मैं एक सम्भ्रान्त परिवार से सम्बन्ध रखता हूं। हम दकियानूसी नहीं है। उदारवादिता और आधुनिकता हमारी पहचान है।
हम वैलेन्टाइन डे को बुरा नहीं मानते । कुछ मूढ़ रूढ़िवादी व्यक्तियों व संगठनों की तरह। वस्तुत: मैं तो समझता हूं कि हम एक हज़ार वर्ष से अधिक समय तक ग़ुलाम रहे उसका एक मात्र कारण था अपनी परम्पराओं तथा थोथी नैतिकता के साथ बन्धे रहना।
हर वर्ष की तरह इस बार भी हमने वैलटाइन डे बड़ी धूमधाम से मनाने का निश्चय किया। सारा परिवार रोमान्चित था। परिवार के सारे सदस्य अपने-अपने तौर पर अपनी तैयारी में लगे थे। सभी इस आयोजन को आनन्दमय बनाने के लिये सब कुछ कर रहे थे पर एक-दूसरे को कुछ नहीं बता रहे थे। बताते भी क्यों? प्यार का, दिल का मामला जो ठहरा। यदि इसका सब कुछ सब को पता लग जाये तो फिर मज़ा ही क्या है?
उस दिन मैं घर में सब से पहले उठा। तैयार होकर सब से पहले घर से निकल गया। मेरी एक पड़ोसन बड़ी सुन्दर थी। वह मुझे बहुत अच्छी लगती थी। सोचा अपना प्यार जताने का वैलन्टाइन डे से बढ़िया मौका नहीं है। सो हाथ में प्यार का चिर परिचित चिन्ह गुलाब लेकर मैंने उसका दरवाज़ा खड़का दिया।धत्त तेरे की। दरवाज़ा खुला तो दर्शन हुये उसके पतिदेव के। मेरे हाथ में गुलाब देखकर खुश होने की बजाये वह तो लगता है जल-भुन सा गया। बड़े बड़े दु:खी व कड़े भाव में बोला, ”क्या है?”
”हैप्पी वैलन्टाइन डे”, मैंने बुझे मन से कहा।
कुछ बड़ा धूर्त दकियानूस लगा। ज़ोर से दरवाज़ा बन्द करते हुये गुर्राया, ”थैंक यू”। लगा जैसे दिल में लगी आग की तपस बाहर निकाल रहा हो।
पर मुझे तो विश करनी थी उसकी सुन्दर पत्नि को, उसे नहीं। इसलिये फिर घंटी बजा दी। सोचा इस बार शायद वह स्वयं ही दर्शन देंगी। पर कहां? वही महाशय फिर आ धमके। और भी कठोर भाव से बोले, ”अब क्या है?”
उसके इस अभद्र भाव के बावजूद मैंने पूरी मुस्कान देते हुये पूछा ”टरीनाजी हैं?”
उसका भाव कुछ और भी सख्त हो गया। बोला, ”क्यों?”
”वस्तुत:”, मैंने बड़े शालीन भाव से कहा, ”मुझे उनको हैपी वैलन्टाइन डे कहना है।”
उसका पारा कुछ और भी चढ़ गया लगा। गुस्से में बोला, ”अपनी बीवी को बोलो हैप्पी वलन्टाइन डे”। पर मैंने गुस्सा नहीं किया। मैं सहल भाव से बोला, ”भइया, तुम लगता है इस दिन का महत्व नहीं समझते यह दिन अपनी पत्नी को विश करने का नहीं आप दूसरे को जिसे आप प्यार करते हैं। बीवी तो कर्वाचौथ का व्रत रखती है। उसे तो तब आशीर्वाद देते है, विश थोड़े करते है”
वह और भी उत्तोजित हो उठा बोला, ”तुम मेरे पड़ोसी हो और तुम्हारी उम्र का मैं लिहाज़ कर रहा हूं वरन् मैं पता नहीं तुम से क्या व्यवहार कर बैठता”। उसने मेरे मुंह पर दरवाज़ा इतने ज़ोर से दे मारा कि मुझे लगा कि वह टूट ही गया हो।
मैंने सोचा यह तो मुहूर्त ही खराब हो गया। वैलन्टाइन डे पर किस जाहिल से पाला पड़ गया। खैर मैंना अपना मूड खराब नहीं किया । यहां नहीं तो और घर सही। मैं तो दिन मनाने के लिये निकला हूं। चलो कहीं और सही।
अभी सोचता सड़क पर जा ही रहा था कि अब कहां जाऊं कि गुझे एक महिला अकेली आती दिख गई। वैलन्टाइन डे पर महिला अकेली और वह भी सुन्दर? मैंने देर नहीं की। उसके पास जाकर मुस्कराते हुये जड़ दिया, ”हैप्पी वैलन्टाइन डे”। उसने कुछ नहीं कहा और थैंक यू कह कर आगे बढ़ गई।
मैंने अपना प्यारा सा गुलाब आगे बढ़ाते हुये कहा, ”आप आज मेरे साथ वैलेन्टाईन डे मनायेंगी?”
”तुमने अपनी शक्ल देखी है?” महिला ने मेरी भावनाओं की तरह मेरे मुलायम गुलाब को अपने हाथ से परे कर दिया। गुलाब नीचे गिर गया। वह तेज़ी से आगे बढ़ गई।
मेरे पास शीशा नहीं था कि मैं दुबारा अपना मुंह देख लेता। मैंने कहा, ”अभी थोड़ी देर पहले घर से देख कर निकला था। बिल्कुल ठीक था”
”घर जाकर दुबारा देख लो”, यह कहकर वह तेज़ी से आगे बढ़ गई।
मेरा मनोबल कुछ गड़बड़ा गया। पहले तो सोचा घर जाकर अपना चेहरा एक बार फिर देख ही लूं। पर तभी एक नाई की दुकान दिख गई। उसके पास शीशे में मुस्कराते हुये अपना चेहरा देखा। मुझे बहुत आकर्षक लगा। ”मुझे मूर्ख बना गई”, मन ही मन सोचा और अपने लक्ष्य की ओर आगे प्रस्थान कर गया।
तब तक सायं भी ढलने लगी थी। एक पार्क में पहुंचा। बहुत से जोड़े एक दूसरे की बगल में हाथ डाल कर झूम रहे थे। हंस-खेल रहे थे। कई किलकारियां मार रहे थे। मुझे अपना अकेलापन अखर रहा था।
इधर-उधर घूमते मैंने देखा एक महिला एक वृक्ष के नीचे अकेली बैठी थी। मुझे लगा जैसे वह किसी का इन्तज़ार कर रही हो। अब साथी की तलाश तो मुझे भी थी। पास जाकर मैंने उसे वैलेन्टाईन डे की मुबारकबाद दी। वह मुस्कराई। मैंने सोचा काम बन गया। मुझे अपनी मन्ज़िल मिल गई।
मैंने पूछा, ”किसी का इन्तज़ार कर रही हो?”
वह मुस्कराई और बोली, ”आप बैठ सकते हैं।” और उसने एक ओर खिसक कर मेरे लिये जगह बना दी। भूखे का क्या चाहिये? दो रोटी। और वह मुझे मिल गई।
मैं उसके साथ बैठ गया। पहले तो मैंने उसे वह गुलाब थमा दिया जो अब तक तिरस्कृत मेरे हाथ में ही मुर्झाने लगा था। उसने सहर्ष स्वीकार कर थैंक यू कहा। मैंने सोचा मेरी मुराद तो पूरी हो गई। मैंने अपनी जेब से एक चाकलेट निकाली और उसे बड़े प्यार से भेंट कर दी। उसने ली और उसके दो हिस्से कर एक मुझे दे दिया और एक अपने मुंह में डाल लिया। बहुत स्वीट है तुम्हारी तरह – यह कहकर उसने अपनी आंखें मटका दीं। मुझ पर वैलेन्टाईन डे का सरूर चढ़ता लग रहा था।
मैंने कहा, ”कुछ चाट-पापड़ी का स्वाद लें?”
वह एक दम उठकर तैयार हो गई। बड़े चटकारे लेकर हमने चाट-पापड़ी का मज़ा उठाया। थोड़ा सा और घूमे। अनेक जोड़े एक-दूसरे की बगलों में हाथ डाल कर झूम रहे थे। मैंने सोचा मैं क्यों पीछे रहूं और अलग से दिखूं। मैंने भी उसकी बगल में हाथ डाल दिया। उसने मेरी ओर एक मोहक नज़र फैलाई और मेरी बगल में हाथ डाल दिया। उस दिन के खुमार में हम थोड़ा इधर-उधर घूमे।
अब भोजन का समय भी होने वाला था। भूख भी लग रही थी। मैंने पूछा, ”डिन्नर कर लें?”
”क्यों नहीं?” उसने फिर एक मोहक मुस्कान फैंकी। ”आपके साथ सौभाग्य रोज़ तो मिलेगा नहीं।”
मैं उसे एक बढ़िया रैस्तरां की ओर ले गया। रैस्तरां पहली मन्ज़िल पर था। ज्यों ही उसे पहली सीढ़ी पर पांव रखने केलिये आशिकाना अन्दाज़ में मैंने हाथ फैला कर इशारा किया, वह बोली, ”कोठे पर ले जाने से पहले कुछ पैसे तो मेरे पर्स में डाल दो।”
पहली मंज़िल पर जाने को कोठे पर जाने की संज्ञा देने की ठिठोली मेरे मन को भा गई। मैंने तपाक से एक एक हज़ार का नोट उसके पर्स में थमा दिया। थैंक यू कह कर उसने सीढ़ियां चढ़नी शुरू कर दी।
खाना बड़ा बढ़िया था। उसका बड़ा आनन्द उठाया। बाद में इस ठण्ड में भी हमने बड़ी स्वादिष्ट आइसक्रीम ही खाई। पर उससे भी वैलन्टाइन डे की गर्मजोशी में किसी प्रकार की ठण्डक न आई।
अब मेरा डे तो सफल हो गया था। मैंने सोचा पहली मुलाकात तो इतनी नज़दीकी तक ही सीमित रखी जाये। पहली ही मुलाकात में ज्यादा बढ़ जाना ठीक नहीं। आगे के लिये स्कोप रख लेते हैं। पहल मैंने ही की, ”अब चलें। आपके साथ बड़ा आनन्द आया। मेरा तो वैलन्टाई डे सफल हो गया।”
मैंने बिल दिया। बिल मोटा था। उस पर प्रभाव जमाने के लिये टिप भी मैंने दिल खोल कर दिया।
हम नीचे उतरे। उसकी बगल में हाथ डालकर मैंने कहा, ”थैंक यू। आपने तो मेरी शाम रंगीन कर दी। फिर मिलते रहना।” मैंने उसे अपना विज़िटिंग कार्ड थमा दिया। ”कहो तो कहीं छोड़ दूं?”
”नो, थैंक्स” कह कर प्यार भरे रोब से बोली, ”बस दो हज़ार रूपये और दे दो”।
अवाक्, मैंने पूछा, ”किस लिये?”
”मैं जब किसी को शाम को कम्पनी देती हूं तो यही चार्ज करती हूं”
”पर आज तो मैडम वैलन्टाइन डे है?”
”तभी तो कम रेट लगा रही हूं, वरन् तो ज्यादा मांगती”
मैं थोड़ा झुंझला गया। मैंने कहा, ”मैडम, मैं पैसे देकर वैलन्टाइन डे नही मनाता।”
”पर मैं मनाती हूं।” उसने थोड़ा तलखी से बोला। ”आप जल्दी से रूपसे निकाल दो वरन्ण्ण्ण्ण्”
मैं अकलमन्द निकला। इशारा समझ गया। मैं तो मौज-मस्ती मनाने आया था, तमाशा बनाने या बनने नहीं। आखिर मैं इज्ज़तदार आदमाी था। मुझे याद आया कल ही तो हमें अपनी बेटी के रिश्ते की बात करनी है। मैंने चुपचाप बुझे मन से एक-एक हज़ार के दो नोट उसके हाथ थमा दिये। एक प्यारी सी मुस्कान देकर उसने एक बार फिर थैंक यू कहा और चलती बनी।
मन बुझ सा गया। अब और घूमने का मन भी न रहा। रात के ग्यारह भी बज चुके थे।
घर पुहुचा तो ताला बन्द। घर में कोई नहीं। सामने मैदान में चहलकदमी करने लगा। थोड़ी देर बाद मेरे घर के सामने एक कार रूकी। मेरी धर्मपत्नी बाहर निकली। कार चलाने वाले का बड़े प्यार से बाई-बाई की और बिना दायें-बाये देखते घर का ताला खोलने लगी। मैं भी पीछे से आ गया। मैंने पूछा, ”रिंकी और विंकू नहीं आये?”
वह भी वैलन्टाइन डे मना रहे होंगे। ”दोनों इकट्ठे हैं न?” मैंने पूछा।
”तुम भी मूर्ख के मूर्ख ही रहे”, वह भड़क कर बोली। ”कभी बहन और भाई भी साथ वैलन्टाई डे मनाते हैं? रिंकी अलग होगी, विंकू अलग”।
”सॉरी, मैं तो भूल ही गया। पर तुम्हें याद है कि प्रात: रिंकी को उसके ससुराल वाले और लड़का आ रहा है? मैं तो इसलिये चिन्तित हूं।”
”तो क्या हुआ?” वह मुझे आश्वस्त करते हुये बोली। ”लड़का भी तो आज कहीं वैलन्टाई डे मना रहा होगा।”
मेरी चिन्ता दूर हो गई। हमने भी तो अपनी प्यारी बेटी केलिये एक सभ्य, सम्भ्रान्त और उदार मन परिवार ही तो चुना है।
– अम्बा चरण वशिष्ठ