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जब-जब कांग्रेस सत्ता में आयी, गरीबी बढ़ी

संजीव कुमार सिन्‍हा

shivraj-singhमुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि कांग्रेस ने गरीबी हटाओ के नाम पर हमेशा गरीबों के साथ मजाक किया है। पिछले पांच वर्षों में जब से कांग्रेस केन्द्र में सत्ता में आयी है गरीबी बढ़ी है और जनता की क्रय शक्ति घटी है। होशंगाबाद संसदीय क्षेत्र में जनसभाओं को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी ने किसानों की खुशहाली के लिये कृषि को लाभदायक व्यवसाय बनाने के संकल्पित प्रयास आरंभ किये है।शिवराजसिंह चौहान ने कहा कि किसानों और गांवों की हालत में सुखद परिवर्तन लाये बिना देश तरक्‍की नहीं कर सकता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि मध्यप्रदेश में 3 प्रतिशत ब्याज पर किसानों को कर्ज दिलाने वाली भाजपा सरकार देश में अग्रणी सरकार बन चुकी है। मुख्यमंत्री ने होशंगाबाद संसदीय क्षेत्र के चांदौन में जनसभा को संबोधित किया और लोकसभा चुनाव में भाजपा को विजयी बनाकर केन्द्र में आडवाणी जी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनाने का आह्वान किया।

भाजपा प्रत्याशी रामपाल सिंह, विधायक ठाकुरदास नागवंशी, जिलाध्यक्ष हरिशंकर जायसवाल ने भी सभा को संबोधित किया। शिवराजसिंह चौहान ने कहा कि कांग्रेस में विÜवास का गहरा संकट उत्पन्‍न हो चुका है। कांग्रेस प्रबल प्रतिद्वंदी बनने के बजाय खुद अंतर्कलह का शिकार है। कांग्रेस दल में ही जब लोकतंत्र नहÈ रहा तो देश की जनता कांग्रेस से लोकतंत्र के संरक्षण की आशा कैसे कर सकती है। कांग्रेस ने पांच वर्षों में देश को महंगाई, असुरक्षा का उपहार दिया है। शिवराजसिंह चौहान ने कहा कि वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री, केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने जिस तरह सार्वजनिक मंच पर अपनी मौन पीड़ा व्यक्त की उससे कांग्रेस की दिशा और दशा पर तरस आता है। जनता लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को नसीहत देकर सत्ता से बेदखल करें। मुख्यमंत्री ने विधानसभा चुनाव में भाजपा की सरकार दोबारा बनाने के लिये होशंगाबाद संसदीय क्षेत्र की जनता को बधाई दी। उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को रिकार्ड जीत दिलाकर देश को नई दिशा दिलाने में क्षेत्रीय जनता कोई कसर नहीं छोड़ेगी। उन्होंने कहा कि जनता को यह मानसिकता बना लेना चाहिए कि भाजपा जीतेगी तो देश जीतेगा। देश की जनता खुशहाली का अध्याय लिखेगी।

ऊर्जा संकट और उसका उपाय

untitled2पाषाण युग से लेकर आज तक मनुष्य निरंतर प्रगति के पथ पर चल रहा है। इस यात्रा में ऊर्जा को हम प्रगति की सीढी क़हें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। जैसे-जैसे मनुष्य प्रगति की सीढियां चढता गया वैसे-वैसे उसकी ऊर्जा आवश्यकता बढती गई। ऊर्जा की इस बढती जरूरत को पूरा करने के लिए मनुष्य ने कई-कई रूपों में ऊर्जा को खोजना एवं प्रयोग करना शुरू किया। इस प्रकार पत्थर रकड़कर चिनगारी से आग (ऊर्जा) पैदा करने वाला मानव आज अणुओं की टकराहट से बिजली पैदा करने तक पहुंच गया है। आज रसोई से लेकर खेत खलिहान तक, उद्योग व्यापार से लेकर सड़क यातायात तक सभी जगह ऊर्जा के बिना जीवन की परिकल्पना नहीं की जा सकती।

प्रगति के पथ पर चलते हुए मनुष्य ने ऊर्जा का विविध रूप में प्रयोग करके अपने जीवन को सरल तो बनाया लेकिन जाने-अनजाने उसने कई संकटों को भी जन्म दे डाला है। इसी प्रकार का संकट है ऊर्जा का। आज ऊर्जा के असंतुलित और अत्यधिक उपयोग के कारण जहां एक ओर ऊर्जा खत्म होने की आशंका प्रकट हो गई है वहीं दूसरी ओर मानव जीवन, पर्यावरण, भूमिगत जल, हवा, पानी, वन, वर्षा, नदी-नाले सभी के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने लगे है। यह संकट विकसित देशों की अत्यधिक उपभोग वाली आदतों के कारण पैदा हुआ है लेकिन इसका परिणाम पूरा विश्व भुगत रहा है। वनों की कटाई, उद्योगों की चिमनियों से निकलने वाले धुओं, मोटर-गाड़ियों के अत्यधिक प्रचलन आदि के कारण कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा में निरंतर बढती जा रही है। 1880 से पूर्व वायुमंडल में आर्बन डाई आक्साइड की मात्रा 280 पाट्र्स पर मिलियन (पीपीएम) थी जो आज बढक़र 380 पीपीएम हो गई है।

प्रगति के पथ पर चलते हुए मनुष्य ने ऊर्जा का विविध रूप में प्रयोग करके अपने जीवन को सरल तो बनाया लेकिन जाने-अनजाने उसने कई संकटों को भी जन्म दे डाला है। इसी प्रकार का संकट है ऊर्जा का। आज ऊर्जा के असंतुलित और अत्यधिक उपयोग के कारण जहां एक ओर ऊर्जा खत्म होने की आशंका प्रकट हो गई है वहीं दूसरी ओर मानव जीवन, पर्यावरण, भूमिगत जल, हवा, पानी, वन, वर्षा, नदी-नाले सभी के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने लगे है।

आधुनिक युग से पूर्व मनुष्य का जीवन नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर आधारित था लेकिन आज का मनुष्य जीवाश्म स्रोतों (पेट्रोल, डीजल, गैस, कोयला) पर पूरी तरह निर्भर हो चुका है। ऊर्जा के जीवाश्म स्रोत एक बार उपयोग करने के बाद सदा के लिए समाप्त हो जाते हैं, दूसरे इनका भण्डार सीमित है, तीसरे इनसे बड़े पैमाने पर प्रदूषण उत्पन्न हो ता है। यह चिंता फैल रही है कि ऊर्जा के जीवाश्म स्रोतों के खत्म होने के बाद क्या होगा?

यह सच है कि ऊर्जा के बिना जीवन संभव नहीं है। इसलिए हमें जीवाश्म ईंधन के खत्म होने का इंतजार करने के स्थान पर हमें ऊर्जा के उन स्रोतों को अपनाना होगा जो कभी खत्म नहीं होंगे। इस प्रकार के ऊर्जा स्रोतों में उल्लेखनीय हैं सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, लघु बिजली परियोजना, गोबर गैस आदि। भारत में वर्ष भर पर्याप्त मात्रा में सूर्य की रोशनी रहती है। इस रोशनी का विविध रूप में प्रयोग करना संभव है। घर ऐसे बनाएं जाए जिनसे पर्याप्त रोशनी रहे, इससे बिजली की जरूरत कम पड़ेगी। सोलर कुकर रियायती दर पर दिए जाएं तो लोग खाना पकाने में इसका उपयोग करेंगे। ग्रामीण भारत में ऊर्जा की कमी रहती है। इसके लिए सबसे अच्छा उपाय है गोबर गैस। गोबर गैस से न केवल मुपऊत में खाना पकेगा अपितु रोशनी भी मिलेगी। इससे बिजली बचेगी।

लेखक- रमेश कुमार दुबे
(लेखक पर्यावरण एवं कृषि विषयों पर कई पत्र-पत्रिकाओं में स्‍वतंत्र लेखन कार्य कर रहे हैं)

व्यंग्य/गधा न होने का मलाल!!

stamp3इसे संयोग ही कहिए कि इधर पिछड़े इलाके के बाशिंदे कुम्हार गंगे का एकमात्र गधा गुजरा और उधर देश में लोक सभा के आम चुनाव सिर पर आए। गंगे कुम्हार को गधे के जाने का इतना दु:ख नहीं था जितना दु:ख इस बात का था कि अब वह अपने इलाके में चुनाव प्रचार के लिए आने वाले हर नेता को किसकी पीठ पर उठा कर आस पास के गांव में ले जाएगा। गंगे कुम्हार को इतनी इनकम घड़े बेचकर नहीं थी जितनी गधे पर नेताओं को ढो कर हो रही थी। ऊपर से इलाके में दबदबा अलग का। चुनाव के दिनों में वोटर तो नेता को अपनी पीठ पर बैठाने से रहे। यही दिन तो होते हैं उनके नेता की पीठ पर शान से बैठने के, चुनाव के बाद तो नेता ही जनता की पीठ पर बैठता है। अगर वह न बैठना चाहे तो भी जनता उसे अपनी पीठ की सवारी करवा कर ही रहती है। जिसकी पीठ पर नेता ने अपनी पिछवाड़ी धर दी समझो उसका अगले चुनाव तक का जीवन सफल हुआ।असल में गधा जबसे बोझ उठाने लायक हुआ था वह कुम्हार के घड़े कम, नेताओं को ज्यादा उठा रहा था। कभी किसी का चुनाव तो कभी किसी का चुनाव, हर महीने किसी न किसी का चुनाव चला ही रहता। घड़े उठाकर गधे की पीठ इतनी नहीं झुकी थी जितनी नेताओं को उठाकर उसकी पीठ झुकी थी। नेताओं को उठा उठा कर गधे की पीठ जितनी झुक रही थी गंगे कुम्हार की रीढ़ की हडडी पूरे इलाके में उतनी ही सीधी हो रही थी।

ऐन मौके पर धोखा दे गए गधे के शव को गंगे कुम्हार ने दो लात जड़े और गहन चिंतन में डूब गया। इतनी सोच में तो वे भी नहीं डूबे थे जो चुनाव में खडे हो रहे थे। जैसे ही अड़ोस-पड़ोस में गंगे के गधे के मरने की सूचना लोगों को मिली तो वे औपचारिकतावश उसके घर गधे के मरने के सुअवसर पर शोक प्रगट करने आने के बहाने उस पर हंसने आने लगे। तब गंगे कुम्हार को लगा ज्यों उसका गधा नहीं, वह मर गया हो। एक बात बताइए तो भाई साहब! इन दिनों हम गधों पर इतने अधिक निर्भर क्यों हो गए हैं?

ज्यों ही राजनीति के फसली बटेरों को पता चला कि गंगे कुम्हार का गधा स्वर्ग सिधार गया है तो एक पार्टी वालों ने तहसील के पी डब्लू डी के रेस्ट हाउस में गधे की आत्मा की शांति के लिए एक शोक सभा का आयोजन किया, गधे की आत्मा की शांति के लिए उन नेताओं ने पूरी ईमानदारी के साथ दो मिनट का मौन रखा, प्रेस नोट जारी किया, जिसमें कहा गया, ‘गधे की असामयिक मृत्यु से गंगे कुम्हार का ही नहीं, गधे समुदाय का ही नहीं, पूरे देश का कभी न भरने वाला नुकसान हुआ है। देश में गधे की कमी हर वक्त खलती रहेगी। देश में जब जब चुनाव आएंगे, ये गधा तब तब बहुत याद आएगा।

ज्यों ही राजनीति के फसली बटेरों को पता चला कि गंगे कुम्हार का गधा स्वर्ग सिधार गया है तो एक पार्टी वालों ने तहसील के पी डब्लू डी के रेस्ट हाउस में गधे की आत्मा की शांति के लिए एक शोक सभा का आयोजन किया, गधे की आत्मा की शांति के लिए उन नेताओं ने पूरी ईमानदारी के साथ दो मिनट का मौन रखा, प्रेस नोट जारी किया, जिसमें कहा गया, ‘गधे की असामयिक मृत्यु से गंगे कुम्हार का ही नहीं, गधे समुदाय का ही नहीं, पूरे देश का कभी न भरने वाला नुकसान हुआ है। देश में गधे की कमी हर वक्त खलती रहेगी। देश में जब जब चुनाव आएंगे, ये गधा तब तब बहुत याद आएगा। भगवान से पार्टी के तहसील स्तर के प्रधान ये भी मांग करते हैं कि भगवान उसकी आत्मा को शांति तो प्रदान करे पर उसे मोक्ष न दे। क्योंकि देश को गधों की बहुत जरुरत है। गंगे कुम्हार को गधे के क्रिया कर्म के लिए फौरी तौर पर पार्टी, पार्टी फंड से दस हजार रुपये देने की सहर्ष घोषणा करती है ताकि गधे के क्रिया कर्म में किसी भी तरह की कमी न आए।’

चुनाव का वक्त तो था ही, ज्यों ही सत्ता पार्टी वालों को गंगे कुम्हार के गधे की मौत का पता चला तो उन्होंने भी आनन-फानन में आस-पास के कस्बों में जाने का कार्यक्रम छोड़ गधे की शोक सभा को प्राथमिकता देते हुए जिला मुख्यालय के जिलाधीश सभागार में गधे की आत्मा की शांति के लिए विशाल शोक सभा का आयोजन किया जिसमें सभी आला अफसरों का आना अनिवार्य हुआ।

निश्चित समय से आध घंटे बाद जिलाधीश सभागार में जिला भर के गणमान्य नेता सरकारी अमले के साथ उपस्थित हुए। सामने टेबल पर सफेद कपड़ा बिछा था। उस पर शीशे की फ्रेम में गधे का स्केच था। एक नामी पार्टी के आर्टिस्ट का बनाया हुआ। उसके पास ही ताजे फूलों की टोकरी रखी थी। टोकरी में रखे फूल अपनी बदनसीबी पर रो रहे थे। पर मजे की बात, वह स्केच सभी से मेल खा रहा था और सभी को देख मुस्कुरा रहा था। गधे के स्केच के आगे अगर बत्तियां जल रही थीं। सैंकड़ों लोगों ने मरे गधे के स्केच के आगे सिर नीचा किए पांच मिनट का मौन रखा। पार्टी के जिला प्रमुख तो उस वक्त इतने भावुक हो उठे थे कि उनकी गर्दन तो पार्टी वर्करों को मौन के दस मिनट बाद भी खुद ही उठानी पड़ी। उस वक्त उनकी आंखों में आंसू देखने लायक थे। जिलाधीश ने अपनी जेब से अपना रूमाल निकाल कर उन्हें दिया तो उन्होंने अपने आंसू उसमें पोंछे और रूमाल एसपी महोदय को पकड़ा दिया।

शोक सभा के एकदम बाद एसडीएम महोदय को आदेश हुआ कि वे सारे काम छोड़ सरकार का सांत्वना संदेश लेकर गंगे कुम्हार के घर जाएं और उससे कहें कि दु:ख की इस घड़ी में वह अकेला नहीं, सरकार उसके साथ है।

यह सब देख चार दिनों से अपने शव के पास रूकी गधे की आत्मा मुस्कराते हुए वोट तंत्र जिंदाबाद! वोट तंत्र जिंदाबाद!!! के नारे लगाती इस देश से पाकिस्तान की ओर कूच कर गई।

-अशोक गौतम
गौतम निवास, अप्पर सेरी रोड
नजदीक मेन वाटर टैंक, सोलन-173212 हि.प्र.

श्री वाजपेयी चार राज्यों से चुनाव जीतने वाले अकेले सांसद

atalji115 वें लोकसभा चुनाव में देश के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजयेपी भले ही चुनाव नहीं लड रहे हैं परंतु उनके नाम कई रिकार्ड हैं। भाजपा के पहले प्रधानमंत्री श्री वाजपेयी अकेले सांसद थे जिन्हें चार राज्यों से चुनाव लडकर सांसद बनने का रिकार्ड बनाया था। वे अलग-अलग छह लोकसभा क्षेत्रों से चुनाव लडकर सांसद बन चुके हैं।अटल बिहारी वाजपेयी एक मात्र एक ऐसे सांसद रहे हैं जिन्होंने उत्तरप्रदेश, गुजरात, मध्यप्रदेश एवं दिल्ली राज्यों से सांसद चुने जा चुके हैं। 1957 एवं 67 में वे बलरामपुर से, 1971 में ग्वालियर से, 1977 एवं 80 में नई दिल्ली से, 1991 में विदिशा से , 1996 में गांधीनगर से तथा लखनऊ से वे 1991 ,1996 और 1998 में चुनाव जीतकर वे सांसद बन बन चुके हैं। ऐसा प्रदर्शन करने वाले वे देश के एक मात्र राजनीतिज्ञ हैं।

भाजपा ने सबसे पहली बार पश्चिम बंगाल एवं तमिलनाडू में 1998 में लोकसभा की सीटें जीती थी। पहली लोकसभा में मात्र 4.4 फीसदी महिलाएं ही लोकसभा में पहुंची थी जबकि 13 वीं लोकसभा में 9.02 प्रतिशत महिलाएं पहुंची। लोकसभा के कई और भी रोचक तथ्य हैं। मायावती की बहुजन समाजवादी पार्टी और अमेरिका में जॉज बुश रिपब्लिकन पार्टी का चुनाव चिन्ह एक ही था। दोनों ही पार्टी का चुनाव चिन्ह हाथी था।

1950 में हुए चुनाव में हर उम्मीदवार के लिए अलग मतदाता बॉक्स था , जो अलग-अलग रंग के थे और अलग-अलग पार्टियों के थे। भारत का लक्षदीप संसदीय क्षेत्र ऐसा क्षेत्र हैं जिसमें सबसे ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं। यहां इनकी जनसंख्या जम्मूकश्मीर से भी अधिक है। मध्यप्रदेश का छिंदवाडा लोकसभा क्षेत्र हमेशा से कांग्रेस का गढ रहा है। यहां कांग्रेस कभी भी चुनाव नहीं हारी है। छत्तीसगढ का राजनांदगांव एक ऐसा संसदीय क्षेत्र रहा जहां से एक ही परिवार के मां,पिता और बेटा सांसद रहे हैं। 1957 के लोकसभा चुनाव में सबसे अधिक 62.2 फीसदी मत डाले गये थे, जबकि 1967 में यह प्रतिशत मात्र 33 था। देश में पांच बडे और पांच सबसे छोटे लोकसभा क्षेत्र हैं। लद्दाख सबसे बडा क्षेत्रफल वाला संसदीय क्षेत्र है। इसके बाद राजस्थान का बाडमेर , गुजरात का कच्छ, अरूणाचल पश्चिम उसके बाद अरूणाचल पूर्व संसदीय क्षेत्र आता है। देश का सबसे छोटा संसदीय क्षेत्र दिल्ली का चांदनी चौक है। इसके बाद कलकत्ता उत्तरपश्चिम फिर मुंबई दक्षिण और फिर मुंबई दक्षिणपूर्व संसदीय क्षेत्र है।(हि.स.)

तिरंगा फहराने के जिद की जीत: शिरीष खरे

cry-0021छोटी-छोटी बातों से जिंदगी बनती है और छोटे-छोटे सिरों से कहानी. यह छोटी-सी कहानी भी एक छोटे-से सिरे से शुरू होती है. लेकिन सबको एक बड़े जज्बात से जोड़ती है. शहीदों की शहादत और देशभक्ति गानों को 26 जनवरी या 15 अगस्त के अलावा भी याद किया जा सकता है. इसीलिए इस कहानी को आज यहां बयान किया जा रहा है.

नागपुर की गंगानगर बस्ती में कभी तिरंगा नहीं फहराया था. 26 जनवरी 2008 को लोगों ने तिरंगा फहराने का सोचा. लेकिन एक मामूली लगने वाले काम की अड़चनों को देखते हुए टाल दिया. अगली बार फहराने का कहते हुए भूल गए. लेकिन बच्चों को याद रह गया. जो बच्चे आशाओं की नन्ही-नन्ही नसैनियां लगाकर आकाश पर चढ़ते हैं. उन्हीं में से 12 बच्चों ने साल 2009 की उसी तारीख को आखिरी सिरा जोड़ दिया. 11 से 14 साल के इन बच्चों ने कौन-सा सिरा, कहां से जोड़ा, यह जानना भी दिलचस्प होगा.

आपने दो सच को एक साथ और अलग-अलग देखा हैं \ यहां एक सच था- काम बेहद आसान है. दूसरा था- काम बेहद मुश्किल है. एक सच ‘कहने’ और दूसरा ‘करने’ से जुड़ा था. इसलिए एक सच ने दूसरे को बहुत दिनों तक दबाए रखा. लेकिन तीसरा सच भी था कि बच्चों का जज्बा किसी जज्बे से कम नहीं था. इस तीसरे सच ने दूसरे सच को अपने पाले में खीच लिया.

पहला सिरा
जनवरी 2008 की 26 तारीख पहला सिरा बना. इस रोज गंगानगर के लोग झण्डा ऊंचा करने के लिए एक हुए. लेकिन जिस खम्बे से तिरंगा फहराना था, वह टूट गया. लोग बिखर गए और बच्चों के दिल भी टूट गए.

14 साल की हेमलता नेताम ने याद किया- ”हमारी ‘बाल अधिकार समिति’ के सभी साथी ‘बाल अधिकार भवन’ में मिले. हमने अपनी बस्ती में तिरंगा फहराने की ठानी.” इस लिहाज से अगली और अहम तारीख थी 15 अगस्त. बच्चों की बैठक से दो बातें निकली. एक- बस्ती के बड़ों से चर्चा की जाए. दूसरा- अपने पार्षद को एक एप्लीकेशन दी जाए.

आखिरी सिरे के पहले
11 साल की पूजा भराडे ने याद किया- ”हमने काम को दूसरों पर छोड़ा और हार गए. हमें बड़ों के साथ एप्लीकेशन लिखनी और उन्हें लेकर आगे बढ़ना था. लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा था. जब 15 अगस्त नजदीक आया तो लगा कि झण्डा सिर्फ दिलों में ही फहराकर रह जाएगा. सबकी आंखें 15 से हट गईं. हमारे दिल फिर टूट गए.” लेकिन 15 की तारीख हार और हिम्मत की तारीख बनी. अगर यह नहीं आती तो 26 जनवरी 2009 जीत की तारीख कैसे बनती!

15 अगस्त को वार्ड-12 की पार्षद मीनाताई बरडे ने तिरंगा फहराया. उनके भाषणों से बच्चों के दिलों में देशप्रेम की भावनाएं उमड़ती थीं. बच्चों ने आजादी के नारे लगाए. फिर सबके सामने मीनाताई से 26 जनवरी के पहले खम्बा और उसका चबूतरा बनाने की मांग रखी.

देखते-देखते नए साल का सूरज उग गया. 12 साल की रोशनी ठाकरे ने याद किया- ”हमें भी अपनी जिद पकड़ी. 5 जनवरी को सारे फिर बैठे. यहां दो फैसले हुए. यह पिछले फैसलों से अलग थे. एक तो अपने हाथों से एप्लीकेशन बनाई. दूसरा खुद जाकर पार्षद से मिलने की सोची. यह काम हमें ही करने थे इसलिए पूरे हुए.”

13 साल के अक्षय नागेश्वर ने याद किया- ”हमने जिम्मेदारियां बांटी. 8 जनवरी को 12 बच्चे पार्षद के आफिस पहुंचे. लेकिन मीनाताई नहीं मिलीं. हम उदास हुए, निराश नहीं.” पार्षद से मिलने की दूसरी तारीख 11 जनवरी रखी गई. इस तारीख की सुबह 9 बजे बच्चे ऑफिस पहुंचे. मीनाताई फिर नहीं थीं. लेकिन मैनेजर ईश्वर बरडे मिल गए. बच्चों ने एप्लीकेशन उन्हें ही दे दी और उनसे मीनाताई का मोबाइल नंबर ले लिया.

बच्चों के अगले 10 दिन भी इंतजार में गुजरे. अब पानी सिर के ऊपर था. 21 जनवरी को ‘बाल अधिकार भवन’ में तीसरी बैठक रखनी पड़ी. यहां से बच्चे फिर मीनाताई के ऑफिस पहुंचे. इस बार संबंधित अधिकारी अशोक सिंह का नम्बर मिला. बच्चों ने अशोक सिंह से खम्बा और उसका चबूतरा बनाने की अपनी पुरानी जिद दोहरायी. कुल मिलाकर बात आई और गई हो गई.

14 साल के मनीष सोनावने ने याद किया- ”26 जनवरी नजदीक आया. यह परीक्षा की घड़ी थी. हम फिर मीनाताई के ऑफिस में गए. वह फिर नहीं मिली. इसलिए उनके घर जाना पड़ा. मीनाताई ने जब हमारी परेशानियां सुनी तो सॉरी कहा. उन्होंने 26 जनवरी के पहले तक खम्बा और उसका चबूतरा बनाने का वादा किया.”

सुबह की तस्वीर
मीनाताई के बातों से उत्साहित बच्चे घर लौटे. 26 जनवरी के एक रोज पहले बच्चे आगे आए. उन्होंने रात के पहले तक खम्बा और उसका चबूतरा बना डाला. जो बच्चे आकाश से पंतगें तोड़कर अपनी छतों पर लहराना चाहते हैं उन्हीं में से 12 ने अपनी बस्ती में पहली बार तिंरगा फहराने की खुशी महसूस की थी. ‘बाल अधिकार समिति’ की नंदनी गायकबाड़ और उनके साथी नींव के खास पत्थर साबित हुए. नंदनी बोली- ”अगली सुबह तिरंगा आंखों के सामने लहरा उठा. अब यह खम्बा बच्चों के दृढ़ संकल्प और समपर्ण का प्रतीक है.”

जब कोई बच्चा पहली बार जूते के बंध बांधता है तो उसके चेहरे की खुशी देखती ही बनती है.एक रोज कुछ नन्हें हाथ मिले तो किसी ने न देखा. लेकिन जब छोटी-सी आशा हकीकत में बदली तो पूरे गंगानगर देखता रह गया.

‘बाल अधिकार भवन’ में बड़ा फासला मिटाने वाले छोटे-छोटे कदम एक साथ खड़े है. हेमलता नेताम, पूजा भराडे, अक्षय नागेश्वर, रोशनी ठाकरे और मनीष सोनावने को एक तस्वीर में कैद किया गया है. तकदीर से बनी यह तस्वीर अब इस कहानी का आखिरी सिरा है. हो सकता है यह अगली कहानी का पहला सिरा बन जाए!!

‘चाईल्ड राईटस एण्ड यू’
संचार विभाग, मुंबई
ई मेल :
shirish2410@gmail.com

पत्रकार जनरैल सिंह को मिलेगा 2 लाख रुपए के पुरस्कार

jarnailsinghकेंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम पर जूता फेंककर अपना आक्रोश व्‍यक्‍त करने वाले पत्रकार जनरैल सिंह दो लाख रुपए के पुरस्कार से सम्‍मानित होंगे। शिरोमणी अकाल दल ने जनरैल सिंह के ‘साहस और बहादुरी’ की प्रशंसा की है और उन्हें दो लाख रुपए नकद पुरस्कार देने की घोषणा की है।विदित हो कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जगदीश टाइटलर को 1984 के सिख विरोधी दंगों से जुड़े एक मामले में हाल ही में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा निर्दोष करार दिए जाने से नाराज, जनरैल सिंह ने मंगलवार, 7 अप्रैल को राजधानी स्थित कांग्रेस मुख्यालय में आयोजित एक विशेष संवाददाता सम्मेलन में चिदंबरम पर जूता फेंककर सनसनी फैला दी थी।

शिरोमणी अकाली दल के राष्ट्रीय महासचिव अवतार सिंह हित ने ‘आईएएनएस’ से कहा, “यह निर्णय हमने जूता फेंकने के कारण नहीं लिया है बल्कि यह हमारी पीड़ा को दर्शाता है। भगत सिंह ने भी विधानसभा में बम फेंका था। पत्रकार के साहस और बहादुरी भरे कदम के लिए हम उसे दो लाख रुपए देने की घोषणा करते हैं”।

शिरोमणी अकाल दल की दिल्ली ईकाई के अध्यक्ष मंजीत सिंह ने भी जनरैल सिंह के कदम का समर्थन किया है।

उन्होंने कहा, “हम सिंह का समर्थन करते हैं। उन्होंने जो कुछ किया वह देशभर के सिखों की भावना को दर्शाता है”।

संवाददाता सम्मेलन में जनरैल सिंह ने चिदम्बरम से जानना चाहा था कि किन हालातों में सीबीआई ने टाइटलर को क्लीन चिट दी।

चिदम्बरम ने जनरैल सिंह के सवाल का जवाब देते हुए कहा था, “न तो गृह मंत्रालय और न ही किसी अन्य मंत्रालय ने सीबीआई पर दबाव डाला था। सीबीआई ने सिर्फ रिपोर्ट दी थी। यह अदालत पर निर्भर करता है कि वह सीबीआई की रिपोर्ट को स्वीकार करे या खारिज करे”।

इस सवाल पर चिदम्बरम और सिंह के बीच थोड़ी बहस भी हुई।

चिदम्बरम ने सिंह से आग्रह किया वे बहस न करे जबकि सिंह उनसे सवाल पूछे जा रहे थे। इसी बीच अचानक सिंह ने जूता निकाल चिदम्बरम पर फेंका डाला जो उनसे कुछ दूरी पर गिरा।

बाद में जनरैल सिंह को पुलिस थाने ले जाया गया जहां उन्होंने पत्रकारों से कहा, “मेरा तरीका गलत हो सकता है लेकिन मेरा मुद्दा सही था।”

यह पूछे जाने पर कि क्या वे इस घटना के लिए माफी मांगेगे, इसके जवाब में उन्होंने कहा, “माफी किस बात की। मैंने जो मुद्दा उठाया था वह सही था।”

वर्ष-2004 के आम चुनावों के दिलचस्प तथ्य

indian20parliament20-2011•ये पहले आम चुनाव थे जिनमें मत पेटियों के स्थान पर पूरी तरह से इलैक्ट्रोनिक वोटिंग मशीनों का उपयोग किया गया।

•देश में मतदाता सूची में 67,48,87,930 पंजीकृत मतदाता थे।

•चुनावों में 5435 उम्मीदवारों ने भाग लिया जिनके लिए 6,87,402 मतदान केंद्र स्थापित किये गए।

•3050 उम्मीदवार 215 राजनीतिक दलों से सबध्द थे जबकि 2385 उम्मीदवार निर्दलीय थे।

•सबसे कम मतदाता वाला मतदान केंद्र, पूर्वी अरुणांचल संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के मियाओं विधानसभा में धरमपुर का मतदान केंद्र संख्या-29 था जहां पर केवल एक ही मतदाता था।

•सबसे अधिक मतदाताओं (3368399) वाला संसदीय निर्वाचन क्षेत्र बाहरी दिल्ली था।

•सबसे कम मतदाताओं (39033) वाला संसदीय निर्वाचन क्षेत्र लक्षद्वीप था।

•दक्षिण मद्रास संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में सबसे अधिक 35 उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे।

•सबसे अधिक महिला उम्मीदवार चुनाव मैदान में उत्तार प्रदेश में थीं, जिनकी संख्या 61 थी।

•सबसे कम महिला उम्मीदवार चुनाव मैदान में गोवा में थीं जिनकी संख्या एक (1) थी।

•सबसे अधिक महिला विजयी उम्मीदवार उत्तार प्रदेश में थीं, जिनकी संख्या 7 थी।

•543 निर्वाचित संसद सदस्यों में 45 महिलाएं थीं।

•सबसे अधिक आयु का उम्मीदवार कर्नाटक के बीदर में श्री रामचंद्र वीरप्पा था।

•सबसे कम आयु के उम्मीदवार की आयु 25 वर्ष थी (मनी)।

•सबसे अधिक आयु का विजयी उम्मीदवार कर्नाटक के बीदर में श्री रामचंद्र वीरप्पा था।

•सबसे कम आयु का विजयी उम्मीदवार सचिन पायलट, राजस्थान के दौसा से था जिसकी आयु 26 वर्ष थी।

•बाहरी दिल्ली के उम्मीदवार सज्जन कुमार ने इन चुनावों में सर्वाधिक 8,55,543 वोट प्राप्त किये थे।

•चाँदनी चौक से उम्मीदवार अशोक कुमार ने सबसे कम 45 वोट प्राप्त किये थे।

•विजयी उम्मीदवार के तौर पर सबसे कम 15,597 वोट लक्षद्वीप से उम्मीदवार डॉ0 पूकुनहिकोया ने प्राप्त किये थे।

•विजय का अधिकतम अंतर 5,92,502 वोट का पश्चिम बंगाल में आरामबाग़ के उम्मीदवार का था। दूसरे स्थान पर रहे उम्मीदवार की ज़मानत ज़ब्त हो गई थी।

•न्यूनतम अंतर 71 वोट का लक्षद्वीप के उम्मीदवार का था।

•निर्वाचित संसद सदस्यों की औसत आयु 52.63 वर्ष थी।

जूते खाने वालों में गृहमंत्री चिदंबरम दूसरे भारतीय – जयराम ‘विप्लव’

chidambaramजूते खाने वालों में गृहमंत्री पी चिदंबरम दूसरे भारतीय हस्ती बन गए हैं। कांग्रेस मुख्यालय में एक प्रेस कोंफ्रेंस के दौरान दैनिक जागरण के पत्रकार जरनैल सिंह ने गृह मंत्री के ऊपर जूता चला दिया। हालाँकि बुश की तरह गृहमंत्री भी अपनी फुर्ती से बच गए। करनैल सिंह ने मीडिया को बताया कि “उसे कांग्रेस से कोई नाराजगी नही है। लेकिन चुनाव से पहले जिस तरह से लोगों को सी बी आई क्लीन चिट दे रही है वो ग़लत है और इसी को लेकर गृहमंत्री पर जूता फेंका। भले ही मेरा तरीका एक पत्रकार होने के नाते ग़लत था। पर, मुझे अफ़सोस नही है। “दरअसल, कांग्रेस मुख्यालय में एक प्रेस कांफ्रेंस आयोजित की गई थी। इस दौरान ८४ के सिख दंगो के ऊपर चर्चा होने लगी। सवाल – जवाब के दौरान बढती गहमा-गहमी के बीच पेशे से पत्रकार जरनैल सिंह ने विरोध जताते हुए गृहमंत्री चिदंबरम के ऊपर जूता चला दिया। चिदंबरम का नाम जूते खाने वाले भारतीयों में दूसरे और विश्व स्तर पर चौथे चर्चित व्यक्ति हैं। इससे पहले पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ‘जोर्ज बुश’, चीन के प्रधान मंत्री ‘वेन जिअवाओ’ और बुकर सम्मान प्राप्त ‘अरुंधती राय’ के साथ ऐसी घटना हो चुकी है। इसी साल १३ फ़रवरी को दिल्ली विश्वविद्यालय के आर्ट्स फैकल्टी में AISA द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान अरुंधती राय को जूते खाने वालों की पंक्ति में शुमार होना पड़ा था। “युवा” नाम से बैनर लिए लग-भाग विद्यार्थिओं ने कश्मीर को पाकिस्तान को दिए जाने की वकालत करने के विरोध में जमकर नारेबाजी की। YUVA- yoth unity for vibrant action। का विरोध मुख्यतः पिंक चड्डी के खिलाफ था। उन्होंने अरुंधती रॉय के उस बयान का पुरजोर खंडन किया जिसमे उन्होनो कहा था की कश्मीर, पाकिस्तान को दे देना चाहिए। अजमल कसब के मामले पे उनकी की गई टिपण्णी से भी युवा के कार्यकर्ता नाराज़ दिखे। विवेकानान्द मूर्ति के सामने ऐसे देशद्रोही का बैठना गंवारा नही था। तभी “युवा” कार्यकर्त्ता आशिफ ने अरुंधती राय के ऊपर जूता चला दिया जिसे बाद में १९ फ़रवरी को जंतर मंतर पर १ लाख ११ हजार रूपये में नीलम कर दिया गया था।

फिलहाल, गृहमंत्री के ऊपर जूता फेंके जाने से नेतागण सकते में हैं। मीडिया में इस बात को लेकर बहस शुरू हो गई है कि क्या विरोध का यह तरीका उचित है?  विरोध का यह तरीका कितना उचित है यह तो अलग मुद्दा है लेकिन नायाब जरुर कही जा सकती है। चुनावों के इस मौसम में नेताओ को सबसे ज्यादा खतर इन जूते से ही तो है। क्या पता कौन सा विरोधी कब जूते से वार कर दे?  जो भी हो विरोध के सारे तरीको पर जूता फेंकना भारी पड़ता दिख रहा है।

तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों के पात्र नया रास्‍ता तलाशते हैं : कृष्णा सोबती

clip_image001“तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों से गुज़रते हुए हम यह शिद्दत से महसूस करते हैं कि लेखक अपने वजूद का टेक्स्ट होता है। तेजेन्द्र के पात्र ज़िन्दगी की मुश्किलों से गुज़रते हैं और अपने लिये नया रास्ता तलाशते हैं। वह नया रास्ता जहां उम्मीद है। तेजेन्द्र की कहानियों के ज़रिये हिन्दी के मुख्यधारा के साहित्य को प्रवासी साहित्य से साझेपन का रिश्ता विकसित करना चाहिये। हम उनकी जटिलताएं, उनके नज़रिये और उनके माहौल के हिसाब से समझें।” मूर्धन्य उपन्यासकार एवं कथाकार कृष्णा सोबती ने आज अपने ये विचार कथाकार तेजेन्द्र शर्मा के लेखन और जीवन पर केन्द्रित पुस्तक ‘तेजेन्द्र शर्माः वक़्त के आइने में’ के राजेन्द्र भवन सभागार में आयोजित लोकार्पण के अवसर पर प्रकट किए।

उन्‍होंने श्री शर्मा की कहानियों के शिल्प विधान पर चर्चा करते हुए कहा कि उनकी कहानी ‘टेलिफ़ोन लाइन’ का अन्त हमें मण्टो की कहानियों की तरह झकझोर देता है। जहां एक ओर निर्मल वर्मा की कहानियां अंतर्यात्रा की कहानियां होती हैं जिनमें मोनोलॉग का इस्तेमाल होता है, वहीं तेजेन्द्र शर्मा बाहरी दुनियां की कहानियां लिखते हैं जिनमें चरित्र होते हैं और डॉयलॉग का ख़ूबसूरत प्रयोग किया जाता है।

प्रख्यात आलोचक प्रो. नामवर सिंह ने कहा कि “मुर्दाफ़रोश लोग हर जमात में होते हैं। और पूंजीबाद में तो ऐसे शख़्सों की इंतेहा है। वे मज़हब बेच सकते हैं, रस्मो-रिवाज़ बेच सकते हैं। तेजेन्द्र शर्मा ने अपनी लाजवाब कहानी ‘क़ब्र का मुनाफ़ा’ में वैश्विक परिदृश्य में पूंजीवाद की इस प्रवृत्ति को यादगार कलात्मक अभिव्यक्ति दी है।”

इस अवसर पर प्रख्यात आलोचक प्रो. नामवर सिंह ने कहा कि “मुर्दाफ़रोश लोग हर जमात में होते हैं। और पूंजीबाद में तो ऐसे शख़्सों की इंतेहा है। वे मज़हब बेच सकते हैं, रस्मो-रिवाज़ बेच सकते हैं। तेजेन्द्र शर्मा ने अपनी लाजवाब कहानी ‘क़ब्र का मुनाफ़ा’ में वैश्विक परिदृश्य में पूंजीवाद की इस प्रवृत्ति को यादगार कलात्मक अभिव्यक्ति दी है।” उन्होंने इस आयोजन के आत्मीय रुझान की चर्चा करते हुए कहा- यह बेहद आत्मीयतापूर्ण आयोजन है जहां लोग अपने प्रिय कथाकार से मिलने दूर दूर से आए हैं। यह समारोह प्यार मुहब्बत और ख़ुलूस की जिंदा मिसाल है।” पुस्तक का संपादन सुपरिचित कथाकार व रचना समय के संपादक हरि भटनागर और ब्रजनारायण शर्मा ने किया है।

इससे पूर्व नामवर सिंह, राजेन्द्र यादव और कृष्णा सोबती ने इस पुस्तक का लोकार्पण किया। राजेन्द्र यादव ने तेजेन्द्र शर्मा की कथावाचन शैली की सराहना करते हुए कहा कि तेजेन्द्र को आर्ट ऑफ़ नैरेशन की गहरी समझ है। तेजेन्द्र बख़ूबी समझते हैं कि स्थितियों को, व्यक्ति के अन्तर्द्वद्वों, सम्बन्धों की जटिलताओं को कैसे कहानियों में रूपान्तरित किया जाता है। प्रवासी लेखन के समूचे परिदृश्य में तेजेन्द्र की कहानियां परिपक्व दिमाग़ की कहानियां हैं।

हरि भटनागर ने पुस्तक में लिखी अपनी भूमिका का पाठ करते हुए बताया कि तेजेन्द्र आदमी की पीड़ा को रोकर और बिलख कर नहीं बल्कि हंस-हंस कर कहने के आदी है। उनकी कहानियां दो संस्कृतियों के संगम की कहानियां हैं।
वरिष्ठ कथाकार नूर ज़हीर ने पुस्तक में शामिल अमरीका की सुधा ओम ढींगरा का एक ख़त पढ़ते हुए कहा कि तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों का असर एक प्रबुद्ध पाठक पर कैसा हो सकता है, इस ख़त से साफ़ पता चलता है।

इससे पूर्व बीज वक्तव्य देते हुए अजय नावरिया ने कहा कि यह पुस्तक अभिनंदन ग्रन्थ नहीं है क्योंकि यहां अन्धी प्रशंसा की जगह तार्किक्ता है। मोहाविष्ट स्थिति की जगह मूल्यांकन है। अजय ने तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों के बहाने हिन्दी कथा साहित्य पर चर्चा करते हुए कहा कि इन कहानियों के मूल्यांकन के लिये हमे नई आलोचना प्रविधि की दरकार है और इस पुस्‍तक को अभिनंदन ग्रंथ माना जाना चाहिए।”

कार्यक्रम का संचालन अजित राय ने किया। समारोह में राजेन्द्र प्रसाद अकादमी के निदेशक बिमल प्रसाद, मैथिली भोजपुरी अकादमी के उपाध्यक्ष अनिल मिश्र, असग़र वजाहत, कन्हैया लाल नन्दन, गंगा प्रसाद विमल, लीलाधर मण्डलोई, प्रेम जनमेजय, प्रताप सहगल, मुंबई से सूरज प्रकाश, सुधीर मिश्रा, राकेश तिवारी, रूप सिंह चन्देल, सुभाष नीरव, अविनाश वाचस्पति, अजन्ता शर्मा, अनिल जोशी, अल्का सिन्हा, मरिया नगेशी (हंगरी), चंचल जैन (यू.के.), रंगकर्मी अनूप लाथर (कुरुक्षेत्र), शंभु गुप्त (अलवर), विजय शर्मा (जमशेदपुर), तेजेन्द्र शर्मा के परिवार के सदस्यों सहित भारी संख्या में साहित्य-रसिक श्रोता मौजूद थे।

-अविनाश वाचस्‍पति
साहित्‍यकार सदन, 195 सन्‍त नगर, नई दिल्‍ली 110065

ई मेल avinashvachaspati@gmail.com मोबाइल 9868166586

अमेठी बनाम कलावती – ब्रजेश कुमार झा

untitled1अमरावती की दलित गरीब महिला कलावती और अमेठी की दलित गरीब महिला शकुंतला की कहानी राहुल गांधी की सियासी मार्केटिंग को समझने का माध्यम है।

 

राहुल ने संसद में अमरावती क्षेत्र में रहने वाली गरीब महिला कलावती का किस्सा मार्मिक ढंग से बयान किया था। लेकिन, स्वयं उनके संसदीय क्षेत्र में रहने वाली गरीब दलित महिला शकुंतला उन्हें कभी याद नहीं आई। जबकि कलावती के घर वे बिजली पहुंचवा चुके हैं।

 

दलितों की झोपड़ी में ठहर कर सियासी मार्केटिंग का फार्मूला उन्होंने कहां से सीखा है। इसका सच तीन दशक पीछे लौटकर ही बेहतर समझा जा सकता है। साथ ही अमेठी की गरीब दलित शकुंतला की कहानी बाकी सच बयां करती है। 27 दिसंबर 1970 को इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग कर फरवरी 1972 के अपने नियत कार्यकाल से 1 वर्ष पहले ही चुनाव कराने का निर्णय लिया। चुनाव में उनके विरोधियों ने इंदिरा हटाओ का नारा दिया। दूसरी तरफ इंदिया गांधी ने इससे अगल गरीबी हटाओ जैसा अधिक असरदार नारा दिया।

 

जनता ने इंदिरा गांधी की बातों पर विश्वास किया और कांग्रेस को चुनाव में भारी जीत दिलाई। पार्टी को लोकसभा के 518 सीटों में से 352 स्थान प्राप्त हुए। जनता ने पार्टी को वह दो-तिहाई बहुमत प्रदान किया, जिससे सरकार को संविधान में संशोधन करने के लिए भी किसी का मुंह नहीं देखना पड़ता। इंदिरा गांधी को जनता ने भारतीय राजनीति में वर्चस्वकारी स्थिति में पहुंचा दिया।

 

लेकिन अब करीब चालिस वर्ष बाद इंदिरा गांधी और सत्ता पर काबिज कांग्रेस पार्टी झूठी साबित हो रही है। देश की करोड़ों आबादी गरीबी रेखा से नीचे अपना जीवन काट रही है। ऐसा मालूम पड़ता है कि गांधी परिवार के शाहजादे राहुल गांधी को भी देश की जनता से किया गया अपनी दादी मां का वादा संभवतः याद नहीं है। वे देश के नए मतदाताओं व युवा पीढ़ी को अपनी दादी मां का जुम्ला नए तरीके से पढ़ाते हुए एक तीर से दो निशाना साधने में लगे हैं। पहला गरीबों का मसिहा बनकर उन्हें प्रभावित करने की जुगत में हैं। साथ ही अपने राजनीति विरोधियों को पछाड़ने का काम कर रहे हैं। इसलिए कभी अमरावती तो कभी बुंदेलखंड की गरीबी उन्हें नजर आती रही।

 

उन्हें अमेठी की गरीब महिला शकुंतला कभी याद नहीं आई।  हालांकि, प्रहार नाम की एक संस्था और अचलपुर (अमरावती) के निर्दलीय विधायक बच्चू कुडू ने अमेठी पहुंचकर राहुल गांधी के सच को उजागर कर दिया है। गत 25 फरवरी को अमेठी में बच्चू कुडू और प्रहार के सौ से अधिक कार्यकर्ताओं ने दिन भर श्रमदान कर गरीब शकुंतला के लिए एक छोटे से घर का निर्माण किया। इस कार्य में राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संयोजक के.एन. गोविंदाचार्य ने भी भाग लिया।

 

इस श्रमदान के माध्यम से बच्चू ने राहुल गांधी को याद दिलाया कि देश के सबसे शक्तिशाली राजनीतिक परिवार तीन दशकों से अमेठी के लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। इसके बावजूद वहां के दलितों की स्थिति और गरीबी दहलाने वाली है। साथ ही उन्होंने सवाल उठाया कि देश की दशा सुधारने का दम भरने वाले स्वयं अपने क्षेत्र यानी अमेठी के लिए अब तक क्या कर सके ?

 

बच्चू ने कहा कि राहुल कभी कलावती की खोज तो कभी दलित सुनीता और शिव कुमारी के झोपड़े में रुक कर अपनी सियासी मार्केटिंग कर रहे हैं। इससे किसी का कोई भला नहीं होगा। यदि सचमुच कुछ करना है तो केंद्र को कोई ठोस नीति बनानी चाहिए।

 

यहां एक जनसभा में देश के विकास की बात करने वाले लोगों को आड़े हाथों लेते हुए गोविंदाचार्य ने कहा कि दुनिया के दस धन कुबेरों में चार भारतीयों के शामिल होने पर इतराने वाले लोग यह क्यों नहीं समझते कि देश के छह करोड़ लोगों के पास अपना सिर छुपाने के लिए झोपड़ी तक नहीं है।

 

 

प्रहार के कार्यकर्ताओं ने हाथ में फावड़े-तसले लिए अमेठी में श्रमदान कर वहां के विकास की असलियत सामने लाने की कोशिश की है। प्रहार के तमाम होर्डिंग अमेठी में लगे हैं, जो एक तरफ विकास का दम भरने और दूसरी तरफ गरीबी के नाम पर सियासी मार्केटिंग करने वाले राहुल गांधी का मुंह चिढ़ा रही है। ऐसा मालूम पड़ता है कि वे एक बार फिर गरीबों का मसिहा बनकर लोगों को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन उन्हें समझना चाहिए कि गत 40 वर्षों में देश की जनता ने अपने राजनेताओं के आचरण से बहुत कुछ सीखा व सबक लिया है।

 

brajesh-4-copyलेखक: ब्रजेश कुमार झा

 स्वतंत्र पत्रकार

मो.: 9350975445
ईमेल: jha.brajeshkumar@gmail.com

कांग्रेसी नेता ने भी हाथ काटने कि बात कही…

srinivasनिजामाबाद, 05 अप्रैल  रवीवार की रात आंध्र परदेश के कांग्रेस अध्यक्ष धरम पूरी श्रीनिवास ने मुस्लिम बाहुल्य छात्र के बिच अपने भाषण मैं कहा की मैं आप के साथ हूँ, अगर वे (?) आप की ओर उंगली उठाते हैं तो मैं उनका हाथ काट दूंगा।  इस बयान को लेकर वंहा काफी बवाल मचा है क्योंकि  धरम पूरी श्रीनिवास निजामाबाद शहर से कांग्रेस की टिकट से  विधायक का चुनाव लड़ रहें हैं।
उनके इस बयान की ऑडियो आंध्र परदेश के चुनाव आयोग को भा जा पा के प्रत्यासी वाई नारायण लक्ष्मी ने भेजी है।

सभी का कहना है की अगर एक यैसे ही बयां को लेकर वरुण गाँधी को जेल हो सकती है NSA लग सकता है तो फिर धरम पूरी श्रीनिवास को क्यों नहीं ;  धरम पूरी श्रीनिवास को भी जेल की सजा होनी चाहिए।

हिंदी – अंग्रेजी राष्ट्रिय मीडिया मैं इस खबर को महत्व नहीं देने से शायद ये मामला ज्यादा प्रकाश में नहीं आया।  साथ ही आंध्र पोलिश ने इस घटना का संगायन मैं नहीं लिया। 

आप इस समाचार को और विस्तार से “द हिन्दु” पर भी पढ सकते है:  https://www.thehindu.com/2009/04/07/stories/2009040752430300.htm

 – प्रदीप श्रीवास्तव

एडिशन इंचार्ज, स्वतंत्र वार्ता (नेशनल हिंदी डेली)
निजामाबाद, आ. प्र.
मो.:  09848997327
ईमेल: pradeep.srivastava2@gmail.com

स्वदेशी से स्वावलंबन तक – सुरभि दूबे

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ramdevयोगऋषि स्वामी रामदेव जी महाराज का देश को स्वावलम्बन तक ले जाने का जो प्रयास है वह सचमुच सराहनीय है. आज जब पूरा देश विनाश की राह पर चल पडा है तब स्वामी जी ने जो कदम हमारे देश की स्वाधीनता को ध्यान में रखकर बढाया है वह जरुर ही विनाश की ओर बढते कदमों को रोक लेगा. पर सिर्फ़ एक कदम ही इस साठ साल के सफ़र को नयी दिशा दे ये भी तो सम्भव नहीं. आज जरुरत है कि देश का हर कदम स्वामी जी के पदचिन्हों पर चले. हमसब को आगे आना चाहिए क्योंकि देश को हमारी जरुरत है. आज फ़िर से देश में स्वदेशी के लिये आंदोलन की आवश्यकता है. हमारा देश गरीब देशों की कतार में खडा है और हमारे देश के करोडों रुपये विदेशी बैंकों में पडे हैं क्या ये हमारा फ़र्ज़ नहीं कि हम उन पैसों को वापस लायें और अपने देश के विकास में उनका इस्तेमाल करें?
योगऋषि स्वामी रामदेव जी महाराज का देश को स्वावलम्बन तक ले जाने का जो प्रयास है वह सचमुच सराहनीय है. आज जब पूरा देश विनाश की राह पर चल पडा है तब स्वामी जी ने जो कदम हमारे देश की स्वाधीनता को ध्यान में रखकर बढाया है वह जरुर ही विनाश की ओर बढते कदमों को रोक लेगा.
हम क्यों अपने आपको लाचार और बेबस समझते हैं जबकि ये देश हमारा है और यहां कोई कुछ कर सकता है तो वो हम हैं. हमें ये कभी नहीं भुलना चाहिये कि अगर कोइ हमारे देश मे खास है तो सिर्फ़ इसलिये क्योंकि हमने उन्हें आम से खास बनाया है.देश को आज फ़िर क्रांतिकारियों की जरुरत है पर इस बार गोरे अंग्रेजों को नहीं बल्कि काले अंग्रेजों को भगाना है. और इस नेक काम को शुरु करने के लिये चुनाव से अच्छा और क्या अवसर हो सकता है? सबसे पहले काले अंग्रेजों को हमें अपनी वोट की ताकत दिखानी और अपने देश के लिये योग्य नेता चुनना है. नेता ऐसा हो जो अपने देश को अपना समझे.जो सम्पन्न्ता की ओर जाने में देश की मदद करे. शायद इस बार हमारे देश को सही दिशा मिले!