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लेख साहित्‍य

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी : रानी लक्ष्मीबाई

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(रानी लक्ष्मीबाई के  181वें जन्मदिवस 19 नवंबर  2016 पर विशेष) 1857 के प्रथम भारतीय स्वतन्त् रता संग्राम में अहम् भूमिका नि भाने वाली झाँसी की रानी लक्ष् मीबाई का जन्म मोरोपन्त तांबे औ र भागीरथीबाई के घर वाराणसी जि ले के भदैनी में 19 नवम्बर  1935 को हुआ था। रानी लक्ष्मीबा ई के बचपन का नाम मणिकर्णिका था । परन्तु प्यार से लोग उसे मनु  कहकर पुकारते थे। रानी लक्ष्मी बाई जब 4 साल की थी तब उनकी माँ  भागीरथीबाई का देहांत हो गया।    इसलिए मणिकर्णिका का बचपन अपने पिता मोरोपन्त तांबे की देखरेख  में बीता। मनु ने बचपन में शा स्त्रों की शिक्षा ग्रहण की। मणि कर्णिका बचपन में ही तलबार, धनुष सहित अन्य शस्त्र चलाने में नि पुण हो गयीं थी। और छोटी सी उम्र में ही घुड़सवारी करने लगी थीं । मोरोपन्त मराठी मूल के थे और  मराठा बाजीराव द्वितीय की सेवा  में रहते थे। माँ की मृत्यु के  बाद घर में मणिकर्णिका की देखभाल के लिये कोई नहीं था। इसलिए पिता मोरोपन्त मणिकर्णिका को अपने  साथ बाजीराव के दरबार में ले जा ने लगे। दरबार में सुन्दर मनु की चंचलता ने सबका मन मोह लिया। मणिकर्णिका बाजीराव द्वितीय की भी प्यारी हो गयीं। बाजीराव मनु को अपनी पुत्री की तरह मानते थे।  और मनु को प्यार से छबीली कहकर  बुलाते थे। सन् 1842 में मणिकर्णिका का विवाह झाँसी के राजा गंगाधर राव निम्बालकर के साथ हुआ और मनु छोटी  सी उम्र में झाँसी की रानी बन  गयीं। विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। सन् 1851 में  रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को  जन्म दिया पर चार महीने की आयु  में गम्भीर रूप से बीमार होने  की वजह से उसकी मृत्यु हो गयी।  सन् 1853 में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत अधिक बिगड़ जाने  पर उन्हें दरबारियों ने दत्तक  पुत्र लेने की सलाह दी। दरबारि यों की सलाह मानते हुए रानी ने  पुत्र गोद लिया दत्तक पुत्र का  नाम दामोदर राव रखा गया। पुत्र  गोद लेने के कुछ दिनों बाद बीमारी के कारण 21 नवम्बर 1853 को रा जा गंगाधर राव का देहांत हो गया । अब रानी लक्ष्मीबाई अकेली पड़  गयीं और दरवारियों की सलाह पर झाँ सी की गद्दी पर बैठकर झाँसी का  कामकाज देखने लगी। उस समय भारत के बड़े क्षेत्र पर  अंग्रेजों का शासन था। और ईस्ट  इंडिया कंपनी का राज चलता था। अंग्रेज झाँसी को भी ईस्ट इंडिया  कंपनी के अधीन करना चाहते थे। राजा गंगाधर राव की मृत्यु के बाद  अंग्रेजों को यह एक उपयुक्त अवसर लगा। उन्हें लगा रानी लक्मीबाई स्त्री है और उनका का प्रतिरोध नहीं करेगी। राजा गंगाधर  राव का कोई पुत्र न होने का कह कर अंग्रेजों ने रानी के दत्तक- पुत्र दामोदर राव को राज्य का उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर  […]

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कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म लेख साहित्‍य

स्वास्तिक शास्वत और विश्वव्यापी सनातन प्रतीक

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अत्यन्त प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल-प्रतीक माना जाता रहा है। इसीलिए किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले स्वस्तिक चिह्न अंकित करके उसका पूजन किया जाता है। स्वस्तिक शब्द सु+अस+क से बना है। 'सु' का अर्थ अच्छा, 'अस' का अर्थ 'सत्ता' या 'अस्तित्व' और 'क' का अर्थ 'कर्त्ता' या करने वाले से है। इस प्रकार 'स्वस्तिक' शब्द का अर्थ हुआ 'अच्छा' या 'मंगल' करने वाला। 'अमरकोश' में भी 'स्वस्तिक' का अर्थ आशीर्वाद, मंगल या पुण्यकार्य करना लिखा है। अमरकोश के शब्द हैं - 'स्वस्तिक, सर्वतोऋद्ध' अर्थात् 'सभी दिशाओं में सबका कल्याण हो।'

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