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विधि-कानून विविधा

न्यायपालिका और सरकार में टकराव उचित नहीं

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प्रमोद भार्गव केंद्र सरकार और न्यायपालिका के बीच एक बार फिर जजों की नियुक्तियों को लेकर टकराव सतह पर आया है। इस बार सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीष टीएस ठाकुर ने न्यायालयीन ट्रिब्यूनलों की खस्ताहाल स्थिति को भी उजागार किया है। अखिल भारतीय केंद्रीय प्रशासनिक पंचाट के इसी कार्यक्रम में उपस्थित विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद […]

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राजनीति

जरा आईने के सामने तो आइए पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह जी

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क्या यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार का खुलासा करते हुए विकिलीक्स ने दावा नहीं किया था कि 2008 में परमाणु करार के मसले पर वाम दलों द्वारा आपकी सरकार से समर्थन लिए जाने के बाद विश्वास मत के दौरान आपकी सरकार को बचाने के लिए सांसदों को रिश्वत दी गयी थी और इसकी सूचना अमेरिकी सरकार को वाशिंगटन तक भेजी गयी? क्या विकिलीक्स वेबसाइट ने यह दावा नहीं किया था कि कांग्रेसी सांसद सतीश शर्मा के सहयोगी नचिकेता कपूर ने अमेरिकी दूतावास के एक कर्मचारी को नोटों से भरे दो बक्से दिखाए थे और कहा कि भारत अमेरिकी परमाणु सौदे को लेकर आपकी सरकार के विश्वासमत हासिल करने के लिए 50-60 करोड़ रुपए तैयार रखे हैं?

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विविधा विश्ववार्ता

कौन सुनेगा बांग्लादेशी हिंदुओं की आवाज ?

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भारत की राजनीति अल्पंख्यकवाद पर टिकी हुई है। लोकसभा व विधानसभा चुनाव आते ही सभी दल अल्पसंख्यकों के हितों को पूरे जोर शोर से उठाने लग जाते हैं। अल्पंसख्यकों के मुददे उठाते समय इन सभी दलों को देशहित व समाजहित की कतई चिंता नहीं रहती है। लेकिन जब हमारे ही पड़ोसी देश बांग्लादेश वा पाकिस्तान में रहने वाले हिंदू अल्पंसख्यकों पर अत्याचार होते हैं तब कोई अल्पसंख्यकवादी नेता, बुद्धिजीवी व मानवाधिकारी उनके हितों की रक्षा करने के लिए आगे नहीं आता।

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विधि-कानून विविधा

न्याय व्यवस्था का गिरता हुआ स्तर

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आज कानून का पालन करने वालों से कानून तोडऩे वालों की प्रतिष्ठा अधिक है। इतना ही नहीं, कानून तोडऩे की ‘क्षमता’ ही लोगों की आर्थिक, सामाजिक या राजनीतिक ‘प्रतिष्ठा’ का मापदंड बनती जा रही है। वैसे तो सभी राजनीतिक पक्ष ऐसी संपूर्ण स्वतंत्र और निष्पक्ष न्याय प्रणाली चाहते हैं, जिन्हें सिर्फ उनके ही पक्ष में निर्णय पाने की स्वतंत्रता रहे। इस हालात में किसी भी संवेदनशील व्यक्ति की आंखों में आंसू आएंगे ही। उन आंसूओं में प्रायश्चित और वेदना की अहमियत है, जो व्यवस्था को शक्ति प्रदान कर सकती है।

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विविधा

नालन्दा राजनीतिक नहीं, राष्ट्रीय मुद््दा है

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नालंदा विश्वविद्यालय के विचार को पुनर्जीवित करने की कोशिश एक असाधारण उपक्रम था, एक बड़ी चुनौती थी और उसका मूर्तरूप प्रकट होना आश्चर्य से कम नहीं कहा जा सकता है। वह दिन बिहार और देश-दुनिया के इतिहास में दिलचस्पी रखने वालों के लिए खास बना। तत्कालीन राष्ट्रपति डा. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ने मार्च 2006 में बिहार विधानमंडल के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए कहा था कि नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित किया जाना चाहिए।

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