कला-संस्कृति लेख भारतीय परंपरा, संस्कृति और विचार की सच्ची प्रतीक और संवाहक रही है संस्कृत। August 11, 2023 / August 11, 2023 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment भले ही आज के युग में संस्कृत को एक ‘मृत भाषा’ की संज्ञा दे दी गई है लेकिन संस्कृत ही आज दुनिया की एकमात्र ऐसी भाषा है जिसे सबसे प्राचीन भाषा होने का गौरव प्राप्त है। आज दुनिया में लगभग 6-7 हजार से भी ज्यादा भाषाओं का प्रयोग किया जाता है और इन सभी भाषाओं […] Read more »
कला-संस्कृति लेख विविधा समाज विश्व में अव्वल है बस्तरिया कला- शिल्प ! August 10, 2023 / August 10, 2023 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment डॉ राजाराम त्रिपाठी उल्लेखनीय है कि बस्तर का आदिम बुनकर, घड़वा, वादक समुदाय जो कि मुख्य रूप से गांडा समुदाय तथा लौह कला से संबद्ध आदिम समुदाय जिन्हें अब लोहार कहा जाता है,जो कि आजादी के पूर्व तक के सामाजिक वर्गीकरण में बस्तर के आदिम जनजातीय समुदायों में ही गिने जाते थे ,,,किंतु वैधानिक सर्वेक्षण […] Read more » बस्तरिया कला
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म सनातन भारतीय संस्कृति में गुरु पूर्णिमा का है विशेष महत्व July 3, 2023 / July 3, 2023 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment 3 जुलाई 2023 – गुरु पूर्णिमा पर विशेष आलेख भारतीय सनातन हिंदू संस्कृति में आस्था रखने वाले व्यक्तियों के लिए उनके जीवन में गुरु का स्थान सबसे ऊंचा माना गया है। परम पूज्य गुरुदेव जीवन में आने वाले विभिन्न संकटों से न केवल उबारते हैं बल्कि इस जीवन को जीने की कला भी सिखाते हैं ताकि इस जीवन को सहज रूप से जिया जा सके। गुरु ही अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने की क्षमता रखते हैं। भारत के मठ, मंदिरों एवं गुरुद्वारों में इसलिए प्रत्येक वर्ष व्यास पूर्णिमा के दिन गुरु पूजन का विशेष पर्व मनाया जाता है एवं इस शुभ दिन पर गुरुओं की पूजा अर्चना की जाती है ताकि उनका आशीर्वाद सदैव उनके भक्तों पर बना रहे। कई मंदिरों में गुरु पूजन एवं ध्वजा वंदन के समय कई गीत भी गाए जाते है, जैसे “हम गीत सनातन गाएंगे, हम भगवा ध्वज लहराएंगे।” यदि भारत के गौरवशाली इतिहास पर नजर दौड़ाते हैं तो ध्यान में आता है कि हिंदू सनातन संस्कृति के अंतर्गत कई महानुभावों को गुरु के आशीर्वाद एवं सानिध्य से ही देवत्व की प्राप्ति हुई है। दूसरे शब्दों में, देवत्व प्राप्त करने के लिए इन महानुभावों को गुरु के श्रीचरणों में जाना पड़ा है। इस प्रकार के कई उदाहरणों से हमारा इतिहास भरा पड़ा है। जैसे, भीष्म को “भीष्म” बनाने में ऋषि परशुराम की अहम भूमिका रही थी। चाणक्य ने चंद्रगुप्त को गढ़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया था। समर्थ स्वामी रामदास ने शिवाजी महाराज को राष्ट्रवादी राजा बनाया था। स्वामी विवेकानंद ने स्वामी रामकृष्ण परमहंस से दीक्षा ली थी एवं उनके सानिध्य में ही अपना जीवन प्रारम्भ किया था। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि शताब्दियों पूर्व, आषाड़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को महर्षि वेद व्यास जी का इस धरा पर अवतरण हुआ था।महर्षि वेद व्यास ने वैदिक ऋचाओं का संकलन कर इनका चार वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद) के रूप में वर्गीकरण किया था। साथ ही, 18 पुराणों, 18 उप-पुराणों, उपनिषदों, बृह्मसूत्र, महाभारत आदि अतुलनीय ग्रंथों को लेखनबद्ध करने का श्रेय भी महर्षि वेद व्यास को ही दिया जाता है। महान भारतीय परम्परा के अनुसार शिष्य, अपने गुरु का पूजन करते हैं। अतः गुरु वेद व्यास के शिष्यों ने भी सोचा कि महर्षि वेद व्यास का पूजन किस शुभ दिन पर किया जाय। बहुत गहरे विचार विमर्श के पश्चात समस्त शिष्य सहमत हुए कि क्यों न गुरु वेद व्यास के इस धरा पर अवतरण दिवस पर ही पूज्य गुरुदेव का पूजन किया जाय। इस प्रकार, गुरु वेद व्यास के शिष्यों ने इसी पुण्यमयी दिवस को अपने गुरु के पूजन का दिन चुना। यही कारण है कि गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। तब से लेकर आज तक हर शिष्य अपने गुरुदेव का पूजन वंदन इसी शुभ दिवस पर करता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शंकर ने सप्तऋषियों को योग की दीक्षा देना भी इसी दिन से प्रारम्भ किया था। प्राचीन काल में भारत के गुरुकुलों में गुरु पूर्णिमा को एक विशेष दिवस के रूप में मनाया जाता था। गुरु पूर्णिमा के दिन केवल उत्सव नहीं, बल्कि महोत्सव होता था। गुरूकुल से सम्बंधित दो सबसे मुख्य कार्य गुरु पूर्णिमा के दिन ही सम्पन्न किए जाते थे। एक तो गुरु पूर्णिमा के शुभ मुहूर्त पर ही नए छात्रों को गुरूकुल में प्रवेश प्रदान किया जाता था। यानी गुरु पूर्णिमा दिवस गुरूकुल में छात्र प्रवेश दिवस के रूप में मनाया जाता था। सभी जिज्ञासु छात्र इस दिन हाथों में समिधा लेकर पूज्य गुरुदेव के समक्ष आते थे। प्रार्थना करते थे कि हे गुरुवर, हमारे भीतर ज्ञान ज्योति प्रज्वलित करें। हम उसके लिए स्वयं को समिधा रूप में अर्पित करते हैं। दूसरे, गुरु पूर्णिमा की मंगल बेला में ही छात्रों को स्नातक उपाधियां प्रदान की जाती थीं। यानी गुरु पूर्णिमा के दिन ही गुरुकुलों में दीक्षांत समारोह के आयोजन किए जाते थे। जो छात्र गुरु की सभी शिक्षाओं को आत्मसात कर लेते थे और जिनकी कुशलता व क्षमता पर गुरु को संदेह नहीं रहता था उन्हें इस दिन उपाधियां प्रदान की जाती थीं। वे गुरु चरणों में बैठकर प्रण लेते थे कि हे गुरुवर, आपके सान्निध्य में रहकर, आपकी कृपा से हमने जो ज्ञान अर्जित किया है, उसे लोक हित और कल्याण के लिए ही उपयोग करेंगे। अपने परम पूज्य गुरुदेव को दक्षिणा देकर छात्र अपने कार्य क्षेत्र में उतरते थे। इस प्रकार प्राचीन काल में गुरु पूर्णिमा के दिन गुरुकुलों में गुरु का कुल बढ़ता भी था और विश्व में फैलता भी था। गुरु पूर्णिमा न केवल हिंदू धर्मावलम्बियों द्वारा एक पवित्र एवं अतिमहत्वपूर्ण त्यौहार के रूप में मनाया जाता है बल्कि जैन एवं बौद्ध धर्मावलम्बियों के लिए भी गुरु पूर्णिमा का दिन विशेष महत्व का माना जाता है। जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हुए हैं। भगवान महावीर 24वें व परम तीर्थंकर के रूप में अभिवादित हैं। जैन धर्म के इतिहास में यह वर्णन भी मिलता है कि आषाढ़ पूर्णिमा के दिन भगवान महावीर ने इंद्रभूति गौतम को अपने प्रथम शिष्य के रूप में स्वीकार किया था अर्थात भगवान महावीर ने गौतम को दीक्षित कर उसे अपना प्रथम शिष्य बनाने का गौरव प्रदान किया था। अतः इस दिन एक नया इतिहास लिखा गया। तभी से जैन सम्प्रदाय के अनुयायी गुरु पूर्णिम को इसी अहोभाव से मनाते हैं कि इस दिन उन्हें भगवान महावीर गुरु रूप में मिले थे। इसी प्रकार बौद्ध पंथ के इतिहास में भी यह स्पष्ट रूप से वर्णित है कि महाबुद्ध ने जब बुद्धत्व को प्राप्त कर लिया तो उनके मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि सबसे पहले धम्मोपदेश किस अनुयायी को दिया जाना चाहिए। तब उहें अपने उन पांच साथियों का ध्यान आया, जो निरंजना नदी के तट पर उनके साथ तपस्या और काय क्लेश के पथ पर अग्रसर हुए थे। परंतु जब महाबुद्ध ने यह मार्ग छोड़ दिया था, तब उन पांचों साथियों ने महाबुद्ध को छोड़ दिया था। परंतु चूंकि अब महाबुद्ध ने यह निर्णय कर लिया था कि धम्मोपदेश सबसे पहिले उन पांच साथियों को ही दिया जाय। अतः महाबुद्ध ने उन पांच साथियों को खोजना प्रारम्भ किया। जब यह पता चला कि वे पांच साथी सारनाथ के इसिपतन के मिगदाय में रहते हैं, तो माहबुद्ध सारनाथ की ओर चल पड़े। जिस दिन महाबुद्ध सारनाथ पहुंचे और उन पांच परिव्राजकों को धम्मोपदेश दिया, वह दिन आषाढ़ पूर्णिमा का था। बौद्ध सम्प्रदाय की मौलिक शिक्षाएं इसी दिन अस्तित्व में आई। इसीलिए बौद्ध धर्मावलम्बियों के लिए भी गुरु पूर्णिमा का दिवस विशेष महत्व का दिन माना जाता है। अब तो ऐसा कहा जा रहा है कि वैज्ञानिक भी आषाड़ पूर्णिमा की महत्ता को अब समझ चुके हैं। “विस्डम आफ ईस्ट” पुस्तक के लेखक श्री आर्थर चार्ल्स सटोक अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि जैसे भारत द्वारा खोज किए गए शून्य, छंद, व्याकरण आदि की महिमा अब पूरा विश्व गाता है, उसी प्रकार भारत द्वारा उजागर की गई सत्गुरु की महिमा को भी एक दिन पूरा विश्व जानेगा। विश्व यह भी जानेगा कि अपने महान गुरु की पूजा के लिए उन्होंने आषाड़ पूर्णिमा का दिन ही क्यों चुना। श्री सटोक द्वारा आषाड़ पूर्णिमा को लेकर कई अधय्यन एवं शोध किए गए हैं। इन अध्ययनों एवं शोधों के आधार पर श्री सटोक कहते हैं कि “वर्ष भर में अनेकों पूर्णिमाएं आती हैं, जैसे शरद पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिका, वैशाख पूर्णिमा, आदि। पर आषाढ़ पूर्णिमा भक्ति व ज्ञान के पथ पर चल रहे साधकों के लिए एक विशेष महत्व रखती है। इस दिन आकाश में अल्ट्रावायलेट रेडीएशन (पराबैंगनी विकिरण) फैल जाती है। इस कारण व्यक्ति का शरीर व मन एक विशेष स्थिति में आ जाता है। उसकी भूख, नींद व मन का बिखराव कम हो जाता है।” अतः यह स्थिति साधक के लिए बेहद लाभदायक है। वह इसका लाभ उठाकर अधिक से अधिक ध्यान साधना कर सकता है। कहने का भाव यह है कि आत्म उत्थान व कल्याण के लिए गुरु पूर्णिमा का दिन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी अति उत्तम माना गया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक किसी व्यक्ति या ग्रंथ की जगह केवल भगवा ध्वज को अपना मार्गदर्शक और गुरु मानते हैं। जब परम पूज्य डॉक्टर हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रवर्तन किया, तब अनेक स्वयंसेवक चाहते थे कि संस्थापक के नाते वे ही इस संगठन के गुरु बने; क्योंकि उन सबके लिए डॉक्टर हेडगेवार का व्यक्तित्व अत्यंत आदरणीय और प्रेरणादायी था। इस आग्रहपूर्ण दबाव के बावजूद डॉक्टर हेडगेवार ने हिंदू संस्कृति, ज्ञान, त्याग और सन्यास के प्रतीक भगवा ध्वज को गुरु के रूप में प्रतिष्ठित करने का निर्णय किया। हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष व्यास पूर्णिमा (गुरु पूर्णिमा) के दिन संघ स्थान पर एकत्र होकर सभी स्वयं सेवक भगवा ध्वज का विधिवत पूजन करते हैं। अपनी स्थापना के तीन साल बाद संघ ने वर्ष 1928 में पहली बार गुरु पूजा का आयोजन किया था। तब से यह परम्परा अबाध रूप से जारी है और भगवा ध्वज का स्थान संघ में सर्वोच्च बना हुआ है। भगवा ध्वज को गुरु के रूप में प्रतिष्ठित करने के पीछे संघ का दर्शन यह है कि किसी व्यक्ति को गुरु बनाने पर उसमें पहिले से कुछ कमजोरियां हो सकती हैं या कालांतर में उसके सदगुणों का क्षय भी हो सकता है, लेकिन ध्वज स्थायी रूप से श्रेष्ठ गुणों की प्रेरणा देता रह सकता है। Read more » गुरु पूर्णिमा
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार स्वत्व और स्वाभिमान से स्वयं को प्रकाशित होने का संदेश है गुरु पूर्णिमा July 1, 2023 / July 1, 2023 by रमेश ठाकुर | Leave a Comment रमेश शर्मा- गुरु पूर्णिमा अर्थात अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर की और यात्रा और व्यक्ति से लेकर राष्ट्र तक स्वाभिमान जाग्रत कराने वाले परम् प्रेरक के लिये नमन् दिवस। जो हमें अपने आत्मबोध, आत्मज्ञान और आत्म गौरव का भान कराकर हमारी क्षमता के अनुरूप जीवन यात्रा का मार्गदर्शन करें वे गुरु […] Read more » गुरु पूर्णिमा
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म सर्वज्ञ ईश्वर से ही सर्गारम्भ में चार ऋषियों को चार वेद मिले थे June 28, 2023 / June 28, 2023 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment –मनमोहन कुमार आर्य हमारा यह संसार स्वतः नहीं बना अपितु एक पूर्ण ज्ञानवान सर्वज्ञ सत्ता ईश्वर के द्वारा बना है। ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, सर्वव्यापक, सर्वातिसूक्ष्म, एकरस, अखण्ड, सृष्टि का उत्पत्तिकर्ता, पालनकर्ता तथा प्रलयकर्ता है। जो काम परमात्मा ने किये हैं व वह करता है, उन कामों को करना किसी मनुष्य के वश की […] Read more » In the beginning the four sages received the four Vedas from the omniscient God.
कला-संस्कृति संगीत शरीर, मन और प्राण में चैतन्यता लाता है संगीत June 21, 2023 / June 21, 2023 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment संगीत की भाषा पूरी दुनिया समझती है और संगीत के बिना जीवन अधूरा अधूरा सा लगता है। संगीत हमें हंसाता है,गुदगुदाता है, अहसास जगाता है, यह हमारी बेजान जिंदगी में जोश, जज्बा भरता है। खुश होने पर हम संगीत का आनंद लेते हैं और दुखी होने पर हम संगीत को अपने हृदय में, अपनी आत्मा […] Read more » mind and soul Music brings consciousness to the body
कला-संस्कृति लेख सार्थक पहल विश्व के कई देशों में भारतीय मूल के नागरिकों की बढ़ती संख्या एवं भारतीय सनातन दर्शन का प्रसार May 8, 2023 / May 8, 2023 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment भारतीय मूल के नागरिकों का भारत से पलायन प्रमुख रूप से तीन खंडकालों के दौरान हुआ है। प्रथम, वर्ष 1833 में भारतीय मूल के नागरिकों को बड़ी संख्या में (लगभग 15 लाख) दक्षिणी अमेरिका एवं केरिबियन देशों में श्रमिकों के तौर पर भेजा गया था। उस समय भारत पर ब्रिटेन का प्रशासन चल रहा था। […] Read more » Increasing number of citizens of Indian origin in many countries of the world and spread of Indian Sanatan philosophy
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म लेख एशिया का प्रकाश कहलाते हैं-गौतम बुद्ध May 5, 2023 / May 8, 2023 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment वैशाख पूर्णिमा इस बार 5 मई 2023 को है, इस दिन बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान गौतम बुद्ध का जन्मोत्सव मनाया जाता है, इसे बुद्ध पूर्णिमा और बुद्ध जयंती के नाम से भी जाना जाता है। जानकारी देना चाहूंगा कि गौतम बुद्ध को एशिया का प्रकाश (लाइट ऑफ एशिया) कहा गया है। उनका जन्म नेपाल […] Read more » Gautam Buddha is called the light of Asia
कला-संस्कृति पर्व - त्यौहार लेख हिंदू बौद्ध संयुक्त रूप मे आज भी विश्वगुरु ही हैं हम May 4, 2023 / May 4, 2023 by प्रवीण गुगनानी | Leave a Comment बुद्ध जयंती, बुद्ध पूर्णिमा, वेसाक या हनमतसूरी समूचे भारत वर्ष के लिए एक महत्वपूर्ण, आस्था जन्य और उल्लासपूर्वक मनाया जाने वाला पर्व है। विश्व के अनेक भागों में फैले हुए हिंदू, बौद्ध इस पर्व को वेसाक (हिंदू कैलेंडर के वैशाख का अप्रभंश) के नाम से भी जानतें हैं। भगवान् बुद्ध के अवतरण के संग संग […] Read more » बुद्ध जयंती बुद्ध पूर्णिमा वेसाक
कला-संस्कृति लेख नृत्य है सृष्टि को संतुलित एवं ऊर्जावान बनाने का माध्यम April 28, 2023 / April 28, 2023 by ललित गर्ग | Leave a Comment विश्व नृत्य दिवस- 29 अप्रैल 2023-ललित गर्ग – अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस पूरे विश्व में 29 अप्रैल मनाया जाता है। अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस की शुरुआत 29 अप्रैल 1982 से हुई। ‘बैले के शेक्सपियर’ की उपाधि से सम्मानित एक महान् रिफॉर्मर एवं लेखक जीन जार्ज नावेरे के जन्म दिवस की स्मृति में यूनेस्को के अंतर्राष्ट्रीय थिएटर इंस्टीट्यूट […] Read more » विश्व नृत्य दिवस- 29 अप्रैल
कला-संस्कृति प्रवक्ता न्यूज़ लेख अक्षय तृतीया: शरीर को तपाने की यात्रा April 20, 2023 / April 20, 2023 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ललित गर्ग- अक्षय तृतीया महापर्व का न केवल सनातन परम्परा में बल्कि जैन परम्परा विशेष महत्व है। इसका लौकिक और लोकोत्तर-दोनों ही दृष्टियों में महत्व है। यह दिन किसानों के लिए महत्व का दिन हैं, कुंभकारों के लिए बड़े महत्व का दिन है। शिल्पकारों के लिए भी आज बहुत महत्व का दिन है। बैलों के […] Read more » Akshaya Tritiya
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म महावीर को जीवन का हिस्सा बनाएं, जीवन में ढालें April 3, 2023 / April 3, 2023 by ललित गर्ग | Leave a Comment महावीर जयन्ती- 4 अप्रैल, 2023ललित गर्ग भगवान महावीर सामाजिक एवं व्यक्तिक्रांति के शिखर पुरुष थे। महावीर का दर्शन अहिंसा और समता का ही दर्शन नहीं है बल्कि क्रांति का दर्शन है। उनकी क्रांति का अर्थ रक्तपात नहीं! क्रांति का अर्थ है परिवर्तन। क्रांति का अर्थ है जागृति! क्रांति अर्थात् स्वस्थ विचारों की ज्योति! क्रांति का […] Read more » महावीर जयन्ती- 4 अप्रैल