
अनाड़ियों के अन्ना
Updated: December 6, 2011
जगमोहन फुटेला जिस तरह से अन्ना को तिहाड़ से छोड़ने से लेकर उन्हें रामलीला मैदान देने और फिर लगातार सरकार की तरफ से डरु बयान…
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अन्ना के आगे झुकी मनमोहन सरकार
Updated: August 29, 2011
सुशांत सिंघल आज जबकि पूरा देश अन्ना की विजय में जन – जन की विजय देखते हुए उल्लसित है और जश्न मना रहा है, कुछ…
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मैं भी अन्ना, तू भी अन्ना
Updated: December 6, 2011
विजय कुमार अन्ना हजारे के आंदोलन से छात्र हो या अध्यापक, किसान हो या मजदूर, व्यापारी हो या उद्योगपति; सब प्रभावित हैं। यह बात दूसरी…
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अभिषेक पुरोहित की कविता
Updated: December 7, 2011
क्या जीवन! यंत्रवत चलते रहना ??? भौतिकी में दिन भर खपना, रात्रि में करना उसका चिंतन !! नश्वर-नष्ट होने वाली वस्तु के पीछे घूमते जाना…
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जनता बदहाल, नेता मालामाल
Updated: December 7, 2011
हिमकर श्याम लोकतंत्र में जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता की सरकार चुनी जाती है। अपने खून-पसीने की कमाई से आम जनता राज्य का खजाना…
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कहो कौन्तेय-२१ (महाभारत पर आधारित उपन्यास)
Updated: December 6, 2011
(पाण्डवों का हस्तिनापुर में प्रत्यागमन) विपिन किशोर सिन्हा हस्तिनापुर नगर के प्रवेश द्वार पर आचार्य द्रोण और कृपाचार्य हमलोगों के स्वागत के लिए स्वयं उपस्थित…
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जनलोकपाल का क्या हुआ?
Updated: December 6, 2011
अन्ना का अनशन तो खत्म हो गया लेकिन उस जनलोकपाल बिल का क्या हुआ जिसे लेकर देश को टीम अन्ना ने अनशन की आग में…
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हास्य-व्यंग्य/भ्रष्टाचार से लड़ने में कमजोरी बहुत आ जाती है
Updated: December 7, 2011
पंडित सुरेश नीरव भ्रष्टाचार से लड़ने में कमजोरी बहुत आ जाती है। इसीलिए तो हमारे राजनेता भ्रष्टाचार से बच निकलने में ही भलाई समझते हैं…
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हमें बख्श दो अन्ना
Updated: December 7, 2011
डॉ. आशीष वशिष्ठ जन लोकपाल कानून के लिये अन्ना के 12 दिन के अनशन सरकार की चूलें हिलाकर रख दी हैं। सरकार की हेकड़ी को…
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वंदे मातरम और इस्लाम
Updated: December 7, 2011
शंकर शरण घटना 30 दिसंबर 1939 की है। पांडिचेरी में योगी श्रीअरविन्द संध्याकाल अपने शिष्यों के साथ बैठे हुए थे। तभी किसी ने नए समाचारों…
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खुजली के पुराने मरीज
Updated: December 7, 2011
विजय कुमार खुजली एक जाना-पहचाना चर्म रोग है। कहते हैं कि यह किसी को हो जाए, तो आसानी से पीछा नहीं छोड़ता। छोड़ भी दे,…
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कविता / जनलोकपाल बिल
Updated: December 7, 2011
पाला है हमने अब भी ये आज़ार किसलिए गद्दीनशीन अब भी हैं गद्दार किसलिए लगता है मुझको दाल में है काला कुछ जरूर डरती है…
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