कविता साहित्य प्रेरणा January 28, 2017 / January 28, 2017 by अजय कुमार | Leave a Comment बस्ती – बस्ती गली – गली फैली एक निराशा | कल कल करती बहती नदियां फिर भी मैं हूं प्यासा || जीवन के दुख द्वन्द लिए पागल पथिक सा चलता जाऊं | एक क्षण में रोता हूं दूजे क्षण मैं गाता जाऊं || समझ चुका था जीवन का हर नियम और वो कायदा | तपकर […] Read more »
कविता साहित्य गीत सुनाने निकली हूँ January 26, 2017 by शालिनी तिवारी | Leave a Comment भारत माँ की बेटी हूँ और गीत सुनाने निकली हूँ, वीरों की गाथा को जन जन तक पहुँचाने निकली हूँ, भारत माँ के शान के खातिर सरहद पर तुम ड़टे रहे, सर्दी गर्मी बरसातों में भी तुम अड़िग वीर बन खड़े रहे, कोई माँ कहती है कि मेरा लाल गया है सीमा पर, दुश्मन को […] Read more » गीत सुनाने निकली हूँ
कविता साहित्य संस्कार सुर में फुरक कर ! January 24, 2017 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment संस्कार सुर में फुरक कर, ‘सो-हं’ की गंगा लुढ़क कर; ‘हं’ तिरोहित ‘सो’ में हुआ, ‘सो’ समाहित ‘हं’ में हुआ ! वह विराजित विभु में हुआ, अपना पराया ना रहा; अपनत्व पा महतत्व का, था सगुण गुण ले मन रहा ! शाश्वत खिला पा द्युति दिशा, मन महल वत चमका किया; रहना था बस उसका […] Read more »
कविता साहित्य जो रक्तकणों से लिखी गई,जिसकी “जयहिन्द” निशानी है । January 23, 2017 by शकुन्तला बहादुर | 2 Comments on जो रक्तकणों से लिखी गई,जिसकी “जयहिन्द” निशानी है । सुभाष चंद्र बोस*भारत के अमर स्वतन्त्रता सेनानी नेताजी शुभाषचन्द्र बोस के * * जन्मदिवस २३ जनवरी के पुनीत अवसर पर श्रद्धा सुमन -* है समय नदी की बाढ़ कि, जिसमें सब बह जाया करते हैं , है समय बड़ा तूफ़ान , प्रबल पर्वत झुक जाया करते हैं । अक्सर दुनिया के लोग समय में, चक्कर […] Read more » Featured poem on subhash chandra bose
कविता साहित्य खड़े जब अपने पैर हो जाते ! January 15, 2017 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment खड़े जब अपने पैर हो जाते, आत्म विश्वास से हैं भर जाते; सिहर हम मन ही मन में हैं जाते, अजब अनुभूति औ खुशी पाते ! डरते डरते ही हम ये कर पाते, झिझकते सोचते कभी होते; जमा जब अपने पैर हम लेते, झाँक औरों की आँख भी लेते ! हुई उपलब्धि हम समझ लेते, […] Read more » खड़े जब अपने पैर हो जाते !
कविता साथ जो छोड़ कर चले जाते ! January 15, 2017 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment (मधुगीति १७०११४ ब) साथ जो छोड़ कर चले जाते, लौटकर देखना हैं फिर चहते; रहे मजबूरियाँ कभी होते, वक़्त की राह वे कभी होते ! देखना होता जगत में सब कुछ, भोग संस्कार करने होते कुछ; समझ हर समय कोई कब पाता, बिना अनुभूति उर कहाँ दिखता ! रहते वर्षों कोई हैं अपने बन, विलग […] Read more »
कविता साहित्य बोन्साई January 12, 2017 by बीनू भटनागर | 1 Comment on बोन्साई मेरी ज़ड़ों को काट छाँट के, मुछे बौना बना दिया, अपनी ख़ुशी और सजावट के लिये मुझे, कमरे में रख दिया। मेरा भी हक था, किसी बाग़ मे रहूँ, ऊँचा उठू , और फल फूल से लदूँ। फल फूल तो अब भी लगेंगे, मगर मै घुटूगाँ यहीं तुम्हारी, सजावट के शौक के लिये, जिसको तुमने […] Read more » बोन्साई
कविता आज नया कुछ लिख ही दूँ January 9, 2017 by बीनू भटनागर | 3 Comments on आज नया कुछ लिख ही दूँ कुछ नया करने की चाह में, अपनी ही कविताओं के, अंग्रेज़ी में अनुवाद कर डाले, या उन्हे ही उलट पलट कर, दोहे कुछ बना डाले। जो कल नया था आज पुराना सा लगने लगा है अब….. तो सोचा….. आज कुछ नया ही लिख दूँ। रोज़ होते रहे बलात्कार, उनपर टीका टिप्पणी और विश्लेषण तो अब […] Read more » आज नया कुछ लिख ही दूँ
कविता साहित्य दिल्ली पुस्तक मेला January 9, 2017 by बीनू भटनागर | Leave a Comment प्रगति मैदान लग गया,पुस्तक का भण्डार अपना अपना शोर है, अपनी अपनी रार! बड़े-बड़े लोगों के ,अपने अपने स्टाल, वे ही सब ले जायेंगे,पुरुस्कार या शाल! बड़े बड़े अब रचयिता, आये दिल्ली द्वार, किसकी किताब ने किया,सर्वाधिक व्यापार? कवि व्यापारी से लगें,जब बेचते किताब, आज एक से लग रहे, आफ़ताब महताब! मेला किताब का लगा,होगा […] Read more » दिल्ली पुस्तक मेला
कविता माँ तुम्हें पुकारती, माँ तुम्हें पुकारती ।। January 4, 2017 by शकुन्तला बहादुर | 2 Comments on माँ तुम्हें पुकारती, माँ तुम्हें पुकारती ।। एक आह्वान एवं भावांजलि – वीर सेनानियों को । देश के सपूतों ! मातृभू के रक्षकों ! शूरवीर सैनिकों ! क्रान्तिवीर बन्धुओं ! साहसी सेनानियों ! माँ तुम्हें पुकारती , माँ तुम्हें पुकारती ।। * आज सब आतंकियों को, आक्रमणकारियों को, और देशद्रोहियों को , भेज दो यमलोक को । माँ तुम्हें पुकारती, माँ तुम्हें […] Read more » माँ तुम्हें पुकारती
कविता साहित्य याद तुम्हारी January 3, 2017 / January 3, 2017 by मधु शर्मा कटिहा | Leave a Comment मधु शर्मा कटिहा खुश बहुत थी याद तेरी अब मुझे आती नहीं, डूबकर इक अक्स में अब मैं खो जाती नहीं। उफ़! भूलते ही याद आ गया फिर से तू क्यों? कोई रिश्ता ही नहीं तो दर्द भी देते हो क्यों? चल रही हवा तो पत्ते चुप से हैं मायूस क्यों? रोशनी सूरज की […] Read more » याद तुम्हारी
कविता यादेँ व उम्मीद :-सौरभ चतुर्वेदी December 31, 2016 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment मयस्सर डोर से फिर एक मोती झड़ रहा है , तारीखों के जीने से दिसम्बर उतर रहा है | कुछ चेहरे घटे , चंद यादें जुड़ीं गए वक़्त में, उम्र का पंछी नित दूर और दूर उड़ रहा है |… गुनगुनी धूप और ठिठुरती रातें जाड़ो की, गुजरे लम्हों पर झीना-झीना पर्दा गिर रहा है। […] Read more » यादेँ व उम्मीद