लेख साहित्य लघुता पाय प्रभुता पाई January 21, 2018 / January 21, 2018 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment गोस्वामी तुलसीदासजी ने ‘रामचरित मानस’ में जिस प्रसंग में यह कहा है कि ‘लघुता पाय प्रभुता पाई’-उसका वहां अर्थ है कि विनम्रता से अर्थात लघुता से मनुष्य बड़प्पन प्राप्त कर लेता है, महानता की प्राप्ति करता है। गोस्वामीजी ने जहां भी जैसे भी जो भीकुछ कहा है उसका विशेष और गम्भीर अर्थ है। अब हम अपने वर्तमान पर दृष्टिपात करेंगे। वर्तमान में यह रीति-नीति पूर्णत: परिवर्तित हो चुकी है। आजकल लघुता को या विनम्रता को लोग दूसरे की दीनता समझते हैं। लघुता के स्थान पर हैकड़ी और मुठमर्दी आ गयी है। लोग दूसरों को सम्मानित करके नहींअपमानित करके प्रसन्न होते हैं। यह व्यवस्था का दोष है जो कि इस समय शीर्षासन कर चुकी है। लघुता का एक अर्थ छोटापन भी है जिसे और भी स्पष्टता से समझने के लिए इसे नीचता अथवा कमीनापन भी कहा जा सकता है। आजकल लोगों ने लघुता का अर्थ इसी प्रकार कर लिया है। राजनीति ने लघुता को इसी रूप में अपनाया और चूंकि राजधर्म काअनुकरण जनसाधारण करता है इसलिए यही अर्थ जनसामान्य ने भी अपना लिया है। राजनीति नीचता को पाकर महानता प्राप्ति की प्रयोगशाला सफलतापूर्वक सिद्घ हुई है। वर्तमान राजनीति में यह दोष कहां से आया? इस पर विचार करेंगे तो इतिहास के कुछ पन्ने पलटने पड़ेंगे। आप वहां से पढना आरम्भ कीजिए जहां नेताजी सुभाष को पीछे धकेलकर कांग्रेस के अध्यक्ष की कुर्सी उनसे कुछ लोगों ने बलात् खाली करायी थी। वहनीचता थी, देश के लोगों के साथ ही नहीं अपितु कांग्रेसजनों के साथ भी धोखा था, उनकी भावनाओं की हत्या थी क्योंकि नेताजी को सभी लोगों ने अपनाया अध्यक्ष बनाया था। कहना न होगा कि जिन लोगों ने उस समय लघुता का प्रदर्शन किया वही आगेचलकर प्रभुता पा गये। यही सरदार पटेल के साथ किया गया। उन्हें पीछे धकेलकर प्रधानमंत्री की कुर्सी पंडित नेहरू को दे दी गयी। चाटुकारों ने लघुता (विनम्रता) को अपमानित कर लघुता (नीचता) को सम्मानित करने का फतवा इतिहास को सुना दिया औरतब से हम इसी ‘लघुता’ पर पुष्प चढ़ाते आ रहे हैं। उसके पश्चात देश की राजनीति का संस्कार ही हो गया कि अपने प्रतियोगी को रास्ते से हटाओ और प्रभुता पाओ। रास्ते से हटाने की प्रतियोगिता में जो आगे निकल जाए यहां वही ‘मुकद्दर का सिकंदर’ कहलाता है। यह अच्छी बात रही कि सरदार पटेल कोरास्ते से हटाने के लिए उनकी हत्या तो नहीं की गयी पर बाद में यह रास्ते से हटाने की प्रक्रिया हत्या तक पहुंच गयी। कितने ही लोगों को हत्या करके रास्ते से हटाया गया। हटाया जा रहा है। राजनीति इस समय खून से नहा रही है। यह अपना प्रातराश (नाश्ता) भी खून से करती है और दिन भर चाय पानी के स्थान पर भी खून पीती रहती है। हर सफेदपोश की चादर पर खून के धब्बे हैं। गुस्ताख होके अर्ज किया है कि माफ हो। हमने तो एक दिल भी न देखा कि जो साफ हो।। जब मैं किसी राजनीतिज्ञ के भव्य भवन को देखता हूं तो यही सोचा करता हूं कि इस भवन की हर एक ईंट अपराध की ईंट और खून के गारे से चिनी गयी है। इसकी नींव में भी खून है और इसके कंंगूरों पर भी खून के छींटे हैं। यह खेल आजकल देश कीराजधानी से चलकर प्रदेशों की राजधानियों से होते हुए गांव के गली मौहल्लों तक पहुंच गया है। अपराध की एक नई खूनी क्रान्ति को देश देख रहा है और मौन साधकर देख रहा है। व्यवस्था को शीर्षासन करा देना ‘प्रतिगामी क्रान्ति’ होती है और यह ‘प्रतिगामीक्रान्ति’ की रक्तिम भाव भंगिमा का ही परिणाम है कि गांव में ग्राम प्रधान के पद के प्रत्याशियों में भी रक्तिम संघर्ष छिड़ा हुआ है। वहां भी ‘लघुता पाय प्रभुता पाई’ की चौपाई वर्तमान सन्दर्भों में अपना प्रभाव दिखा रही है। लोग एक दूसरे को रास्ते से हटा रहे हैं।राजनीति ने अपने पापों को छिपाने के लिए इस ‘प्रतिगामी रक्तिम क्रान्ति’ को गम्भीरता से न लेकर ‘राजनीतिक रंजिश’ कहना आरम्भ किया है। यह शब्द हल्का है जो हमें लघुता अर्थात राजनीतिक नीचता को नीचता न कहने के लिए प्रेरित करता है। हम इसे‘ऐसा तो होता है’-यह कहकर क्षमा कर देते हैं, हमारी इसी असावधानता ने देश को दुर्दशा ग्रस्त कर दिया है। मानव हत्या तो मानव हत्या है। उसे राजनीतिक हत्या कहकर क्षमा करना तो पूरी मानवता के साथ छल करना है। हर कुर्सी में खून है और खून के दाग। हिंसा इसका धर्म है फर्ज बना है आग।। हमने अपने लोकतंत्र के मंदिर में अनेकों अपूजनीयों का पूजन करना आरम्भ कर दिया है। यह पूजन भी बड़ी संख्या में हो रहा है देश के छह लाख गांवों में लोकतंत्र का दीपक जल रहा है। हर गांव में लोकतंत्र का मंदिर है और हमने वहीं से लोक देवता कोखून से नहलाना आरम्भ कर दिया है। वहीं से देश के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर अर्थात संसद तक आते-आते राजनीतिक लोग खून से या अपराध से लथपथ हो जाते हैं और फिर प्रभुता पाकर राज करते हैं अर्थात लोकतंत्र के मंदिर में पूजे जाते हैं। अपवादोंका हम वंदन करते हैं। अभिनंदन करते हैं और उन्हें नमन करते हैं। परन्तु कुल मिलाकर जो चित्र देश की राजनीति का बन चुका है वह तो अत्यंत डरावना है। जिस देश का लोकदेवता उसका जनलोकपाल होता था, आज उसको हर स्थान पर खून से नहलायाजा रहा है और देश की चेतना को मौन साधकर सब कुछ सहने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। यह कब तक चलेगा? आज की युवा पीढ़ी को जागना होगा। इस देश की अन्तश्चेतना को उसे समझना होगा। क्योंकि इस देश की अन्तश्चेतना कभी मरी नहीं। इसने अन्याय और अत्याचार की चुनौती को सदा चुनौती दी है। इसके धर्म ने पापाचारी राजनीति से सदा लडऩा सिखाया है। यदि ऐसा न होता तो कृष्ण कंस को नहीं मारते और राम रावण को नहीं मारते। कृष्ण ने कंस को और राम ने रावण को इसीलिए मारा कि राजनीति पवित्र हो जाए, अपना धर्म पहचान ले और सही रास्ते पर आ जाए। उन्होंने रास्ते से उन्हें हटाया जो जनसामान्यका रास्ता रोके खड़े थे। यही भारत का धर्म है। लोकतंत्र के पावन मंदिरों पर बलात् कब्जा करने वाले कंस आज जनसाधारण से पूजा का अधिकार छीन चुके हैं अर्थात उनके मताधिकार को भी छीन चुके हैं। मत को हत्या के आतंक से, लाठी से, बंदूक से, पैसेसे या हैकड़ी से खरीदा जा सकता है या प्रभावित किया जाता है, झूठे और भ्रामक घोषणा पत्रों के माध्यम से प्रभावित किया जाता है। जनसाधारण में से यदि कोई ऐसा करता है तो वह चार सौ बीसी में फंसाया जाता है। पर राजनीतिज्ञों को चार सौ बीसी की भीछूट है। वह झूठे घोषणा पत्र जारी कर पूरे देश को ठग सकते हैं, चारा खा सकते हैं, सीमेंट खा सकते हैं, कोयला खा सकते हैं और फिर भी सफेद पोश रहते हैं। देश के बुद्घिजीवियों! जागो तुम्हारे रहते देश में डाका पड़ रहा है। सांस्कृतिक मूल्यों का अर्थ परिवर्तन हो रहा है। लघुता (विनम्रता) का दूसरी लघुता (नीचता) में रूपान्तरण हो रहा है और आप मौन हैं, ये पदमश्री ये दूसरे ऐसे ही उपहार सम्भवत: तुम्हारे मुंहपर ताले डालने के लिए तुम्हें थमा दिये गये झुंझने हैं कि तुम इन्हें बजाते रहना और देश को लुटते रहने देना। यदि कहीं स्वाभिमान है तो इन झुंझनों को फेंककर मैदान में आके लघुता (विनम्रता) को लघुता (नीचता) पर वरीयता देकर भारत के सांस्कृतिक मूल्योंकी रक्षा के लिए संघर्ष करो। समर शेष है पाप का भागी नहीं है केवल व्याध। जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।। Read more » Featured लघुता पाय प्रभुता पाई
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लेख साहित्य गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-41 January 20, 2018 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य गीता का छठा अध्याय और विश्व समाज अब पुन: हम उस आनन्द के विषय में ‘ब्रह्मानन्दवल्ली’ (तैत्तिरीय-उपनिषद) का उल्लेख करते हैं। जिसका ऋषि कहता है कि यदि कोई बलवान युवावस्था को प्राप्त वेदादि शास्त्रों का पूर्ण ज्ञाता सम्पूर्ण पृथ्वी का राजा होकर राज भोगे तो उसे उस राज से जो आनन्द प्राप्त […] Read more » Featured आज का विश्व कर्मयोग गीता गीता का कर्मयोग गीता का छठा अध्याय विश्व समाज
लेख साहित्य गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-40 January 18, 2018 by राकेश कुमार आर्य | 1 Comment on गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-40 राकेश कुमार आर्य गीता का छठा अध्याय और विश्व समाज योगी की समाधि अवस्था गीता के छठे अध्याय की विशेषता यह है कि इसमें श्रीकृष्ण जी ने ध्यान योगी के लक्षण भी बताये हैं। इस पर प्रकाश डालते हुए श्रीकृष्णजी कहते हैं कि जब चित्त व्यक्ति के वश में हो जाता है और वह आत्मा […] Read more » Featured karmayoga of geeta आज का विश्व गीता गीता का कर्मयोग
लेख साहित्य गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-39 January 18, 2018 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य गीता का छठा अध्याय और विश्व समाज श्री कृष्णजी की बात का अभिप्राय है कि बाहरी शत्रु यदि बढ़ जाते हैं तो योगी भी भयभीत हो उठते हैं। ये बाहरी शत्रु ऐसे लोग होते हैं, जो दूसरों को शान्तिपूर्ण जीवन जीने नहीं देते हैं। उनके भीतर उपद्रव होता रहता है तो उनके […] Read more » Featured karmayoga of geeta आज का विश्व गीता गीता का कर्मयोग
लेख साहित्य गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-38 January 16, 2018 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य   गीता का छठा अध्याय और विश्व समाज आत्म कल्याण कैसे सम्भव है संसार के लोग अपने आप पर अपनी ही नजरें नहीं रखते। मैं क्या कर रहा हूं? मुझे क्या करना चाहिए? ऐसी दृष्टि उनकी नहीं होती। वह ये सोचते हैं कि मैं जो कुछ कर रहा हूं-उसे कोई नहीं […] Read more » Featured कर्मयोग गीता गीता का कर्मयोग गीता का छठा अध्याय विश्व समाज
लेख साहित्य गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-37 January 15, 2018 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य   गीता का छठा अध्याय और विश्व समाज योगेश्वर श्रीकृष्णजी ऐसे पाखण्डियों के विषय में कह रहे हैं कि ऐसे लोग किसी रूप में ना तो योगी हैं ना ही संन्यासी हैं और उनके भगवान होने का तो कोई प्रश्न ही नहीं है। श्रीकृष्णजी योगी या संन्यासी होने के लिए कह […] Read more » Featured geeta karmayoga of geeta आज का विश्व गीता गीता का कर्मयोग
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लेख गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-35 January 11, 2018 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य   गीता का पांचवां अध्याय और विश्व समाज गीता का भूतात्मा और पन्थनिरपेक्षता गीता ने सर्वभूतों में एक ‘भूतात्मा’ परमात्मा को देखने की बात कही है। वह भूतात्मा सभी प्राणियों की आत्मा होने से भूतात्मा है। सब भूतों में व्याप्त है भूतात्मा एक। परमात्मा कहते उसे आर्य लोग श्रेष्ठ।। मनुष्य जाति […] Read more » Featured geeta karmayoga of geeta आज का विश्व गीता गीता का कर्मयोग गीता का कर्मयोग और आज का विश्व
लेख साहित्य गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-34 January 9, 2018 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य गीता का पांचवां अध्याय और विश्व समाज ये चारों बातें कर्मयोगियों के भीतर मिलनी अनिवार्य हैं। यदि कोई व्यक्ति द्वैधबुद्घि का है, अर्थात द्वन्द्वों में फंस हुआ है तो वह हानि-लाभ, सुख-दु:ख, यश-अपयश आदि के द्वैध भाव से ऊपर उठ ही नहीं पाएगा। वह इन्हीं में फंसा रहेगा और इन्हीं में फंसा […] Read more » Featured karmayoga of geeta todays world आज का विश्व गीता गीता का कर्मयोग
लेख साहित्य गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-33 January 9, 2018 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य   गीता का पांचवां अध्याय और विश्व समाज इस आत्मविनाश और आत्मप्रवंचना के मार्ग को सारा संसार अपना रहा है। रसना और वासना का भूत सारे संसार के लोगों पर चढ़ा बैठा है। इसके उपरान्त भी सारा संसार कह रहा है कि मजा आ गया। इस भोले संसार को नहीं पता […] Read more » Featured karmayoga of geeta todays world आज का विश्व गीता गीता का कर्मयोग