गजल अज्ञान में जग भासता ! July 3, 2015 by गोपाल बघेल 'मधु' | 1 Comment on अज्ञान में जग भासता ! अज्ञान में जग भासता, अणु -ध्यान से भव भागता; हर घड़ी जाता बदलता, हर कड़ी लगता निखरता ! निर्भर सभी द्रष्टि रहा, निर्झर सरिस द्रष्टा बहा; पल पल बदल देखे रहा, था द्रश्य भी बदला रहा ! ना सत रहा जीवन सतत, ना असत था बिन प्रयोजन; अस्तित्व सब चित से सृजित, हैं सृष्ट सब […] Read more » अज्ञान में जग भासता
गजल अनुभूत करना चाहते July 2, 2015 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment अनुभूत करना चाहते अनुभूत करना चाहते, कब किसी की है मानते; ना जीव सुनना चाहते, कर के स्वयं ही समझते ! ज्यों वाल बिन अग्नि छुए, माँ की कहाँ है मानता; जब ताप को पहचानता, तब दूर रहना जानता । एक बार जब कर गुज़रता, कहना किसी का मानता; सुनना किसी की चाहता, सम्मान करना […] Read more » अनुभूत करना चाहते
कविता योग की महिमा July 1, 2015 by विमलेश बंसल 'आर्या' | Leave a Comment -विमलेश बंसल ‘आर्या’ योग ऋत है , सत् है, अमृत है। योग बिना जीवन मृत है।। 1. योग जोड़ है, वेदों का निचोड़ है। योग में ही व्याप्त सूर्य नमस्कार बेजोड़ है।। 2. योग से मिटती हैं आधियाँ व्याधियाँ। योग से मिटती हैं त्वचा की कोढ़ आदि विकृतियां।। 3. योग जीवन को जीने की जडी […] Read more » योग की महिमा
गजल विविधा सुलगा हुआ जग लग रहा July 1, 2015 / June 30, 2015 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment सुलगा हुआ जग लग रहा, ना जल रहा ना बुझ रहा; चेतन अचेतन सिल-सिला, पैदा किया यह जल-जला । तारन तरन सब ही यहाँ, संस्कार वश उद्यत जहान; विधि में रमे सिद्धि लभे, खो के भरम होते सहज । आत्मीय सब अन्तर रहे, माया बँधे लड़ते रहे; जब भेद मन के मिट गये, उर सुर […] Read more » सुलगा हुआ जग लग रहा
राजनीति व्यंग्य देश में विदेश !!! July 1, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment हास्य – व्यंग्य —————– तारकेश कुमार ओझा किसी बीमार राजनेता व मशहूर शख्सियत के इलाज के लिए विदेश जाने की खबर सुन कर मुझे बचपन से ही हैरत होती रही है। ऐसी खबरें सुन कर मैं अक्सर सोच में पड़ जाता था कि आखिर जनाब को ऐसी क्या बीमारी है, जिसका इलाज देश में नहीं […] Read more » देश में विदेश
गजल हर एक पल कल-कल किए June 30, 2015 / June 30, 2015 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment हर एक पल कल-कल किए, भूमा प्रवाहित हो रहा; सुर छन्द में वह खो रहा, आनन्द अनुपम दे रहा । सृष्टि सु-योगित संस्कृत, सुरभित सुमंगल संचरित; वर साम्य सौरभ संतुलित, हो प्रफुल्लित धावत चकित । आभास उर अणु पा रहा, कोमल पपीहा गा रहा; हर धेनु प्रणवित हो रही, हर रेणु पुलकित कर रही । […] Read more » हर एक पल कल-कल किए
गजल विविधा छलका रहा होगा झलक June 30, 2015 / June 30, 2015 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment छलका रहा होगा झलक, प्रति जीव के आत्मा फलक वह मूल से दे कर पुलक, भरता हरेक प्राणी कुहक । कुल-बिला कर तम- तमा कर, कोई हृदय में सिहा कर; सिमटा कोई है समाया, उमगा कोई है सिधाया । सुध में कोई बेसुध कोई, रुधता कोई बोधि कोई; चलते रहे चिन्ता दहे, चित शक्ति को […] Read more » छलका रहा होगा झलक
विविधा व्यंग्य सम्मान का गणित June 29, 2015 by विजय कुमार | Leave a Comment शर्मा जी यद्यपि खुद भी वरिष्ठ नागरिक हैं, फिर भी वे बड़े-बुजुर्गों की बात का बहुत सम्मान करते हैं। अवकाश प्राप्ति के बाद सबसे पहले उन्होंने मकान की मरम्मत कराई। इसके बाद कुछ समय आराम किया; पर इस चक्कर में जहां उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा, वहां घरेलू मामलों में बिना बात दखल देने से घर […] Read more » सम्मान का गणित
आलोचना मुझे खेद है कि आप जिस व्यवस्था को बदलने आये थे उस व्यवस्था का अंग बन चुके हैं। June 25, 2015 by बीनू भटनागर | 3 Comments on मुझे खेद है कि आप जिस व्यवस्था को बदलने आये थे उस व्यवस्था का अंग बन चुके हैं। एक पत्र प्रिय अरविंद, जब से आम आदमी पार्टी बनी थी, एक उम्मीद थी कि ये राजनीति देश मे परिवर्तन लायेगी, भले ही समय लगे। 2013 मे ‘’आप’’ ने 28 सीटें जीती तो लगा कि जनता ये परिवर्तन चाहती है, फिर आप ने बहुत सोच समझने के बाद जनता से पूछकर सरकार बनाई तो आप […] Read more » Featured letter to Arvind Kejriwal
गजल नज़्म June 23, 2015 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -राघवेन्द्र कुमार “राघव”- किसी की तासीर है तबस्सुम, किसी की तबस्सुम को हम तरसते हैं । है बड़ा असरार ये, आख़िर ऐसा क्या है इस तबस्सुम में ।। देखकर जज़्ब उनका, मन मचलता परस्तिश को उनकी । दिल-ए-इंतिख़ाब हैं वो, इश्क-ए-इब्तिदा हुआ । उफ़्क पर जो थी ख़ियाबां, उसकी रंगत कहां गयी । वो गवारा […] Read more » Featured गजल तबस्सुम नज़्म
गजल रहते हुए भी हो कहां June 22, 2015 by गोपाल बघेल 'मधु' | 1 Comment on रहते हुए भी हो कहां -गोपाल बघेल ‘मधु’- (मधुगीति १५०६२१) रहते हुए भी हो कहाँ, तुम जहान में दिखते कहाँ; देही यहाँ बातें यहाँ, पर सूक्ष्म मन रहते वहाँ । आधार इस संसार के, उद्धार करना जानते; बस यों ही आ के टहलते, जीवों से नाता जोड़ते । सब मुस्करा कर चल रहे, स्मित-मना चित तक रहे; जाने कहाँ तुम […] Read more » Featured गजल रहते हुए भी हो कहां
गजल खोया हूं मैं June 22, 2015 / June 22, 2015 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment –मनीष सिंह- खोया हूँ मैं हक़ीक़त में और फ़साने में , ना है तुम बिन कोई मेरा इस ज़माने में। तुम साथ थे तो रौशन था ये जहाँ मेरा , अब जल जाते हाथ अँधेरे में शमा जलाने में। यूँ तो मशरूफ कर रखा है बहुत खुद को , फिर भी आ […] Read more » Featured खोया हूँ मैं गजल