दोहे भव भय से मुक्त अनासक्त ! January 23, 2020 / January 23, 2020 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment (मधुगीति २००१२२ अग्रसा) ब्रज भव भय से मुक्त अनासक्त, विचरि जो पाबत; बाधा औ व्याधि पार करत, स्मित रहबत ! वह झँझावात झेल जात, झँकृत कर उर; वो सोंपि देत जो है आत, उनके बृहत सुर ! जग उनकौ लहर उनकी हरेक, प्राणी थिरकत; पल बदलि ज्वार-भाटा देत, चितवन चाहत ! चहुँ ओर प्रलय कबहु […] Read more »
दोहे देह कितनी लिये विचर चहता ! December 1, 2019 / December 1, 2019 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment देह कितनी लिये विचर चहता, कितने आयाम देखना चहता; आवरण कितने घुसे लख चहता, वरण कितने ही पात्र कर चहता ! कला कितनी में पैठना चहता, ज्ञान विज्ञान की धुरी तकता; राज कितने प्रदेश कर चहता, ताज कितने पहन सतत चहता ! मुक्त पर जब तलक न मन होता, व्यस्त स्तर हरेक रह जाता; त्रस्त […] Read more » देह कितनी लिये विचर चहता !
दोहे तकि तकि कें वाण मारा करे ! November 18, 2019 / November 18, 2019 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment तकि तकि कें वाण मारा करे, प्राण हुलसिया; प्राँगण प्रकृति के खेला किए, जीव उमरिया ! हर आत्म रही अपनी, अखेटन की ठिठोरन; हर खाट बैठे वे ही रहे, चितेरे से बन ! हर ठाठ-बाट हर ललाट, ललक लास्य भर; हर ओज खोज औ सरोज, सौम्य सुधा क्षर ! साहस भरोसा भाव चाव, ताव ख्वाब […] Read more » तकि तकि कें वाण मारा करे !
दोहे आज कोई जग ख़िताब ! November 15, 2019 / November 15, 2019 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment आज कोई जग ख़िताब, चह कहाँ हैं पा रहे; मन हमारे आज ख़्वाब, आ कहाँ हैं पा रहे ! जो भी कुछ गा पा रहे, मुक्त भव से आ रहे; अलूनी सी आत्म ध्वनि में, सलौनी छवि दे रहे ! पढ़ न पाते हम किताब, रह न पाते रख रख़ाव; रख न पाते कोई हिसाब, […] Read more » आज कोई जग ख़िताब !
दोहे पतझड़ में पत्ते जो देखे ! November 1, 2019 / November 1, 2019 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment पतझड़ में जो पत्ते देखे, कहाँ समझ जग जन थे पाए; रंग बिरंगे रूप देख के, कुछ सोचे वे थे हरषाये! क्या गुज़री थी उनके ऊपर, कहाँ किसी को वे कह पाए; विलग बृक्ष से होकर उनने, अनुभव अभिनव कितने पाए ! बदला वर्ण शाख़ के ऊपर, शिशिर झटोले कितने खाए; धूप ताप हिम की […] Read more » पतझड़ में पत्ते जो देखे
दोहे जब मन की मेरी बात सुने मेरे सँवरिया ! September 18, 2019 / September 18, 2019 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment जब मन की मेरी बात सुने मेरे सँवरिया; आनन्द गंग बहे चले मेरे प्रहरिया ! लहरों में घुमा प्रस्तर तर आए नज़रिया; बृ़क्षों की व्यथा उर में रखे चमके वे दुनियाँ ! बादल में घुमड़ सूर्य रमण देखे वे नदिया; वायु में रमे हिय में फुरे मन वन फिरिया ! हर पात सिहर ताप विहर […] Read more » जब मन की मेरी बात सुने मेरे सँवरिया !
दोहे सोचो मत ऐसा कुछ भी नहीं ! September 16, 2019 / September 16, 2019 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment सोचो मत ऐसा कुछ भी नहीं अपनी दृष्टि का फेर सभी; पाषाण औ पौधे पूर्ण सुधी, ना हीन भाव उर धारो जी ! तुम ब्रह्म बृहत सृष्टि देखो, कर्मों को कर जीवन झाँको; अपनापन जग पा जाओगे, जब ऊर्द्ध्व भाव रम जाओगे ! क्यों जाति पाँति में बँधकर तुम, श्रँखला सँजोये स्वयं रहे; अपनी आस्था […] Read more »
दोहे कितने ही दर्द सर्द मिले ! September 14, 2019 / September 14, 2019 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment कितने ही दर्द सर्द मिले, सुरमयी दुनियाँ; उर में थीं कितनी व्याधि रखी, विरहिन बुधिया ! सुधियों की बरातों में बही, ध्यान कब रही; ज्ञानों की गरिमा उलझे-सुलझे, गूढ़ मति गही ! सामान्य सरोजों की भाँति, खिल कभी सकी; किलकारी बालपन की पुन:, पक के वो तकी ! तत्काल काल गति में बही, अकाली बनी; […] Read more »
दोहे धारा 370 व 35 A पर दोहे August 7, 2019 / August 7, 2019 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment आर के रस्तोगी धारा 370 को खा गयी,मोदी की अब सरकार | 35 A को भी चाट गयी,लगा कर वह अचार || 5 अगस्त बना है,भारत का स्वर्ण इतिहास | मुँह उनका बंद हो गया,जो करते बकवास || कहते है जो करते है,देखो मोदी शाह की बात | देश द्रोही जो नेता है,उनको लगा है […] Read more » Article 35 A article 370 Couplets kashmir
दोहे दोस्ती पर दोहे August 6, 2019 / August 6, 2019 by आर के रस्तोगी | 2 Comments on दोस्ती पर दोहे दोस्ती उससे कीजिये,जिसके हो पैसा पास | पैसा पास न हो,उगती नहीं अब तो घास || बिन पैसे के आज तो,दोस्त भी लगे उदास | दोस्त सब बन जायेगे,जब पैसा होगा पास || दारु के सब दोस्त है,बिन दारु पूछे न कोय | दारु तुम्हारे पास है,भीड़ इकठ्ठी घर पर होय || दारु में गुण […] Read more » Couplets friendship hindi couplets
दोहे दोहे August 1, 2019 / August 1, 2019 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment अविनाश ब्यौहार मानवता कुबड़ी हुई, पैसा सबका बाप। मात, पिता, भाई, बहिन, झेल रहे संताप।। दफ्तर सट्टाघर हुए, पैसा चलता खूब। अब बरगद के सामने, तनी हुई है दूब।। पुलिस व्यवस्था यों हुई, सेठ हो गए चोर। न्याय व्यवस्था तो हमें, करती है अब बोर।। जनता तो नाराज है, राजनीति है भ्रष्ट। मौज मस्तियों को […] Read more » Couplets hindi
दोहे सावन पर दोहे July 20, 2019 / July 20, 2019 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment आर के रस्तोगी सावन में साजन न मिले,मन हो जात है अधीर |सजनी को साजन मिले,मन हो जात है अमीर || सजनी सज धज के निकली,साजन हुआ शिकार |नयनो से बाण चलत है,तब धनुष बाण बेकार || कोयल कानो में कूक रही,सुना रही है ये गीत |इस सावन में हो जायेगा,प्रेमी प्रेमिका में प्रीत || […] Read more » auspicous month Couplets month of monsoon on saavan