व्यंग्य अच्छे दिन ! September 9, 2014 by एल. आर गान्धी | Leave a Comment एल आर गांधी हाथ की दातुन से निपट कर आखिरी फोलक को थू …. कहने ही वाले थे कि चोखी लामा बीच में आ धमके … न दुआ न सलाम सरहद पार की फायरिंग की मानिंद सवाल दागा … बाबू आज का अखबार देखा … अनजान बालक सा चोखी का मुखारविंद तकता रह गया … […] Read more » अच्छे दिन
कहानी दिमागी उपज…या कुछ और…!! September 6, 2014 by अश्वनी कुमार | Leave a Comment अश्वनी कुमार बंगलौर… सुबह के लगभग 8 बज रहे होंगे… शर्मा जी रोज़ की ही तरह आज भी अपने बैंक की ओर अपनी गाडी लेकर चल पड़े… शर्मा जी एक सरकारी बैंक में मैनेजर के तौर पर कार्यरत हैं. बैंक 9 बजे के आसपास खुलना था आम लोगों के लिए, तो वह बैठकर अपने साथ […] Read more » दिमागी उपज
कविता मैं ‘लड़की’ हूं September 6, 2014 by लक्ष्मी जायसवाल | Leave a Comment जकड़ी हूं बंधन में सदियों से अब मुझे मुक्ति चाहिए। बंधन खोल सके जो आज़ादी दे मुझे वो शक्ति अब चाहिए। उड़ना चाहती हूं स्वच्छंद गगन में ‘पर’ मुझे मेरे चाहिए। मैं लड़की हूं हां मैं लड़की हूं तो क्या हुआ जीना का हक़ मुझे भी चाहिए। अब न सहूंगी बंधन अब न उठाऊंगी रिवाजों की […] Read more » मैं 'लड़की' हूं
कविता सुबह या शाम ? September 5, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -मनु कंचन- अभी आँख खुली है मेरी, कुछ रंग दिखा आसमान पे, लाली है तो चारों ओर, पर पता नहीं दिन है किस मुकाम पे, दिशाओं से मैं वाक़िफ़ नहीं, ऐतबार करूँ तो कैसे मौसमों की पहचान पे, चहक तो रहे हैं पंछी, पर उनके लफ़्ज़ों का मतलब नहीं सिखाया, किसी ने पढ़ाई के नाम […] Read more » कविता सुबह या शाम ? हिन्दी कविता
कविता कक्षा अध्यापक September 5, 2014 / September 5, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 1 Comment on कक्षा अध्यापक भारतेंदु मिश्र- -शिक्षक दिवस की पूर्व सन्ध्या पर शिक्षक बन्धुओं के लिए एक गीत- मेरी कक्षा में पढ़ते हैं बच्चे पूरे साठ मेरे लिए सभी बच्चे हैं नई तरह के पाठ। कुछ पाठों में भावसाम्य है कुछ पाठों में कठिनाई है एक पाठ बिल्कुल सीधा है एक पाठ बिल्कुल उलझा है इनमें कुछ सीधे […] Read more » कक्षा अध्यापक शिक्षक दिवस
कविता मेरा मौन September 4, 2014 / September 4, 2014 by के.डी. चारण | 4 Comments on मेरा मौन के.डी. चारण मुझमें एक मौन मचलता है, भावों में आवारा घुलकर मस्त डोलता है, मुझमें एक मौन मचलता है। शिशुओं की करतल चालों में, आवारा यौवन सालों में, मदिरा के उन्मत प्यालों में, बुढ्ढे काका के गालों में, रोज बिलखता है। मुझमें एक मौन मचलता है। लैला मज़नू की गल्पें सुनकर, औरों की आँँखों […] Read more » मेरा मौन
कहानी आत्महत्या September 2, 2014 / September 3, 2014 by विजय कुमार सप्पाती | Leave a Comment मुख्य कलाकार : कांस्टेबल रामसिंह सब इंस्पेक्टर काम्बले सूबेदार मेजर रावत डिप्टी कमांडेंट सिंह कमांडेंट देवेन्द्र सेकंड इन कमांडेंट यादव डॉक्टर कृष्णकुमार – साय्कोलोजिस्ट प्रारम्भ स्टेज पर पर्दा उठना सीन एक : [ स्टेज पर लाइट जलता है ] स्थान : ऑफिस का कोरिडोर स्टेज पर कांस्टेबल रामसिंह आता है और अपने एक साथी से […] Read more » आत्महत्या
कविता हर रात August 31, 2014 / August 31, 2014 by रवि कुमार छवि | Leave a Comment -रवि कुमार छवि- वो हर रात मेरे साथ सोती है कभी तकिया बन कर तो कभी चादर बनकर वो मेरे बदन से ऐसी लिपटती मानो चंदन के पेड़ पर सांप वो कभी प्रेमिका बनती कभी माशूका कभी चकले की वो लड़की जिसके जिस्म को कईयों ने अपनी नज़र में तराशा उसकी शरारत सोने नहीं देती […] Read more » नींद नींद कविता हर रात
कविता मोबाइल से पानी August 30, 2014 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment -प्रभूदयाल श्रीवास्तव- मोबाइल से पानी मोबाइल का बटन दबा तो, लगा बरसने पानी। धरती पर आकर पानी ने, मस्ती की मनमानी| चाल बढ़ी जब मोबाइल पर, लगा झराझर झरने। नदी ताल पोखर झरने सब, लगे लबालब भरने। और तेज फिर और तेज से, चाल बढ़ाई जैसे। आसमान से लगे बरसने, जैसे तड़-तड़ पैसे। किंतु […] Read more » मोबाइल मोबाइल कविता मोबाइल से पानी
कविता जीवन का मोड़ August 28, 2014 by राघवेन्द्र कुमार 'राघव' | Leave a Comment –राघवेन्द्र कुमार “राघव”- ये जीवन का कौन सा मोड़ है, जहाँ मार्ग में ही ठहराव है। दिखते कुछ हैं करते कुछ हैं लोग, यहाँ तो हर दिल में ही दुराव है । किस पर ऐतबार करें किसे अपना कहें, हर अपने पराए हृदय में जहरीला भाव है । अपना ही अपने से ईर्ष्या रखता है, […] Read more » जीवन का मोड़ हिन्दी कविता
कविता इतना तो आसान नहीं August 27, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 1 Comment on इतना तो आसान नहीं -दीपक शर्मा ‘आज़ाद’- पंछियों के जैसे पर फैलाना, इतना तो आसान नहीं; खुले आसमान में मंजिल पा जाना, इतना तो आसान नहीं ; ( 1 ) मुझे सबने अपनी उम्मीद का एक जरिया माना है , सबकी निगाहों से छिप जाना, इतना तो आसान नहीं ; ( 2 ) सच पाने की जिद में आशियाँ […] Read more » इतना तो आसान नहीं हिन्दी कविता
गजल हयाते गुमशुदा ने फिर पुकारा मुझे अभी August 25, 2014 by जावेद उस्मानी | Leave a Comment हयाते गुमशुदा ने फिर पुकारा मुझे अभी फिरना है दर बदर और ,आवारा मुझे अभी . जिस्म में बाकी है जां रूह अभी जिंदा है लज्जते गम से होने दे आश्कारा मुझे अभी राख होने न पाए , आतिशाकुदह सारे सुलगाना है हर बुझता शरारा मुझे अभी चाहे लाख हो कोशिश ,मिटने दूंगा न उम्मीदे […] Read more » हयाते गुमशुदा ने फिर पुकारा मुझे अभी