गोपाल बघेल 'मधु'

गोपाल बघेल 'मधु'

लेखक के कुल पोस्ट: 151

गोपाल बघेल ‘मधु’
अध्यक्ष

अखिल विश्व हिन्दी समिति
आध्यात्मिक प्रबंध पीठ
मधु प्रकाशन

टोरोंटो, ओन्टारियो, कनाडा
www.GopalBaghelMadhu.com

लेखक - गोपाल बघेल 'मधु' - के पोस्ट :

कविता

व्यर्थ ही चिन्ता किए क्यों जाते !

/ | Leave a Comment

(मधुगीति १९०८११ अकासा) व्यर्थ ही चिन्ता किए क्यों जाते, छोड़ क्यों उनके लिए ना देते; करने कुछ उनको क्यों नहीं देते, समर्पण करके क्यों न ख़ुश होते ! कहाँ हर प्राण सहज गति है रहा, जटिलता भरा विश्व विचरा किया; ज़रूरी उनसे योग उसका है, समर्पित उसको उन्हें करना है ! कार्य जो कर सको उसे कर लो, शेष सब उनके हवाले कर दो; उचित विधि उसको लिए जावेंगे, क्षीण संस्कार करा भेजेंगे ! किए रचना जगत में धाया करो, सोच ना विचित्रों को लाया करो; चित्र जो बन रहे बना लो तुम, इत्र उनको भी कुछ छिड़कने दो ! पाएँगे कर वे कुछ ज्यों छोड़ोगे, किसी रस और में वे बोरेंगे; ‘मधु’ कुछ छोड़ भी जगत देते, प्रभु औ प्रकृति द्युति लखे चलते !  ✍? गोपाल बघेल ‘मधु’

Read more »

कविता

दोषी ना प्राणी कोई जग होता !

/ | Leave a Comment

(मधुगीति १९०८१० सकारा) दोषी ना प्राणी कोई जग होता,  सृष्टि परवश है वह पला होता; कहाँ वश उसके सब रहा होता, लिया गुण- धर्म परिस्थिति होता ! बोध कब बालपन रहा होता, खिलाता जो कोई है खा लेता; बताता जैसा कोई वह करता, धर्म जो सिखाता वो अपनाता ! विवेक अपना पनप जब जाता, समझ कुछ तत्व विश्व में पाता; ज्ञान सापेक्ष जितना हो पाता, बदल वह स्वयं को है कुछ लेता ! कहाँ सम्भव है बदलना फुरना, कहाँ आसान है प्रकृति पुनि रचना; कहाँ जीवन की राह सब मिलता, कहाँ जाती है ग्लानि सकुचाना ! साधना समर्पण है जब होता, मुक्ति रस पान प्रचुर जब होता; ‘मधु’ को प्रभु का भान तब होता, फिर कहाँ भेद दृष्टि रह पाता ! ✍? गोपाल बघेल ‘मधु’

Read more »