Category: विविधा

विविधा सार्थक पहल

‘चिराग का रोजगार’ एक सार्थक पहल

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हाल ही में दिल्ली एक बडे़ समारोह में चिराग पासवान ने अपनी इस बहुआयामी एवं मूच्र्छित होती युवा चेतना में नये प्राण का संचार करने वाली योजना को लोकार्पित किया। रोजगार के लिये सरकार पर निर्भरता को कम करने के लिये उन्होंने बड़े आर्थिक-व्यापारिक घरानों एवं बेरोजगार युवकों के बीच सेतु का काम करने की ठानी है। वोट की राजनीति और सही रूप में सामाजिक उत्थान की नीति, दोनों विपरीत ध्रुव है। लेकिन चिराग ने इन विपरीत स्थितियों में सामंजस्य स्थापित करके भरोसा और विश्वास का वातावरण निर्मित किया है।

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आर्थिकी विविधा

एक देश: एक टैक्स जीएसटी

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वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के लागू होने से केन्द्र और राज्यों के स्तर पर लगने वाले एक दर्जन से अधिक कर समाप्त हो जायेंगे और उनके स्थान में केवल जीएसटी लगेगा। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस इस कार्यक्रम से दूर रही। कांग्रेस ने जीएसटी की शुरुआत के मौके पर आयोजित इस कार्यक्रम को तमाशा करार दिया। कांग्रेस के इसी बहिष्कार के चलते पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी इस कार्यक्रम से दूर रहे। तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, डीएमके और वामपंथी दलों ने कार्यक्रम का बहिष्कार किया। जीएसटी से देश की 2,000 अरब की अर्थव्यवस्था और 1.3 अरब लोग सभी एक साथ जुड़ जायेंगे और पूरा देश एक साझा बाजार बन जायेगा।

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पर्यावरण विविधा

वृक्षारोपण: एक पौधा, दस हाथ

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कवायद में मध्यप्रदेश सरकार ने नर्मदा बेसिन में 6 करोड 67 लाख पौधे रोपकर दुनिया को पर्यावरण बचाने का शानदार संदेश दिया। प्रदेश में 2 जुलाई 2017 की तारिख इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई। बेमिसाल, दुनिया भर में अब तक एक ही दिन में इतनी बडी संख्या में पौधे रोपने का रिकाॅर्ड कहीं नहीं बना। बना तो सिर्फ और सिर्फ मध्यप्रदेश की सरजमीं पर, फलीभूत सूबे का दूसरी बार नाम गिनीज विश्व रिकाॅर्ड में शुमार हो गया। लिहाजा, सदी के इस सबसे बडे महा वृक्षारोपण प्रकल्प की चहुंओर प्रषंसा हो रही है। बेहतर उक्त एक दिवसीय पौधे रोपण के बाद भी जुलाई-अगस्त में प्रदेश के 51 जिलों में करीबन 8 करोड पौधे लगाए जाने की योजना है।

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पर्यावरण विविधा

वृक्षों में जीव विषयक ऋषि दयानन्द के विचार

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                स्वामी दयानन्द जी इस प्रसंग में आगे लिखते हैं कि वृक्ष आदि के बीजों को जब पृथिवी में बोते हैं तब अंकुर ऊपर आता है और मूल नीचे जाता (रहता) है। जो उन (वृक्षों) को नेत्रेन्द्रिय न होता तो (वह) ऊपर-नीचे को कैसे देखता? इस काम से निश्चित जाना जाता है कि नेत्रेन्द्रिय जड़ वृक्षादिकों में भी हैं। बहुत (प्रकार की) लता होती हैं, जो वृक्ष और भित्ती के ऊपर चढ़ जाती हैं, जो (उनमें) नेत्रेन्द्रिय न होता तो उसको (वृक्ष और भित्ति को) कैसे देखता तथा स्पर्शेन्द्रिय तो वे (जैन) भी मानते हैं। जीभ इन्द्रिय भी वृक्षादिकों में हैं क्योंकि मधुर जल से बाग आदि में जितने वृक्ष होते हैं, उनमें खारा जल देने से सूख जाते हैं। जीभ इन्द्रिय न होता तो खारे वा मीठे का स्वाद (वह वृक्ष) कैसे जानते? श्रोत्रेन्द्रिय भी वृक्षादिकों में हैं, क्योंकि जैसे कोई मनुष्य सोता हो, उसको अत्यन्त शब्द (तेज आवाज, शोर वा धमाका आदि) करने से सुन लेता है तथा तोफ आदिक शब्द से भी वृक्षों में कम्प होता है, जो श्रोत्रेन्द्रिय न होता, तो कम्प क्यों होता क्योंकि अकस्मात् भयंकर शब्द के सुनने से मनुष्य, पशु, पक्षी अधिक कम्प जाते हैं, वैसे वृक्षादिक भी कम्प जाते हैं। जो वह कहें कि वायु के कम्प से वृक्ष में चेष्टा हो जाती है, अच्छा तो मनुष्यादिकों को भी वायु की चेष्टा से शब्द सुन पड़ता है, इससे वृक्षादिकों में भी क्षोत्रेन्द्रिय है।

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