लेख गाय पालन से देश के आर्थिक विकास को दी जा सकती है अतुलनीय गति

गाय पालन से देश के आर्थिक विकास को दी जा सकती है अतुलनीय गति

सनातन संस्कृति के अनुसार भारत में गाय को माता का दर्जा प्रदान किया गया है। माता अपने बच्चों का लालन पालन करती है, इसी प्रकार की संज्ञा गाय माता को भी दी गई है क्योंकि प्राचीन काल में भारत के ग्रामीण इलाकों में कई परिवारों का लालन पालन गाय माता के सौजन्य से ही होता रहा है। आज के खंडकाल में न्यूजीलैंड, डेनमार्क एवं स्विजरलैंड जैसे कुछ देशों ने अपनी अर्थव्यवस्था को गाय के दूध से निर्मित विभिन्न डेयरी पदार्थों का भारी मात्रा में पूरे विश्व को निर्यात कर अपनी अर्थव्यवस्थाओं को विकसित श्रेणी की अर्थव्यवस्था में बदल दिया है।  विश्व के एक कोने में बसा एक देश है न्यूजीलैंड, जिसकी कुल आबादी केवल 52 लाख है। इस देश का प्रत्येक नागरिक भारत के नागरिक से 25 गुना अधिक अमीर है। यह अलग थलग बसा हुआ देश है फिर भी इनके पास कुछ ऐसा है जो इन्हें इतना अमीर एवं विकसित देश बनाता है और वह पदार्थ है गाय माता का दूध। दुग्ध से निर्मित उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों में पहुंचाकर न्यूजीलैंड आज विकसित देशों की श्रेणी में शामिल हो गया है। न्यूजीलैंड की अर्थव्यवस्था को केवल मानव नहीं बल्कि गाय माता भी चलाती है। न्यूजीलैंड में मानव से ज्यादा गाय की संख्या है। न्यूजीलैंड में गाय की कुल आबादी 61 लाख से अधिक है।  भारत जनसंख्या की दृष्टि से आज विश्व में प्रथम स्थान पर पहुंच गया है और न्यूजीलैंड आकार में भारत से 12 गुना छोटा है एवं जनसंख्या की दृष्टि से 260 गुना छोटा है। परंतु, भारत केवल 597,000 टन डेयरी उत्पाद का निर्यात करता है और न्यूजीलैंड 18,772,000 टन डेयरी उत्पाद का निर्यात करता है। डेयरी उत्पाद के निर्यात से ही न्यूजीलैंड की अर्थव्यवस्था चलती है, इस देश के नागरिकों को अमीर बनाती है और देश को विकसित अवस्था में ले जाती है। न्यूजीलैंड में फोंटेरा नामक एक सबसे बड़ी कम्पनी है और यह कम्पनी कोआपरेटिव के क्षेत्र में किसानों द्वारा बनाई गई कम्पनी है। जिस प्रकार भारत में अमूल कम्पनी को विकसित किया गया है। न्यूजीलैंड की फोंटेरा नामक कम्पनी दुनियाभर के 30 प्रतिशत डेयरी उत्पाद का निर्यात करती है। इस कम्पनी के उत्पाद दुनिया के 140 देशों में बिकते हैं और यह कम्पनी 10,000 नागरिकों को सीधा रोजगार प्रदान करती हैं।  पूरे विश्व में आज भारत सबसे अधिक दूध उत्पादन करने वाला राष्ट्र बन तो गया है। परंतु, दुग्ध पदार्थों से निर्मित उत्पादों का निर्यात करने में भारत आज भी बहुत अधिक पीछे है। भारत में प्रतिवर्ष 20.90 करोड़ टन दूध का उत्पादन हो रहा है। अमेरिका में 10.27 करोड़ टन, चीन में 4.12 करोड़ टन, ब्राजील में 3.66 करोड़ टन, जर्मनी में 3.32 करोड़ टन, रूस में 3.23 करोड़ टन, फ्रान्स में 2.58 करोड़ टन और न्यूजीलैंड में 2.19 करोड़ टन दूध का उत्पादन हो रहा है। पूरे विश्व में 100 करोड़ से अधिक पशुधन है और भारत में 30.8 करोड़, ब्राजील में 23.2 करोड़, चीन में 10.2 करोड़ एवं अमेरिका में 8.9 करोड़ पशुधन है। भारत में पशुधन से दूध निकालने की क्षमता बहुत कम है जबकि अन्य विकसित देशों में नई तकनीकी को अपनाए जाने के कारण इस क्षेत्र में उत्पादकता तुलनात्मक रूप से बहुत अधिक है।   न्यूजीलैंड के कुल निर्यात में डेयरी उत्पादों के निर्यात का हिस्सा 23 प्रतिशत है। इसी प्रकार डेनमार्क की अर्थव्यवस्था भी डेयरी उत्पादों पर निर्भर है। डेनमार्क में कृषि के क्षेत्र से निर्यात किए जाने वाले उत्पादों में  डेयरी उत्पादों का हिस्सा 20 प्रतिशत है। डेनमार्क से मक्खन, पनीर एवं अन्य डेयरी उत्पाद 150 देशों को भारी मात्रा में निर्यात किए जाते हैं। स्विजरलैंड में भी कुल कृषि उत्पाद में डेयरी उद्योग का हिस्सा 20 प्रतिशत है।   ऐसा सामान्यतः कहा जाता है कि जो देश कृषि प्रधान होते हैं वे अन्य देशों जो उद्योग एवं सेवा क्षेत्र पर अधिक निर्भर होते हैं की तुलना में कम विकसित रहते हैं। परंतु, न्यूजीलैंड, डेनमार्क एवं स्विजरलैंड जैसे देशों के नागरिकों ने कृषि क्षेत्र पर अपनी निर्भरता बनाए रखते हुए और अधिकतम डेयरी उत्पादों के दम पर अपने देश को विकसित देश बना लिया है। न्यूजीलैंड की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का योगदान केवल 7 प्रतिशत है, परंतु न्यूजीलैंड से निर्यात किए जाने वाले प्रथम 10 उत्पादों में से 6 उत्पाद कृषि क्षेत्र से आते हैं, इनमे डेयरी उत्पादों का निर्यात सबसे अधिक है। कुल निर्यात का 60 प्रतिशत हिस्सा डेयरी उत्पाद सहित कृषि क्षेत्र से होता है। न्यूजीलैंड, डेनमार्क एवं स्विजरलैंड की अर्थव्यवस्था को गति देने में वहां के नागरिकों के साथ साथ गाय माता का भी अत्यधिक योगदान है।  केवल गायों की संख्या अधिक होने से अर्थव्यवस्था को बल नहीं मिलता है। इन गायों को हृष्ट पुष्ट रखना भी आवश्यक है। यह तभी सम्भव है जब किसानों को गाय पालन के लिए प्रोत्साहित किया जाए। 200 वर्ष पूर्व तक न्यूजीलैंड में एक भी गाय नहीं थी। परंतु, न्यूजीलैंड में चारा भरपूर मात्रा में उपलब्ध था। चूंकि न्यूजीलैंड भी एक ब्रिटिश कोलोनी बन गया था, अतः न्यूजीलैंड में चारे की भरपूर उपलब्धि को देखते हुए ब्रिटेन से गायें  लाकर यहां बसाई गई। इसके बाद से तो न्यूजीलैंड ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। कालांतर में वहां गाय सहित पशुधन की संख्या अपार गति से बढ़ती गई। वर्ष 1900 आते आते रेफ्रिजरेटर के अविष्कार के बाद से तो न्यूजीलैंड डेयरी उत्पादों का निर्माण करने लगा, हालांकि इसके पूर्व इस देश की निर्भरत कृषि उत्पादों पर ही अधिक थी, इन कृषि उत्पादों को यूरोपीयन देशों को बेचा जाता था। प्रथम विश्व युद्धकाल के दौरान ब्रिटेन के सैनिकों को डेयरी उत्पादों की अत्यधिक आवश्यकता थी और ब्रिटेन ने न्यूजीलैंड में डेयरी उत्पादों के उत्पादन को बढ़ावा दिया, इसके बाद से तो यहां के डेयरी उत्पाद लगभग पूरे विश्व में ही बेचे जाने लगे। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भी न्यूजीलैंड ने भारी मात्रा में डेयरी उत्पादों का ब्रिटेन को निर्यात किया था। उस समय ब्रिटेन के सहयोग से न्यूजीलैंड से निर्यात होने वाले कुल उत्पादों में डेयरी उत्पाद एवं भेड़ों का हिस्सा 90 प्रतिशत तक पहुंच गया था। न्यूजीलैंड में निर्मित डेयरी उत्पादों के लिए ब्रिटेन एक भरोसेमंद सबसे बड़ा बाजार था जहां न्यूजीलैंड के उत्पादों को बाजार मूल्य भी अच्छा मिलता था क्योंकि ब्रिटेन को उस समय पर खाद्य पदार्थों की सख्त आवश्यकता थी।  वर्ष 1955 में ब्रिटेन में न्यूजीलैंड के डेयरी उत्पादों का बाजार मूल्य कम होने लगा। इसके बाद न्यूजीलैंड के किसानों ने अपने डेयरी उत्पादों को बेचने के लिए नए बाजार की तलाश प्रारम्भ की। लेकिन इसके बाद से तो न्यूजीलैंड की आर्थिक स्थिति भी हिचकोले खाने लगी थी। परंतु, वर्ष 1984 आते आते न्यूजीलैंड में आर्थिक सुधार कार्यक्रम लागू किए गए। नागरिकों के लिए आय कर की दरें लगभग आधी, 66 प्रतिशत से 33 प्रतिशत कर दी गईं। कृषि क्षेत्र में विभिन्न उत्पादों को प्रदान की जाने वाली 4 प्रतिशत सब्सिडी को भी समाप्त कर दिया गया ताकि किसान अपने पैरों पर खड़े हो सकें एवं देश की आर्थिक स्थिति को सुधारा जा सके।  न्यूजीलैंड के किसानों ने कृषि उत्पादों पर प्रदान की जाने वाली सब्सिडी को हटाए जाने की चुनौती को स्वीकार किया एवं न्यूजीलैंड के डेयरी उद्योग एवं ऊन के उद्योग को अपनी मेहनत के दम पर एवं सरकारी नीतियों के चलते फिर से खड़ा करने में सफलता अर्जित की। 1983 में लाए गए आर्थिक सुधार कार्यक्रमों के बाद मीट एवं डेयरी उत्पादों पर मात्रा के बजाय गुणवत्ता पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा। अंतरराष्ट्रीय बाजार में न्यूजीलैंड के उत्पादों को प्रतिस्पर्धी बनाया गया और एक बार पुनः पूरे विश्व में डेयरी उत्पादों के निर्यात के न्यूजीलैंड ने महारत हासिल कर ली। भारत के किसानों को भी इस संदर्भ में न्यूजीलैंड के किसानों द्वारा प्राप्त की गई उक्त सफलता से सीख लेनी चाहिए। आज भारत की देशी गाय के दूध की महिमा पूरा विश्व समझ रहा है। भारत में भी गौ संवर्धन और गौशालाओं  का निर्माण किया जा रहा है। किंतु, गौ माता के प्रति श्रद्धा का नितांत अभाव दिखाई दे रहा है। भारत में एक बार पुनः गौ माता को ऊंचा स्थान देते हुए नई तकनीकी का उपयोग किया जाकर गाय के दूध के उत्पादों को पूरे विश्व में पहुंचाना होगा  ताकि भारत के आर्थिक विकास को और अधिक गति मिल सके एवं भारत के ग्रामीण इलाकों में रोजगार के अधिकतम अवसर निर्मित हो सकें।   प्रहलाद सबनानी 

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राजनीति अदाणी-हिंडनबर्ग प्रकरण में कांग्रेस हारी, सत्य जीता

अदाणी-हिंडनबर्ग प्रकरण में कांग्रेस हारी, सत्य जीता

– ललित गर्ग – अदाणी-हिंडनबर्ग प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट का फैसला कांग्रेस और साथ ही उन तत्वों को बड़ा झटका  एवं सबक है जो झूठ,…

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आर्थिकी भारत के लिए वर्ष 2024 भी सुनहरा वर्ष साबित होने जा रहा है

भारत के लिए वर्ष 2024 भी सुनहरा वर्ष साबित होने जा रहा है

विश्व के कुछ देश वर्ष 2024 में मंदी की मार झेल सकते हैं, यह कुछ अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों का आंकलन है। परंतु, वैश्विक स्तर पर अर्थव्यस्था के गिरने की सम्भावनाओं के बीच एक देश ऐसा भी है, जिस पर समस्त अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों, विशेष रूप से अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व बैंक, की नजरें टिकी है, वह है भारत। भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रति समस्त विदेशी वित्तीय संस्थान आशावान हैं कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को अब भारत ही सहारा देने की क्षमता रखता है।   अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अभी हाल ही में एक प्रतिवेदन जारी किया है। इसमें भारत के प्रति मुख्य रूप से तीन बातें कही गई हैं। प्रथम, भारत आज विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है। दूसरे, भारत का सकल घरेलू उत्पाद 6.3 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल करेगा। तीसरे, वर्ष 2024 में वैश्विक स्तर पर सकल घरेलू उत्पाद में भारत का योगदान 16 प्रतिशत का रहने वाला है। भारत आने वाले समय में पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था के विकास में एक इंजिन के रूप में अपना योगदान देने को तैयार है।  भारत ने वर्ष 2023 में विश्व में कम होती विकास दर के बीच भी आकर्षक विकास दर हासिल की है। क्योंकि, भारत सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में, विशेष रूप से आर्थिक क्षेत्र में, लगातार कई बड़े फैसले लिए हैं, जिनका प्रभाव अब भारतीय अर्थव्यवस्था पर स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा है। एक तो भारत ने आर्थिक व्यवहारों का डिजिटलीकरण किया है और इस क्षेत्र में पूरे विश्व को ही राह दिखाई है, इससे आर्थिक व्यवहारों की न केवल निपुणता बढ़ी है बल्कि लागत भी बहुत कम हुई है। दूसरे, केंद्र सरकार ने देश में आधारभूत संरचना को विकसित करने के लिए भारी भरकम राशि का पूंजीगत खर्च किया है। वित्तीय वर्ष 2022-23 में 7.50 लाख करोड़ रुपए की राशि इस मद पर खर्च की गई थी एवं वित्तीय वर्ष 2023-24 में 10 लाख करोड़ रुपए की राशि इस मद पर खर्च की जा रही है। भारत में सड़क, रेल्वे एवं स्वास्थ्य सेवाओं के विकास पर 12,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का पूंजीगत खर्च आगे आने वाले समय में किये जाने की योजना बनाई गई है। वर्ष 2017 से 2023 के बीच आधारभूत संरचना के विकास हेतु 70 लाख करोड़ रुपए की राशि का पूंजीगत खर्च किया गया था परंतु वर्ष 2024 से 2030 के बीच 143 लाख करोड़ रुपए की राशि का पूंजीगत खर्च किए जाने की योजना बनाई जा रही है। तीसरे, भारत में केंद्र सरकार ने गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले नागरिकों को कई योजनाओं के माध्यम से आर्थिक सहायता प्रदान करने की भरपूर कोशिश की है, जिसका परिणाम इस वर्ग की संख्या में भारी भरकम कमी के रूप में देखने को मिला है। और फिर, अब तो यह वर्ग मध्यम वर्ग की श्रेणी में शामिल होकर भारत में उत्पादों की मांग में वृद्धि करने में सहायक की भूमिका निभा रहा है, जिससे देश में ही विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन में भारी वृद्धि हो रही है।   इसी प्रकार, विश्व के सबसे बड़े ऑफिस काम्प्लेक्स का निर्माण भारत में गुजरात राज्य के सूरत शहर में किया गया है। इस ऑफिस काम्प्लेक्स में 4,500 से अधिक हीरा व्यवसाईयों के कार्यालय स्थापित किए गए हैं। इस काम्प्लेक्स में कच्चे हीरे के व्यापारियों से लेकर पोलिश हीरे की बिक्री करने वाली कम्पनियों के ऑफिस एक ही जगह पर स्थापित किए जाएंगे। सूरत डायमंड बोर्स बिल्डिंग के नाम से इस काम्प्लेक्स, जो 67 लाख वर्गफुट से अधिक के क्षेत्र में फैला है, का उद्घाटन दिसम्बर 2024 माह में भारत के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा सम्पन्न हुआ है। यह काम्प्लेक्स अमेरिका के रक्षा विभाग पेंटागन के मुख्यालय भवन से भी बड़ा है, पेंटागन के मुख्यालय को आज तक विश्व में सबसे बड़ा भवन माना जाता रहा है। इस तरह के कई व्यावसायिक केंद्र भारत में विकसित हो रहे हैं।  विश्व के अन्य देश मुद्रा स्फीति की समस्या से पिछले कुछ वर्षों से लगातार जूझते रहे हैं परंतु भारत ने इस समस्या पर भी नियंत्रण प्राप्त करने में सफलता हासिल की है। जुलाई 2023 में भारत में खुदरा महंगाई की दर 7.44 प्रतिशत थी जो अक्टोबर 2023 में घटकर 4.87 प्रतिशत पर नीचे आ गई है। अब तो शीघ्र ही भारतीय रिजर्व बैंक रेपो दर में कमी की घोषणा कर सकता है जिससे देश में ब्याज की दरें कम होना शुरू होंगी इससे निश्चित रूप से अर्थव्यवस्था में और अधिक तेजी की सम्भावना बनेगी। आगे आने वाले समय में भारतीय अर्थव्यवस्था को यदि किसी परेशानी का सामना करना पड़ता है तो वह आंतरिक समस्या न होकर वैश्विक स्तर की समस्या के कारण होगी। क्योंकि, कुछ देशों, विकसित देशों सहित में मंदी की सम्भावनाएं बन रही हैं। दूसरे, रूस यूक्रेन युद्ध, हम्मास इजराईल युद्ध, चीन का अपने पड़ौसी देशों से टेंशन, यूरोपीयन देशों के आपसी झगड़े, कुछ ऐसे बिंदु हैं जो भारत की विकास दर को विपरीत रूप से प्रभावित कर सकते हैं। यदि इन्हीं समस्त कारणों से कुछ विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित होती हैं तो भारत से विभिन्न उत्पादों का निर्यात भी कम होगा, आयात होने वाली वस्तुओं की लागत बढ़ेगी, इस प्रकार की समस्याएं खड़ी हो सकती हैं जो भारत को भी आने वाले समय में परेशान करें। दूसरे, कुछ प्राकृतिक कारण भी जैसे मानसून का उचित समय पर नहीं आना अथवा कम बारिश होना, जैसी कुछ समस्याएं भी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए परेशानी का कारण बन सकती हैं। अन्यथा पिछले लगभग 10 वर्ष का समय भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए स्वर्णिम काल कहा जाना चाहिए और आगे आने वाले कुछ वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था नई ऊचाईयों को छूने के लिए तैयार है। उदाहरण के लिए यह इतिहास में पहली बार होने जा रहा है कि भारतीय शेयर बाजार वर्ष 2016 से लेकर वर्ष 2023 तक लगातार 8 वर्षों तक निवेशकों को लाभ की स्थिति प्रदान करता रहा है। दूसरे, अमेरिकी वित्तीय संस्था लीहमन ब्रदर्स के वर्ष 2008 में टूटने के बाद भारत का निफ्टी एवं चीन का शंघाई शेयर बाजार 3000 के अंकों पर थे, परंतु आज भारत का निफ्टी 21800 अंकों के ऊपर पहुंच गया है और चीन का शंघाई शेयर बाजार अभी भी 3000 अंकों पर ही बरकरार है। लगभग समस्त देशों के निवेशक आज भारतीय शेयर बाजार के प्रति अत्यधिक भरोसा जताए हुए हैं और आज भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 60,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को पार कर गया है। 

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कविता रामलला का दर्शन कर ले बंदे

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हमारा भारत देश कभी आर्यावर्त या ब्रह्मावर्त के नाम से भी प्रसिद्ध था। यह ऋषियों, मुनियों और ईश्वर का साक्षात्कार करने वाले योगियों की पवित्र…

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राजनीति हमारा राष्ट्रीय पराक्रम का प्रतीक राम मंदिर

हमारा राष्ट्रीय पराक्रम का प्रतीक राम मंदिर

किसी भी राष्ट्र को तेजस्विता उसके तेजस्वी नेतृत्व से प्राप्त होती है। यदि नेतृत्व अभाहीन है या अपने आप को ही स्थापित करने के प्रति…

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लेख कम नहीं है समाज निर्माण में महिलाओं की भूमिका

कम नहीं है समाज निर्माण में महिलाओं की भूमिका

निशा दानूकपकोट, उत्तराखंड वर्ष 2023 राजनीतिक, आर्थिक, वैज्ञानिक और तकनीकी दृष्टिकोण से भारत के लिए ऐतिहासिक रहा है. धरती से लेकर अंतरिक्ष तक भारत ने…

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लेख दहेज प्रथा नहीं, कलंक है

दहेज प्रथा नहीं, कलंक है

सीमा मेहतापोथिंग, उत्तराखंडपिछले वर्ष के आखिरी महीने में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने साल 2022 का आपराधिक आंकड़ा जारी किया. जिसमें बताया गया है…

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राजनीति नये वर्ष में खोजने होंगे अनुत्तरित सवालों के जवाब

नये वर्ष में खोजने होंगे अनुत्तरित सवालों के जवाब

– ललित गर्ग- नया साल प्रारंभ हो गया है तो हर बार की तरह इस बार भी नई उम्मीदें, नया विश्वास एवं नया धरातल लाया…

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लेख इसरो वैज्ञानिकों की सफलता ने ग्रामीण किशोरियों को राह दिखाई

इसरो वैज्ञानिकों की सफलता ने ग्रामीण किशोरियों को राह दिखाई

सुनीता जोशीबैसानी, उत्तराखंडसाल 2024 के आगमन पर जब पूरी दुनिया के साथ साथ भारतवासी भी जश्न में डूबे हुए थे, ठीक उसी समय सतीश धवन…

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चिंतन विश्व में वेदों के प्रचार का श्रेय ऋषिदयानन्द और आर्यसमाज को है

विश्व में वेदों के प्रचार का श्रेय ऋषिदयानन्द और आर्यसमाज को है

–मनमोहन कुमार आर्य                लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व हुए महाभारत युद्ध के बाद वेदों का सत्यस्वरूप विस्मृत हो गया था। वेदों के सत्य अर्थों…

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लेख पक्षियों का कलरव एवं ऊर्जा का खत्म होना बड़ी चुनौती

पक्षियों का कलरव एवं ऊर्जा का खत्म होना बड़ी चुनौती

राष्ट्रीय पक्षी दिवस- 5 जनवरी, 2024– ललित गर्ग-देश एवं विदेशों में विलुप्त हो रही विभिन्न पक्षियों की प्रजातियों को बचाने के लिये वर्तमान में राष्ट्रीय…

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