, परीक्षा हर घड़ी वहाँ होती ! चौकसी करनी सभी को होती, चूक थोड़ी भी नहीं है चलती; […] Read more » प्राण की आहुति कोई देता !
दोहे बाबा तेरी ज्योति से ज्योति April 15, 2017 by डा. राधेश्याम द्विवेदी | Leave a Comment डा. राधेश्याम द्विवेदी ‘नवीन’ आचार्य पं. मोहन प्यारे द्विवेदी ‘मोहन’ (01.04.1909-15.04.1989) स्मृति पखवारा 29वी पुण्य तिथि पर सादर श्रद्धांजलि बाबा तेरी ज्योति से ज्योति, हर पल जलती जाती है । दुनिया की झंझावातों से वह, कभी नहीं बुझ पाती है ।। जब एक भी दीया जलता है, सारी दुनिया प्रकाशित होती है। जब एक बुद्धत्व […] Read more » बाबा तेरी ज्योति से ज्योति
दोहे साहित्य बीजू के छक्के February 9, 2017 by विजय सिंघल | Leave a Comment तमिलनाडु में चल रही है जूतमपैजार। शशीकला ने खींच ली सेल्वम की सरकार॥ सेल्वम की सरकार कि इस पर मैं बैठूँगी। जया सहेली की विरासत बस मैं ही लूँगी॥ कह “बीजू” जो रौनक़ यूपी के चुनाव में। उससे ज़्यादा मज़ा आ रहा तमिलनाडु में॥ 2. राज्य सभा में अटक गये हैं विपक्ष के प्राण। मोदी […] Read more » बीजू के छक्के
दोहे दोहे December 26, 2016 by बीनू भटनागर | Leave a Comment नींद नहीं मेरी सखी,मुश्किल से है आय, चौक कर खुल जाय कभी,फिर नख़रा दिखलाय। सपनों का घर नींद है , निंदिया का घर नैन नींद नैन आवे नहीं , ना सपनों को चैन। कच्चा घर है नींद का , टूट कभी भी जाय बार- बार टूटे कभी , बन न निशा भर पाय। शाम रात […] Read more » दोहे
दोहे साहित्य प्रभु प्रभाव प्रति जीव सुहाई ! July 24, 2016 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment प्रभु प्रभाव प्रति जीव सुहाई; देश काल एकहि लग पाई ! पृथ्वी एक, देश सब अापन; विश्व बसहि, मानस उर अन्तर ! भेद प्रकट मन ही ते होबत; भाव सबल आत्मा संचारत ! बृह्म भाव आबत जब सुलझत; खुलत जात ग्रंथिन के घूँघट ! चक्र सुदर्शन-चक्र चलाबत; आहत होत द्वैत मति भागत ! नेह सनेह […] Read more » प्रभु प्रभाव प्रति जीव सुहाई !
दोहे साहित्य हलके से जब मुसका दिए ! May 7, 2016 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment हलके से जब मुसका दिए, उनको प्रफुल्लित कर दिए; उनकी अखिलता लख लिए, अपनी पुलक उनको दिए ! थे प्रकट में कुछ ना कहे, ना ही उन्हें कुछ थे दिए; पर हिया आल्ह्वादित किए, कुछ उन्हें वे थिरकित किए ! जो रहा अन्दर जगाए, उर तन्तु को खिलखिलाए; सब नाड़ियाँ झँकृत किए, हर चक्र को […] Read more »
दोहे विविधा दम्भ -पाखंड की जद में क्यों आ गए हम ? July 25, 2015 by श्रीराम तिवारी | 2 Comments on दम्भ -पाखंड की जद में क्यों आ गए हम ? निकले थे घर से जिसकी बारात लेकर , उसी के जनाजे में क्यों आ गए हम ? चढ़े थे शिखर पर जो विश्वास् लेकर , निराशा की खाई में क्यों आ गिरे हम ? गाज जो गिराते हैं नाजुक दरख्तों पै , उन्ही की पनाहों में क्यों आ गए हम ? फर्क ही नहीं जहाँ नीति -अनीति का , उस संगदिल महफ़िल में क्यों आ गए हम ? खींचते है चीर गंगा जमुनी […] Read more »
दोहे विविधा स्मित नयन विस्मृत बदन ! July 14, 2015 / July 14, 2015 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment स्मित नयन विस्मृत बदन, हैं तरंगित जसुमति-सुवन; हिय स्फुरण हलकी चुभन, हैं गोपियां गति में गहन । हुलसित हृदय मन स्मरत, राधा रहति प्रिय विस्मरित; आकुल अमित झंकृत सतत, वन वेणुका खोजत रहत । सुर पाति संवित गति लभति, हर पुष्प केशव कूँ लखति; हर लता तन्तुन बात करि, पूछत कुशल हर पल रहति । […] Read more » स्मित नयन विस्मृत बदन !
दोहे तब हर पल होली कहलाता है। March 6, 2015 by अरुण तिवारी | Leave a Comment जब घुप्प अमावस के द्वारे कुछ किरणें दस्तक देती हैं, सब संग मिल लोहा लेती हैं, कुछ शब्द, सूरज बन जाते हैं, तब नई सुबह हो जाती है, नन्ही कलियां मुसकाती हैं, हर पल नूतन हो जाता है, हर पल उत्कर्ष मनाता है, तब मेरे मन की कुंज गलिन में इक भौंरा रसिया गाता है, […] Read more » होली
दोहे फागुन रंग बहार March 5, 2015 / March 6, 2015 by हिमकर श्याम | 1 Comment on फागुन रंग बहार हँस कर कोयल ने कहा, आया रे मधुमास। दिशा-दिशा में चढ़ गया, फागुन का उल्लास।। झूमे सरसों खेत में, बौराये हैं आम। दहके फूल पलास के, हुई सिंदूरी शाम।। दिन फागुन के आ गए, सूना गोकुल धाम। मन राधा का पूछता, कब आयेंगे श्याम।। टूटी कड़ियाँ फिर जुड़ीं, जुड़े दिलों के तार। […] Read more » फागुन रंग बहार