कविता मैं भी तो आगे बढ़ नहीं पायी September 17, 2017 / September 18, 2017 by अनुप्रिया अंशुमान | 5 Comments on मैं भी तो आगे बढ़ नहीं पायी जब गुजरती हूँ उन राहों से, मेरी तेज धड़कने आज भी तेरे होने का एहसास करा जाती है । जब गुज़रती हूँ उन गलियों से, मेरे खामोश कदमों से भी आहट तुम्हारी आती है । देखो… देखो …. उन सीढ़ियों पर बैठकर, तुम आज भी मेरा हाथ थाम लेते हो; देखो …. […] Read more » आगे बढ़ नहीं पायी
कविता साहित्य जिन आँखों के तारे थे हम उन आँखों में पानी है ! September 8, 2017 by राकेश कुमार सिंह | Leave a Comment जिन आँखों के तारे थे हम उन आँखों में पानी है ! सुलगते हुये रिस्तो की सच्ची यही कहानी है ! जरा सी चोट लगी जब हमको माँ कितना रोई थी ! सूखे में हमें सुलाया खुद गीले में सोई थी ! ऐसी माँ की क़द्र ना करना क्या बात नहीं बेईमानी है ! सुबह […] Read more » आँखों के तारे
कविता सुरमई शाम ढल रही है September 7, 2017 by राकेश कुमार सिंह | Leave a Comment राकेश कुमार सिंह सुरमई शाम ढल रही है, बेताबियाँ सीने पर, नस्तर चला रही है, आज फिर से उनका, ख्याल आ रहा है ! भोली सूरत, कजरारी आँखे, जुल्फें ऐसी, बादल भी सरमाये, उनकी यादो का, उन मुलाकातों का, प्यारा सरमाया, बेजार कर रहा है ! पहचान वो बर्षो पुराना, रवां हो रहा है, ख्यालो […] Read more » शाम
कविता अक्सर … September 7, 2017 by विजय कुमार सप्पाती | Leave a Comment बारिशो के मौसम में ; यूँ ही पानी की तेज बरसाती बौछारों में ; मैं अपना हाथ बढाता हूँ कि तुम थाम लो , पर सिर्फ तुम्हारी यादो की बूंदे ही ; मेरी हथेली पर तेरा नाम लिख जाती है .. ! और फिर गले में कुछ गीला सा अटक जाता है ; जो पिछली बारिश की याद दिलाता है , जो […] Read more » अक्सर
कविता ये नौकर September 6, 2017 / September 6, 2017 by बीनू भटनागर | Leave a Comment घर का कोई पुराना नौकर, ईमानदार वफ़ादार सा नौकर, हर व्यक्ति की सेवा करता मुश्किल से मिलता था ये नौकर लैण्ड लाइन सा ना कोई नौकर अब बूढा होकर ये नौकर पड़ा है इक कौने में नौकर कितना सुन्दर था ये नौकर मालिक का सर गर्व से उठता जिसके घर होता ये नौकर। मेज़पर […] Read more » ये नौकर
कविता चल वहां चल …………… September 5, 2017 by विजय कुमार सप्पाती | Leave a Comment चल वहां चल , किसी एक लम्हे में वक़्त की उँगली को थाम कर !!!! जहाँ नीली नदी खामोश बहती हो जहाँ पर्वत सर झुकाए थमे हुए हो जहाँ चीड़ के ऊंचे पेड़ चुपचाप खड़े हो जहाँ शाम धुन्धलाती न हो जहाँ कुल जहान का मौन हो जहाँ खुदा मौजूद हो , उसका करम हो […] Read more » चल वहां चल ……………
कविता साहित्य खुशिओं के दिन फिर आयेगे August 22, 2017 by राकेश कुमार सिंह | Leave a Comment राकेश कुमार सिंह मुसाफिर चलता जा, कोशिस करता जा, गम के बादल छट जायेगे, खुशिओं के दिन फिर आयेंगे ! मंजिल जब मिल जायेगी ! मेहनत से इतिहास बदल दो, दुनिया का आगाज बदल दो, लहू से अपने सींच धरा को, फिर से अपनी परवाज बदल दो, खुशिओं के दिन फिर आयेगे ! मंजिल जब […] Read more » खुशिओं के दिन फिर आयेगे
कविता साहित्य शबनमी आेश के कण August 22, 2017 by राकेश कुमार सिंह | Leave a Comment राकेश कुमार सिंह शबनमी ओश के कण मोती सदृस्य बिखरे हुये, कोमलता पारदर्शी, मुखड़ा तुम्हारा याद आया ! शीतल मंद वायु का झोका, मौसम अठखेलियाँ करता हुआ, गुंजार भ्रमरों का सुना तो, हँसना तुम्हारा याद आया ! चटखती हुई कलियाँ; महक पुष्पित फिजा की, निर्गमित आह्लाद बनकर, पायल छनकाना तुम्हारा, बरबस हमें याद आया ! […] Read more » शबनमी आेश के कण
कविता साहित्य नैनों की भाषा पढ़ना August 19, 2017 / August 19, 2017 by राकेश कुमार सिंह | Leave a Comment क्या इतना सहज सरल है! शून्य भाव का संवर्धन , अंकित मनः पटल पर , निःस्वार्थ भाव से अटल खड़ा, चलायमान अबिराम अतुल, सर्वथा सर्व भौम भावना , प्रेरणा है नहीं गरल है ! नैनों की भाषा पढ़ना, क्या इतना सहज सरल है ! अक्षहर् आदि अनादि अनामय , गंध हींन रस हींन निरामय , […] Read more » नैनों की भाषा पढ़ना
कविता साहित्य तुम याद आते हो August 18, 2017 by अनुप्रिया अंशुमान | Leave a Comment मेरे गाँव,मेरे देश,तुम बहुत याद आते हो जब ढूँढना पड़ता है, एक छांव वो नल, जो बिन पैसे की ही प्यास बुझाती है तब मेरे गाँव, तुम बहुत याद आते हो निगाहें टिक गयी ,उन आते जाते लोगों देखकर पर हृदय में कोई रुदन करता है कि क्यूँ … मैं भी आज इसका किस्सा हूँ […] Read more » तुम याद आते हो
कविता साहित्य जीवन की ताल August 13, 2017 / August 14, 2017 by बीनू भटनागर | Leave a Comment जीवन की हर ताल पे कोई , गीत नया होगा हँसते – गाते जी लेंगे जो , होगा सो होगा नए राग में एक नयी धुन , हमने बनायी है उस धुन में जो शब्द भरे वो , सच्चा कवि होगा भक्ति – भाव श्रृंगार हो चाहे , चाहे हो नवगीत साज़ नया , अंदाज़ नया हो , गीत,ग़ज़ल होगा अलग रागिनी,अलग ताल हो,सुर लय की बंदिश गूँजेंगे जब गीत सुरीले , रंग अलग होगा वीणा बंसी और मृदंग की,संगत जब होगी गीत सुरीला कानों मे,अमृत सा घु ला होगा कवि के शब्द सुरों में बंधकर,ता लबद्ध होंगे, भाव बहेंगें शब्द मिलेंगे,जादुइ असर होगा Read more » जीवन की ताल
कविता अजीब सा सपना August 3, 2017 by बीनू भटनागर | Leave a Comment कल रात देखा मैने इक अजीब सा सपना, समझ में आये किसी को तो उसका अर्थ समझाना। दिशाहीन से सब दौड़ रहे थे, किसी को पता ही नहीं था अपना ही ठिकाना। कुछ बच्चे बिलख रहे थे भूखे और प्यासे! कुछ बच्चे भाग रहे थे निन्यानवें के पीछे! कुछ बच्चे करतब दिखा रहे थे नाच […] Read more » सपना