आलोचना समाज छोटा राजन को देश और दलितों का आदर्श मत बनाइये November 7, 2015 by प्रवक्ता ब्यूरो | 1 Comment on छोटा राजन को देश और दलितों का आदर्श मत बनाइये “ अपराध का रंग हरा है तो वह आतंकवाद और अगर गैरुआ है तो वह राष्ट्रवाद ,एक मुल्क के रूप में आखिर कहां जा रहे है हम ? “ ………………………………………………………………………………………………………………………………………….. अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन की इंडोनेशिया के बाली शहर में नाटकीय गिरफ्तारी तथा उसका आनन फानन में भारत लाया जाना किसी पूर्व निर्धारित पटकथा जैसा […] Read more » Featured छोटा राजन देश और दलितों का आदर्श मत बनाइये
कविता साहित्य कह रही है ‘अजन्मी’ November 7, 2015 by लक्ष्मी जायसवाल | Leave a Comment कह रही है ‘अजन्मी’ मां मैं भी इस दुनिया में आना चाहती हूँ नन्हे नन्हे पैरो से मैं भी गिरकर ठोकर खाना चाहती हूँ गिरते गिरते उठकर सम्भलना चाहती हूँ तेरी उंगली पकड़कर चलना चाहती हूं तोतली जबान में कभी तो कभी लाड में माँ मैं भी तुझे माँ कहना चाहती हूँ। क्यों नहीं कर […] Read more » कह रही है 'अजन्मी'
कविता साहित्य चुटकी भर सिन्दूर November 7, 2015 / November 7, 2015 by लक्ष्मी जायसवाल | Leave a Comment चुटकी भर सिन्दूर डला मांग में और बदल गया जीवन। चुटकी भर सिन्दूर के बदले में मिला उम्र भर का बंधन। सजी मैं संवरी मैं निभायी रस्में और स्वीकारा ये गठबंधन। इस सिन्दूर के बदले मिला मुझे किसी का जीवन भर का साथ इस साथ के बदले छूटे सभी अपने और छूटा अपनों का हाथ। […] Read more » Featured चुटकी भर सिन्दूर
आलोचना टॉप स्टोरी राजनीति झूठी लोकप्रियता के माफिक November 6, 2015 by प्रवक्ता ब्यूरो | 3 Comments on झूठी लोकप्रियता के माफिक आज जिस तरह से असहिष्णुता का राग आलाप करते हुये हमारे तथाकथित कुछ बुद्धिजीवी साहित्यकार,कलाकार,वैज्ञानिक और इतिहासकार एक झूठी मनसा तथा सस्ती लोकप्रियता पाने के चलते जिस तरह से सरकार को घेरने की कोशिश मे लगे है इससे एक बात तो साफ जाहिर होती है कि इन बुद्धिजीवियों का मकसद सीधे सीधे सरकार का दमन […] Read more » असहिष्णुता का राग आलाप झूठी लोकप्रियता झूठी लोकप्रियता के माफिक सस्ती लोकप्रियता हासिल करना
आलोचना ये बाबा नाव डूबा कर रहेंगे नमो की November 6, 2015 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment असहिष्णुता के मुद्दे पर प्रधानमंत्री की चुप्पी और उनके समर्थक साधुओं और योगियों की तल्खी से लगता है कि ये आग फिलहाल बुझने वाली नहीं है.पद्मश्री के लिए केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के पहले से शीर्षासन कर रहे बाबा रामदेव की मांग है कि ‘अगर शाहरुख सच्चे देशभक्त हैं तो उन्हें पद्मश्री सम्मान […] Read more » नमो
व्यंग्य साहित्य रिटायरमेंट की पीड़ा …!! November 6, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा मि. खिलाड़ी और लक्ष्मीधर दोनों की आंखों में आंसू थे। क्योंकि दोनों संयोग से एक ही दिन रिटायर हो गए या यूं कहें कि कर दिए गए। हालांकि रिटायर दोनों ही नहीं होना चाहते थे। बल्कि रिटायरमेंट का ख्याल भी दोनों को डरा देता था। मि. खिलाड़ी पिछले तीन साल से टीम […] Read more » रिटायरमेंट
लेख साहित्य फुटपाथ पर सोया बालक और मेरा ममत्व November 4, 2015 / November 4, 2015 by अनुप्रिया अंशुमान | Leave a Comment मुझे ये लगता है कि माँ होना या माँ बनना, दोनो ही बातें, अपने में एक विशेषता लिए आती है । हमेशा ही मेरी आँखें माँ के नाम पर नम हो जाती है; और माँ बनने की अभिलाषाओं को त्वरित कर देती है । कहते है कि स्त्री तब तक माँ नहीं बनती जब तक […] Read more » फुटपाथ पर सोया बालक मेरा ममत्व
कविता साहित्य ये अकेलापन November 4, 2015 by अनुप्रिया अंशुमान | Leave a Comment बहुत ही दूर तक दिखता है मुझको ये अकेलापन तुम्हारे साथ होने पर भी नहीं हटता है ये अकेलापन कभी किया करती हूँ खुद से बातें मैं बेपर्दा कि _छुप के देखता है मुझको ये अकेलापन हृदय के एक कोने में जब याद उठती है तुम्हारी कि_छुप के साँस लेता है मुझमें ये अकेलापन कितनी […] Read more » ये अकेलापन
कहानी साहित्य जिंदगी के रंग November 4, 2015 by आर. सिंह | 1 Comment on जिंदगी के रंग कुछ बातें ऐसी होती हैं जो याद रह जाती हैं.कुछ ऐसी बातें भी होती हैं,जिन्हे याद रखना पड़ता है.यह घटनाक्रम उन बातों में से है,जो याद रह जाती हैं. ________________ विनय से मेरा मिलना इतिफाक या संयोग ही था,पर घटनाक्रम कुछ ऐसा रहा कि वह मेरे नजदीक आता गया और आता ही गया.बात बहुत पुरानी […] Read more » Featured जिंदगी के रंग
आलोचना राजनीति साहित्य कौन सी पुरस्कार वापसी? November 3, 2015 by प्रवक्ता ब्यूरो | 3 Comments on कौन सी पुरस्कार वापसी? कौनसी पुरस्कार वापसी? कौनसी साहित्यिक प्रतिभा? कौन से देश और समाज के हमदर्द? कौनसी मानवता के हितेशी? कौनसी प्रजाति के कलमकार? कौनसी सरकारो के “भांड “? लगता है देश मे पहली बार कोई घटना हुई है ? देश मे १९५४ की ग़लतिया जिसके कारण देश को तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने स्वार्थ सिद्धि […] Read more » Featured पुरस्कार वापसी
जन-जागरण टॉप स्टोरी मीडिया साहित्य तब कहां गया था तुम्हारा धर्म? November 3, 2015 / November 3, 2015 by देविदास देशपांडे | Leave a Comment किसी जंगल में शिकार का दौर चलता है, तब आम तर पर कुछ लोग जानवर के पीछे आवाज लगाते चलते है। ये लोग जानवर को एक दिशा में धकेलते है ताकि असली शिकारी उसकी शिकार कर सकें। फिलहाल देश में पुरस्कार वापसी का जो दौर चला है, वह इसी प्रथा की याद दिलाता है। अपने […] Read more » Featured samman vapsi तब कहां गया था तुम्हारा धर्म? पुरस्कार वापसी
कविता मुस्कुरा लो November 3, 2015 by बीनू भटनागर | Leave a Comment थोड़ी सी ख़ुशियां बांट लूं, ग़म सिमट जायेंगे, ओढ़लूँ उदासी तो, क्या ग़म लौट जायेंगे। सागर है तो उसमे, तूफ़ान आयेंगे जायेंगे, तूफ़ान से डर कर, मछुवारे क्या घर बैठ जायेंगे। फूलों से लदे पेड़ तो, ख़ुश नज़र आयेंगे, पतझड़ मे भी लेकिन, वो मुसकुरायेंगे। पूर्णिमा की रात हो तो, चाँद खिलखिलाताहै, अमावस की रात […] Read more » मुस्कुरा लो