कविता धर्म-अध्यात्म नूतन नवल उमंग March 24, 2015 by हिमकर श्याम | 4 Comments on नूतन नवल उमंग [नव संवत्सर, सरहुल और रामनवमी पर दोहे] नव संवत्, नव चेतना, नूतन नवल उमंग। साल पुराना ले गया, हर दुख अपने संग।। चैत शुक्ल की प्रतिपदा, वासन्तिक नवरात। संवत्सर आया नया, बदलेंगे हालात।। जीवन में उत्कर्ष हो, जन-जन में हो हर्ष। शुभ मंगल सबका करे, भारतीय नव वर्ष।। ढाक-साल सब खिल […] Read more » चैत शुक्ल की प्रतिपदा नव संवत्सर नूतन नवल उमंग रामनवमी वासन्तिक नवरात
कविता उनकी तमन्ना March 24, 2015 by रवि श्रीवास्तव | 1 Comment on उनकी तमन्ना उन्होने तमन्नाओं को पूरा कर लिया, मुझे नही है उनसे कोई भी शिकवा। किसी के वादों से बधां मजबूर हूं, उन्हें लगता है शायद कमजोर हूं। बड़ो का आदर, छोटों का सम्मान सिखाया है, मेरे परिवार ने मुझे, ये सब बताया है। हर क्रिया की प्रतिक्रिया, हम भी दे सकते हैं, जान हथेली पर हमेशा […] Read more » उनकी तमन्ना कमजोर मजबूर
कविता मां भारती का जलगान March 23, 2015 by अरुण तिवारी | Leave a Comment जयति जय जय जल की जय हो जल ही जीवन प्राण है। यह देश भारत…. सागर से उठा तो मेघ हिमनद से चला नदि प्रवाह। फिर बूंद झरी, हर पात भरी सब संजो रहे मोती-मोती।। है लगे हजारों हाथ, यह देश भारत….. कहीं नौळा है, कहीं कहीं जाबो कूळम आपतानी। कहीं बंधा पोखर पाइन है […] Read more » अरुण तिवारी जलगान मां भारती का जलगान
कविता मातृभूमि का कर्ज़ अभी बाकी है March 23, 2015 by नरेश भारतीय | Leave a Comment नरेश भारतीय वह क्रांति का शंखनाद था अन्याय के अंत का उनका आह्वान था शोषणमुक्त समाज के निर्माण का सन्देश था बिना किसी प्रतिदान या इनाम की उम्मीद के मातृभूमि की मुक्ति का यह महासंकल्प था हँसते हंसते मृत्यु को जो गले लगाने चल पड़े उन शहीदों को नमन, शत शत नमन, शत […] Read more » poem on Bhagat Singh poem on bhagat singh in martyrs day poem on martrys day भगत सिंह के बलिदान दिवस पर राजगुरु के बलिदान दिवस पर सुखदेव के बलिदान दिवस पर
कविता हिंद स्वराज मुक्ति संग्राम में मेरा, अपने इष्ट से मिलन हो गया March 21, 2015 / March 21, 2015 by श्रीराम तिवारी | Leave a Comment अमर शहीद-भगतसिंह -राजगुरु -सुखदेव की शहादत को चिरस्मरणीय बनाते हुए-काव्यात्मक श्रद्धाँजलि ! मुक्ति संग्राम में मेरा ,अपने इष्ट से मिलन हो गया।। पग शहीदों ने आगे धरा ,वो युग का चलन हो गया। गुलामी के फंद काटने , जब जवानियाँ मचलने लगीं, तब क्रांति यज्ञ वेदी पर , शहादत का हवन हो गया।,,,,,[मुक्ति संग्राम में […] Read more » अपने इष्ट से मिलन हो गया अमर शहीद भगतसिंह मुक्ति संग्राम में मेरा मुक्ति संग्राम में मेरा अपने इष्ट से मिलन हो गया राजगुरु श्रद्धाँजलि ! सुखदेव
कविता क्या नही कर सकता इंसान March 18, 2015 / March 18, 2015 by डॉ नन्द लाल भारती | Leave a Comment क्या नही कर सकता इंसान …… सच क्या नही कर सकता इंसान जिद पक्की करने की ठान ले इंसान जनहित लोकहित संग हो ईमान चाँद तक पहुँच गया इंसान सच क्या नही कर सकता इंसान ….. चट्टानों में हरित क्रांति पाषाणों को पिघला सकता इंसान असाध्य को साध्य बनता मंगल ग्रह पर टाक जहा इंसान […] Read more » determination will power इंसान क्या नही कर सकता इंसान
कविता हम जीत कर भी हार गये! March 13, 2015 by बीनू भटनागर | 1 Comment on हम जीत कर भी हार गये! जब कुछ अनचाहा सा, अप्रत्याशित सा घट जाता है, जिसकी कल्पना भी न की हो, साथ चलते चलते लोग, टकरा जाते हैं। जो दिखता है, या दिखाया जाता है, वो हमेशा सच नहीं होता। सच पर्दे मे छुपाया जाता है। थोड़ा सा वो ग़लत थे, थोड़ा सा हम ग़लत होंगे, ये भाव कहीं खोजाता है। […] Read more » हम जीत कर भी हार गये!
कविता हा! ये क्यूं हुआ ? March 7, 2015 by अरुण तिवारी | 1 Comment on हा! ये क्यूं हुआ ? निर्भया कांड के अपराधी, संसद की बहस और आम आदमी पार्टी को दिल्ली मंत्रिमंडल के लिए एक भी योग्य महिला न मिल पाने के रवैये में नारी के प्रति हम पुरुषों की मानसिकता के कई रूप झलकते हैं। इन्हे झेलते हुए भी अपनी मर्यादा और संस्कारों को सहेजने की कोशिश में जुटी भारतीय नारी के […] Read more » हा! ये क्यूं हुआ ?
कविता प्रेम का ऐसा हठयोग …? February 19, 2015 by अलकनंदा सिंह | Leave a Comment आलता भरे पांव से वो ठेलती है, उन प्रभामयी रश्मियों को, कि सूरज आने से पहले लेता हो आज्ञा उससे प्रेम का ऐसा हठयोग देखा है तुमने कभी कैसे पहचानोगे कि कौन बेताल है, और कौन विक्रमादित्य, जिसके कांधे पर झूलता है मेरा और तुम्हारा मन ठंडी हुई आंच में भी सुलगने लगता है कोई […] Read more » प्रेम का ऐसा हठयोग ...?
कविता इक नया उत्कर्ष लाने जा रहा हूं February 18, 2015 by अरुण तिवारी | Leave a Comment आज रेगिस्तान में भी सावणी बरसात आई, मेघ डोल्या, सगुन बोल्या, मानसां का यह समंदर बढ चला आगे ही आगे राह छोङो, पंथ रोको मत, इक नया उत्कर्ष लाने जा रहा हूं । मृत पङे थे हाथ जो उन्हे लहराने जा रहा हूं। गैर की बंधक पङी तकदीर खुद छुङाने जा रहा हूं । गैर […] Read more » इक नया उत्कर्ष लाने जा रहा हूं
कविता बदनसीब पुत्र की डायरी February 13, 2015 / February 13, 2015 by डॉ नन्द लाल भारती | Leave a Comment पिता की तुला पर बदनसीब खरा नहीं उत्तर पाया विफलता कहे या सफलता पुत्र नहीं समझ पाया। पिता की चाह थी श्रवण बनकर जमाने को दिखा दे , पुत्र भी चाहता था कि पिता की हर इच्छा पूरी कर दे। पर पुत्र ने होश संभालते विरोध की शपथ ले लिया था पिता की ऐसी इच्छा […] Read more » बदनसीब पुत्र की डायरी
कविता बड़े दिनों पर February 10, 2015 / February 10, 2015 by बलवन्त | 1 Comment on बड़े दिनों पर उम्मीदों के फूल खिले, मन की कलियाँ मुस्काईं। बड़े दिनों पर लोकतंत्र ने ली ऐसी अंगड़ाई। बड़े दिनों पर जन-जीवन में लौटी नयी रवानी, बड़े दिनों पर जनमत की ताकत सबने पहचानी, बड़े दिनों पर उद्वेलित जनता सड़कों पर आयी। बड़े दिनों पर लोकतंत्र ने ली ऐसी अंगड़ाई। बड़े दिनों पर […] Read more » बड़े दिनों पर