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बर्लिन अकादमी:*आदर्श-भाषा-स्पर्धा-(१७९४)* का इतिहास

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भाषा, उसके प्रयोगकर्ताओं की मानसिकता का दर्पण होता है। उस में, उस भाषा के प्रयोग-कर्ताओं का, बौद्धिक एवं नैतिक सार व्यक्त होता है। संक्षेप में, जंगली भाषाएं स्थूल और रूक्ष, होती हैं; और सभ्य भाषाएँ कोमल, और परिमार्जित होती है। (२)आगे कहता है, *क्षण-विशेष की माँग के अनुरूप अर्थ व्यक्त करने की क्षमता भाषा में होनी चाहिए। * उसी प्रकार *सूक्ष्म भाव एवं विचारों को भी अभिव्यक्त करे ऐसी भाषा ही आदर्श भाषा का पद प्राप्त कर सकती है।* (३) येनिश भाषा के चार गुण गिनाता है।

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ऋषि-द्वय कह गए दुनिया से,युग-परिवर्तन नियति की नीयत है

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दोनों उच्च कोटि के पत्रकार-सम्पादक थे । अंग्रेजी शासन के विरूद्ध अरविन्द अंग्रेजी में ‘वन्देमातरम’ निकालते थे , तो श्रीराम हिन्दी में ‘सैनिक’ । किन्तु बाद में किसी दिव्यात्मा के सम्पर्क से दोनों योग-साधना के बदौलत चेतना के उच्च शिखर पर पहुंच कर दैवीय योजना के तहत अपनी-अपनी भूमिका को तदनुसार नियोजित कर राष्ट्रीय चेतना जगाने-उभारने के आध्यात्मिक उपचार में संलग्न हो गए ।

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विविधा सार्थक पहल

बिहार की ग्राम कचहरी का एक प्रत्यक्ष अनुभव

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बिहार के सन्दर्भ में ग्राम कचहरी में अब तक जो विवाद दाखिल हुए है और जिन पर कार्यवाही हुई है उनके सम्बन्ध में अब तक हुए अध्ययनों से जो तथ्य निकलते है उसमें जमींन सम्बन्धी विवाद 58% तथा घरेलु विवाद 20% है | इसमें से 85% विवाद दलित एवं पिछड़े वर्ग से सम्बंधित है | बिहार में ग्राम कचहरी में आये हुए इन विवादों का 90% हिस्सा समझौते के द्वारा तय हुआ है | अन्य 10% में 100 से 1000 रूपये तक का जुर्माना लगाया गया है | ज्यादातर मामलों में दोषी ने सहज रूप से जुर्माना भरा है | लगभग 03% विवाद ही ऊपर की अदालतों में अपील हेतु गए है |

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हर हमले से मजबूत होते हैं हम

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फिर भी लफजों की फेर-फार के बगैर यह कहना ठीक होगा कि नक्सलवाद के अलाव की आंच उनके अपने ही दुष्कर्मों से धीमी पड़ रही है तब हमारे हुक्मरानों की एक भी गलती इस ठंडी पड़ती आग में घी का काम कर सकती है। आइपीएस एसआरपी कल्लूरी साहब बस्तर आईजी के तौर पर नक्सलियों के लिए मेन्स किलर साबित हो रहे थे लेकिन कुछ समय के लिए विपक्ष ने घडिय़ाली आंसू और मानवाधिकार के ठेकेदारों ने मिमियाना क्या शुरू किया, नौवातानुकूलित चेम्बरों में बैठे लोगों ने तिकड़मबाजी कर कल्लूरी साहब की घर-वापसी करवा दी। अब ये मानव अधिकार के अलंबरदार कहां हैं?

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