आलोचना पहले अन्ना.. फिर केजरीवाल और अब किरण…!! January 27, 2015 / January 28, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment कहते हैं झूठी उम्मीदें जितनी जल्दी टूट जाए, अच्छी। लेकिन बात वही कि उम्मीद पर ही दुनिया भी टिकती है। पता नहीं यह हमारी आदत है या मजबूरी कि हम बार – बार निराश होते हैं, लेकिन नायकों की हमारी तलाश अनवरत लगातार जारी रहती है। चाहे क्षेत्र राजनीति का हो या किसी दूसरे क्षेत्रों […] Read more »
आलोचना इस समाजवाद को क्या नाम दूँ ? January 17, 2015 / January 17, 2015 by नीतेश राय | Leave a Comment समय के साथ – साथ भारत का विकास काफी तेजी के साथ हुआ है लेकिन उससे भी ज्यादा तेजी से राजनीतिक दलों के विचारधारा का विकास हुआ है । हो भी क्यों न भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिये जरुरी है कि भारत विकास का हर क्षेत्र में हो , चाहे वह वैचारिक […] Read more » समाजवाद
आलोचना आम आदमी की आप ? December 30, 2014 by रवि श्रीवास्तव | 11 Comments on आम आदमी की आप ? चुनाव, चुनाव, चुनाव । ऐसा लगता है, देश में चुनाव के अलावा कुछ बचा ही नही। कभी इस राज्य में तो कभी उस राज्य में। अभी हाल में दो राज्यों के विधानसभा चुनाव समाप्त हुए हैं। अब नए साल में एक नई शुरूआत दिल्ली के विधानसभा चुनाव से होगी। हालांकि दिल्ली गत वर्ष चुनाव […] Read more » आम आदमी केजरीवाल की डिनर पार्टी
आलोचना अब तो केवल विश्व नेता बनने की तमन्ना ही मोदी जी के दिल में है October 1, 2014 by श्रीराम तिवारी | 3 Comments on अब तो केवल विश्व नेता बनने की तमन्ना ही मोदी जी के दिल में है न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र महा सभा को सम्बोधित करते हुए भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी से जो हिमालयी चुकें हुई हैं -उनकी भरपाई उन्होंने ‘मेडिसन इस्कवॉयर ‘ के अपने अगले – सम्बोधन में दुरुस्त करने की पुरजोर कोशिश की है।लेकिन मेडिसन स्क्वॉयर के सम्बोधन में उनसे जो गंभीर भूल-चूक हुई है उसे वे कहाँ -कब […] Read more » विश्व नेता बनने की तमन्ना
आलोचना शोक संवेदना या बधाई संदेश December 30, 2013 / December 30, 2013 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment “अम्माजी के बारे में सुनकर बहुत दु:ख हुआ|शहर के बाहर था इसलिये आ नहीं पाया|”मैं श्याम भाई के निवास पर उनकी माताजी की मृत्यु पर शोक संवेदना प्रकट करने पहुंचा था| “किंतु उन्हें बहुत कष्ट था,आठ माह से पलंग पर पड़ी थीं”उन्होंने जबाब दिया| […] Read more » शोक संवेदना या बधाई संदेश
आलोचना कबीर-तुलसी के काव्यों में स्त्री-विरोध August 17, 2013 by सारदा बनर्जी | 3 Comments on कबीर-तुलसी के काव्यों में स्त्री-विरोध सारदा बैनर्जी भक्तिकालीन साहित्य में पाखंड-विरोध के समानांतर स्त्री-विरोध का स्वर भी स्पष्टतः मुखर हुआ है। खासकर कबीर जैसे प्रगतिशील और भक्त कवि ने अपने दोहों में स्त्री को दो रुपों में विभाजित कर उसका चरित्रांकन किया है। ये दो रुप हैं, ‘पातिव्रत्य’ रुप और ‘कामिनी’ रुप। कबीर ने नारी के कामिनी रुप की भरसक […] Read more »
आलोचना धूमिल की कविताओं में व्यक्त स्त्री-विरोधी दृष्टिकोण — सारदा बनर्जी June 27, 2013 by सारदा बनर्जी | 6 Comments on धूमिल की कविताओं में व्यक्त स्त्री-विरोधी दृष्टिकोण — सारदा बनर्जी धूमिल की कविताएं जनतंत्र को संबोधित करने वाली कविताएं हैं। ये कविताएं सीधे-सीधे देश के लोकतंत्र, संविधान, संसद और नेता की तीखी आलोचना में लिखी गई और उन्हें चुनौती देती कविताएं हैं। धूमिल देश की पूँजीवादी लोकतांत्रिक व्यवस्था से संतुष्ट नहीं थे, फलतः उन्होंने अपनी कविताओं में इस असंतुष्टि को बड़े आक्रोश के साथ व्यक्त […] Read more » धूमिल
आलोचना अस्मिता,आम्बेडकर और रामविलास शर्मा May 4, 2013 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | Leave a Comment जगदीश्वर चतुर्वेदी रामविलास शर्मा के लेखन में अस्मिता विमर्श को मार्क्सवादी नजरिए से देखा गया है। वे वर्गीय नजरिए से जातिप्रथा पर विचार करते हैं। आमतौर पर अस्मिता साहित्य पर जब भी बात होती है तो उस पर हमें बार-बार बाबासाहेब के विचारों का स्मरण आता है। दलित लेखक अपने तरीके से दलित अस्मिता की […] Read more »
आलोचना विरोध और स्त्री May 4, 2013 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment आदित्य कुमार गिरि आमतौर पर यह धारणा है कि स्त्री विमर्श के अन्तर्गत स्त्री लेखिकाएँ पुरुषों के प्रति घृणा का भाव रखती हैं।उन्हें मानो पुरुष चाहिए ही नहीं।वे पुरुषवादी दृष्टिकोण से नफरत करने के क्रम में पुरुष से ही नफरत करने लगी हैं।पुरुष का हर रवैया उसे नापसंद है कुलमिलाकर वह स्त्रीवादी समाज में पुरुष […] Read more »
आलोचना महत्वपूर्ण लेख हिन्दी के मार्क्सवादी आलोचक औैर बुद्धिजीवी January 13, 2013 / January 13, 2013 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 2 Comments on हिन्दी के मार्क्सवादी आलोचक औैर बुद्धिजीवी पाण्डेय शशिभूषण ‘शीतांशु’ हिन्दी में मार्क्सवादी आलोचकों ने पिछले पचास वर्षों में साहित्य की भावनक्षमता और पाठकीय संवेदनशीलता को कुंठित-अवरोधित ही किया है। इन सब ने साहित्य को वाद-विवाद और संवाद के नाम पर बहस का विषय तो बना दिया है, पर साहित्य में डूबकर, गहरे पैठकर प्राप्त की जाने वाली पाठकीय सर्जनात्मकता और उसके […] Read more » आलोचक बुद्धिजीवी मार्क्सवादी आलोचना
आलोचना दान : उपकार या पाखण्ड December 1, 2012 / December 1, 2012 by निर्मल रानी | Leave a Comment निर्मल रानी विश्वस्तर पर गरीबों, असहायों तथा शारीरिक व मानसिक रूप से असहाय लोगों की सेवा करने हेतु तरह-तरह के निजी व स्वयंसेवी संगठन कार्य कर रहे हैं। दुनिया में बड़े से बड़े दानी सज्जनों का भी एक ऐसा वर्ग है जो इस प्रकार के बेसहारा व कमज़ोर वर्ग के लोगों के कल्याण के लिए […] Read more » charity
आलोचना मैत्रेयी पुष्पा के बहाने स्त्री आत्मकथा के पद्धतिशास्त्र की तलाश November 29, 2012 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | Leave a Comment जगदीश्वर चतुर्वेदी आत्मकथा में सब कुछ सत्य नहीं होता बल्कि इसमें कल्पना की भी भूमिका होती है। आत्मकथा या साहित्य में लेखक का ‘मैं’ बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। यह ‘बहुआयामी होता है। उसी तरह लेखिका की आत्मकथा में ‘मैं’ का एक ही रूप नहीं होता। बल्कि बहुआयामी ‘मैं’ होता है। मैत्रेयी पुष्पा के […] Read more » गुडि़या भीतर गुडि़या मैत्रेयी पुष्पा