Category: राजनीति

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अब तो समझे विपक्ष जनता क्‍या चाहती है

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लोकतंत्र शासन प्रणाली में जनता भगवान होती है, उसके रुख से ही यह तय होता है कि किस पार्टी की नीतियों के लिए उसका बहुमत है। जब से केंद्र में भाजपा की सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बने हैं, विपक्ष किसी न किसी बहाने, बिना कोई सार्थक मुद्दा होने के बावजूद भी लगातार सरकार को घेरने की कोशिश कर रहा है। हद तो यह है कि पुराने 500-1000 के नोट प्रचलन के बाहर करने की जहां देशभर में बहुसंख्‍यक जनता सरकार की तारीफ कर रही है, वहीं विपक्षी हैं कि उनके पेट में इतना दर्द हो रहा है कि वे एक माह तक मुकर्रर किए गए वक्‍त में आवश्‍यक विधेयकों एवं कार्रवाहीं के लिए चलनेवाले सदन को भी नहीं चलने दे रहे।

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ईमानदारी और पारदर्शिता की कसौटी पर भाजपा

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प्रधानमंत्री को इस लेखे-जोखे का दायरा थोड़ा बड़ा रखना चाहिए था। घर में जमा जो कालाधन होेता है, उसे नेता हो या अधिकारी अपने बीबी-बच्चों के खातों में भी जमा रखते हैं। इस नजरिए से नरेंद्र मोदी को चाहिए कि वे सांसद और विधायकों के साथ-साथ, उन पर आश्रित पत्नी और बच्चों के खातों की जानकारी का खुलासा करने का भी आदेश देते ? अच्छा यह भी होता है कि प्रधानमंत्री यह आग्रह देश के सभी दलों के निर्वाचित प्रतिनिधियों से करते ? क्योंकि अवसर और परिस्थितियां व्यक्ति को साधु से शैतान बनाने में देर नहीं करतीं ? संसद में सांसदों से सवाल पूछने के बदले में नोट लेते एक स्टिंग आॅपरेशन में जो सांसद दिखाए गए थे, वे सभी दलों के थे।

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यूपी चुनावः नोटबंदी से ‘मंदा’ पड़ा टिकट का ‘धंधा’

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अतीत से निकल कर वर्तमान पर आया जाये तो यह साफ नजर आ रहा है कि 2012 से 2017 के बीच यूपी की सियासत काफी बदल चुकी है। कई पुराने सूरमा हासिये पर जा चुके हैं तो अनेक नये सियासी चेहरे क्षितिज पर आभा बिखेर रहे हैं। 2012 के विधान सभा चुनावों से प्रदेश को अखिलेश यादव के रूप में एक युवा और उर्जावान नेता मिला था, जिसकी चमक तमाम किन्तु-परंतुओं के साथ आज भी बरकरार है। पांच वर्ष पहले सपा की सियासत मुलायम सिंह यादव के इर्दगिर्द घूमती थी,लेकिन आज की तारीख में सपा के लिये मुलायम से अधिक महत्ता दिखाई पड़ रही है

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नोटबंदी पर क्‍यों भड़क रही हैं ममता ? 

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देश में जिस दिन से बड़े पुराने नोट बंद किए हैं, उस दिन से आप देख लीजिए, आपको कांग्रेस, सपा, बसपा, आम आदमी पार्टी से ज्‍यादा कोई बेचैन नजर आएगा तो निश्‍चि‍त ही वे ममता ही होंगी। अब ममता से जुड़ी जो बात समझ नहीं आ रही, वह यह है कि प्रधानमंत्री के लिए इस फैसले पर वे इतनी आकुल और व्‍याकुल क्‍यों हो रही हैं। यहां तक कि कोलकाता में मार्च निकालने के वक्‍त मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी पीएम पर निशाना साधते हुए कह गईं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अचानक भगवान बनकर आए और उन्‍होंने नोटबंदी कर दी। मैं आज कसम लेती हूं कि चाहे में जिंदा रहूं या मर जाऊं लेकिन पीएम मोदी को भारतीय राजनीति से हटाकर रहूंगी।

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जरा आईने के सामने तो आइए पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह जी

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क्या यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार का खुलासा करते हुए विकिलीक्स ने दावा नहीं किया था कि 2008 में परमाणु करार के मसले पर वाम दलों द्वारा आपकी सरकार से समर्थन लिए जाने के बाद विश्वास मत के दौरान आपकी सरकार को बचाने के लिए सांसदों को रिश्वत दी गयी थी और इसकी सूचना अमेरिकी सरकार को वाशिंगटन तक भेजी गयी? क्या विकिलीक्स वेबसाइट ने यह दावा नहीं किया था कि कांग्रेसी सांसद सतीश शर्मा के सहयोगी नचिकेता कपूर ने अमेरिकी दूतावास के एक कर्मचारी को नोटों से भरे दो बक्से दिखाए थे और कहा कि भारत अमेरिकी परमाणु सौदे को लेकर आपकी सरकार के विश्वासमत हासिल करने के लिए 50-60 करोड़ रुपए तैयार रखे हैं?

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