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समाज

शिक्षा अधिकार है तो मिलता क्यों नही ?

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समाजसेवी शब्बीर अहमद कहते हैं " हमें गांव में बसने की सरे आम सजा दी जा रही है। जिससे यह साबित हो रहा है कि शिक्षा भी केवल अमीर लोगों की जागीर बन चुकी है।गरीबों के बच्चे अमीरों की नौकरी के लिए ही इस्तेमाल किए जाते हैं और आगे भी किए जाते रहेंगे। नेता चुनाव के दौरान उच्च अधिकारियों के सामने इन गरीबों को ख्वाब दिखा कर उनका शोषण करते हैं। जिससे साफ जाहिर होता है कि हम लोकतांत्रिक भारत में नहीं रहते । आज के विकसित दौर में भी मोरी अड़ाई के बच्चे खुले आसमान तले शिक्षा लेने को मजबूर हैं।मिडिल स्कूलकी अधूरी बिल्डिंग के निर्माण को पूरा होना चाहिए ताकि कम से कम धूप और बारिश में भी उनकी पढ़ाई जारी रह सके "।

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राजनीति

कपिल मिश्रा और अरविन्द केजरीवाल की कलंक कथा

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आज केजरीवाल की कलंक कथा और कपिल के आरोप चर्चा का विषय हैं। केजरीवाल मौन हैं। हो सकता है कि वह सोच रहे हैं कि धीरे-धीरे सब शांत हो जाएगा। हम भी मानते हैं कि सब धीरे-धीरे शांत हो जाएगा, पर सत्यनिष्ठा पर जो प्रश्नचिन्ह एक बार लग जाता है वह तो चरित्र पर लगे एक दाग की भांति होता है, जिसे धोने वाली कोई साबुन आज तक नही बनी है। समाचार पत्रों को चार दिन बाद हो सकता है कि लिखने पढऩे के लिए फिर कोई 'केजरीवाल ' का 'पिता' मिल जाए या और कोई ऐसा धमाका हो जाए कि सारी मीडिया आप की सडांध मारती लाश को छोडक़र उधर को भाग ले पर दिल्ली की जनता के हृदय में तो इतनी देर में गांठ लग चुकी होगी, जिसे खोलना अब केजरीवाल के वश की बात नहीं होगी। यह जनता है जो सब जानती है-यह भूलती नही है-अपितु हृदय में लगे एक एक शूल को उठा उठाकर सुरक्षित रखती जाती है। समय आने पर सबका हिसाब किताब गिन गिनकर पूरा कर देती है। अत: केजरीवाल ध्यान रखें कि पर्दे के पीछे के उनके कुकृत्यों को जनता अपने पर्दे (हृदय) के पीछे ले गयी है और अब पर्दे का हिसाब 'पर्दे' में ही होगा।.....राज को राज रहने दो।

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राजनीति

‘लहरी’ नही ‘प्रहरी’ बनें जनप्रतिनिधि

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सत्ता में अपने लिए 'प्रबंध' और दूसरे के लिए 'प्रतिबंध' का खेल चलता रहता है। जो थोड़े से मुखर जनप्रतिनिधि होते हैं वे इस खेल में पारंगत होते हैं। वे दूसरों का रास्ता रोकने (प्रतिबंध) और अपना रास्ता प्रशस्त करने (प्रतिबंध करने) की कला को जानते हैं। इस प्रकार के जनप्रतिनिधि सत्ता में लॉबिंग करते देखे जा सकते हैं। इसीलिए ये कुछ मुखर रहते हैं। पार्टी के भीतर पार्टी बनाकर ये लोग सत्ता को भ्रमित करने या अपने अनुसार हांकने का भी प्रयास करते हैं। ये ऐसी शक्ति भी रखते हैं कि चुनावों के समय किसी का टिकट भी कटवा सकते हैं। इनके चिंतन में भी राष्ट्रचिंतन कम और अपने आपको सत्ता हिलाने में समर्थ दिखाने की चाह अधिक होती है। इस प्रकार इनसे भी देश का भला नहीं हो पा रहा।

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