जरूर पढ़ें लोकतंत्र के सशक्तिकरण में नए प्रयोगों की आवश्यकता May 14, 2015 / May 14, 2015 by सत्यव्रत त्रिपाठी | Leave a Comment -सत्यव्रत त्रिपाठी- गतिशील लोकतंत्र के लिए मतदाताओं की भागीदारी बढ़ाना जरूरी है। लोकतांत्रिक मशीनरी को ठीक से चलाने के लिए मतदाताओं की सहभागिता तेल की तरह काम करती है। इसके अलावा मतदातओं की बढ़ी हुई सहभागिता विविध जगहों के लोगों को मुख्यधारा में लाकर सामाजिकरूप से एकीकृत करती है। यह एकीकरण उम्र उदाहरण के तौर पर युवाओं का समाज से एकीकरण लिंग, श्रेणी, क्षेत्र और कई अन्य उप समूहों के बंधनों को तोड़ देता है। इसलिए चुनाव सहभागिता सामाजिक समावेश सुनिश्चित करती है। साथ ही ऐसी नीतियों की ओर उन्मुख करतीहै जो समाज के विभिन्न खंडों और विविध हितों का ध्यान रखती हैं। भारत के संदर्भ में यह अभिकथन इस मायने में ज्यादा महत्व रखता है जहां राजनीतिक दलों और उनके प्रत्याशियों की तरफ से मतदाताओं को जानबूझकर हिस्सों में बांटना एक आम रणनीति है। कई बारपार्टी और उसके प्रत्याशी अपने वोट बैंक का उल्लेख करते हैं। ये वोट बैंक प्रत्याशियों की तरफ से जाति, धर्म और क्षेत्र की छोटी संकुचित सोच के आधार पर बनाए जाते हैं। वर्तमान की एफपीटीपी व्यवस्था में (झूठ और धोखे के कारण जो कि भारत में व्याप्त हैं) अगर कोईप्रत्याशी अपने क्षेत्र में किसी बेहद छोटे और अमहत्वपूर्ण समूह को अपने पक्ष में कर लेता है तो सीट हासिल करना आसान होता है। इसीलिए प्रत्याशी या राजनीतिक दल एक छोटा मतदाता वर्ग बनाने की रणनीति पर केंद्रित करते हैं या संकीर्ण सोच के आधार पर विशेष वोट बैंकपर निर्भर रहते हैं। यह कोशिश हमारे देश के लोकतंत्र को बर्बाद करने वाली है क्योंकि यह राजनीतिक दलों की प्राथमिकताओं को गलत तरीके से बदल देती है। उनका ध्यान बिंदु सभी के विकास के लिए नीतियां बनाने और इसे लागू कराने की जरूरत से बदल जाता है। उपचार केतौर पर वह लोग जो किसी विशेष वोट बैंक का हिस्सा नहीं हैं और अगर उनकी भागीदारी बढ़ाई जाए तो अलग-अलग राजनीतिक दलों और उनके प्रत्याशियों के लिए ये लोग महत्वपूर्ण होंगे और वे संकीर्ण सोच को व्यापक करने को मजबूर होंगे। यह स्पष्ट है कि कई जनतंत्रों में मतदाताओं की सहभागिता लगातार गिरावट की ओर है। कई देश इस गिरावट को रोकने के लिए नए रास्ते निकाल रही हैं। इन सभी प्रयासों का मुख्य उद्देश्य मतदान न करने की प्रवृत्ति कम करना है। यह कई तरीकों जैसे पंजीकरण करने कीप्रक्रिया को कम कष्टकर और कम महंगा बनाने, मतदाताओं का श्रम घटाने जिससे सहभागिता घटती है, चुनावों की बारंबारता और जटिलता घटाने, जागरूकता अभियान चलाकर मतदान को आदत और सामाजिक नियम बनाने से किया जा रहा है। भारत में चुनाव सुधारों के क्षेत्र मेंसक्रिय लोगों ने कई सुझाव दिए हैं। उदाहरण के तौर पर चुनाव सुधार के क्षेत्र के चमकते तारे प्रोफेसर सुभाष कश्यप ने मतदान को संवैधानिक तौर पर हर नागरिक को मौलिक कर्तव्य बनाने का सुझाव दिया है। इसे मौलिक कर्तव्यों की सूची में शामिल किया जाना चाहिए। उन्होंने मतदाताओं की सहभागिता बढ़ाने केलिए प्रोत्साहनों और दंडात्मक कार्रवाई की एक श्रृंखला का भी सुझाव दिया है। उनके अनुसार, हर मतदाता को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके पास मतदान का प्रमाणपत्र हो। यह प्रमाणपत्र अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेजों जैसे गरीबी रेखा के नीचे का राशन कार्ड आदि के लिएमुख्य प्रपत्र के तौर पर काम करेगा। प्रोफेसर कश्यत खास तौर पर मतदान सहभागिता में शहरी आबादी के घटते रुझान से चिंतित हैं। इसके लिए वह सुझाव देते हैं कि पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस सिर्फ मतदान प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने की दशा में ही जारी किए जाने चाहिए। हालांकि वक्त की जरूरत परंपरागत तरीकों के साथ ही तकनीक में हुई प्रगति का निर्वाचन प्रक्रिया में प्रयोग है। इससे मतदान प्रक्रिया में समय और लागत दोनों घटेंगे। ऐसा ही एक विकल्प ई-मतदान है जिसका कई देशों में प्रयोग किया जा रहा है। यह विकल्प प्रयोग करने वालेकई देशों में मतदाताओं की सहभागिता और आम नागरिकों के उत्साह में काफी अच्छे नतीजे आए हैं। जहां तक भारत का प्रश्न है, हम भी मतदान सहभागिता में गिरावट के चिंताजनक मुद्दे से लड़ रहे हैं। यद्यपि भारत के चुनाव आयोग ने कई सालों में इस संबंध में प्रशंसनीयऔर गंभीर कदम उठाए हैं लेकिन परिणाम संतुष्टिजनक नहीं हैं। इसके अतिरिक्त, शहरी उच्च मध्य वर्ग नागरिक लगातार राजनीतिक प्रक्रिया के प्रति उदासनीता दिखा रहे हैं। उनकी सहभागिता भी चिंता का एक विषय है। इसलिए चुनाव क्षेत्र में नए आविष्कारों की तत्काल जरूरत हैजिससे आबादी के इस हिस्से में वोट न डालने की आदत को बड़े पैमाने पर घटाया जा सके। गुजरात के पालिका चुनावों में कुछ क्षेत्रों में ई-मतदान का सहारा लेकर इस संबंध में राह दिखाई गई है। यह मॉडल विशेष तौर पर उच्च मध्यम वर्ग को लक्षित करने में उपयुक्त हो सकता है ताकि इनकी वोट न डालने की आदत खत्म की जा सके और इनको चुनावों में बड़ेपैमाने पर भागीदारी के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। ई-मतदान की उपयुक्तता को तलाशने और अन्य राज्यों में इसे लागू करने या न करने पर गंभीर शोध किए जाने चाहिए। इसे शुरू करने के लिए हम सभी राज्यों के स्थानीय निकाय के चुनावों में इसकी शुरुआत कर सकतेहैं। अगर परिणाम सकारात्मक आएं तो धीरे-धीरे हर तरह के चुनावों में हम इस व्यवस्था का प्रयोग करना चाहिए। काफी जनसंख्या होने के कारण भारत में चुनाव कराना एक बड़ी करसत है। कई बार चुनाव प्रक्रिया बेहद लंबी हो जाती है। कई अवसरों पर यह आम आदमी की कल्पना से भी ज्यादा जटिल हो जाती है। ई-मतदान की अवधारणा पूरी प्रक्रिया में जटिलताओं को खत्म करेगी औरज्यादा मतदाताओं की सहभागिता सुनिश्चित करेगी। Read more » Featured भारत की राजनीति लोकतंत्र लोकतंत्र के सशक्तिकरण में नए प्रयोगों की आवश्यकता
जरूर पढ़ें विधि-कानून क्या रिश्तों से अपराध की परिभाषा बदल जाती है ? May 12, 2015 by राजेंद्र बंधू | 1 Comment on क्या रिश्तों से अपराध की परिभाषा बदल जाती है ? -राजेन्द्र बंधु- दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा हाल ही में दिए गए एक फैसले के अनुसार पति द्वारा पत्नी का बलात्कार अपराध की श्रेणी में नहीं आता। एक युवती को नशीला पेय पिलाकर उससे विवाह करने और उसके साथ बलात्कार करने के 21 वर्षीय आरोपी युवक को अदालत द्वारा दोषमुक्त कर दिया। इस फैसले से कई […] Read more » Featured क्या रिश्तों से अपराध की परिभाषा बदल जाती है ? दिल्ली उच्च न्यायालय हाईकोर्ट
जन-जागरण जरूर पढ़ें क्षेत्रीय मुस्लिम शासकों से भी चला हिन्दू शक्ति का संघर्ष May 12, 2015 / May 12, 2015 by राकेश कुमार आर्य | 1 Comment on क्षेत्रीय मुस्लिम शासकों से भी चला हिन्दू शक्ति का संघर्ष -राकेश कुमार आर्य- भारत का कण-कण वंदनीय है भारत से शांति प्राप्त करने के लिए प्राचीन काल से लोग यहां आते रहे हैं। यहां के कण-कण में शंकर की प्रतिध्वनि को उन लोगों ने जितना सुना है, उतने ही वह भारत के प्रति श्रद्धा और सम्मान से झुकते चले गये। उन्हें लगा कि यदि पृथ्वी […] Read more » Featured क्षेत्रीय मुस्लिम शासकों से भी चला हिन्दू शक्ति का संघर्ष हिन्दू शक्ति
जरूर पढ़ें नरसिंहराव की समाधि के बहाने परिवार की संकीर्ण सोच May 12, 2015 / May 12, 2015 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -डॉ. अजय खेमरिया- दिल्ली से प्रकाशित एक तथाकथित राष्ट्रीय दैनिक में पिछले दिनों एक खबर पहले पेज पर प्रकाशित हुयी जिसमें बताया गया कि मोदी सरकार नई दिल्ली में पूर्व प्रधानमंत्री स्व. पी.वी. नरसिंहराव की समाधि बनाने जा रही है. इस खबर के साथ ही वामपंथी और कांग्रेसी सम्भल रखने वाले इस अखबार ने इस […] Read more » Featured नरसिंहराव नरसिंहराव की समाधि के बहाने परिवार की संकीर्ण सोच पीवी नरसिंहराव
जरूर पढ़ें राजनीति एक पाती प्रधानमंत्री के नाम… May 12, 2015 by संजय पराते | Leave a Comment -संजय पराते- वेलडन साहब, क्या बात कही है! हम ईंट का जवाब पत्थर से नहीं देते, बन्दूक का जवाब गोली से नहीं देते या गोली का जवाब बन्दूक से नहीं देते, हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं, बन्दूक छोड़कर नक्सली पीड़ित बच्चों के साथ पांच दिन रहकर देखे…आदि-इत्यादि! याद नहीं आता कि सलमान ने भी […] Read more » Featured एक पाती प्रधानमंत्री के नाम... नरेंद्र मोदी पीएम प्रधानमंत्री
जरूर पढ़ें टॉप स्टोरी परस्पर विश्वास के बिना भारत-पाक के मध्य शांति असम्भव May 12, 2015 / May 12, 2015 by तनवीर जाफरी | Leave a Comment -तनवीर जाफ़री- दक्षिण एशियाई क्षेत्र के दो प्रमुख देश भारत व पाकिस्तान के मध्य समय-समय पर सामने आने वाले आपसी रिश्तों के उतार-चढ़ाव प्रायरू पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते रहते हैं। 1947 में भारत के विभाजन के बाद अस्तित्व में आने वाले नवराष्ट्र पाकिस्तान ने अपने वजूद में आते ही कश्मीर को […] Read more » Featured परस्पर विश्वास के बिना भारत-पाक के मध्य शांति असम्भव भारत पाक भारत पाकिस्तान
जरूर पढ़ें छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में दिखा 56 इंच का सीना May 9, 2015 / May 9, 2015 by कुमार सुशांत | Leave a Comment -कुमार सुशांत- बीते लोक सभा चुनाव की बात है। अप्रैल 2014 में चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने कहा था कि देश को चलाने के लिए 56 इंच का सीना चाहिए। आज छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नक्सलियों के गढ़ में जाकर जिस तरह बच्चों के सवाल का जवाब दिया, वह […] Read more » Featured छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में दिखा 56 इंच का सीना नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री
जरूर पढ़ें भूमि अधिग्रहण विवाद, भाग १ – स्वतन्त्र चिन्तन की आवश्यकता May 8, 2015 by मानव गर्ग | 4 Comments on भूमि अधिग्रहण विवाद, भाग १ – स्वतन्त्र चिन्तन की आवश्यकता -मानव गर्ग- केन्द्रीय प्रशासन के द्रारा प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण विधेयक बहुकाल से देश में व्यापक विवाद का विषय बना हुआ है । जहाँ प्रशासन सतत इसे किसानों के हित में बताती आयी है, वहीं सम्पूर्ण विपक्ष एड़ी-चोटी का बल लगाकर इसे किसान विरोधी सिद्ध करने का प्रयास कर रही है । दोनों ही पक्षों के […] Read more » Featured जमीन अधिग्रहण भाग १ - स्वतन्त्र चिन्तन की आवश्यकता भूमि अधिग्रहण भूमि अधिग्रहण विवाद
जरूर पढ़ें सरकारी भूमि की रजिस्ट्रियों का गोरखधंधा May 8, 2015 by प्रमोद भार्गव | Leave a Comment -प्रमोद भार्गव- शिवपुरी। शिवपुरी नगर पालिका क्शेत्र में इन दिनों खाली पड़ी सरकारी भूमि की व्यक्तिगत रूप में रजिस्ट्रियां कराने का गोरखधंधा जोरों पर चल रहा है। ज्यादातर रजिस्ट्रियां उषा राजे चेरिटेबल ट्रस्ट द्वारा तय किए गए मुख्त्यारआम करा रहे हैं। इन राजिस्ट्रियों को सत्र व उच्च न्यायालय गलत साबित कर चुकी हैं। धोखाधड़ी करके […] Read more » Featured रजिस्ट्री सरकारी भूमि सरकारी भूमि की रजिस्ट्रियों का गोरखधंधा
जरूर पढ़ें भूगर्भीय हलचल May 8, 2015 by शैलेन्द्र चौहान | Leave a Comment –शैलेन्द्र चौहान- भूकम्प पृथ्वी का उपपठारीय चट्टानों के टूटने या खिसकने से अचानक होने वाला तीव्र कंपन है। भूगर्भशास्ित्रयों का मानना है कि भारतीय टैक्टोनिक प्लेट के यूरेशियन टैक्टोनिक प्लेट (मध्य एशियाई) के नीचे दबते जाने के कारण हिमालय बना है। पृथ्वी की सतह की ये दो बड़ी प्लेटें करीब चार से पांच सेंटीमीटर प्रति वर्ष की […] Read more » Featured क्यों होता है भूकंप भूकंप भूकंप की वजह भूकंप के कारण भूगर्भीय हलचल
जरूर पढ़ें जरूरत बिहार की छवि सुधारने की May 7, 2015 / May 7, 2015 by निर्मल रानी | Leave a Comment -निर्मल रानी- बिहार राज्य की गिनती देश के दूसरे सबसे बड़े राज्य के रूप में की जाती है। प्राचीनकाल में शिक्षा, अध्यात्म तथा शासन व्यवस्था आदि के क्षेत्र में यह राज्य देश का सबसे समृद्ध व अग्रणी राज्य समझा जाता था। बिहार महात्मा बुद्ध, अशोक सम्राट से लेकर डॉ. राजेंद्र प्रसाद तथा जयप्रकाश नारायण जैसे […] Read more » Featured जरूरत बिहार की छवि सुधारने की बिहार
जन-जागरण जरूर पढ़ें सोच बड़ी या शौच May 6, 2015 / May 6, 2015 by निर्भय कर्ण | 4 Comments on सोच बड़ी या शौच -निर्भय कर्ण- ‘‘सोच बड़ी या शौच’’ यह सवाल आज हम इसलिए उठा रहे हैं क्योंकि ग्रामीण परिवेश में खासकर देखें तो वहां की मानसिकता को देखकर यह साबित होता है कि शौचालय ही बहुत बड़ी चीज है और सोच बिल्कुल ही छोटी। अधिकतर ग्रामीण यह सोचते हैं कि शौचालय बनाकर केवल पैसे की बर्बादी ही […] Read more » Featured शौच सोच सोच बड़ी या शौच