कविता वरूण ने बिछाया श्वेत जाल April 2, 2017 by डॉ. मधुसूदन | 7 Comments on वरूण ने बिछाया श्वेत जाल डॉ. मधुसूदन बाहर था हिमपात निरंतर, उदास मन,बैठा था घरपर, पढी आप की काव्य पंक्तियाँ। उडा ले गयींं कहीं पंखों पर। अचरज अचरज अपलक अपलक पल में हिम भी रुई बन गया। और रुई का फूल हो गया। श्वेत पँखुडियाँ होती झर-झर॥ अब,श्वेत पँखुडियाँ झरती बाहर। शीतकाल,बसंत बन गया॥ “आ गया ऋतुराज बसन्त मधुऋतु लाई […] Read more » वरूण ने बिछाया श्वेत जाल
कविता साहित्य ऋतुराज बसन्त April 2, 2017 by शकुन्तला बहादुर | 4 Comments on ऋतुराज बसन्त शकुन्तला बहादुर आ गया ऋतुराज बसन्त। छा गया ऋतुराज बसन्त ।। * हरित घेंघरी पीत चुनरिया , पहिन प्रकृति ने ली अँगड़ाई नव- समृद्धि पा विनत हुए तरु, झूम उठी देखो अमराई । आज सुखद सुरभित सा क्यों ये मादक पवन बहा अति मन्द ।। आ गया …. * फूल उठी खेतों में सरसों महक […] Read more » ऋतुराज बसन्त
कविता साहित्य भगवा और हरा March 23, 2017 by डा. राधेश्याम द्विवेदी | Leave a Comment राष्ट्रीय ध्वज के शीर्ष में लगा, भगवा को आदर हमने दिया। विदेशी हमले से ही आकरके, हरा रंग यहां फहराती है ।। भारत का मूल स्वरूप चेतना, औ गरिमा को गिरा दिया। हरा को बढ़ाचढ़ा करके, सभ्यता संस्कार धुलवाती है ।।4।। Read more »
कविता साहित्य मोदी विश्व का नेता बन, योगी गुरु जगत कहायेगा।। March 23, 2017 by डा. राधेश्याम द्विवेदी | Leave a Comment यूपी में ना शासन था, सब हाथ पर हाथ धरे रहे। योगीजी के आते ही, सब द्रुत गति से बदल रहे।। वह वक्त एक दिन आयेगा, योगी मोदी बन जाएगा। मोदी विश्व का नेता बन, योगी गुरु जगत कहायेगा।। Read more » उत्तम प्रदेश मोदी विश्व का नेता योगी गुरु जगत
कविता आवा हो भइया होली मनाई March 14, 2017 / March 14, 2017 by शालिनी तिवारी | Leave a Comment अब तो गावन कै लड़िका भी पप्पू टीपू जानि गएन, 'यूपी को ये साथ पसन्द है' ऐह जुम्ला का वो नकार दहेन, Read more » आवा हो भइया होली मनाई
कविता साहित्य इन रंगन से अब का डरनो, अब तो आ गई होरी March 12, 2017 by अरुण तिवारी | Leave a Comment कुछ रंगन में भंग परी है, कुछ रंगन में हाला, कुछ रंगन में गोरी, कुछ रंग गड़बड़ झाला। वीरू-जय औ पप्पू-टीपू ले रंगन को प्याला, हाथी, झाडू़, सीटी, नारियल हर रंग शतरंज वाला। कौन रंग वोटर मन भावे, जो रंगरेज़, सोई जाने ईवीएम को तो कमीशन जाने, हम तो जाने रंग तिरंगो वाला। इन रंगन […] Read more » अब तो आ गई होरी इन रंगन से अब का डरनो
कविता साहित्य आओ खेलें वैदिक होली March 8, 2017 by विमलेश बंसल 'आर्या' | Leave a Comment विमलेश बंसल ‘आर्या’ होली को पावन त्यौहार आज कछु ऐसे मनाऊँगी। लगाकर सबके चंदन माथे, सौम्य हो जाऊंगी। बड़ों को करके ॐ नमस्ते, छोटों को हृदय लगाऊंगी। नवान्न आटे की गुजिया बना, प्रसाद बनाऊंगी। वृहद यज्ञ सामूहिक कर के नौत खिलाऊंगी। उंच नीच का भेद भुलाकर, प्रीति निभाऊंगी उत्तम पेय पिला ठंडाई, फाग गवाऊँगी। पूरे […] Read more »
कविता सत्य पथ का मुसाफिर February 25, 2017 by कुमार विमल | 1 Comment on सत्य पथ का मुसाफिर कुमार विमल कोई पथ जाती है धन को, कोई सुख साधन को, और कोई प्रेमिका के मधुर चितवन को। पर छोड़ ये सारे सुलभ पथ को तूने चुना है सत्य को नमन है तेरे त्याग और तप को। पग-पग है संग्राम जिस पथ का, मापदंड साहस जिस पथ का , इंतिहान तप,तेज और बल […] Read more » Featured सत्य पथ का मुसाफिर
कविता साहित्य उर में आता कोई चला जाता ! February 10, 2017 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment उर में आता कोई चला जाता, सुर में गाता कभी है विचलाता; सुनहरी आभा कभी दिखलाता, कभी बे-रंग कर चला जाता ! वश भी उनका स्वयं पे कब रहता, भाव भव की तरंगें मन बहता; नियंत्रण साधना किये होता, साध्य पर पा के वो कहाँ रहता ! जीव जग योजना विविध रहता, विधि वह उचित […] Read more » उर में आता कोई चला जाता !
कविता साहित्य हे खाली बोतल बता February 2, 2017 / February 2, 2017 by सिया अर्पण राम | Leave a Comment सिया अर्पण राम हे खाली बोतल बता तुझे तो होगा पता क्या था तेरे अंदर ऐसा जिसे पहली बार पीकर ही हो गए वे बावले और छोड़ दिया सब घर-बार दूसरो के हवाले हे खाली बोतल बता तुझे तो होगा पता ऐसी क्या थी वह तरल जवाब तो होगा सरल हे खाली बोतल बता तुझे […] Read more » सिया अर्पण राम
कविता साहित्य वाल बहु व्यस्त जगत विच रहता ! January 30, 2017 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment वाल बहु व्यस्त जगत विच रहता, निरीक्षण करना बहुत कुछ होता; जाना पहचाना पुरातन होता, परीक्षण करना पुन: पर होता ! समय से बदलता विश्व रहता, द्रष्टा भी वैसा ही कहाँ रहता; द्रष्टि हर जन्म ही नई होती, कर्म गति अलहदा सदा रहती ! बदल परिप्रेक्ष्य पात्र पट जाते, रिश्ते नाते भी हैं सब उलट […] Read more » वाल बहु व्यस्त जगत विच रहता !
कविता साहित्य ढ़ूँढ़ने में लगाया हर कोई ! January 29, 2017 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment ढ़ूँढ़ने में लगाया हर कोई, बना ऋषि घुमाया है हर कोई; ख़ुद छिपा झाँकता हृदय हर ही, कराता खोज स्वयं अपनी ही ! पूर्ण है पूर्ण से प्रकट होता, चूर्ण में भी तो पूर्ण ही होता; घूर्ण भी पूर्ण में मिला देता, रहस्य सृष्टि का समझ आता ! कभी मन द्रष्टि की सतह खोता, कभी […] Read more » ढ़ूँढ़ने में लगाया हर कोई !