कविता रफ का वो कापी July 29, 2017 by राकेश कुमार पटेल | Leave a Comment रफ का वो कापी थोडी फटी सी, थोडी पुरानी । किसी की यादें किसी की बातें थी उसमें कई कहानी रफ का वो कापी थोडी फटी सी ,थोडी पुरानी । किसी पन्ने पर चुटकुले लिखाते तो किसी पर कविता ,कहानी कहीं पर प्रेम को छुपाते तो कहीं गनित बनाते कई पन्नों को फूलों से सजाते […] Read more » रफ रफ का वो कापी कापी
कविता साहित्य बेटी July 25, 2017 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment धन्य है वह आँगन, जहाँ बेटी की किलकारी है, और हर बेटी को बचाना, हम सबकी जिम्मेदारी है। भारत की हर बेटी पढ़े, ये पावन कर्तव्य हमारा है, क्योकि बेटियों ने तिरंगे, का गौरव सम्मान बढ़ाया है। बेटी वो है जो, दो परिवारों की आन, बान और शान है, और बेटी होना आज, अभिशाप नहीं, […] Read more » बेटी
कविता साहित्य जीवन नहीं आसान July 25, 2017 by बीनू भटनागर | Leave a Comment रात की चादर तो हमेशा से ही अंधेरी ही होती है, रौशनी के लिये दीपक जलाने पड़ते है दोस्तो। जिन्दगी भी कहाँ आसान होती है किसी की भी…… पहाड़ों को काटकर रस्ते बनाने पड़ते हैं। आसानी से जो मिल जाय उसकी कद्र ही नहीं…… मेंहनत से कमाई हर चीज़ अनमोल होती है। सोने को भी […] Read more » जीवन नहीं आसान
कविता साहित्य धरा पर आये है July 17, 2017 by बीनू भटनागर | Leave a Comment धरा पर आये हैं तो कुछ धरा को देते जायें धरा ने जितना दिया है कुछ तो उसका मान रखें नदियों मे नही अपनी अस्थियों को बहायें क्यों न किसी पेड़ की खाद बने,लहलहायें। फलफूल से पूजाकरें मिट्टी की मूर्ति बनायें खँडित होने पर भी उसे नदियों में ना बहायें मिट्टी की मूर्ति को मिट्टी ही में मिलायें। धर्म में क्या लिखा है ये तो मै नहीं जानती अपनी इबारत ख़ुद लिखें जो सही लगे वो अपनाये। हम नहीं बदलेंगे सदियों पुरानी इबारते लकीर की फ़कीर पीटेंगे और पिटवायेंगे…… धर्म के नाम पर सिर काटेंगे कटवायेंगे ऐसे किसी भी धर्म को मै नहीं मानती! समय के साथ नदी बदलती लेती है रास्ते, नये टापू उगते हैं तो कई डूब जाते हैं आज जहाँ हिमालय है वहाँ कभी समुद्र था जब वो बदल गये तो हम क्यों ना बदल जायें। Read more » धरा
कविता साहित्य ये फूल अनोखे से….. July 15, 2017 by बीनू भटनागर | Leave a Comment गुलमोहर के पेड़ अनोखे सुन्दर लाल सुनहरी फूलों से आग लगायें। घने पेड़ लगे हों जहाँ उस आग से, मन शीतल होजायें। पीले अमलतास के फूल वृक्षों पर लहराये शोभा हर वन उपवन की मनभाये इतरायें पलाश के जंगल ही जंगल लाल सुनहरे पीले से भी फूल बड़े कुछ छोटे से भी झुंडो मे मुस्कायें […] Read more » फूल
कविता साहित्य वो पीपल July 14, 2017 by राकेश कुमार पटेल | Leave a Comment उनके वो हरे पत्ते जिसके छाॅंव पर हम बनते थे। मिटटी के गत्ते चैरहे पर अकेला ही तो था किसी अनाथ की तरह परोपकार में चढा मानव के हत्थे । दोपहरी में होते हम उसके परिवार दादा देते , हम सबको दुलार चुन्नू, मन्नू, रानू सखियों की होती पुकार और इनमें उनकी वो शीतल छाया […] Read more » पीपल
कविता साहित्य आज का अखबार पढ़ लो July 14, 2017 by बीनू भटनागर | Leave a Comment आजका ख़बार पढ़ लो खून से लथपथ पड़ा है, शाम को समाचार सुन लो बयानबाज़ी से पटा है ज़रा ज़रा सी बात पर किसीने किसी को डसा है, हर वारदात के पीछे कोई नकोई दल घुसा है। छुरा घोंपा गोलीमारी, रोज़ का किस्सा हुआ है गाय भैसों की रक्षा मे आदमी की जान लेलो ये […] Read more » आज का अखबार पढ़ लो
कविता साहित्य मेरी बेटी July 11, 2017 by राकेश कुमार पटेल | Leave a Comment खुशबू है मेरी आंगन की जो सारे घर को महकाती है। लोरी है मेरी दामन की जो खुद को और मुझे सुलाती है। कोयल है एक डाली की जो सारे बाग को चहकाती है कली है एक फुल की जो बेरंग दुनिया में रंग भर जाती है। एक बुंद है सागर की जो मेरी प्यास […] Read more » मेरी बेटी
कविता साहित्य कैक्टस July 9, 2017 by बीनू भटनागर | Leave a Comment असीमित कैक्टस कैक्टस ही कैक्टस, गोलाकार कैक्टस ऊँचा लम्बा कैक्टस फूलवाला कैक्टस, कम पानी में जीता कैक्टस रेगिस्तान की शान कैक्टस रेत की हरियाली कैक्टस मूलभूमि उतरी अमरीका का कैक्टस विश्व व्यापी कैक्टस, मूलभूमि दक्षिणी अमरीका का कैक्टस पूर्व तक पंहुचा कैसे न कैसे कैक्टस आदर न सत्कार पानेवाला कैक्टस घर के अन्दर न लाया […] Read more » कैक्टस
कविता साहित्य एक गाँव है मेरा | July 6, 2017 / July 10, 2017 by राकेश कुमार पटेल | Leave a Comment एक गाँव है मेरा | ( किसी की यादें ) एक गाँव है मेरा जहाँ शाम है , और है सबेरा जहाँ ठंडी हवाओ में उड़ती होंगी तितलियाँ यादों की स्वर में गूंजता होगा घर आंगन मेरा एक गाँव है मेरा जहाँ शाम है और है सबेरा गाँव में लगें मेले होंगे मिठाईयां और होंगे […] Read more » एक गाँव है मेरा
कविता साहित्य है नाट्यशाला विश्व यह ! June 18, 2017 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment है नाट्यशाला विश्व यह, अभिनय अनेकों चल रहे; हैं जीव कितने पल रहे, औ मंच कितने सज रहे ! रंग रूप मन कितने विलग, नाटक जुटे खट-पट किए; पट बदलते नट नाचते, रुख़ नियन्ता लख बदलते ! उर भाँपते सुर काँपते, संसार सागर सरकते; निशि दिवस कर्मों में रसे, रचना के रस में हैं लसे […] Read more » नाटक नियन्ता के अनंत ! हैं कीट कितने विचरते ! है नाट्यशाला विश्व यह !
कविता साहित्य मैं आज तेरा नाम लिख लूँ June 16, 2017 by बीनू भटनागर | Leave a Comment प्रेम के इक गीत पर मैं आज तेरा नाम लिख लूँ पंछियों की चहक मीठी शहद जैसे मन में घोले कोकिला की मृदु कुहुक पर आज तेरा नाम लिख लूँ रंग हर ऋतु का अलग है ढंग भी उसका नया है धूप के हर क़तरे पर मैं आज तेरा नाम लिख लूं […] Read more » मैं आज तेरा नाम लिख लूँ