मीडिया विधि-कानून विविधा आरटीआर्इ के दायरे में राजनीतिक दल June 10, 2013 / June 10, 2013 by प्रमोद भार्गव | Leave a Comment प्रमोद भार्गव राजनीतिक दलों में पारदर्शिता लाने के नजरिये से इन्हें आरटीआर्इ के दायरे में लाना एक ऐतिहासिक घटना है। केंद्रीय सूचना आयोग ने राजनीतिक दलों को सूचना का अधिकार कानून के दायरे में लाकर उल्लेखनीय पहल की है। अब प्रमुख दल मांगे गए सवाल का जवाब देने के लिए बाध्यकारी होंगे। अब चिंता यही […] Read more » आरटीआर्इ आरटीआर्इ के दायरे में राजनीतिक दल राजनीतिक दल
विधि-कानून पुलिस हिंसा और भ्रष्टाचार की बुनियाद अंग्रेजी साक्ष्य कानून June 6, 2013 / June 7, 2013 by एडवोकेट मनीराम शर्मा | Leave a Comment ब्रिटिश साम्राज्य के व्यापक हितों को ध्यान में रखते हुए गवर्नर जनरल ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 बनाया था | यह स्वस्प्ष्ट है कि राज सिंहासन पर बैठे लोग ब्रिटिश साम्राज्य के प्रतिनिधि थे और उनका उद्देश्य कानून बनाकर जनता को न्याय सुनिश्चित करना नहीं बल्कि ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार करना और उसकी पकड़ को […] Read more » पुलिस हिंसा और भ्रष्टाचार की बुनियाद अंग्रेजी साक्ष्य कानून
विधि-कानून न्यायालयों में हिन्दी May 25, 2013 by विपिन किशोर सिन्हा | 1 Comment on न्यायालयों में हिन्दी सदियों से भारत में आम जनता की आवाज़ दबाई जाती रही है और उन्हें उनके नैसर्गिक अधिकारों से वंचित किया जाता रहा है। चाहे वह कोई युग रहा हो अथवा कोई राजा रहा हो। लोक भाषा कभी भी राज भाषा नहीं रही। संस्कृत को देवभाषा का अलंकरण देकर, इसे जनभाषा बनने से सोद्देश्य रोका […] Read more » न्यायालयों में हिन्दी
विधि-कानून न्याय पाने की भाषायी आज़ादी May 19, 2013 / May 19, 2013 by राजीव गुप्ता | Leave a Comment राजीव गुप्ता स्वतंत्रता पूर्व भारत मे सरकारी समारोहों में ‘गाड सेव द किंग’ या ‘गाड सेव द क़्वीन’ गाया जाता था. पर्ंतु 15 अगस्त 1947 से उसका स्थान ‘जन-गण-मन-अधिनायक जय हे’ ने लिया. रातोंरात सभी सरकारी भवनो पर से ‘यूनियन जैक’ झंडा उतारकर तिरंगा झंडा लहरा दिया गया. भारत में स्वतंत्रता का जश्न मनाया गया. […] Read more » न्याय पाने की भाषायी आज़ादी
विधि-कानून सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में भारतीय भाषा में न्याय पाने का हक May 18, 2013 by प्रवक्ता ब्यूरो | 4 Comments on सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में भारतीय भाषा में न्याय पाने का हक 1. यह है कि माननीय संसदीय राजभाषा समिति ने 1958 में संस्तुति की थी कि उच्चतम न्यायालय में कार्यवाहियों की भाषा हिंदी होनी चाहिए| उक्त अनुशंसा को पर्याप्त समय व्यतीत हो गया है किन्तु इस दिशा में आगे कोई प्रगति नहीं हुई है| 2. यह है कि राजभाषा विभाग ने अपने पत्रांक 1/14013/05/2011-O.L.(Policy/C.T.B.) दिनांक 11.09.12 […] Read more » न्याय की भाषा
विधि-कानून न्यायालयों में भारतीय भाषा में न्याय पाने का हक May 16, 2013 by विजन कुमार पाण्डेय | Leave a Comment विजन कुमार पाण्डेय केवल तीन प्रतिशत भारतीय ही अंग्रजी को अच्छी तरह जानते हैं। इसके बावजूद भी हमारे न्यायालयों में अंग्रेजी का प्रयोग अधिकतम होता है। हमारा संविधान भी इसकी इजाजत देता है। यह बात सच है कि हमारा संविधान के अनुच्छेद 348(1)(क) के तहत उच्चतम न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी कार्यवाहियां केवल […] Read more »
विधि-कानून जनांदोलन के अलावा और कोई रास्ता नहीं May 16, 2013 / May 16, 2013 by हिमकर श्याम | Leave a Comment हिमकर श्याम हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा हासिल करने के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा। यह दर्जा भी केवल कागजों तक ही सीमित रहा। गुजरात उच्च न्यायालय के अनुसार ऐसा कोई प्रावधान या आदेश रिकार्ड में मौजूद नहीं है जिससे हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित किया गया हो। दिल ही दिल में सभी स्वीकार करते हैं […] Read more »
विधि-कानून दरअसल अब तक परतंत्र ही हैं हम May 16, 2013 by गिरीश पंकज | 4 Comments on दरअसल अब तक परतंत्र ही हैं हम गिरीश पंकज ”कहने को आज़ाद हो गए मगर गुलामी जारी है मुझको हर पल ही लगता है, ये दिल्ली हत्यारी है”. अपनी ही काव्य पंक्तियों से बात शुरू कर रहा हूँ। सच कहूं तो बड़ी पीड़ा होती है , जब हम देखते हैं कि अपने ही स्वतंत्र देश में अपनी ही राष्ट्र भाषा के लिए […] Read more »
विधि-कानून सुप्रीम कोर्ट की सभी भाषाओं की अलग-अलग बेंच हो (पार्ट-2) May 16, 2013 / May 16, 2013 by विकास कुमार गुप्ता | 1 Comment on सुप्रीम कोर्ट की सभी भाषाओं की अलग-अलग बेंच हो (पार्ट-2) 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ। संविधान के अनुच्छेद 343 से 351 तक भाषा से सम्बन्धित उपबन्धों का विवेचन किया गया है। अनुच्छेद 343 के अनुसार भारत की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी निर्धारित की गयी है। और साथ में इस धारा के उप विन्दु 2 में कहा गया है कि ”किसी […] Read more » सुप्रीम कोर्ट की सभी भाषाओं की अलग-अलग बेंच हो
विधि-कानून सुप्रीम कोर्ट में सभी भाषाओं की अलग-अलग बेंच हो May 15, 2013 by विकास कुमार गुप्ता | Leave a Comment विश्व के किसी भी देश के नागरिकों को अपने मातृभाषा के बारे उच्च शिक्षा, न्याय और अन्य मुलभूत सुविधायें पाने का अधिकार है। लेकिन भारत में ऐसा नहीं है। भारत में तीन प्रतिशत अंग्रेजी 97 प्रतिशत जनता पर शासन करती है। आईयें इतिहास में खंगालते है कि आखिर यहां ऐसा क्यो है। –भारतीय समाज में […] Read more » सुप्रीम कोर्ट में सभी भाषाओं की अलग-अलग बेंच हो
विधि-कानून न्याय की भाषा अगर अनजानी हो तो कैसे किसी का समाधान करेगी May 14, 2013 / May 14, 2013 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 2 Comments on न्याय की भाषा अगर अनजानी हो तो कैसे किसी का समाधान करेगी प्रतिभा सक्सेना अनायास ही मन में प्रश्न उठता है – न्यायालय किसलिये स्थापित किये गये हैं ? लंबे समय के वाद-विवादों,गवाहियों,प्रमाणों और साक्षियों के बाद जो निर्णय लिये जाते हैं इसीलिये न कि दोषी के दंड का औचित्य सिद्ध हो , जन-मन में उचित-अनुचित का बोध जागे जिससे कि वह अपराध से विरत रहें. , […] Read more »
विधि-कानून सीमा पार के संविधान पर एक विहंगम दृष्टि May 13, 2013 by एडवोकेट मनीराम शर्मा | Leave a Comment मनी राम शर्मा तुर्की के संविधान के अनुच्छेद 40 के अनुसार लोक पद धारण करने वाले व्यक्ति के अवैध कृत्यों से होने वाली हानि के लिए राज्य द्वारा पूर्ति की जाएगी| राज्य ऐसे अधिकारी के विरुद्ध अपना अधिकार सुरक्षित रखता है| भारत में ऐसे प्रावधान का नितांत अभाव है| कानून में स्थापित व्यवस्था के अनुसार […] Read more » Indian constitution indian constitution vs turkey constitution turkey constitution