Category: राजनीति

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समाजवादी पार्टी अपने इस संकट के लिए अभिशप्त है

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अनुभवी मुलायम सिंह यादव इस बात को समझते हैं कि अगला विधानसभा चुनाव अखिलेश के चेहरे के सहारे ही लड़ा जा सकता है लेकिन उन्हें यह भी पता है कि अकेले यही काफी नहीं होगा. इसके लिए शिवपाल की सांगठनिक पकड़ और अमर सिंह के “नेटवर्क” की जरूरत भी पड़ेगी. इसलिये चुनाव से ठीक पहले मुलायम का पूरा जोर बैलेंस बनाने पर है. लेकिन संकट इससे कहीं बड़ा है और बात चुनाव में हार-जीत के गुणा-भाग से आगे बढ़ चुकी है. अब मामला पार्टी और इसके संभावित वारिसों के आस्तित्व का बन चूका है.

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बीसीसीआई के गले में सुप्रीम कोर्ट की घंटी

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हमारे देश में इस खेल के सबसे ज्यादा दर्शक हैं और यही बात इस खेल को कण्ट्रोल करने वाली संस्था बीसीसीआई को दुनिया का सबसे अमीर बोर्ड बना देती है. यहाँ बहुत सारा पैसा है और इसके साथ राजनीति भी. देश के ज्यादातर राजनीतिक दलों के प्रमुख नेता बीसीसीआई और राज्यों के बोर्डों पर काबिज है. उनके बीच काफी सौहार्द है और वे एक दुसरे की मदद करते हुए नजर आते हैं. यह ऐसे लोग है जिनका सीधे तौर पर क्रिकेट से कोई वास्ता नहीं है. लेकिन भले ही वे क्रिकेट की बारीकियों को ना समझते हों पर इसे नियंत्रण करना बखूबी जानते हैं. अनुराग ठाकुर,शरद पवार,अमित शाह,राजीव शुक्ला,ज्योतिरादित्य सिंधिया फारुख़ अब्दुल्ला जैसे नेता इस देश की राजनीति के साथ-साथ यहाँ के सबसे लोकप्रिय खेल क्रिकेट को भी चलते हैं .

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न विचार न सिद्धांत: केवल सत्ता महान?

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हालांकि हमारे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में नेताओं को इस बात की आज़ादी है कि वे अपनी सुविधा अथवा राजनैतिक नफे-नुकसान के मद्देनज़र जब चाहें तब दल-बदल कर सकते हैं। परंतु जब देश में सिद्धांत आधारित राजनैतिक संगठन मौजूद हों और इन संगठनों से जुड़े लोग मात्र सत्ता के लोभ में दल-बदल करते दिखाई दें तो यह प्रश्र उठना स्वाभाविक है कि कल तक अपनी धर्मनिरपेक्षता की डुगडुगी बजाने वाला नेता आज आिखर उस दल में कैसे शामिल हो गया जिसे वही नेता स्वयं सांप्रदायिकतावादी संगठन कह कर संबोधित करता था?

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सपा संघर्ष, न थमने वाला एक सिलसिला

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अब देखना यह है कि अखिलेश ‘शहीद’ होकर निकलेंगे या फिर स्वयं सपा से किनारा कर लेंगे। आज की तारीख में जनता अखिलेश की बातों पर मुलायम से अधिक विश्वास कर रही है। मुलायम द्वारा बुलाई गई बैठक का सबसे दुखद पहलू यह रहा की कहीं न कहीं मुलायम और उनकी पार्टी मुसलमानोें के नाम पर एक्सपोज होते भी दिखी। 2003 में बीजेपी के एक बड़े नेता के यहां अमर सिंह की मदद से मुलायम सरकार बनाने के लिये रणनीति बनाई गई थी, इस बात की गंूज सत्ता के गलियारों मेे दूर तक सुनने को मिलेगी। बीएसपी जो मुस्लिम वोट बैंक अपने पाले में करने को लेकर हाथ-पैर मार रही हैं। वह इस बात का पूरा फायदा उठाना चाहेगी।

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सपाः ‘बेटाजी’ जी सामने बौने पड़े नेताजी

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पार्टी के भीतर की इस रस्साकसी से सबसे अधिक भ्रम में पार्टी के छोटे नेता ओर कार्यकर्ता हैं। उनके लिए तय करना मुश्किल हो रहा है कि वह किस पाले में बैठें। कल तक भले ही सपा में मुलायम की ही चलती रहती हो,लेकिन अब ऐसा नही है। इस समय सपा की सियासत कई कोणों में बंटी हुई नजर आ रही है। जानकारों का कहना है कि कुनबे की रार का मुकम्मल रास्ता न निकलते देख अखिलेश ने आगे बढ़ने का फैसला किया है,जो समय के हिसाब से लाजिमी भी है। अब इसमें वह कितना आगे जायेंगे यह देखने वाली बात होगी।

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