कविता बड़े घरों में पड़ा ताला January 29, 2014 / January 29, 2014 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment -मिलन सिन्हा- खस्ता हाल साल दर साल क्या करे मजदूर -किसान हैं सब बहुत परेशान या तो बाढ़ या फिर सूखा आधी उम्र गरीब रहता है भूखा हर गांव में महाजन देते ऊंचे ब्याज पर रकम पर कैसे चुकाए उधार कहां मिले रोजगार बेचना पड़े घर – द्वार शहर भी कहां खुशहाल गरीब यहां […] Read more » poem बड़े घरों में पड़ा ताला
कविता बेटी को प्रणाम January 29, 2014 / January 29, 2014 by विपिन किशोर सिन्हा | 2 Comments on बेटी को प्रणाम हे दिव्य प्रेम की शिखर मूर्ति तुम ही हो जननी भगिनी तुम्हीं तुम्हीं हो पत्नी पुत्री तुम्हीं। हे कोटि कंठों का दिव्य गान तुम ही हो भक्ति शक्ति तुम्हीं तुम ही हो रिद्धि सिद्धि तुम्हीं तुम ही हो शान्ति क्रान्ति तुम्हीं तुम ही हो धृति कृति तुम्हीं तुम ही हो मृत्यु सृष्टि तुम्हीं तुम ही […] Read more » poem बेटी को प्रणाम
व्यंग्य हजाम और अर्थशास्त्री के वार-पलटवार January 29, 2014 / January 29, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी- शाम को शहर की सड़क पर ‘इवनिंग वॉक’ के लिए निकला था, तभी एक हजाम (नाई/बारबर) का सैलून खुला दिखा। बड़ी लकदक दुकान और दूधिया प्रकाश से रौनक महंगी कुर्सियाँ और आगे-पीछे शीशे लगे हुए थे। युवा हज्जाम से सड़क की ऊबड़-खाबड़ पटरी पर खड़ा ही लगभग चिल्लाकर जोर की […] Read more » satire on indian politics हजाम और अर्थशास्त्री के वार-पलटवार
लेख बेरोजगारी की मार से बेहाल युवा वर्ग January 28, 2014 / January 28, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -ओपी सोनिक- कुछ दिन पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा राष्ट्रीय युवा नीति-2014 को मंजूरी दी गई। इसका मुख्य उद्देश्य युवा वर्ग को क्षमता एवं दक्षता हासिल करने के लिए सशक्त बनाना है, ताकि युवा शक्ति को देश के विकास में लगाया जा सके। नई युवा नीति में निर्धारित लक्ष्यों को हासिल करने के लिए पांच […] Read more » Unemployment in India बेरोजगारी की मार से बेहाल युवा वर्ग
कविता झारखंड के झरिया का जर्जर विकास January 28, 2014 / January 28, 2014 by ऋतु राय | 3 Comments on झारखंड के झरिया का जर्जर विकास -ऋतु राय- झारखण्ड के झरिया का विकास एक ऐसा विकास जिसके बारे में जानकार लगा की अब लोग बड़े निष्ठुर हो गए और ऐसा विकास तो कतिपय नहीं होना चाहिए। लालच एक सीमा त्यागने के बाद ललकारती भी है। प्रकृति के दुःख को अनसुना करना खतरनाक साबित हो सकता है। इस देश के लिए […] Read more » Jharkhand poem poem on Jharia problems झारखंड के झरिया का जर्जर विकास
कविता राजनीति के गलियारे में January 27, 2014 / January 27, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment राजनीति के गलियारे में, तीन व्यक्ति चर्चा में हैं ‘पप्पू’ तो हम सबका ही, राज दुलारा है, उसके गाल का डिंपल देखो, कितना प्यारा प्यारा है! देश संभालने की ख़ातिर वो, नींद से उठकर आया है। ‘पप्पू’ पास ज़रूर होगा, जापानी ट्यूटर का वादा है। फेंकू की हुंकार से, जनता को जोश आया है। मन्दिर […] Read more » poem politics poem राजनीति के गलियारे में
कविता फिर आ गया गणतंत्र दिवस January 26, 2014 / January 26, 2014 by आलोक कुमार | Leave a Comment फिर आ गया गणतंत्र दिवस दिखलाने, बतलाने सुनने-सुनाने हालात, समस्यायें उपलब्धियां गिनाने। देखो… सुनो… पढ़ो… जांचो… मगर कुछ कहना मत। सच! क्योंकि सच कह दिया तो गणतंत्र दिवस का अपमान हो जाएगा। पड़ जाएगी मंद मधुर ध्वनियां ढोलों की। खुल जाएंगी गुत्थियां नेताओं की पोलों की। अपने ढोलों की पोल खोलना किसने चाहा कौन चाहेगा […] Read more » फिर आ गया गणतंत्र दिवस
कविता रोते कितने लोग यहाँ January 26, 2014 / January 26, 2014 by श्यामल सुमन | 1 Comment on रोते कितने लोग यहाँ इस माटी का कण कण पावन। नदियाँ पर्वत लगे सुहावन। मिहनत भी करते हैं प्रायः सब करते हैं योग यहाँ। नीति गलत दिल्ली की होती रोते कितने लोग यहाँ।। ये पंजाबी वो बंगाली। मैं बिहार से तू मद्रासी। जात-पात में बँटे हैं ऐसे, कहाँ खो गया भारतवासी। हरित धरा और खनिज सम्पदा का अनुपम संयोग […] Read more » रोते कितने लोग यहाँ
लेख जातिभेद किस अवस्था में ? January 25, 2014 / January 25, 2014 by डॉ. मधुसूदन | 5 Comments on जातिभेद किस अवस्था में ? -डॉ. मधुसूदन- आज एक संवेदनशील विषय पर लिखना चाहता हूं, पर बहुत बड़े कंधों पर खड़ा होकर, जिनके विषय में कोई पक्षपाती होने का विशेष संभव नहीं हो सकता। सर्व सामान्य अनुभव और निरीक्षण आपके सामनेभी है ही। उस पर आप भी सोचते चलिए। राष्ट्र हित की दृष्टि से मैं भी विचारना चाहता हूं। […] Read more » castism in our society जातिभेद किस अवस्था में ?
कविता नींद तुम्हारी आंखों में January 24, 2014 / January 24, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -श्यामल सुमन- नींद तुम्हारी आंखों में पर मैंने सपना देखा है अपनों से ज्यादा गैरों में मैंने अपना देखा हैकिसे नहीं लगती है यारो धूप सुहानी जाड़े की बर्फीले मौसम में टूटे दिल का तपना देखा है बड़े लोग की सर्दी – खांसी अखबारों की सुर्खी में फिक्र नहीं जनहित की ऐसी खबर का छपना […] Read more » poem नींद तुम्हारी आंखों में
व्यंग्य चमचा महफिल का ‘वीकेंड’ सत्र January 22, 2014 / January 22, 2014 by विजय कुमार | Leave a Comment -विजय कुमार- दिल्ली में केजरी ‘आपा’ के नेतृत्व में ‘झाड़ू वाले हाथ’ की सरकार बनी तो ‘मोदी रोको’ अभियान में लगे लोगों की बांछें खिल गयीं। राहुल बाबा की खुशी तो छिपाये नहीं छिप रही थी। कई दिन बाद उन्होंने अपने यारों के साथ बैठकर ठीक से पीना-खाना किया। सबका मत था कि लड्डू […] Read more » Satire चमचा महफिल का ‘वीकेंड’ सत्र
कविता आओ धरना-धरना खेलें January 22, 2014 / January 22, 2014 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment आओ धरना-धरना खेलें सत्ता पाये भ्रष्टों के बल, मुंह तो अब छुपाना है, मूर्ख बनाओ जी भर-भर के, धरना एक बहाना है। जी भर नूरा कुश्ती खेलें, आओ धरना-धरना खेलें। (१) झुंझलाकर के सड़क पर बैठें, मुझे छोड़कर सभी चोर हैं, एक उठे पराये पर जब, तीन ऊंगलियां अपनी ओर हैं। भ्रष्टातंकी पाले चेले आओ […] Read more » poem आओ धरना-धरना खेलें