विपक्षी एकता के सूत्रधार की असली चुनौती
ललित गर्ग :- आगामी लोकसभा चुनाव की हलचल उग्र होती जा रही है। भारतीय जनता…
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प्रभुनाथ शुक्ल लोहिया के समाजवाद को मुलायम सिंह यादव संजो नहीं पाए। दो साल पूर्व…
विवेक कुमार पाठक मप्र में सीएम उम्मीदवार के लिए नाम का मामला पौराणिक काल के…
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हिन्दू वोटों के धु्रवीकरण की संभावना से डरे हैं माया-अखिलेश मोदी का डर है,तो अपना…
प्रो.कुलदीप चन्द अग्निहोत्री कर्नाटक के घटनाक्रम को तीन हिस्सों में बाँटा जा सकता है ।…
आर के रस्तोगी जो कभी दुश्मन थे,आज सत्ता के लिए मिलन हो रहा आज अखिलेश…
अखिलेश को ताज,मुलायम को सम्मान मिला संजय सक्सेना समाजवादी पार्टी के एक वर्ष में…
कोई यह नहीं समझ पा रहा कि आखिर वह अपने उसी पुत्र अखिलेश यादव पर पार्टी की नईया डूबने के बावजूद क्यों मुलायम बने रहे और जिस पर वह आज पुन: दगाबाजी का इल्जाम मंढ़ रहे है। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के चुनाव में सपा की लुटिया डूबने पर नेता जी ने कहा था कि वह भी चुनाव हार चुके है और फिर वापस लौटे है।
यदि कोई कल यह कह रहा था कि अखिलेश यादव की पांच सालों की कमियों खासकर कानून व्यवस्था की खस्ता हालत पर पर्दा डालने की नीयत से पिता की गद्दी छीनना, चाचा व चचाओं को धता बताना एक सधी योजना का हिस्सा भर था तो अंतत: सपा सरकार डूबने में खस्ता हाल कानून व्यवस्था का कम योगदान नहीं रहा। माना की सबकुछ सुनियोजित था तो भी योजना के परखचे उड़ाने में स्वयं अखिलेश यादव का हाथ कम नहीं रहा था।
अखिलेश यादव को राजनीतिक परिपक्व समझा जाता था, लेकिन अखिलेश राजनीतिक के इतने कच्चे खिलाड़ी…
मुलायम सिंह यादव उप्र के एकमात्र ऐसे नेता हैं, जिन्हें उत्तर प्रदेश का मन, मिजाज और तेवर पता हैं। वे हर विधानसभा क्षेत्र के चरित्र और उसके स्वभाव को जानते हैं। कल्याण सिंह भी लगभग ऐसी ही जानकारियों से लैस राजनेता हैं, किंतु वे राजस्थान के राजभवन में बिठा दिए गए हैं। ऐसे में मुलायम सिंह इस घटनाचक्र के अगर प्रायोजक न भी हों तो भी उनकी इच्छा के विरूद्ध यह हो रहा है, कहना कठिन है। मुलायम सिंह यादव ने जिस तरह अपने ‘बेचारे’ कहे जा रहे बेटे को यह कहकर ताकत दी है कि “शिवपाल को मंत्री बनाने का मामला अखिलेश पर छोड़ता हूं” उसके बहुत बड़े संदेश हैं।