वर्तमान विपरीत परिस्थितियों के बीच विश्व को केवल भारत ही शांति की राह दिखाएगा
Updated: October 25, 2023
प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी दिनांक 24 अक्टूबर 2023 को श्री विजयादशमी के पावन उत्सव पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूज्य सरसंघचालक डा मोहन भागवत जी ने नागपुर स्थित संघ मुख्यालय में अपना सारगर्भित उदबोधन दिया है। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि देश के प्रसिद्ध गायक एवं संगीतकार श्री शंकर महादेवन जी थे। आज वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों के बीच अविश्वास की भावना जागृत हो रही है। स्पष्ट रूप विश्व एक बार पुनः दो खेमों के बीच बंटता दिखाई दे रहा है। अविश्वास की भावना इस हद्द तक बढ़ चुकी है कि रूस-यूक्रेन तथा आतंकवादी संगठन हमास एवं इजराईल के बीच तो जंग भी छिड़ चुकी है एवं इस जंग में लेबनान, सीरिया एवं अप्रत्यक्ष रूप से ईरान भी कूद गए हैं। इस तरह की विपरीत परिस्थितियों के बीच भारत पूरे विश्व में “वसुधैव कुटुम्बकम” की भावना के साथ शांति स्थापित करने का प्रयास कर रहा है। विभिन्न देशों के बीच “मैं” का भाव बहुत तेजी से बढ़ रहा है, जिसके चलते अहं की भावना विकसित होने के कारण इन देशों की आपस में टकराहट भी बढ़ रही है। विभिन्न देशों के बीच बढ़ रही वैमनस्यता के साथ ही पर्यावरण में आ रहे बदलाव पर चिंता जाहिर करते हुए उक्त उदबोधन में यह भी बताया गया है कि भारत किस प्रकार भारतीय सनातन संस्कृति के बल पर विश्व में शांति स्थापित कर सकता है एवं इस संदर्भ में संघ के स्वयंसेवकों की क्या भूमिका रहने वाली है। डा भागवत जी अपने उदबोधन में कहते हैं कि अपने स्व को, अपनी पहचान को सुरक्षित रखना, यह मनुष्य की स्वाभाविक इच्छा व सहज प्रयास है। द्रुतगति से परस्पर निकट आने वाले विश्व में आजकल सभी राष्ट्रों में यह चिंता करने की प्रवृत्ति बढ़ी है। संपूर्ण विश्व को एक ही रंग में रंगने का, एकरूपता का कोई भी प्रयास अब तक सफल नहीं रहा है, और ऐसी उम्मीद भी दिखाई नहीं देती है कि निकट भविष्य में यह सफल हो सकेगा। भारत की पहचान को, हिंदू समाज की अस्मिता को बनाए रखने का विचार स्वाभाविक तो है ही। आज के विश्व की वर्तमानकालीन समय की आवश्यकताएं पूरी करने के लिए, अपने स्वयं के मूल्यों पर आधारित, काल सुसंगत, नया रूपरंग लेकर भारत खड़ा हो, यह विश्व की भी अपेक्षा है। मत संप्रदायों को लेकर उत्पन्न हुए कट्टरपन, अहंकार व उन्माद को विश्व झेल रहा है। स्वार्थों के टकराव तथा अतिवादिता के कारण उत्पन्न होने वाले यूक्रेन के अथवा गाझा पट्टी के युद्ध जैसे कलहों का कोई निदान दिख नहीं रहा है। विश्व के कई देशों में प्रकृति विरुद्ध जीवनशैली, स्वैरता तथा अनिर्बंध उपभोगों के कारण नई-नई शारीरिक व मानसिक बीमारीयां उत्पन्न हो रही हैं। विकृतियां व अपराध बढ़ रहे हैं। आत्यंतिक व्यक्तिवाद के कारण परिवार टूट रहे है। प्रकृति के अमर्याद शोषण से प्रदूषण, वैश्विक तापमानवृद्धि, ऋतुक्रम में असंतुलन व तज्जन्य प्राकृतिक हादसे प्रतिवर्ष बढ रहे हैं। आतंकवाद, शोषण और अधिसत्तावाद को खुला मैदान मिल रहा है। अपनी अधूरी दृष्टि को लेकर विश्व इन समस्याओं का सामना नहीं कर सकता यह स्पष्ट हुआ है। इसलिए अपने सनातन मूल्यों व संस्कारों के आधार पर, भारत अपने उदाहरण से वास्तविक सुख शांति का नवपथ विश्व को दिखाए यह अपेक्षा जगी है। पर्यावरण के संदर्भ में उक्त वर्णित परिस्थितियों की एक छोटी आवृत्ति भारत वर्ष में भी हमारे सम्मुख विद्यमान है। उदाहरणार्थ, हाल ही में हिमालय के क्षेत्र में हिमाचल और उत्तराखंड से लेकर सिक्किम तक लगातार प्राकृतिक आपदाओं का प्राणांतिक खेल हम देख रहे हैं। भविष्य में किसी गंभीर व व्यापक संकट का पूर्वाभास इन घटनाओं के द्वारा हो रहा हो ऐसी शंकाओं की चर्चा भी है। यद्यपि उक्त प्रकार की घटनाएं हिमालय क्षेत्र में अधिक घट रही हैं, परंतु पूरे देश के लिए इन घटनाओं का एक स्पष्ट संकेत ध्यान में आता है। अधूरी, निपट जड़वादी तथा पराकोटि की उपभोगवादी दृष्टि पर आधारित विकास पथों के कारण, मानवता व प्रकृति धीरे-धीरे परंतु निश्चित रूप से विनाश की ओर अग्रसर हो रही हैं। संपूर्ण विश्व में यह चिंता बढी है। उन असफल पथों को त्याग कर अथवा धीरे-धीरे वापिस मोड़कर भारतीय मूल्यों पर तथा भारत की समग्र एकात्म दृष्टि पर आधारित, काल सुसंगत व अद्यतन, अपना अलग विकास पथ भारत को बनाना ही पड़ेगा। यह भारत के लिए सर्वथा उपयुक्त तथा विश्व के लिए भी अनुकरणीय प्रतिमानक बन सकेगा। घिसीपिटी असफल राह पर बने रहने की, अंधानुकरण, जड़ता व पोथी निष्ठता की प्रवृत्ति छोड़नी पड़ेगी। उपनिवेशी मानसिकता से मुक्त होकर, विश्व से जो देशानुकूल है वही लेना पड़ेगा। अपने देश में जो है उसको युगानुकूल बनाते हुए, हम अपना स्व आधारित स्वदेशी विकासपथ अपनाएं, यह समय की आवश्यकता है। इस दृष्टि से कुछ नीतिगत परिवर्तन पिछले दिनों हुए है यह ध्यान में आता है। समाज में भी कृषि, उद्योग और व्यापार के, तत्संबंधित सेवाओं के क्षेत्र में, सहकारिता व स्वरोजगार के क्षेत्रों में, नए सफल प्रयोगों की संख्या वृद्धि भी निरंतर हो रही है। परंतु प्रशासन के क्षेत्र में, सभी क्षेत्रों में चिंतन करनेवाले व दिशा देने वाले बुद्धिधर्मियों में, इस प्रकार की जागृति की और अधिक आवश्यकता है। शासन की ‘स्व’ आधारित युगानुकूल नीति, प्रशासन की तत्पर, सुसंगत व लोकाभिमुख कृति तथा समाज का मन, वचन, कर्म से सहयोग व समर्थन ही देश को परिवर्तन की दिशा में आगे बढ़ाएगा। आज भारत में भी समाज की सामूहिकता छिन्न-भिन्न हो कर अलगाव व टकराव बढ़े, इस प्रकार के प्रयास कुछ विघनसंतोषी जीवों द्वारा किया जा रहे हैं। अपने अज्ञान, अविवेक, परस्पर अविश्वास अथवा असावधानी के कारण समाज में कहीं-कहीं ऐसे अप्रत्याशित उपद्रव व फूट बढ़ती ही जाती दिखाई दे भी रही है। भारत के उत्थान का प्रयोजन विश्व-कल्याण ही रहा है। परन्तु इस उत्थान के स्वाभाविक परिणाम के नाते स्वार्थी, विभेदकारी तथा छल कपट के आधार पर अपने स्वार्थ का साधन करने वाली शक्तियां मर्यादित व नियंत्रित होती हैं, इसलिए उनके द्वारा निरंतर विरोध भी चलता है। यद्यपि यह शक्तियां किसी न किसी विचारधारा का आवरण ओढ़ लिया करती हैं, किसी मनलुभावन घोषणा अथवा लक्ष्य के लिए कार्यरत होने का छद्म रचती हैं, उनके वास्तविक उद्देश्य कुछ और ही होते हैं। प्रामाणिकता व निःस्वार्थ बुद्धि से काम करने वाले लोग किसी भी विचारधारा के हों, किसी भी तरह का कार्य करते हों, उनके लिए बाधा ही होते हैं। आजकल इन सर्वभक्षी ताकतों के लोग अपने आपको सांस्कृतिक मार्क्सवादी या वोक (Woke) यानी जगे हुए कहते हैं। परंतु मार्क्स को भी उन्होंने 1920 के दशक से ही भुला रखा है। विश्व की सभी सुव्यवस्था, मांगल्य, संस्कार, तथा संयम से उनका विरोध है। मुठ्ठी भर लोगों का नियंत्रण सम्पूर्ण मानवजाति पर हो इसलिए अराजकता व स्वैराचरण का पुरस्कार, प्रचार व प्रसार वे करते हैं। माध्यमों तथा अकादमियों को हाथ में लेकर देशों की शिक्षा, संस्कार, राजनीति व सामाजिक वातावरण को भ्रम व भ्रष्टता का शिकार बनाना उनकी कार्यशैली है। ऐसे वातावरण में असत्य, विपर्यस्त तथा अतिरंजित वृत्त के द्वारा भय, भ्रम तथा द्वेष आसानी से फैलता है। आपसी झगड़ों में उलझकर असमंजस व दुर्बलता मे फंसा व टूटा हुआ समाज, अनायास ही इन सर्वत्र अपनी ही अधिसत्ता चाहने वाली विध्वंसकारी ताकतों का भक्ष्य बनता है। अपनी परम्परा में इस प्रकार किसी राष्ट्र की जनता में अनास्था, दिग्भ्रम व परस्पर द्वेष उत्पन्न करनेवाली कार्यप्रणाली को मंत्र विप्लव कहा जाता है । देश में राजनीतिक स्वार्थों के कारण राजनीतिक प्रतिस्पर्धी को पराजित करने के लिए ऐसी अवांछित शक्तियों के साथ गठबंधन करने का अविवेक है। समाज पहले से ही आत्मविस्मृत होकर अनेक प्रकार के भेदों से जर्जर होकर, स्वार्थों की घातक प्रतिस्पर्धा, ईर्ष्या व द्वेष में उलझा है। इसलिये इन आसुरी शक्तियों को समाज या राष्ट्र को तोड़ना चाहनेवाली अंदरूनी या बाहरी ताकतों का साथ भी मिलता है। भारत किस प्रकार विश्व में शांति स्थापित करने के लिए नेतृत्व प्रदान कर सकता है इसे समझाते हुए डा भागवत जी कहते हैं कि भारत के बाहर के लोगों की बुद्धि चकित हो जाए, परंतु मन आकर्षित हो जाए ऐसी एकता की परंपरा हमारी विरासत में हमको मिली है। उसका रहस्य क्या है? नि:संशय वह हमारी सर्व समावेशक संस्कृति है। पूजा, परंपरा, भाषा, प्रान्त, जातिपाती इत्यादि भेदों से ऊपर उठकर, अपने कुटुंब से संपूर्ण विश्वकुटुंब तक आत्मीयता को विस्तार देनेवाली हमारी आचरण की व जीवन जीने की रीति है। हमारे पूर्वजों ने अस्तित्व की एकता के सत्य का साक्षात्कार किया। उसके फलस्वरूप शरीर, मन, बुद्धि की एक साथ उन्नति करते हुए तीनों को सुख देनेवाला, अर्थ, काम को साथ चलाकर मोक्ष की तरफ अग्रेसर करनेवाला धर्मतत्व उनको अवगत हुआ। उस प्रतीति के आधार पर उन्होंने धर्मतत्व के चार शाश्वत मूल्यों (सत्य, करुणा, शुचिता व तपस ) को आचरण में उतारनेवाली संस्कृति का विकास किया। चारों ओर से सुरक्षित तथा समृद्ध हमारी मातृभूमि के अन्न, जल, वायु के कारण ही यह संभव हुआ। इसलिए हमारी भारतभूमि को हमारे संस्कारों की अधिष्ठात्री माता मानकर उसकी हम भक्ति करते हैं। हाल ही में स्वतन्त्रता संग्राम के महापुरुषों का स्मरण अपनी स्वतंत्रता के 75 वे वर्ष के निमित्त हमने किया। हमारे धर्म, संस्कृति, समाज व देश की रक्षा, समय समय पर उनमें आवश्यक सुधार तथा उनके वैभव का संवर्धन जिन महापुरुषों के कारण हुआ, वे हमारे कर्तृत्व सम्पन्न पूर्वज हम सभी के गौरवनिधान हैं तथा अनुकरणीय हैं। हमारे देश में विद्यमान सभी भाषा, प्रान्त, पंथ, संप्रदाय, जाति, उपजाति इत्यादि विविधताओं को एक सूत्र में बांधकर एक राष्ट्र के रूप में खड़ा करने वाले यही तीन तत्व (मातृभूमि की भक्ति, पूर्वज गौरव, व सबकी समान संस्कृति) हमारी एकता का अक्षुण्ण सूत्र है। समाज की स्थाई एकता अपनेपन से निकलती है, स्वार्थ के सौदों से नहीं। हमारा समाज बहुत बड़ा है। बहुत विविधताओं से भरा है। कालक्रम में कुछ विदेश की कुछ आक्रामक परंपराएं भी हमारे देश में प्रवेश कर गईं, फिर भी हमारा समाज इन्हीं तीन बातों के आधार पर एक समाज बनकर रहा। इसलिए हम जब एकता की चर्चा करते हैं, तब हमें यह ध्यान रखना होगा कि यह एकता किसी लेन-देन के कारण नहीं बनेगी। जबरदस्ती बनाई तो बार बार बिगड़ेगी। आज के वातावरण में समाज में कलह फैलाने के चले हुए प्रयासों को देखकर बहुत लोग स्वाभाविक रूप से चिंतित हैं, मिलते रहते हैं। अपने आपको हिंदू कहलाने वाले सज्जन भी मिलते हैं, जिनको उनकी पूजा के कारण मुसलमान, ईसाई कहा जाता है, ऐसे भी लोग मिलते हैं। उनकी मान्यता है कि फितना, फसाद व कितान को छोड़कर सुलह, सलामती व अमन पर चलना ही श्रेष्ठता है। इन चर्चाओं में ध्यान रखने की पहली बात यही है कि, संयोग से एक भूमि में एकत्र आए विभिन्न समुदायों के एक होने की बात नहीं है। हम समान पूर्वजों के वंशज, एक मातृभूमि की संताने, एक संस्कृति के विरासतदार, परस्पर एकता को भूल गए। हमारे उस मूल एकत्व को समझकर उसी के आधार पर हमें फिर जुड़ जाना है। आने वाले वर्ष 2024 के प्रारंभिक दिनों में लोकसभा के चुनाव हैं । चुनावी दांव पेचों में भावनाओं को भड़काकर मतों की फसल काटने के प्रयास अपेक्षित नहीं हैं, परंतु होते रहते हैं। समाज को विभाजित करनेवाली इन बातों से हम बचें। मतदान करना हर नागरिक का कर्तव्य है। उसका अवश्य पालन करें। देश की एकात्मता, अखंडता, अस्मिता तथा विकास के मुद्दों पर विचार करते हुए अपना मत दें । वर्ष 2025 से 2026 का वर्ष संघ के 100 वर्ष पूरे होने के बाद का वर्ष है। ऊपर निर्दिष्ट सभी बातों में संघ के स्वयंसेवक तब अपना कदम बढ़ायेंगे, इसकी सिद्धता कर रहे हैं। समाज के आचरण में, उच्चारण में संपूर्ण समाज और देश के प्रति अपनत्व की भावना प्रकट हो। मंदिर, पानी, श्मशान में कहीं भेदभाव बाकी है, तो वह समाप्त हो। परिवार के सभी सदस्यों में नित्य मंगल संवाद, संस्कारित व्यवहार व संवेदनशीलता बनी रहे, बढ़ती रहे व उनके द्वारा समाज की सेवा होती रहे। सृष्टि के साथ संबंधों का आचरण अपने घर से पानी बचाकर, प्लास्टिक हटाकर व घर आंगन में तथा आसपास हरियाली बढ़ाकर हो। स्वदेशी के आचरण से स्व-निर्भरता व स्वावलंबन बढ़े। फिजूलखर्ची बंद हो। देश का रोजगार बढ़े व देश का पैसा देश में ही काम आए। इसीलिए स्वदेशी का भी आचरण घर से ही प्रारंभ होना चाहिए। कानून व्यवस्था व नागरिकता के नियमों का पालन हो तथा समाज में परस्पर सद्भाव और सहयोग की प्रवृत्ति सर्वत्र व्याप्त हो। इन पांचों आचरणात्मक बातों का होना सभी चाहते हैं। परंतु छोटी-छोटी बातों से प्रारंभ कर उनके अभ्यास के द्वारा इस आचरण को अपने स्वभाव में लाने का सतत प्रयास आवश्यक है। संघ के स्वयंसेवक आनेवाले दिनों में समाज के अभावग्रस्त बंधुओं की सेवा करने के साथ-साथ, इन पांच प्रकार की सामाजिक पहलों का आचरण स्वयं करते हुए समाज को भी उसमें सहभागी व सहयोगी बनाने का प्रयास करेंगे। समाजहित में शासन, प्रशासन तथा समाज की सज्जनशक्ति जो कुछ कर रही है, अथवा करना चाहेगी, उसमें संघ के स्वयंसेवकों का योगदान नित्यानुसार चलता रहेगा ही। आज संघ के स्वयंसेवक समाज के स्तर पर निरंतर सबकी सेवा व राहतकार्य करते हुए समाज की सज्जनशक्ति का शांति के लिए आह्वान कर रहे हैं। सबको अपना मानकर, सब प्रकार की कीमत देते हुए समझाकर, सुरक्षित, व्यवस्थित, सद्भाव से परिपूर्ण और शान्त रखने के लिए ही संघ का प्रयास रहता है। इस भयंकर व उद्विग्न करनेवाली परिस्थितियों के बीच भी ठंडे दिमाग से हमारे कार्यकर्ताओं द्वारा जिस प्रकार सबकी संभाल के प्रयास किए जा रहे हैं उन स्वयंसेवकों पर हमें गर्व है। प्रहलाद सबनानी
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भारतीय सनातन संस्कृति का विस्तार भारतीय समाज ही कर सकता है
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प्राचीनकाल में भारत का इतिहास गौरवशाली रहा है। इस खंडकाल में समस्त प्रकार की गतिविधियां चाहे वह सामाजिक क्षेत्र में हों, सांस्कृतिक क्षेत्र में हों, आर्थिक क्षेत्र में हों अथवा किसी भी अन्य क्षेत्र में हों वह भारतीय सनातन संस्कृति का पालन करते हुए ही सम्पन्न की जाती थीं। समाज में किसी भी प्रकार के कर्म को धर्म से जोड़कर ही किया जाता था एवं अर्थ को भी धर्म से जोड़ दिया गया था। कर्म, अर्थ एवं धर्म मिलकर मानव को मोक्ष प्राप्त करने की ओर प्रेरित करते थे। सामान्यतः राष्ट्र के नागरिकों में किसी भी प्रकार की समस्या नहीं के बराबर ही रहती थी और समस्त नागरिक आपस में मिलकर हंसी खुशी अपना जीवन यापन करते थे। भारत के वेद एवं पुराणों में विभिन्न प्रकार की समस्याओं को हल करने के उपाय बताए गए हैं। विभिन्न युगों में अलग अलग शक्तियों को प्रधानता दी गई है, इन शक्तियों के माध्यम से ही विभिन्न समस्याओं पर विजय प्राप्त की जा सकती है। “त्रेतायां मंत्र-शक्तिश्च, ज्ञान शक्ति: कृत्ते-युगे। द्वापरे युद्ध शक्तिश्च, संघेशक्ति कलौयुगे।। सतयुग में ज्ञान शक्ति, त्रेता युग में मंत्र शक्ति, द्वापर युग में युद्ध शक्ति एवं कलयुग में संगठन शक्ति को प्रधानता दी गई है। परंतु, त्रेता युग में भी भगवान राम ने वानर सेना सहित समाज को संगठित करते हुए असुरी शक्तियों पर विजय प्राप्त करने में सफलता हासिल की थी एवं रावण का संहार किया था। द्वापर युग में भी महाभारत का युद्ध पांडवों ने संगठन भाव के कारण एक उद्देश्य को सामने रखकर जीता था। जबकि, कौरवों की सेना के महारथी अपने व्यक्तिगत संकल्पों, प्रतिज्ञा एवं प्रतिशोधों के लिए लड़े और युद्ध हारे थे। इसी प्रकार कलयुग में कालांतर में जब छोटे छोटे राज्य स्थापित होने लगे तब इन राज्यों के बीच आपस में संगठन का स्पष्ट तौर पर अभाव दृष्टिगोचर होने लगा और वे आपस में ही लड़ने लगे थे। संगठन का अभाव एवं सनातन संस्कृति के छूटने के कारण ही आक्रांता के रूप में मुगलों एवं अंग्रेजों को भारत के छोटे छोटे राज्यों पर अपना आधिपत्य स्थापित करने में कोई बहुत अधिक कठिनाई नहीं हुई थी। कलियुग में हिंदू समाज में संगठन शक्ति के जागरण के उद्देश्य से वर्ष 1925 में विजय दशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना परम पूज्य डॉक्टर हेडगेवार ने की थी। जो आज अपने 98 वर्ष पूर्ण कर एक विशाल वट वृक्ष के रूप में हमारे सामने खड़ा है और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज पूरे विश्व में सबसे बड़ा सांस्कृतिक संगठन माना जाता है। संघ का मुख्य कार्य स्वयंसेवकों में राष्ट्र भाव जागृत करना एवं समाज में सामाजिक समरसता स्थापित करना है। संघ द्वारा शाखाओं के माध्यम से स्वयंसेवकों का शारीरिक, बौद्धिक एवं व्यक्तित्व विकास किया जाता है। इन शाखाओं में स्वयंसेवक तैयार किए जाते हैं जो समाज में जाकर सामाजिक समरसता का भाव विकसित करने का प्रयास करते हैं एवं देश के नागरिकों में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करते हैं। इस प्रकार भारतीय समाज को संगठित करने का कार्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा शाखाओं एवं स्वयंसेवकों के माध्यम से किया जा रहा है। भारतीय समाज की एकजुटता के कारण ही आज भारत में रामसेतु का विध्वंस रुक सका है, जम्मू एवं कश्मीर में लागू धारा 370 एवं धारा 35ए हटाई जा सकी है, 500 वर्षों के लम्बे संघर्ष के बाद श्री राम का भव्य मंदिर अयोध्या में निर्मित हो रहा है, जिसका उद्घाटन जनवरी 2024 में पूज्य संत महात्माओं के साथ भारत के प्रधान मंत्री माननीय श्री नरेंद मोदी जी के कर कमलों द्वारा सम्पन्न होना प्रस्तावित है। जी-20 देशों के समूह की अध्यक्षता आज भारत के पास है और भारत इस समूह के समस्त देशों को एकजुट बनाए रखने में सफल रहा है। भारत ने चन्द्रयान को चन्द्रमा के दक्षिणी भाग पर सफलता पूर्वक उतारने में सफलता हासिल की है एवं चन्द्रमा की सतह पर “शिवशक्ति” को अंकित करने में भी सफलता पाई है। भारत आज अपनी सीमाओं की मजबूती के साथ सुरक्षा करने में सफल हो रहा है। खेलों के क्षेत्र में भी नित नए झंडे गाड़े जा रहे हैं, हाल ही में चीन में सम्पन्न हुई एशियाई खेल प्रतियोगिताओं में भारत ने 106 पदकों को हासिल कर एक रिकार्ड बनाया है। इस प्रकार वर्तमान में वैश्विक स्तर पर भारत एक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है। विभिन्न क्षेत्रों में भारत आज पूरे विश्व को राह दिखा रहा है। एक ओर तो रूस-यूक्रेन युद्ध एवं इजराईल-हमास युद्ध अपने चरम पर है एवं विश्व के विकसित देश कई प्रकार की सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे हैं एवं इन देशों में सामाजिक तानाबाना छिन्न भिन्न हो चुका है वहीं दूसरी ओर भारत आर्थिक क्षेत्र में चंहुमुखी प्रगति कर रहा है एवं आज भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गई है। भारत की यह प्रगति कई देशों को नहीं सुहा रही हैं एवं कुछ देश भारत के नागरिकों में आपसी फूट पैदा करने एवं भारत की कुटुंब व्यवस्था को छिन्न भिन्न करने का प्रयास कर रहे हैं ताकि न केवल भारत की आर्थिक प्रगति विपरीत रूप से प्रभावित हो सके बल्कि भारत का सामाजिक ताना बाना भी छिन्न भिन्न किया जा सके। यह देश भारतीय सनातन संस्कृति, हिंदुत्व, भारत एवं संघ पर प्रहार कर रहे हैं। इन विपरीत परिस्थितियों के बीच भारतीय नागरिकों पर आज महत्ती जिम्मेदारी आ जाती है कि कुछ देशों के भारतीय समाज को बांटने के कुत्सित प्रयासों को विफल करें। भारतीय समाज आपस में सामाजिक समरसता का भाव विकसित करें एवं कोई भी कार्य करने के पहिले राष्ट्र हित को सर्वोपरि रखें। आज की विपरीत परिस्थितियों के बीच भारतीय समाज को आपस में एकता बनाए रखना भी अति आवश्यक है। सामाजिक बराईयों को दूर करने के प्रयास भी आज हम सभी को मिलकर करने चाहिए। भारतीय समाज को आज की विपरीत परिस्थितियों के बीच जागृत होना ही होगा। लगभग 10 वर्ष पूर्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक ने कहा था कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में नए मतदाताओं का शत प्रतिशत पंजीयन होना चाहिए, शत प्रतिशत मतदान होना चाहिए एवं समाज द्वारा राष्ट्रहित के मुद्दों पर मतदान करना चाहिए। आज इन समस्त बातों का ध्यान भारतीय समाज को रखना होगा। श्री यदुनाथ सरकार ने अपनी पुस्तक “शिवाजी एंड हिज टाइम” में उल्लेख किया है कि प्रयाग में मुगलों ने एक अक्षय वट वृक्ष को काट कर उस पर एक बड़ा तवा इस उद्देश्य से रख दिया था कि अब वृक्ष चूंकि कट चुका है अतः स्वतः ही समाप्त हो जाएगा। किंतु, कुछ समय पश्चात उस अक्षय वट वृक्ष में फिर से कपोलें फूट आईं, उसी प्रकार से भारतीय समाज की सनातन शक्ति को रोकने का सामर्थ्य दुनिया में किसी का नहीं है।
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—विनय कुमार विनायक जातिवाद क्या है? जो अपनी जाति को श्रेष्ठ और दूसरी जाति को नीच समझता हो! ब्राह्मणवाद क्या है? जो अपनी जाति के…
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Updated: October 20, 2023
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Updated: October 20, 2023
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शांति के लिए शक्तिमान बनें__
Updated: October 20, 2023
“शक्ति ही तो शांति का आधार है ” l शांति स्थापित करने के लिए शक्तिमान बनना ही होगा l बार-बार आत्मसमर्पण को विवश होने से…
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Updated: October 20, 2023
– ललित गर्ग – पांच राज्यों के चुनावों की सरगर्मियां उग्र से उग्रत्तर होती जा रही है, चुनाव प्रचार अब धीरे-धीरे चरम पर पहुंच रहा…
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