लेख विधि-कानून देश में हिंसक होते युवा आंदोलन July 1, 2022 / July 1, 2022 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment -सत्यवान ‘सौरभ’ गोल्डस्टोन ने लिखा है, “युवाओं ने पूरे इतिहास में राजनीतिक हिंसा में एक प्रमुख भूमिका निभाई है,” और एक युवा उभार कुल वयस्क आबादी के सापेक्ष 15 से 24 युवाओं का असामान्य रूप से राजनीतिक संकट से ऐतिहासिक रूप से जुड़ा हुआ है। पिछले कुछ वर्षों में, युवा हिंसा के कारण जान-माल […] Read more » Violent youth movement in the country
धर्म-अध्यात्म लेख महर्षि दयानन्द की प्रमुख देन चार वेद और उनके प्रचार का उपदेश July 1, 2022 / July 1, 2022 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment –मनमोहन कुमार आर्य महर्षि दयानन्द ने वेद प्रचार का मार्ग क्यों चुना? इसका उत्तर है कि उनके समय में देश व संसार के लोग असत्य व अज्ञान के मार्ग पर चल रहे थे। उन्हें यथार्थ सत्य का ज्ञान नहीं था जिससे वह जीवन के सुखों सहित मोक्ष के सुख से भी सर्वथा अपरिचित व वंचति थे। महर्षि दयानन्द शारीरिक बल और पूर्ण विद्या से सम्पन्न पुरुष थे। उन्होंने देखा कि सभी मनुष्य अज्ञान के महारोग से ग्रस्त है। उनमें सत्य व असत्य को जानने व समझने की योग्यता नहीं है। अतः अविद्या व अज्ञान का नाश करने के लिए उन्होंने असत्य, अज्ञान व अन्धविश्वासों के खण्डन और सत्य, ज्ञान के प्रचार सहित सामाजिक उत्थान के कार्यों का मण्डन किया। सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ उनकी इस प्रवृत्ति व स्वभाव की पुष्टि करता है। सत्यार्थप्रकाश के पहले 10 समुल्लास सत्य से युक्त ज्ञान का मण्डन करते हैं तथा शेष चार समुल्लास असत्य, अज्ञान व अन्धविश्वासों का खण्डन करते हैं। महर्षि दयानन्द धर्मात्मा थे, दयालु थे, ईश्वर का यथार्थ ज्ञान रखने वाले ईश्वर भक्त थे तथा वह जीवात्मा का यथार्थ ज्ञान भी रखते थे। योग व ध्यान के द्वारा उन्होंने ईश्वर व जीवात्मा आदि पदार्थों का प्रत्यक्ष किया था। ऐसा विवेकशील धर्मात्मा सत्पुरुष किसी भी मनुष्य को दुःखी नहीं देख सकता। दुखियों को देख कर वह स्वयं दुखी होते थे। वह सबको अपने समान ईश्वर व आत्मा आदि का ज्ञान प्रदान कर सुखी व आनन्दित करना चाहते थे। इसी कारण उन्होंने सत्य व यथार्थ ज्ञान का प्रचार करने के लिए ईश्वर से प्राप्त ज्ञान चार वेदों के प्रचार करने का निर्णय किया। यदि वह ऐसा न करते तो उनको चैन वा सुख-शान्ति न मिलती। यदि एक सच्चे डाक्टर के पास किसी रोगी को ले जाया जाये तो वह डाक्टर क्या करेगा? क्या उस रोगी को मरने के लिए छोड़ देगा व उसकी चिकित्सा कर उसे स्वस्थ करेगा? सभी जानते हैं कि सच्चा डाक्टर रोगी को स्वस्थ करने के उपाय करेगा। इसी प्रकार से एक अध्यापक जो ज्ञानी है, वह अपने व अपने लोगों का अज्ञान दूर करेगा। ज्ञानी होने का यही अर्थ होता है कि वह ज्ञान का प्रसार करे और अज्ञान को नष्ट करे। हम यह भी देखते हैं कि जब कोई अन्याय से पीड़ित होता है तो वह किसी शक्तिशाली मनुष्य की शरण में जाता है और उससे अपनी रक्षा की विनती करता है। धर्मात्मा व ज्ञानी शक्तिशाली मनुष्य अन्याय से पीड़ित व्यक्ति की रक्षा करना अपना धर्म वा कर्तव्य समझते हैं। यह सब गुण महर्षि दयानन्द जी में थे अतः उन्होंने सभी असहाय व अज्ञान के रोग से पीड़ित लोगों को वेदों का ज्ञान देकर उन्हें ज्ञानी व शक्ति से सम्पन्न बनाया। हम व अन्य सहस्रों मनुष्य भी उनके ज्ञान से उनकी मृत्यु के 139 वर्षों बाद भी लाभान्वित हो रहे हैं। उनका यह कार्य ही उनको विश्व में आज भी जीवित व अमर रखे हुए है। यदि वह ऐसा न करते तो आज हम व अन्य करोड़ों लोग उनका नाम भी न जानते, उनके प्रति श्रद्धा व आदर रखने का तो तब प्रश्न ही नहीं था। इस स्थिति में हम वेद, ईश्वर, आत्मा व मोक्ष प्राप्ति आदि के उपायों को भी न जान पाते। अतः महर्षि दयानन्द ने अज्ञान रोग से पीड़ित अपने देशवासी बन्धुओं किंवा विश्वभर के सभी मनुष्यों के अज्ञान व अन्धविश्वासों को दूर करने के लिए वेद प्रचार का मार्ग चुना और उसे अपूर्व रीति से सम्पन्न किया। यदि हम सूर्य पर दृष्टि डालें तो पाते हैं कि सूर्य में प्रकाश व दाहक शक्ति अर्थात् गर्मी व ऊर्जा है। सूर्य में आकर्षण शक्ति भी है। अपने इन गुणों का सूर्य अपने लिए प्रयोग नहीं करता अपितु वह इससे संसार व प्राणी मात्र को लाभान्वित करता है। यदि सूर्य न होता तो मनुष्य का सशरीर अस्तित्व भी न होता। इसी प्रकार से वायु पर विचार करने पर ज्ञात होता है कि वायु पदार्थों को जलाने में सहायक व समर्थ होने सहित मनुष्यों को प्राणों के द्वारा जीवित रखने में भी सहायक है। वायु का प्रयोजन अपने लिए कुछ भी नहीं है। इसी प्रकार से जल, पृथिवी व समस्त प्राणी-जगत है जो स्वयं के लिए कुछ नहीं करते अपितु मनुष्यों व अन्यों के लिए ही अपने जीवन व अस्तित्व को समर्पित करते हैं। यदि सारा संसार व इसके सभी पदार्थ परोपकार कर रहे हैं तो क्या मनुष्य का यह कर्तव्य नहीं है कि उसमें ईश्वर ने जिन गुणों व शक्तियों को दिया है, उससे वह भी अन्य सभी मनुष्यों व प्राणियों का उपकार करें। यह अवश्य करणीय है और परोपकार करना ही मनुष्य का धर्म सिद्ध होता है। मत व धर्म शब्दों में कुछ भिन्नता है। मत का कुछ भाग धर्म को एक अंग के रूप में अपने भीतर लिए हुए होता है लेकिन वेदमत जो कि ईश्वर प्रदत्त मत है, उसे छोड़ कर कोई भी मत सर्वांश में पूर्णतः धर्म नही होता। यदि मतों में से अविद्या व उनके सभी प्रकार के पूर्वाग्रहों को हटा दिया जाये और उन्हें वेदानुकूल बनाया जाये, तब ही उन्हें धर्म के निकट लाया जा सकता है। महर्षि दयानन्द पौराणिक मत में जन्मे थे। शिवरात्रि की घटना से उन्हें लगा कि ईश्वर की पूजा की यह रीति उपासना की सही रीति नहीं है। अतः उन्होंने उसका त्याग कर दिया और सत्य की खोज की। सत्य की खोज करते हुए उन्हें ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना व उपासना का सर्वोत्तम साधन योग प्राप्त हुआ। इसका अभ्यास कर उन्होंने ईश्वर का साक्षात्कार व उसका प्रत्यक्ष भी किया जिसे उनके जीवन व कार्यों से जाना जा सकता है। अपनी विद्या प्राप्ति की तीव्र इच्छा को पूरी करने के लिए वह योग्य गुरुओं की तलाश करते रहे जो उन्हें 35 वर्ष की अवस्था में मथुरा के गुरु विरजानन्द जी के रुप में प्राप्त हुई और उनके सान्निध्य में तीन वर्ष रहकर उन्होंने प्राचीन वैदिक संस्कृत भाषा के व्याकरण अष्टाध्यायी-महाभाष्य पद्धति पर पूर्ण अधिकार प्राप्त किया। वैदिक साहित्य का कुछ अध्ययन वह पहले कर चुके थे और इस ज्ञानवृद्धि के प्रकाश में उन सभी ग्रन्थों के सत्यार्थ को जानकर वेदों के ज्ञान को भी उन्होंने प्राप्त किया। हमारे अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि महर्षि दयानन्द ने अध्यात्म के क्षेत्र में विद्या व योगाभ्यास से ईश्वरोपासना की शीर्ष स्थिति असम्प्रज्ञान समाधि को प्राप्त किया था। यह सब प्राप्त कर उनके जीवन का उद्देश्य व प्रयोजन पूरा हो गया था। अब अपने ज्ञान रूपी अक्षय धन को दान करने का अवसर था जिसे गुरु वा ईश्वर की प्रेरणा से प्राप्त कर उन्होंने देश-देशान्तर में पूरी उदारता व निष्पक्ष भाव से वितरित वा प्रचारित किया। महर्षि दयानन्द ने जो ज्ञान प्राप्त किया था उसे हम ज्ञान की पराकाष्ठा की स्थिति समझते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि ‘ज्ञान से बढ़कर पवित्र व मूल्यवान संसार में कुछ भी नहीं है।’ ज्ञान का दान सब दानों में प्रमुख व महत्वपूर्ण है। जो कार्य ज्ञान से हो सकता है वह धन से कदापि नहीं हो सकता। धन से किसी को बुद्धिमान, बलवान, निरोग, वेदज्ञ, सत्पुरुष, धर्मात्मा नहीं बनाया जा सकता। इन व ऐसे सभी कार्यो के लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है। ज्ञान से ही अपनी आत्मा को जानने के साथ ईश्वर व संसार को भी जाना जा सकता है। ज्ञान से ही मनुष्य अभ्युदय व मोक्ष को प्राप्त होता है। ज्ञान मनुष्य की मृत्यु के बाद भी आत्मा के साथ जाता है जबकि सारे जीवन में अनेक कष्ट उठाकर कमाया गया धन यहीं छूट जाता है। धन मनुष्य में अहंकार व अनेक दोषों को उत्पन्न करता है। धन की तीन गति हैं। दान, भोग व नाश। धन को यदि सदाचारपूर्वक न कमाया जाये और दान न किया जाये तो वह इस जन्म व परजन्म में अवनति व दुःखों का कारण बनता है, इस मान्यता पर हमारे सभी ऋषि-मुनि व शास्त्र एक मत हैं। अतः जीवन की उन्नति के लिए परा व अपरा अर्थात् आध्यात्मिक और सांसारिक दोनों प्रकार का ज्ञान मनुष्य को होना चाहिये। यही सन्देश वेद प्रचार के द्वारा महर्षि दयानन्द ने अपने जीवन में दिया था जो आज भी पूर्व की तरह सर्वाधिक महत्वपवूर्ण एवं उपयोगी होने सहित प्रासंगिक भी है। हम वर्तमान समय में देश की जो भौतिक उन्नति देख रहे हैं उसमें महर्षि दयानन्द का पुरुषार्थ सर्वाधिक महत्वूपर्ण प्रतीत होता है। उन्होंने संसार के लोगों को विस्मृत सत्य वेद ज्ञान से परिचित कराने के अतिरिक्त सभी अन्धविश्वासों, कुरीतियों जिनमें मूर्तिपूजा, फलित–ज्योतिष, मृतक श्राद्ध, मन्दिरों व नदियों रूपी तीर्थ स्थान, सामाजिक असमानता, अशिक्षा आदि का खण्डन किया और निराकार ईश्वर की योग व ध्यान विधि से उपासना, अन्धविश्वासों से सर्वथा दूर रहने, अविद्या का नाश व विद्या की वृद्धि करने, नारी सम्मान, समानता, देशप्रेम, न्याय सहित सुपात्रों को ज्ञान व धन आदि के दान की प्रेरणा दी थी। उनका सन्देश है कि वेद ही सब सत्य विद्याओं, परा व अपरा, के स्रोत वा ग्रन्थ हैं। इनका पढ़ना-पढ़ाना, सुनना-सुनाना व सर्वत्र प्रचार करना ही मनुष्य का परम धर्म है। जिन बातों से असमानता, पक्षपात, अन्याय, दूसरों का अपकार व हिंसा आदि हो, वह कभी भी किसी मनुष्य व समाज का धर्म नहीं हो सकतीं। ईश्वर की उपासना के लिए पवित्र जीवन व शुद्ध स्थान चाहिये। उपासना व ईश्वर के ध्यान के लिए बड़े-बड़े भवनों व मन्दिरों की आवश्यकता नहीं है। यदि महर्षि दयनन्द की इन शिक्षाओं को जीवन में स्थान दिया जाये तो इससे विश्व का कल्याण हो सकता है। उनकी बातों को न मानने के कारण ही आज विश्व में सर्वत्र अशान्ति व स्वार्थ से प्रेरित कार्य सर्वत्र होते दृष्टिगोचर हो रहे हैं जो वर्तमान व भविष्य में अनिष्ट का सूचक है। अतः अपने जीवन को शुभकर्मों से युक्त व श्रेष्ठ एवं आदर्श बनाने के लिए हमें महर्षि दयानन्द के जीवन से प्रेरणा लेकर वेदों के स्वाध्याय सहित समस्त वैदिक साहित्य जिसमें सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका आदि ऋषि दयानन्द के सभी ग्रन्थ भी सम्मिलित हैं, उनका अध्ययन करना एवं उनके प्रचार का व्रत लेना चाहिये। इससे देश व संसार की उन्नति होने सहित मनुष्य का यह जन्म व परजन्म उन्नत होकर जीवन के लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति में सफल होगा। Read more » Major contribution of Maharishi Dayanand preaching of four Vedas and their propagation चार वेद और उनके प्रचार का उपदेश
खेत-खलिहान लेख महंगी होती खाद से खेती करना मुश्किल June 29, 2022 / June 29, 2022 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment -प्रियंका ‘सौरभ’ उत्पादन बढ़ाने के लिए उर्वरक खेतों की उर्वरता बनाए रखने में बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं। भारत अपनी उर्वरक आवश्यकताओं के लिए आयात पर बहुत अधिक निर्भर करता है। भारत में उर्वरकों की वर्तमान लागत एक खनिज संसाधन-गरीब देश के लिए वहन करने के लिए बहुत अधिक है। 2021-22 में, मूल्य के संदर्भ […] Read more » It is difficult to do farming with expensive fertilizer
पर्यावरण लेख वन्य जीवों और पेड़ों के लिए अपनी जान पर खेलता बिश्नोई समाज June 29, 2022 / June 29, 2022 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment -सत्यवान ‘सौरभ’ बिश्नोई आंदोलन पर्यावरण संरक्षण, वन्यजीव संरक्षण और हरित जीवन के पहले संगठित समर्थकों में से एक है। बिश्नोइयों को भारत का पहला पर्यावरणविद माना जाता है। ये जन्मजात प्रकृति प्रेमी होते हैं। पर्यावरण आंदोलनों के इतिहास में, यह वह आंदोलन था जिसने पहली बार पेड़ों को अपनी सुरक्षा के लिए गले लगाने और […] Read more »
लेख खिलौनों की दुनिया के वो मिट्टी के घर याद आते हैं। June 29, 2022 / June 29, 2022 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment -प्रियंका ‘सौरभ’ सदियों से मिटटी के घर बनाने की जो परम्परा चली आ रही है; भारत में 118 मिलियन घरों में से 65 मिलियन मिट्टी के घर हैं? यह भी सच है कि कई लोग अपने द्वारा प्रदान किए जाने वाले लाभों के लिए मिट्टी के घरों को पसंद करते हैं। दिलचस्प बात यह है […] Read more » खिलौनों की दुनिया के वो मिट्टी के घर याद आते हैं।
धर्म-अध्यात्म लेख वैदिक धर्म का समग्रता से प्रचार गुरुकुलीय शिक्षा से ही सम्भव June 29, 2022 / June 29, 2022 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment –मनमोहन कुमार आर्य गुरुकुल एक लोकप्रिय शब्द है। यह वैदिक शिक्षा पद्धति का द्योतक शब्द है। वैदिक धर्म व संस्कृति का आधार ग्रन्थ वेद है। वेद चार हैं जिनके नाम ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद हैं। यह चार वेद सृष्टि के आरम्भ में सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, अनादि, अनन्त, न्यायकारी, सृष्टिकर्ता और जीवों को उनके कर्मानुसार सुख-दुःख व मनुष्यादि जन्म देने वाले ईश्वर से चार ऋषियों अग्नि, वायु, आदित्य व अंगिरा को प्राप्त हुए थे। वेद ईश्वर की अपनी भाषा संस्कृत में हैं जो लौकिक संस्कृत से भिन्न है और जिसके शब्द व पद रूढ़ न होकर योगरूढ़ हैं। वेदों को जानने व समझने के लिए वैदिक संस्कृत भाषा का ज्ञान आवश्यक है और इसके लिए वर्णोच्चारण शिक्षा सहित व्याकरण के अष्टाध्यायी व महाभाष्य आदि ग्रन्थों का बाल व युवावस्था में लगभग तीन वर्ष तक अध्ययन करना व कराना आवश्यक है। यह अध्ययन किसी एक गुरु से किया जा सकता है। प्राचीन काल में वेदों के विद्वान जिन्हें ब्राह्मण कहा जाता था, वह शिक्षा व व्याकरण आदि का ज्ञान वनों में स्थित अपने गुरुकुल, अर्थात् गुरु के कुल, में कराया करते थे जहां अनेक विद्यार्थी एक गुरु से व्याकरण व उसके बाद निरुक्त आदि वेदांगों व उपांगों आदि अनेक ऋषिकृत ग्रन्थों का अध्ययन करते थे। यह परम्परा महाभारत के बाद यवन व अंग्रेजों के समय में भंग कर दी गई थी जिसका उद्देश्य वैदिक धर्म व संस्कृति को समाप्त कर विदेशी मतों को महिमा मण्डित करना था। इसका उद्देश्य लोगों का येन केन प्रकारेण धर्मान्तरण व मतान्तरण करना मुख्य था। इस कारण दिन प्रति दिन वैदिक धर्म व संस्कृति का पतन हो रहा था। महर्षि दयानन्द ने इस स्थिति को यथार्थ रूप में समझा था और संस्कृत का अध्ययन कराने के लिए एक के बाद दूसरी कई संस्कृत पाठशालाओं का अलग अलग स्थानों पर स्थापन किया था। किन्हीं कारणों से इन पाठशालाओं को आशा के अनुरुप सफलता न मिलने पर उन्हें बन्द करना पड़ा तथापि ऋषि दयानन्द ने जहां एक ओर सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, संस्कारविधि, आर्याभिविनय व ऋग्वेद-यजुर्वेद भाष्य आदि का प्रणयन किया वहीं उन्होंने व्यापकरण पर भी अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखकर अपने अनुयायियों को गुरुकुल स्थापित कर संस्कृत व वेदादि ग्रन्थों के पठन पाठन का मार्ग भी प्रशस्त किया था। ऋषि दयानन्द धर्मवेत्ता एवं समाज सुधारक सहित सच्चे देशभक्त, ऋषि, योगी व समस्त वैदिक साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान थे। उन्होंने वैदिक धर्म, इसकी मान्यताओं एवं सिद्धान्तों के प्रचार सहित समाज सुधार का अभूतपूर्व कार्य किया। 30 अक्टूबर, सन् 1883 को विष देकर उनकी हत्या कर वा करा दी गई जिस कारण वह अपनी भावी योजनाओं को पूर्ण न कर सके। यदि वह कुछ वर्ष और जीवित रहते तो वेदभाष्य का कार्य पूर्ण करने सहित गुरुकुलों की स्थापना कर अपने जैसे वैदिक धर्म के प्रचारक तैयार करने का प्रयत्न अवश्य करते। उनकी मृत्यु के बाद उनके शिष्यों ने सत्यार्थप्रकाश आदि उनके ग्रन्थों में शिक्षा विषयक विचारों को क्रियान्वित करने के लिए शिक्षण संस्थाओं की स्थापना का कार्य किया। इसे दयानन्द ऐंग्लो-वैदिक स्कूल नाम दिया गया था जो बाद में एक वट वृक्ष बना और बताया जाता है कि सरकारी स्कूलों के बाद यही देश के सर्वाधिक लोगों को शिक्षित करने वाली सबसे बड़ी शिक्षण संस्था है। किन्हीं कारणों से दयानन्द ऐंग्लो वैदिक कालेज में संस्कृत को वह स्थान न मिला जिसकी वहां आवश्यकता थी और जिसका समर्थन स्वामी दयानन्द जी के विचारों से होता था। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए पंजाब की आर्य प्रतिनिधि सभा के एक प्रमुख सर्वप्रिय नेता स्वामी श्रद्धानन्द जी ने सन् 1902 में हरिद्वार के निकट कांगड़ी ग्राम में एक गुरुकुल की स्थापना की जहां संस्कृत व्याकरण व भाषा का ज्ञान कराने के साथ वेद आदि शास्त्रों का अध्ययन भी कराया जाता था। यह गुरुकुल कांगड़ी अपने समय में विश्व में विख्यात हुआ। इस शिक्षण संस्था में उन दिनों के भारत के वायसराय आये और इंग्लैण्ड के भावी प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड भी आये थे। इस गुरुकुल से संस्कृत भाषा के अध्येता अनेक स्नातक बने जिन्होंने समाज व देश में अपनी विद्या का लोहा मनवाया। कुछ पत्रकार बने तो कुछ वेदाचार्य वा धर्माचार्य, कुछ इतिहासकार तो कुछ नेता व सांसद बने। संस्कृत व हिन्दी भाषा के अध्यापन के क्षेत्र में तो अनेक स्नातकों ने अपनी सेवायें दी जिससे संस्कृत व हिन्दी का देश भर में प्रचार हुआ। समय के साथ साथ देश भर में ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज के अनुयायियों ने गुरुकुलों की स्थापना की और वहां संस्कृत का अध्ययन-अध्यापन कराया जिससे देश व समाज को वैदिक विद्वान व अध्यापक-प्राध्यापक मिलते आ रहे हैं। आर्यसमाज में अधिकांश पुरोहित भी हमारे गुरुकुलों के ही शिक्षित युवक होते हैं। स्वामी रामदेव और आचार्य बालकृष्ण आदि भी विश्व प्रसिद्ध हस्तियां हैं जो आर्यसमाज के गुरुकुलों गुरुकुल खानपुर वा कालवां की देन हैं। यह गुरुकुल आन्दोलन निरन्तर आगे बढ़ रहा है। इसके मार्ग में अनेक कठिनाईयां भी हैं जिस पर गुरुकुलों के आचार्यों व हमारी सभाओं के नेताओं को मिलकर विचार करना चाहिये और उसके समाधान का निश्चय कर उसे क्रियान्वित करने के प्रयास भी करने चाहियें। गुरुकुलों से प्रतिवर्ष हमें व्याकरणाचार्य व धर्माचार्य मिलते रहते हैं परन्तु आर्यसमाज में उन्हें उचित दक्षिणा व वेतन पर कार्य नहीं मिलता। इसका परिणाम यह होता है कि वह अपनी आजीविका के लिए महाविद्यालयों व अन्य सरकारी संस्थाओं की ओर अपनी दृष्टि डालते हैं। उनमें जो योग्यतम होते हैं वह महाविद्यालायों एवं अन्य अच्छी सरकारी सेवाओं में चले जाते हैं। इससे आर्यसमाज व वैदिक धर्म उनकी सेवाओं से वंचित हो जाता है और वह प्रयोजन भी पूर्ण नहीं होता जिसके लिए गुरुकुल ने उन्हें तैयार किया था। इसमें दोष गुरुकुलों के स्नातकों का कम आर्यसमाज व इसकी सभा संस्थाओं व नेताओं का है जो इन्हें आर्यसमाज के कार्यों में उचित वेतन व दक्षिणा पर नियुक्ति नहीं दे पातीं। ऐसे उदाहरण कम ही मिलते हैं कि स्नातक बन कर अच्छी सरकारी नौकरी प्राप्त कर लेने पर सरकारी सेवाओं में कार्यरत हमारे गुरुकुल के स्नातक दो-चार व अधिक घंटे नियमित रूप से गुरूकुल व आर्यसमाज रूपी माता का ऋण चुकाने के लिए कार्य करते हों और इसके अन्तर्गत शोध, लेखन व निःशुल्क रूप से मौखिक प्रचार आदि करते हों। आज का भारतीय समाज उच्च मानवीय मूल्यों के ह्रास का शिकार है। इसके लिए स्वामी श्रद्धानन्द, पं. लेखराम, पं. गुरुदत्त विद्यार्थी आदि हमारे मार्गप्रदर्शक व आदर्श बन सकते हैं। सभी स्नातकों से तो हम अपेक्षा नहीं कर सकते परन्तु योग्य विद्वानों का यह कर्तव्य है कि उन्होंने गुरुकुल व आर्यसमाज के सहयोग से जो ज्ञान प्राप्त किया है उसका कुछ लाभ वह गुरुकुल व आर्यसमाज को भी प्रदान करें। गुरुकुलों के सभी समर्थ स्नातकों को इसका ध्यान रखना चाहिये। हमें इस समस्या पर भी विचार करना चाहिये कि हम गुरुकुल के योग्य व योग्यतम आचार्यों को उचित दक्षिणा दें। यह तभी सम्भव होगा जब गुरुकुल के पास पर्याप्त साधन व धन हो। इतनी दक्षिणा तो मिलनी ही चाहिये कि जिससे आचार्य व उसके परिवार का आज की परिस्थितियों में भोजन व सन्तानों की शिक्षा आदि का निर्वाह हो सके। हमें लगभग 20 वर्ष पूर्व वृन्दावन व अनेक स्थानों पर जाने का अवसर मिला। हमने वहां देखा कि हमारे आचार्यों को बहुत न्यून वेतन मिलता था। इससे हमें लगता है कि भविष्य में हमारे सभी गुरुकुलों को योग्य आचार्य शायद हीं मिलें। एक बार श्री आदित्य मुनि जी ने भोपाल से प्रकाशित सभा की पत्रिका में अपने सम्पादकीय लेख में किसी गुरुकुल में आचार्यों के वेतन की समस्या पर प्रकाश डालते हुए टिप्पणी की थी कि वहां आचार्यों को वेतन बहुत ही कम मिलता है। उन्होंने यह भी लिखा था कि जितना वेतन होगा वैसा ही वहां शिक्षा का स्तर भी होगा। हम चाहते हैं कि समय समय पर हमारे गुरुकुलों के आचार्यों व आर्य नेताओं की जो बैठक व गोष्ठी हो, उनमें इस समस्या पर भी विचार हो। आर्यसमाज की सभाओं को यह भी प्रयास करने चाहिये कि उनके सभी गुरुकुल परस्पर एक दूसरे से एक परिवार की तरह जुड़े हुए हों। एक गुरुकुल में यदि कोई समस्या आये तो अन्य गुरुकुल, आर्यसमाज व सभायें उनका सहयोग करें। सभी गुरुकुलों का पाठ्यक्रम भी समान होना चाहिये। सर्वत्र ऋषि प्रणीत पाठविधि व आर्ष ग्रन्थों का ही पठन पाठन हो। आर्यसमाज के सदस्य व धनिक लोग ऋषि दयानन्द के सिद्धान्तों व पाठ विधि पर चलने वाले गुरुकुलों व उनके आचार्यों को उचित साधन उपलब्ध कराने के लिए तत्पर रहें। वर्तमान समय में आर्यसमाज की विचारधारा व पाठविधि के कितने गुरुकुल देश भर में चल रहे हैं, इसका डेटा व जानकारी किसी एक केन्द्रीय स्थान पर होनी चाहिये जिससे उन गुरुकुलों, आचार्यों व ब्रह्मचारियों आदि की संख्या का अनुमान आर्यसमाज के सुधी सदस्यों व नेताओं को हो सके। आज हमें पता नहीं कि देश में कुल कितने गुरुकुल चल रहें हैं और वहां लगभग कितने ब्रह्मचारी शिक्षा प्राप्त करते हैं? उन गुरुकुलों की स्थापना कब व किसके द्वारा हुई? उनके पास साधनों की स्थिति कैसी है? यह भी नहीं पता कि उन गुरुकुलों से अब तक कितने स्नातक बनें और वह कहां क्या कार्य करते हैं? उनमें से कितने आर्यसमाज को अपनी सेवाओं से कृतार्थ कर रहे हैं व आर्यसमाज से जुड़े हैं। अतः हमारे गुरुकुलों के संयुक्त सम्मेलनों में समय समय पर इन विषयों पर भी विचार होना चाहिये। ऐसे अनेक प्रश्न और हो सकते हैं जिन्हें गुरुकुलों के परस्पर सम्मेलनों में विद्वानों के सम्मुख रखा जाना चाहिये और जहां आवश्यकता हो वहां सुधार पर विचार किया जाना चाहिये। लेख को विराम देने से पूर्व हम यह भी निवेदन करना चाहते हैं कि वर्तमान समय में आर्यसमाज की सभाओं की शक्ति बिखरी हुई व असंगठित है जिससे आर्यसमाज को अपार हानि हो रही है। यदि यह विघटन जारी रहा तो इससे भविष्य में अतीत में हुई आर्यसमाज की हानि से अधिक हानि होगी। आने वाली पीढ़िया हमें क्षमा नहीं करेंगी। अतः आर्यसमाज के सभी नेताओं, अधिकारियों व आर्यसमाज के सुधी सदस्यों को इस ओर भी ध्यान देना चाहिये। ईश्वर सबको सद्प्रेरणा करें जिससे संगठन में मतभेद दूर हो सकें। वैदिक धर्म को वेदशास्त्रों सहित दर्शन, उपनिषद, मनुस्मृति, रामायण, महाभारत, सत्यार्थप्रकाश तथा ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका आदि के अध्ययन से ही जाना व समझा जा सकता है। धर्म का पालन तभी कर सकते हैं जब हम वेदों सहित इतर समस्त वैदिक साहित्य का अध्ययन करेंगे। इससे सभी लोगों को स्वाध्याय की प्रवृत्ति वाला बनना समीचीन है। धर्म प्रचार के लिए पूर्णकालिक धर्मप्रचारक विद्वानों की आवश्यकता है जो वैदिकधर्म को समग्रता से जानते हों तथा जिनकी उपदेश शैली अत्यन्त सरल एवं प्रभावशाली है। उत्तम वेद प्रचारक विद्वान व धर्माचार्या गुरुकुल से अध्ययन किये हुए स्नातक ही हो सकते हैं। अतः गुरुकुलों की धर्म रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका है। हमें गुरुकुलीय शिक्षा मंे निष्णात विद्वानों व प्रचारकों का सम्मान करने सहित उन्हें प्रचार के आवश्यक सभी साधन व सुविधायें उपलब्ध कराने पर ध्यान देना चाहिये। इसी से वैदिक धर्म की रक्षा व प्रचार का मार्ग प्रशस्त होगा। Read more » From Vedic ReligionTotalismPropaganda GurukuliyEducationOnly possible
लेख अमृत महोत्सव की परिकल्पना को साकार करता एकल अभियान June 27, 2022 / June 27, 2022 by सिद्धार्थ शंकर गौतम | Leave a Comment पूरा देश स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना रहा है। 75 वर्षों की स्वतंत्रता ने भारत को दुनिया के अग्रणी राष्ट्रों की कतार में सम्मिलित करवा दिया है तो उसके पीछे प्रेरणा है उस भाव की जो ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की अवधारणा को मानता है, उस शक्ति की जो समाज की एकजुटता से मिलती है, उस स्वाभिमान […] Read more » अमृत महोत्सव की परिकल्पना एकल अभियान
लेख विधि-कानून ओबीसी के साथ क्रीमीलेयर का भेदभाव क्यों? June 27, 2022 / June 27, 2022 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment सत्यवान ‘सौरभ’ आरक्षण, सात दशकों के बावजूद, हमारे विषम समाज में कई समूहों के लिए लाभों के समान वितरण में अनुवादित नहीं हुआ है। नतीजतन, कई समूहों को छोड़ दिया गया है। आरक्षण का लाभ नहीं उठा पाने वाले हाशिए के तबके के लोगों की जोरदार मांग है। इसके लिए कुछ नीति विकल्प तैयार करने […] Read more » Reservation Why the discrimination of the creamy layer against OBC? ओबीसी के साथ क्रीमीलेयर का भेदभाव क्यों
पर्यावरण लेख सार्थक पहल भारत में सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध की जरूरत। June 25, 2022 / June 25, 2022 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment -प्रियंका ‘सौरभ’ सिंगल यूज प्लास्टिक से तात्पर्य उन प्लास्टिक वस्तुओं से है जो एक बार उपयोग की जाती हैं और त्याग दी जाती हैं। एकल-उपयोग प्लास्टिक में निर्मित और उपयोग किए गए प्लास्टिक के उच्चतम प्रयोग में वस्तुओं की पैकेजिंग से लेकर बोतलों, पॉलिथीन बैग, खाद्य पैकेजिंग आदि शामिल है। यह विश्व स्तर पर उत्पादित […] Read more » ban single use plastic Need to ban single use plastic in India. सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध
लेख समाज जैव विविधता के महत्व को रेखांकित करती है सनातन भारतीय संस्कृति June 25, 2022 / June 25, 2022 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment सनातन हिंदू संस्कृति में किसी भी जीव की हत्या निषेध है और ऐसा माना जाता है कि अपने लिए पूर्व निर्धारित भूमिका को निभाने के उद्देश्य से ही विभिन्न जीव इस धरा पर जन्म लेते हैं एवं सभी जीवों में आत्मा का वास होता है। इसलिए हिंदू धर्मावलम्बियों द्वारा पशु, पक्षियों, पेड़, पौधों, नदियों, पर्वतों, […] Read more » Sanatan Indian culture underlines the importance of biodiversity जैव विविधता सनातन भारतीय संस्कृति
खान-पान लेख मॉनसून अनिश्चितता के चलते खाद्य सुरक्षा रणनीति पर पुनर्विचार ज़रूरी June 24, 2022 / June 24, 2022 by निशान्त | Leave a Comment भारत की अर्थव्यवस्था पर मानसून का निर्णायक प्रभाव पड़ता है। भारत की कृषि अर्थव्यवस्था अब भी काफी हद तक मॉनसून की गतिविधियों पर निर्भर करती है। भारत का 40% से ज्यादा बुआई क्षेत्र सिंचाई के लिए बारिश के पानी पर निर्भर है। इस साल भारत में मानसून की आमद समय से हुई लेकिन रफ्तार पकड़ने […] Read more » Food security strategy needs to be reconsidered due to monsoon uncertainty खाद्य सुरक्षा रणनीति
लेख बढ़ती आबादी को रोकना है सबसे बड़ी चुनौति! June 24, 2022 / June 24, 2022 by लिमटी खरे | Leave a Comment लिमटी खरे वैश्विक स्तर पर वैसे तो बहुत सारी चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं, पर सबसे बड़ी चुनौति बढ़ती आबादी को रोकने की है। जिस तेज गति से आबादी बढ़ रही है उसके अनुसार सारी व्यवस्थाएं करना एक बड़ी समस्या से कम नहीं है। परिवार नियोजन के उपायों के बाद भी इस पर लगाम नहीं […] Read more » The biggest challenge is to stop the growing population! बढ़ती आबादी