Category: राजनीति

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चुनावी चंदे में पारदर्शिता का सवाल

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जिस ब्रिटेन से हमने संसदीय सरंचना उधार ली है,उस बिट्रेन में परिपाटी है कि संसद का नया कार्यकाल शुरू होने पर सरकार मंत्री और संासदो की संपति की जानकारी और उनके व्यावसायिक हितों को सार्वजानिक करती है। अमेरिका में तो राजनेता हरेक तरह के प्रलोभन से दूर रहें, इस दृष्टि से और मजबूत कानून है। वहां सीनेटर बनने के बाद व्यक्ति को अपना व्यावसायिक हित छोड़ना बाघ्यकारी होता है। जबकि भारत में यह पारिपाटी उलटबांसी के रूप में देखने में आती है। यहां सांसद और विधायाक बनने के बाद राजनीति धंधे में तब्दील होने लगती है। ये धंधे भी प्रकृतिक संपदा के दोहन, भवन निर्माण, सरकारी ठेके, टोल टैक्स, शराब ठेके और सार्वजानिक वितरण प्रणाली के राशन का गोलमाल कर देने जैसे गोरखधंधो से जुड़े होते है।

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आगामी चुनाव जीतने के लिये समाजवादियों का सबसे बड़ा दांव

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मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने चुनावों से ठीक पहले बसपा , भाजपा और कांग्रेस को परेशान करने के लिये 17 अति पिछड़ी जातियों कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निशाद, कुम्हार,प्रजापति,धीवर, बिंद,भर,राजभर,धीमर, बाथम, तुरहा, गोडिंया, मांझी व मछुआ को एस सी का दर्जा देने का ऐलान किया है। अब यह प्रस्ताव केंद्र सरकार के विचाराधीन भेजा जायेगा। सपा सरकार ने यह फैसला करके एक तीर से कई निशाने लगाने का अनोखा प्रयास किया है।

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उ.प्र. चुनाव : सपा की रणनीति से विरोधी होगें चित्त !

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बसपा की बात करें तो नोटबंदी के चलते बहनजी चर्चा में रही हैं । आम जनता को नोटबंदी से हुई परेशानी के लिये मायावती ने आवाज उठाई तो भाजपा ने चुनाव में नोट लेकर टिकिट देने की छवि प्रचारित कर इस आवाज को दबाने में कोई कसर नहीं छोड़ी । बसपा सपा को अराजकतावादी और भाजपा को साम्प्रदायिक घोषित करते हुये कानून व्यवस्था के मुद्दे पर चुनाव लड़ने जा रही है । विकास की नित नई योजनाओं से अखिलेश अपना पल्लू साफ करके मायावती की इस कोशिश को असफल करने में लगे हैं । कांग्रेस और लोकदल के जनसमर्थन के साथ आने से भी इस काले धब्बे को नकारने में सपा को मदद मिल जायेगी । ऐसे में बसपा का सीधा सामना इस महागठबंधन से होगा ।

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