कविता स्वामी विवेकानन्द जी को श्रद्धांजलि January 13, 2021 / January 13, 2021 by शकुन्तला बहादुर | Leave a Comment Read more » स्वामी विवेकानन्द
कविता दादी का संदूक ! January 13, 2021 / January 13, 2021 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment स्याही-कलम-दवात से, सजने थे जो हाथ !कूड़ा-करकट बीनते, नाप रहें फुटपाथ !!बैठे-बैठे जब कभी, आता बचपन याद !मन चंचल करने लगे, परियों से संवाद !! मुझको भाते आज भी, बचपन के वो गीत !लोरी गाती मात की, अजब-निराली प्रीत !! मूक हुई किलकारियां, चुप बच्चों की रेल !गूगल में अब खो गए,बचपन के सब खेल […] Read more » दादी का संदूक
कविता राम चरित्र में सभी धर्मों का सार January 12, 2021 / January 12, 2021 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —विनय कुमार विनायकराम नहीं तो हम नहींराम ईश्वर से कम नहीं!राम नाम के जपने सेहोती जीवन नैया पार,राम हैं ईश्वर के अवतार! राम हैं तो गम नहींराम ईश्वरीय रुप सहीईश्वर में जितना गुण हैसब राम ने किया साकार,राम नाम से चल रहा संसार! राम तबसे जबसे महीराम का रामत्व वहीजैसे होते हैं भगवानराम को मानवता […] Read more » राम चरित्र
कविता इस धुली चदरिया को धूल में ना मिलाना January 12, 2021 / January 12, 2021 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —विनय कुमार विनायकचेहरे पे अहं, मन में बहम,कहां गया तेरा वो भोलापन,कुछ तो चीन्हे-चीन्हे से लगते हो,कुछ लगते हो तुम बेगानेपन जैसे! चेहरे की वो तेरी चहक,कहां गयी वो तेरी बहक,बचपन में बड़े अच्छे दीखते थे तुम तो,बुढ़ापे में क्यों हो गए तुम बचकाने से! कहां गया वो आत्मबल,क्यों होने लगे मरियल,यौवन का तेरा वो […] Read more » इस धुली चदरिया को धूल में ना मिलाना
कविता ज्ञान तो आ गया, पर विवेक अधर में January 12, 2021 / January 12, 2021 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —विनय कुमार विनायकज्ञान तो आ गया, पर विवेक अधर में,ऐसे पातक का उद्धार कहां है जग में! रावण था ज्ञानी पर विवेक नहीं मन में,ऐसे महाज्ञानी की हार तय था रण में! ज्ञान मनन से जन्म लेता अंत:करण में,मनन से सद्विवेक जगता मुनिगण में! बिना मनन का ज्ञान पलता है बहम में,चिंतन-मनन-श्रवण करें मानव जन्म […] Read more » ज्ञान तो आ गया
कविता ज्ञान गुनने से बहु गुणित हो जाता है January 7, 2021 / January 7, 2021 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —विनय कुमार विनायकज्ञान गुनने से,जीव गुणसूत्र ही बहुगुणित हो जाता हैस्व अंतर्मन में!करो सद्गुणों का विकास अंतःकरण मेंकि ज्ञान जीव के अंदर है! ज्ञान धुनने से,रुई की तरह ही आच्छादित हो जाता हैअपने रुह में!करो ज्ञान का विस्तारण स्व आत्मन मेंकि आत्मा ज्ञान का मंदिर है! ज्ञान रुंधने से,मिट्टी की तरह मूर्तिमान होने लगता हैअंतर […] Read more » ज्ञान गुनने से बहु गुणित हो जाता है
कविता विचारों का अंत नहीं,अवतार प्रतिस्थापित होते अवतार से January 6, 2021 / January 6, 2021 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment आज भाईयों को मरने मारने की,जो बात करे उसे भाईचारा कहते! क्या भाई कभी भी ऐसे हो सकते,जो भाई को मौत के मुंह ढकेलते? जो सबके अमन में खलल डालते,उनको अमन पसंद बिरादर कहते! क्या कभी ऐसे जाति-बिरादर होते,जो मासूम बच्चों में जहर घोलते? आज विश्व के मानवीय मजहबों में,मानवता नहीं मजहबी उन्माद होते! काश […] Read more » अवतार प्रतिस्थापित होते अवतार से
कविता नारी तुम वामांगी January 5, 2021 / January 5, 2021 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —–विनय कुमार विनायकनारी तुम वामांगी!कदम-कदम की सहचरी नर कीन पीछे,न आगे,बायीं ओर चलोसुदिन-दुर्दिन में भी बनी रहो तुम तारामती! हमें बनने दो चाण्डाल सेवक हरिश्चंद्रईमानदारी पूर्वक मृत्यु कर वसूलने दोअपने आत्मज और आत्मीय जन से भी! बचा लेने दो बदनाम होती हमारी जाति कोभाई-भतीजावाद/घूस-तरफदारी के आरोप सेइस कफनचोर श्मशान में,पास हो लेने दो मुझे सत्य […] Read more » नारी तुम वामांगी
कविता आदमी नहीं वक्त सिकंदर होता है January 4, 2021 / January 4, 2021 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —विनय कुमार विनायककुर्सी मिली है तो अच्छा काम करना,कुर्सी मिली है तो मनुष्य बनके रहना,कुर्सी का कर्म नहीं है अहं पालने का,ठीक नहीं कुर्सी की अकड़ दिखलाना! ये जो जनता तेरे सामने में खड़ी है,उससे तेरे कुर्सी की साईज नहीं बड़ी,कुर्सी का धर्म नहीं धौंस जमाने का,खेलो नहीं खेल हाथी चढ़के इतराना! कुर्सी विरासत नहीं,मिली […] Read more » Time is Alexander not man वक्त सिकंदर होता है
कविता हिन्दू ऐसे होते जो शत्रु को पूर्वजन्म के स्वजन समझते January 3, 2021 / January 3, 2021 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —विनय कुमार विनायकहिन्दू ऐसे होतेजो सबको शुभकामना देते! हिन्दू मन का ताना-बाना,हिन्दू का संपूर्ण आशियाना,हिन्दुत्व से ही बना! हिन्दू वेद पढ़ें ना पढ़ें,हिन्दू वेदांत में जीते!हिन्दू वेदांत में सोचते!हिन्दू वेदांत में सांस लेते!हिन्दू वेदांत में ही मरते!हिन्दू मरके भी नहीं मरते! हिन्दू ऐसे होते जोसबको अमर आत्मा समझते! हिन्दू ऐसे होतेजो हिंसा को दूषित कहते! […] Read more » poem on hindu हिन्दू
कविता क्या कहें सन दो हजार बीस का हाल January 2, 2021 / January 2, 2021 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —विनय कुमार विनायकक्या कहें सन दो हजार बीस का हाल,कम हंसाया,खूब रुलाया, जीना मुहाल! नव वर्ष कर रहा हमसे पुराना सवाल,मानवीय मूल्यों को अब रखो संभाल! वन पर्यावरण, जन जीवन का रखना,अच्छा ख्याल वर्णा रोते बीतेगा साल! अब दुबारा चलना मत चीन सी चाल,नहीं तो दुनिया होगी फिर से कंगाल! बच्चों की पढ़ाई गई, मजदूर […] Read more » What to say about the situation of 2012 क्या कहें सन दो हजार बीस का हाल
कविता नया साल आया है, नया सवेरा लाया है January 2, 2021 / January 2, 2021 by ब्रह्मानंद राजपूत | Leave a Comment नया साल आया है, नया सवेरा लाया है, हर घर में खुशियों का मौसम छाया है। पड़ रही है कड़ाके की ठंड फिर भी जोश है नए साल का, आओ सब नए साल का जश्न मनाएं, लेकिन अपनी जिम्मेदारियों को न भूल जाएँ, नया साल है नयी जिम्मेदारी, नया लक्ष्य हमको बनाना है, लक्ष्य को […] Read more » नया सवेरा लाया है नया साल आया है