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व्यंग्य/सशक्त उम्मीदवार का बायोडाटा

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imagesकल सुबह ही मैं हाथ से मिली दाल को हाथी के दूध से बने घी का तड़का लगाने की तैयारी कर ही रहा था कि दरवाजे पर जोर-जोर की ठक-ठक हुई। साला तड़के का तड़के ही सारा मजा किरकिरा कर दिया। इससे पहले कि अनमने से आने वाले को कोसता उठता कि दरवाजे पर पहले से भी ज्यादा जोर की ठक-ठक हुई। लगा, जो भी हो बंदा दरवाजा तोड़कर ही जैसे दम लेगा। कड़छी वैसे ही पतीले में छोड़ मैं इस डर से रसोई से उठ कर बाहर आ गया कि अगली बार बंदा दरवाजा न खोलने पर सच्ची को दरवाजा ही न तोड़ दे। कमरा किराए का होता तो किस मुए को स्यापा था। मैंने दरवाजा खोलते कहा, ‘दरवाजा खोलता हूं भैया, खोलता हूं। इतने उतावले क्यों हुए जा रहे हो! कभी तड़के वाली दाल नहीं देखी है क्या! यार, दरवाजा मेरा है, मेरे मकान मालिक का नहीं। अब मैंने यह कमरा खरीद लिया है। मकान मालिक का होता तो तेरे साथ मैं भी दरवाजे पर दो लात जमाता। मकान मालिक को तो कभी जमा नहीं सका।’

दरवाजा खोला तो सामने होनहार नेता की डे्रस पहने सड़े दांतों के नीचे बेदर्दी से पान दबाए अपने मुहल्ले के श्री चार सौ तीस! इसी तरह तरक्की करते रहे तो चार सौ चालीस होते हफ्ता न लगे। मैंने उन्हें देखते ही सारा गुस्सा अपनी जेब में थूकते पूछा,’ और भैया जी कैसे हो?”ठीक हूं। एक काम था। कर दो जिंदगी भर तुम्हारा अहसान न भूलूं।’ कह उन्होंने दोनों हाथ जोड़े।

‘न भैया जी, न, बिन हाथ जोड़े कहो! एक नहीं सौ काम कहो। आपकी आज्ञा हो तो चूल्हा बंद कर आता हूं।’

‘छोड़ो यार चूल्हा वूल्हा!क्या पका वका रहे हो?’

‘ईमानदार लोग इस देश में पका क्या सकते हैं भैया जी?’

‘पर खुशबू तो पूरे मुहल्ले में छाई है यार तुम्हारी रसोई की।’

‘चुनाव के दिन हैं सो बस जरा यों ही..’

‘अमा यार! मेरा थोड़ा सा काम कर दो बस! जीतने के बाद सालों साल ऐसी ही खूशबू से दिन रात तुम्हारी रसोई भरे रखूंगा।’ कह भैया जी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा तो कंधा टूटते टूटते बचा।

‘मतलब भैया जी!!!!’

‘पार्टी हाइकमानों को टिकट के लिए मुझे अपना बायोडाटा भेजना है।’

‘तो मैं क्या कर सकता हूं भैया जी आपके लिए?’ कहना तो चाहता था कि चोर उच्चकों का बायोडाटा बना मैं अपनी लेखनी को कलंकित नहीं करना चाहता। पर चुप रहा। आ बैल मुझे मार कम से कम मैं नहीं कहने वाला।

‘यार तेरी कलम में वो जादू है कि….बस, मेरा धांसू सा बायोडाटा बना दे। ऐसा कि किसी भी पार्टी की हाईकमान उस बायोडाटे को देख वाह! वाह!! कर उठे। सबमें मुझे टिकट देने के लिए होड़ लग जाए। बस!!’

‘आपका बायोडाटा बिन लिखे भी तो सब जानते हैं, ऐसे में बायोडाटा लिख कर देने की जरूरत क्या भैया जी! आपकी आज्ञा हो तो गैस ऑफ कर आता हूं। पतीला जल न जाए।’ मैं रसोई की ओर मुड़ने को हुआ तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ते कहा,’ छोड़ यार पतीला-वतीला। एक घिसे पतीले का क्या! मेरा बायोडाटा यहां से वहां तक कौन नहीं जानता पर साले ये पार्टी वाले हैं कि इनको लिखे पर ही विश्वास होता है। इनको बायोडाटा कागज पर उतरा देख ही उम्मीदवार की उम्मीदवारी पर यकीन होता है। अगर अबके मुझे टिकट मिल गया न तो तेरा घर पतीलों से भर दूंगा। टाइम बिलकुल थोड़ा बचा है। जितनी जल्दी हो सके मेरा बायोडाटा बना दे प्लीज!’ कह उन्होंने मेरे पांव पकड़ लिए।

‘तो क्या नीला पीला लिखना है आपका बायोडाटा भैया जी!’ मैंने पूछा तो भैया जी ने अपनी सदरी के कॉलर खड़े किए और मूछों पर ताव देता कहने लगे, ‘हां, लिखना कि मेरे पास गैर लाइसेंसी हथियार इतने हैं कि अपने चुनाव क्षेत्र तो अपने, अपनी पार्टी के हर चुनाव क्षेत्र के उम्मीदवारों के चुनाव क्षेत्र में हथियारों की कमी न आने दूं।
मेरे खानदान का तबसे ही इस चुनाव क्षेत्र में खौफ रहा है जबसे ये चुनाव क्षेत्र बना है।

हमारे खानदान ने तबसे ही भ्रष्टाचार के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जब भ्रष्टाचार का कोई नाम भी नहीं जानता था।

झूठ, मक्कारी, फरेब मुझे विरासत में मिले हैं।

मैं उस जाति से बीलांग करता हूं जिस जाति के इस चुनाव क्षेत्र में सबसे अधिक वोट हैं। जातीय समीकरण का प्रामाणिक ब्योरा विश्वास न हो तो बायोडाटे के साथ नत्थी कर रहा हूं।

मैं इस इलाके के जितने भी टिकट के लिए हाथ पांव मार रहे हैं उन सबमें सबसे अधिक बार जेल के शोभा बढ़ा चुका हूं। सच कहूं तो अपनी रात जेल में कटती है और दिन ठेके पर।

मेरे खिलाफ इस चुनाव क्षेत्र की पंचायत से लेकर हाई कोर्ट तक सैंकड़ों मुकद्दमे दर्ज हैं, पर गर्व की बात कि एक भी केस में मुझे सजा सुनाने की हिम्मत किसी भी कोर्ट को नहीं हुई।

‘मैंने अपने चुनाव क्षेत्र के सैंकड़ों प्रदर्शनों की अगुवाई की है। इस चुनाव क्षेत्र के हर चौराहे पर जाम लगाया है। हर मुहल्ले में धरने के लिए मैंने दरी बिछाई है।

मेरे पास इतनी काली संपत्ति है कि मैं पार्टी से टिकट के अतिरिक्त और कुछ न लूंगा। मेरे पास इतने लठैत हैं कि पार्टी को मैं हजारों लठैत सप्लाई कर सकता हूं, बिना किसी शुल्क के, बिना कसी देर के।

हमारे खानदान का पूरे इलाके में इतना दबदबा है कि मैं जहां कहूं मेरे चुनाव क्षेत्र के मतदाता वहीं वोट डालेंगे। कहीं और डालें तो हाथ न तोड़ दूं। हाथ किसको प्यारे नहीं होते भैया! क्या तुम्हें प्यारे नहीं?’

‘हैं! एक कम्बख्त ले दे कर हाथ ही तो हैं मेरे पास!’

‘आगे बायोडाटे में लिखना कि अगर मुझे पार्टी टिकट देती है तो मैं पार्टी की हर तरह से सेवा करने को तैयार हूं। अपने बड़े बड़े माफियाओं से सीधे संपर्क हैं।’ कह उन्होंने मेरी ओर मुस्कुराते कुछ देर देख पूछा,’ तो कब जैसे आऊं बायोडाटा लेने? आध घंटे बाद आया। दो बजे दिल्ली कूच करना है हर हाल में।’वे ऐसे मेरे यहां से उठे कि जैसे अपने घर नहीं, संसद जा रहे हों।

क्या आपको कभी कभी ऐसा नहीं लगता कि ये पढ़ा लिखा होना भी सच्ची को भाई साहब एक पंगा है।

-अशोक गौतम
गौतम निवास, अप्पर सेरी रोड
नजदीक मेन वाटर टैंक, सोलन-173212 हि.प्र.

व्यंग्य /गंगा में चुनावी दंगा

चुनाव प्रचार की पिछले कल की थकी सांझ गंगा में ………..हाथ और हाथी चुनाव के वक्त सौभाग्य से एक साथ कहीं और डुबकी लगती न देख गंगा में डुबकी लगाने पधारे। गंगा ने बहुत रोका, पर नहीं माने तो नहीं माने। दोनों के जनता से झूठे वादे करके बुरे हाल। वोटरों को पटाते पटाते खुद पटे ठगे हुए से। बेचारे दोनों ही उस वक्त न घर के दिख रहे थे न घाट के। धूल-पसीने से नहाए हुए। जनता से ढेरों गालियां खाए हुए। सच्ची यार, ये साला चुनाव लीडरों का भरथा बना कर रख देता है। लीडर चाहे किसी भी लेबल का हो। दोनों सोचे, थोड़ी-थोड़ी गंगा में डुबकी लगा थकान और पाप दोनों कुछ कम हो जाएं। आह रे कोड ऑफ कंडक्ट! फाइव स्टार होटल के स्वीमिंग पुल से जनता के पापों से गंदली हुई गंगा में ला पटका पट्ठे ने। एक दूसरे को प्यार से घूरे जैसे बिन चबाए ही निगल जांएगे। पर एक दम संभले! यार हम तो मौसेरे भाई हैं! एक-दूसरे को खाने पड़ने की जरूरत क्या? चार दिन की ही तो दूरियां हैं, फिर वही ढाक के तीन पात। अपने रिश्ते का अहसास होते ही गंगा के पानी में डुबकी लिए नीचे से दोनों ने हाथ मिलाए। मन नही मन मुस्कुराए। साली जनता परलोक के चक्कर में आई देख न ले, चुनाव के दिनों में तो कम ने कम ढोल की पोल नहीं खुलनी चाहिए। बाकी तो चलता रहता है। चाहते तो गले जी भर मिलना थे पर जनता भी वहां नहा रही थी, डुबकियां लगाती चुनाव चर्चा में उलझी हुई।

हाथी और हाथ को एक साथ गंगा में घुसते देख जनता परेशान! हाथ और हाथी एक साथ!! जरूर मिलवा कुश्ती है। सोशल इंजीनीयरिंग से पार्टी इंजीनीयरिंग। चलो, कमल के साथ ही चला जाए। हाथ और हाथी भांप गए। और गंगा में गरदन तक डूबे हुए नौटंकी शुरू ‘और भई गंदे हाथ क्या हाल हैं?’ हाथी ने गंगा में अपने दिमाग की धूल झाड़ते हुए फिकरा कसा।

‘ठीक हूं फसलें उजाड़ने वाले हाथी, कहां-कहां फसल उजाड़ आया?’

‘रे हाथ! चल भाग यहां से, अबके तुझे मरोड़ा नहीं तो पूंछ मुंडवा लूंगा। अबके तेरा वास्ता कुत्तु से नहीं,हाथी से पड़ा है।’

‘तू भाग यहां से! गंगा जबसे बनी है यहां तबसे अपना राज है।’

‘तूने परिवारवाद चला रखा है रे हाथ!। यहां लोकतन्त्र है। गंगा किसीके बाप की नहीं, लोकतन्त्र की है। ‘हाथी चिंघाड़ा तो गंगा में डुबकियां लगाना छोड़ दस जने उसके साथ फटे जांघियों में खड़े हो गए।

‘हां! मेरे बाप की है, मेरे बच्चों की है,आगे उनके बच्चों की होगी।’

हाथ सिर की टोपी उठा अपना गंज खुरकने लगा। उसने नकली गुस्से में अपने दांत किटकिटाए तो गंगा में नहाते दस उसके साथ खड़े हो लिए, बाजू चढ़ाए। चुनाव का रंग जमना शुरू हो गया।

‘हाथी ही अबके डीएम होगा तो दिल्ली में पीएम होगा।’

‘दिल्ली का पीएम तो अपना राहुल ही होगा। अपने हाथ की सबसे छोटी उंगली। ‘ देखते ही देखते हाथ का गुस्सा सातवें आसमान पर।

‘रे हाथ! तूने देश के हाथों को आज तक दिया क्या ? परिवारवाद!’ हाथी फिर चिंघाड़ा। सोशल अभियांत्रिकी का टॉनिक पी रखा है भाई साहब! बचे आधे श्रध्दालु हाथी का दम देख उसके साथ हो लिए।

‘और तू क्या दे देगा देश को जो अपना जन्म दिन मनाने के लिए तक चंदा इकट्ठा किए फिरता है? अपना पेट तो देख! तेरा पेट भर जाए जो जनता को मिले, पर वह कभी भरने वाला नहीं। ‘गंगा के घाट पर बैठी जनता तो जनता बाहर टहलती जनता भी खुसफुसाती हुई हाथी और हाथ के समर्थन में कतारबध्द होने लगी। देखते ही देखते सारा हरिद्वार कमाल से दो गुटों में बंट गया। एक दूसरे को धकियाने पर उतारू!

एक ने कहा,’हां यार, हाथी सच बोल रहा है।’

दूसरे ने कहा,’तो क्या हाथ झूठ बोल रहा है? हाथ हाथी से अधिक सच बोल रहा है।’
तीसरे ने कहा,’दोनों ही ठीक बोल रहे हैं।’

हाथ-हाथी ने एक-दूसरे को आंख मारी, अपने अपने अंगोछे वहीं फैंके और मंद-मंद मुस्कराते हुए लक्ष्मण झूले की ओर हो लिए। कमल अपनी पंखुड़ियों के साथ कनखल में पोस्टर चिपकाने में मग्न था। उसने हरिद्वार में की गलियों में हल्ला सुना तो सकपकाया।

-डॉ. अशोक गौतम
गौतम निवास, अप्पर सेरी रोड,
नजदीक मेन वाटर टैंक,
सोलन-173212 हि प्र

तिब्बत द्वारा कृतज्ञता ज्ञापन-जाग मछन्दर गोरख आयाः डा0 कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

dalai-lamaआज से 50 साल पहले तिब्बत के धर्म गुरू और राज्य अध्यक्ष दलाई लामा अपना देश छोड़कर भारत में आये थे। उनके साथ उनके लाखों अनुयायी भी तिब्बत छोड़ गये। जिस समय दलाई लामा आये थे उस समय उनकी आयु 24 वर्ष की थी। आज वे 74 वर्ष के हो गये हैं और तिब्बती स्वतंत्रता संघर्ष की आधी शताब्दी पूरी हो चूकी है। निर्वासित तिब्बती सरकार कृतज्ञता से भारत का धन्यवाद कर रही है। इसके लिए भारत वर्ष में कृतज्ञता ज्ञापन कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है।

तिब्बत तो धर्म की रक्षा के लिए लड़ रहा है। परन्तु भारत सरकार क्या कर रही है। क्या उसने धर्म का रास्ता छोड़ दिया है। आज जब तिब्बत भारत के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन कर रहा है तो भारत सरकार को भी धर्म के रास्ते पर चल कर तिब्बत के पक्ष में खड़े होना चाहिए। तिब्बत के साथ खड़े होने में भारत का अपना स्वार्थ भी है। क्योंकि तिब्बत की स्वतंत्रता से ही भारत की सुरक्षा जुड़ी हुई है।

दलाई लामा अपने भाषणों में भारत को गुरू और तिब्बत को चेला बताया करते हैं और उनका यह भी कहना है कि चेले पर जब संकट आता है तब वह गुरू की शरण में ही आता है। गुरू का कर्तव्य क्या है इसकी बहुत विस्तार से चर्चा तो दलाई लामा नहीं करते क्योंकि शायद वो सोचते होंगे कि भारत जैसा प्राचीन देश गुरू के फर्ज को तो अच्छी तरह जानता ही होगा। बाकी जहॉ तक चेले के कर्तव्य का मामला है उसे निर्वासित तिब्बती सरकार निभा ही रही है। दलाई लामा कृतज्ञता ज्ञापन में पंडित जवाहर लाल नेहरू और कर्नाटक के उस समय के मुख्यमंत्री श्री निजलिंग्गपा का विशेष तौर पर समरण करते हैं। यह समय लाखों तिब्बती अपने परिवारों समेत भारत में आये थे उस समय नेहरू ने उनको बसाने और उनके बच्चों की शिक्षा के लिए बहुत प्रयास किये थे। निजलिंग्गपा ने भी कर्नाटक में तिब्बतियों की बस्तियॉ बसाने के लिए व्यक्तिगत प्रयास किये थे। यह भारत की तिब्बतियों के प्रति मानवीय दृष्टिकोण से की गई सहायता थी। यह ठीक है कि तिब्बत को उस वक्त इसकी भी जरूरत थी लेकिन उसे उस समय भी और आज भी सबसे ज्यादा जरूरत राजनैतिक और कुटनीतिक सहायता की है जिस पर नेहरू से लेकर आज तक कि सभी सरकारे मौन ही रही और अभी भी मौन ही हैं। दलाई लामा का यह दर्द कृतज्ञता ज्ञापन करते समय भी कहीं न कहीं फुट ही पड़ता है।

उनका कहना है कि बुध्द की 2500 वीं जयंती के अवसर पर 1956 में जब वे भारत आये थे तब उन्होंने पंडित नेहरू को तिब्बत की वास्तविक स्थिति और चीन के खतरनाक इरादों से अवगत करवा दिया था। तब तिब्बत के प्रमुख लोगा यह चाहते थे कि दलाई लामा इसी समय भारत में शरण ले लें और भारत सरकार चीन के साथ तिब्बत का मसला उठाये। लेकिन पंडित नेहरू उस समय भी दलाई लामा को ल्हासा में जाकर तिब्बती संघर्ष को जारी रखने की सलाह दे रहे थे। बकौल दलाई लामा एक दिन पंडित नेहरू 17 सूत्रीय करार, जो चीन ने तिब्बत पर जबरदस्ती थोपा था, की प्रति लेकर सर्कट हाउस में आये। उन्होंने उस करारनामे की कुछ धाराओं को विशेष रूप से रेखांकित किया हुआ था और वे मुझे समझाने लगे कि इन मुद्दों पर तिब्बत की सरकार कानून रूप से चीन सरकार से न्याय प्राप्ति के लिए संघर्ष कर सकती है। नेहरू शायद यह तो चाहते थे कि तिब्बत चीन के चुंगल में न जाये परन्तु इसके लिए वह तिब्बत को अपने ही बलबुते पर चीन से लड़ने की सलाह दे रहे थे और वे आशा करते थे कि तिब्बत ऐसा करे। तिब्बती सरकार तो चीन की विस्तारवादी और साम्राज्यवादी प्रकृति से पूरी तरह वाकिफ थी परन्तु नेहरू शायद जान कर भी अनजान बन रहे थे। बकौल दलाई लामा ही उसी प्रवास के दौरान बंगलौर में निजलिंग्गपा ने उनके कान में कान में कहा कि आप आजादी की लड़ाई लड़ों हम आपके साथ हैं। इसी प्रवास में जय प्रकाश नारायण ने दलाई लामा को आश्वस्त किया कि संकट की घड़ी में हम आपके पीछे खड़े होंगे। दलाई लामा जब प्रवास पूरा करके जाने लगे तो सिक्किम में भारत सरकार के उस समय के पोलिटीकल आफिसर ने पूरे जोश से कहा कि आप चिन्ता न करें, हम आपके सहायक हैं। दलाई लामा तो अमेरिका का समरण भी करते हैं। उनका कहना है कि अमेरिका के संदेश भी आते रहे कि किसी भी संकट में अमेरिका तिब्बत के साथ खड़ा होगा। उसके बाद दलाई लामा और उनकी सरकार ने लगभग अकेले अपने बलबूते ही तीन चार साल तक चीन के साथ लोहा लिया। फिर दलाई लामा जोर से हंसते हैं। जब सचमुच 1959 10 मार्च को तिब्बत के लोगों ने चीन के खिलाफ विद्राह कर दिया तब हमारे साथ कोई खड़ा नहीं हुआ। चीन भी शायद जानता ही होगा कि ऐसे मौके पर तिब्बत के साथ कोई खड़ा नहीं होगा। दलाई लामा की इस हंसी के पीछे न जाने कितना दर्द छिपा हुआ है। एक बौध्द भिक्षु की दर्द से भरी हंसी भारत सरकार को एक ही झटके में बेनकाब कर देती है। दलाई लामा की दाद देनी होगी कि 50 सालों की इस सफर में वे दर्द भी पीते रहे और लड़ते भी रहे।

बहुत से लोग प्राय: कहा करते हैं कि तिब्बत की आजादी की लड़ाई तिब्बतियों को तिब्बत के भीतर रह कर ही लड़नी होगी। पिछले 60 सालों में 10 लाख तिब्बती चीनी सेना द्वारा मारे जा चुके हैं। जो कौम आजादी की लड़ाई नहीं लड़ती उसके 10 लाख लोग मारे नहीं जाते। केवल दलाई लामा की जय कहने पर चीन की जेलों में 5 से लेकर 10 सालों तक नारकीय यातना भोगनी पड़ती है। और हजारों तिब्बती यह भोग रहे हैं। 60 सालों के चीनी प्रयत्नों के बावजूद मठों से जब चीवर धारण किये भिक्षु धम्म का जय घोष करते हुए निकलते हैं तो उन्हें गोली खानी पड़ती है। आज तिब्बत के हर मठ में ऐसे भिक्षुओं की सूची मिल जायेगी जो धम्म के लिए शहीद हो गये। तिब्बत की स्वतंत्रता की लड़ाई वास्तव में धर्म और अधर्म की लड़ाई है। भारत अपने पूरे इतिहास में धर्म का ध्वज वाहक रहा है। वैसे भी तिब्बत और भारत की संस्कृति, इतिहास और आस्था एक समान है। उसके तीर्थ सांझे हैं और उसके प्रतीक सांझे हैं। तिब्बत की पराजय भारतीय संस्कृति की पराजय ही होगी। तिब्बत की पराजय धर्म की पराजय मानी जायेगी। यह अधर्म की जीत होगी। शास्त्रों में कहा गया है धर्म उसी की रक्षा करता है जो धर्म की रक्षा करते हैं। तिब्बत तो धर्म की रक्षा के लिए लड़ रहा है। परन्तु भारत सरकार क्या कर रही है। क्या उसने धर्म का रास्ता छोड़ दिया है। आज जब तिब्बत भारत के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन कर रहा है तो भारत सरकार को भी धर्म के रास्ते पर चल कर तिब्बत के पक्ष में खड़े होना चाहिए। तिब्बत के साथ खड़े होने में भारत का अपना स्वार्थ भी है। क्योंकि तिब्बत की स्वतंत्रता से ही भारत की सुरक्षा जुड़ी हुई है। परन्तु भारत को तिब्बत का साथ इस लिए नहीं देना चाहिए कि इसमें उसका अपना स्वार्थ है यदि ऐसा किया तो यह अनैतिक हो जायेगा। भारत को तिब्बत का साथ इसलिए देना है कि यह धर्म का युद्व है। 21 वीं शताब्दी के प्रवेशद्वार पर ही भारत को यह घोषित करना होगा कि भविष्य के लिए वह धर्म का रास्ता चुनता है या उन्हीं पश्चिमी शक्तियों का पिछलग्गू बनता है जो राजनीति को धर्म नीति नहीं बल्कि स्वार्थ नीति मानते हैं। विश्व इतिहास में भारत की पहचान इसी धर्म नीति के कारण रही है। उसे अपनी इस पहचान को पुन: स्थापित करना होगा। तिब्बत इसकी कसौटी है और तिब्बतियों द्वारा कृतज्ञता ज्ञापन सोये भारत को जगाने का एक और उपक्रम है। जाग मछन्दर गोरख आया। (नवोत्थान लेख सेवा हिन्दुस्थान समाचार )

आसन्न चुनाव : सवाल जान और माल का है – जयराम दास

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stamp1चुनाव के मुहाने पर खड़ा होकर एक वोटर या नागरिक के नाते यदि आप यह सोचे कि आपने क्या खोया और क्या पाया है तो शायद आपका मन वितृष्णा से भर जायगा। हांलाकि दो रात के बाद एक दिन के उलट हम दो दिन के बीच एक रात देखने की सकारात्मक नजरिये से देखे तो निश्चय ही इस लोकतंत्र की कुछ उपलब्धियां आपको दिखेगी। लेकिन आपको यह मानना होगा कि इस देश ने यह तमाम उपलब्धियां आज के कर्णधारों, नेताओं के कारण नहीं बल्कि उनके बावजूद हासिल की है। जहां तक आज के राजनीति एवं नेताओं का सवाल है तो यह निश्चय ही शर्मनाक है कि भ्रष्टाचार, गुंडागर्दी एवं असुरक्षा के अलावा कुछ भी नहीं दिया है इन राजनीतिक दलों ने देश को।

क्या यह सच है कि इस चुनाव में कोई मुद्दा नहीं है? महंगाई से कतराते निम्न मध्य वर्ग, आत्महत्या करते किसान, घुटने टेकता स्वाभिमान, आतंक की भट्ठी में मांस के लोथड़े मे तब्दील होते आसाम से लेकर अहमदाबाद, बंगलौर से लेकर बस्तर तक आम इंसान आदि क्या ऐसे विषय नहीं है, जिस पर बहस होती और इस मुद्दे पर जनमत का निर्माण किया जाता? क्या विभिन्न तरह के जातिगत सामाजिक, क्षेत्रिय, समीकरण से ज्यादा महत्वपूर्ण उपरोक्त मुद्दे नहीं है?

विभिन्न समाचार माध्यमों द्वारा परोसे जा रहे चुनावी खबरों को आप देखे तो यह लगेगा कि गांव, गरीब, किसान, मध्यवर्ग आदि के सरोकारों से जुड़ा कुछ है ही नहीं इस लोकसभा चुनाव में। शायद साजिशपूर्वक इस पूरे चुनाव को मुद्दाविहीन करार दिया जा रहा है। क्या यह सच है कि इस चुनाव में कोई मुद्दा नहीं है? महंगाई से कतराते निम्न मध्य वर्ग, आत्महत्या करते किसान, घुटने टेकता स्वाभिमान, आतंक की भट्ठी में मांस के लोथड़े मे तब्दील होते आसाम से लेकर अहमदाबाद, बंगलौर से लेकर बस्तर तक आम इंसान आदि क्या ऐसे विषय नहीं है, जिस पर बहस होती और इस मुद्दे पर जनमत का निर्माण किया जाता? क्या विभिन्न तरह के जातिगत सामाजिक, क्षेत्रिय, समीकरण से ज्यादा महत्वपूर्ण उपरोक्त मुद्दे नहीं है? आखिर आज इस विडंबना पर किसी का ध्यान क्यूं नहीं जाता कि जब पिछले पांच साल में अनाजों के दाम आसमान छू रहे थे, तो आखिर उसे उगाने वाला किसान आत्महत्या क्यूं कर रहा था? आखिर यह कौन सा अर्थशास्त्र है, जिसमें उत्पादक और उपभोक्ता दोनो परेशान है और मालामाल हो रहे थे बिचौलिया और जमाखोर। अर्थशास्त्र के वैश्विक धुरंधर के रूप में पहचान रखने वाले प्रधानमंत्री, तात्कालीन वित्त मंत्री योजना आयोग के उपाध्यक्ष आदि की क्षमता या नीयत पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगता यह विषय? क्या जनता यह जानने का हक नहीं रखती कि क्यों बढ़ रहीं थी मंहगाई? इस मुद्दे पर कोई युक्ति संगत सफाई भी देने की जरूरत नहीं समझी उपरोक्त धुरंधरों ने। क्या इस आशंका के पर्याप्त आधार नहीं है कि महंगाई के नाम पर यह भी एक ”घोटाला” ही था। और यदि यह घोटाला था तो शायद यह भारत के इतिहास का सबसे बड़ा स्कूप साबित हो सकता है। आखिर इस बिडंबना का क्या करें कि भारत का कृषि मंत्री जिस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते है, वहीं के किसानों ने सबसे ज्यादा खुदकुशी की है। और उस कृषि मंत्री का अपने किसानों से ज्यादा क्रिकेट की चिंता करना ”नीरो” की तरह बंशी बजाना नहीं माना जाना चाहिए? आप याद करें, बहुत ज्यादा दिन नहीं हुआ जब दिल्ली की सरकार केवल प्याज के मुद्दे पर पराजित हो गई थी लेकिन उस बार इतना तो जरूर था कि जिस भी किसान के पास प्याज का स्टॉक था वे मालामाल हो गये थे। यहां तो आलम ये है कि केवल विदर्भ में पिछले साल 1200 किसानों ने आत्महत्या की।

इसी तरह पिछले लगभग सभी चुनावों में बेरोजगारी एक बड़ा मसला हुआ करता था, लेकिन अभी पहली बार ऐसा हुआ है कि लोगों को अपने अच्छे-खासे रोजगार या व्यवसाय से हाथ धोना पड़ रहा है। विश्व बैंक के एक रिपोर्ट के अनुसार मात्र पिछले तीन महीनों में देश के 5 लाख लोगों को अपनी नौकरी गवांनी पडी है। स्वयं केन्द्र सरकार के श्रम मंत्रालय की हालिया जारी 48 वीं रिपोर्ट यह कहता है, कि केवल सरकारी नौकरियों में 48000 रोजगार के अवसरों का खत्मा हुआ है। एक आकलन यह कहता है कि अगले कुछ हफ्तों में एक करोड़ लोगो को बेरोजगार होने की आशंका है। भारत के सबसे बड़े कॉर्पोरेट घोटाले ”सत्यम” के कारण ही 53000 लोगो का भविष्य दांव पर है, और अपनी गाढ़ी कमाई लगाने वाले लाखों निवेश्क कंगाल हो गये हैं। क्या खातों के हेरफेर कर इतने बड़े महाघोटाले को रोके जाने की जिम्मेदारों से ”सेबी” जैसी संख्या पल्ला झाड़ सकती है?

आतंकवाद की बात करें ! क्या यह चुनाव मुंबई के ताज समेत तमाम महत्वपूर्ण हमलों पर चर्चा करने का अवसर नहीं है? लोगों को यह भूल जाना चाहिए कि जब भारत की आर्थिक रीढ़ कहे जाने वाले मुंबई को बंधक बना लिया गया था तब केन्द्रीय गृह मंत्री जो उसी प्रदेश से ताल्लुक रखते हैं, वे फैशन और कपड़े बदलने में, सजने संवरने में मशगूल थे। हमले के बाद वहां का मुख्यमंत्री अपने अभिनेता पुत्र और अपने प्रोडयूसर दोस्त के साथ वहां फिल्म निर्माण की संभावना तलाश रहा था। और तो और केन्द्र का एक मंत्री उसी हमले में अपने जांबाज जवानों की शहादत पर अल्पसंख्यक कार्ड खेल रहा था। संसद पर हमले के आरोप में सर्वोच्च अदालत तक से मौत की सजा पाये अफजल की मेहमान-नवाजी क्या भारी नहीं पड़ना चाहिए केन्द्र की इस सरकार पर? क्या बाटला हाउस एनकाऊंटर मै शहीद जवान की शहादत पर सवाल खड़ा करना अर्जुन नामधारी कौरवों को शोभा देता है ?

वैसे तो उपरोक्त के अलावा भी दर्जनों ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर चर्चा की जा सकती है। लेकिन खासकर लोगों के जान और माल की सुरक्षा करना किसी भी सरकार का प्राथमिक कर्तव्य है। पिछले कुछ वर्षों ने यह साबित किया है कि सरकार अपनी अक्षमता के कारण या जानबूझकर इन दोनों मामले में बुरी तरह असफल रहीं है। जन, जंगल, जमीन, गांव, गरीब, किसान, आम इंसान से ताल्लुक रखने वाले इन तमाम मुद्दों को केन्द्र बिन्दु बनाना लोकतंत्र के इस महापर्व में उचित होना चाहिए। लेकिन मीडिया मिडिएटर और मसल्समैन की तिकड़ी शायद जानबूझकर इन मुद्दों को उभरने नही दे रही है। इस चुनाव कों मुद्दा विहीन बनाने का षंडयंत्र निश्चय ही प्रौढ़ होते इस लोकतंत्र पर बदनुमा दाग की तरह हैं।

चूंकि बात आम मतदाता से शुरू हुई थी, तो गेंद अब उसी के पाले में है, कि वह अपनी समझदारी का परिचय देते हुए क्षेत्र, जाति, सम्प्रदाय आदि राष्ट्रतोड़क विषय को नजरअंदाज करते हुए राष्ट्रीय हित और अपने सरोकार एवं उसके जान-माल की सुरक्षा करने वाले दलों को अपना समर्थन दें।

– लेखक पत्रिका दीपकमल के संपादक हैं।

पहली से लेकर चौदहवीं लोकसभा तक महिला सदस्यों का प्रतिनिधित्व

अभी तक की सभी लोकसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 19 से 49 के बीच ही रहा है। 12वीं लोकसभा में 43 महिलाएं सदस्य थीं जो लोकसभा की कुल संख्या का 7.91 प्रतिशत ही बैठतीं हैं। 13वीं लोकसभा में सर्वाधिक 49 महिलाएं निर्वाचित हुईं जोकि लोकसभा की कुल संख्या का 9.02 प्रतिशत था। छठी लोकसभा में सबसे कम 19 महिलाएं निर्वाचित हुईं जो लोकसभा सदस्यों की कुल संख्या की 3.50 प्रतिशत ही हैं।

 

लोकसभा

सीटों की कुल संख्या

 

महिला उम्मीदवारों

की संख्या

 

निर्वाचित महिला सदस्यों की संख्या

 

कुल सीटों की प्रतिशतता

 

चुनाव लड़ने वाली महिलाओं की कुल संख्या की प्रतिशतता

पहली1952

489

दूसरी1957

494

45

22

4.45

48.89

तीसरी1962

494

66

31

6.27

46.97

चौथी1967

520

67

29

5.57

43.28

पाँचवीं1971

518

86

21

4.05

24.41

छठी1977

542

70

19

3.50

27.14

सातवीं1980

542

143

28

5.16

19.58

आठवीं1984

542

162

42

7.74

25.93

नौवीं1989

543

198

29

5.34

14.64

दसवीं1991

543

326

37

7.10

11.35

ग्यारहवीं1996

543

599

40

7.36

6.68

बारहवीं1998

543

274

43

7.91

15.69

तेरहवीं

543

284

49

9.02

17.25

चौदहवीं2004

543

355

45

8.29

12.67

इलेक्‍ट्रॉनिक वोटिंग मशीन

evm1. इलेक्‍ट्रॉनिक वोटिंग मशीन क्या है?
. यह एक सामान्य इलेक्‍ट्रॉनिक उपकरण है जिसका इस्तेमाल परम्परागत मतदान प्रणाली में इस्तेमाल किए जाने वाले मतपत्रों के स्थान पर वोटों को दर्ज करने के लिए किया जाता है।2. परम्परागत मतपत्र/मतपेटी प्रणाली की तुलना में ईवीएम के क्या फायदे हैं?
(i) इसमें अवैध और संदिग्ध मतों की आशंका समाप्त हो जाती है, जो अनेक मामलों में विवादों और चुनाव याचिकाओं के मूल कारण होते हैं।
(ii) इनसे वोटों की गिनती की प्रक्रिया परम्परागत प्रणाली की तुलना में अत्यंत तीव्र हो जाती है।
(iii) इससे कागज की भारी बचत होती है, जिससे बड़ी संख्या में पेड़ कटने से बचते हैं और मतदान की प्रक्रिया को पारिस्थितिकी अनुकूल बनाने में मदद मिलती है।
(vi) इससे प्रिंटिंग की लागत लगभग शून्य हो जाती है क्योंकि प्रत्येक मतदान केन्द्र के लिए केवल एक मतपत्र की आवश्यकता पड़ती है।

3. भारत के अलावा अन्य देष कौन से हैं जो चुनावों में ईवीएम का इस्तेमाल करते हैं?
. भूटान ने अपने पिछले आम चुनाव में पूरे देश में भारतीय ईवीएम मशीनों का इस्तेमाल किया। इन मशीनों का इस्तेमाल नेपाल ने भी अपने पिछले आम चुनाव में कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में किया था।

4. भारत में ईवीएम की शुरूआत कब हुई?
. इसका इस्तेमाल पहली बार 1982 में केरल के परूर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में गिने-चुने मतदान केन्द्रों (50 मतदान केन्द्रों)े पर किया गया था।

5. भारतीय ईवीएम मशीनों की बेजोड़ विशेषताएं क्या हैं?
. यह एक सामान्य मशीन है जिसका इस्तेमाल मतदान कार्मिकों और मतदाताओं दोनों द्वारा आसानी से किया जा सकता है। यह रूखे ढंग से परिचालित किए जाने के प्रति भी पर्याप्त मजबूत है और विषम जलवायु स्थितियों में काम करने में सक्षम है। प्रत्येक मशीन एक स्वतंत्र इकाई होने और किसी नेटवर्क से जुड़ी न होने के कारण इसकी प्रोग्रामिंग के साथ कोई छेड़खानी नहीं कर सकता और इसके नतीजों में कोई हेराफेरी मुमकिन नहीं है। देश के अनेक भागों में बिजली आपूर्ति की दोषपूर्ण स्थिति को देखते हुए मशीनों को बैटरी चालित बनाया गया है।

6. मतपत्र आधारित चुनाव प्रणाली के स्थान पर ईवीएम प्रणाली आरंभ करने की क्या आवश्‍यकता थी?
. किसी भी चुनाव में मतपत्रों की गिनती में घंटों लग जाते थे, जिससे मतगणना कर्मचारियों और उम्मीदवारों/राजनीतिक दलों के लिए आवेश का वातावरण बन जाता था। कभी-कभी दो शीर्ष उम्मीदवारों के बीच वोटों का अंतर कम होने के कारण पुनर्गणना की मांग से माहौल और भी गरमा जाता था। बड़ी संख्या में अवैध और संदिग्ध वोटों से भी कठिनाइयां पैदा होती थी।

7. भारत में ईवीएम का विनिर्माण कौन करता है?
. केन्द्र सरकार के केवल दो प्रतिष्ठान- भारत इलैक्ट्रोनिक्स कारपोरेशन ऑफ इंडिया- ईवीएम के विनिर्माता हैं, जिनसे भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा ईवीएम खरीदी जाती हैं।

8. क्या ईवीएम को मंजूर करने से पहले निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों से सलाह मशविरा किया था?
. हां। इस मामले में सभी मान्यताप्राप्त राजनीतिक दलों के साथ विचार-विमर्श किया गया था और उनके समक्ष ईवीएम प्रदर्शित की गई थीं।

9. क्या ईवीएम को मंजूर करने से पहले निर्वाचन आयोग ने तकनीकी विषेषज्ञों से परामर्श किया था?
. हां। ईवीएम को मंजूर करने से पहले तकनीकी समिति की राय ली गई थी, जिसमें प्रोफेसर एस. सम्पत, प्रोफेसर पी वी इंदिरेसन और डा0 सी राव कासरबडा शामिल थे। समिति ने सभी तकनीकी पहलुओं को ध्यान में रखकर से मशीनों की गहन जांच की थी और सर्वसम्मति से चुनावों में उनके इस्तेमाल की अनुशंसा की थी।

10. नियंत्रण इकाई की क्या विशेषताएं हैं?
. नियंत्रण इकाई मुख्य इकाई है जो सभी आंकड़ों का संग्रह करती है और ईवीएम की कार्यप्रणाली पर नियंत्रण रखती है। नियंत्रण इकाई की कार्य प्रणाली को नियंत्रित करने वाले प्रोग्राम को ”एकबारगी प्रोग्रामेबल आधार” पर एक माइक्रोचिप में बर्न्ट किया जाता है। एक बार बर्न्ट होने के बाद इसे रीड, कापी या परिवर्तित नहीं किया जा सकता। ईवीएम मशीनें बैलट यूनिट से कंट्रोल यूनिट में आंकड़े ट्रांसमिट करने की सुरक्षा बढ़ाने के लिए डायनामिक कोडिंग का इस्तेमाल करती हैं। नई ईवीएम मशीनों में रीयल टाइम क्लॉक और डेट- टाइम स्टैम्पिंग सुविधा विद्यमान है, जो कभी भी कोई की प्रेस करने पर उन्हें सही समय और तारीख रिकार्ड करने में सक्षम बनाती हैं। मतदान पूरा होने पर और क्लोज (बंद) बटन दबाने पर मशीन कोई डाटा स्वीकार नहीं करती अथवा कोई वोट रिकार्ड नहीं करती। ”टोटल” बटन दबाने पर कंट्रोल यूनिट उस समय तक दर्ज किए गए वोटों की संख्या प्रदर्शित कर सकती है जिसकी पुनर्जांच फार्म 17 ए में दर्ज मतदाताओं से की जा सकती है। मतगणना केन्द्र पर गणना एजेंटों की मौजूदगी में गणना स्टाफ द्वारा ”रिजल्ट” बजट दबाने पर कंट्रोल यूनिट का डिस्प्ले सिस्टम किसी मतदान केन्द्र पर डाले गए मतों की कुल संख्या और मशीन में प्रत्येक उम्मीदवार द्वारा प्राप्त किए गए वोटों की संख्या प्रदर्शित करती हैं। कंट्रोल यूनिट कनेक्टिंग केबल के साथ की गई भौतिक छेड़छाड़ का भी पता लगा सकती है तथा उसे डिस्प्ले यूनिट में दर्शा सकती है।

11. बिजली रहित क्षेत्रों में ईवीएम मशीनों का इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है?
. ईवीएम बिजली पर निर्भर नहीं है। यह बैटरी से संचालित होती है।

12. ईवीएम में दर्ज किए जा सकने वाले वोटों की अधिकतम संख्या कितनी होती है?
. ईवीएम मशीन में अधिकतम 3840 वोट दर्ज किए जा सकते हैं। यह संख्या किसी मतदान केन्द्र के लिए निर्दिष्ट मतदाताओं की संख्या (जो आम तौर पर 1400 से कम होती है), से काफी अधिक है।

13. कुछ चुनावों में बड़ी संख्या में उम्मीदवार चुनाव लड़ते हैं। ईवीएम में उम्मीदवारों की अधिकतम संख्या कितनी हो सकती है?
. उम्मीदवारों की अधिकतम संख्या 64 तक होने की स्थिति में ही ईवीएम के जरिये मतदान संचालित किया जा सकता है।

14. अगर उम्मीदवारों की संख्या 64 से अधिक हो तो क्या होगा?
. ऐसे मामलों में मतदान मतपत्र/मतपेटी की परम्परागत पध्दति के जरिये कराना पड़ेगा।

15. मतदान केन्द्र पर कोई निरक्षर मतदाता ईवीएम का संचालन कैसे करेगा? वह किसकी सहायता ले सकता है?
. पीठासीन अधिकारी के पास बैलट यूनिट की कार्ड बोर्ड अनुकृति होती है। उसके माध्यम से वह प्रदर्शित करके दिखायेगा कि ईवीएम के जरिये वोट कैसे डाला जा सकता है। लेकिन उसे उस मतदान चैम्बर में जाने की अनुमति नहीं होगी, जहां वास्तविक बैलट यूनिट रखी हुई है।

16. क्या कोई ईवीएम मशीनों में हेराफेरी कर सकता है?
. ईवीएम को हेराफेरी की आशंका से मुक्त बनाने के लिए हर संभव ध्यान रखा गया है। ईवीएम मशीनों में प्रयुक्त माइक्रोप्रोसेसर की प्रोग्रामिंग को चिप में बर्न्ट किया जाता है। फ्यूज्ड प्रोग्राम को न तो बदला जा सकता है और न ही मिटा कर लिखा जा सकता है। चिप पर अतिरिक्त या वैकल्पिक कोड बर्न करने का कोई भी प्रयास उसके मौजूदा प्रोग्राम को नष्ट कर देगा और उसे इस्तेमाल के अयोग्य/व्यर्थ बना देगा। अतिरिक्त सावधानी के उपाय के रूप में किसी मतदान के लिए तैयार की गयी मशीनों को उम्मीदवारों या उनके एजेन्टों की मौजूदगी में भौतिक रूप से सीलबंद किया जाता है तथा मजबूत कमरों में सुरक्षित रखा जाता है। उनकी रक्षा के लिए केन्द्रीय पुलिस बल तैनात किया जाता है। उम्मीदवारों के प्रतिनिधि भी मशीनों की निगरानी रख सकते हैं। मतदान पूर्व या मतदान दर्ज की गयी ईवीएम मशीनों के रखने के स्थानों पर जाने की अनुमति आयोग द्वारा निर्धारित कड़ी प्रक्रिया के बाद ही मिल सकती है, जिसके लिए पूरी पारदर्शिता बरती जाती है।

17. किसी पार्टी या उम्मीदवार को फायदा पहुंचाने के लिए क्या ईवीएम को किसी व्यक्ति द्वारा प्री-प्रोग्राम्ड किया जा सकता है?
. किसी उम्मीदवार विशेष के पक्ष में वोट हस्तांतरित करने के लिए वैकल्पिक चिप प्रोग्राम करने के वास्ते यह जरूरी होगा कि सम्बध्द उम्मीदवार के क्रमांक की पहचान की जाये। चूंकि संदर्भित मतपत्र पर उम्मीदवारों का क्रम भरे गए नामांकनों और वैध पाए गए नामांकनों पर निर्भर करता है, इसलिए पहले से यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों की वास्तविक सूची क्या होगी।

18. पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए और यह सिध्द करने के लिए कि ईवीएम के साथ कोई हेराफेरी नहीं कर सकता, निर्वाचन आयोग कौन सी प्रक्रियाएं अपनाता है?
. आयोग ने मशीनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न स्तरों पर कड़ी प्रक्रियाएं निर्धारित की हैं। मशीनों का विनिर्माण सार्वजनिक क्षेत्र के केवल दो प्रतिष्ठानों द्वारा किया जाता है, जो आयोग द्वारा निर्धारित मानकों के अनुरूप मशीनें बनाते हैं। आयोग इस काम को तकनीकी समिति के परामर्श से पूरा करता है, जिसमें जानेमाने व्यवसायी शामिल होते हैं। प्रत्येक चुनाव से पहले मशीनों की जांच इन दो सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों के इंजीनियरों द्वारा की जाती है। मशीनों को आम तौर पर जिला मुख्यालयों में स्ट्रांग रूम्स में रखा जाता है, जहां प्रवेश वर्जित होता है। स्टोर में जाने की अनुमति लॉगबुक में आवश्यक प्रविष्टि के बाद ही दी जाती है, जिसमें प्रवेश के प्रयोजन सहित प्रवेश का समय और तारीख दर्ज करनी पड़ती है। चुनाव अधिकारी द्वारा मतपत्र चिपका कर एक बार मशीनों को मतदान के लिए तैयार किए जाने के बाद, उन्हें चुनाव पर्यवेक्षक, उम्मीदवार या उनके एजेन्टों की देखरेख में स्ट्रांग रूम में ले जाया जाता है और दोहरे ताले के अंतर्गत रखा जाता है। इन तालों पर उम्मीदवार/एजेन्ट अपनी अपनी सील लगा सकते हैं। पूरी प्रक्रिया की विडियो फिल्म भी तैयार की जाती है। मतदान के पश्चात ईवीएम मशीनों को समान प्रक्रिया अपनाते हुए स्ट्रांग रूम्स में भेजा जाता है जहां सुरक्षा बलों की तीन स्तरीय पहरेदारी के अंतर्गत उन्हें रखा जाता है। उम्मीदवारों या उनके एजेन्टों को दृश्यमान दूरी से स्ट्रांग रूम पर निगरानी रखने की अनुमति दी जाती है।

19. नयी प्रक्रिया ”ईवीएम रैन्डोमाइजेशन” क्या है, क्या मैं जान सकता हूं इसे क्यों अंजाम दिया जा रहा है।
. ईवीएम मशीनों के गड़बड़ी प्रूफ होने के बावजूद सावधानी के अतिरिक्त उपाय किए जा रहे हैं। इनके अंतर्गत किसी चुनाव में इस्तेमाल की जाने वाली ईवीएम मशीनों के लिए दो स्तरीय रैन्डो माइजेशन प्रक्रिया शुरू की गयी है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी को पहले से यह जानकारी न मिल पाये कि किसी निर्वाचन क्षेत्र/मतदान केन्द्र में कौन सी ईवीएम इस्तेमाल की जायेगी। इस प्रयोजन के लिए किसी जिला निर्वाचन अधिकारी के अधिकार क्षेत्र में इस्तेमाल की जाने वाली सभी ईवीएम मशीनों के क्रमांकों की सूची तैयार की जाती है। इसके बाद किसी विशेष निर्वाचन क्षेत्र में प्रयुक्त होने वाली ईवीएम मशीन का चयन कम्प्यूटरीकृत प्रक्रिया के जरिये बेतरतीब ढंग से किया जाता है। इसे प्रथम स्तरीय रैन्डो माइजेशन कहा जाता है। अन्य रैन्डो माइजेशन को दूसरे स्तर का रैन्डो माइजेशन कहा जाता है जो मतदान अधिकारी द्वारा यह निर्धारित करने के लिए किया जाता है कि निर्वाचन क्षेत्र के किस मतदान केन्द्र के लिए कौन सी ईवीएम इस्तेमाल की जायेगी।

20. अगर मतदान के दिन किसी ईवीएम में कोई समस्या आ जाये, तो उस मामले में क्या समाधान किया जा सकता है?
. सेक्टर अधिकारी द्वारा खराब ईवीएम के स्थान पर तत्काल नई ईवीएम प्रदान की जाती है। यह अधिकारी उसे आवंटित क्षेत्र में कुछ मतदान केन्द्रों पर निरंतर घूमता है ताकि अतिरिक्त मतदान सामग्री उपलब्ध कराई जा सके।

21. ईवीएम को सीलबंद करने के लिए क्या प्रक्रिया अपनाई जाती है? ऐसा क्यों किया जाता है? इसे कैसे अंजाम दिया जाता है?
. ईवीएम के विभिन्न भागों की भौतिक सीलबंदी की जाती है ताकि मतदान की विभिन्न प्रक्रियाओं को नियंत्रण करने वाले बटनों तक पहुंच रोकी जा सके। ये कार्य कई चरणों में किया जाता है। बैलट यूनिट की बैलट स्क्रीन और कंट्रोल यूनिट के उम्मीदवार सेट अनुभाग की सीलिंग उम्मीदवारों अथवा उनके एजेन्टों की मौजूदगी में मतदान अधिकारी की देखरेख में की जाती है ताकि मतपत्र के साथ हेराफेरी रोकी जा सके और उम्मीदवार बटनों में अवांछित परिवर्तन न किया जा सके। ये दोनों बटन किसी भी चुनाव में आवश्यक होते हैं। इसी प्रकार अगर रिजल्ट सेक्शन को सील नहीं किया जायेगा, तो कोई भी व्यक्ति निर्दिष्ट तारीख को मतगणना केन्द्र पर गणना शुरू होने से पहले नतीजा देख सकता है।

उम्मीदवारों अथवा उनके एजेन्टों को निर्वाचन अधिकारी द्वारा बुलाया जाता है और मतदान/पीठासीन अधिकारियों की मुहरों के साथ टैग्स/पेपर सीलों पर उनके हस्ताक्षर कराए जाते हैं।

22. मतदान के बाद मतों की गिनती तक ईवीएम कहां रखी जाती है?
. मतदान दर्ज होने के बाद ईवीएम मशीनों को आम तौर पर निर्वाचन क्षेत्र में या निकटवर्ती ऐसे स्थान पर सुरक्षित स्टोर केन्द्र में रखा जाता है, जहां उम्मीदवार और उनके प्रतिनिधि निगरानी रख सकें। आम तौर पर यह स्थान वहीं होता है जहां गणना की जाती है।

23. ईवीएम में वोटों की गिनती कैसे होती है?
. मतगणना केन्द्र पर अनेक गणना टेबलों पर ईवीएम मशीनें रखी जाती है, जिनकी संख्या आमतौर पर 14 से अधिक नहीं होती। गणना एजेन्टों के लिए बैठने की व्यवस्था इस तरह से की जाती है कि वे स्पष्ट रूप से ईवीएम और उसके डिस्प्ले को देख सकें। जब ईवीएम का रिजल्ट बटन दबाया जाता है, तो उसका डिस्प्ले सेक्शन किसी मतदान केन्द्र पर डाले गए कुल वोटों की संख्या दर्शाता है और उसके बाद क्रमिक रूप से प्रत्येक उम्मीदवार द्वारा हासिल किए गए वोट प्रदर्शित किए जाते हैं। गणना स्टाफ के अलावा गणना एजेन्ट भी उन्हें देख सकते हैं। प्रत्येक दौर के अंत में उस दौर का नतीजा और क्रमिक जोड़ की घोषणा की जाती है। प्रत्येक दौर के योग को संकलित करके नतीजा तैयार किया जाता है।

24. हमारे देश में मतदान केन्द्रों पर कब्जों जैसी चुनाव गड़बड़ियां अक्सर सामने आती रहती हैं। क्या ईवीएम मशीनों से बूथों पर कब्जों को रोकने में मदद मिल सकती है?
. अगर ईवीएम को बूथों पर कब्जा करने वालों द्वारा छीन लिया जाता है तो बूथों पर कब्जे नहीं रोके जा सकते। किन्तु मशीन एक मिनट में पांच और एक घंटे में तीन सौ वोटों से अधिक मतों को दर्ज नहीं कर सकती। इसकी तुलना में मत पेटी में कितनी ही संख्या में मतपत्र डाले जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त बूथ कब्जा करने वालों को देखकर पीठासीन अधिकारी कंट्रोल यूनिट में ”क्लोज” बटन दबाकर मतदान को रोक सकता है।

25. क्या संसद और राज्य विधानसभा चुनाव में एक साथ ईवीएम का इस्तेमाल संभव है?
. हां, संसदीय और राज्य विधानसभा चुनाव ईवीएम के जरिये एक साथ कराये जा सकते हैं। ऐसी स्थिति में दो अलग अलग ईवीएम रखी जा सकती है जिनमें से एक का इस्तेमाल संसदीय चुनाव और दूसरी का विधानसभा चुनाव के लिए किया जा सकता है।

26. कंट्रोल यूनिट की मेमोरी में रिजल्ट कितने समय तक स्टोर रह सकता है?
. ईवीएम की मेमोरी चिप में नतीजे को स्थायी रूप से स्टोर किया जा सकता है। यह परवर्ती चुनावों के लिए मशीन तैयार करने के लिए जानबूझ कर मिटाए जाने तक सुरक्षित रह सकता है। मशीन से बैटरी हटाए जाने का कोई प्रभाव उसकी मेमोरी पर नहीं पड़ता।

27. अगर गणना के समय ईवीएम में डिस्प्ले दिखाई न दे रहा हो तो ऐसी स्थिति में चुनाव परिणाम कैसे प्रमाणित किया जा सकता है?
. ईवीएम के विनिर्माताओं ने ”अनुषंगी डिस्प्ले यूनिट” का विकास किया है। कंट्रोल यूनिट पर मूल डिस्प्ले विफल होने की स्थिति में इस एडीयू के इस्तेमाल से अधिकतर मामलों में नतीजे को पुन: प्राप्त किया जा सकता है।

28. क्या बटन को बार बार दबाने पर एक से अधिक वोट डाला जा सकता है?
. नहीं, उम्मीदवार बटन एक बार दबाए जाने के बाद मशीन बटन के सामने लिखे उम्मीदवार के पक्ष में वोट दर्ज कर देती है। मशीन में अन्य वोट तब तक रिकॉर्ड नहीं किया जा सकता जब तक कि पीठासीन/मतदान अधिकारी द्वारा कंट्रोल यूनिट का बैलट बटन न दबा दिया जाये।

29. इससे पहले मत पत्रों को मिलाने की प्रणाली अपनाई जाती थी ताकि किसी विशेश मतदान केन्द्र की मतदान वरीयता उजागर न हो। अब ईवीएम मशीनों की गणना एक एक करके होती है और हर किसी को किसी भी मतदान केन्द्र में डाले गए वोटों की वरीयता का पता चल जाता है। क्या इस स्थिति को रोकने के लिए कुछ किया जा सकता है?
. ईवीएम के विनिर्माताओं द्वारा ”टोटलाइजर” नाम का एक डिवाइस विकसित किया गया है, जो एक ही समय, कई कंट्रोल यूनिटों के साथ कनेक्ट किया जा सकता है। यह प्रत्येक मतदान केन्द्र, जहां ईवीएम इस्तेमाल की गयी थी, में डाले गए कुल वोटों की संख्या और उन मतदान केन्द्रों में डाले गए वोटों का कुल जोड़ प्रदर्शित कर सकता है। किन्तु प्रत्येक उम्मीदवार द्वारा प्राप्त किए गए वोटों की संख्या मतदान केन्द्रों के समूचे समूह, जहां ईवीएम प्रयुक्त की गयी थी, के लिए प्रदर्शित होगी न कि अलग अलग मतदान केन्द्र के लिए। इससे किसी विशेष मतदान केन्द्र पर वोटिंग पैटर्न जानना असंभव हो जाता है।

30. दुनिया में भारतीय ईवीएम के बारे में क्या धारणा है?
. अमरीका की तुलना में भारतीय ईवीएम बेहद सरल मशीन है। अमरीका की मशीनों से भिन्न हमारी ईवीएम एकल मशीन है जिसे किसी नेटवर्क से नहीं जोड़ा जा सकता और नेटवर्क या रिमोट के जरिये नियंत्रित नहीं किया जा सकता। इसका मूल प्रोग्राम चिप में बर्न्ट किया जाता है, जिसे परिवर्तित नहीं किया जा सकता और उसमें हेराफेरी की आशंका नहीं रहती।

31. दृष्टि बाधित व्यक्ति ईवीएम का इस्तेमाल कैसे कर सकता है?
. अन्य सभी शारीरिक दृष्टि से बाधित या अशक्त मतदाताओं की भांति दृष्टि बाधित मतदाताओं को भी एक सहयोगी साथ ले जाने की अनुमति दी जाती है जो वोट डालने में उसकी सहायता करता है। यह सहयोगी मतदान अनुभाग तक मतदाता के साथ जा सकता है। इसके अतिरिक्त अनेक ईवीएम मशीनों पर ‘ब्रेल’ लिपि में बटन यूनिट अंकित किए गए हैं, जिनपर उम्मीदवार का क्रमांक लिखा होता है। चुने हुए मतदान केन्द्रों पर पीठासीन अधिकारियों द्वारा चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों के नाम और क्रमांक का डमी मतपत्र उपलब्ध कराया जाता है। ऐसे मतदान केन्द्रों के पीठासीन अधिकारी दृष्टि बाधित मतदाता के अनुरोध पर उसे डमी मतपत्र उपलब्ध करायेंगे। मतदाता अपनी पसंद के उम्मीदवार का क्रमांक नोट करके डमी मतपत्र पीठासीन अधिकारी को लौटा देगा और मतदान अनुभाग में अपना वोट दर्ज कर सकेगा। ”ब्रेल” में लिखे संकेतों से वह स्वयं बैलट यूनिट पर अपनी पसंद के उम्मीदवार के क्रमांक का पता लगा सकेगा और स्वतंत्र रूप से वोट डाल सकेगा।

•2004 के आम चुनाव पूरी तरह ईवीएम की सहायता से कराए गए और देश भर में 10.75 लाख ईवीएम इस्तेमाल की गयी।

•1999 के आम चुनाव में मतपत्रों की प्रिंटिंग के लिए 7700 मीट्रिक टन कागज इस्तेमाल किया गया था।

•1996 के आम चुनाव में मतपत्रों की प्रिंटिंग के लिए 8800 मीट्रिक टन कागज इस्तेमाल किया गया था।

भाजपा घोषणापत्र (लोकसभा चुनाव 2009) का पूरा पाठ

kamal5प्रस्तावना
विश्व की प्राचीनतम और जीवंत सभ्यताओं में भारतीय सभ्यता का स्थान अप्रतिम है। भारत का न सिर्फ एक महान अतीत और अत्यन्त प्राचीन इतिहास है, वरन् लोग मानते हैं कि यह एक विराट सम्पदा और ज्ञान से युक्त देश है। भारत को निरन्तर विदेशी हमलों और गुलामी का सामना करना पड़ा है। इसके कारण भारत का गौरव तथा इसकी अभूतपूर्व उपलब्धियों को धक्का लगा है। वे भारतीय, विशेषरूप से अंग्रेजों की शिक्षा प्रणाली में पढे-लिखे लोग भारत की संस्कृति और सभ्यता की महानता ही नहीं खो बैठे हैं, बल्कि वे अपनी तकनीकी उपलब्धियों तथा विपुल प्राकृतिक संसाधनों से भी दृष्टि हटा बैठे हैं।

इतिहास साक्षी है कि भारत एक अपार वैभव का देश था। ईश्वर ने इसे शस्य श्यामला, सुजलां सुफलाम् धरा का वरदान दिया है। दुनिया में भारत के किसानों को सर्वोत्कृष्ट कृषि विशेषज्ञ माना जाता था। चौथी शताब्दी ई0पूर्व से 19वीं शताब्दी के आरम्भ तक इन यात्रियों के वृत्तांत बताते हैं कि विश्व हमारी कृषि समृध्दि देखकर अचम्भित रह जाता था। तंजौर शिलालेखों (900-1200 ई0) और रामनाथपुरम शिलालेखों (1325 ई0) के रिकार्ड से पता चलता है कि यहां प्रति हेक्टेयर 15 से 20 टन धान की पैदावार होती थी। अत: आवश्यक है कि भारत पुन: उस कृषि तकनीकी को खोजे जिसमें हम अपनी बुध्दि और कृषि दक्षता का प्रयोग करते थे जिससे हमारा देश खाद्य के भण्डार से परिपूर्ण रहता था।

भारतीय अर्थव्यवस्था भी उतनी ही समृध्द थी जितनी हमारी कृषि। मैगस्थनीज से लेकर फाह्यान, ह्वेनसांग तक सभी विदेशियों ने भारत की भौतिक समृध्दि का गुणगान किया है। 1780 के कालखण्ड में बिहार के ग्रामों को स्वच्छता एवं आतिथ्य का श्रेष्ठ उदाहरण माना जाता था। गलियों की सफाई और धुलाई होती थी। प्रजा में यात्रियों के आतिथ्य-सत्कार तथा उनकी आवश्यकताओं को पूर्ण करने के प्रति असाधारण भाव रहता था।

पुराने ब्रिटिश दस्तावेजों से पता चलता है कि 18वीं और 19वीं शताब्दी के आरम्भ के ब्रिटेन के मुकाबले भारत तकनीकी और शैक्षिक क्षेत्रों में कहीं उन्नतिशील देश था। इसकी कृषि तकनीकी और उत्पादकता के रूप में चरमोत्कृष्ट थी, यहां लोहे और इस्पात का बढ़िया स्तर का उत्पादन होता था। दिल्ली महरौली स्थित लौह-स्तम्भ ने 1500 वर्षों से भी अधिक समय के थपेड़े झेले हैं और इस पर भी धूल जमने या जंग लगने के चिह्न नहीं है। विश्व के धातु-विज्ञानी तकनीकी के इस उच्च स्तर पर आश्चर्यचकित थे। भारत का वस्त्र उद्योग ब्रिटिश-पूर्व समय में एक बड़ा औद्योगिक उद्यम था। 18वीं शताब्दी के अंत तक भारत वस्त्र उद्योग का सबसे बड़ा निर्माता और निर्यातक रहा है, जबकि चीन का दूसरा नम्बर था।
भारत में खगोलशास्त्र, गणित, रसायन, भौतिकी और जीवविज्ञान में जो आधुनिकतम उल्लेख मिलता है, विश्वभर में इन सभी की मान्यता थी। औषधि और शल्य चिकित्सा के क्षेत्रों में भी इसका योगदान विख्यात है।

जीवंत सभ्यता के निर्माण में आयुर्वेद और योग का योगदान विश्व को भारत का सर्वोत्कृष्ट उपहार है। भारत प्लास्टिक शल्य चिकित्सा का ज्ञान रखता था और शताब्दियों से इसमें पारंगत रहा है और वास्तव में तो यहीं आधुनिक प्लास्टिक शल्य चिकित्सा का आधार भी है। डा0 एडवर्ड जेभर द्वारा आविष्कृत वेक्सीनेशन से पहले भारत सदियों से टीका लगाकर इलाज करता था।

फाह्यान ने 400 ई0 में मगध के बारे में लिखते हुए कहा है कि भारत में बड़े सुनियोजित ढंग से स्वास्थ्य प्रणाली प्रचलित थी। फाह्यान के अनुसार, इस देश के कुलीन व्यक्तियों और गृहस्वामियों ने सभी गरीबों, अनाथों, अपंगों और बीमार व्यक्तियों के लिए शहर में चिकित्सालयों की स्थापना की थी। ”उन्हें हर प्रकार की आवश्यक मदद दी जाती थी। चिकित्सक उनकी बीमारियों की जांच करते थे और उनके रोगी के अनुसार उन्हें भोजन, पानी, औषधि या काढ़ा दिया जाता था, इलाज होने के बाद वे स्वस्थ होकर लौटते थे।”

भारतीय विद्वानों के लेखन व अनेक वृतान्तों से नि:संदेह स्पष्ट है कि 18वीं सदी में भारत में न केवल बेहतर स्वदेशी शिक्षा व्यवस्था थी, बल्कि उस समय इंग्लैण्ड में जो प्रणाली चल रही थी उसे देखते हुए जनसंख्या के हिसाब से स्कूलों और कॉलेजों की संख्या, स्कूलों और कॉलेजों में विद्यार्थियों की संख्या, विद्यार्थियों की कर्मठता और तीव्र बुध्दि, अध्यापकों की गुणवत्ता और निजी एवं सामाजिक संसाधनों से दी जाने वाली आर्थिक सहायता की तुलना में हमारे देश में कहीं अधिक बेहतर शिक्षा व्यवस्था थी। उस समय की प्रचलित धारणा के विपरीत स्कूलों और कॉलेजों की उपस्थिति में अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों, मुस्लिमों और कन्याओं की संख्या का प्रतिशत अत्यधिक प्रभावशाली था। महात्मा गांधी ने जब यह कहा था तो बहुत सही कहा था कि 1870 में कोई लगभग 50ं-60 वर्ष पूर्व साक्षरता की तुलना में 1931 में भारत अधिक निरक्षर था। भारत जलपोत निर्माण के साथ-साथ रंगरेजी के निर्माण और प्रयोग एवं कागज निर्माण में भी विशेषज्ञता रखता था।

1600 ई0 में भारत का विश्व के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 22.5 प्रतिशत हिस्सा था जो 1870 में ब्रिटिश शासनकाल में गिरकर 12.25 प्रतिशत रह गया, जबकि उसी काल में ब्रिटिश का हिस्सा तेजी से बढ़कर 1.8 प्रतिशत से 9.1 प्रतिशत हो गया। जब अंग्रेजों ने भारत छोड़ा तो अर्थव्यवस्था पूरी तरह से अस्त-व्यस्त थी और विश्व में विनिर्माण, व्यापार और जीडीपी में भारत का हिस्सा गिरता गया। स्वतंत्रता के 62 वर्षों के बाद भी विश्व बाजार में भारत का हिस्सा अब भी एक प्रतिशत से भी कम है।

भारत की समृध्दि, इसकी प्रतिभा और इसकी नैतिक समाज की स्थिति को लार्ड मैकॉले ने ब्रिटिश पार्लियामेंट में 2 फरवरी 1835 को दिए अपने भाषण में जो कुछ कहा था, उसे भलीभांति समझा जा सकता है-

”मैंने भारत यात्रा एक छोर से दूसरे छोर तक की है और वहां एक भी व्यक्ति दिखाई नहीं पड़ा जो भिखारी हो, चोर हो, मैंने इस देश में इतना धन-वैभव देखा है, मैंने इतने अधिक नैतिक मूल्य देखे हैं, इतने क्षमतावान लोग देखे हैं, कि मुझे नहीं लगता कि हम कभी भी इस देश को जीत पाएंगे। यह तभी संभव हो पाएगा, यदि हम इस राष्ट्र की रीढ़ की हड्डी ही तोड़ डालें, जो इस देश की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत में बसती है और, इसलिए मेरा प्रस्ताव है कि हम इसकी पुरानी और प्राचीन शिक्षा प्रणाली, इसकी संस्कृति को बदल डालें। यदि भारतीय यह सोचने लगे कि विदेशी और इंग्लिश ही उनकी अपनी चीजों और भाषा से ज्यादा बेहतर हैं तो फिर भारतीय अपना सम्मान, अपनी संस्कृति खो देंगे और फिर वे वहीं करेंगे जो हम उनसे कराना चाहेंगे, तभी वह देश सचमुच दास बन सकेगा।” अंग्रेजों ने इस नीति को पूरी सक्रियता से कार्यान्वित किया और ऐसी शिक्षा प्रणाली का निर्माण किया जिससे भारतीय अपनी प्रणाली को भूल जाएं।

कोई भी राष्ट्र अपनी घरेलू और विदेश नीतियों का कार्यक्रम तब तक तैयार नहीं कर सकता है जब तक उसे स्वयं अपना, अपने इतिहास, अपनी शक्ति और विफलताओं का स्पष्ट ज्ञान न हो। यह बात किसी भी देश के लिए और भी महत्वपूर्ण बन जाती है कि उसे अपने आधार का ज्ञान हो जिस पर आज के इस बहुत तेजी से चलते और वैश्वीकृत विश्व में उसके लोगों की जड़ें टिकी हों। बाल गंगाधर तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले, श्रीअरविन्द, महात्मा गांधी, डॉ. हेडगेवार जैसे स्वतंत्रता आन्दोलन का अभियान छेड़ने वाले महान नेताओं ने भारत की सभ्यता की स्पष्ट दृष्टि का निर्माण किया था। भारतीय विचारों और कार्यों के तौर-तरीके उनके राजनीतिक कार्यों के मूल में रहते थे। इन नेताओं के पास ऐसी दूरदृष्टि थी कि वे भारत के राजनैतिक और आर्थिक संस्थाओं एंव सभ्यता के प्रति चेतना का अविच्छिन्न रूप प्रदान कर भारत को एक देश, एक जन और एक राष्ट्र के रूप में ढाल सकें।

दुर्भाग्य की बात है कि स्वतंत्र भारत के नेताओं ने जल्द ही इस दूरदृष्टि को त्याग दिया और वे एक ऐसे संस्थागत ढांचे के निर्माण के काम में लगे रहे, जिसे अंग्रेजों ने तैयार किया था और जिसका भारत की विश्व-दृष्टि एवं उसकी जीवन-शक्ति से कोई सरोकार नहीं था, जो लगातार बाहरी हमलों और विदेशी शासन के रहते हुए भी
प्राण-शक्ति का काम करती।

हमारे छह दशकों की स्वतंत्रता के कार्यकाल में कुछ थोड़े समय को छोड़ कर, हमारे देश का शासन कांग्रेस और उनके सहयोगी दलों के हाथों में रहा है। दुर्भाग्य है कि उन्होंने कभी भी भारत की सभ्यताओं की चेतना को समझ कर शासन के लिए सामाजिक-आर्थिक और राजनैतिक प्रतिमान तैयार करने पर विचार नहीं किया। इसकी बजाए उन्होंने जो कुछ भी और जैसा भी पश्चिमी देशों में हो रहा था, उसकी नकल करने की कोशिश की। आज इसके विनाशकारी परिणाम हमारे सामने हैं।

स्वतंत्रता के बाद आवश्यकता तो यह थी कि हम भारत के लोगों की भावनाओं और समझबूझ जानकर भारत की राजव्यवस्था को नया रूप प्रदान करते। ऐसा न होने का परिणाम यह हुआ कि हमारे सामने एक खण्डित समाज है, विशाल स्तर पर आर्थिक असमानताएं हैं, आतंकवाद और साम्प्रदायिक संघर्ष मौजूद हैं, असुरक्षा है, नैतिक, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक पतन का दृश्य विद्यमान है और है एक ऐसा राज्य-तंत्र जो किसी समस्या का समाधान नहीं कर सकता है। कभी-कभी कामकाज के प्रबंधन के लिए उपचारीय व्यवस्था लागू करने की कोशिश की जाती है, परन्तु सफलता हाथ नहीं आती। आवश्यकता तो ‘भारतीय विचार’ और साथ ही लोगों की भावनाओं और वरीयताओं पर आम सहमति बनाना है और देखना होगा कि किस प्रकार से भारत के लोग इसे विभिन्न सामाजिक-आर्थिक, राजनैतिक संगठनों और सांस्कृतिक, सौन्दर्यानुभूति और नैतिक समझ-बूझ के लिए अभिव्यक्त करते हैं।

हमारे ऋषि-मुनियों और दार्शनिकों ने भारत की सभ्यताओं के प्रति चेतना को भली-भांति परिभाषित किया है और इनकी जड़ें भारतीय अथवा हिन्दू विश्व-दृष्टि में समाहित हैं। यह विश्व दृष्टि सम्पूर्ण और आध्यात्मिक है। इसमें माना गया है कि निर्माण-योजना में विविधता तो जन्मजात से ही विद्यमान रहती है, यह विभिन्न रूपों में उसी ब्रह्माण्ड के स्वरूप की झलक प्रदान करती है। इस प्रकार हम विविधता को स्वीकार ही नहीं करते, बल्कि उसका सम्मान भी करते हैं। यह एक समावेशी दृष्टि है और कहा जा सकता है कि हिन्दुत्व आध्यात्मिक सह-अस्तित्व का सबसे श्रेष्ठ अनुभव है। भारतीय विचारों की परिकल्पना राष्ट्रीय सीमाओं के बहुत दूर तक पहुंचती है और वैदिक ऋषियों ने पुरातनकाल से ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की घोषणा कर दी थी। भारतीय विश्वदृष्टि का क्षितिज, एक तरफ बामियान/कांधार से बोरोबुदुर/इंडोनेशिया तक फैला है तो दूसरी तरफ श्रीलंका से जापान तक इसका विस्तार बना रहता है। भारतीय संस्कृति के चिह्न तो विश्व के कुछ अन्य भागों में भी पाए जाते हैं। प्राचीन काल में भारत भले ही भौगोलिक रूप से अलग-थलग पड़ गया हो, परन्तु सांस्कृतिक सम्बन्धों, व्यापार और वाणिज्य के क्षेत्र में वह कभी अलग नहीं पड़ा।

मानव जाति की अनिवार्य एकता में आस्था रखना, यहां के हिन्दू चिंतन की अभूतपूर्व विशेषता है। वैदिक ऋषि भी घोषित करते हैं- ‘एकम् सद्विप्रा: बहुधा वद्न्ति।’ यह निश्चित ही यथार्थ में सेक्युलर विचार है क्योंकि इसमें माना गया है कि कोई भी व्यक्ति उस परमपिता तक पहुंचने के लिए स्वयं अपने पथ का अनुसरण कर सकता है। हिन्दू तो धर्मों की समरसता के विश्वास के लिए जाने जाते हैं इसी विश्व दृष्टि के कारण विश्व के विभिन्न भागों में लगभग जितने प्रचलित धर्म हैं, भारत में बड़ी शांतिपूर्वक उनका आचरण होता है और यह सदा होता भी रहेगा।

आज स्वतंत्रता के छह दशक बीत जाने पर भी भारत इनकी अंतर्निहित शक्ति और समय की भावना को पहचान नहीं पाया है। फलस्वरूप दिशाविहीन हो गया है। साथ ही इच्छा शक्ति भी खो बैठा है। यह लक्ष्य-विहीनता बहुत भारी है और इसने राष्ट्रीय जीवन के सभी पहलुओं को घेर लिया है। इस स्थिति में परिवर्तन लाने की आवश्यकता है। हमें एक नया उदाहरण प्रस्तुत करना होगा जिससे एक ऐसे समृध्द, प्रगतिशील और शक्तिशाली भारत का निर्माण्ा हो, जिसकी आवाज़ अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर सुनी जा सके।
भारत इस लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है बशर्ते कि लोग गम्भीरता से इस कार्य में जुट जाएं। हमारे पास विपुल मानव और भौतिकी संसाधनों का भण्डार है। भारतीय युवाओं ने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी क्षमताएं दिखा दी हैं और अपनी सामर्थ्य प्रमाणित कर दी है। विश्व स्तरीय सुविधाएं उपलब्ध न होने के बावजूद विज्ञान और प्रौद्योगिकी, अन्तरिक्ष और परमाणु ऊर्जा के क्षेत्रों में उन्होंने अभूतपूर्व प्रदर्शन कर दिखाया है। उद्योग, व्यापार और प्रबंधन व सूचना संचार प्रौद्योगिकी में उन्होंने सफलतापूर्वक चुनौतीपूर्ण कार्य कर दिखाए हैं। इतनी ऊर्जावान और जीवंत युवाशक्ति को लेकर और विवेकपूर्ण ढंग से प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर, भारतीय लोग करिश्मा दिखा सकते हैं, बशर्ते वे भारत में रहकर आत्मविश्वास और गौरव से कार्य कर सकें। हमें अपने युवाओं को निर्णयकारी प्रक्रिया में प्रमुख भूमिका निभाने और पूर्ण अवसर प्रदान करने होंगे। वे ही हमारे भविष्य हैं और हमारी समृध्दि के वाहक हैं।

भारत के विकास को लेकर इस या उस मॉडल को अपनाने के लिए आंख मींच कर नकल करने की जरूरत नहीं है। उसे अपनी प्रतिभा और संसाधनों के अनुरूप अपना एक मॉडल तैयार करना होगा। पं0 दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद में ऐसा मॉडल निहित है। भारत को मौलिक बनना होगा, भारत को नवीन आविष्कार करने होंगे और भारत को वैश्विक नेतृत्व की सीढ़ी पर ऊंचे ही ऊंचे चढ़ते चले जाना होगा। आज वैश्विक परिदृश्य एक समाधान, एक क्रांतिकारी समाधान की अपेक्षा करता है ताकि विश्व को विशाल आर्थिक मंदी और पूरे विश्व पर छाए आतंकवाद के कारण आने वाले विनाश से बचाया जा सके। भारत को इस निर्णायक घड़ी में अपनी ऐतिहासिक भूमिका निभानी होगी और इसके लिए भाजपा एक आधुनिक, शक्तिशाली, समृध्द, प्रगतिशील और सुरक्षित भारत के निर्माण के लिए प्रतिबध्द है।

डा0 मुरली मनोहर जोशी
अध्यक्ष
घोषणापत्र समिति
मार्च 2009

स्थिरता एवं सुरक्षा के लिए भारत को एक निर्णायक नेतृत्व की आवश्यकता

2004 में कांग्रेस का सत्ता में आना भाग्य के अजीब चक्र का परिणाम ही कहा जाएगा। वामपंथी दलों की मदद से कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) ने संसद में बहुमत प्राप्त कर लिया, जिसमें तालमेल का नितांत अभाव था कांग्रेस के सहयोगी दलों में अलग-अलग मंत्री अपने आवंटित मंत्रिमण्डलों को अपनी निजी जायदाद समझ कर चला रहे थे। यह वह सरकार थी जो सामूहिक उत्तरदायित्व और जवाबदेही के इन दो सिध्दातों से पूरी तरह बेखबर थी।

देश पर एक प्रधानमंत्री का बोझ लाद लिया गया, जो पद पर भले रहा हो, परन्तु सत्ता उसके पास नहीं थी। सरकार सत्ता में तो थी परन्तु अधिकारविहीन थी। माना जाता था कि यह सरकार आम आदमी के कल्याण का कार्य करेगी। आज जब संप्रग पांच वर्ष के बाद सत्ता से निष्कासित होने की तैयारी में है तो उसके पास ‘हाथ’ बढ़ा कर ‘आम आदमी’ के हित को दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है।

यह सरकार चार बातों के लिए याद की जाएगी। इस सरकार का नेतृत्व आज तक के देश के सबसे कमजोर प्रधानमंत्री ने किया। इस सरकार द्वारा एनडीए की नीतियों को पलट देने के कारण देश में असुरक्षा की भावना बढ़ी जिसे हम बार-बार हुए आतंकवादी हमलों, माओवादी विद्रोहों और अलगाववादी हिंसा के रूप में देख सकते हैं जिससे कुल मिलाकर सैकड़ों निर्दोष लोगों के प्राण गए। इस सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था की बेहद बदइंतजामी के कारण मुद्रास्फीति बढ़ी, मंहगाई बढ़ी, नौकरियां गई और तालाबंदियां हुईं। इस सरकार ने राज्य की एजेंसियों, अर्थात् सीबीआई का दुरुपयोग कर उच्च पदों पर भ्रष्टाचार को संरक्षण दिया।

कांग्रेस ने पुराने कानूनों में दिखावटी बदलाव करके राष्ट्रीय सुरक्षा मोर्चे के अपने भयावह रिकार्ड पर लीपापोती करने का प्रयास किया, जिसमें विशेषरूप से आतंकवाद से नागरिकों की रक्षा करने में उसकी विफलता साफ दिखाई पड़ती है। इतना ही काफी नहीं रहा। इस सरकार ने आंकड़ों के साथ धोखा कर खाद्य पदार्थों की बढ़ी कीमतों की भी बेहद अनदेखी की, जो 2004 की तुलना में 8 प्रतिशत अधिक हो चुकी है।

पिछले वर्ष असंगठित क्षेत्र में लाखों लोगों की नौकरियां चली गई। कुशल श्रमिक भी संगठित क्षेत्रों में अपनी नौकरियां गंवा रहे हैं। यह स्थिति तो बेरोजगारी से भी बदतर है क्योंकि इसके कारण निश्चित आय पर निर्भर परिवारों के लोग कंगाल हो जाते है और राष्ट्रीय भावना मंद पड़ जाती है।

भारत के युवाओं पर सबसे अधिक मार पड़ी है, विशेष रूप से ऐसे युवा जो नौकरी बाजार में रोजगार पाने के उम्मीद लगाए बैठे थे। कांग्रेस-नीत यूपीए सरकार ने उन्हें अंधकारमय भविष्य की राह पर छोड़ दिया।

जहां तक गरीबों की स्थिति है, कांग्रेस नेतृत्व में चले शासन में वे परित्यक्त महसूस करने लगे। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी कार्यक्रम भी उतना ही ‘असफल’ रहा, जितनी सरकार की अन्य योजनाएं। यूपीए सरकार पर यह बड़ी कटु टिप्पणी है कि उसके शासनकाल के पांच वर्षों में 5.5 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे चले गए।

यह भारतीय सांख्यिकी संस्थान के अध्ययन जो कि राष्ट्रीय सैम्पल सर्वे संगठन के द्वारा संकलित आंकड़ों पर आधारित है के अनुसार है। वास्तविक आंकड़े इससे कहीं अधिक होगें।

भयंकर गरीबी तथा बढ़ते हुए ऋणभार से बचने के लिए ग्रामीण भारत में हजारों किसानों ने आत्महत्या कर ली। वे सरकारी उपेक्षा के शिकार हैं। कांग्रेस-नीत यूपीए शासन काल की इतनी ही भर्त्सनापूर्ण स्थिति नगरों में बढ़ती गरीबी की भी है। अनुमान है कि ‘इंण्डिया : अर्बन पावर्टी रिपोर्ट 2009′ के अनुसार शहरों और कस्बों की 23.7 प्रतिशत जनसंख्या गंदी बस्तियों में रहती है, जहां इन लोगों की जिन्दगी आंधी-तूफान, अपराधों, बीमारी और तनाव के बीच गुजरती है।’

इस प्रकार की घोर गरीबी और अपवंचितता, गरीबी रेखा के नीचे बढ़ते लोगों की संख्या राष्ट्र की महत्वाकांक्षा के विपरीत है। इन लोगों की भारी संख्या भारत को महाशक्ति बनाने में बाधक है और उन्हें दूर करने के लिए सरकार के उपचारी हस्तक्षेप की आवश्यकता है, जिसके लिए भाजपा सत्ता में आने के बाद उपाय करने का प्रस्ताव करती है।

एनडीए के शासनकाल में स्थिरता भारत के समृध्द होने में सहायक हुई थी। यूपीए के शासनकाल में हुए भटकाव से विकासगति उलट गई। भाजपा स्थिरता को पुन: बहाल करेगी।

भाजपा सत्ता में आने के बाद तुरंत ही सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के प्रमुख मुद्दों का समाधान करेगी। भाजपा ढांचागत परियोजनाओं में भारी निवेश कर, कृषि को स्वस्थ बनाने और उद्योगों के लिए आसानी से ऋण उपलब्ध कराकर श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार की रोजगार के अवसर बढ़ाने, खुशहाली प्रदान करने वाली नीतियों को फिर से शुरू करेगी और साथ ही साथ आतंकवादियों की लूट-खसोट से सभी लोगों की सुरक्षा भी सुनिश्चित करेगी।

आज भारत के सामने नेतृत्व का सबसे बड़ा संकट है। देश को एक ऐसे कृतसंकल्प नेता की आवश्यकता है जो क्षमता, प्रतिबध्दता और विश्वास से परिपूर्ण होकर स्थिति को संभाल सके और आगे आकर नेतृत्व कर सके। देश को ऐसे नेता की जरूरत है जो सरकार की विश्वसनीयता और स्वयं लोगों की विश्वसनीयता को बहाल करे।

राजव्यवस्था के लिए ऐसे नेता की आवश्यकता है जो संघर्ष के बजाय आम सहमति, टकराव की बजाय विचार-विमर्श के मूल्यों को पहचानता हो। तभी कांग्रेस राज के दौरान हर क्षेत्र में फैली विफलता का स्थान सुशासन को मिल पाएगा।

ऐसे नेता केवल श्री लालकृष्ण आडवाणी हैं।

श्री आडवाणी का पिछले छ: दशकों का राष्ट्रसेवा का शानदार रिकार्ड है। वे एक बेदाग छवि के नेता हैं जो आपातकाल (1975-77) के दौरान लोकतंत्र के प्रमुख प्रणेताओं में से एक हैं जिन्होंने 19 महीने जेल में बिताए।

इन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात सबसे बड़े जनांदोलन, अयोधया आन्दोलन का नेतृत्व किया तथा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद एवं पंथनिरपेक्षता के वास्तविक अर्थों पर सशक्त बहस की शुरुआत की। केन्द्र में स्थिर एवं सफल गैर-कांग्रेसी गठबंधन सरकार (1998-2004) बनाने तथा भाजपानीत एनडीए के विजय में वे श्री वाजपेयी के साथ प्रमुख नेतृत्वकर्ता थे। भारत के उप-प्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री के रूप में देश को संकट की घड़ी में निकालने में इन्होंने श्री वाजपेयी की कुशलतापूर्वक सहायता की।

श्री आडवाणी के नेतृत्व में एनडीए के मित्रदलों के साथ 2009 के आम चुनाव में जनादेश मांगेते हुए भाजपा गर्व का अनुभव कर रही है।

भाजपा 2009 का 15वां लोकसभा चुनाव एक ऐसे घोषणा-पत्र पर लड़ रही है जो पार्टी को परिवर्तन के उस कार्यक्रम से प्रतिबध्द करता है जो तीन लक्ष्यों : सुशासन, विकास एवं सुरुरक्षा से निर्देशित है। हमारा विशेष ध्यान राष्ट्र के युवाओं पर होगा, उनकी चिंताओं का समाधान करने पर होगा और उनकी महत्वाकांक्षाओं को पूर्ण करने में उनकी मदद करने पर होगा। हम उच्चस्तरीय शिक्षा प्रदान कर श्रेष्ठता (Excellence) के माध्यम से सशक्तिकरण लाने पर जोर देंगे। हम लोगों के जान-माल की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे। हम अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित कर इसे कृषि, ग्रामीण विकास एवं असंगठित तथा अनौपचारिक क्षेत्र की ओर उन्मुख करेंगे। युवाओं के लिए रोजगार के पर्याप्त अवसर महंगाई घटाना तथा आधारभूत संरचना सम्बन्धी परियोजनाओं में भारी निवेश हमारी प्राथमिकता होगी।

भाजपा का मानना है कि पांच वर्षों के लक्ष्यविहीन शासन तथा गंवाए गए अवसरों के बाद अब समय आ गया है कि ऐसी सरकार बने जिसे ‘जैसी चाहते थे वैसी सरकार’ कहा जा सके। हमारी प्रमुख चिंता भारत का त्वरित, समावेशी, समान और बहुमुखी विकास एवं स्थायी वृध्दि करना होगा जिससे अधिक से अधिक लोगों को लाभ पहुंचे। हम ग्रामीण विकास में निवेश करेंगे, हम अर्थव्यवस्था को पुन: सशक्त बनाएंगे; हम उत्पादकता सुनिश्चित कर एवं किसानों को निश्चित आय प्रदान कर कृषि को फिर से लाभप्रद रोजगार के असंख्य अवसर पैदा कर लोगों की आजीविका को सुरक्षित करेंगे।

राष्ट्रीय सुरक्षा : इस देश में फिर से भय का राज नहीं होगा

पिछले पांच वर्षों का शासनकाल लोगों के लिए दु:स्वप्न की तरह बीता है। इस अक्षम यूपीए सरकार के कारण आतंकवादियों, अलगाववादियों और विद्रोहियों ने खुल कर मौत और विध्वंस का ताडंव किया। 2005 में दीवाली की पूर्व संध्या पर दिल्ली में किए गए दु:साहसी हमले से लेकर अयोध्या में राम मंदिर पर फिदायीन हमला, हैदराबाद (मक्का मस्जिद भी शामिल), बंगलौर, जयपुर, अहमदाबाद और गुवाहाटी के भयानक बम-विस्फोटों से लेकर काशी में संकटमोचन मंदिर की पूजा-अर्चना करने वाले लोगों का कत्लेआम। आतंकवादियों ने निर्भय होकर बार-बार हमले किए। उधर प्रधानमंत्री ने संदिग्ध आतंकवादियों की तकलीफ से पीड़ित होकर बिना सोए रातें बिताईं तथा वे हमलों में मारे गए आतंकवादियों के रिश्तेदारों को ‘पुरस्कार’ देने के लिए बेताब रहे।

यूपीए सरकार ने भाजपा-नीत एनडीए सरकार द्वारा बनायी गयी आतंक-विरोधी व्यवस्था खत्म कर अपने शासनकाल की शुरुआत की। पोटा को निरस्त किया व जांच पड़ताल रोकी और आतंकवादियों पर मुकदमा चलाने की गति धीमी कर दी। संसद पर दु:साहसी हमला करने के पीछे मास्टरमाइंड मौहम्मद अफजल गुरू को पोटा के अन्तर्गत सर्वोच्च न्यायालय ने फांसी की सजा दी। परन्तु एक अनिर्णायक प्रधानमंत्री और कमजोर सरकार ने फांसी नहीं दी और भारत के दुश्मनों को स्पष्ट संकेत दिया कि जब तक कांग्रेस सरकार सत्ता में है, तब तक उसे सजा नहीं दी जाएगी।

इसलिए इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि आतंकवादी फिर हमारे शहरों में आए और मौत तथा विध्वंस के खूनी निशान छोड़ जाए। देश की राजधानी दिल्ली और देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई पर दोबारा हमले हुए और यही बात भारत की तकनीकी राजधानी बंगलौर में भी हुई। लगता है कि दैनिक यात्रियों की गाड़ियों पर बम विस्फोट काफी नहीं था कि आईएसआई ने मुम्बई में भयानक हमला करने के लिए फिदायीन भेज दिए जिन्होंने 26 नवंबर, 2008 को हमला किया, जो 60 घंटे से अधिक समय तक चलता रहा। भारत आतंकवादियों के सामने इससे पहले कभी इतना लाचार नहीं दिखा।

पाकिस्तानी एजेंसियों द्वारा प्रायोजित आतंकवाद शहरों, कस्बों और गांवों में छाए भय के पीछे एक बहुत बड़ा कारण है। दूसरी ओर आम आदमी के जान-माल को माओवादियों से भी उतना ही खतरा है, जिन्होंने 13 राज्यों के 156 जिलों में हिंसा का जाल फैला दिया है। एनडीए सरकार द्वारा तैयार किए गए अंतर्राज्यीय समन्वय तंत्र को खत्म कर दिया गया और राज्य सरकारों को माओवादियों की बढ़ती दुश्मनी के सामने स्वयं अपनी रक्षा करने के लिए छोड़ दिया गया। जम्मू व कश्मीर में अलगाववादी हिंसा जारी रखने के लिए पाकिस्तानी आतंकवादियों की सेवाएं लेते रहते हैं। उत्तर-पूर्व में उग्रवादी निर्ममता से निर्दोष लोगों को मारते हैं और उनके अंगों को काट डालते हैं। असम की स्थिति विशेष रूप से चिंता का विषय है क्योंकि जिस उल्फा को एनडीए के शासनकाल में दबा दिया था, उन्होंने फिर से गु्रप बनाना और अपने कैडर को फिर से हथियार देना शुरु कर दिया है। उन्होंने आतंक की अथाह लहर पैदा कर दी है। राज्य सरकार ने हिंसा रोकने या उल्फा को दंडित करने के लिए कुछ नहीं किया है, उल्टे हत्यारों से बिना शर्त बात करने का प्रस्ताव रखा जा रहा है।

पूर्वी सीमा पर बेरोक-टोक घुसपैठ भी आन्तरिक सुरक्षा के लिए खतरा है। आई.एस.आई., इसके जिहादी संगठन और स्थानीय आतंकी सेलों ने इन अवैध घुसपैठियों का दुरुपयोग किया, साथ ही विदेशी आतंकवादियों को हथियारों की मदद भी दी। सुप्रीम कोर्ट ने अवैध घुसपैठ को ‘वाह्य आक्रमण’ नाम दिया है और आई.एम.डी.टी. एक्ट को निरस्त कर दिया। परन्तु कांग्रेस ने, केन्द्र तथा असम दोनों स्थानों पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को सरकारी आदेशों द्वारा घुमा-फिरा कर बिगाड़ने की कोशिश की है। गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने अवैध घुसपैठ रोकने के लिए राज्य सरकार पर कुछ न किए जाने पर बहुत निंदा की थी। उच्च न्यायालय ने उस पाकिस्तानी का उल्लेख किया जो बांग्लादेश के रास्ते असम में प्रवेश कर गया और उसने बिना किसी चुनौती के विधान सभा चुनाव लड़ लिया।

वोट बैंक की राजनीति से न केवल पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत के एक बड़े इलाके की जनसांख्यिकी बदल गई है, बल्कि इससे राज्य के सत्ता-बल का भी क्षय हुआ है। भारत आग के ढेर पर बैठा है। इस सतत् अवैध घुसपैठ के परिणाम निश्चय ही विनाशकारी होंगे।

अब सत्ता से जाते हुए यूपीए सरकार ने पुराने कानूनों में संशोधन कर छेड़छाड़ करने का प्रयास कर और आतंकवाद से लड़ने के लिए राष्ट्रीय जांच अधिकरण बनाकर लोगों को बेवकूफ बनाना चाहा है। परन्तु इस प्रकार के अधूरे प्रयासों से 26/11 हमले के बाद फैला गुस्सा और बेचैनी न तो कम होने वाली है और न ही आतंकवाद से खतरे से निपटने के लिए सही दृष्टिकोण है।

भाजपा सत्ता में आने पर 100 दिन के भीतर निम्नलिखित उपाय शुरू करेगी :

1. कांग्रेस द्वारा समाप्त किए गए आतंक विरोधी तंत्र को फिर से बहाल करना; पोटा में सुधार लाना ताकि एक निवारक एवं उपकरण के रूप में इसे और अधिक कारगर बनाया जाए ताकि किसी निर्दोष व्यक्ति को परेशान किए बिना अपराधियों पर मुकदमा चलाया जा सके; और राष्ट्रीय जांच अधिकरण के कार्यप्रणाली को सुदृढ़ किया जाएगा।

2. राज्य सरकारों द्वारा संगठित अपराध और आतंकवाद के संबध्द में बनाए गए कानून को सहमति दी जाएगी; दूसरे राज्य सरकारों को भी ऐसे ही कानून बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।

3. अवैध घुसपैठियों का पता चलाने व उन्हें वापस करने के लिए अभियान चलाएगी।

4. आई बी और रॉ जैसी खुफिया एजेंसियों को पूरी तरह से चुस्त-दुरूस्त किया जाएगा, और खुफिया जानकारियों के संग्रहण और प्रक्रिया की वर्तमान व्यवस्था को दुरुस्त करेंगे। खुफिया एजेंसियों के आधुनिकीकरण पर विशाल स्तर पर काम होगा ताकि वे बेहतर ढंग से तकनीकी का प्रयोग कर सकें और देश व विदेश में आतंकवाद के बदलते रूप पर तेजी से कार्रवाई कर सके। राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद को सभी खुफिया एजेंसियों का मुख्य केन्द्र बनाया जाएगा। यह सही समय पर गोपनीय सूचनाएं भेजने के लिए जवाबदेह होगी और खुफिया एजेंसियां चूकों के लिए भी जिम्मेदार होंगी। खुफिया सूचनाओं के संसाधन की प्रक्रिया में एजेंसियों की बहुलता को समाप्त किया जाएगा। खुफिया एजेंसियों में नियुक्तियां योग्यता के आधार पर होंगी, न कि राजनैतिक संरक्षण के आधाार पर, जैसा कि यूपीए के शासनकाल में एवं इससे पूर्व दशकों से कांग्रेस के शासनकाल से यह व्यवस्था चली आ रही थी।

5. साइबर वेल्फेयर, साइबर काउंटर-टेररिज्म, और नेशनल डिजीटल एसेट्स की साइबर सुरक्षा के लिए डिजीटल सिक्युरिटी एजेंसी स्थापित की जाएगी।

6. राज्य सरकारों को अपने-अपने पुलिस बलों को आधुनिक करने एवं नवीनतम हथियारों से लैस करने तथा संचार टेकनोलॉजी के लिए सभी प्रकार की सहायता दी जाएगी। यह ‘मिशन मोड एप्रोच’ के द्वारा किया जाएगा। किसी भी संकट की स्थिति में पुलिस को सबसे पहले पहुंचना होता है। अनुभव से सबक लेकर पुलिस बलों को प्रशिक्षित किया जाएगा और उन्हें मुम्बई जैसी स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह से लैस किया जाएगा तथा उन्हें माओवादियों व अलगाववादियों से मिली चुनौतियों से निपटने के लिए भी ऐसा करना आवश्यक होगा।

7. सीमा प्रबंधन की समीक्षा होगी और सुधारा जाएगा। अवैध घुसपैठ को रोकने के लिए दंडात्मक व्यवस्था की जाएगी।

8. भारत की विशाल तटरेखा लगभग असुरक्षित है। भारतीय समुद्रों में बेहतर गश्त लगाने के लिए नौसेना और तट रक्षकों को आवश्यक साधन उपलब्ध कराए जाएंगे और आतंकवादियों को समुद्री रास्ते से भारत प्रवेश से रोका जाएगा। तटीय सुरक्षा के समायोजन हेतु एक राष्ट्रीय सागरीय प्राधिकरण की स्थापना की जाएगी।

9. आतंकवादी गतिविधियों में शामिल लोगों पर तेजी से मुकदमा चलाने के लिए विशेष अदालतें बनाई जाएंगी। उनकी कार्यवाही निष्पक्ष होगी और पीड़ितों को तेजी से न्याय मिलेगा।

10. वे, जो देश सीमा-पार आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं, उनसे निपटने के लिए कूटनीतिक उपायों सहित बल प्रयोग के उपायों का इस्तेमाल होगा। भारत, शेष विश्व के साथ आतंक पर ‘वैश्विक युध्द’ में साथ देगा, साथ ही भारत अपने घरेलू हितों के साथ समझौता नहीं करेगा, और आतंकवाद से नागरिकों की रक्षा करेगा।

11. केन्द्र बेहतर ढंग से अंतर्राज्यीय समन्वय स्थापित कराने व समय पर खुफिया सूचनाओं के आदान-प्रदान कराने में सुविधा देगा और इसके अलावा माओवादियों के खतरे से निपटने के लिए एंटी-इंसर्जेंसी बल बनाने के लिए राज्यों को मदद देगा। माओवादी हमलों के मुकाबले के लिए छत्तीसगढ़ मॉडल का इस्तेमाल किया जाएगा। साथ ही साथ, वामपंथी उग्रवाद को पैदा करने वाले सभी सामाजिक और आर्थिक मुद्दों के समाधान के लिए हर प्रकार का प्रयास किया जाएगा।

12. किसी भी विद्रोही गुट से बातचीत, सशर्त व संविधान के ढांचे के अन्तर्गत होगी।

भाजपा आतंकवादियों और उनके प्रायोजकों को सीधा, स्पष्ट और मुखर संदेश देगी : उन्हें हर निर्दोष व्यक्ति की मौत की भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। उचित सजा तेजी से और निर्णायक रूप से दी जाएगी। कांग्रेस द्वारा वोट बैंक की राजनीति के अन्तर्गत राज्य की शक्ति का जो ह्रास किया गया है उसे पुन: बहाल किया जाएगा।

सभी के लिए राष्ट्रीय पहचान पत्र
भाजपा देश भर में राष्ट्रीय पहचान पत्र प्रणाली स्थापित करने के लिए एक नए कार्यक्रम की शुरुआत करेगी ताकि राष्ट्रीय सुरक्षा, सही ढंग से नागरिकों की हित-रक्षा, उचित कर संग्रह, वित्तीय समावेश और मतदाता पंजीकरण सुनिश्चित किया जा सके। मतदाता पहचान पत्र, पैन कार्ड, पासपोर्ट, राशन कार्ड और बी.पी.एल. कार्डों का पहले ही प्रयोग हो रहा है हालांकि सभी फोटो पहचान पत्र नहीं हैं। एनडीए का प्रस्ताव है कि प्रत्येक भारतीय के लिए राष्ट्रीय पहचान पत्र रखना जरूरी है। इस कार्यक्रम को तीन वर्ष में पूरा कर लिया जाएगा।

राष्ट्रीय पहचान पत्र में पर्याप्त ‘मेमोरी’ और ‘प्रोसेसिंग’ क्षमताएं रहेगी, ताकि उनका बहु-आयामी प्रयोग हो सके। इसके माध्यम से एनडीए सुनिश्चित करेगा कि कुशल ढंग से लोगों का हित हो और कर-संग्रह हो सके।

कार्ड को बैंक खातों से भी लिंक किया जाएगा। सभी प्रकार के कल्याणकारी भुगतान, जिनमें विधवा और वृध्दावस्था पेंशन भी शामिल रहेगी, तथा अन्य व्यापक योजनाओं को, जैसे मां और बाल सहायता/किसान क्रेडिट, छात्र सहायता और माइक्रो-क्रेडिट योजनाओं को भी राष्ट्रीय पहचान पत्र के माध्यम से कार्यान्वित किया जाएगा।

व्यक्तियों के लिए कार्ड से पैसा बचाना और उधार लेना भी संभव हो सकेगा; किसानों के लिए बैंक क्रेडिट मिल सकेगा और सही-सही ‘लैंड टाइटल्स डेटा’ भी स्थापित हो सकेगा।

राष्ट्रीय पहचान पत्र से नागरिकों की सही पहचान करने से राष्ट्रीय सुरक्षा मजबूत होगी और इस प्रकार अवैध घुसपैठ को रोका जाएगा। सभी प्रकार के वित्तीय लेन-देन, सम्पत्ति खरीदना और सार्वजनिक सेवाएं प्राप्त करना भी राष्ट्रीय पहचान पत्र के आधार पर संभव हो सकेगा जिससे जालसाजी और ‘हैकिंग’ को रोका जा सकेगा।

विश्व के साथ सवांद : भारत की आवाज सुनुनी जाएगी

भाजपा का मानना है कि नवोदित भारत को राष्ट्रों के समुदाय तथा अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं में उनका सही स्थान मिलना चाहिए। भाजपा का यह भी विश्वास है कि आज के बहुध्रुवीय विश्व में किसी देश के पास दूसरे देशों के मुकाबले अधिक अधिकार नहीं होने चाहिए। इसके लिए भाजपा सत्तारूढ़ होने पर पूरे विश्व के देशों के साथ समान शर्तों पर सार्थक रूप से कूटनीति करेगी।

भाजपा भारत और अमेरिका के बीच अच्छे सम्बन्ध चाहती है। भारत अमरीकी सामरिक साझेदारी को समानता के सिध्दान्त के आधार पर मजबूत करेगी। परन्तु हम न तो भारत के राष्ट्रीय हितों के साथ समझौता करेंगे और न ही किसी अन्य मित्र देश के सम्बंधों को बिगड़ने देंगे। भाजपा यूपीए सरकार के बिगाड़े गए सम्बन्धों में संतुलन को बहाल करेगी।

भारत के रूस और मध्य एशियाई गणतंत्र देशों के सम्बन्धों को पुन: निर्माण कर उन्हें वास्तविक धारातल पर लाया जाएगा और इन्हें अधिकतम पारस्परिक लाभप्रद बनाया जाएगा।

हम यूरोपीय संघ, पश्चिमी एशियाई देशों और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ मित्रतापूर्ण सम्बन्ध बनाएंगे। हम अरब देशों के साथ अपने सम्बन्ध मजबूत बनाएंगे और इजरायल के साथ सहयोग बढ़ाएंगे-दोनों सम्बन्धों का आपस में कोई अन्तर्संबंध नहीं है और दोनों ही भारत के लिए लाभप्रद हैं।

चीन के साथ अनिर्णीत सीमा विवाद के समाधान की बातचीत प्रक्रिया, जिसे श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए सरकार ने शुरू किया था, फिर से शुरू की जाएगी। हम मानते हैं कि भारत और चीन दोनों ही मिलकर समृध्द हो सकते हैं और आगे बढ़ सकते हैं, जिसके लिए आर्थिक सहयोग इसमें योगदान दे सकता है।

भारतीय महासागरीय क्षेत्र में भारत को एक विशिष्ट भूमिका निभानी है जिसका वह पूरी शक्ति से अनुसरण करेगा।

भारत अपने पड़ोसी देशों से मित्रवत तथा सहयोगात्मक सम्बंध बनाए रखने में विश्वास रखता है। हम यह भी मानते हैं कि भारत के पड़ोसी देशों की राजनीतिक स्थिरता, प्रगति और शांति दक्षिण एशिया की प्रगति और विकास के लिए आवश्यक है : सार्क इन लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए एक अच्छा मंच है।

परन्तु भाजपा पड़ोसी देशों के साथ सम्बन्ध बनाते हुए एक मात्र राष्ट्रीय हितों का ध्यान रखेगा। इसके लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखते हुए भारत अपने निर्णय और कार्य करेगा :

पाकिस्तान : पाकिस्तान के साथ तब तक कोई भी ‘पूर्ण सवं ाद’ नहीं हो सकता है जब तक कि (क) पाकिस्तान अपने नियंत्रण वाले क्षेत्र में आतंकवादी ताने-बाने को ध्वस्त नहीं कर देता है, (ख) जब तक वह आतंकवादी तत्वों और संगठनों पर सक्रिय रूप से मुकदमा नहीं चलाता है, (ग) जब तक वह सीमापार आतंकवाद को अपनी सरकारी नीति बनाकर उस पर स्थायी और निश्चित रूप से बंद नहीं कर देता है, (घ) जब तक वह भारत पर आतंकवादी हमले करने के लिए तीसरे देशों के प्रयोग बंद नहीं करता है, और (ङ) जब तक वह भारत की धरती पर अपराध करने वाले व्यक्तियों को भारत को सौंप नहीं देता है।

नेपाल : भाजपा यूपीए के उन पूर्वाग्रहों से छुटकारा पाने के लिए भारत की नेपाल नीति की समीक्षा करेगी, जिनसे नेपाल में घटी घटनाओं पर भारत का प्रत्युत्तर प्रभावित रहा, यह आवश्यक है क्योंकि नेपाल के साथ हमारी देश की सभ्यता का इतिहास एक जैसा है। भारत-नेपाल के सम्बन्धों का आधार मित्रतापूर्ण, पारस्परिक सहयोग और हितों के सामंजस्य पर टिका होना चाहिए। इस उद्देश्य के लिए वर्तमान व्यवस्था की समीक्षा की जाएगी और बातचीत के आधार पर पारस्परिक हितों और लाभों को ध्यान में रखकर बदलाव लाया जाएगा। भाजपा चाहेगी कि नेपाल एक स्थिर, समृध्द देश बनकर उभरे और हमारा प्रयास रहेगा कि युगों पुराने भाई-चारे के बंधनों को मजबूत किया जाए।

भूटान : भूटान के साथ वर्तमान निकट सम्बन्धों को मजबूत किया जाएगा।

बांग्लादेश : भाजपा पारस्परिक सहायता लाभ के मुद्दों पर बांग्लादेश सरकार के साथ सक्रिय के रूप में काम करेगी। ढाका में मित्रवत सरकार भारत के हित में है।

श्रीलंका : भाजपा मानती है कि श्रीलंका को आतंकवाद से अपनी भूमि पर निपटने का अधिकार है। साथ ही, कोलम्बो में सरकार को श्रीलंका के तमिल अल्पसंख्यक समुदाय के राजनीतिक, आर्थिक और मानवाधिकारों की भी रक्षा करनी चाहिए। भाजपा श्रीलंका के साथ उत्कृष्ट सम्बन्ध रखने की नीति पर चलेगी और पिछले पांच वर्षों में बिगड़े सम्बन्धों को फिर से सुधारने के लिए पहल करेगी।

अफगानिस्तान : भाजपा मानती है कि भारत को अफगानिस्तान के लोगों की मदद करने और उस देश के पुनर्निर्माण एवं उनके समाज को स्थिरता प्रदान करने के साथ-साथ पाकिस्तानी शरणस्थलों से काम कर रहे तालिबानों के हमलों से वहां के लोगों के जीवन को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है। भाजपा भारत-अफगानिस्तान सम्बन्धों को और अधिक मजबूत बनाएगी और अफगानिस्तान की स्थिरता, सुरक्षा और समृध्दि के लिए अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ मिलकर काम करेगी।

विदेशों में भारतमाता के पुत्र
भाजपा विदेशों में बसे भारत मूल के लोगों के साथ गहन सम्बन्ध बनाए रखेगी। भाजपा की सतत यह नीति रही है कि वह विदेशों में रह रहे भारतीय मूल के लोगों के हितों में साथ दे। एनडीए के शासनकाल में प्रवासी भारतीयों और उनकी पैतृक भूमि के बीच सम्बन्धों को और पुन: शक्तिशाली बनाने के लिए विशेष प्रयास किए गए थे। इन प्रयासों को और तेज किया जाएगा।

भारत की रक्षा : न समझौता न छूट
हमारी क्षेत्रीय और वैश्विक परिस्थितियों में तेजी से हो रहे परिवर्तन को देखते हुए थल सेना, वायु सेना और नौसेना को मजबूत करना बहुत जरूरी है। दुख की बात है कि कांग्रेस ने सैनिकों की बड़ी उपेक्षा की है और थल सेना, वायु सेना तथा नौसेना की समस्याओं को हल न कर पाने के कारण उनमें अपार असंतोष पैदा हो गया है।

भाजपा तुरंत ही उनके सभी बकाया मुद्दों का समाधान करेगी। भारत की रक्षा सम्बन्धी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भाजपा निम्नलिखित प्रतिबध्दताओं को ध्यान में रखेगी :

1. लम्बे समय से लम्बित सैनिक साजों सामान प्राप्त करने के काम को चरणबध्द ढंग से पारदर्शिता और तीव्रता से निपटाया जाएगा।

2. रक्षा बलों के लिए बजट आवंटनों को उनके समाप्त होने की अवधि से पूर्व ही खर्च कर लिया जाएगा।

यूपीए सरकार ने रक्षा बलों के प्रति नितांत लापरवाही के कारण बजट आवंटन का लगभग 24,000 करोड़ रूपया बेकार कर दिया जिसे पांच वर्षों में खर्च किया जाना था। इससे न केवल हमारे जवानों का जीवन खतरे में पड़ गया, बल्कि देश की सुरक्षा पर भी आंच आ गई।

3. हमारे सैनिक बल राष्ट्र की सेवा में कार्यरत हैं और उन्हें बेहतर वेतन और विशेषाधिकार प्राप्त करने का हक है। इस उद्देश्य के लिए भाजपा निम्नलिखित उपाय करने के लिए प्रतिबध्द है :

क. वेतन और विशेषाधिकारों के बकाया पड़े मुद्दों की फिर से समीक्षा की जाएगी और रक्षा सेवाओं के लिए सन्तोषजनक हल निकाला जाएगा।

ख. थल सेना, वायु सेना और नौसेना एवं अर्ध-सैनिक बलों के सभी कार्मिकों को उनके वेतन तथा अन्य परिलब्धियों पर आयकर देने से छूट दी जाएगी।

ग. परमवीर चक्र जैसे वीरता पुरस्कार के विजेताओं के लिए मानदेय जो अभी काफी कम 500 से 3000 रुपए के बीच है में 10 गुना वृध्दि कर 5000 से 30,000 रुपए के मध्य लाया जाएगा। इसे गत काल प्रभाव से लागू किया जाएगा तथा यह कर मुक्त होगा।

घ. समान रैंक, समान पेंशन का सिध्दांत लागू किया जाएगा।

ड़ अफसरों की कमी को पूरा करने के लिए युवाओं तथा युवतियों के लिए प्रोत्साहनकारी उपाए किए जाएंगे।

च. रक्षा सेवाओं के सेवानिवृत्त कार्मिकों के मामलों का सम्माननीय हल सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकारों को प्रोत्साहन प्रदान किया जाएगा।

4. सभी स्तरों पर रक्षा कार्मिकों की वर्तमान रक्षा सेवाओं में कमी को आकर्षक कैरियर विकल्प के उपाय किए जाएंगे। इनमें प्रतिस्पर्धी वेतन और विशेषाधिकार तथा पेंशन लाभ शामिल रहेंगे। ये काम एक चरणबध्द समय में पूरा किया जाएगा।

5. रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन की क्षमताओं को बढ़ाया जाएगा। राष्ट्र की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए पारम्परिक रक्षा उत्पादन के लिए पीपीपी रूप को तलाशा जाएगा और सन 2020 तक विश्व बाजार में भारत एक प्रतिस्पर्धी भूमिका का निर्वहन कर सकेगा।

स्वतंत्र सामरिक परमाणु कार्यक्रम
भाजपा का मानना है कि कांग्रेस ने भारत के सामरिक परमाणु कार्यक्रम के साथ भयंकर खिलवाड़ किया है। पोकरण-II और उसके बाद की घटनाक्रम से प्राप्त लाभ को संकीर्ण स्वार्थ की खातिर भट्ठी में डाल दिया गया है। फलत: जो चाहते हैं कि भारत के परमाणु कार्यक्रम को रोककर पलट दिया जाए, तथा वह अंतत: निरस्त हो
जाए, आज लाभ में हैं।

भाजपा सत्ता में आते ही इस दु:स्थिति को बदल वापस सही राह पर लाएगी। भारत में थोरियम टेक्नॉलाजी कार्यक्रम को तेज किया जाएगा और सभी प्रकार की वित्तीय सहायता दी जाएगी ताकि यूपीए सरकार द्वारा की गई भयंकर गलतियों को सुधारा जाए। भारत को परमाणु ऊर्जा की आवश्यकता है, परन्तु इसके लिए हम अपने राष्ट्रीय रणनीतिक हित बलिदान नहीं करेंगे। कांग्रेस ने भारत-अमेरिका सिविल न्यूक्लियर को-ऑपरेशन समझौते को बेहद जरूरी बता कर भारत के लागों को बेवकूफ बनाया है और समझ में नहीं आता कि इससे लोगों के घरों में बिजली पहुंचाने में कैसे मदद मिलेगी। उसने यह सब कुछ दो अत्यंत महत्वपूर्ण बातें छिपा कर किया है।

पहली बात, जैसा कि सीएजी ने भी कहा है, यूपीए सरकार ने भारत के अपनी परमाणु ईंधन आपूर्ति भण्डारों का पता लगाने की जरा भी कोशिश नहीं की है। अगर ऐसा किया होता तो हमारे रिएक्टर आज की तुलना में कई गुना अधिक बिजली का उत्पादन करते। दूसरी बात, परमाणु ऊर्जा अत्यधिक महंगी है और आम आदमी इतना खर्च बर्दाश्त नहीं कर सकता है। अन्तिम विश्लेषण यही है कि भारत-अमरीकी परमाणु समझौता भारत का सशक्तिकरण्ा के लिए नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य तो भारत को अमरीका पर निर्भर बनाना और हमें भेदभावपूर्ण व्यवस्था में बांधकर, जिससे पाकिस्तान मुक्त है, भारत को शक्तिविहीन करना है।

भाजपा भारत की परमाणु-प्रसार रोकने की प्रतिबध्दता का सम्मान करेगा। परन्तु हम निम्नलिखित रुप में स्वतंत्र परमाणु नीति पर चलेंगे :

1. सभी विकल्प खुले रहेंगे और भारत के सिविल तथा सैन्य परमाणु कार्यक्रमों की प्रौद्योगिकीय प्रगति के लिए सभी उपाए करेंगे।

2. बदलती यथार्थताओं के अनुसार विश्वसनीय-न्यूनतम निवारक बनाए रखेंगे।

3. सी.टी.बी.टी, एफ.एम.सी.आर और एम.टी.सी.आर सहित किसी भी नियंत्रण व्यवस्था पर सहमत होने से पूर्व सभी पार्टियों की आम सहमति बनाएंगे।

जिस प्रकार से कांग्रेस और प्रधानमंत्री ने भारत-अमरीकी परमाणु समझौते पर अनावश्यक और खेदजनक गोपनीयता बनाए रखी, उसे देखते हुए भाजपा का प्रस्ताव है कि संविधान में संशोधन लाया जाए, जिससे सरकार के लिए यह आवश्यक हो जाए कि भारत के रणनीतिक कार्यक्रमों, क्षेत्रीय अखण्डता और आर्थिक हितों का अतिक्रमण करने वाले किसी भी द्विपक्षीय अथवा बहुपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर करने से पूर्व संसद की स्वीकृति/अभिपुष्टि दो-तिहाई मतों से प्राप्त की जाए।

जारी…

सियासी गलियारों में जाने को बेताब फ़िल्मी सितारे – सरिता अरगरे

filmi-personalities-in-politicsलोक सभा चुनावों में इस बार फ़िल्मी सितारों की भरमार देखने को मिल रही है । संसद में सीटें बढा़ने के लिए सियासी पार्टियाँ बढ़-चढ़ कर फ़िल्मी हस्तियों का सहारा ले रही हैं। वैसे फ़िल्मी सितारों का राजनीति में आने का सिलसिला कोई नया नहीं है लेकिन इस बार ये संख्या काफ़ी ज्यादा है। सुपर स्टार तो पार्टियों के दुलारे हमेशा से रहे हैं , मगर अब हास्य कलाकारों और खलनायकों को भी भीड़ जुटाने के लिये जनता के बीच भेजने का सिलसिला भी ज़ोर पकड़ने लगा है।

देश में उत्तर से लेकर दक्षिण तक फिल्मी हस्तियाँ चुनाव प्रचार में शिरकत कर रही हैं। कुछ फ़िल्मी सितारे चुनाव मैदान में किस्मत आज़माने उतरे हैं जबकि कुछ चुनाव प्रचार करने वाले हैं। दक्षिण में फ़िल्मी कलाकारों के राजनीति में सफ़ल होने के कई उदाहरण मिल जाएँगे। एनटी रामाराव, एम जी रामचंद्रन, जयललिता, रजनीकांत ऎसे नाम हैं, जिन्होंने फ़िल्मी कैरियर में अपार सफ़लता पाने के साथ ही मतदाताओं के दिलों पर भी बरसों राज किया और प्रदेश का तख्तोताज सम्हाला। तेलुगू सिनेमा के सुपरस्टार चिरंजीवी ने पिछले साल ही प्रजा राज्यम पार्टी बनाई थी। वे इस बार दो संसदीय सीटों से चुनाव लड़ेंगे। उनके अलावा एनटी रामाराव के बेटे नंदामुरी बालाकृष्णन, सत्तर और अस्सी के दशक की मशहूर अभिनेत्री जयासुधा और विजया शांति भी चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं।

उत्तर भारत में जनता की भीड़ जुटाने में कई सितारे कामयाब रहे लेकिन संसद के गलियारों में उनकी चमक फ़ीकी पड़ गई। राजेश खन्ना, गोविंदा, धर्मेन्द्र, अमिताभ बच्चन ने मतदाताओं को निराश किया। वहीं ऎसे सितारे भी हैं जिन्होंने संसद में अपनी सक्रियता से धाकड़ नेताओं को मात दे दी। इनमें सुनील दत्त, हेमा मालिनी, राज बब्बर, विनोद खन्ना के नाम प्रमुखता से आते हैं। उत्तर प्रदेश में इस बार मतदाताओं को कई फिल्मी कलाकारों से रुबरु होने का मौका मिल रहा है। राज बब्बर, मनोज तिवारी और जयाप्रदा चुनाव में हिस्सा ले रहे हैं, वहीं भोजपुरी फ़िल्मों के मशहूर अभिनेता रवि किशन काँग्रेस का प्रचार करते नज़र आएँगे। उनके अलावा गोविंदा और नगमा ने भी महाराष्ट्र में काँग्रेस के लिए प्रचार की हामी भरी है। अक्षय कुमार, सलमान खान, शाहरूख और प्रीति ज़िंटा भी काँग्रेस उम्मीदवारों के लिये वोट माँगते दिखाई देंगे।

दरअसल जनाधार मजबूत करने के लिए राजनीतिक पार्टियाँ फ़िल्मी कलाकारों को टिकट देती रही हैं। आम जनता के बीच उनकी लोकप्रियता को भुनाने के पार्टियाँ रुपहले पर्दे के कलाकारों को अपना प्रतिनिधि बनाने की पहल करती हैं। वैसे देखा जाए तो सामाजिक सरोकार के नाते अगर कोई कलाकार राजनीति में आता है तो ये देश और समाज के लिहाज़ से प्रशंसनीय माना जाएगा।

एक बड़ा तबका मानता है कि जोश की बजाय होश के साथ सियासत में आने का फ़ैसला लेने वाले कलाकारों का स्वागत होना चाहिए। उनका तर्क है कि अगर पत्रकार आ सकते हैं, किसान आ सकते हैं, तो फ़िल्म स्टार क्यों नहीं आ सकते ? बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीत कर केन्द्र में मंत्री पद सम्हालने वाले विनोद खन्ना और शत्रुघ्न सिन्हा का कहना है कि अगर कोई फ़िल्म स्टार अपनी पसंद की पार्टी में शामिल होकर उसका प्रचार करता है तो इसमें कोई बुराई नहीं है क्योंकि उसकी भी अपनी विचारधारा हो सकती है।

शत्रुघ्न सिन्हा कहते हैं कि आजकल जिस तरह से फ़िल्म स्टार्स राजनीति में आ रहे हैं उसके पीछे वजह ये है कि वे लोकप्रिय होने के साथ ही आर्थिक रुप से मज़बूत भी हैं। ऎसे में राजनीतिक पार्टी पर आर्थिक दबाव नहीं रहता। इसके अलावा फ़िल्म स्टार्स राजनीति में राजकीय सम्मान पाने की लालसा से आते हैं जबकि राजनीतिक पार्टियाँ उनके जरिए ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचना चाहती हैं। इस तरह दोनों ही एक दूसरे की ज़रुरत पूरी करते हैं। वहीं अभिनेता से नेता बने धर्मेंद्र की हिदायत है कि फ़िल्म स्टार अगर राजनीति से दूर ही रहें तो अच्छा है। उनकी राय में अभिनेता को अभिनय तक ही रहना चाहिए और राजनीति में नहीं जाना चाहिए।

राजनीति से तौबा कर चुके सदी के महानायक भी राजनीति में जाने के अपने फ़ैसले को गलत मानते हैं। एक फिल्मी पत्रिका से बातचीत मे उन्होंने कहा था, ”मुझे कभी राजनीति मे नहीं जाना चाहिए था। अब मैंने सबक सीख लिया है. अब आगे और राजनीति नहीं ” अमिताभ ने सफाई दी कि इंदिरा जी की हत्या के बाद 1985 में वह भावुकता में राजीव का साथ देने के लिए राजनीति मे आ गए थे. ”मगर न तो मुझे तब राजनीति आती थी, न अब आती है और न मैं भविष्य में राजनीति सीखना चाहूँगा।”

तमाम ना नुकर के बीच एक सच्चाई ये भी है कि समाजवादी पार्टी के नेता अमर सिंह की बच्चन परिवार से करीबी के कारण भले ही अमिताभ तकनीकी रूप से समाजवादी पार्टी के सदस्य न बने हों, लेकिन समाजवादी पार्टी के सियासी जलसों में वे अक्सर दिखाई देते रहे हैं।
वहीं एक दूसरा वर्ग ऎसा भी है जो चुनावी मौसम में अपने फ़ायदे के लिए फ़िल्मी कलाकारों के इस्तेमाल को जायज़ नहीं मानता। राजनीति के जानकार भी मानते हैं कि राजनीति और फ़िल्मों का रिश्ता काफ़ी पुराना है और ये दोनों एक दूसरे की ज़रुरतों को पूरा करते हैं। पंडित नेहरु के जमाने में भी राजकपूर और नरगिस वगैरह की काँग्रेस से नज़दीकी थी और वो राज्यसभा में भी भेजे गए थे।
बेशक, इतनी बड़ी संख्या में सितारों की मौजूदगी से चुनाव में चमक – दमक बढ़ गई है। लेकिन इस शोरगुल में आम जनता की ज़िन्दगी से जुड़े बुनियादी मुद्दे कहीं गुम हो गये हैं। बहरहाल यह जमावड़ा देखकर कहा जा सकता है कि जहाँ राजनीतिक पार्टियाँ रुपहले पर्दे के सितारों के सहारे ज्यादा से ज्यादा लोगों को लुभाने और अपनी सीटों की संख्या बढ़ाने की तैयारी में हैं। वहीं ये फ़िल्मी सितारे भी सत्ता के गलियारे में जाने को लेकर काफ़ी उत्साहित दिख रहे हैं।

परिवारवाद और जातिवाद के विरूद्ध राष्ट्रवाद का मंत्र फूंके – आडवाणी

भोपाल, 4 अप्रैल ,09। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता पूर्व उपप्रधानमंत्री और राजग के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी लालकृष्ण आडवाणी ने युवा पीढ़ी का आहवान किया कि वे मौजूदा चुनौतियों को स्वीकार करें। लोकसभा चुनाव एक महान अवसर है। इसके परिणाम देश को नई दिशा देंगे और 21वीं शताब्दी भारत की होगी।उन्होंने लोकसभा चुनाव में पार्टी को भारी बहुमत से विजयी बनाने और देश में एनडीए की सरकार के गठन के लिए जुट जाने का आग्रह किया। लालकृष्ण आडवाणी मुरैना और श्योपुर जिलों के कार्यकर्ताओं के सम्मेलन को मुरैना में संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि कार्यकर्ताओं का इतना बड़ा विशाल सम्मेलन देख कर ही अन्य दल भारतीय जनता पार्टी के बढ़ते जनाधार से चमत्‍कृत है और साख के मामले में भारतीय जनता पार्टी अन्य दलों से बेजोड़ है। साख और विश्वसनीयता के मामले में भारतीय जनता पार्टी की देश में कोई सानी नहीं है। पार्टी ने जो वायदा किया, उसे पूरा किया। वह चाहे छोटे रायों के गठन का हो, अथवा राष्ट्रीय सुरक्षा, किसानों की भलाई, अनुसूचित जाति, जनजाति, अल्पसंख्यकों के कल्याण का रहा हो, भारतीय जनता पार्टी ने अपने वायदों को पूरा करके कथनी और करनी में साम्य स्थापित किया है। यही पार्टी की बढ़त का आधार है। लोकसभा चुनाव में पार्टी को शानदार विजय मिलेगी और एनडीए की सरकार का गठन होगा। मुरैना पहुंचने पर लालकृष्ण आडवाणी का प्रदेश अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हार्दिक स्वागत किया।

नरेन्द्र सिंह तोमर ने कहा कि यह महान क्रांतिकारी बिसमिल की जन्मस्थली और वीरभूमि है। पार्टी की रीति-नीति से प्रभावित होकर बड़ी संख्या में विभिन्‍न राजनीतिक दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की है। यह भारतीय जनता पार्टी के सर्वव्यापी और सर्वस्पर्शी होने का प्रमाण है। उन्होंने कहा कि मुरैना, श्योपुर भाजपा और जनसंघ का गढ़ रहा है, इसलिए 50 साल तक दिल्ली और भोपाल की कांग्रेस सरकारों ने इस क्षेत्र के साथ भेदभाव किया। लेकिन अब समय आ गया है कि हम शिवराजजी के विकास मिशन को दिल्ली से भी शक्ति दिलाएं और केन्द्र में भाजपा सरकार बनाएं। ताकि केन्द्र प्रवर्तित योजनाओं के जरिए मुरैना, श्योपुर का समग्र विकास सुनिश्चित हो सके। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आडवाणी जी का स्वागत करते हुए कहा कि प्रदेश की जनता ने पार्टी को विधानसभा चुनाव में दोबारा सत्ता सौंपकर पार्टी की नीतियों में विश्वास व्यक्त किया है। विधानसभा चुनाव में विजय का श्रेय भाजपा की विचारधारा, जनता की गुण-ग्राहकता और कार्यकर्ताओं के परिश्रम को है।

उक्त अवसर पर राष्ट्रीय सचिव प्रभात झा, मुरैना संसदीय क्षेत्र की प्रभारी माया सिंह, रुस्तम सिंह, मुंशीलाल, गजराज सिंह सिकरवार, शिवमंगलसिंह तोमर, रमेशचन्द्र गर्ग, कमलेश सुमन, दुगाZलाल विजय, संध्या राय, मेहरबान सिंह रावत, फूलसिंह बरैया, जयसिंह कुशवाह सहित बड़ी संख्या में पार्टी पदाधिकारी उपस्थित थे।

लालकृष्ण आडवाणी ने केन्द्र में कांग्रेसनीत यूपीए सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि कांग्रेस ने आजादी के बाद से वंशवाद की राजनीति की है। इससे बड़ी हैरानी की बात क्या होगी कि यूपीए सरकार ने जिन पांच योजनाओं के लिए श्रेय लेने की कोशिश की, वे सभी एक ही परिवार के नाम पर प्रायोजित की गई हैं। यह देश की विभूतियों, क्रांतिकारियों का अपमान हैं। इस तरह देश में वंशवाद, परिवारवाद, नेतावाद और जातिवाद की घृणित राजनीति चल रही है जिससे लोकसभा चुनाव में निजात दिलाने का एक बड़ा अवसर है। उन्होंने आंचलिक जनता से नरेन्द्र सिंह तोमर को मुरैना संसदीय क्षेत्र से भारी बहुमत से जीताने का आग्रह करते हुए कहा कि उनकी जीत से केन्द्र में एनडीए की सरकार बनने के पश्चात क्षेत्र को लाभ होगा और चम्बल क्षेत्र विकास की दृष्टि से देश का अग्रणी क्षेत्र बनेगा। लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि 15वीं लोकसभा चुनाव के लिए राजनीतिक दलों ने घोषणा-पत्र जारी करके मात्र औपचारिकता निभाई है। भारतीय जनता पार्टी के घोषणा-पत्र का जनता के फोकस में आने और चर्चित होने से घोषणा-पत्र के प्रति जनता के विश्वास का पता चलता है। जनता मानती है कि भारतीय जनता पार्टी ने जब-जब जो-जो वायदा किया, उसको पूरा किया।

उन्होंने कहा कि पांच वर्षों में किसान, गरीब, मजदूर और गांव दुर्लक्ष्य के शिकार हुए हैं। देश में बड़ी विषमता का इससे बड़ा प्रमाण क्या होगा कि देश के 30 परिवारों की आय देश के 30 करोड़ परिवारों के बराबर हो गयी है। किसान कर्ज के बोझ से दब कर आत्महत्या कर रहे हैं लेकिन केन्द्र सरकार उनके प्रति तनिक भी संवेदनशील नहीं है। उन्होंने देश के सैनिकों की सेवा शर्तों में सुधार और संतुलन लाने की आवश्यकता रेखांकित की और कहा कि एनडीए के सत्ता में आने के बाद इन कार्यों को प्राथमिकता दी जाएगी।

उन्होंने कहा कि सैनिकों की वीरता के लिए परमवीर चक्र तथा इसी तरह के और सम्मान दिए जाते हैं। लेकिन दुख की बात है कि उन्हें नकदी के रूप में अधिकतम 30 हजार रुपये ही दिए जाते हैं, यह देश के प्रहरियों के साथ क्रूर मजाक है। इस दिशा में तत्काल कार्यवाही किए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी के विस्तार और लोकिप्रयता के प्रति गैर भाजपा दलों में ईष्र्या है और उन्हें दिखने लगा है कि यूपीए सरकार की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है और आने वाली सरकार भाजपा के नेतृत्व में ही बनेगी। कांग्रेस के गिरते ग्राफ की चर्चा करते हुए आडवाणी जी ने बताया कि बिहार में लालू प्रसाद यादव और लोकजनशक्ति पार्टी रामविलास पासवान ने कांग्रेस को 3 सीटें और उत्तरप्रदेश में मुलायम सिंह यादव ने 6 सीटें देने की बात कहकर कांग्रेस को औकात समझा दी है। इससे कांग्रेस की वास्तविकता जनता के सामने आ चुकी है। भारतीय जनता पार्टी अब समग्र भारत की पार्टी बन चुकी है। और उसके सत्ता में आने के लिए देश के आम आदमी में उत्साह और उत्सुकता है।

लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि अब समय आ गया है कि हम एक ही नारा बुलंद करें कि भारतीय जनता पार्टी जीतेगी, भारत जीतेगा। हमें व्यक्ति के बजाय राष्ट्र की चिंता करना है। राष्ट्रवाद हमारा एजेंडा है। इसके साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि देश के विभिन्‍न भागों में पहुंचने पर कांग्रेस की निराशाजनक तस्वीर उभरती है। प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह असम से चुने गए हैं लेकिन पांच वषों में असम और पूर्वात्तर रायों की कतई चिंता नहीं की। इस बात को लेकर जनता में आक्रोश है।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि देश में व्याप्त गरीबी के लिए कांग्रेस अपने को दोषमुक्त नहीं कर सकती है। यदि कांग्रेस ने गरीबों के लिए ढकोसले बाजी करने के बजाय खुद काम किया होता तो आज देश में गरीबों की संख्या नगण्य होती है और उनके झोपड़ों की जगह पर मकान होते। भारतीय जनता पार्टी गरीबों की आंखों में भगवान के दर्शन करती है। भारतीय जनता पार्टी में कार्यकर्ता ही संगठन के कार्यक्रम और चुनाव अभियान की धूरी होता है। लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने कमर कस ली है कि आने वाले 25 दिन कार्यकर्ताओं के लिए निर्णायक होंगे। शिवराज सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश के साथ कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के सौतेले व्यवहार की कड़े शब्दों में आलोचना करते हुए कहा कि इस स्थिति से मुक्ति का इलाज देश के मतदाताओं के पास है। कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर और लाल-ष्ण आडवाणी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार की स्थापना के लिए प्राण-पण से जुट जाएं। मध्यप्रदेश के साथ की जा रही केन्द्र की बेइंसाफी का अंत होगा। मध्यप्रदेश की काटी गई बिजली और कोयला लाल-ष्ण आडवाणी जी के प्रधानमंत्री बनने पर खुद व खुद बहाल होगा। स्विर्णम मध्यप्रदेश बनाने का सपना पूरा होने में केन्द्र में एनडीए की सरकार का गठन मील का पत्थर साबित होगा। उन्होंने कांग्रेस की हताशा पर व्यंग्य करते हुए कहा कि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष पचौरी मैदान छोड़कर भाग गए हैं। कमलनाथ और ज्‍योतिरादित्य अपने क्षेत्र में कैद हो गए हैं। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की दुर्गति निश्चित है। उन्होंने कहा कि लालकृष्ण आडवाणी जी के प्रधानमंत्री बनने पर देश का किसान कर्ज मुक्त होगा। रायों के साथ होने वाला भेदभाव समाप्त होगा और देश की सुरक्षा सशक्त होगी।

मार्मिक शब्दों में शिवराज सिंह चौहान ने मुरैना संसदीय क्षेत्र से नरेन्द्र सिंह तोमर को विजयी बनाने का आग्रह करते हुए कहा कि केन्द्र से कांग्रेस को अपदस्थ करना समय की आवश्यकता है। आडवाणी जी के नेतृत्व में देश की राजनीति, अर्थनीति को नई दिशा मिलेगी। कार्यक्रम का संचालन किसान मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष वेदप्रकाश शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन मुरैना के जिलाध्यक्ष नागेन्द्र तिवारी ने किया।

एनडीए अपने बल पर सरकार बनायेगा: सुषमा स्वराज

sushmaरायपुर , 4 अप्रैल(हि.स.)। भाजपा की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज ने कहा है कि एनडीए सबसे बेहतर स्थिति में है। भाजपा के घोषणा पत्र ने देश के सभी वर्गो को आश्वस्त किया है कि वह सभी की चिंता दूर करने वाली सरकार बनायेगी। अब सिर्फ 45 दिन का समय बचा है, एनडीए की जीत निश्चित है और वह लोकसभा चुनाव में स्पष्ट बहुमत प्राप्त करेगा। श्रीमती स्वराज एक पत्रवार्ता में पत्रकारों को संबोधित कर रही थी।राजधानी के होटल बेबीलॉन में शनिवार की सुबह आयोजित एक प्रेस वार्ता में सुषमा स्वराज ने अखबारों में छपे तथा इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया में बताये जा रहे उस बयान का खंडन किया है जिसमें कहा गया था कि एनडीए को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलेगा। उन्होंने कहा कि उनके बयान को काट कर दिखाया गया था। श्रीमती स्वराज ने कहा कि एनडीए की जीत को लेकर उन्हें कभी भी दुविधा नहीं रही। मैं एनडीए की जीत को लेकर आश्वस्त हूं तथा बीजेपी सबसे बडे दल के रूप में उभरेगी। उन्होंने कहा कि एनडीए अपने बल पर सरकार बनायेगा। श्रीमती स्वराज ने कहा कि वे कई बातों पर विचार करके इस निष्कर्ष पर पहुंची हैं। उन्होंने कहा कि यदि राजनीति परिदृश्य पर विवेचना करे तो यह स्पष्ट है कि यूपीए लगभग टूट गया है। उसके बडे घटक दल एक वर्ष पहले ही उससे अलग हो गये। उस समय समाजवादी पार्टी ने केन्द्र में यूपीए की सरकार को बचाया। आज वह भी अलग हो चुका है। आरजेडी यूपीए से दूर हो गया है। रामविलास पासवान अलग हो चुके हैं। तमिलनाडू में पीएमके यूपीए से अलग होकर जयललिता से मिल गया है। शरद पवार सार्वजनिक रूप से आरोप लगा रहे हैं कि कांग्रेस ने यूपीए को समाप्त कर दिया है। यूपीए के सारे नेताओं को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बताते हुए श्रीमती स्वराज ने कहा कि श्री पासवान स्वयं को बतौर दलित प्रधानमंत्री घोषित कर रहे हैं। पवार खुद प्रधानमंत्री बनना चाह रहे हैं। लालू यादव भी इसी महत्वाकांक्षा को लेकर बैठे हैं। यूपीए को श्रीमती स्वराज ने असीमित प्रधानमंत्रियों का गठबंधन बताया। उन्होंने कहा कि यूपीए का अपना कोई आस्तित्व कभी नहीं था। तीसरा मोर्चा जन्म ही नहीं ले रहा है। मायावती व जयललिता इसे पंचर कर रही हैं। चौथे नम्बर के गठबंधन का भी यही हाल है, लालू यादव नान र्स्टाटर हैं।

श्रीमती स्वराज ने एनडीए गठबंधन को सबके विपरीत सबसे बेहतर स्थिति में बताया। उन्होंने कहा कि एनडीए के घोषित प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवानी सर्वमान्य एवं र्निविवाद नेता हैं। उन्हें बीजेपी ने सर्वसम्मति से प्रस्तुत किया है। इसे सभी घटक दलों ने स्वीकार किया है। किसी प्रकार की कोई ऊहपोह की स्थिति नहीं है। श्रीमती स्वराज ने कहा कि एनडीए व्यापक हुआ है। इसमें पूर्व में चार बडे घटक दल थे ,एक बीजू जनता दल अलग हुआ है तो तीन नये दल राजग से जुडे हैं। इंडियन नेशनल लोकदल, असमगढ परिसर एवं राष्ट्रीय लोकदल(अजीत सिंह ) एनडीए में शामिल हुआ है। उन्होंने बताया कि दो दिन पूर्व ही गोरखा जनमुक्ति मोर्चा भी एनडीए से जुड गया है। 7 बडे दल अभी एनडीए में हैं।

श्रीमती स्वराज ने बताया कि छत्तीसगढ की 11 सीटों का चुनाव प्रथम चरण में संपन्न हो रहा है। प्रदेश चुनाव प्रभारी के नाते उन्होंने पहले से ही तय कर रखा था कि वे नाम वापसी के बाद चुनाव प्रचार करेंगी। वे तीन दिनों तक छत्तीसगढ के दौरे पर सभी लोकसभा क्षेत्रों में प्रचार करने आई हैं। पहले दिन कोरबा, सरगुजा, रायगढ व जांजगीर में ली गई सभाओं की जानकारी उन्होंने दी। शनिवार को वे जगदलपुर, कांकेर, राजनांदगांव एवं दुर्ग को संबोधित करने जा रही हैं। श्रीमती स्वराज ने बताया कि वे रविवार को महासमुंद व बिलासपुर में चुनाव प्रचार करेंगी। श्रीमती स्वराज के साथ पत्रवार्ता में रायपुर लोकसभा प्रत्याशी रमेश बैस, महामंत्री शिवरतन शर्मा, निवेशक प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय संयोजक अरूण सिंह एवं श्रीचन्द्र सुन्दरानी भी उपस्थित थे।

लोकसभा चुनाव परिणाम (1951-2004) / राजनीतिक दल

लोकतंत्र में आम मतदाताओं का जागरूक होना जरूरी है। तभी भारत सशक्‍त लोकतांत्रिक देश बन सकता है। इसी को ध्‍यान में रखते हुए हम प्रवक्‍ता डॉट कॉम पर गम्भीर, तथ्यपूर्ण एवं तर्कपूर्ण बहस को आगे बढाने की दृष्टि से प्रमुख समाचार, विश्‍लेषण और आंकडें प्रस्‍तुत कर रहे हैं-

वर्ष

 

कांग्रेस

 

जनसंघ/भाजपा

 

माकपा

 

भाकपा

 

बसपा

 

सपा

 

1951

 

297

 

3

 

 

16

 

 

 

1957

 

296

 

3

 

 

23

 

 

 

1962

 

361

 

NA

 

 

29

 

 

 

1967

 

283

 

35

 

19

 

23

 

 

 

1971

 

352

 

22

 

25

 

23

 

 

 

1977

 

154

 

NA

 

22

 

7

 

 

 

1980

 

353

 

NA

 

37

 

10

 

 

 

1984

 

414

 

02/भाजपा

 

22

 

6

 

 

 

1989

 

97

 

85

 

33

 

12

 

3

 

 

1991

 

323

 

120

 

35

 

14

 

2

 

0

 

1996

 

140

 

161

 

32

 

12

 

11

 

17

 

1998

 

140

 

182

 

32

 

9

 

5

 

20

 

1999

 

114

 

182

 

33

 

4

 

14

 

26

 

2004

 

145

 

138

 

43

 

10

 

19

 

36