
लोकतंत्र के मंदिर से टूटती आस
Updated: December 19, 2011
–पंकज चतुर्वेदी पिछले कुछ दिनों से भारत के लोकतंत्र की सबसे बड़ी पंचायत में जो कुछ हो रहा है, वो सीधे –सीधे इस देश की…
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जनता के पैसे के दुरूपयोग पर चुप्पी, क्यों..?
Updated: December 19, 2011
-नन्दलाल शर्मा हालियॉ रिलीज फिल्म ‘नाँकआउट’ का एक चरित्र कहता है। ‘ क्या तुम्हें पता है कि हजार रुपए का नोट ‘ गुलाबी क्यों होता…
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वाराणसी में विस्फोट: आस्था और विश्वास पर हमला
Updated: December 19, 2011
लिमटी खरे आस्था के केंद्र वाराणसी में मंगलवार को हुए बम हादसे ने कुछ दिनों की खामोशी को तोड़ दिया है। बनारस में जो कुछ…
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श्रीराम तिवारी की कविता : हारे को हरिनाम है …
Updated: December 19, 2011
अब न देश-विदेश है, वैश्वीकरण ही शेष है। नियति नहीं निर्देश है, वैचारिक अतिशेष है।। जाति-धरम-समाज की जड़ें अभी भी शेष हैं। महाकाल के आँगन…
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सांप्रदायिक सद्भाव के प्रतीक
Updated: December 19, 2011
ओ. पी. उनियाल मित्रता एवं सांप्रदायिक सद्भाव के प्रतीक मजार एवं गुरुध्दारा। जिनका धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व अपने आप में एक उदाहरण हैं। दर्शनार्थी टेकते…
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साम्यवाद एवं पूंजीवाद का विकल्प है एकात्म मानवतावाद
Updated: December 19, 2011
-राजीव मिश्र स्वतंत्रता के उपरांत के अपने आर्थिक इतिहास के खतरनाक दौर में हम पहूंच गए हैं जबकि सारी व्यवस्था ही टूटती हुई दिखायी पड़ रही…
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महान वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बसु
Updated: December 19, 2011
-मृत्युंजय दीक्षित भारतीय मान्यता के अनुसार वनस्पति को भी चेतन और प्राणमय बताने वाले तथा अपने अरुसंधान कार्यों द्वारा संसार को आश्चर्यचकित कर देने वाले…
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आस्था निर्माण की कार्यवाही
Updated: December 19, 2011
-हृदयनारायण दीक्षित प्रत्यक्ष स्वयं प्रमाण होता है। इसे सिध्द करने की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन सारा प्रत्यक्ष देखा और जाना नहीं जा सकता। सृष्टि विराट…
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साहित्य में लोकमंगल की आराधना
Updated: December 19, 2011
-हृदयनारायण दीक्षित शब्द ब्रह्म है। ब्रह्म संपूर्णता है। संपूर्ण और ब्रह्म पर्यायवाची हैं लेकिन संपूर्ण शब्द में ब्रह्म का विराट वर्णन करने की सामर्थ्य नहीं…
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उल्लासधर्मा है भारत का मन
Updated: December 19, 2011
हृदयनारायण दीक्षित भारत का मन उल्लासधर्मा है। व्यक्ति की तरह राष्ट्र का भी अंतर्मन होता है। भारत का मन हजारों वर्ष प्राचीन संस्कृति के अविरल…
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भारतीय चिंतन में रसानुभूति
Updated: December 19, 2011
हृदयनारायण दीक्षित मनुष्य आनंद अभीप्सु है। भक्तों के अनुसार प्रभु का भजन ही आनंद का स्रोत है। भक्त मुक्ति या मोक्ष नहीं मांगते। प्रभु प्रीति…
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स्वार्थ अप्रतिम, मूल्यवान, अनिन्दनीय
Updated: December 19, 2011
हृदयनारायण दीक्षित अपना सुख सबकी कामना है। अपनों का सुख इसी अपने का हिस्सा है। तुलसीदास की आत्मानुभूति प्रगाढ़ थी। उन्होंने इसी अपनेपन के लिए…
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