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एक बेतिया (प. चम्पारण) वाले का बयान — आशीष कुमार ‘अंशु’एक बेतिया (प. चम्पारण) वाले का बयान — आशीष कुमार ‘अंशु’

lau-yadav-ramvilas-paswanबेतिया के अपने गजोधर भइया से अभी कुछ ही दिन पहले ही बातचीत हुई। वह वर्तमान राजनीति की स्थिति को लेकर बेहद चिन्तित दिखे। उन्होंने फोन से जो कहा, उस बातचीत के मुख्य हिस्से को आपके सामने रख रहा हूं।क्या बताएं सर अब चुनाव वगैरह में रुचि बिल्कुले खत्म हो गया है। किसका नाम लें, किसको छोड़े। सब एक ही जैसे हैं। कोई सज्जन नहीं है। वैसे भी सज्जन-सज्जन भाई नहीं होते, लेकिन चोर-चोर मौसेरे भाई साबित होते हैं। बेजाय हो जाती है जनता। अब देखिए ना रामविलास और लालू दोनों एक-दूसरे को बिहार में देखना नहीं चाहते थे। आज दोनों में दांत काटी रोटी हो गई है। साधु अपने जीजा (लालू प्रसाद) और दीदी (राबड़ी देवी) को छोड़कर कांग्रेस के साथ खड़े हो गए हैं। सिर्फ टिकट नहीं मिलने की वजह से। सर, जो सत्ताा के लिए अपनी बहन का नहीं हुआ, वह उम्मीद रखता है कि जनता उसकी होगी। दूसरी तरफ लालूजी का सोचिए, जो अपने साले का विश्वास नहीं जीत पाए। वे जनता का ‘विश्वास’ जीत रहे हैं।

बेतिया सीट पर इस बार कांटे की टक्कर है। सब धुरंधर योध्दा खड़े हैं। लेकिन हम सोचते हैं कि बैलेट पेपर पर एक ‘इनमें से कोई नहीं’ का विकल्प होता तो वहीं मोहर मार आते। साधु यादवजी कांग्रेस से खड़े हैं। उनके संबंध में क्या बताएं? उनको सब कोई जानता है। बिहार में कौन है, जो शाहबुद्दीन, सूरजभान, पप्पू यादव, साधु यादव को नहीं जानता हो। बिहार में रहने वाले व्यावसायियों के लिए तो ये नाम प्रात: स्मरणीय हैं।

लोकजनशक्ति पार्टी रामविलास पासवान की पार्टी है। इनकी पार्टी से उम्मीदवार हैं प्रकाश झा। ये नीतिश के खास लोगों में गिने जाते थे। कहा जाता है, बेतिया से इनकी टिकट पक्की थी। लेकिन यह भी सच है कि राजनीति में कुछ भी पक्का नहीं होता और यहां कोई किसी का सगा नहीं होता। प्रकाश झा वही हैं, जिन्होंने पिछली दफा लोकसभा चुनाव में निर्दलीय चुनाव लड़कर 25,700 मतों से अपनी जमानत जप्त कराई थी। वे अपने एनजीओ और जमीन संबंधी विवादों को लेकर चर्चा में रहे हैं। सर, बेतिया के लोगों का तो साफ मानना है कि वे एक नंबर का पैसा बनाएं हैं या दो नम्बर का, यदि उस कमाई का एक हिस्सा वे जिला के विकास पर खर्च कर रहे हैं तो भले आदमी हैं। पहली बार जब वे चुनाव लड़े थे तो बिल्कुल नौसिखुए थे। इस बार बेतिया के मुस्लिम बस्ती मंशा टोला के एक मस्जिद से जब उन्होंने चुनाव प्रचार का शंखनाद किया तो इस बात में कोई संदेह नहीं रहा कि अब वे भी राजनीति के दांव-पेंच अर्थात् वोट बैंक पॉलिटिक्स समझ गए हैं।

संजय जायसवाल बेतिया से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार हैं। संजय पार्टी प्रत्याशी कैसे बन गए, यह तो अरुणजी जेटली के भी लिए संशय का विषय है। राजनाथजी ने सोचा होगा कि हाल ही में पिताजी (स्व. मदन प्रसाद जायसवाल) की मृत्यु हुई है, सहानुभूति के वोट के सहारे संजय वैतरणी पार कर जाएंगे। लेकिन बेतिया की जनता बहूत कन्फ्यूजन में है। यह संजय भाजपा उम्मीदवार है या लालटेन का। हो सकता है संजय के बहुत से चाहने वाले बैलेट पर उन्हें लालटेन में तलाशें। और वहां लालटेन ना मिलने पर निराश होकर लौट आएं। ज्यादा मुश्किल उन भाजपाइयों के लिए भी है, जिन्होंने पार्टी छोड़कर जानेपर जायसवाल परिवार को पानी पी-पी कर कोसा है। संजय के पिता डा. मदन प्रसाद जायसवाल को भाजपा उम्मीदवार के तौर पर बेतिया की जनता ने सिर आंखों पर रखा, उस दौर में जब राज्य में राजद का बोलबाला था। विधानसभा में ‘इन्हीं ंसंजय’ को टिकट ना मिलने की वजह से ‘इन्हीं संजय’ के दबाव में आकर पिता ने राजद का दामन थामा था। और आज भाजपा ‘इन्हीं संजय’ को अपना उम्मीदवार बना रही है। इस फैसले से बिहार में पार्टी कितनी लाचार है, यही बात साबित होती है।
इन तीन बड़े उम्मीदवारों के बाद कुल जमा बचे दो ‘टक्कर’ में शामिल उम्मीदवार। एक गुप्ता फोटो स्टेट वाले शंभू प्रसाद गुप्ता। जो बहुजन समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार हैं। दूसरे हैं सीपीएम की तरफ से चुनाव लड़ रहे सुगौली विधानसभा क्षेत्र से पांच बार विधायक रहे रामाश्रय प्रसाद सिंह। यह उम्मीदवार द्वय चुनाव जीतने के लिए चुनाव लड़ ही नहीं रहे हैं। जमानत बचाने के लिए मैदान में है। यदि इन दोनों ने अपनी जमानत बचा ली, यही उनकी सबसे बड़ी जीत होगी। जय हो!!!

अब जदयू में नहीं है जॉर्ज फर्नांडिस : नीतिश कुमार

georgeगत 3 अप्रैल को बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतिश कुमार ने कहा कि पार्टी के निर्णय का उल्लंघन कर निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ने के निर्णय के कारण वरिष्‍ठ समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस अपने आप पार्टी से बाहर हो गए हैं।नीतीश कुमार ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, नीतीश कुमार ने कहा, “जो लोग पार्टी के निर्णय के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं, जदयू का उनसे कोई रिश्ता नहीं है।” “फर्नाडीज द्वारा निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने का निर्णय लिए जाने के बाद अब वह पार्टी में नहीं रह गए हैं। पार्टी का उनसे कुछ भी लेना-देना नहीं है।”

हाल ही में जनता दल (यू) के अध्यक्ष शरद यादव ने जॉर्ज को चिट्ठी लिखकर उनकी सेहत का हवाला देते हुए उनसे लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने का आग्रह किया। साथ ही पेशकश की गई थी कि आप पार्टी के टिकट पर राज्यसभा में चले जाएं। शरद यादव की इस चिट्ठी का जवाब जॉर्ज ने भी चिट्ठी लिखकर दिया। जॉर्ज मुज्जफरपुर से लोकसभा चुनाव लड़ने की जिद पर अड़े हुए हैं। इस चिट्ठी के मुताबिक जॉर्ज हमेशा जमीनी संघर्ष से जुड़े रहे हैं। ऐसे में उन्हें लोकसभा चुनाव न लड़कर राज्यसभा सदस्‍य बनना कतई मंजूर नहीं है।

देश के सबसे बडे समाजवादी शख्सियत को आज लोकसभा चुनाव लडने के लिए संघर्ष करना पड रहा है। ध्‍यातव्‍य हो कि ट्रेड यूनियन आंदोलन के नेता व पूर्व केन्‍द्रीय रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस को जनता दल (यू) ने लोकसभा चुनाव में उम्‍मीदवार बनाने से इनकार कर दिया है और उनकी जगह पर मुजफ्फरपुर से कैप्‍टन जयनारायण निषाद को पार्टी का प्रत्‍याशी घोषित किया है। इसी बीच फर्नाडीज ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मुजफ्फरपुर से चुनाव लड़ने का निर्णय किया है। फर्नान्डिस की घोषणा से मुजफ्फरपुर से जनता दल (यू) के आधिकारिक उम्मीदवार जयप्रकाश निषाद के खिलाफ पार्टी में विद्रोह हो गया है। जबकि जदयू की सहयोगी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कार्यकर्ताओं ने उनका समर्थन न करने की घोषणा कर दी है।

चौथे मोर्चे का मकसद… – अमलेन्दु उपाध्याय

lalu-ramvilas-mulayamआखिरकार यूपीए बिखर ही गया और मोर्चे बनने के दौर में एक और मोर्चा बन ही गया। उ0प्र0 में कांग्रेस से हनीमून खत्म होने के बाद मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी, लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनता दल और रामविलास पासवान के नेतृत्व वाली लोकजनशक्ति पार्टी ने एक मंच पर आकर यूपीए से इतर अपना मोर्चा बनाने की घोषणा की है। यूं तो चुनावी मौसम में रोज ही मोर्चे बन बिगड़ रहे हैं लेकिन उ0 प्र0-बिहार की क्रान्तिधर्मी धरती पर इस मोर्चे का अपना अलग ही महत्व है। हालांकि इस मोर्चे का शुध्द मकसद चुनाव बाद बनने वाले समीकरणों के मद्देनजर अवसरवादी राजनीति और उससे भी ज्यादा व्यक्तिगत असुरक्षा की भावना है।इस मोर्चे की धोषणा के साथ ही जो पहला संदेश गया है वह एकदम साफ है कि यूपीए नाम का गठबंधन बिखर गया है और अगर रह गया है तो उसका मतलब सिर्फ सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली कांग्रेस से रह गया है, जिसके प्रधानमंत्री पद के घोषित उम्मीदवार फिलहाल 16 मई 2009 तक मनमोहन सिंह हैं, बाद में समय तय करेगा कि कौन प्रधानमंत्री पद की दौड़ में है। दूसरा संदेश जिसकी गूंज साफ सुनाई दे रही है, यह है कि कांग्रेस हिन्दी पट्टी में मृत दल है जिसके पास अब चुनाव लड़ने के लिए 120 उम्मीदवार नहीं हैं।

जाहिर है कि जब यह चौथा मोर्चा देश भर में कुल जमा 120 सीटों पर ही चुनाव लड़ रहा है और लालू मुलायम दोनो ही कह चुके हैं कि वे प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में शामिल नहीं हैं तब इस मोर्चे का मकसद देश में सरकार बनाना तो नहीं है! फिर इसका उद्देश्य क्या है?

चौथे मोर्चे का पहला लक्ष्य जो समझ में आ रहा है, उससे साफ लगता है कि यह गठबंधन चुनाव के बाद बनने वाले समीकरणों में स्वतंत्र रास्ता बचा कर चलने का प्रयास है और तीसरे मोर्चे की बनने वाली संभावित सरकार में शामिल होने का विकल्प खुला रखने का प्रयास है। हालांकि इस मोर्चे के बनने से कांग्रेस काफी असहज स्थिति का सामना कर रही है और उसका सारा गणित बिगड़ गया है। भले ही अमर सिंह और अभिषेक मनु सिंघवी लाख दावा करें कि यह मोर्चा यूपीए का ही हिस्सा है लेकिन देखने वाले साफ देख रहे हैं कि यह मोर्चा यूपीए की कब्र खोदने के लिए ही बना है।

कांग्रेस के साथ जाने पर उ0प्र0 में मुलायम सिंह काफी नुकसान उठा चुके हैं और परमाणु करार पर उनकी कांग्रेस से दोस्ती का खमियाजा उन्हें भुगतना पड़ रहा है। दूसरा मुलायम सिंह देश की राजनीति से ज्यादा उ0प्र0 की राजनीति करते हैं और वहां उनका मुकाबला उनकी जानी दुश्मन मायावती के नेतृत्व वाली बसपा से है जिन्हें मुलायम की हरकतों से नाराज उनके पुराने मित्र, वामपंथियों ने प्रधानमंत्री पद का रातों रात दावेदार बना दिया था। मुलायम सिंह के सामने सबसे बड़ी चुनौती न भाजपा को रोकना है और न कांग्रेस को , उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती मायावती हैं। उ0प्र0 में राजनीति सिध्दांतों पर नहीं बल्कि व्यक्तिगत दुश्मनी पर चल रही है जहां मुलायम और मायावती एक दूसरे को एक सेकण्ड के लिए भी बर्दाश्त करने को तैयार नहीं हैं।

इसी प्रकार बिहार में राजनीति लालू बनाम नीतीश के इर्द-गिर्द धूम रही है और वहां भी लालू अभी नुकसान में थे। माकपा महासचिव सीताराम येचुरी की शरद यादव से मुलाकात के बाद लालू के कान खड़े हो गए और उन्होंने भी भांप लिया कि एनडीए लड़ाई से बाहर है और भाजपा थके हारे सिपाहियों की फौज है, यूपीए भी नुकसान में है, ऐसे में अगर वामपंथी दल अपनी कोशिशों में कामयाब हो गए तो तीसरे मोर्चे की सरकार बनने की स्थिति में नीतीश एनडीए से नाता तोड़कर तीसरे मोर्चे के साथ जा सकते हैं। इसी डर ने लालू मुलायम को एक होने और कांग्रेस से नाता तोड़ने के लिए मजबूर कर दिया है। चर्चा है कि लालू ने वामपंथियों से कहा है कि हमने आपका क्या बिगाड़ा है?

लालू मुलायम का दांव यह है कि किसी भी तरह मायावती और नीतीश को अगली सरकार में शामिल होने से रोका जाए। चूंकि उ0प्र0 में विधानसभा चुनाव होने में अभी तीन साल बाकी हैं और अगर मायावती केन्द्र में भी सत्ताा में शरीक हो गईं तो मुलायम सिंह के लिए काफी मुश्किल हो जाएगी, चूंकि तब मायावती के जुल्म मुलायम के परिवार और उनके कार्यकत्तर्ााओं पर बेइंतिहा बढ़ जाएंगे। इसी लिए मुलायम किसी भी तरह उ0प्र0 में जंग जीतना चाहते हैं और उसके लिए किसी से भी हाथ मिलाने को तैयार हैं। इसी तरह लालू के सामने समस्या यह है कि नीतीश ने बेशक बिहार में पटरी से उतरी कानून व्यवस्था पर काफी हद तक अंकुश लगाया है और विकास की तरफ भी ध्यान दिया है जिसे लालू ने अपने राज में तबाह और बर्बाद कर दिया था। मगर लालू के लिए सुकून अभी तक यह था कि उनके सारे कलंक पर उनका रेल मंत्रालय का कार्यकाल भारी पड़ गया। अब अगर नीतीश ने लालू को केन्द्र में आने से रोक दिया तो लालू की बिहार से हमेशा के लिए छुट्टी हो जाएगी।

इसी घबराहट का नतीजा है कि पासवान को एक क्षण के लिए भी बर्दाश्त न कर पाने वाले लालू ने उनसे हाथ मिला लिया है, और लालू मुलायम की हरचंद कोशिश यह है कि किसी भी तरह उनके मोर्चे की सीटें मायावती और नीतीश से ज्यादा आएं, ताकि जब मायावती का नाम प्रधानमंत्री के लिए चले तब चौथे मोर्चे की तरफ से रामविलास पासवान का नाम आगे बढ़ाया जा सके और मायावती व नीतीश को सरकार में शामिल होने से रोका जा सके। ऐसी स्थिति में कांग्रेस भी पासवान को नाम पर सहमत हो जाएगी क्योंकि मायावती के आगे बढ़ने से उसे देशभर में नुकसान होगा जबकि पासवान से यह खतरा नहीं होगा।

ऐसी स्थिति बनने पर वामपंथी भी तमाम कड़वाहट के बावजूद लालू मुलायम को ही तरजीह देना पसन्द करेंगे क्योंकि मायावती की अशिष्टता को बर्दाश्त करना किसी भी सभ्य आदमी के लिए मुश्किल है। अब देखना यह है कि क्या लालू मुलायम की जुगलबन्दी से रामविलास पासवान का नसीब जागेगा???

 

amalendus-photoअमलेन्दु उपाध्याय
द्वारा-एससीटी लिमिटेड
सी-15, मेरठ रोड इण्डस्ट्रियल एरिया
गाजियाबाद
मो0- 9953007626
(लेखक राजनीतिक समीक्षक हैं और पाक्षिक पत्रिका ‘प्रथम प्रवक्ता’ के संपादकीय विभाग में हैं।)

संजय दत्त की ’अमर’ सियासत – सरिता अरगरे

sanjay-duttबाज़ारवाद और भ्रष्टाचार के कारण अब नेता और अभिनेता के बीच का फ़र्क धीरे – धीरे खत्म होता जा रहा है। रुपहले पर्दे पर ग्लैमर का जलवा बिखेरने वाले अभिनेताओं को अब सियासी गलियारों की चमक-दमक लुभाने लगी है। गठबंधन की राजनीतिक मजबूरियों में अमरसिंह जैसे सत्ता के दलालों की सक्रियता बढ़ा दी है। हीरो-हिरोइनों से घिरे रहने के शौकीन अमर सिंह कब राजनीति करते हैं और कब सधी हुई अदाकारी,समझ पाना बेहद मुश्किल है। “राजनीतिक अड़ीबाज़” के तौर पर ख्याति पाने वाले अमर सिंह के कारण सियासत और फ़िल्मी दुनिया का घालमेल हो गया है।

जनसभाओं में लोग देश के हालात और आम जनता से जुड़े मुद्दों पर धारदार तकरीर सुनने के लिये जमा होते हैं, मगर अब चुनावी सभाओं में नेताओं के नारे और वायदों की बजाय बसंती और मुन्ना भाई के डायलॉग की गूँज तेज हो चली है। रोड शो में नेता को फ़ूलमाला पहनाने के लिये बढ़ने वाले हाथों की तादाद कम और अपने मनपसंद अदाकार की एक झलक पाने,उन्हें छू कर देखने की बेताबी बढ़ती जा रही है। युवाओं की भीड़ जुटाने के लिये सियासी पार्टियाँ फ़िल्मी कलाकारों का साथ पाने की होड़ में लगी रहती हैं।

समाजवादी पार्टी संजय दत्त की “मुन्ना भाई” वाली छबि को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। सुप्रीम कोर्ट से चुनाव लड़ने की इजाज़त नहीं मिलने पर संजय दत्त को पार्टी का महासचिव बना दिया गया है। पर्दे पर दूसरे के लिखे डायलॉग की बेहतर अंदाज़ में अदायगी करके वाहवाही बटोरने वाले “मुन्ना भाई” के टीवी इंटरव्यू तो खूब हो रहे हैं।मज़े की बात ये है कि हर साक्षात्कार में अमर सिंह साये के तरह साथ ही चिपके रहते हैं और तो और संजय को मुँह भी नहीं खोलने देते। उनसे पूछे गये हर सवाल का उत्तर “अमरवाणी” के ज़रिये ही आता है। शायद कठपुतली की हैसियत भी इससे बेहतर ही होती है, कम से कम वो अपने ओंठ तो हिला सकती है। लगता है यहाँ भी मुन्ना भाई के पर्चे अमरसिंह ही हल कर रहे हैं,बिल्कुल “मुन्ना भाई एमबीबीएस” फ़िल्म की तरह ही।

सुनील दत्त ने राजनीति में रहकर समाज सेवा का रास्ता चुना। नर्गिस दत्त ने भी राज्यसभा सदस्य रहते हुए राजनीति की गरिमा बढ़ाई। प्रिया ने भी अपने माता-पिता की सामाजिक और राजनीतिक हैसियत की प्रतिष्ठा कायम रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

संजय दत्त के मामले में यह कहानी उलट जाती है। बचपन से ले कर अब तक का उनका जीवन सफ़र बताता है कि वे आसानी से किसी के भी बहकावे में उलझ जाते हैं। इसी उलझाव ने इस “सितारा संतान” की आसान ज़िन्दगी को काँटो भरी राह में बदल दिया। मान्यता से विवाह के फ़ैसले की जल्दबाज़ी के बाद अमर सिंह जैसे दोस्तों का साथ उनका एक और आत्मघाती कदम साबित हो सकता है।

संजय दत्त कानून मंत्री हँसराज भारद्वाज का स्टिंग ऑपरेशन करने वाले होते ही कौन हैं। पत्रकारों द्वारा किये गये स्टिंग ऑपरेशन भी जब कानून के नज़्रिये से सही नहीं माना जा सकता। ऎसे में एक सज़ायाफ़्ता मुजरिम को ये हक किसने दिया ? क्या यह राजनीतिक ब्लैक मेलिंग के दर्ज़े में नहीं आता ?

संजय दत्त इसी तरह दूसरों की ज़बान बोलते रहे,तो जल्दी ही किसी बड़ी मुसीबत को घर बैठे निमंत्रण दे देंगे। अमर सिंह की मेहरबानी से दोनों बहनों के साथ उनके रिश्तों में इतनी खटास आ चुकी है कि अब की बार उनकी ढ़ाल बनने के लिये शायद ही कोई रिश्ता मौजूद रहे। मुसीबत के समय साया भी साथ छोड़ देता है, देखना होगा क्या तब भी मान्यता और अमर सिंह साये की तरह साथ रहेंगे …..?

भाजपा का धोषणा पत्र जारी

513297_bjp3001भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में  कहा है कि गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों को हर महीने दो रुपये प्रति किलोग्राम की दर से 35 किलो अनाज दिए जाएंगे।

 

राजधानी में शुक्रवार को पार्टी का घोषणापत्र जारी किया गया, जो विकास, सुरक्षा और सुशासन के इर्द-गिर्द घूमता है। इस अवसर पर भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी सहित पार्टी के सभी बड़े नेता मंच पर मौजूद थे। इस दौरान आडवाणी ने कहा कि पार्टी राम मंदिर और  रामसेतु के लिए प्रतिबद्ध है।

 

घोषणापत्र में भाजपा ने आतंकवाद से निपटने  के लिए पोटा जैसा कड़ा कानून लागू करने का वादा किया। पार्टी ने सत्ता में आने पर तीन लाख रुपए तक की आय को करमुक्त करने की बात कही है। महिलाओं के लिए यह सीमा साढ़े तीन लाख रुपये सालाना होगी। पार्टी का कहना है कि इससे साढ़े तीन करोड़ महिलाओं को लाभ पहुँचेगा।

भाजपा ने विदेशी बैंकों में जमा भारतीय धन का पता लगाने और उस धन को वापस लाकर देश के  कल्याण पर खर्च करने का वादा किया है।  इसके साथ ही देश में माओवादियों से निपटने के लिए छत्तीसगढ़ की तर्ज पर काम करने की बात कही है।

 

महिला सशक्तिकरण के लिए पार्टी मध्यप्रदेश में लोकप्रिय लाडली लक्ष्मी कार्यक्रम को पूरे देश में लागू करना चाहती है, जिसके तहत गरीबी रेखा से नीचे प्रत्येक महिला को बैंक खाते खोलने के लिए डेढ़ हजार रुपये और स्कूल जाने वाली सभी  बालिकाओं को मुफ्त साइकिल देने की बात कही है।

 

पार्टी ने कंप्यूटर के दामों में भारी कटौती करने  और पाँच वर्षों में सभी शैक्षिक संस्थानों में इंटरनेट का जाल बिछाने की घोषणा की है।

 

दार्जिलिंग से लोकसभा चुनाव लड सकते हैं जसवंत सिंह

jaswant20singhभाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री जसवंत सिंह पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग से पार्टी के लोकसभा प्रत्याशी हो सकते हैं।वरिष्‍ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने गुरुवार को गोरखालैंड जनमुक्ति मोर्चा के नेताओं और जसवंत के साथ अलग-अलग मुलाकात की।

पार्टी के पूर्वोत्तर प्रभारी एसएस अहलूवालिया ने कहा कि हमारे दार्जिलिंग से मौजूदा उम्मीदवार दावा शेरपा और गोरखालैंड जनमुक्ति मोर्चा के बिमल गुरुम ने आडवाणी से मुलाकात की। दोनों ने जसवंत को दार्जिलिंग से लड़ाने की रुचि दिखाई। इस संबंध में फैसला पार्टी की केन्द्रीय चुनाव समिति करेगी।

सूत्रों ने बताया कि भाजपा यहां से घोषित अपने प्रत्याशी दावा शेरपा को वापस ले लेगी। इसी बीच शेरपा ने जसवंत के लिए मैदान से हटने की स्वीकृति दे दी है। गौरतलब है कि दार्जिलिंग में बड़ी संख्या में सैनिक व पूर्व सैनिक मतदाता है इसका लाभ जसवंत सिंह को मिल सकता है। ध्‍यातव्‍य है कि भाजपा गोरखालैंड की मांग का पुरजोर समर्थन कर रही है।

चुनावी समर में काँग्रेस बनी रणछोड़दास

haathलोकसभा चुनावों को लेकर मध्यप्रदेश में भाजपा हर मोर्चे पर बढ़त लेकर बुलंद हौंसलों के साथ आगे बढ़ रही है, जबकि काँग्रेस टिकट बँटवारे को लेकर मचे घमासान में ही पस्त हो गई है। रणछोड़दास की भूमिका में आई काँग्रेस ने पूरे प्रदेश में थके-हारे नेताओं को टिकट देकर भाजपा की राह आसान कर दी है। एकतरफ़ा मुकाबले से मतदाताओं की दिलचस्पी भी खत्म होती जा रही है। काँग्रेस की गुटबाज़ी को लेकर उपजे चटखारे ही अब इन चुनावों की रोचकता बचाये हुए हैं। बहरहाल जगह-जगह पुतले जलाने का सिलसिला और हाईकमान के खिलाफ़ नारेबाज़ी ही इस बात की तस्दीक कर पा रहे हैं कि प्रदेश में काँग्रेस का अस्तित्व अब भी शेष है।

मध्यप्रदेश में अब तक लगभग सभी सीटों पर भाजपा और काँग्रेस उम्मीदवारों की घोषणा से स्थिति स्पष्ट हो चली है। चुनाव की तारीखों से एक महीने पहले उम्मीदवारों का चयन पूरा कर लेने का दम भरने वाली काँग्रेस अधिसूचना जारी होने के बावजूद होशंगाबाद और सतना सीट के लिये अभी तक किसी नाम पर एकराय नहीं हुई है। गुटबाज़ी का आलम ये है कि काँग्रेस के दिग्गजों को भाजपा से कम और अपनों से ज़्यादा खतरा है , लिहाज़ा वे अपने क्षेत्रों में ही सिमट कर रह गये हैं।

भाजपा ने 29 लोकसभा सीटों में से 28 और कांग्रेस ने 27 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। अपनी घोषणा के अनुसार भाजपा ने एक भी मंत्री को चुनाव मैदान में नहीं उतारा, अलबत्ता पूर्व मंत्री और दतिया के विधायक डा. नरोत्तम मिश्रा को गुना से ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ़ मैदान में उतारा है, जबकि कांग्रेस ने भाजपा को कड़ी टक्कर देने के लिए पांच विधायक , सज्जन सिंह वर्मा (देवास), सत्यनारायण पटेल (इंदौर), विश्वेश्वर भगत (बालाघाट), रामनिवास रावत (मुरैना) और बाला बच्चन (खरगोन) को चुनावी समर में भेजा है। मगर काँग्रेस दो मजबूत दावेदारों को भूल गई। प्रदेश चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष अजय सिंह सीधी से मजबूत प्रत्याशी माने जा रहे थे। चुनाव लड़ने के इच्छुक श्री सिंह पिछले तीन महीने से सीधी लोकसभा क्षेत्र में सक्रिय थे। इसी तरह विधानसभा में प्रतिपक्ष की नेता जमुना देवी के विधायक भतीजे उमंग सिंघार को भी लोकसभा का टिकिट नहीं मिला।

प्रदेश में काँग्रेस की दयनीय हालत का अँदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भोपाल सीट के लिए स्थानीय पार्षद स्तर के नेता भी टिकट की दावेदारी कर रहे थे। आखिरी वक्त पर टिकट कटने से खफ़ा पूर्व विधायक पीसी शर्मा तो बगावत पर उतारु हैं। विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी नहीं बनाने पर श्री शर्मा ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऎलान कर दिया था। लोकसभा चुनाव में उम्मीदवारी के वायदे पर मामला शांत हो गया था , लेकिन हाईकमान की वायदाखिलाफ़ी से शर्मा समर्थक बेहद खफ़ा हैं और ना सिर्फ़ सड़कों पर आ गये हैं , बल्कि इस्तीफ़ों का दौर भी शुरु हो चुका है।

काँग्रेस की कार्यशैली को देखकर लगता है कि तीन महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाने के बावजूद मिली करारी शिकस्त से प्रदेश काँग्रेस और आलाकमान ने कोई सबक नहीं लिया। अब भी पार्टी के क्षत्रप शक्ति प्रदर्शन में मसरुफ़ हैं। हकीकत यह है कि प्रदेश में काँग्रेस की हालत खस्ता है। लोकसभा प्रत्याशियों की सूची पर निगाह दौड़ाने से यह बात पुख्ता हो जाती है। उम्मीदवारों के चयन में चुनाव जीतने की चिंता से ज़्यादा गुटीय संतुलन साधने की कोशिश की गई है। इस बात को तरजीह दी गई है कि सभी गुट और खासकर उनके सरदार खुश रहें। विधानसभा चुनाव में भी टिकट बँटवारे की सिर-फ़ुटौव्वल को थामने के लिये ऎसा ही मध्यमार्ग चुना गया था और उसका हश्र सबके सामने है।इस पूरी प्रक्रिया से क्षुब्ध वरिष्ठ नेता जमुना देवी ने जिला अध्यक्षों की बैठक में साफ़ कह दिया था कि प्रदेश में पार्टी को चार-पाँच सीटों से ज़्यादा की उम्मीद नहीं करना चाहिए। हो सकता है ,उनके इस बयान को अनुशासनहीनता माना जाये लेकिन उनकी कही बातें सौ फ़ीसदी सही हैं। सफ़लता का मीठा फ़ल चखने के लिए कड़वी बातों को सुनना – समझना भी ज़रुरी है , मगर काँग्रेस फ़िलहाल इस मूड में नहीं है।

-सरिता अरगरे

मौका है बदल डालो, अब नहीं तो कब…????

stampपूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने देश के मतदाताओं से सही उम्मीदवार को वोट देने का आग्रह किया है। मतदान को सबसे बड़ा अवसर बताते हुए डॉ. कलाम ने कहा है कि हमारे द्वारा चुने गये प्रतिनिधि अगले पाँच साल के लिये देश के भाग्य का फ़ैसला लेने के हकदार होते हैं। उन्होंने मताधिकार को पवित्र और मातृभूमि के प्रति ज़िम्मेदारी बताया है।

हममें से ज़्यादातर ने नागरिक शास्त्र की किताबों में मताधिकार के बारे में पढ़ा है। मतदान के प्रति पढ़े-लिखे तबके की उदासीनता के कारण राजनीति की तस्वीर बद से बदतर होती जा रही है। हर बार दागी उम्मीदवारों की तादाद पहले से ज़्यादा हो जाती है। भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे नेता पार्टी की अदला-बदली करते रहते हैं। राजनीतिक दलों में वंशवाद की बेल पुष्पित-पल्लवित हो रही है आम नागरिक मुँह बाये सारा तमाशा देखता रहता है। प्रजातंत्र में मतदाता केवल एक दिन का “राजा” बनकर रह गया है। बाकी पाँच साल शोषण, दमन और अत्याचार सहना उसकी नियति बन चुकी है।

यह राजनीति का कौन सा रुप है, जो चुनाव के बाद सिद्धांत, विचार, आचरण और आदर्शों को ताक पर रखकर केवल सत्ता पाने की लिप्सा में गठबंधन के नाम पर खुलेआम सौदेबाज़ी को जायज़ ठहराता है ? चुनाव मैदान में एक दूसरे के खिलाफ़ खड़े होने वाले दल सरकार बनाने के लिये एकजुट हो जाते हैं। क्या यह मतदाता के फ़ैसले का अपमान नहीं है? चुनाव बाद होने वाले गठबंधन लोकतंत्र की धज्जियाँ उड़ाते दिखाई देते हैं।

सरसरी तौर पर प्रत्याशी तो कमोबेश सभी एक से हैं और आपको बस मशीन का बटन दबाना है। मतदाता मजबूर है राजनीतिक पार्टियों का थोपा उम्मीदवार चुनने को। जो लोग जीतने के बाद हमारे भाग्य विधाता बनते हैं, उनकी उम्मीदवारी तय करने में मतदाता की कोई भूमिका नहीं होती।

राजनीतिक दलों को आम लोगों की पसंद-नापसंद से कोई सरोकार नहीं रहा। उन्हें तो चाहिए जिताऊ प्रत्याशी। वोट बटोरने के लिये योग्यता नहीं जातिगत और क्षेत्रीय समीकरणों को तरजीह दी जाती है। अब तो वोट हासिल करने के लिये बाहुबलियों और माफ़ियाओं को भी टिकट देने से गुरेज़ नहीं रहा। सरकार बनाने के लिये ज़्यादा से ज़्यादा सीटें जीतने की नहीं कबाड़ने की जुगाड़ लगाई जाती है। नतीजतन लाखों लगाकर करोड़ों कमाने वालों की तादाद में लगातार इज़ाफ़ा हो रहा है। सत्ता किसी भी दल के हाथ में रहे, हर दल का नेता मौज लूटता है। अराजकता का साम्राज्य फ़ैलने के लिये हमारी खामोशी भी कम ज़िम्मेदार नहीं।

लाख टके का सवाल है कि इस समस्या से आखिर निजात कैसे मिले? लेकिन आज के इन हालात के लिये कहीं ना कहीं हम भी ज़िम्मेदार हैं। हम गलत बातों की निंदा करते हैं लेकिन मुखर नहीं होते, आगे नहीं आते। चुनाव हो जाने के बाद से लेकर अगला चुनाव आने तक राजनीति में आ रही गिरावट पर आपसी बातचीत में चिन्ता जताते हैं, क्षुब्ध हो जाते हैं। मगर जब बदलाव के लिये आगे आने की बात होती है, तो सब पीछे हट जाते हैं। हमें याद रखना होगा कि लोकतंत्र में संख्या बल के मायने बहुत व्यापक और सशक्त हैं। इसे समझते हुए एकजुट होकर सही वक्त पर पुरज़ोर आवाज़ उठाने की ज़रुरत है। अपने राष्ट्रीय और सामाजिक दायित्व को समझना ही होगा।

सब जानते हैं और मानते भी हैं कि लोकतंत्र की कमजोरियाँ ही बेड़ियाँ बन गई हैं। यही समय है चेतने, चेताने और चुनौतियों का डट कर मुकाबला करने का…। प्रजातंत्र को सार्थक और समर्थ साबित करने के लिये हमें ही आगे आना होगा। इस राजनीतिक प्रपंच पर अपनी ऊब जताने का यही सही वक्त है। वोट की ताकत के बूते हम क्यों नहीं पार्टियों को योग्य प्रत्याशी खड़ा करने पर मजबूर कर देते?

भोपाल के युवाओं ने बदलाव लाने की सीढ़ी पर पहला कदम रख दिया है। शहीद भगत सिंह की पुण्यतिथि पर आम चुनाव में मतदान और मुद्दों पर जनजागरण के लिए “यूथ फ़ॉर चेंज” अभियान की शुरुआत की गई। अभियान का सूत्र वाक्य है – ‘वोट तो करो बदलेगा हिन्दुस्तान।’ इसमें वोट डालने से परहेज़ करने वाले युवाओं को स्वयंसेवी और सामाजिक संगठनों की मदद से मतदान की अहमियत समझाई जाएगी।

दौड़, हस्ताक्षर अभियान, मोमबत्ती जलाने जैसे अभियान कारगर नहीं रहे हैं। हमें अपने आसपास के लोगों से निजी तौर पर इस मुद्दे पर बात करना चाहिये। इस मुहिम को आगे ले जाने के लिये लोगों को प्रोत्साहित करना चाहिए। उन्हें मतदान केन्द्र पर जत्थे बनाकर पहुँचने के लिये उत्साहित करना होगा।

यहाँ यह बताना बेहद ज़रुरी है कि इस बार चुनाव आयोग ने मतदान केन्द्र पर रजिस्टर रखने की व्यवस्था की है, जिसमें वोट नहीं डालने वाले अपना नाम-पता दर्ज़ करा सकते हैं। याद रखिये बदलाव एक दिन में नहीं आता उसके लिये लगातार अनथक प्रयास ज़रुरी है। व्यक्तिगत स्तर पर हो रहे इन प्रयासों को अब व्यापक आंदोलन की शक्ल देने का वक्त आ गया है। मौका है बदल डालो। हमारे जागने से ही जागेगा हिन्दुस्तान, तभी कहलायेगा लोकतंत्र महान ….।

-सरिता अरगरे

53, प्रथम तल, पत्रकार कॉलोनी
माधव राव सप्रे मार्ग
भोपाल 462003

वरुण को लेकर राजनीति गरमाई, एटा जेल स्थानांतरित

varun-gandhi1उत्तर प्रदेश के पीलीभीत से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवार व मेनका गांधी के पुत्र वरुण गांधी को मंगलवार देर रात सुरक्षा कारणों की वजह से पीलीभीत से एटा जेल स्थानांतरित कर दिया गया। दूसरी तरफ वरुण गांधी ने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत की गई गिरफ्तारी को बुधवार को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है।

वरुण के वकील व पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने प्रधान न्यायाधीश के. जी. बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के सामने कहा कि राज्य सरकार उनके मुवक्किल को अवैध ढंग से कैद में रखे हुए है। पीठ इस बाबत गुरुवार को सुनवाई करने की बात कही है।

दूसरी तरफ प्रदेश के पुलिस महानिदेशक विक्रम सिंह ने लखनऊ में संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि वरुण की जान को किसी तरह का खतरा नहीं है। उन्हें कानून-व्यवस्था की स्थिति को देखते हुए एटा जेल भेजा गया है।

गौरतलब है कि बुधवार सुबह खबरें आई थीं कि वरुण अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा शकील के निशाने पर हैं। और उसने राशिद मलबारी को वरुण की सुपाड़ी दी है।

खबर है कि पुलिस ने मलबारी को कर्नाटक के मैंगलोर में गिरफ्तार किया है। इस बीच वरुण से मिलने एटा जेल पहुंची मेनका गांधी ने मायावती सरकार की उनके ऊपर रासुका लगाने की आलोचना की और इसे गलत करार दिया। साथ ही उन्होंने वरुण को एटा जेल स्थानांतरित करने को भी अनुचित बताया।

भाजपा राजनाथ सिंह ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि वरुण के साथ जो कुछ हो रहा है वह दुर्भाग्यपूर्ण है। भाजपा इसकी निंदा करती है।

राष्ट्रीय पुनर्निर्माण सम्मेलन से उपजे चुनावी मुद्दे- ब्रजेश झा

pun21पंद्रहवीं लोकसभा चुनाव की बयार देशभर में है। लेकिन, सप्ताह भर पहले तक राजनीतिक पार्टियों के बीच मुद्दा का टोटा छाया हुआ है। ऐसे समय में राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संयोजक के. एन. गोविंदाचार्य वजनी बातों को समेट कर मुद्दा बनाने की जुगत कर रहे हैं।

 

 राजधानी में 24 मार्च को आयोजित राष्ट्रीय पुनर्निर्माण सम्मेलन में उन्होंने कुछ मुद्दे उठाए, जो अब चुनाव का प्रमुख मुद्दा बनता दिख रहा है।

 

राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन की ओर से आयोजित एक दिवसीय सम्मेलन में गोविंदाचार्य ने कहा कि आज जनता के पास विकल्प का घोर अभाव है। जिससे लोकतंत्र को खतरा है। ऐसी स्थिति में जनता के पास यह अधिकार होना चाहिए कि चुनाव में खड़े प्रत्याशी पसंद न आने के बावजूद वे लोग मतदान कर सकें। लेकिन, इसके लिए वोटिंग मशीन (ईवीएम) में तमाम बटनों के बीच नोटा यानी (इनमें से कोई प्रत्याशी उचित नहीं) का बटन लगा होना चाहिए। समय का तकाजा है कि स्थानीय स्तर पर जनता स्वयं आगे आकर अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए नोटा की मांग करे।

 

सम्मेलन में देशभर से इकट्ठा हुए कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए गोविंदाचार्य ने कहा था कि स्विस बैंक व अन्य विदेशी बैंकों में भारतीय नेताओं व नौकरशाहों के करीब 70 लाख करोड़ रुपये की अवैध राशि जमा है। जनता इस बात से अनभिग्य है। हमारा कर्तव्य है कि उन्हें सही बातों की जानकारी दें, ताकि जनता अपने प्रतिनिधियों इस बाबत सवाल- जवाब कर सके। हालांकि यह बाद पहले से ही कुछ पार्टियां उठा रही थीं, लेकिन यह चुनावी मुद्दा बनता नजर नहीं आ रहा था। 24 मार्च के बाद से फिजा बदलने लगी है। निश्चित रूप से इसका रंग और भी गाड़ा होगा।

 

उन्होंने कहा, राजनीतिक पार्टियां विकास की बात कर वोट पाने का अधिकार जता रहीं है। लेकिन, हम पाते हैं कि विकास की अवधारणा मानव केंद्रीत होकर रह गई है। जबकि, यह प्रकृति केंद्रीत होनी चाहिए। गंगा-यमुना की कीमत पर विकास की बातें हो रहीं है। आप कल्पना करें यदि ये नदियां नहीं रहेंगी तो देश का क्या होगा ?

 

यहां गोविंदाचार्य ने राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि चुनाव के दौरान वे अपने-अपने क्षेत्र में इन बातों को जोर-शोर से उठाने की कोशिश करें।

 

 सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि हिस्सा लेने आए पूर्व चुनाव आयुक्त जी.वी.जी.कृष्णमूर्ति ने ठेठ शब्दों में कहा, यह सच है कि आज जनता के पास विकल्प का अभाव है। राजनीतिक पार्टियां कहती है कि हमारा गुंडा विपक्षी पार्टी के गुंडा से अच्छा है। इसलिए हमारे गुंडे को वोट दें। इसके बावजूद चुनाव सुधार तो संविधानिक प्रक्रिया है। यह संविधान बदलकर ही किया जा सकता है। चुनाव आयोग का काम संविधान व कानून के अनुसार चुनाव कराना है।

 

ऐसे में साफ है कि चुनाव सुधार की बात करने वाले गोविंदाचार्य को व्यापक आंदोलन चलाना होगा। सम्मेलन में आए लोगों ने कहा कि गोविंदजी हमारे लिए एक उम्मीद हैं। वे जिस बदलाव की बात कर रहे हैं, उसके लिए व्यवस्था से सीधी लड़ाई लड़नी होगी और इसके लिए हम तैयार हैं। अब सही समय उन्हें ही तय करना है कि जयप्रकाश नारायण की तरह वे मैदान में उतरने के लिए कब तैयार होते हैं।

जेटली ने किया उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत

arunjaitleyभाजपा के प्रवक्ता अरूण जेटली ने मंगलवार को पत्रकार वार्ता में कहा कि संजय दत्त को चुनाव लड़ने के अयोग्य ठहराए जाने के उच्चतम न्यायालय के निर्णय का पार्टी स्वागत करती है। श्री जेटली ने कहा कि इस फैसले ने एक स्वस्थ लोकतंत्र की पंरपरा कायम की है।श्री जेटली ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के इस फैसले से लोगों के मन में लोकतंत्र के प्रति विश्वास पैदा होगा साथ इस निर्णय से ऐसे बाहुबलियों को भी झटका लगेगा जो चुनाव लडने की मंशा रखते है।

गौरतलब है कि फिल्म अभिनेता लखनऊ से समाजवादी पार्टी के लोकसभा प्रत्याशी संजय दत्त अब चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। मंगलवार को उच्चतम न्यायालय ने संजय दत्त की चुनाव लड़ने सम्बंधी याचिका को खारिज कर दिया है।